Friday, May 19, 2023

संभावित चुनौतियों का समाधान

 

आज हर उद्योग  किसी न किसी रूप में सूचना प्रौद्योगिकी की सहायता से चल रहा है  वो चाहे निर्माण,परिचालन ,भर्ती हो या लेखा सभी  कम्प्युटरीकृत होते जा रहे हैं  और उपभोक्ता भी पहले के मुकाबले आज निर्णय और खरीदने की प्रक्रिया में ज्यादा से ज्यादा तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है |इसी का चरम रूप अब हमारे सामने आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस”, रोबोटिक्स के रूप में सामने आ रहा है |चैट जी पी टी आने से पहले ये माना जा रहा था कि आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस का सामान्य इंसान के लिए प्रयोग अभी दूर की कौड़ी है पर पिछले ६ महीनों में करोडो लोग आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस पर आधारित चैट जी पी टी से जुड़े और निरंतर जुड़ते जा रहे हैं |उससे सूचना प्रौधिगिकी से रोजगारों पर पड़ने वाले असर की चर्चा शुरू हो गयी हैं |आप इसे यूँ समझ सकते हैं रेलवे आरक्षण में कम्प्यूट्रीकृत व्यवस्था से पहले आरक्षित टिकट बुक करने के लिए एक बुकिंग क्लर्क हुआ करता था |जो आरक्षित टिकट जारी करता था लेकिन अब बुकिंग कलर्क की कोई जरुरत ही नहीं अब ये सारा काम मोबाईल एप और वेबसाईट से होता है जो बुकिंग क्लर्क का पद था वो अब लुप्त हो चुका है |इसलिए अब रेलवे इनकी नियुक्ति नहीं करता है |

आज से तीस साल पहले घटी यह प्रक्रिया इंसान और तकनीक के सहजीवन का उदाहरण बनी पर अब तो हर रोजगार में सिर्फ तकनीक का ही राज है | आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस इस गति को कई सौ गुना तेज कर रहा है |जाहिर है इसका असर नौकरियों पर पड़ने वाला है। इसे लेकर एक ताजा रिपोर्ट सामने आई है। वर्ल्ड इकोनमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट  फ्यूचर आफ जाब्स में भविष्‍य को लेकर कई  नई संभावना जाहिर की गई है। इसके अनुसार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ)मशीन लर्निंग और डाटा सेगमेंट के चलते अगले पांच सालों में देश में 22 प्रतिशत नौकरियों का स्वरूप बदल जाएगा।   वैश्विक स्तर पर नौकरियों में 23 प्रतिशत बदलाव होने का अनुमान है। रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान 6.9 करोड़ नए रोजगार सृजित होंगे जबकि 8.3 करोड़ रोजगारों के खत्म होने की उम्मीद है। इस तरह अगले पांच सालों में दुनिया में एक चौथाई नौकरियां घट सकती हैं। इस दौरान नौकरियों में बढ़ोतरी की दर 10.2 प्रतिशत और गिरावट की दर 12.3 प्रतिशत रह सकती है। 803 कंपनियों के बीच कराए गए सर्वे के माध्यम से इस रिपोर्ट को तैयार किया गया है। जिन कंपनियों को सर्वे में शामिल किया गया हैउनमें 1.13 करोड़ लोग काम करते हैं और ये कंपनियां 27 सेक्टरों का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये कंपनियां 45 देशों का प्रतिनिधित्व करती हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वो तकनीक है जहां आप कंप्यूटर को इंसान की तरह काम करना सिखाते हैंजैसे एपल का सिरीगूगल असिस्टेंट या फिर एमेजन एलेक्सा. यहां आप कंप्यूटर को डाइरेक्ट करते हैं और वो आपके हिसाब से काम करता हैअपने सरलतम रूप मेंएआई को इस तरह से समझा जा सकता है कि उन चीजों को करने के लिए कंप्यूटर का उपयोग किया जाता  है जिनके लिए मानव बुद्धि की आवश्यकता होती है।

ए आई  बाजार पर कब्जा करने के लिए इन दिनों माइक्रोसॉफ्ट के “चैटजीपीटी” और गूगल के “बार्ड” के बीच चल रही प्रतिस्पर्धा इसका एक उदाहरण है | इसे इस तरह समझा जा सकता है एक बैंक में एक आर्टिफिशल इंटेलिजेंस सिस्टम लगाया गया है जो लोगों के द्वारा भेजे गए ईमेल संदेशों को अपने आप जवाब दे देता  है। इससेजो लोग ई मेल का का जवाब देने  के लिए रखे  गए थेवे अधिकांशतः अनुपयोगी हो जायेंगे या उन्हें अपने अंदर कोई नयी स्किल सीखनी होगी जिससे वे बैंक के लिए उपयोगी बने रहें |अब चुनौती यह है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की वजह से जिनके रोजगार जायेंगे |उनका क्या होगा ?इस बहस के बीच औद्योगिक क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का  जमकर स्वागत किया जा रहा है इसके पीछे तर्क  यह  है कि इससे उत्पादन में बढ़ोतरी होगीलागत में कमी आएगी। चिकित्सकीय-जीवन रक्षक मामलों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से गलती शून्य हो जाने के कारण ज्यादा जीवन बचाए जाने की उम्मीद की जा रही  है।लेकिन यह सब इतनी आसानी से नहीं होने जा रहा है |इंटरनेट के  प्रयोगकर्ताओ के मामले में दुनिया के दूसरे सबसे बड़े देश के सामने कई चुनौतियां है |जैसे  कि देश की शिक्षा व्यवस्था अभी इस तकनीक के साथ कदमताल करने के लिए बिलकुल तैयार नहीं है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में तकनीकी तौर पर दक्ष युवा तैयार करने के लिए देश  को अपनी शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है।

 पाठ्यक्रम के साथ-साथ शिक्षकों में भी बड़े बदलाव की आवश्यकता महसूस की जा रही है। अकादमिक जगत के विशेषज्ञ मानते  है कि इसके बिना भारत एक बार फिर कंप्यूटर क्रांति की तरह पिछड़ जाएगा और उसे पश्चिमी देशों से आयातित तकनीक पर ही निर्भर रहने के लिए मजबूर हो जाना पड़ेगा।आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारी सोचने से ज्यादा तेज गति से बढ़ रहा है। लेकिन अभी के स्तर पर यह कहना बहुत मुश्किल है कि इसके लंबी अवधि में क्या परिणाम होंगे और बाजार और नौकरियों पर इसका क्या असर पड़ेगा।लेकिन इतना तय है कि आने वाले समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का हर औद्योगिक सेक्टर में तेजी से उपयोग बढ़ने वाला है। यदि युवाओं को भविष्य की नौकरियों के लिए तैयार होना हैतो उन्हें इस तकनीक की बारीकियों से अवगत कराया जाना चाहिए।सरकार द्वारा लाई जा रही नई शिक्षा नीति में नई तकनीक को अपनाने को लेकर बड़े बदलाव किए जा रहे हैं जिसका असर आने वाले समय में दिखाई पड़ेगा।  लेकिन  यदि हमें अपनी आने वाली पीढ़ी को नए जमाने की चुनौतियों के अनुरूप तैयार करना होतो उनके इन प्रश्नों का नए संदर्भों के साथ उत्तर खोजा जाना बहुत  जरूरी है।

दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण में 19/05/2023 को प्रकाशित 

Thursday, May 4, 2023

पॉडकास्ट की बढ़ती लोकप्रियता

 

इंटरनेट पर हमेशा वीडियो और चित्रों का राज रहा है |दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले जहाँ ध्वनिया यानि पॉडकास्ट तेजी से लोकप्रिय हो रहा था |भारत में वीडियो के प्रति दीवानगी बरकरार रहीकोरोना महामारी और वर्क फ्रॉम होम जैसी न्यू नार्मल चीजों ने  काफी कुछ बदला है ,और इसी दौर में लोगों की इंटरनेट पर पसंद वीडियो के साथ साथ ध्वनियों ने भी जगह बनाई और पॉडकास्ट की लोकप्रियता में बढ़ोत्तरी होनी शुरू हुई भारत के विविधता वाले बाजार में पॉडकास्ट एक शहरी प्रवृत्ति बन कर रह गया था और इसके बाजार में जितनी तेजी से वृद्धि होनी चाहिए उसका बड़ा कारण इन आडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफोर्म में इंटरैक्टिवटी का ख़ासा अभाव था |

इंटरनेट की तेज दुनिया में अब कोई इन्तजार नहीं करना चाहता और इसीलिये पॉडकास्ट को वो लोकप्रियता नहीं मिल रही थी जितनी सोशल मीडिया साईट्स को मिली |जबकि ध्वनियों का मामला इंटरनेट के एक आम उपभोक्ता के लिए वीडियो के मुकाबले ज्यादा सरल है और इसमें डाटा भी कम खर्च होता है भारत जैसे देशों मेंजहां इंटरनेट की स्पीड काफी कम होती हैवीडियो के मुकाबले पॉडकास्टिंग ज्यादा कामयाब हो सकती है। भारतजैसे भाषाई विविधता वाले देश में जहाँ निरक्षरता अभी भी मौजूद है पॉडकास्ट लोगों तक उनकी ही भाषा में संचार करने का एक सस्ता और आसान विकल्प हो सकता है |प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की मन की बात कार्यक्रम का पॉडकास्ट काफी लोकप्रिय है | पॉडकास्ट की सबसे बड़ी खूबी है इसकी ग्लोबल रीच यानि अगर आप कुछ ऐसा सुना रहे हैं जो लोग सुनने चाहते हैं तो किसी चैनल के लोकप्रिय होते देर नहीं लगेगी भारत हमेशा श्रोत परम्परा वाला देश रहा है जहाँ हमारे सामाजिक जीवन में कहानियां बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है   कोरोना महामारी से उपजी पीड़ा और चिंताओं ने लोगों को कहानियाँ कहने और सुनने दोनों के लिए प्रेरित किया |उधर लोग सोशल मीडिया पर लोग अपनी राय व्यक्त करने के लिए लिखने में अपना समय नष्ट नहीं करना चाहते है तो इसका विकल्प ध्वनियाँ ही ही हो सकती हैं |

फेसबुक (लाईव ऑडियो रूम )और ट्विटर (स्पेक्स) आवाज की दुनिया में पहले ही कदम रख चुके हैं इसी कड़ी में 2021  मई  में देश में लॉन्च होते ही  क्लबहाउस लोगों की चर्चा का केंद्र बन गया |क्लब हाउस  ध्वनि  आधारित एक सोशल नेटवर्किंग साइट हैजो लोगों को ‘किसी भी चीज’ और ‘हर चीज के बारे में’ बात करने की सुविधा  देता है। लांच होने के बाद ही ये तेजी से लोकप्रिय हो रहा है|आधिकारिक तौर पर भारत में इसके कितने उपभोक्ता है इसका आंकड़ा जारी नहीं किया गया है |इसकी लोकप्रियता से उत्साहित होकर आडियो स्ट्रीमिंग में उपभोक्ताओं की पहले ही पसंद बन चुकी कम्पनी स्पोटीफाई ने क्लब हाउस को टक्कर देने के लिए इसी माह आवाज पर आधारित एक सोशल नेटवर्किंग एप ग्रीन रूम लांच कर दिया है माना जा रहा है कि लाईव आडियो मार्केट में एक कदम आगे निकले हुए ग्रीन रूम कलाकारों पर ज्यादा ध्यान केन्द्रित करेगा और इसके लिए कम्पनी जल्दी ही एक क्रियेटर फंड बनाने जा रही है जिससे ऑडियो  क्रियेटर को यू ट्यूब की तर्ज पर अपने लोकप्रिय काम के पैसे भी मिलेंगे |इंटरनेट पर हुई वीडियो क्रांति के अनुभव बताते हैं कि वीडियो कंटेंट में बहुत अश्लीलताफूहड़ मजाक और फेक न्यूज की बाढ़ भी आ गयी है |चूँकि इंटरनेट पर किसी तरह का कोइ सेंसर नहीं है ऐसे में बच्चों को अवांछित ऑडियो  कंटेंट से कैसे बचाया जाएगा |उपभोक्ताओं द्वारा बोले गए शब्द कंटेंट का क्या होगा उसकी निजता की रक्षा कैसे की जायेगी इसके अलावानफरत फैलाने वाले भाषण जैसे दुरुपयोग की निगरानी के लिए सुरक्षा प्रोटोकॉल की कमी के कारण इस तरह के एप कैसे अपने उपभोक्ताओं को इंटरनेट पर ध्वनि की दुनिया में  सुरक्षित अनुभव दे पायेंगे इसका फैसला अभी होना है |

प्रभात खबर में 04/05/2023 को प्रकाशित