Monday, February 9, 2009

मैं चाहता हूँ


मैं चाहता हूँ सजाना
सपने सुनहरे भविष्य के
चाहता हूँ मैं विचरना
एकांत में तुम्हारे साथ
जब गिरी हो नर्म ओस धरती पर
मैं महसूस करना चाहता हूँ
तुम्हारी सांसों की गरमी को
हाथों में लेकर तुम्हारे हाथ को
मैं देखना चाहता हूँ सुबह की लाली
जो छाई हो तुम्हारे चेहरे पर
जब मिलूं मैं तुमसे
मैं लेना चाहता हूँ तुमको
अपने आगोश में जब देखो तुम मुझको
मैं चाहता हूँ दुनिया नई बसाना
जिसमे रहें हम दोनों
और बरसे खुशियों का खजाना
मैं भागना चाहता हूँ उन पलों से
जो कर देंगे मुझसे तुमको दूर
मैं नहीं खोना चाहता तुमको
लेकिन मेरे दोस्त चाहने से क्या होता है
कभी अनगढ़ सपने भी सच हुए हैं
फ़िर भी मैं बांधना चाहता हूँ
तुमको अपनी जीवन की डोर से

9 comments:

  1. behtreen chaht..
    achchi rachna ke liye mera dhnayavaad swikaar kare..

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  2. ये कविता आखिर हमें या कवि को आखिर ले जाना कहां चाहती है..? ये छायावाद की तरफ इशारा करती है...कभी उत्तर आधुनिकता की तरफ हमारा ध्यान मोड़ने की कोशिश करती है...मैं अभी इसे समझने की कोशिश में हूं...ये कविता उत्तर आधुनिकता की तरफ बरबस ही मोड़ने की एक धर्मांध कोशिश ही ज्यादा लग रही है...लेकिन ये अभी आखिरी नतीजा नहीं है...

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  3. लेकिन मेरे दोस्त चाहने से क्या होता है
    कभी अनगढ़ सपने भी सच हुए हैं
    फ़िर भी मैं बांधना चाहता हूँ
    तुमको अपनी जीवन की डोर से ......


    kya saleeke se aap ne sabdo ka jaal buna hai mukul bhai....bahut kuch kah rahe hain uprokt sabd

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  4. Sir insaan ki chahton koi anta nahi hai,,,,,

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  5. Chah or chahat me fark bus yahi hai ki dono ek dusro ko kamjoor kar deta par tb bhi chahat apni chah ko puri karti hai.... Bhut hi unda kavita hai khash tor aapne jo aapne sabdo ka chayn bhut aacha kiya hai

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  6. sir bhot roomani poem h .......its my fav

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  7. BAHUT HI BEHTARIN KAVITA HAI SIR.
    मैं भागना चाहता हूँ उन पलों से
    जो कर देंगे मुझसे तुमको दूर
    मैं नहीं खोना चाहता तुमको
    लेकिन मेरे दोस्त चाहने से क्या होता .
    BAHUT ACHI LINE HAI DIL KO CHU GAYE.

    INSAAN KI CAHAT KA KOI THIKANA NAHI HOTA USKI CAHAT APAR HOTI HAIN.

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  8. bohat achi kavita hai hai sir.......

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