Sunday, October 18, 2020

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की अनदेखी दुनिया :आठवां भाग

अगले दिन सुबह बारिश ले कर आई |जिसने हमारा एलीफेंटा द्वीप का कार्यक्रम चौपट कर दिया |बारिश की वजह से एलीफेंटा द्वीप पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया |
विदा हेवेलॉक
हमें दोपहर बाद नील द्वीप के लिए निकलना था |समय काफी था मैंने आस –पास की जगह चक्कर मारने का निश्चय किया |


हमारे रिसोर्ट के पीछे नारियल के बड़े बाग़ थे और उसके पीछे एक छोटी पहाडी |तरह –तरह के नारियल गिरे हुए थे |छोटे बड़े मोटे पतले कुछ हरे रंग के तो कुछ पीले |मुझे बताया गया कि पीले वाले नारियल ज्यादा मीठे होते हैं |
बीस के नोट पर अंडमान 
यहाँ बांस ,केला और नारियल के पेड़ मुझे बहुतायत में दिखे |वैसे यहाँ सुपाड़ी भी होती है पर उसके पेड़ मैं न पहचान पाया |बाहर बारिश में कई तरह के जीव नालियों में जमीन पर दिखे ,जिनमें मैं स्नेल को पहचानता था |बचपन में हम इनके कवच शंख से खूब खेला करते थे पर उत्तर भारत में मौरंग या तालाब के किनारे मिलने वाले स्नेल से यहाँ पाए जाने वाले स्नेल का आकार बहुत बड़ा था |इसका कारण यहाँ इंसानों की आबादी का कम होना या यह प्रजाति यहीं मिलती इसके बारे में कुछ न पता लगा |
केवड़े का फल 
वैसे भी ज्यादातर लोग यहाँ छुट्टियाँ बिताने आते हैं न कि ज्ञान लेने और देने तो मुझे कोई ख़ास जानकारी आस- पास न मिल पा रही थी |यहाँ के निवासी भी ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे ज्यादातर दसवीं ,बारहवीं पास कर नौकरी करने लग जाते हैं |वैसे एक बात जो बड़ी रोचक है |हमारे बीस के नोट पर जो बीच का खुबसूरत चित्र छपा रहता है वो अंडमान का ही है |कुछ देर ताश खेला गया ,कुछ देर चहलकदमी के बाद अब नील द्वीप जाने का समय हो गया था |दो बजे हमें हेवेलॉक की जेटी पहुँच जाना था |वहां से ग्रीन ओशन का क्रूज हमें नील द्वीप ले जाने वाला था |बारिश रुक –रुक के हो रही थी |हम लोग एक बजे हेवेलॉक की जेटी पहुँच गए |मैंने सोचा एक बार फिर सिक्योरिटी चेक का ताम-झाम होगा पर ऐसा कुछ भी नहीं था  | खुले आसमान के नीचे हम लोग भीग रहे थे |
जीता जागता स्नेल 
जहाज के आने में अभी समय था और जेटी का वह कमरा जो प्रतीक्षा कक्ष था लोगों से भरा हुआ था |हम उस रिम झिम बारिश के बीच खुले समुद्र की तरफ चल पड़े ,जहाँ कई तरह की स्पीड बोट खड़ी हुई थीं जिनमें कुछ लोग यूँ ही पसरे थे |शायद बारिश के कारण धंधा मंदा था |हमने एक नारियल पानी पीया और प्रकृति की खूबसूरती का आनंद उठाने लगे | तभी ग्रीन ओशन के दुकाननुमा कार्यालय का शटर खुला और हमें बताया गया ग्रीन ओशन आ गया है लेकिन जहाज में चढ़ने से पहले उस कार्यालय में जाकर हमें अपने टिकट पर चेक इन का ठप्पा लगवाना था |वहां लोगों की भीड़ पहले ही इकट्ठा हो चुकी थी पर इस काम में ज्यादा समय नहीं लगा |अब भीगते भागते हम ग्रीन ओशन में घुसने के लिए तैयार थे पर जिस तरह की हडबडाहट ग्रीन ओशन के क्रू मेंबर दिखा रहे थे इसका कारण मुझे समझ न आ रहा था क्योंकि क्रूज के चलने का आधिकारिक समय अभी हुआ नहीं था |
नील की जेटी
ग्रीन ओशन ,मैक्क्रुज के मुकाबले कम विलासिता वाला क्रूज था |बारिश में लोगों के चढ़ने के कारण अंदर एक अजीब सी गंध थी जैसे कहीं मछली मरी हुई हो |हमारे जहाँ बैठने की व्यवस्था थी उस जगह की सारी फर्श गीली हो चुकी थी |अभी हम लोग बैठ कर व्यवस्थित भी नहीं हुए थे कि ग्रीन ओशन चल पड़ा,जबकि अभी उसका चलने का आधिकारिक समय नहीं हुआ था |शायद इसी कारण जहाज के क्रू मेंबर जल्दीबाजी दिखा रहे थे वैसे भी क्रूज में चलने के लिए आपको पहले से आरक्षण करवाना पड़ता है |अगर सारे लोग आ गए हों तो वह चल पड़ा हो |यही सब सोचते हम खिड़की से नील द्वीप को खोजने लग गए क्योंकि हमारे साथ –साथ एक विशाल थल आकृति भी चल रही थी |धीरे –धीरे वो भी  पीछे छूट गयी |अब हमारे सामने सिर्फ विशाल शांत समुद्र था | 
कुछ लिखना जरुरी है क्या ?
हेवेलॉक से नील तक की समुद्री दूरी एक घंटे में तय की जानी थी |जल्दी ही नील का किनारा दिखने लगा | जनश्रुतियों के अनुसार नील द्वीप का नाम भगवान राम के योद्धा नील के नाम पर पड़ा | जिन्होंने रामेश्वरम से श्रीलंका तक पुल बनाने में भगवान राम की मदद की थी |लेकिन इतिहास बताता है कि अंडमान निकोबार में बाहरी लोग तो अंग्रेजों के आने के बाद बसे और जो आदिवासी हैं वो हिन्दू धर्म नहीं मानते तो ये जनश्रुति कैसे बनीं कहना मुश्किल है |
नील की जेटी भी हेवेलॉक जैसी थी ,भीड़ सिर्फ जेटी पर ही थी |शहर एकदम खाली ,भीड़ थी पानी से भीगे पेड़ों की |चारों तरफ पेड़ –पौधों से भरे खेत पर ये पेड़ इतने सघन थे कि सडक से खेतों में झांकना मुश्किल था  |बीच में एक छोटी सी सड़क जिसमें एक वक्त में एक ही गाडी आ या जा सकती थी |हमारा ड्राइवर रॉकी नाम का एक जवान लड़का था |मैंने पूछा क्रिश्चियन हो उसने कहा हाँ |
नील का नेचुरल ब्रिज 
नील में  क्रिश्चियनों के चार परिवार रहते हैं |बाकी सारी आबादी हिन्दुओं की है जबकि पोर्ट ब्लेयर में मुसलमानों की भी ठीक –ठाक आबादी है |जेटी से उतरते ही हमें नेचुरल ब्रिज देखने जाना था |जो जेटी से करीब पांच किलोमीटर दूर था | नेचुरल ब्रिज हालांकि एक भौगौलिक आकृति है पर पर्यटकों को बेवक़ूफ़ बनाने के लिए इसके साथ भी एक कथा जोड़ दी गयी है कि यह एक पुल है |जिसे किसने बनाया किसी को पता नहीं ,पहले तो गाईड ले लेने की मनुहार जो काफी सभी तरीके से की गयी |मैंने भी सभी तरीके से मना कर दिया ,फिर हिन्दुस्तानी जुगाड़ लगाया |हम एक ऐसे दल के पीछे हो लिए जिसने गाईड कर रखा था |मैं यह जानना चाहता था कि ये लोग क्या नया अनूठा बताते हैं |कुछ सीढियां ऊपर चढ़ने के बाद नीचे उतरने के बाद हम समुद्र के सामने थे |
नील कुछ ऐसा दिखा मुझे अपने क्रूज से 
एक ऐसा किनारा जहाँ बहुत से नुकीले पत्थर थे |सामने मैन्ग्रोव के जंगल और हमारे पीछे केवड़े के बड़े –बड़े पेड़ जिसमें ,खरबूजे जैसे पीले फल लगे हुए थे | गाईड लोगों को बता रहा था कि ये फल पहले आदिवासियों का भोजन था |वो आदिवासी अब कहाँ गए ये बताने वाला कोई नहीं था |वैसे भी अंडमान और निकोबार के आदिवासी भारत के सबसे खूंखार आदिवासी माने जाते हैं |बहुत सारे नुकीले पत्थरों  और चट्टानों को पार करने के बाद हम एक ऐसी आकृति के सामने थे |जो एक चट्टान थी और समुद्र के पानी से कटने के बाद एक छेदनुमा आकृति बना रही थी |इसी के किनारे बैठकर मैंने सूर्यास्त का आनंद लिया |
पीले नारियल 
जैसे –जिसे सूरज डूब रहा था मैं सोच रहा था एक दिन हमको भी इस दुनिया से चले जाना है चुपचाप |मैं आज जहाँ बैठा हूँ कल कोई बैठा था और कल कोई आकर बैठेगा |दुनिया में एक चीज सत्य है और वह है परिवर्तन |मेरे अगल –बगल लोगों का झुण्ड जिन्दगी का लुत्फ़ उठाने में मशगूल था |एक जोड़ा जिसकी नई –नई शादी हुई थी |हाउ लवली हाउ क्यूट जैसे शब्दों से संवादों का आदान –प्रदान कर रहे थे |एक ऐसा भी परिवार था जो अपनी दिव्यांग बच्ची को नेचुरल ब्रिज  दिखाने लाये थे जो पैर से ठीक से नहीं चल पा रही थी |एक वृद्ध जोड़ा शायद जिन्दगी की शाम में जिन्दगी को जीने निकल पड़ा था |मैं जिन्दगी के इस सर्कस को जोकर की तरह आँखें फाड़े देख रहा था |शाम घिर रही थी |आस -पास के जंगल पंछियों की चहचाहट से गूंज उठे |अब हमें भी वापस अपने रिजोर्ट लौटना था |
जारी ...................................

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की अनदेखी दुनिया :नवां भाग

लक्ष्मणपुर के सामने हमारा रिजोर्ट
नील द्वीप में जिस रिजोर्ट में हमारे रुकने की व्यवस्था थी उसके ठीक सामने लक्ष्मनपुर बीच था | रिजोर्ट में सामान पटकते सभी द्वीप की ओर लपके ,आसमान में काले बादल छा चुके थे और हवा ठंडी हो रही थी |ऐसा लग रहा था बड़े जोर की बारिश होगी पर मौसम बहुत देर तक ऐसा ही रहा |मेरी हमेशा से आदत रही है जो सब करें वो न करो तो मैं थोड़ी देर रिजोर्ट के कमरे में अकेले पड़ा रहा |धीरे –धीरे शाम घिर आई और जब बीच एकदम खाली हो गया मैंने बीच का एक चक्कर लगाने का निर्णय किया |चूँकि आसमान में बादल छाये हुए थे इसलिए अँधेरा जल्दी हो गया था |बीच पर पत्थर ज्यादा थे इसलिए वहां नहाया तो बिलकुल नहीं जा सकता था |समुद्र में पैर  जरुर  भिगोये जा सकते थे |बीच एकदम सुनसान पड़ा था |उसके किनारे तरह –तरह के खोमचे जरुर लगे थे पर वहां एक भी आदमी न दिखा |शायद बारिश के डर से सब अपनी दुकान जल्दी बढ़ा गये थे |वहां सिर्फ पन्नियों में ढंकी आकृतियाँ ही दिख रही थीं पर उन खोमचों में क्या बेचा जाता था |यह बता पाना मुश्किल था |मैं समुद्र के किनारे की नरम बालू में धीरे –धीरे बढ़ता जा रहा था |
लक्ष्मणपुर बीच और भीगा -भीगा मौसम 
कुछ आगे जाने पर एक दो आकृतियाँ मुझे समुद्र के किनारें दिखीं पर उनकी ओर मैंने ध्यान न देकर समुद्र में किनारे –किनारे चलने का निश्चय किया |मुझे लगा कोई आवाज दे रहा था पीछे मुड़कर देखता हूँ तो पुलिस की वर्दी में एक महिला और पुरुष खड़े थे जो मुझे अपने पास बुला रहे थे |अँधेरा होने के कारण उनका चेहरा साफ़ नहीं दिख रहा था लेकिन मैं समझ चुका था कि वे मुझे समुद्र से दूर रखना चाह रहे थे |मैं थोड़ी देर में उनके पास था |परिचय हाल चाल के बाद मैंने पुलिस वर्दी में खड़े पुरुष से पूछा कि आप कहाँ से  हैं तो उसने बताया वह आजमगढ़ का रहने वाला है और लम्बे समय से यहाँ अंडमान में तैनात हैं |उनकी पढ़ाई लिखाई काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हुई थी |वो तो मुलुक के निकल आये फिर तो न जाने किन –किन मुद्दों पर हमने बातें की |ये बात तब तक चलीं जब तक इतना गहरा अँधेरा न छा गया कि हम एक दूसरे को भी देख न पा रहे थे |हमारी बात चीत में एक दुकान वाला भी शामिल हो गया |अंडमान मने अपराध न के बराबर था |उत्तर प्रदेश का मूल निवासी होने के बावजूद वो पुलिस इन्स्पेक्टर रिटायर होने के बाद वहां नहीं लौटने वाले थे |क्यों ? वहां कोई कानून नहीं है |
भीगता समुद्र 
उनकी बेटी बैंगलोर में पढ़ रही थी ,जब घर की याद आती है तो साल में एक बार चक्कर लग जाता है बस उनके हिस्से का उत्तर प्रदेश इतना ही बचा है उनके व्यक्तित्व में |बच्चे गाँव नहीं जाते उनकी तबियत खराब हो जाती है |नील द्वीप के जनसँख्या अब ढाई लाख है पर उस दुकानदार ने बताया कि ये बहुत ज्यादा है |पहले तो लोग दिखते ही नहीं थे |अब रात पूरी तरह से हो चुकी थी |उन पुलिस वाले साहब ने हमसे कहा आप समुद्र के किनारे –किनारे न जाकर रोड से रिजोर्ट जाइए |हमने उनकी बात मान ली वे तो अपनी बाईक पर उस  महिला कांस्टेबल के साथ  बैठकर फटाक से वहां से निकल गए लेकिन हमें पैदल जाना था |ऊँचे –ऊँचे पेड़ों के बीच हम उस रोड पर बढ़ चले जो हमारे रिजोर्ट तक जाती थी |वे ऊँचे पेड़ अब काले और  डरावने लग रहे थे |
रह –रह के बिजली चमक रही थी |
ऐसे ही भीगते मौसम में गेस्ट अपीरियेंस देता यह नाचीज 
कोई स्ट्रीट लाईट नहीं हम अंदाजे से बढे चले जा रहे थे पर रास्ता ख़त्म होने का नाम ही ले रहा था |अब मुझे इस बात का डर था कि कहीं भटक तो नहीं गए हैं क्योंकि समुद्र के रास्ते से हमें इतनी देर नहीं लगी थी |मैं इस बात से निश्चिन्त था कि यहाँ हमारे साथ कोई अपराध नहीं होगा पर रास्ता अगर भटक गए तो क्या होगा क्योंकि सड़क के दोनों और दूर –दूर तक कोई आबादी नहीं दिख रही थी |कुछ देर बाद हमें बिजली की रौशनी दिखी और जान में जान आई |उस रौशनी का पीछा करते हुए हम आगे बढ़ते रहे जो संयोग से हमारे रिजोर्ट की ही थी |हमारे रिजोर्ट पहुँचते ही बड़े जोर की बारिश शुरू हो गयी |अब हम निश्चिन्त थे क्योंकि हम अपने रिजोर्ट बगैर भीगे पहुँच चुके थे |रात लगातार बारिश होती रही और हमारे सामने का समुद्र गरजता रहा |सुबह आँख खुलते हमारा स्वागत बारिश ने किया |इस बात की पूरी संभावना थी कि आज का हमारा लक्ष्मणपुर बीच देखने का कार्यक्रम गड़बड़ा न जाए |हमारे रिजोर्ट के सामने भरतपुर बीच था |नाश्ते के बाद हमारे पास बारिश के रुकने का इन्तजा💕र करने के अलावा कोई चारा नहीं था |उस वक्त जब कि पूरा उत्तर भारत गर्म थपेड़ों से जूझ रहा था |



हम भारत के अंतिम कोने पर स्थित अंडमान में मानसून का स्वागत कर रहे थे |हालांकि इस स्वागत में मजबूरी नुमा खीज भी शामिल थी क्योंकि ये बारिश हमारे कार्यक्रम में बाधा डाल रही थी |थोड़ी देर इधर उधर घूमने के बाद मैंने समुद्र के किनारे जाकर बैठने का निश्चय किया |
वो कॉटेज जहाँ से ख्याल जन्म ले रहे थे 
उस भीगे दिन जब आसमान में बादल छाए थे मैं समुद्र के किनारे एक झोपडी नुमा कॉटेज में बैठकर समुद्र को भीगते देख रहा था |लहरें किनारे की जमीन को चूम कर वापस लौट जा रही थीं |जहाँ से वो आईं थीं |लौटना तो हम सबको है उस अनन्त दुनिया में जहाँ से कोई नहीं लौटता फिर हम कहाँ भागे जा रहे हैं |ऐसे न जाने कितने ख्याल दिमाग में आ जा रहे थे |कभी –कभी कोई जहाज दूर समुद्र में अपनी मंजिल की ओर बढ़ता दिख जाता था |कभी कैमरा निकाल कर कुछ तस्वीरें खींच लेता कभी आस –पास की हरियाली में थोडा भीगकर वापस अपनी जगह लौट आता |आस पास न जाने कितने छोटे बड़े घोंघे उठाता थोड़ी देर उनकी हरकतों को देखता और फिर उनको उनकी जगह छोड़ देता |दिन के करीब साढ़े बारह बारिश बंद हो गयी थी पर अब समय का टोंटा था |ढाई बजे मैक्क्रुज वापस हमें पोर्ट ब्लेयर ले जाने वाला था और अभी लक्ष्मणपुर बीच भी जाना था |भागते दौड़ते लक्ष्मणपुर बीच पहुंचे जो सौभाग्य से नील की जेटी से लगा हुआ था और हम यहाँ से मैक्क्रुज को आते हुए देख सकते थे | लक्ष्मणपुर बीच अंडमान के अन्य द्वीपों की तरह साफ़ सुथरा और भीड़ भाड़ रहित था |यहाँ खूब सारे वाटर स्पोर्ट्स की सुविधा थी पर उस भीगे  दिन बारिश के कारण सभी स्पोर्ट्स बंद थे और हमारा जेट स्की चलाने का सपना ,सपना ही रह गया |
भरतपुर बीच 
समुद्र में अभी पैर भिगोये ही थे कि पता पड़ा | मैक्क्रुज आ चुका है अब जेटी की तरफ भागना था |गिरते पड़ते हम जेटी की तरफ पहुंचे और मैक्क्रुज में अपनी सीट पर धंस गए |नील द्वीप को विदा करने का समय आ चुका था |

समय से पहले मैक्क्रुज चल पड़ा |क्रू के सदस्यों ने हमें बताया मौसम खराब होने के कारण अगले तीन दिन कोई शिप पोर्ट ब्लेयर नहीं जाएगा | मैक्क्रुज सिर्फ हम जैसे पर्यटकों को निकालने ही आया था |इस सूचना  का अभी शुक्र मना भी नहीं पाए थे कि एक नया अहसास हमें डराने के लिए तैयार था |अभी तक की मेरी समुद्री यात्राओं  में एक बार जहाज के अन्दर बैठने के बाद थोड़े बहुत हिचकोले के बाद वो शान्ति से चलता था पर इस बार ऐसा नहीं होने वाला था |जहाज जैसे गहरे समुद्र में पहुंचा हमें लगा किसी ऊंट की सवारी कर रहे थे |पूरे जहाज में चीखने चिल्लाने की आवाजें आने लगीं |
भरतपुर बीच  जहाँ  नांव इन्तजार करती हैं 
जहाज कभी ऊपर जाता कभी नीचे | क्रू के सदस्य सब यात्रियों के पास मुस्तैद खड़े हो गए |हालांकि जहाज का माहौल ऐसा था कि वे भी सीधे नहीं खड़े हो पा रहे थे |उन्होंने बताया यह सामान्य घटना है |आप सभी सुरक्षित हैं |आज “रफ सी” है मौसम खराब है |आप सभी धैर्य बनाये रखें |ऐसे माहौल में चारों तरफ से या तो लोगों के चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं या उल्टियाँ करने की |हमने धैर्य बनाये रखा क्योंकि जो होना है सो होना है का दर्शन शायद  ऐसे ही वक्त के लिए दिया गया था |पर मैं कल्पना कर रहा था कि अगर जहाज डूब गया तो बस ये सोच कर सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास से शब्द उधार लूँ तो “मेरे तिरपन काँप गए” |थोड़ी देर के बाद इन हिचकोलों की आवृत्ति कम और कम होती गयी |पोर्ट ब्लेयर पहुँचते –पहुँचते ज्यादातर पर्यटक निढाल हो चुके थे पर मैं ठीक ठाक था और अगले दिन जारवा जनजाति को देखने उनकी दुनिया में जाने के बारे में सोच रहा था |

जारी ...............................................


अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की अनदेखी दुनिया :सातवाँ भाग

स्कूबा डाइविंग की तैयारी 
दो चार बार की कोशिश के बाद मुझे लगा शायद मैं स्कूबा डाइविंग का लुत्फ़ उठा ही नहीं पाऊंगा |मेरे इंस्ट्रक्टर ने पता नहीं क्या सोच कर मुझे समुद्र के एक ऐसे किनारे ले गया |जहाँ कोई नहीं था एक बार फिर मुझे हौसला दिया और कहा आप कर सकते हैं फिर उसने मुझे समुद्र पर सर ऊपर रख कर लेटने को कहा ,चूँकि मैं स्कूबा सूट पहने हुए था,इसलिए मुझे कोई समस्या नहीं हुई फिर वो मुझसे इधर उधर की बात करते हुए मुझे आगे बढ़ाने लगा |मुझे लगा हम छिछले समुद्र में ही पर वो मुझसे बात करते करते कबका गहरे समुद्र में ले जा चुका था |उसने मुझसे बताये बगैर कहा एक बार फिर से कोशिश करेंगे और धीरे –धीरे मैं समुद्र की गहराई में उतर चला |मैं बार –बार अपने आप से कह रहा था |पैनिक नहीं करना है और मुंह से सांस लेनी है |धीरे –धीरे मुझे सब ठीक लगने लगा |जब उनका आधिकारिक कैमरा पर्सन समुद्र की उस गहराई में मेरी फोटो खींचने आया तो मैंने खूब पोज दिए |मैं प्रकृति की विशालता से परिचित हो रहा था |तरह –तरह की मछलियाँ ,कोरल और न जाने क्या –क्या |मैं तो विस्मय से बस सब देखे जा रहा था |वो बार बार इशारे से पूछता सब ठीक और मैं कहता सब ठीक |करीब बीस मिनट के बाद मुंह से सांस लेने के कारण मेरा गला सूख चुका था और लग रहा था जैसे खूब सारा नमक किसी ने भर दिया हो |अब मेरे लिए वहां रहना मुश्किल हो रहा था |मैंने इशारा किया ऊपर चलो |उसने भरसक कोशिश की कि मैं अपनी समस्या पर काबू पाऊं |मैं जान चुका था अब अगर रुके तो काण्ड हो जाएगा |पांच मिनट के बाद हम सतह के ऊपर आ गए |मैंने चारो ओर नजर घुमाई सिर्फ पानी और दूर कोई द्वीप दिख रहा था |

मैंने कहा अरे इतनी दूर निकल आये अब वापस कैसे जायेंगे |मेरे इंस्ट्रक्टर ने कहा आप चिंता न करें आते वक्त जैसे आये थे वैसे लेट जाएँ अपना सर पानी के ऊपर रखें |
खूबसूरत राधानगर बीच 
हम आराम से वापस लौट जायेंगे |मुंह पर धूप बहुत तेज लग रही थी इसलिए अपने सर पर मुझे अपने हाथों की ओट लेनी पड़ी|अब हम वापस लौट रहे थे समुद्र में लेटने का यह बड़ा विचित्र अनुभव था |मुझे बड़े प्यार से घसीटा जा रहा था |समय काटने के लिए मैंने उनसे बात करनी शुरू कर दी |स्कूबा डाइविंग जाते वक्त एक हिदायत जरुर दी जाती है |पानी के अंदर किसी भी चीज को छूना नहीं है |सच बताऊँ इतनी सुन्दर –सुन्दर मछलियाँ जब मेरे  अगल –बगल से गुजर रही थीं तो उन्हें छूने का बहुत मन कर रहा था लेकिन मुझे ध्यान आया हम उनके घर में चले आयें और उनकी अनुमति के बगैर कुछ भी छूना ठीक न होगा |मैंने अपने इंस्ट्रक्टर से पूछा कि पर्यटक तो तरह –तरह के आते होंगे |कुछ लोग इस हिदायत को न मानते होंगे उनके साथ क्या होता है ?

उन्होंने बताया वहां तो उन्हें इशारे से ऐसा न करने के लिए मना किया जाता है लेकिन बाहर निकल कर उन्हें कस के डांट लगाईं जाती है |वैसे ऐसे लोग बहुत ही कम होते हैं |बातें करते -करते हम उस जगह पहुँच चुके थे जहाँ से हमने इस रोमांचक अभियान की शुरुआत की थी |सिलेंडर उतारे गए ,फिन निकाले गए और हम लोग अपनी वैन में बैठकर वापस आये जहाँ एक बार फिर से डिटौल के पानी में खुद भी नहाये और उस ड्रेस को भी धोकर टांग दिया |अपने कपडे पहनकर हमने उस खुबसूरत जगह से विदा ली |
अंखियों के झरोखे से राधानगर बीच 

इस क्रिया कलाप में दोपहर हो चुकी थी लेकिन अभी समुद्र से मन नहीं भरा था अब हम चल पड़े |दुनिया के सबसे खूबसूरत बीच में से एक राधा नगर बीच देखने |दिन के दो बजे  हम राधा नगर बीच के किनारे खड़े थे |समुद्र में घुसने  से पहले मैंने बीच का एक चक्कर लगाया |बीच के किनारे पर्याप्त हरियाली थी पर मैन्ग्रोव के पेड़  यहाँ नहीं थे |मैन्ग्रोव के पेड़ समुद्र और धरती के बीच में उगते हैं |ये ज्यादा ऊँचे नहीं होते पर समुद्र के किनारे एक तरह की प्राकृतिक बाड़ बना देते हैं इसलिए ऐसी जगहों पर नहाया नहीं जा सकता पर यहाँ कुछ ऐसा नहीं था |जहाँ लोगों का हुजूम था मैंने उससे करीब एक किलोमीटर दूर का चक्कर लगाया न कोई शोर न कोई भीड़ और खूब  सारे पेड़|वापस आकर समुद्र में घुस गए |लहरे बहुत तेज थीं |लाईफ गार्ड लोगों को सीटियाँ बजा –बजा कर जरा सा भी आगे जाने पर चेतावानी  देने लगते थे |इस मायने में यहाँ खतरा तो था ही क्योंकि कब लौटती लहरें आपको बहा ले जाएँ इसका अंदाजा किसी को नहीं रहता |मैंने दो घंटे जल क्रीडा का आनंद लिया |चूँकि उस दिन की भाग दौड़ में मुझे खाने का मौका न मिल पाया था इसलिए मैंने बीच के कारेब लगी बाजार में नारियल पानी पीने का निश्चय किया इसका दो कारण था |यहाँ तरह –तरह के नारियल मौजूद थे |मैं हमेशा मलाई वाला नारियल लेता पहले उसके पानी से प्यास बुझाता फिर उसकी मलाई मतलब नारियल की गीली गरी को खा कर भूख मिटा लेता |

वहीं एक महिला फ्रूट सलाद इस दावे के साथ बेच रही थी कि ये एकदम ऑर्गेनिक हैं और अंडमान में उगाये गए हैं |मैंने उससे कुछ अंडमानी केले लिए जो आकार में हमारे केलो के मुकाबले आधे थे और उनके ऊपर कोई काली धारियां नहीं थी और वे गाढे पीले रंग के थे |
स्कूबा डाइविंग ड्रेस 
उस केले के स्वाद वाकई अलग था |मैंने उनसे पूछा कि आप कहाँ की हैं ?वैसे भी अंडमान में कोई भी आपको ऐसा नहीं मिलेगा जिसकी पिछली चार पुश्तें वहीं की हों तो अंडमान में मैं वार्तालाप शुरू करने से पहले पूछ लेता था कि आपके पिता जी कहाँ के हैं ?यहाँ मुझे बहुत से ऐसे लोग मिले जिन्होंने बड़े गर्व से बताया कि वे बांग्लादेशी हैं |असल में साठ के दशक में बहुत से बंगलादेशी शरणार्थियों को यहाँ बसाया गया था और उन्हें सरकार ने पन्द्रह बीघा जमीन भी दी गयी थी |जिसकी कीमत में करोड़ों में है वे यहाँ इनपर खेती करते हैं |बहुत से लोगों ने अपनी जमीने बेच भी दीं हैं जिन पर लोग  रिसॉर्ट बना रहे हैं |वो महिला झारखंड से थीं मतलब उनके पिता जी झारखंड से एक मजदूर के रूप में लाये गए थे फिर वे यहाँ से जा न पाए |उनके पति बीमार रहते थे और घर का खर्च चलाने के लिए उन्हें यह व्यवसाय करना पड़ा |हालांकि अंडमान और निकोबार शायद देश एकमात्र ऐसा इलाका होगा जहाँ स्वास्थ्य और शिक्षा पूरी तरह मुफ्त है इसलिए लोगों का जीवन कम आय में भी अच्छे तरीके से हो जाता है | उनके बारे में सोचता हुआ बीच पर वापस आया |शाम ढलने को थी सूरज धीरे –धीरे डूब रहा था और वो जगह जो थोड़ी देर पहले लोगों से गुलज़ार थी |धीरे –धीरे खाली हो रही थी | हेवेलॉक में हमारी दूसरी शाम धीरे –धीरे रात हो रही थी |
जारी ............................

Saturday, October 10, 2020

पॉडकास्ट का बढ़ता दायरा

 

कोरोना काल बहुत से बदलाव का वाहक बना |ऐसे वक्त में जब कुछ समय के लिए देश लगभग रुक सा गया था तब लोगों ने समय बिताने के लिए इंटरनेट पर नए नए तरीके ढूंढेज्यादातर तस्वीरों और वीडियो से भरा रहने वाली सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर इन दिनों आवाज यानि साउंड का भी जोर बढ़ा और स्ट्रीमिंग में भी एक विकल्प के तौर पर आवाज के जादू से भी लोग परिचित हुए ||देश में  लोगों ने संगीत सुनने के लिए रेडियो और टेलीविजन पर परंपरागत रूप से भरोसा किया हैअब समय बदल रहा हैलोग संगीत स्ट्रीमिंग सेवाओं का उपयोग करने लगे है | 

आज के समय में इनकी श्रोता संख्या 200 मिलियन से अधिक हैं | इंटरनेट पर ऑडियो फाइल को साझा  करना पॉडकास्ट के नाम से जानाजाता है। पॉडकास्ट दो शब्दों के मिलन  से  बना हैजिसमें पहला हैं प्लेयेबल ऑन डिमांड (पॉड) और दूसरा ब्रॉडकास्ट । नीमन लैब के एक शोध  के अनुसारवर्ष 2016 में अमेरिका में पॉडकास्ट (इंटरनेट पर ध्वनि के माध्यम से विचार या सूचना देना) के प्रयोगकर्ताओं की संख्या में काफी  तेजी से वृद्धि हुई  है। जिसके  वर्ष 2020 तक लगातार पच्चीस  प्रतिशत की दर से वृद्धि करने की उम्मीद है। इस वृद्धि दर से वर्ष 2020 तक पॉडकास्टिंग से होने वाली आमदनी पांच सौ मिलियन डॉलर के करीब पहुंच जाएगी। पॉडकास्टिंग की शुरुआत हालांकि एक छोटे माध्यम के रूप में हुई थीपर अब यह एक संपूर्ण डिजिटल उद्योग का रूप धारण करता जा रहा है।भारत में पॉडकास्टिंग के जड़ें न जमा पाने के कारण हैं ध्वनि के रूप में सिर्फ फिल्मी गाने सुनने की परंपरा  और श्रव्य की अन्य विधाओं से परिचित ही नहीं हो पाना रहा है ।देश में आवाज के माध्यम के रूप में रेडियो ने टीवी के आगमन से पहले अपनी जड़ें जमा ली थीं पर भारत में रेडियो सिर्फ संगीत  रेडियो का पर्याय बनकर रह गया और टाक रेडियो में बदल नहीं पाया है तथ्य यह भी है कि सांस्कृतिक रूप से एक आम भारतीय का सामाजीकरण  सिर्फ फ़िल्मी गाने और क्रिकेट कमेंट्री सुनते हुए होता है जिसकी परम्परा पारंपरिक रेडियो से शुरू होकर निजी ऍफ़ एम् स्टेशन होते हुए इंटरनेट की दुनिया तक पहुँची है |अब यह परिद्रश्य तेजी से बदल रहा है |

वर्तमान मेंभारत के लगभग 500 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में से केवल 40 मिलियन ही पॉडकास्ट सुनते हैं | हालांकिसंख्या तेजी से बढ़ रही है | 2018 मेंभारत में पॉडकास्ट के श्रोताओं में लगभग 60% वृद्धि हुई थी | जिस कारण मुक़ाबलेबाज़ी बड़ रही है | ऑनलाइन मंचों पर पहले से ही 98% ऐप स्क्रीन टाइम के लिए लड़ रहे हैं | और कुछ सब से बेहतर देखाने की होड़ लगी है | ऑनलाइन म्यूजिक और पॉडकास्ट स्ट्रीमिंग बाज़ार काफी तेजी से बढ़ रहा है | मूल रूप से लक्षित मेट्रो शहरों के बाद अब देश में OTT म्यूजिक स्ट्रीमिंग ऐप अब टियर 2 और 3 शहरों में भी अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है | दरसल आँकड़े भी इस तथ्य को पूरा समर्थन देते हैंजैसा कि Spotify द्वारा पिछली दीपवाली पर जारी रिपोर्टों में बताया गया कि बिहार में सबसे ज्यादा त्यौहार आधारित म्यूजिक स्ट्रीमिंग का चलन नज़र आया | और अब ऑडियो और म्यूजिक स्ट्रीमिंग की इस बढ़ते बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी को भी जगह दिलाने के मकसद से मुंबई स्थित पॉडकास्ट स्टार्टअप कुकू ऍफ़ एम्  ने भी क्षेत्रीय भाषाओँ में पॉडकास्ट और लंबे समय के ऑडियो कंटेंट के साथ कदम रखा है |

 आईआईटी के पूर्व छात्र लाल चंद बिसुविनोद मीणा और विकास गोयल द्वारा 2018 में स्थापित कुकू ऍफ़ एम्   एक पॉडकास्ट मंच है जो श्रोताओं को नएउभरते और विविध ऑडियो कंटेंट की खोज करने और रचनाकारों के साथ जुड़ने की अनुमति देकर पारंपरिक रेडियो को फिर से स्थापित करने की कोशिश कर रहा है | आज यह कहना ग़लत नहीं हो गया कि ऑडियो स्ट्रीमिंग भारत में पहले की तरह बढ़ रही है | वास्तव मेंभारतीय ऑडियो सामग्री के लिए इतने भूखे हैं कि वे संगीत सुनने के लिए दुनिया की सबसे बड़ी वीडियो-स्ट्रीमिंग साइटयू ट्यूब  का उपयोग कर रहे हैं | जैसे-जैसे इंटरनेट और स्मार्टफोन की पैठ बढ़ती हैविशेषज्ञों का मानना है कि अधिक ऑडियो सामग्री लेने वाले मिल जाएंगे | 2019 मेंभारत के संगीत स्ट्रीमिंग सेगमेंट में स्टॉकहोम-आधारित संगीत स्ट्रीमिंग ऐप स्पोटी फाई  को फरवरी में लॉन्च किया गया जिससे प्रतिस्पर्धा में तेज आ गई और तीन सप्ताह से भी कम समय के बादगूगल  के स्वामित्व वाला यू टयूब  भी जंग में कूद पड़ा | अब विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में ऑडियो स्ट्रीमिंग सेगमेंट के विस्तार के साथ-साथ पॉडकास्ट एक महत्वपूर्ण गेम चेनजर साबित हो सकता है |

हालांकि पॉडकास्ट शब्द भारत के लिए नया हैलेकिन देश पॉडकास्टिंग की अवधारणा से काफी परिचित है | रेडियो और समाचार प्रकाशकों जैसे पारंपरिक चैनलों ने भारत में पॉडकास्ट को सबसे पहले प्रोत्साहित किया | और अब असंख्य कंपनियां और व्यक्ति भारतीय संगीत पर मंडरा रहे हैं | टाइम्स इंटरनेट के स्वामित्व वाली भारत की एक दशक पुरानी संगीत स्ट्रीमिंग सेवागाना  हाल ही में देश में 150 मिलियन से अधिक मासिक सक्रिय उपयोगकर्ताओं की पहचान करने वाली पहली संगीत सेवा बन गई। गाना  के निकटतम प्रतिद्वंद्वीजीयो सावन के भारत में सौ  मिलियन से अधिक सक्रिय उपयोगकर्ता हैं | 2016 में रिलायंस के Jio सिम की शुरुआत के बादजिसके कारण मोबाइल डेटा की कीमतों में भारी गिरावट आईजिससे ये ऐप तेजी से उपयोगकर्ताओं को प्राप्त करना शुरू कर दिया | उस विकास ने पिछले कुछ वर्षों में यू टयूब म्यूजिक ,अमेजन प्राईम और स्पोटीफाई  जैसे वैश्विक खिलाड़ियों को आकर्षित किया है | अब कुछ एक सालों से हालत  यह है कि भारत मेंऑडीयो बूम में हर महीने  3.5 मिलियन की रफ़्तार से बढ़ रहा है | भारत में इसके तीन-चौथाई श्रोता 18-34 वर्ष आयु वर्ग में आते हैं | जहां तक भारत का सवाल है यहाँ  हर दर्शक वर्ग का ख्याल यह ऑडीयो बूम रख रहा है | व्यवसायहॉररऔर बच्चों के पॉडकास्ट भी अच्छा कंटेंट  पेश कर रहे हैंअगर आप धार्मिक मानसिकता के है तो भक्ति श्रेणीजिसमें हिंदू धार्मिक पाठ भगवद गीता और रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्य भी शामिल हैं इस लिस्ट में | भारत जैसे देश में ध्वनि  व्यवसाय के लिए संभावनाएं कितनी हैंइसका अंदाजा इस बात से लग सकता है कि देश में भले ध्वनि समाचारों के लिए आकाशवाणी का एकाधिकार है |सरकार इस एकाधिकार को निकट भविष्य में प्राइवेट रेडियो ऍफ़ एम् के साथ साझा करने के मूड में नहीं दिखती ऐसे में रेडियो का विचार और मानवीय अभिरुची विषयक कंटेंट का क्षेत्र व्यवसाय के रूप में एकदमखाली पड़ा है |पॉडकास्ट उस खालीपन को भरकर देश के ध्वनि उद्योग में क्रांति कर सकता है और रेडियो संचारकों को अपनी बात नए तरीके से कहने का विकल्प दे सकती है |

 दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में 10/10/2020 को प्रकाशित 

Tuesday, October 6, 2020

 

जिन्दगी का सफर है ये कैसा सफर कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं .ऐसी ही है जिन्दगी इसको समझने की कोशिश तो बहुत से दार्शनिकों , चिंतकों ने की लेकिन जीवन चलने का नाम चलते रहो सुबह शाम , वास्तव में जिन्दगी तो चलने का ही नाम है और ये बात कितनी आसानी से एक फिल्मी गाने ने हमें समझा दी.हिन्दी फिल्मों के गाने यूँ तो पुरे देश में सुने और सराहे जाते हैं लेकिन ज्यादातर लोग इन गानों को गंभीरता से नहीं लेते .हिन्दी फिल्मों के गानों की एक अलग दुनिया है. और इस रंग बिरंगी दुनिया में जिन्दगी के लाखों रंग हैं. अगर प्रश्न जिन्दगी को समझने का हो तो काम और भी मुश्किल हो जाता है लेकिन गाने कितनी आसानी से जिन्दगी की दुश्वारियों , परेशानियों , अच्छाइयों को हमारे सामने लाते हैं .अब अगर लोगों के मिलने बिछड़ने की बात करें तो जिन्दगी के सफर में बिछड़ जाते हैं जो मुकाम वो फ़िर नहीं आते (आप की कसम)जिन्दगी की पहेली को उलझाता सुलझाता आनंदफ़िल्म का ये गाना जिन्दगी कैसी है पहेली हाय”.हिन्दी फिल्मों के गानों में जिन्दगी के दर्शन को बहुत करीब से समझने की कोशिश की गयी है .जिन्दगी का समय  अनिश्चित है इसलियी ज़मीरफ़िल्म के इस गाने में कहा गया है जिन्दगी हंसने  गाने के लिए है पल दो पलऔर इसी दर्शन को आगे बढाता अंदाज़फ़िल्म का ये गाना जिन्दगी एक सफर है सुहाना यहाँ कल क्या हो किसने जानाऔर जिन्दगी की सबसे बड़ी पहेली यही है की कल क्या होगा कल जो होना है फ़िर उसके लिए आज ही से क्यों परेशान  हुआ जाएलेकिन जिन्दगी खूबसूरत तो तभी होती है जब कोई साथी जिन्दगी में हो और शायद अनारकलीफ़िल्म का ये गीत कहता है जिन्दगी प्यार की दो चार घड़ी होती है”. ‘साजनफ़िल्म के इस गाने में गीतकार अपने चरम पर है सांसों की जरुरत है जैसे जिन्दगी के लिए एक सनम चाहिए आशिकी के लिएप्यार की इसी ताकत का एहसास करता क्रांतिफ़िल्म का ये गाना कि जिन्दगी की न टूटे लड़ी प्यार कर ले घड़ी दो घड़ी” . हम कई आयामों से जिन्दगी को समझने की कोशिश जरूर कर रहे हैं लेकिन फ़िर भी सत्यकामफ़िल्म के इस गाने की तरह जिन्दगी है क्या बोलो जिन्दगी है क्या” , यह तो एक व्यक्ति के द्रष्टिकोण के ऊपर निर्भर करता है.जिन्दगी में हमें जो मिला है या तो उससे संतुष्ट हो जाएँ या जिन्दगी को बेहतर बनांने की कोशिश करते रहें क्योंकि जिन्दगी रुकती नहीं किसी के लिए चलता रहे इंसान मुनासिब है जिन्दगी के लिए. मुझे समाधिफ़िल्म का एक गाना याद आ रहा है ये जिन्दगी है कौम की तू कौम पर लुटाये जा’ . किस्सा छोटा सा है फलसफा बड़ा जो सफर प्यार से कट जाए वो प्यारा है सफर नहीं तो मुश्किलों के दौर का मारा है सफर. अगली बार जब आप कोई प्यारा सा फिल्मी गाना सुने तो जरुर उसके माध्यम से जिन्दगी को समझने की कोशिश कीजियेगा. सीता और गीताफ़िल्म का गाना है जिन्दगी है खेल कोई पास कोई फ़ेलतो जिन्दगी के इस खेल को खेल की भावना से खेलिए और विरोधियों का दिल जीतने की कोशिश कीजिये क्योंके कोशिशें ही कामयाब होती है. जिन्दगी को बेबसी मत बनने दीजिये जिन्दगी को समझने का सिलसिला दूरियांफ़िल्म के इस गीत के माध्यम से ख़त्म करता हूँ जिन्दगी मेरे घर आना जिन्दगी” .

प्रभात खबर में 06/10/2020 को प्रकाशित 

Saturday, October 3, 2020

मासूम नहीं फनी विडियो के मजाक

 

बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के अनुसार भारत का वीडियो स्ट्रीमिंग बाजार 2023 तक बढ़कर पांच बिलियन डॉलर का हो जाएगा जो साल 2018 में मात्र पांच सौ मिलीयन का था|इंटरनेट पर दो तरह के वीडियो उपलब्ध हैं पहला ओटीटी प्लेत्फोर्म्स जिसमें यूजर्स एक निश्चित रकम चुका कर के इंटरनेट पर विज्ञापन रहित वीडियो कंटेंट का लुत्फ़ उठाते हैं वहीं दूसरे प्रकार का दर्शक इंटरनेट पर यूट्यूब और इन्स्ताग्राम जैसी साईट्स पर वीडियो का लुत्फ़ उठाता है पर उन वीडियो को देखने के लिए अलग से कोई भी धनराशि खर्च नहीं करता पर इसके बदले ये कम्पनियां उसे वीडियो के साथ विज्ञापन भी दिखाती हैं |एनाल्सस मासन के आंकड़ों के मुताबिक़ साल 2019 के आंकड़ों के मुताबिक़ एक औसत भारतीय स्मार्टफोन धारक एक महीने में 8.5 गीगा बाईट का डाटा बगैर वाई –फाई का इस्तेमाल किये हुए खर्च कर रहा था या इसे अन्य शब्दों में समझें तो औसतन चालीस घंटे देखे जाने लायक डाटा खर्च कर रहा था और यह आंकड़े अमेरिका चीन और जापान के कंज्यूमर से ज्यादा है |ये आंकड़े बताते हैं कि भारत में इंटरनेट वीडियो का जादू सर चढ़कर बोल रहा है पर सवाल यह उठता है कि इन मुफ्त के वीडियो में जो विज्ञापन आधारित मोडल पर दिखाए जा रहे हैं उनमें लोग क्या पसंद कर रहे हैं |

फेसबुक ,इन्स्ताग्राम हो या यूट्यूब संगीत के बाद सबसे ज्यादा देखे जाने वाले वीडियो में दर्शकों की पसंद फन्नी वीडियो या प्रैंक वीडियो ही हैं |खाली वक्त में जब करने जैसा ख़ास कुछ न हों और हाथ में स्मार्ट फोन हो तो लोग अक्सर इन वीडियो की तलाश में रहते हैं |जब यूँ ही स्क्रोल करते हुए कुछ रोचक दिख जाता है |इन्सान सदियों से एक दूसरे के साथ मजाक करता आ रहा है |जब हमें यह पहली बार पता लगा कि अपनी सामजिक शक्ति का हेर फेर करके दूसरों की कीमत पर मजाक उड़ाया जा सकता है |प्रैंक या मजाक ज्यादातर संस्कृतिक मानकों  द्वारा निर्धारित होते हैं जिनमें टीवी रेडियो और इंटरनेट द्वारा स्थापित मानक भी शामिल हैं |लेकिन जब सांस्कृतिक और व्यवासायिक मानक मजाक करते वक्त आपस में टकराते हैं और अगर उन्हें जनमाध्यमों का साथ मिल जाए तो इसके परिणाम भयानक साबित हो सकते हैं |दिसम्बर 2012 में जैसिंथा सल्दान्हा नाम की एक भारतीय मूल की ब्रिटिश  नर्स ने एक प्रैंक काल के बाद आत्महत्या कर ली थी उसके बाद सारी दुनिया में इस बात पर बहस चल पडी कि इस तरह के मजाक को किसी के साथ करना फिर उसे रेडियो टीवी या इंटरनेट के माध्यम से लोगों तक पहुंचा देना कितना जायज है |साल 2012 में इंटरनेट इतने बहुआयामी माध्यमों के साथ हमसे नहीं जुड़ा था पर आज के हालात एकदम अलग हैं|हिट्स और क्लिक से पैसे कमाए जा सकते हैं|यह महत्वपूर्ण नहीं है कि क्या दिखाया जा रहा है बस व्यूज मिलने चाहिए ऐसी हालत में भारत एक खतरनाक स्थिति में पहुँच रहा है |जिसमें प्रैंक वीडियो एक बड़ी भूमिका निभा रहे हैं |

दुनिया में ऑनलाईन प्रैंक वीडियो की शुरुआत यूटयूब और फेसबुक जैसी साईट्स के आने से बहुत पहले हुई थी |साल 2002 में इंटरेक्टिव फ्लैश वीडियो स्केयर प्रैंक के नाम से पूरे इंटरनेट पर फ़ैल गया था |थोमस हॉब्स उन पहले दार्शनिकों में से थे जिन्होंने ये माना कि मजाक के बहुत सारे कार्यों में से एक यह भी है कि लोग अपने स्वार्थ के लिए मजाक का इस्तेमाल सामाजिक शक्ति पदानुक्रम को अस्त व्यस्त करने के लिए करते हैं | सैद्धांतिक रूप सेमजाक  की श्रेष्ठता के सिद्धांतों को मनोविज्ञान और समाजशास्त्र के बीच संघर्ष और शक्ति संबंधों के संबंध में समझा जा सकता है| विद्वानों ने स्वीकार किया कि संस्कृतियों मेंमजाक और मज़ाक का इस्तेमाल अक्सर "हिंसा को सही ठहराने और मजाक के लक्ष्य को अमानवीय बनाने के लिए" किया जाता है|इन सारी अकादमिक चर्चाओं के बीच भारत में इंटरनेट पर मजाक का शिकार हुए लोगों की चिंताएं गायब हैं |

सबसे मुख्य बात सही और गलत के बीच का फर्क मिटना जो सही है उसे गलत मान लेना और जो गलत है उसे सही मान लेना |जिस गति से देश में इंटरनेट पैर पसार रहा है उस गति से लोगों में डिजीटल लिट्रेसी नहीं आ रही है इसीलिये निजता के अधिकार जैसी आवश्यक बातें कभी विमर्श का मुद्दा नहीं बनती | किसी ने किसी  से फोन पर बात की अपना मजाक उडवाया यह मामला यहं तक व्यक्तिगत रहा फिर वही वार्तालाप इंटरनेट के माध्यम से सार्वजनिक हो गया |जिस कम्पनी के सौजन्य से यह सब हुआ उसे हिट्स लाईक और पैसा मिला पर जिस व्यक्ति के कारण यह सब हुआ उसे क्या मिला ? यह सवाल अक्सर नहीं पूछा जाता |इंटरनेट पर ऐसे सैकड़ों एप है जिनको डाउनलोड करके आप मजाकिया वीडियो देख सकते हैं और ये वीडियो आम लोगों ने ही अचानक बना दिए हैं |कोई व्यक्ति रोड क्रोस करते वक्त मेन होल में गिर जाता है और उसका फन्नी  वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो जाता है और फिर अनंतकाल तक के लिए सुरक्षित भी हो जाता है |

हमने उस वीडियो को देखकर कहकहे तो खूब लगाये पर कभी उस परिस्थिति में अपने आप को नहीं देख कर सोचा|इंटरनेट के फैलाव ने बहुत सी निहायत निजी चीजों को सार्वजनिक कर दिया है|ये सामाजिक द्रष्टि से निजी चीजें जब हमारे चारों ओर बिखरी हों तो हम उन असामान्य परिस्थिति में घटी घटनाओं को भी सार्वजनिक जीवन का हिस्सा मान लेते हैं जिससे एक परपीड़क समाज का जन्म होता है और शायद यही कारण है कि अब कोई दुर्घटना होने पर लोग मदद करने की बजाय वीडियो बनाने में लग जाते है |मजाकिया और प्रैंक वीडियो पर कहकहे लगाइए पर जब उन्हें इंटरनेट पर डालना हो तो क्या जाएगा और क्या नहीं इसका फैसला कोई सरकार नहीं हमें आपको करना है |इसी निर्णय से तय होगा कि भविष्य का हमारा समाज कैसा होगा |

  नवभारत टाईम्स में 03/10/2020 को प्रकाशित 

 

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