tag:blogger.com,1999:blog-2419884849297657734.post3111338404481219037..comments2024-02-15T11:31:59.371+05:30Comments on मुकुल का मीडिया: शौचालय निर्माण तो स्वच्छ भारत का "पहला पड़ाव" Mukulhttp://www.blogger.com/profile/17912641611101930410noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-2419884849297657734.post-36825691358570436872017-10-28T15:15:51.114+05:302017-10-28T15:15:51.114+05:30हाल ही में भारत के स्वच्छ भारत अभियान की राष्ट्रीय...हाल ही में भारत के स्वच्छ भारत अभियान की राष्ट्रीय विशेषज्ञ रागिनी जैन ने कचरा निष्पादन से जुड़ा एक ऐसा उपाय प्रस्तुत किया है, जो सुरक्षित और लाभकारी सिद्ध हो सकता है।<br /><br />इस प्रक्रिया में कूड़े के पहाड़ों को अलग-अलग भागों में एक प्रकार से काटकर उन्हें सीढ़ीनुमा बना दिया जाता है। इससे उनके अंदर पर्याप्त वायु प्रवेश कर पाती है और लीचेट नामक द्रव अंदर भूमि में जाने के बजाय बहकर बाहर आ जाता है। कूड़े के हर ढेर को सप्ताह में चार बार पलटा जाता है। उस पर कॅम्पोस्ट माइक्रोब्स का छिड़काव किया जाता है, जिससे उसे जैविक मिश्रण के रूप में बदला जा सके। इस चार बार के चक्र में कूड़े का ढेर 40 प्रतिशत कम हो जाता है। इस प्रकार उसका जीवोपचारण कर दिया जाता है। लीचेट के उपचार के लिए भी कुछ सूक्ष्म जीवाणुओं का प्रयोग किया जाता है। इसके बाद जैव खनन के द्वारा इसका उपयोग खाद, सड़कों की मरम्मत, रिफ्यूज डिराइव्ड फ्यूल पैलेट, प्लास्टिक की रिसाइक्लिंग और भूमि भराव के लिए किया जा सकता है।जीवोपचार से कचरा निष्पादन करने के प्रयास में अनेक उद्यमी एवं अन्वेषक लगे हुए हैं। इस प्रकार के उपचार से कचरे से पटी भूमि अन्य कार्यों के भी उपयुक्त हो जाती है। यह सुरक्षित, सरल और मितव्ययी प्रणाली है।यह कहने की तो ज़रूरत है ही नहीं कि बड़े शहरों और कस्बों के गंदे नाले यमुना जैसी देश की प्रमुख नदियों में गिराए जा रहे हैं | चाहे विभिन्न प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हों और चाहे पर्यावरण पर काम करने वाली स्वयमसेवी संस्थाएँ – और चाहे कितनी भी चिंतित सरकारें – ये सब गंभीर मुद्रा में ‘चिंता’ करते हुए तो दिखते हैं लेकिन सफाई जैसी बहुत छोटी ? या बहुत बड़ी ? समस्या पर ‘चिंताशील’ कोई नहीं दिखता | अगर ऐसा होता तो ठोस कचरा प्रबंधन, औद्योगिक कचरे के प्रबंधन, नदियों के प्रदूषण स्वच्छता और स्वास्थ के सम्बन्ध जैसे विषयों पर भी हमें बड़े अकादमिक आयोजन ज़रूर दिखाई देते हैं | विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय दिवसों और राष्ट्रीय दिवसों पर सरकारी पैसे से कुछ सेमीनार और शोध सम्मलेन होते ज़रूर हैं लेकिन उनमें समस्याओं के विभिन्न पक्षों की गिनती से ज्यादा कुछ नहीं हो पाता | ऐसे आयोजनों में आमंत्रित करने के लिए विशेषज्ञों का चयन करते समय लालच यह रहता है कि सम्बंधित विशेषज्ञ संसाधनों का प्रबंध करने में भी थोड़ा बहुत सक्षम हो | और होता यह है कि ऐसे समर्थ विशेषज्ञ पहले से चलती हुई यानी चालु योजना या परियोजना के आगे सोच ही नहीं पाते | जबकि जटिल समस्याओं के लिए हमें नवोन्मेषी मिज़ाज के लोगों की ज़रूरत पड़ती है | विज्ञान और प्रोद्योगिकी संस्थानों, प्रबंधन प्रोद्योगिकी संस्थानों और चिंताशील स्वयंसेवी संस्थाओं के समन्वित प्रयासों से, अपने अपने प्रभुत्व के आग्रह को छोड़ कर, एक दुसरे से मदद लेकर ही स्वच्छता जैसी बड़ी समस्या का समाधान खोजा जा पायेगा |anil kumar gautamhttps://www.blogger.com/profile/02057740451246548597noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419884849297657734.post-55775342912171437852017-10-12T16:28:06.051+05:302017-10-12T16:28:06.051+05:30Ye baat bilkul such hai ki agar desh ko swachha ...Ye baat bilkul such hai ki agar desh ko swachha banana hai to desh ke logo ko sauchalay Ka Upyog Karna hoga.lekin desh ke grameen kshetro me aarthik roop se kamjor logo ka ek bara tabka rahta hai, jo aarthik tangi ke kaaran sauchalay Ka nirman Nani Kara sakte, lekin sarkar ke dwara diye jaa rahe sarkari sauchalayo se grameen kshetro me bhi inka Upyog hone laga hai. Hamlethttps://www.blogger.com/profile/11424025384060828498noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419884849297657734.post-79272546866566603212017-09-23T02:49:40.473+05:302017-09-23T02:49:40.473+05:30बहुत सही बात कहीं है आपने | वृहद् स्तर पर शहरी एवं...बहुत सही बात कहीं है आपने | वृहद् स्तर पर शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम को स्थापित करना एवं लोगों में वेस्ट रीसाइक्लिंग एवं इसके प्रबंधन में व्यवहार परिवर्तन लाने की ज़रुरत है | स्वच्छता के नाम पर सरकार का सारा ध्यान केवल शौचालय बनाने और आंकड़ों के प्रदर्शन पर है| यही नहीं शौचालय के बनने में और लोगों द्वारा उसके निरंतर इस्तेमाल में भी एक लम्बा फासला होता है जिसपे सरकार ध्यान नहीं दे रही है| आखिर सालों की आदत को बदलने के लिए भी प्रयास करना होगा | कहीं ऐसा न हो की शौचालय बनवाने के बावजूद स्वाथ्य मानकों एवं बीमारियों पर इसका कोई प्रभाव ही न पड़े| ऐसा हुआ तो सरकार ने जैसे इस मुहीम को एक तमाशा बनाया है वह खुद ही तमाशा बन के न रह जाए| Md Imran Khannoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419884849297657734.post-1843832925405453622017-09-22T20:03:08.564+05:302017-09-22T20:03:08.564+05:30abhi isme lucknow ke metro jitna time lage ga sir ...abhi isme lucknow ke metro jitna time lage ga sir ....bahart me acha kam dire dire hi hota hai ....ARJAN CHAUDHARYAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/05038439461629651516noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419884849297657734.post-59955935048726772862016-12-09T17:56:55.273+05:302016-12-09T17:56:55.273+05:30sarkar key sath aam aadmi ko bhi aagey ana chaiyeh...sarkar key sath aam aadmi ko bhi aagey ana chaiyeh.. tabhi desh ko iss dikhat se nijat mileyga<br />Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/03713172922177438302noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2419884849297657734.post-45205204078340387512016-11-20T17:37:30.167+05:302016-11-20T17:37:30.167+05:30सरकार के साथ -साथ आम आदमी को भी आगे आना चाहिए और इ...सरकार के साथ -साथ आम आदमी को भी आगे आना चाहिए और इस पर गम्भीरता पूर्वक कार्य करना होगा <br />जितनी ज़िम्मेदारी सरकार की है उतनी ही आम आदमी की <br />कैसे का उपयोग कर के बीमारियों से बचा जाये इस पर सरकार को और तेज़ी से कार्य करने होगे । आम आदमी बताना होगा इसके साथ -साथ आम आदमी को इस नैतिक ज़िम्मेदारी को पूर्ण इमानदारी के साथ कार्य करने होंगे यदि इस ज़िम्मेदारी को आम आदमी ने अभी नहीं स्वीकार किया तो यह भविष्य में इतनी बड़ी समस्या बनकर उभरेगी जितना की सोच भी नहीं सकते ।<br />सरकार के दिशा निर्देशों को ध्यान में रख कर आम आदमी को इस भीषण समस्या का हल निकालना ही होगा <br />Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/17664326211400064694noreply@blogger.com