Tuesday, January 21, 2014

चिकित्सा पर्यटन का नया केंद्र

चिकित्सा पर्यटन, अर्थात सस्ती एवं बेहतर चिकित्सीय सुविधाओं एवं सेवाओं के लिए देश के ही भीतर अथवा दूसरे देशों में की जाने वाली यात्रा, पिछले  कुछ सालों में भारत में चिकित्सा पर्यटन एक प्रमुख पर्यटन उत्पाद के रूप में उभरा है।जिसके मूल में यहाँ की भौगौलिक विविधता और समर्द्ध ऐतिहासिक विरासत और सस्ती स्वास्थ्य सेवाएँ यानि कोई विदेशी इलाज करने भारत आता है और आस पास के इलाकों को घूमकर स्वास्थ्य लाभ भी करता है|
हालांकि भारत को सिंगापूर ,मलेशिया थाईलेंड जैसे देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है पर यहाँ  इसके विस्तार एवं विकास की संभावनाएँ तुलनात्मक रूप से अधिक हैं। भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय की वर्ष 2012 – 13 में प्रकाशित वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार नवोन्नत चिकित्सा सुविधाएं, सुप्रसिद्ध हैल्थ केयर प्रॉफेश्नलस, उत्कृष्ट नर्सिंग सेवाएँ, अपेक्षाकृत कम प्रतीक्षा समय एवं भारत की आयुर्वेद व योग जैसी पारम्परिक चिकित्सा पद्धतियां जो एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति के साथ मिलकर समग्र निरोगिता प्राप्त करने में सहायक होती हैं, कुछ ऐसे कारण हैं जो भारत को एक पसंदीदा चिकित्सा पर्यटन गंतव्य बनाते हैं।
गिरते रुपये ने भले ही भारतीय अर्थशास्त्रियों को परेशान कर रखा है परंतु चिकित्सा पर्यटन के लिए यह शुभ संकेत बनकर उभरा है क्योंकि रूपये की गिरती कीमत  ने देश  में पहले से ही सस्ती चिकित्सा सुविधाओं को विदेशियों के लिए और भी सस्ता बना दिया है। अभी देश में चिकित्सा पर्यटन उद्योग लगभग 7,500 करोड़ रूपये का है जिसकी  वर्ष 2015 तक बढ़कर 12,000 करोड़ रुपये हो जाने की उम्मीद है । भारत में चिकित्सीय सेवाओं के सस्ते होने का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि दिल की बाइपास सर्जरी जिसके लिए अमेरिका में लगभग 1,50,000 डॉलर खर्च करने पड़ते हैं जबकि भारत में सिर्फ 5,000 से 6,000 डॉलर में यह काम हो जाता है। इसी तरह कूल्हे बदलने के लिए अमेरिका में 50,000 डॉलर खर्चने पड़ते हैं जबकि भारत में सिर्फ 7,000डॉलर। इसी तरह दांतों के रोपण, एंजियोप्लास्टी, लेसिक, जैसी  चिकित्सीय सुविधाएं अन्य देशों के मुक़ाबले यहाँ  सस्ती हैं। चिकित्सा पर्यटन के माध्यम से भारत सरकार बहुमूल्य विदेशी मुद्रा अर्जन कर अपने व्यापार घाटे को नियंत्रित कर सकती है और  रोजगार के नए अवसर पैदा करने में भी सहायक हो सकता है। सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने चिकत्सीय सेवाओं के लिए भारत आने वाले पर्यटकों के लिए विशेष “चिकित्सा वीज़ा” की व्यवस्था की है। इससे चिकित्सा पर्यटकों को वीज़ा के लिए इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारतीय पर्यटन मंत्रालय के तेरह  विदेशी दफ्तर चिकित्सीय कारणों से भारत आने की इच्छा रखने वाले पर्यटकों द्वारा पटे रहते हैं। यहाँ  आने वाले चिकित्सा पर्यटकों में विकसित देशों जैसे ब्रिटेन, अमेरिका,आदि से लेकर पड़ोसी मुल्कों जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, आदि देशों के भी पर्यटक शामिल हैं।
भारत में चिकित्सा पर्यटकों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है परंतु सब कुछ उतना अच्छा भी नहीं है । सिंगापुर और थायलैंड जैसे देश इस मामले में हमसे कहीं आगे हैं। आधारभूत  सुविधाओं के अभाव में भारत में चिकित्सा पर्यटन का विकास उतनी  तेज़ी से नहीं हो पा रहा है जितना की होना चाहिए। नीतिगत प्रश्न भी इसके विकास में बाधा डाल रहे हैं। देश  में एक बड़ी जनसंख्या के पास आज भी मूलभूत चिकित्सा सुविधाएं नहीं पहुँच पा रही हैं ऐसे में धनी विदेशियों के लिए चिकत्सकीय सुविधाओं का प्रबंध करने के औचित्य को सही सिद्ध करना कठिन है। चिकित्सा को उद्योग बना देने से इस पेशे में आंतरिक रूप से निहित सेवा भाव के ख़तम हो जाने  होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
मानव अंगों की तस्करी इस उद्योग का एक और स्याह पक्ष है विकसित देशों में मानव अंग आसानी से उपलब्ध नहीं हैं और भारत जैसे गरीब देश में पैसों के लालच अथवा ताकत के प्रभाव का प्रयोग कर गरीबों के उत्पीड़न की संभावना बराबर बनी रहती है। चिकित्सा पर्यटकों की बेहतर क्रय क्षमता सरकारी अस्पतालों से बेहतर डॉक्टरों को दूर कर देगी और आम भारतीय पैसे के अभाव में उच्च स्तरीय चिकित्सीय सुविधाओं से वंचित रह जाएँगे और देश अपने डॉक्टरों की पढ़ाई पर जो पैसा  खर्च करता है उसका लाभ देशवाशियों को न मिलकर दूसरों को मिलेगा। चिकित्सा पर्यटन जहाँ  निजी  अस्पतालों को बढ़ावा दे रहा है  जो कि आने वाले समय में चिकित्सा के क्षेत्र में पहले से ही मौजूद विसंगतियों को और बढ़ाएगा |अत: चिकित्सा पर्यटन के लिए एक दीर्घकालीन  नीति बनाने की आवश्यकता है जिससे इस उद्योग से हुए फायदे का लाभ एक आम भारतीय बेहतर स्वास्थ्य सुविध्याएं प्राप्त करने में उठा  सके|
अमर उजाला में 21/01/14 को प्रकाशित 

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