Wednesday, June 23, 2021

कोरोना ने दिखाई टेली मेडिसिन की राह

 


कोरोना जैसी अति संक्रामक बीमारियों ने यह चेता दिया कि अगर रोग की प्रकृति बदल रही है तो इलाज के तरीके भी बदलने होंगे| मरीज़ों और डॉक्टरों दोनों के लिए आमने-सामने बैठ कर इलाज करना और करवाना दोनों जोखिम भरा काम हो गया है| देश की स्वास्थ्य सेवाओं का  आधारभूत ढांचा खुद रोगग्रस्त है|ऐसे में ऐसे लोग जो उच्च रक्तचाप,डायबिटीज, ह्रदय रोग या अन्य सामान्य  जीवन शैली आधारित  बीमारियों से ग्रसित है| जिसमें चिकित्सकों से नियमित जांच की जरुरत होती है|उन लोगों के स्वास्थ्य पर भी  भारी संकट आ गया है |वहीं कोरोना के हलके लक्षणों वाले रोगी भी अस्पताल जाने की बजाय घर में ही आइसोलेट रहकर कोरोना से लड़ रहे हैं |
ऐसे तमाम रोगियों के लिए इंटरनेट एक आशा की बड़ी किरण के रूप में उभरा |मार्केट इंटेलिजेंस फर्म कलगाटो के एक विश्लेषण  में यह तथ्य सामने आया कि  अप्रैल 2021 में ओनलाईन फार्मेसी कम्पनी फ़ार्म इजी और नेटमेड्स के डेली एक्टिव यूजर्स की संख्या में दो गुनी से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गयी वहीं ओनलाईन डॉक्टरों के वीडिओ परामर्श दिलाने वाली साईट प्रैक्टो के उपभोक्ताओं की संख्या में तीन गुना से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गयी |भारतीय स्वास्थ्य सेवाओं के लिए ऐसे स्वास्थ्य एप /वेबसाईट का न केवल प्रयोग कर रहे हैं बल्कि वहां ज्यादा समय भी बिता रहे हैं |उदाहरण के लिए प्रैक्टो और ओनलाईन दवा की रिटेल चेन मेडप्लस में यह समय अप्रैल में दो सौ प्रतिशत बढ़ गया | दुनिया में दूसरे नम्बर पर सबसे ज्यादा इंटरनेट यूजर्स भारत में है जिसमें बड़ी भूमिका स्मार्टफोन धारकों की है | सरकार की टेलीमेडिसिन प्रेक्टीस गाईड लाईन्स  देश के सुदूर इलाकों में चिकित्सकों को इंटरनेट के माध्यम से अपनी सेवाएँ देने को विधिक स्वरुप प्रदान करती है जिसे साल 2020 में बीस मार्च को जारी किया गया है |चिकित्सा का यह तरीका न केवल संकट के इस समय बल्कि भविष्य में भी लोगों को फायदा पहुंचाएगा | टेलीमेडिसिन प्रेक्टीस गाइड लाईन्स  को मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इण्डिया और नीति आयोग के द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किया गया है |  वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने टेलीमेडिसिन को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है जिसमें स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच उन लोगों तक जहाँ दूरी एक महत्वपूर्ण कारक है वहां रोगों और चोटों में अनुसंधान, मूल्यांकन और स्वास्थ्य सेवा की सतत शिक्षा के लिए निदान,उपचार और उनके रोकथाम के लिए वैध जानकारी के आदान प्रदान में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग स्वास्थ्य पेशेवरों  द्वारा किया जाना है |शाब्दिक रूप से टेलीमेडिसिन का तात्पर्य इंटरनेट के माध्यम से  दूरी से किया गया उपचार है |डॉक्सऐप, एमफाइन और प्रेक्टो जैसे इंटरनेट  प्लेटफॉर्म मरीजों को डॉक्टरों से जुड़ने और आभासी परामर्श को शेड्यूल करने में सहायता प्रदान कर रहे हैं |हालाँकि अभी यह प्रयोग बहुत ही सीमित मात्रा में है क्योंकि इसमें सबसे बड़ी बाधा रोगी की उस मानसिकता में जिसमें वह डॉक्टरों से आमने सामने मिल कर ही अपने रोग का निदान चाहता है |ये सोच  अस्पतालों में अनावश्यक भीड़ बढाती है |

इस गाईड लाईन्स के अनुसार अब डॉक्टर रोगियों को वीडियो, ऑडियो, ईमेल द्वारा परामर्श प्रदान कर सकते हैं | यह गाईड लाईन्स उन दवाओं को भी श्रेणी बद्ध करती है जिन्हें टेलीमेडिसिन द्वारा रोगियों को नियत किया जा सकता है |जैसे पैरासिटामोल और इसके जैसी हल्की दवाएं किसी भी परामर्श द्वारा रोगी को दी जा सकती हैं, लेकिन उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसे रोगों की दवाएं निरन्तरता परामर्श में ही रोगी को टेलीमेडिसिन द्वारा दी जा सकती हैं जिसमें अनिवार्य रूप से सबसे पहला परामर्श रोगी  और डॉक्टर का आमने सामने का होगा |गंभीर रोगों के विषय में डॉक्टर टेलीमेडिसिन के इस्तेमाल से दवाएं नहीं निर्धारित करेंगे |इस बात का निर्धारण कि रोगी का  दूर से इलाज (टेलीमेडिसिन) किया  जाए या नहीं डॉक्टर के अपने पेशेवर निर्णय के अधीन होगा | आगे जाकर, डॉक्टरों को दूरस्थ परामर्श प्रदान करने के लिए एमसीआई  के बोर्ड द्वारा प्रशासित एक ऑनलाइन कोर्स पूरा करना होगा।चूँकि ऑनलाईन कोर्स के विकसित होने में अभी समय लगेगा तब तक डॉक्टर अंतरिम रूप से सरकार द्वारा निर्धारित गाईडलाईन्स के अनुसार मरीज देख सकते हैं |

टेलीमेडिसिन का यह प्रारूप भविष्य में  ई-स्वास्थ्य सेवाओं को व्यापक रूप देने में मदद करेगा | इसमें न केवल दूरस्थ परामर्श को लोकप्रिय बनाने में मदद मिलेगी | बल्कि यह ऐसे समाधान भी निकालेगा  जो रोगियों, डॉक्टरों, डायग्नोस्टिक क्लीनिकों और फार्मेसियों को आपस में जोड़ देंगे।जिसका फायदा निश्चित रूप से रोगी को जल्दी स्वस्थ होने में मिलेगा | टेलीमेडिसिन भारत के छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में बेहद लाभकारी  हो सकता है जहां डॉक्टरों की भारी कमी है । स्टेटिस्टा साईट  के एक शोध के अनुसार देश में टेलिमेडिसिन के बाजार का आकार   तीस  प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से साल 2020 से  2025  के बीच बढेगा|  भारत जैसे गरीब देशों में मेडिकल सुविधाओं की पहुंच बढ़ाने में टेलिमेडिसिन अहम टूल साबित हो सकता है | टेलिमेडिसिन को सभी जगहों तक पहुंचाने के लिए हेल्थ रिकॉर्ड को डिजिटाइज करना पहला अहम कदम है दुनिया के एक कोने में बैठा विशेषज्ञ और रोगी  दुनिया के दूसरे कोने में बैठे विशेषज्ञ की राय ले सकता है |पर इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि देश में अभी भी करोडो लोग इंटरनेट की पहुँच से दूर हैं |इस तरह की सेवाओं के लिए अंग्रेजी का कार्यकारी ज्ञान होना भी जरुरी है |भारत के नए इनत्नेट उपभोक्ताओं में नब्बे प्रतिशत भारतीय भाषाओं के बोलने वाले हैं |हालांकि प्रैक्टो ने भारत की पन्द्रह क्षेत्रीय भाषाओँ में अपनी सेवा शुरू की है|बोस्टन के चिकित्सक डोली अर्जुन ने ने टेलीहेल्थ नामक सेवा दलितों और जनजातियों के लिए शुरू की है जिसमें स्थानीय भाषा अनुवादकों के साथ जुड़कर रोगियों का इलाज किया जा रहा है |बिग ओ हेल्थ एप हिन्दी भाषियों के लिए डाक्टरी परामर्श उपलब्ध करा रहा है |

देश में टेलीमेडिसिन की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि लोग स्वास्थ्य सेवाओं में तकनीक का इस्तेमाल कितनी जल्दी अपने व्यवहार में शामिल कर लेंगे |

अमर उजाला में 23/06/2021 को प्रकाशित 

Saturday, June 19, 2021

तलाशने होंगे उपाय

 

   कोरोना जैसी महामारी ने देश को स्वास्थ्य और रोग प्रतिरोधक क्षमता की अहमियत सबको करा दिया है |देश अभी दूसरी लहर की पीड़ा से उबरने की कोशिश करता हुआ दुबारा खड़े होने की कोशिश कर  रहा है |विशेषज्ञ मानते हैं कि कोरोना महामारी की तीसरी लहर  सितम्बर तक आ सकती है जिसका शिकार बच्चे ज्यादा होंगे |ऐसी ख़बरों के बीच महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने सूचना के अधिकार  में पूछे गए सवाल के जवाब में बताया कि पिछले साल नवंबर तक देश में छह महीने से छह साल तक के करीब 9,27,606 गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की पहचान की गई। मंत्रालय की ओर से जारी  किए गए आंकड़ों के मुताबिक इनमें से, सबसे ज्यादा 3,98,359 बच्चों की उत्तर प्रदेश में और 2,79,427 की बिहार में पहचान की गई।

 वहीं लद्दाख, लक्षद्वीप, नगालैंड, मणिपुर और मध्य प्रदेश में एक भी गंभीर रूप से कुपोषित बच्चा नहीं मिला है|यानि उत्तर प्रदेश और बिहार में देश के सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे रह रहे हैं |कुपोषण सिर्फ एक स्वास्थ्य समस्या नहीं है अगर समय रहते इसका निदान न किया जाए तो यह आर्थिक और सामाजिक समस्या बन कर सामने आती है |विश्व स्वास्थ्य संगठन  गंभीर कुपोषण को लंबाई के अनुपात में बहुत कम वजन हो या बांह के मध्य के ऊपरी हिस्से की परिधि 115 मिली मीटर से कम हो या पोषक तत्वों की कमी के कारण होने वाली सूजन के माध्यम से परिभाषित करता है।गंभीर कुपोषण के शिकार बच्चों का वजन उनकी लंबाई के हिसाब से बहुत कम होता है और प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर होने की वजह से किसी भी  बीमारी से उनके मरने की आशंका किसी सामान्य स्वस्थ बच्चे के मुकाबले  नौ गुना ज्यादा होती है।इसके अलावा वर्ष 2019 में ‘द लैंसेट’ नामक पत्रिका द्वारा जारी रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी कि भारत में पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की 1.04 मिलियन मौंतों में से तकरीबन दो-तिहाई की मृत्यु का कारण कुपोषण है। देश में फैले कुपोषण को लेकर ये  आँकड़े काफी चिंताजनक हैं। बच्चों  को लंबे समय तक संतुलित आहार न मिलने से उनकी  रोग प्रतिरोधक क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण वह आसानी से किसी भी बीमारी का शिकार हो सकते है|

 कुपोषण के ख़िलाफ़ काम करने वाली सरकारी यहाँ तक की अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं जैसे संयुक्त राष्ट्र का ध्यान माइक्रोन्यूट्रिएंट्स पर है, ये संस्थाएं इस बात पर जोर देती हैं कि आयोडीन, आयरन या विटामिन ए का ड्रॉप पिलाएं| ऐसे में उनका ध्यान माइक्रोन्युट्रिएंट्स पर है| लेकिन ये समस्या इससे आगे की है आयरन की गोलियों से कुपोषण से निजात नहीं मिली मतलब इस समस्या का तकनीकी समाधान नहीं निकल सकता है. इसकी अपनी सीमाएं हैं|ऐसे में ज़रूरी है कि कि इसे खाद्य सुरक्षा से जोड़कर देखा  जाना चाहिए | खाद्य सुरक्षा और खाने के सामान में विविधता कुपोषण दूर करने के लिए ज़रूरी है| और ये दोनों ही चीजें सीधे तौर पर व्यक्ति की आय से जुड़ी होती हैं| और आय नहीं होगी तो पोषण मिलना मुश्किल है|महिला और बाल विकास मंत्रालय ने वर्ष 2019 में भारतीय पोषण कृषि कोष की स्थापना की थी। इसका उद्देश्‍य कुपोषण को दूर करने के लिये बहुक्षेत्रीय ढाँचा विकसित करना है जिसके तहत बेहतर पोषक उत्पादों हेतु 128 कृषि जलवायु क्षेत्रों में विविध फसलों के उत्पादन के उत्पादन पर ज़ोर दिया जाएगा। विशेषज्ञ कृषि को कुपोषण से संबंधित समस्याओं को संबोधित करने का अच्छा तरीका मानते हैं। किंतु देश की पोषण आधारित अधिकांश योजनाओं में इस और ध्यान ही नहीं दिया गया है। पोषण आधारित योजनाओं और कृषि के मध्य संबंध स्थापित करना आवश्यक है, क्योंकि देश की अधिकांश ग्रामीण जनसंख्या आज भी कृषि क्षेत्र पर निर्भर है और सर्वाधिक कुपोषण ग्रामीण क्षेत्रों में ही देखने को मिलता है। कोविड काल ने इस समस्या को ज्यादा गंभीर बनाया है |पहले से ही गरीब लोगों के रोजगार पर असर पड़ा है और स्वास्थ्य पर व्यय बढ़ा है ये असंतुलन एक नए दुष्चक्र का निर्माण कर रहा है जिसके केंद्र में बच्चे हैं |एक ओर कोरोना के तीसरी लहर में सबसे ज्यादा उनके चपेट में आने की आशंका, वहीं गरीबी और गिरती आय पहले से ही कुपोषण के शिकार बच्चों के लिए एक ऐसी खाई का निर्माण कर रही है जिससे निकलना मुश्किल दिख रहा है |प्रख्यात बाल लेखक जैनज़ कोरज़ाक ने कहा  था कि- 'बच्चे और किशोर, मानवता का एक-तिहाई हिस्सा हैं। इंसान अपनी जिंदगी का एक-तिहाई हिस्सा बच्चे के तौर पर जीता है। बच्चे...बड़े होकर इंसान नहीं बनते, वे पहले से ही होते हैं,हमें बच्चों के अंदर के इंसान को जिन्दा रखना होगा |पर क्या देश के सारे सारे बच्चे बड़े हो पायेंगे या उनमें से कई कुपोषण का शिकार हो विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त होकर काल कवलित हो जायेंगे इस मुश्किल सवाल का जवाब समाज और सरकार दोनों को मिलकर ढूँढना होगा |

राष्ट्रीय सहारा में 19/06/2021 को प्रकाशित 

 


Thursday, June 10, 2021

लालच व आशावादी सोच

 



कभी कभी कुछ बातें ऐसी हो जाती हैं कि हमारे दिमाग में अब तक फीड हुई परिभाषाएं एकदम नए रूप में सामने आ खडी होती हैं .अक्सर अपने बच्चे से मैं उसकी चॉकलेट की जिद या किसी और चीज़ के लिए जिद करते समय  उसे यही समझाता हूँ कि लालच बुरी बात है .एक  चॉकलेट  ही मिलेगी ज्यादा नहीं . मेरा बेटा शायद मेरे कहे को ज्यादा बड़े अर्थों में गुण रहा था .एक दिन उसने कहा पापा ,आप मुझसे ये क्यों कहते हैं कि लालच बुरी बात है .मुझे ज्यादा नंबर लाने का लालच है , तो क्या यह बुरा है ? मुझे स्पोर्ट्स में ट्राफी जीतने का लालच है, तो क्या यह गलत है ? बेटा अपनी बात कह चुका था और मैं उलझन में पड़ गया था .अब कहानी में यही थोडा सा ट्विस्ट है. हमें बचपन से बताया जाता है कि जितनी चादर है उतना ही पैर पसारना चाहिये .
बात थोड़ी पुरानी है एक जंगल में एक आदमी रहता था न पास में कपडा न ही रहने को मकान लेकिन उसके पास एक दिमाग था जो सोचता था समझता था उसने सोचा क्यों न उसके पास रहने को एक ऐसी जगह हो जहाँ उसे बारिश में भीगना न पड़े ठण्ड में ठिठुरना न पड़े और गर्मी भी कम लगे. अब आप सोच रहे होंगे कि ये बात उसके दिमाग में आयी कहाँ से अब जंगल में रह रहा था तो जरुर उसने पक्षियों के घोंसले को देखा होगा. खैर यहीं से मानव सभ्यता  का इतिहास बदल जाता है. इंसान ने अपने लिए पहले घर बनाया और फिर अपनी जरुरत के हिसाब से चीज़ों का आविष्कार होता गया .बैलगाडी से शुरू हुआ सफ़र हवाई जहाज़ तक पहुँच गया . कबूतर से चिठियों को पहुंचाने की शुरुवात हुई और आज ई मेल का जमाना है .बगल की बंटी की दुकान आज शॉपिंग मॉल्स  में तब्दील हो गयी ,घर के धोबी की जगह कब वाशिंग मशीन आ गयी हमें पता ही नहीं चला .लेकिन इन सब परिवर्तन में एक बात कॉमन है. वो है लालच , लालच जीवन को बेहतर बनाने का, लालच जिन्दगी को खूबसूरत बनाने का,लालच खुशियाँ मनाने का ,लालच आने वाले कल को बेहतर बनाने का. आप भी सोच रहे होंगे कि ये कौन सी उल्टी गंगा बहाई जा रही है. लालच अगर अच्छा न होता तो हम ज्यादा का इरादा कैसे कर पाते. अब तो मुझे लगने लगा है कि सारी दुनिया की तरक्की, विज्ञान के नए आविष्कार सब लालच का ही नतीजा हैं. सैचुरेशन पॉइंट से उठाकर आगे ले जाने का काम करता है हमारा लालच .

अब जबकि लालच के इस पक्ष से सामना हुआ है तो मेरे मन में भी न जाने कैसे कैसे लालच पनपने लगे हैं .लालच इस दुनिया को हिंसा से मुक्त करने का शांति की बात को किताबों और भाषणों से निकाल कर सारी दुनिया में गूंजा देने का .आम आदमी को खास आदमी बना देने का लालच .शिक्षा , स्वास्थ्य  रोजगार जैसी बेसिक चीज़ों को हर किसी के लिए उपलब्ध कराने का लालच वह भी बिना किसी ज्यादा मशक्कत के .

मेरे लालच की लिस्ट तो बढ़ती ही जा रही है .यहीं रोकता हूँ इस लिस्ट को . अगर  लालच आशावादी सोच के साथ हो और उससे दुनिया बेहतर होती हो तो लालच बुरा नहीं है .

प्रभात खबर में 10/06/2021 को प्रकाशित 

 

Saturday, June 5, 2021

निजी आंकड़ों को लेकर कितने जागरूक हम ?

 इंटरनेट साईट स्टेटीस्टा के अनुसार देश में साल 2020 में इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं की संख्या सात सौ मिलियन रही जिसकी साल 2025 तक 974मिलीयन हो जाने की उम्मीद है भारत दुनिया का सबसे बड़ा ऑनलाईन बाजार है |यह डाटा आज की सबसे बड़ी पूंजी है यह डाटा का ही कमाल है कि गूगल और फेसबुक जैसी अपेक्षाकृत नई कम्पनियां दुनिया की बड़ी और लाभकारी कम्पनियां बन गयीं है|डाटा ही वह इंधन है जो अनगिनत कम्पनियों को चलाए रखने के लिए जिम्मेदार हैं |वह चाहे तमाम तरह के एप्स हो या विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साईट्स सभी  उपभोक्ताओं  के लिए मुफ्त हैं |असल मे जो चीज हमें मुफ्त दिखाई दे रही है वह सुविधा हमें हमारे संवेदनशील निजी डाटा के बदले मिल रही है | बिजनेस स्टैण्डर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 में भारत में गूगल और फेसबुक ने 1०००० करोड़ रुपये कमाए |वहीँ  इकॉनमिक टाइम्स की रिपोर्ट के हिसाब से 2019 में रिलायंस इंडस्ट्रीज  ने 11,262 करोड़  रुपये कमाए परन्तु जब हम दोनों कम्पनीज से मिले प्रत्यक्ष रोजगार और साथ ही उसके साथ बने इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास को देखते हैं तो दोनों में जमीन आसमान का अंतर मिलता हैं | जैसे 90 बिलियन डॉलर वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज 194056 लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार देती है और इससे कहीं ज्यादा लोग वेन्डर कंपनियों के माध्यम से रोजगार पाते हैं।|मजेदार तथ्य यह है कि फेसबुक कोई भी उत्पाद नहीं बनाता है और इसकी आमदनी का बड़ा हिस्सा विज्ञापनों से आता है और आप क्या विज्ञापन देखेंगे इसके लिए आपको जानना जरुरी है |यही से आंकड़े महत्वपूर्ण हो उठते हैं | देश में जिस तेजी से इंटरनेट का विस्तार हुआ उस तेजी से हम अपने निजी आंकडे (फोन ई मेल आदि) के प्रति जागरूक नहीं हुए हैं परिणाम तरह तरह के एप मोबाईल में भरे हुए जिनको इंस्टाल करते वक्त कोई यह नहीं ध्यान देता कि एप को इंस्टाल करते वक्त किन –किन चीजों को एक्सेस देने की जरुरत है |

टेक एआर सी की एक रिपोर्ट के अनुसार एक भारतीय कम से कम चौबीस एप का इस्तेमाल  करता है और यह आंकड़ा वैश्विक औसत से लगभग तीन गुना ज्यादा है | यह तथ्य बताता है कि एक आम भारतीय किसी एप को डाउनलोड करने में कितनी कम सावधानी बरत रहे हैं |सबसे ज्यादा सोशल मीडिया एप का इस्तेमाल किया जाता है और यही से इंसान के डाटा बनने का खेल शुरू हो जाता है यह सोचने में अच्छा है कि हमारे ऑनलाइन प्रोफाइल पर हमारा नियंत्रण है | हम तय करते हैं कि हमें कौन सी तस्वीरें साझा करनी हैं और कौन सी निजी रहनी चाहिये |  पर तथ्य इससे अलग है  कि जब आपके डिजिटल प्रोफाइल की बात आती हैतो आपके द्वारा साझा किया जाने वाला डेटा केवल एक आइसबर्ग का टिप होता है | हम बाकी को नहीं देखते हैं जो मोबाइल एप्लिकेशन और ऑनलाइन सेवाओं के अनुकूल इंटरफेस के पानी के नीचे छिपा हुआ है | हमारे बारे में सबसे मूल्यवान डेटा हमारे नियंत्रण से परे है | यह ऐसी गहरी परतें हैं जिन्हें हम नियंत्रित नहीं कर सकते हैं जो वास्तव में निर्णय लेते हैंवो हम नहीं हैं बल्कि हमारे डाटा को विश्लेषित करने वाला होता है |

पहली परत वह है जिसे आप नियंत्रित करते हैं | इसमें वह डेटा होता है जो आप सोशल मीडिया और मोबाइल एप्लिकेशन में फीड करते हैं | इसमें आपकी प्रोफ़ाइल जानकारीआपके सार्वजनिक पोस्ट और निजी संदेशपसंदखोजअपलोड की गई फ़ोटोआदि चीजें  शामिल हैं |

दूसरी परत व्यवहार संबंधी टिप्पणियों से बनी है | ये इतने विकल्प नहीं हैं जो आप होशपूर्वक बनाते हैंलेकिन मेटाडेटा जो उन विकल्पों को संदर्भ देता है | इसमें ऐसी चीजें शामिल हैं जिन्हें आप शायद हर किसी के साथ साझा नहीं करना चाहते हैंजैसे कि आपका वास्तविक समय स्थान और आपके अंतरंग और पेशेवर संबंधों की विस्तृत समझ | जैसे एक ही घर में अक्सर एक ही कार्यालय की इमारतों या आपके आराम करने के समय  के वक्त आपके मोबाईल की जगह  को दिखाने  करने वाले स्थान पैटर्न को देखकर,  कंपनियां बहुत कुछ बता सकती हैं कि आप किसके साथ अपना समय बिताते हैं। ऑनलाइन और ऑफलाइनआपके द्वारा क्लिक की गई सामग्रीआपके द्वारा इसे पढ़ने में बिताए गए समयखरीदारी पैटर्नकीस्ट्रोक डायनेमिक्सटाइपिंग स्पीडऔर स्क्रीन पर आपकी उंगलियों के मूवमेंट (जो कुछ कंपनियों का मानना है कि भावनाओं और विभिन्न मनोवैज्ञानिक विशेषताओं को प्रकट करते हैं)|

तीसरी परत पहले और दूसरे की व्याख्याओं से बनी है | आपके डेटा का विश्लेषण विभिन्न एल्गोरिदम द्वारा किया जाता है और सार्थक सांख्यिकीय सहसंबंधों के लिए अन्य उपयोगकर्ताओं के डेटा के साथ तुलना की जाती है | यह परत न केवल हम क्या करते हैं बल्कि हम अपने व्यवहार और मेटाडेटा पर आधारित हैंके बारे में निष्कर्ष निकालते हैं | इस परत को नियंत्रित करना बहुत अधिक कठिन है,  इन प्रोफ़ाइल-मैपिंग एल्गोरिदम का कार्य उन चीजों का अनुमान लगाना हैजिन्हें आप स्वेच्छा से प्रकट करने की संभावना नहीं रखते हैं। इनमें आपकी कमजोरियांसाइकोमेट्रिक प्रोफाइलआईक्यू लेवलपारिवारिक स्थितिव्यसनोंबीमारियोंचाहे हम एक नए रिश्ते में अलग होने या प्रवेश करने वाले होंआपकी छोटी सी टिप्पणियों (जैसे गेमिंग)और आपकी गंभीर प्रतिबद्धताएं (जैसे व्यावसायिक परियोजनाएं) शामिल हैं |

वे व्यवहार संबंधी भविष्यवाणियाँ और व्याख्याएँ विज्ञापनदाता के लिए बहुत मूल्यवान हैं | चूंकि विज्ञापन का मतलब जरूरतों को बनाना है और आपको ऐसे निर्णय लेने के लिए प्रेरित करना है जिन्हें आपने (अभी तक) नहीं किया है,  चूंकि कम्पनियां जानती  हैं कि आप उन्हें सीधे कुछ नहीं बताएंगे कि यह कैसे करना है|  बैंकोंबीमा कंपनियोंऔर सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा किए गए बाध्यकारी निर्णय बिग डेटा और एल्गोरिदम द्वारा किए जाते हैंन कि लोगों द्वारायह मनुष्यों से बात करने के बजाय डेटा को देखते है जो  बहुत समय और पैसा बचाता है |इसलिएविज्ञापन उद्योग में एक साझा विश्वास है कि बड़ा डेटा झूठ नहीं है  यदि किसी उपभोक्ता ने मौसम का हाल जानने के लिए कोई एप डाउनलोड किया और एप ने उसके फोन में उपलब्ध सारे कॉन्टेक्ट तक पहुँचने की अनुमति माँगी तो ज्यादातर लोग बगैर यह सोचे की मौसम का हाल बताने वाला एप कांटेक्ट की जानकारी क्यों मांग रहा है उसकी अनुमति दे देंगे |अब उस एप के निर्मताओं के पास किसी के मोबाईल में जितने कोंटेक्ट उन तक पहुँचने की सुविधा मिल जायेगी|यानि एप डाउनलोड करते ही उपभोक्ता आंकड़ों में तब्दील हुआ फिर उस डाटा ने और डाटा ने पैदा करना शुरू कर दिया |इस तरह देश में हर सेकेण्ड असंख्य मात्रा में डाटा जेनरेट हो रहा है पर उसका बड़ा फायदा इंटरनेट के व्यवसाय में लगी कम्पनियों को हो रहा है |यह भी उल्लेखनीय है कि डेटा चुराने के लिए बहुत से फर्जी एप गूगल प्ले स्टोर पर डाल दिए जाते हैं और गूगल भी समय समय  पर ऐसे एप को हटाता रहता है पर ओपन प्लेटफोर्म होने के कारण जब तक ऐसे एप की पहचान होती है तब तक फर्जी एप निर्माता अपना काम कर चुके होते हैं |ग्रोसरी स्टोर और कई तरह के क्लब जब कोई उपभोक्ता वहां से कोई खरीददारी करता है या सेवाओं का उपभोग करता है तो वे उपभोक्ताओं के आंकड़े ले लेते हैं लेकिन उन आंकड़ों पर उपभोक्ताओं पर कोई अधिकार नहीं रहता है |

उपभोक्ता अधिकारों के तहत अभी आंकड़े(डाटा) नहीं आये हैं |किसी भी उपभोक्ता को ये नहीं पता चलता है कि उसकी निजी जानकारियों का (आंकड़ों )किस तरह इस्तेमाल होता है और उससे पैदा हुई आय का भी उपभोक्ता को कोई हिस्सा नहीं मिलता |आंकड़ों की दुनिया में भी वर्ग संघर्ष का दौर शुरू हो गया है किसी के निजी आंकड़ों की कीमत उसकी इंटरनेट पर कम उपस्थिति से तय होती है यानि अगर आप कई तरह की सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर हैं तो आपका डाटा यूनिक नहीं रहेगा | लोगों के निजी डाटा सिर्फ कम्पनियों के प्रोडक्ट को बेचने में ही मदद नहीं कर रहे बल्कि  यह आंकड़े हमें  भविष्य के समाज के लिए तैयार भी कर रहे हैं |पूर्व में फ़ेसबुक ने यह स्वीकारा था कि उनके ग्रुप द्वारा व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम के डाटा को मिला कर के  उसका व्यवसायिक इस्तेमाल किया जा रहा है| फ़ेसबुक ने यह भी स्वीकार किया था कि उसके प्लेटफ़ॉर्म में अनेक ऐप के माध्यम से डाटा माइनिंग और डाटा का कारोबार होता है सका बड़ा कारण इंटरनेट द्वारा पैदा हो रही आय और दुनिया भर की सरकारों में अपनी आलोचनाओं को लेकर दिखाई जाने वाली अतिशय संवेदनशील रवैया  है |कम्पनियां अनाधिकृत डाटा के व्यापार में शामिल हैं भले ही वे इसको न माने पर वे अपना डाटा देश की सरकार के साथ नहीं शेयर करना चाहती वहीं सरकार इस तरह के नियम बना कर अपनी आलोचनाओं को कुंद कर सकती है |फिलहाल देश इन्तजार कर रहा है की सोशल मीडिया पर आने वाला वक्त अभिवक्ति की स्वंत्रता और लोगों की निजता के बीच कैसे संतुलन बनाएगा और व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक जो अभी तक लंबित है |क्या लोगों को इंटरनेट पर वो आजादी का एहसास करा पायेगा जिसके लिए लोग इंटरनेट पर आते हैं | भविष्य का भारतीय समाज कैसा होगा यह इस मुद्दे पर निर्भर करेगा कि अभी हम अपने निजी आंकड़ों के बारे में कितने जागरूक है |

राष्ट्रीय सहारा हस्तक्षेप में 05/06/2021 को प्रकाशित 

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