Wednesday, June 4, 2025

क्या एआई ने मेटावर्स की चमक फीकी की है

 

जरा सोचिए आप अपने घर में सोफे पर बैठे हैं, और उसी वक्त वक्त न्यूयॉर्क में एक मीटिंग में हिस्सा ले रहे हैं, टोक्यो में किसी आर्ट गैलरी में घूम रहें हैं और फिर दिल्ली में दोस्तों के साथ गपशप कर रहे हैं। यह न तो कोई सपना है और न ही कोई साइंस फिक्शन फिल्म का दृश्य बल्कि हकीकत में संभव हो रहा है। ये मेटावर्स है जहाँ तकनीक के जरिए आप एक वर्चुअल दुनिया में दाखिल होते हैं। दरअसल मेटावर्स एक आभासी डिजिटल दुनिया का कॉन्सेप्ट है, जिसमें आप वर्चुअल अवतार बनकर घूम सकते हैं, लोगों से मिल सकते हैं। यह इंटरनेट का अगला संस्करण है।  जहाँ लोग केवल स्क्रीन पर वेबसाइट नहीं देखते बल्कि खुद एक आभासी दुनिया का हिस्सा बन जाते हैं।

मेटावर्स की अवधारणा सबसे पहले साइंस फिक्शन लेखक नील स्टीफेंसन ने 1992 में अपनी किताब स्नो क्रैश में की थी। इस किताब में उन्होंने एक ऐसी काल्पनिक दुनिया का खाका खींचा था, जहां लोग अपने घरों की चारदीवारी में रहकर एक वर्चुअल रियलिटी में अपना जीवन जीते हैं। यह अवधारणा उस समय के मुताबिक भले ही काल्पनिक और दूर की बात लग सकती है, लेकिन तेजी से हो रही तकनीकी प्रगति ने इस कल्पना को सच कर दिखाया है। आज वर्चुअल रियलिटी और ऑगमेंटेड रियलिटी जैसी तकनीक के जरिये मेटावर्स हकीकत हो चला है। आप इसे ऐसे भी समझ सकते हैं जैसे आप किसी गेम की वर्चुअल दुनिया में हो, लेकिन मेटावर्स  किसी गेम से कहीं ज्यादा है। यह एक तरह का डिजिटल स्पेस है, जहाँ आप अपनी वर्चुअल पहचान बना सकते हैं, काम कर सकते हैं, मिल सकते हैं, शॉपिंग कर सकते हैं, और भी बहुत कुछ कर सकते हैं।
ग्रैंड व्यू रिसर्च के मुताबिक साल 2024 तक वैश्विक मेटावर्स मार्केट करीब 105 अरब डॉलर था वहीं साल 2030 तक यह बाजार 1.1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच सकता है। आज कंपनियाँ गेमिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य, शॉपिंग और मार्केटप्लेस से जु़ड़े मेटवर्स के क्षेत्र में बड़ा निवेश कर रही हैं। फेसबुक जो अब मेटा के नाम से जाना जाता है , ने मेटावर्स में अपनी प्रमुख भूमिका निभाई है। अक्तूबर 2021 में मार्क जकरबर्ग ने मेटावर्स से प्रेरित होकर फेसबुक का नाम मेटा कर दिया। और अपनी मेटावर्स यूनिट में करीब 10 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया। शुरुआत में सेकंड लाइफ जैसे प्लेटफार्मों को मेटावर्स के पहले उदाहरण के रूप में देखा गया, जहां खिलाड़ी एक वर्चुअल पहचान के साथ संवाद कर सकते थे।
रिपोर्ट्स के मुताबिक गेमिंग एप्लिकेशन मेटावर्स बाजार का सबसे बड़ा हिस्सा है। रोब्लोक्स, एपिक गेम जैसी कंपनियों ने इस क्षेत्र में भारी निवेश किया है। हाल में ही लाइफस्टाइल ब्रांड नाइके ने रोब्लोक्स पर नाइकलैंड नाम से एक वर्चुअल स्थान बनाया था  जिसके कुछ ही महीनों में 6 मिलियन से अधिक उपयोगकर्ता हो गए। वहीं डिजिटल शिक्षा के क्षेत्र में भी मेटावर्स को तेजी से अपनाया जा रहा है। साल 2024 में मेटा ने विक्ट्रीएक्सआर के साथ मिलकर यूरोप के विश्वविद्यालयों के डिजिटल ट्विन वर्चुअल कैंपस तैयार किये हैं। डिजिटल ट्विन कैंपस के जरिये छात्र यूनिवर्सिटीज के भौतिक परिसर का आभासी अनुकरण करते हुए रिमोट क्लास ले सकते हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र में भी मेटावर्स की भूमिका बढ़ रही है, कंपनियाँ वीआर तकनीक पर आधारित टेलीहेल्थ सेवाएं दे रही हैं। जहाँ मरीज का वर्चुअल वातावरण में इलाज किया जा रहा है। कई बड़े ब्रांड्स जैसे गुची, वालमार्ट कोका-कोला ने मेटावर्स में वर्चुअल शोरुम बनाए हैं। वालमॉर्ट और जीकिट ग्राहकों को कपड़ों के वर्चुअल ट्रॉयल की सुविधा दे रही हैं। कंसल्टिंग फर्म मैकिन्जी के मुताबिक मेटावर्स आधारित ई-कॉमर्स अवसर साल 2030 तक 2.5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच सकता है। वहीं मेटावर्स पर लोग एनएफटी के जरिये लोग डिजिटल संपत्तियों में भी निवेश कर रहे हैं। उदाहरण के लिए एक्सेंचर ने अपने नए कर्मचारियों की ऑनबोर्डिंग के लिए एक वर्चुअल ऑफिस एनथ फ्लोर बनाया है।
भारत जो डिजिटल क्रांति के दौर से गुजर रहा है, मेटावर्स की इस जादुई दुनिया में तेजी से कदम रख रहा है। संस्था मार्केट रिसर्च फ्यूचर के मुताबिक 2025 में भारत का मेटावर्स बाजार करीब 9 बिलियन डॉलर का है जो 2034 तक बढ़कर 167 बिलियन डॉलर तक पहुँच सकता है। इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी मंत्रालय ने एआई, वीआर तकनीकों के स्टार्टअप संवर्धन के लिए एक्स आर स्टार्टअप प्रोग्राम की शुरुआत की है। जिसमें अमेरिकी कंपनी मेटा भी सहभागिता दे रहा है। इसके साथ ही मंत्रालय ने आईआईटी भुवनेश्वर में वीआई और एआर सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित किया है। जिससे इस क्षेत्र में नवाचार और शोध को गति मिल रही है। हाल ही में टीवी प्रोग्राम शार्क टैंक पर आए एक मेटावर्स स्टार्टअप एप लोका ने भी देश के लोगों में मेटावर्स के प्रति जागरूकता फैलाई है। इसके अलावा मेटावर्स का क्रेज आम लोगों में भी काफी लोकप्रिय हो रहा है। अफैक्स डॉट कॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीते साल युग मेटावर्स नामक एक प्लेटफॉर्म पर एक कपल ने शादी भी की थी, जिसने काफी सुर्खियाँ बटोरी थी। वहीं अगले कुछ सालों में बड़े मंदिरों और ऐतिहासिक जगहों के भी वर्चुअल मेटावर्स बनाने पर काम किया जा रहै है।  वहीं शिक्षा के क्षेत्र में आईआईटी गुवाहाटी द्वारा वीआर प्लेटफॉर्म ज्ञानधारा को केंद्र और राज्य सरकार के सहयोग से पीएम श्री स्कूलों में लागू किया जा रहा है। हालांकि भारत में डिजिटल अवसंरचना और इंटरनेट पहुंच की सीमाएं मेटावर्स के विकास में कुछ रुकावटें पैदा कर रही दरअसल भारत में 60 प्रतिशत से अधिक उपयोगकर्ता शहरी क्षेत्रों से हैं। जबकि ग्रामीण भारत में वीआर, एआर तकनीक और हाई स्पीड इंटरनेट की पहुँच सीमित है। ट्राई ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि ग्रामीण एवं दूरदराज क्षेत्रों में पर्याप्त बैंडविड्थ के बिना मेटावर्स तक पहुँच मुमकिन नहीं होगी। फिलहाल भारत में अधिकांश इंटरनेट कनेक्शन कम गति या उच्च लैटेन्सी वाले हैं, जो रियल टाइम वीआर, एआर अनुभव के लिए पर्याप्त नहीं है। वहीं एआर, वीआर हेडसेट, इमर्सिव डिस्प्ले और अन्य हार्डवेयर काफी महंगे हैं। भारत में अभी मेटावर्स तकनीक अपने शुरुआती दिनों में है।
हालांकि मेटावर्स में डेटा की गोपनीयता और डिजिटल लत जैसे मुद्दे भी उभर रहे हैं। विशेषज्ञों ने मेटावर्स में सुरक्षा, नैतिकता और स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताएं व्यक्त की हैं। हाल ही में ब्रिटेन में एक 16 वर्षीय लड़की के साथ वर्चुअल वातावरण में उत्पीड़न का मामला सामने आया, जिसने मेटावर्स में सुरक्षा और निगरानी के गंभीर सवाल खड़े किए हैं। इसके साथ ही मेटावर्स में लंबे समय तक रहने से डिजिटल एडिक्शन का भी खतरा बढ़ा है। लंबे समय तक वीआर हैडसेट पहने रहने से लोगों को सिम्युलेटर सिकनेस या साइबर सिकनेस भी हो सकती है। यह एक प्रकार का मोशन सिकनेस है जिसमें जिसमें उपयोगकर्ताओं को VR अनुभवों के दौरान चक्कर आना, मतली, सिरदर्द, और थकान जैसी समस्याएँ होती हैं।
मेटावर्स के लिए खरबों डॉलर का निवेश किया जा रहा है, लेकिन यह अभी भी अस्थिर है और इसमें कई जोखिम हैं। कोविड महामारी के समय जब सभी लोग अपने घरों में कैद थे, तब दुनिया की सभी दिग्गज कंपनियाँ मेटावर्स में भारी निवेश को लेकर उत्साहित थीं। लेकिन आंकड़े दर्शाते हैं कि कुछ कंपनियों ने अपने निवेश का अवलोकन करना शुरु कर दिया है। मार्क जकरबर्ग की मेटा की रियलिटी लैब्स ने 2020 से अबतक करीब 60 बिलियन से अधिक का नुकसान उठाया है। 2025 की पहली तिमाही में कंपनी ने करीब 4 बिलियन डॉलर का घाटा दर्ज किया है।  एआई और मशीन लर्निंग, जो पहले से ही मेटावर्स के मुकाबले ज्यादा प्रभावी साबित हो रहे हैं जिसके कारण कंपनियों ने इस मेटावर्स के मुकाबले एआई पर अपना निवेश बढ़ा दिया है। इन तमाम संभावनाओं और चुनौतियों के बावजूद मेटावर्स अभी भी एक उभरती हुई अवधारणा है। भले ही मेटावर्स अपनी शुरुआती चरण में है, पर यह शिक्षा, स्वास्थ्य, वर्कप्लेस और सामाजिक जुड़ाव को पूरी तरह से पुनर्परिभाषित कर सकता है।
अमर उजाला में 06/04/2025 को प्रकाशित 

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