Tuesday, December 5, 2017

बदलती पहाडी आबो हवा

डूबा हुआ राजमहल 
पिछले  दिनों टिहरी की यात्रा पर था मकसद उस डूबे शहर को देखना  जिसके ऊपर अब भारत का सबसे बड़ा  बाँध बना दिया गया है जहाँ कभी टिहरी शहर था वहां अब बयालीस किलोमीटर के दायरे में फ़ैली झील है जहाँ तरह –तरह के वाटर स्पोर्ट्स की सुविधा भी उपलब्ध है |गर्मियों में जब बाँध का पानी थोडा कम हो जाता है तो दौ साल तक आबाद रहे टिहरी शहर के कुछ हिस्से दिखते हैं |कुछ सूखे हुए पुराने पेड़ और टिहरी के राजमहल के खंडहर|एक पूरा भरा पूरा शहर डूबा दिया गया जो कालखंड के विभिन्न हिस्सों में बसा और फला फूला और उसके लगभग पन्द्रह किलोमीटर आगे फिर पहाड़ काटे गए एक नया शहर बसाने के लिए जिसे अब नयी टिहरी के नाम से जाना जाता है और जानते हैं ये सब क्यों किया गया विकास के नाम पर ,बिजली के लिए हमें बांधों की जरुरत है |वैसे उत्तराखंड की राजधानी देहरादून जो टिहरी से लगभग एक सौ बीस  किलोमीटर दूर है वहां अभी भी बिजली जाती है जबकी टिहरी बाँध को चालू हुए दस साल हो गए हैं |आखिर कितने विकास की हमें जरुरत है और इस विकास की होड़ कहाँ जाकर रुकेगी |
जलते पहाड़ 
बिजली की रौशनी में दमकता नया  टिहरी

मुझे बताया गया कि टिहरी में बनने वाली बिजली का बड़ा  हिस्सा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को जाता है जहाँ ऐसी बहुमंजिला इमारतें हैं जहाँ दिन में रौशनी के लिए भी बिजली की जरुरत पड़ती है |असल में यही विकास है पहले जंगल काटो फिर वहां एक इमारत बनाओ जहाँ दिन में रौशनी के लिए बिजली चाहिए |कमरे हवादार मत बनाओ और उसको आरामदेह बनाने के लिए एसी लगाओ और इस सारी प्रक्रिया को हमने विकास का नाम दिया है |खैर टिहरी के आधे डूबे हुए राजमहल को देखते हुए मेरे मन में यही सब सवाल उठ रहे थे क्योंकि जल जंगल जमीन की बात करने वाले विकास विरोधी समझे जाते हैं |मैं टिहरी उत्तर भारत की चिलचिलाती गर्मी से बचने के लिए आया था पर मेरे गेस्ट हाउस में एसी लगा हुआ मैं रात में प्राक्रतिक हवा की चाह में भ्रमण पर निकल पड़ा रात के स्याह अँधेरे में दूर पहाड़ों पर आग की लपटें दिख रही थीं |जंगलों में आग लगी है साहब जी मेरी तन्द्रा को तोडती हुई आवाज गेस्ट  हाउस के चौकीदार की थी | कैसे ? अब गर्मी ज्यादा पड़ने लग गयी है बारिश देर से होती है इसलिए सूखे पेड़ हवा की रगड़ से खुद जल पड़ते हैं वैसे कभी –कभी पुरानी घास को हटाने के लिए लोग खुद भी आग लगा देते हैं और हवा से आग बेकाबू हो जाती है तो पहाड़ जल उठते हैं |मेरी एक तरफ जंगलों में लगी आग थी जिससे पहाड़ चमक रहे थे और दूसरी तरफ टिहरी बाँध की बिजली  से जगमगाता नया टिहरी शहर विकास की आग में दमक रहा था मैं अपने कमरे में थोड़ी ठण्ड की चाह में लौट रहा था जहाँ एसी लगा था | 
प्रभात खबर में 05/12/2017 को प्रकाशित 

30 comments:

  1. विकास के नाम पर विनाश। .. दु:ख तो होता है लेकिन कर भी क्या सकते हैं... एक आह निकल के रह जाती है

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  2. aaj ka insaan bahut materialistic ho gaya hai. vikas ki hod me prakirty ke diye hue anmol khazane ko apne hi hathon se nasht karta ja raha hai. jane kis jagah rukega, jane yeh kaunsa vikas hai jo vinash ki rah pakadta aage badhta hai.

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  3. प्रकृति को विकास के नाम पर छति पहुचाते हुए खुद को विकसित और विकासशील बता रहा है

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  4. प्रकृति को विकास के नाम पर छति पहुचाते हुए खुद को विकसित और विकासशील बता रहा है

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  5. प्रकृति को विकास के नाम पर छति पहुचाते हुए खुद को विकसित और विकासशील बता रहा है

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  6. प्रकृति को विकास के नाम पर छति पहुचाते हुए खुद को विकसित और विकासशील बता रहा है

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  7. प्रकृति को विकास के नाम पर छति पहुचाते हुए खुद को विकसित और विकासशील बता रहा है

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  8. प्रकृति को विकास के नाम पर छति पहुचाते हुए खुद को विकसित और विकासशील बता रहा है

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  9. विकास के नाम पर सरकारे जबरन जमीनें हथियाने में, लोगो के घरो को तोड़ के उन्हें बेघर करने में लगी है जिसे वे "विकास" कह रहे हैं ।

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  10. Tarakki Ke Sapne Adore
    Prikriti Ki Raksha Se Honge Poore .
    regards Pranjal

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  11. समझ नहीं आता कि आखिर यह किस तरह के विकास की तरफ बढ़ रहे हैं। जहां प्रतिदिन ना जाने कितने जानवरों का घर उजाड़ कर, लोग अपने लिए आलिशान घर बना रहे हैं, इन सब की वजह से कितनी प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले वक्त में कोई और शहर इसी तरह विकास के नाम की बलि चढ़ जाएगा।

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  12. Vikas ke naam pr pragati hoti ja rhi hai,Vinash ke naam pr ped katte ja rhe hai..koi ise kyun nahi dekhta hai,Insan hoke bhi hum janwar bante ja rhe hai...

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  13. समझ नहीं आता कि आखिर यह किस तरह के विकास की तरफ बढ़ रहे हैं। जहां प्रतिदिन ना जाने कितने जीवों का घर उजाड़ कर, लोग अपने लिए आलिशान घर बना रहे हैं, इन सब की वजह से कितनी प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले वक्त में कोई और शहर इसी तरह विकास के नाम की बलि चढ़ जाएगा।

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  14. विकास की होड़ पूरी दुनिया में लगी है,लेकिन यह कैसा विकास है,जंगलो को काटना,पेड़ काटना, लोगों के घर को उजाड़ना,हमे ऐसा विकास नहीं चाहिए,पूरी दुनिया को,और हमारी सरकारों को इस विषय पर गहन चिंतन करना चाहिए ।

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  15. A.C. usage is so common that we usually neglect that the comfort inside is causing harm outside. The more machineries we use for our liesure the more the environment will get warm....Your sarcastic opinion nailed it sir.

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  16. Vikas zaruri hai par uske liye vinash ho ye zaruri to nahi.Vikas ke naam par hum jangal or sheher aise tabah nahi kar sakte.Humko sochna hoga ki vikas k naam par hum kis taraf jaa rahe h aur aage jaa kar iske parinaam kya hoge.Bijli ki kami ko pura karne ke liye aur bhi upaye soche ja sakte hai par vikas ke naam par pure sheher ko dooba dena koi vikas nahi hai.

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  17. विकास की इच्छा रखना तथा विकास करना बिल्कुल अनुचित नही है बल्कि अनुचित है संपोषणीयता को ध्यान में न रखकर विकास करना।पर यहाँ प्रश्न यह है कि इस ईच्छा की पूर्ति के लिये दाव पे क्या लगा है?

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  18. हम आज जिस विकास की कश्ती पर स्वर है वो भविष्य के खूबसूरत नदी में ना जाकर विनाश के महासागर में हम सब को ले डूबेगा| भारत के उन तमाम बुद्धिजीवी योजनाकारों और सरकारों की अदूरदर्शिता का सबूत अब हमे मिलने लगे हैं, रिपोर्ट के अनुसार टिहरी के उपर बसे तमाम गाँवों को भूस्खलन के कारण कहीं और बसाया गया और सरकार भी मानती है की अभी सैकड़ो गाँवों के अस्तित्व पर खतरा है |इसी टिहरी के महेथा गाँव में ४०० साल पहले वीर माधोसिंह भंडारी जी ने अपनी छेनी हथोडी की चोट से भूमिगत नहर का निर्माण किया था जो आज भी वैसे ही कार्य कर रहा है, ऐसे में आज जब हम उन बेहतरीन मशीनों और उन्नत तकनीक से लैस होने के बाद भी उनकी तुलना में कहीं नजर नही आते | विद्वानों का मानना है की की ये विकास इस पीढ़ी के साथ ही खत्म हो जायेगा, तो ये सोचने की जरूरत है की हम आने वाली पीढ़ियों के लिए क्या छोड़ क्र जाना चाहते है......

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  19. आधुनिक मनुष्य के लालची स्वाभाव के चलते प्राक्रतिक संसाधनों का अत्यंत ही शोषण हुआ है, परिणाम स्वरूप आज जल की समस्या, वैश्विक तपन, जैव विविधता का क्षरण आदि ने वैश्विक स्तर पर विकराल समस्या का रूप धारण कर लिया है, जिससे निजात पाना समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है और यह सन्पोशित विकास के द्वारा ही संभव है.

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  20. विकास की इस होड़ मे अपनी प्रकती को हम कितना नुकसान पहुँचा रहे हैं इसका अंदाजा भी हम नहीं लगा सकते

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  21. ye chakachoundh me hm apni suvidha me itna khote ja rhe h ki hme ye nhi dikhta iska nuksan bhi hota hoga abhi bhi kitne log h jo road pe sote hm 2-2 ghar bnaye ja rhe h hmari chah khatam ho nhi rhi h or unki shuru bhi nhi ho rhi h hme apne sath un logo ka bhi khyal rkhna h jinke pass abhi bhi kuch nhi h

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  22. Mere hisab se agar wakai me nijad pana h to hm sb logo ko apni icchao pr control krna chahiy or sath hi sath update hona chahiy or environmental study bhi krna chahiy.

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  23. Mere hisab se agar wakai me nijad pana h to hm sb logo ko apni icchao pr control krna chahiy or sath hi sath update hona chahiy or environmental study bhi krna chahiy.

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  24. विकास के नाम पर जंगलों का विनाश किया जा रहा है और विभिन्न प्रकार के जानवरों के घर और प्राकृतिक हवा को का विनाश विकास नहीं हो सकता ।
    मनुष्य ही अपने हाथो अपने विनाश को बुलावा दे रहा है
    जंगलों को ख़त्म कर स्वयं वह अपना विनाश कर रहा है बढते र्पदूषण का वह स्वयं ज़िम्मेदार है और जानवरों के विलुप्त होने का कारण भी वह स्वयं है

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  25. हाँ सर विकास हो रहा पर अपना और उसके लिये हम किसी भी हद तक जा सकते है।

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  26. Hum log vikas ki aandhi me kuch andhe se ho chuke hain. lekin jab yeh aandhi thamegi tab takk bahut der ho chuki hogi. yeh nasamjhi hi toh hai ki kudrat ko nasht kar ke hum swayam ka vikaas kar rhe hain.
    baandh ko bada na kar ke chotey chotey banate to hume uss hise kohona nhi padta joab jalmagn hai aur whanaa ki kudrati khoobsurti ko theek se dekh sakte the aur saawar sakte.

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  27. सर विकास की होड पूरी दुनिया मे लगी है समझ नही आ रहा कि आखिर किस तरह के विकास की ओर जा रहे है जंगलो को काटना जानवरो को परेशानी मे डालना मनुष्‍य के लालची स्‍वाभाव के चलते प्राक्रतिक ससाधनो का बहुत ही शोषण हो रहा है मनुष्‍य को यह नही पता कि बढते प्रदूषण का स्‍वय जिम्‍मेदार है

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  28. सर विकास की होड पूरी दुनिया मे लगी है समझ नही आ रहा कि आखिर किस तरह के विकास की ओर जा रहे है जंगलो को काटना जानवरो को परेशानी मे डालना मनुष्‍य के लालची स्‍वाभाव के चलते प्राक्रतिक ससाधनो का बहुत ही शोषण हो रहा है मनुष्‍य को यह नही पता कि बढते प्रदूषण का स्‍वय जिम्‍मेदार है Vivek kashyap

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  29. सर विकास की होड पूरी दुनिया मे लगी है समझ नही आ रहा कि आखिर किस तरह के विकास की ओर जा रहे है जंगलो को काटना जानवरो को परेशानी मे डालना मनुष्‍य के लालची स्‍वाभाव के चलते प्राक्रतिक ससाधनो का बहुत ही शोषण हो रहा है मनुष्‍य को यह नही पता कि बढते प्रदूषण का स्‍वय जिम्‍मेदार है Vivek kashyap

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