Saturday, July 31, 2021

सोचना जरुरी है ,इंटरनेट पर कैसे बचाएं अपनी निजता !

 

भारत के सहित  दुनिया भर में पेगासस स्पाईवेयर एक बार फिर चर्चा  में हैं. इसराइली  सर्विलांस कंपनी एनएसओ ग्रुप के सॉफ्टवेयर पेगासस का इस्तेमाल कर कई पत्रकारोंसामाजिक कार्यकर्ताओंनेताओंमंत्रियों और सरकारी अधिकारियों के फ़ोन की जासूसी करने का दावा किया जा रहा है|पचास हज़ार नंबरों के एक बड़े डेटा बेस के लीक की पड़ताल द गार्डियनवॉशिंगटन पोस्ट,द वायरफ़्रंटलाइनरेडियो फ़्रांस जैसे सोलह  मीडिया संस्थान के पत्रकारों ने की है|यूँ तो दुनिया भर में सरकारों द्वारा देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के उद्देश्य से या किसी भी सार्वजनिक आपातकाल की घटना होने पर या सार्वजनिक सुरक्षा के लिए इस तरह की गतिविधियाँ की जाती रही हैं पर यह मामला कई मायनों में अलग है और इसके कई आयाम हैं पहला यह कि इंटरनेट के युग में  हमारी निजता कितनी सुरक्षित है और दूसरा देश में साइबर अपराधियों से बचने के लिए कैसा तंत्र विकसित किया है |

सरकार ने पेगासस जासूसी सम्बन्धी मीडिया रिपोर्ट को खारिज किया है पर संसद के माध्यम से सरकार ने ये माना कि "लॉफ़ुल इंटरसेप्शन" या क़ानूनी तरीके से फ़ोन या इंटरनेट की निगरानी या टैपिंग की देश में एक स्थापित प्रक्रिया है जो बरसों से चल रही हैदेश  में एक स्थापित प्रक्रिया मानक  है जिसके माध्यम से केंद्र और राज्यों की एजेंसियां इलेक्ट्रॉनिक संचार को इंटरसेप्ट करती हैंभारतीय टेलीग्राफ़ अधिनियम, 1885 की धारा 5 (2) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 के प्रावधानों के तहत प्रासंगिक नियमों के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक संचार के वैध अवरोधन  के लिए अनुरोध किए जाते हैंजिनकी अनुमति सक्षम अधिकारी देते हैंआईटी (प्रक्रिया और सूचना के इंटरसेप्शननिगरानी और डिक्रिप्शन के लिए सुरक्षा) नियम, 2009 के अनुसार ये शक्तियां राज्य सरकारों के सक्षम पदाधिकारी को भी उपलब्ध हैंवर्तमान परिवेश में ऐसे अवरोधन  को लेकर क़ानून काफ़ी स्पष्ट है जो हर एक संप्रभु राष्ट्र अपनी अखंडता और सुरक्षा के लिए करता है|

लेकिन पेगासस का मामला थोड़ा पेचीदा है |पेगासस एनएसओ समूह जो एक  साइबर सिक्योरिटी कंपनी का एक स्पाईवेयर है | एनएसओ समूह दुनिया भर में सरकारों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को अपराध और आतंकवाद से लड़ने में मदद करने का दावा करती है|इस कम्पनी का यह भी दावा है कि वह विभिन्न देशों के सरकारों की मदद करती है और पेगासस का इस्तेमाल अन्य देशों में सिर्फ संप्रभु सरकारों या उनकी सस्थाओं द्वारा किया जाता है|भले ही सरकार ने इस पूरे मामले से अपने आपको अलग करते हुए मीडिया रिपोर्ट की सत्यता पर ही सवाल उठा दिया है |भारत में यह मामला इसलिए ज्यादा चर्चित हो रहा है क्योंकि यह मामला संसद के मानसून सत्र के शुरू होने के दिन ही सुर्ख़ियों में आया और इस मुद्दे पर सरकार  और विपक्ष में तीखी नोंक झोंक देखने को मिली इस तेजी से डिजीटल होती दुनिया में इस तरह की खबरों से इस आशंका को बल मिलता है कि इंटरनेट की दुनिया में कुछ भी गुप्त नहीं है पर भारत में इंटरनेट पर निजता अभी भी कोई मुद्दा नहीं है |सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी एन श्री कृष्णा की अध्यक्षता में गठित समिति ने पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल का ड्राफ्ट बिल सरकार को सौंप दिया है जो फिलहाल अभी कानून बनने के इन्तजार में संसद में विचाराधीन है |इस बिल में निजी” शब्द को परिभाषित किया गया है.इसके अतिरिक्त इसमें सम्वेदनशील निजी डाटा को बारह  भागों में विभाजित किया गया है.जिसमें पासवर्ड,वित्तीय डाटा,स्वास्थ्य डाटा,अधिकारिक नियोक्ता,सेक्स जीवन,जाति/जनजाति,धार्मिक ,राजनैतिक संबद्धता जैसे क्षेत्र जोड़े गए हैं.इस बिल को अगर संसद बगैर किसी संशोधन के पास कर देती है तो देश के प्रत्येक नागरिक को अपने डाटा पर चार तरह के अधिकार मिल जायेंगे .जिनमें पुष्टिकरण और पहुँच का अधिकारडाटा को सही करने का अधिकारडाटा पोर्टेबिलिटी और डाटा को बिसरा देने जैसे अधिकार शामिल हैं .इस समिति की  रिपोर्ट के अनुसार यदि इस बिल का कहीं उल्लंघन होता है तो सभी कम्पनियों और सरकार को स्पष्ट रूप से उन व्यक्तियों को सूचित करना होगा जिनके डाटा की चोरी या लीक हुई है कि चोरी या लीक हुए डाटा की प्रकृति क्या है ,उससे कितने लोग प्रभावित होंगे ,उस चोरी या लीक के क्या परिणाम हो सकते हैं और प्रभावित लोग जिनके डाटा चोरी या लीक हुए हैं वे क्या करें .ऐसी स्थिति में जिस व्यक्ति का डाटा चोरी या लीक हुआ है वह उस कम्पनी से क्षतिपूर्ति की मांग भी कर सकता है |तथ्य यह भी है कि इंटरनेट की बड़ी कम्पनियां अगर चाहे तो फोन में मौजूद अपने एप के जरिये वो किसी भी व्यक्ति की तमाम जानकरियों के अलावा उसके जीवन में क्या चल रहा है यह सब जानकारी निकाल सकती हैं|फोन पर हम किसी से कुछ चर्चा करते हैं और फिर उसी चर्चा से जुडी हुई वस्तुओं के विज्ञापन आपको दिखने लगने का अनुभव साझा करते लोग हमारे आस पास ही मिल जायेंगे यानि ये काम तो पहले से ही हो रहा है|बस किसी व्यक्ति से जुडी जानकरियों का व्यवसायिक इस्तेमाल होता है विज्ञापन दिखाने में |सरकार के पास तो पहले से ही तमाम संसाधन और तंत्र मौजूद हैं पर इंटरनेट की बड़ी कम्पनियां इस तरह के खेल में शामिल हैं और वे इसका इस्तेमाल अपने व्यवसायिक हितों की पूर्ति के लिए करती हैं |कैंब्रिज एनालिटिका मामला सोशल नेटवर्किंग साईट  फेसबुक के लिए ऐसा ही रहा. इस कंपनी पर आरोप है कि इसने अवैध तरीके से फेसबुक के करोड़ों यूजरों का डेटा हासिल किया और इस जानकारी का इस्तेमाल अलग-अलग देशों के चुनावों को प्रभावित करने में किया. इनमें 2016 में हुआ अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव भी शामिल  है. इस विवाद का बड़ा पक्ष इंटरनेट पर मौजूद ऐसी कम्पनियों के लगातार बड़े होते जाने का है और इस विषय पर यदि समय रहते ध्यान न दिया गया तो अभिव्यक्ति की आजादी ,निजता जैसे अधिकार सिर्फ कानून की किताबों में ही पढने को मिलेंगे इंटरनेट के फैलाव  के साथ आंकड़े बहुत महत्वपूर्ण हो उठें .लोगों के बारे में सम्पूर्ण जानकारियां को एकत्र करके बेचा जाना एक व्यवसाय बन चुका है और  इनकी कोई भी कीमत चुकाने के लिए लोग तैयार बैठे हैं जैसे ही आप इंटरनेट पर आते हैं आपकी कोई भी जानकारी निजी नहीं रह जाती और इसलिए इंटरनेट पर सेवाएँ देने वाली कम्पनिया अपने ग्राहकों को यह भरोसा जरुर दिलाती हैं कि आपका डाटा गोपनीय रहेगा पर फिर भी आंकड़े लीक होने की सूचनाएं लगातार सुर्खियाँ बनी रहती हैं |इंटरनेट के फैलाव  के साथ आंकड़े बहुत महत्वपूर्ण हो उठें|पेगासस के मामले के बहाने ही सही लोगों को इंटरनेट पर अपनी निजता कैसे बचाएं इस पर भी सोचने की जरुरत है|

राष्ट्रीय सहारा हस्तक्षेप में 31/07/2021 को प्रकाशित 

 

 

 

Saturday, July 17, 2021

महिलाओं की बढ़ती हिस्सेदारी


कोरोना महामारी के बाद दुनिया हमेशा के लिए बदल गयी |परम्परा और आधुनिकता के बीच उलझे देश में इस संक्रमण ने जहाँ कई चुनौतियाँ पेश की वहीं बहुत से अवसर भी आये| समाज में तकनीक का दखल और उसकी स्वीकार्यता में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई |”वर्क फ्रॉम होम” जैसा एक नया शब्द हमारी बोलचाल का हिस्सा बना और जिन्दगी की गाडी दौडाने में सहायक भी बना | कोरोनावायरस के प्रकोप के बाद, हर दस में से चार कंपनियों ने विशेष रूप से घर से कार्य करने की रणनीति को बना कर अपने काम को जारी रखने की रणनीति अपनाई और यह रणनीति भारत के कॉरपोरेट सेक्टर में महिलाओं के लिए एक क्रांतिकारी बदलाव ला रही है | रिक्रूटमेंट, करियर प्लेटफॉर्म जॉब्स फॉर हर शोध के अनुसार देश में मध्य प्रबंधन से लेकर वरिष्ठ  स्तर तक महिलाओं को काम पर रखने की संख्या में वृद्धि हो रही है| 2019 में महिलाओं को काम पर रखने वाली कम्पनियों की संख्या अठारह प्रतिशत थी| जबकि 2021 में यह आंकडा तैंतालीस प्रतिशत हो गया | यह सर्वे मई 2021 में तीन सौ कम्पनियों पर किया गया |आंकड़े बताते हैं कि कोविड काल में महिलाओं को काम पर रखने में भारी उछाल आया | एक ओर जहाँ महिलाओं को घर से काम करने की स्वीकार्यता मिल रही है वहीं ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को काम पर रखने के लिए कोर्पोरेट सेक्टर मातृत्व अवकाश जैसी नीतियों को भी लेकर सामने आ रहे हैं ,जिससे महिलाओं को नौकरी करने के लिए प्रेरित किया जा सके |रिपोर्ट के अनुसार एक ओर घर से काम करने वाली नौकरियों  की संख्या में वृद्धि हो रही है वहीं ज्यादा महिलायें भी अब नौकरियों के लिए आवेदन कर रही हैं |
वर्क फ्रॉम होम की अवधारणा उन शादी शुदा महिलाओं के लिए भी एक नया अवसर लाया है जो पढी लिखी होने के बाद भी शादी के बाद अपनी गृहस्थी को संवारने के लिए करियर को तिलांजलि दे देती थी| अब घर से ही काम करने के मौके मिलने पर वे आसानी  दुबारा कॉर्पोरेट  सेक्टर में काम पर लौट सकती हैं | भारतीय परिवार में काम काम बाँट लेने की परम्परा महिलाओं में हमेशा से रही है |शहरों में जब महिलायें वर्क फ्रॉम होम की अपनी शिफ्ट निपटा रही होती है तो घर के अन्य सदस्य बाकी के घरेलु काम निबटा लेते हैं |सामाजिक दबाव कहें या प्रगतिशीलता की हवा अब घर के पुरुष भी घर के कामों को करने में हीनता का अनुभव नहीं करते और पुरुषों के इस झुकाव के पीछे पिछले साल के लम्बे लॉक डाउन की एक बड़ी भूमिका रही है |रिमोट /हाइब्रिड काम का मोडल अब कॉर्पोरेट  सेक्टर की पसंद बनता जा रहा है |यह जहाँ कर्मचारियों को ज्यादा विकल्प देता है वहीं काम करने की फ्लेक्सिबिलटी भी | चूकि कामकाजी  महिलाओं के ऊपर  काम और घर की दोहरी जिम्मेदारी होती है| ऐसे में वर्क फर्म होम उन्हें घर से बाहर जाकर काम करने के मुकाबले दोनों में संतुलन बनाने में ज्यादा मदद करता है |सांस्कृतिक तौर पर महिलाओं को काम करने से रोके जाने में एक बड़ी समस्या घर से बाहर जाकर काम करना ठीक नहीं है वाली मानसिकता भी  रही है|
पर तस्वीर उतनी भी सुहानी नहीं है जितना आंकड़े बता रहे हैं तथ्य  यह भी है कि वर्ल्ड इकोनोमिक फॉर्म की वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट,2021 दक्षिण एशियाई देशों में भारत का प्रदर्शन सबसे खराब रहा है, भारत रैंकिंग में 156 देशों में 140वें स्थान पर है जिसमें भारत से आगे बांग्लादेश 65वें, नेपाल 106वें, श्रीलंका 116वें  पाकिस्तान 153वें, अफगानिस्तान 156वें,और  भूटान 130वें स्थान पर है।पिछले साल भारत की रैंकिंग 112वीं थी| जॉब्स फॉर हर की रिपोर्ट  अनुसार, कुल मिलाकर उद्योगों के कार्यबल में महिलाओं की औसत भागीदारी 2020 में चौंतीस प्रतिशत  पर स्थिर रही।कोरोना काल में दुबारा महिलाओं को काम पर रखने के मामलों  में  भी कमी आई है | २०२० में सभी कंपनियों में  कुल पचास प्रतिशत  महिलाओं को सक्रिय रूप से  दुबारा काम मिला , यह आंकड़ा  साल 2019 से बीस प्रतिशत  कम रहा ।इस गिरावट के लिए मुख्य तौर पर छोटी फर्में से जिम्मेदार थीं। फिलहाल उपलब्ध रोजगार में वर्क फ्राम होम की  प्रवृत्ति अधिक से अधिक महिलाओं को प्रबंधन और तकनीक के क्षेत्र वाली नौकरियों में प्रेरित करने के अलावा  कम्पनियों में सभी स्तरों पर लैंगिक समानता सुनिश्चित करेगी | पेशेवर सीढ़ी पर चढ़ने में सक्षम महिलाओं को देख अन्य महिलायें को भी प्रोत्साहन मिलेगा |फिलहाल लैंगिक रूप से अभी महिलाओं को पुरुषों के बराबर मौका मिलने में देश को अभी लम्बा रास्ता तय करना है |

अमर उजाला में 17/07/2021 को प्रकाशित 

Tuesday, July 13, 2021

सौगत और मैं राजौरी यात्रा पंचम भाग(यात्रा संस्मरण)



अगला दिन धर्म कर्म के नाम पर था दोनों परिवारों ने वैष्णो देवी जाने का निश्चय किया
।मैं वैष्णो देवी करीब दस साल पहले आया था । ये मेरी तीसरी वैष्णो देवी यात्रा होने वाली थी । हम अभी राजौरी से तीस किलोमीटर आगे चले होंगे तो रास्ते में एक भयानक एक्सीडेंट हुआ देखा मोटरबाईक औए एक कार में ।

एक घायल युवक रोड पर पड़ा था उसको देख कर तो ऐसा लगा कि उसके जीवन की अंतिम सांसें चल रही हों, हमारे साथ चल रहे पुलिस वालों ने कई गाड़ियाँ रोक कर उस युवक को अस्पताल पहुंचवाने की कोशिश की,लेकिन कोई फायदा नहीं वे लोगों से निवेदन कर रहे थे तभी भाभी ने फैसला किया कि उस युवक को अपनी गाड़ी में सवार कराया जाए ।
राजौरी का जिला अस्पताल वहां से दूर था और हम लोग विपरीत दिशा में जा रहे थे । जहां कोई अस्पताल पास में नहीं था । ड्राईवर रशीद ने बताया कि यहां से पाँच किलोमीटर दूर एक सेना का अस्पताल था पता नहीं वे उस युवक का इलाज करेंगे या नहीं । भाभी ने फैसला किया कि किसी भी हालात में इसे अस्पताल ले चलेंगे और हमारी दोनों गाड़ियां अपनी अधिकतम गति से उन पहाड़ी सड़कों पर दौड़ने लगीं । तब मुझे एहसास हुआ कि इस खूबसूरत जगह पर जीवन कितना दुश्वार है चारों और पहाड़ उन पर घूमती हुई कम चौड़ी सड़कें और हर तरफ जंगल । ऐसे में कोई भी दुर्घटना खतरनाक हो सकती है । दोनों गाड़ियां सेना के बैरीकेटिंग को नजरंदाज  करते हुए सेना के अस्पताल पहुंची । वहां तुरंत उसको भर्ती कर लिया गया हम सेना के मानवीय रूप से प्रभावित हुए बगैर ना रह सके चूंकि सेना वहां लंबे समय से है इसलिए जगह-जगह उनके कैम्प और अस्पताल बने हैं । सड़कों और पुलों के मामले में सीमा सड़क संगठन (बी आर ओ) ने बहुत अच्छा काम किया है ऐसी मुश्किल जगहों पर सड़क बनाना आसान काम नहीं है ।
       चार घंटे बाद हम कटरा पहुंच गए जहां से सिर्फ पाँच  मिनट के बाद हम वैष्णो देवी के हैलिपैड पर थे । तकनीक ने यात्रा का समय कितना घटा दिया हेलीकॉप्टर की उड़ान मात्र पाँच मिनट की थी । चालक के बगल में दो लोग और पीछे चार लोग बैठाए जाते हैं आगे बैठने वालों को हिदायत दी जाती है कि चालक से बात ना करें और मशीनों को ना छेड़े । जगह की कमी के कारण चालक अपनी सीट पर लटक कर बैठा था उसे देखकर मुझे भरी हुई टैक्सी याद आ गयी जिसका ड्राइवर ज्यादा सवारियों को बैठाने के लिए अपनी जगह भी कुर्बान कर देता है  
     हेलीकॉप्टर से उड़ते हुए कटरा रेलवे स्टेशन दिखा । जहां श्री नगर से जम्मू को जोड़ने वाली रेल पटरी बिछाने का काम तेजी से चल रहा है, इस रेल लाइन के शुरू होने के बाद जम्मू से श्रीनगर जाना पर्यटकों के लिए आसान हो जाएगा अभी
जम्मू श्रीनगर से सिर्फ हवाई और सड़कमार्ग से जुड़ा है । इस रेल लाइन को पहाड़ों के अंदर से निकाला जा रहा है जिससे पर्यावरण को कम से कम नुक्सान हो । पहाड़ के ऊपर से रेलवे लाइन निकालने में जंगलों को काटना पड़ता ।
      दो  किलोमीटर पैदल चलने के बाद हम मंदिर के प्रांगण में थे । धर्म का कारोबार चरम पर था । एक संयोग रहा है कि मैं पहली बार वैष्णो देवी 1991 में दूसरी बार 2001 में और अब 2012 में आ रहा था हर बार मंदिर में परिवर्तन और कुछ नहीं नई मूर्तियां दिखती, मंदिर लगातार भव्य हो रहा है, भगवान के पैसा भी खूब आ रहा है । भगवान को रूप बदलते देखना अच्छा लगता है । आखिर वो भक्तों की परीक्षा ना ले तो भक्त उसे  भगवान क्यों माने । पिछले बीस  सालों में वैष्णो देवी उत्तर भारत में धार्मिक पर्यटन के बड़े क्षेत्र के रूप में उभरा है उसमें कुछ फिल्मों और टी सीरीज कैसेट  कंपनी के मालिक स्व. गुलशन कुमार का बड़ा हाथ है । मैं तो निरपेक्ष रूप से धर्म के इस  मर्म को समझ रहा था जहां कहीं घोड़े वाला ठग रहा है कहीं बैटरी टैक्सी वाला ,प्रसाद के नाम पर सब जय माता दी  के नाम पर,सुरक्षा के नाम पर डर भगवान के दरबार में जहां सब बराबर हैं वहां वी आई पी दर्शन भी था । हमने फटाफट दर्शन किये और पैदल लौटने का फैसला किया गया क्योंकि शाम हो गई थी और हेलीकॉप्टर रात में नहीं चलते । उस दिन रात में  दो  बजे राजौरी पहुंचे सन्नाटे में परवेज ने बताया कि आज से पाँच साल पहले रात में तो क्या शाम के बाद इस सड़क पर निकलना असंभव था पर अब हालात एकदम सामान्य हैं ।
         अगले दिन हम सो ही रहे थे तभी मुझे लगा कि कोई मुझे आवाज दे रहा है सुबह के सात  बजे थे पता चला सौगत बकरीद होने के कारण नमाज की तैयारियों का जायजा सुबह से ही ले रहे थे उसी कड़ी में हमारे गेस्ट हाउस आ गए । मुझे आदेश मिला कि हम जल्दी तैयार हो जाएं घर चलना है हम सभी ने आदेश का पालन किया । थोड़ी देर में एक सरप्राइज़ हमारे लिए था जो मेरे लिए अप्रत्याशित था । मैं यह मान कर चल रहा था कि आज बकरीद होने के कारण स्वागत की व्यस्तता ज्यादा रहेगी पर सौगत नें सुबह सुबह सब व्यवस्था का जायजा लेकर पूरा दिन हमारे साथ बिताने का फैसला किया । आज कहीं नहीं जाना सामने लॉन में चटाई बिछ गई और सोफे लग गए परिवार का हर सदस्य अपने-अपने समूह के साथ बैठ गए । पहले क्रिकेट और बैडमिंटन हुआ फिर गाना बजाना । हम और सौगत इन सबसे दूर गुफ्तगू में व्यस्त हो गए कुछ पुराने किस्से कुछ नई कहानी और बीच में हम सब की जिंदगानी और इन सब में दोपहर होने को आयी । समय कैसे पंख लगा के उड़ा पता ही नहीं चला । बीच में सौगत ने कैमरे पर अपना कमाल दिखाया आज से दस साल पहले खींचे उसके कुछ फोटोग्राफ आज भी मेरे घर की शोभा बढ़ा रहे हैं । एक बार फिर उसने कुछ कमाल की तस्वीरें निकाली ।
      अचानक उसने कहा आज का लंच कुछ अलग तरीके से किया  जाए और फिर क्या था घर में लगे केले के पत्ते काटे जाने लगे उनको धोकर एक शानदार लंच का इंतजाम किया गया । केले पर मछली और चावल इसके अलावा कुछ और  मांसाहारी व्यंजन और भी थे । मैंने मछली पर ध्यान केंद्रित किया क्योंकि ट्राउट लखनऊ में तो मिलने से रही इस गरीब मास्टर को । सौगत के घर से एक पहाड़ी पर मुझे एक किला पिछले दो दिनों से दिख रहा था । मैंने कहा,वहां क्या है? सौगत ने पूछा,चलेगा क्या ? मैंने कहा, हाँ । बस फिर क्या, थोड़ी देर में लश्कर तैयार डी.सी.साहब की गाड़ी चल पड़ी दो  किलोमीटर की ऊंचाई पर । वह किला पुराना था पर अब वहां सेना का कब्जा है और खरगोशों की पूरी कॉलोनी बसी हुई थी कुछ छोटे, कुछ बड़े और कुछ एकदम बच्चे, रात घिर रही थी राजौरी बिजली में जगमग कर रहा था हवा ठंडी थी सूरज डूब रहा था मेरा मन भारी हो रहा था कल मुझे अपनी दुनिया में लौटना है आज की रात राजौरी की आखरी रात थी पर मुझे लगता है जैसे जैसे उम्र बढ़ रही है मैं जिंदगी के प्रति निर्मम होता जा रहा हूं । यह सब कुछ तो सपने जैसा लग रहा है अब वापस लौटने का वक़्त था । रात को  खाने पर मेरी खास पसंद पर मटन बना था जो जरूरत से ज्यादा स्वादिष्ट था । मैं पिछले पाँच दिन से लगातार मांसाहार कर रहा था । भारत में भ्रमण के दौरान ऐसा पहली बार हुआ था । हम आखरी बार खाने की टेबल पर साथ -साथ बैठे शायद पहली बार मैंने सौगत को थोड़ी देर के लिए जज्बाती होते देखा सौगत इस मामले में एकदम अलग है वह अपनी भावनाएं कभी नहीं दिखाता वह क्या सोच रहा है कोई नहीं जान सकता खाने के बाद उसने फिर रोक लिया हम इधर उधर की बातें करने लग गए । मैंने औपचारिकता वश उसे शुक्रिया कहा तो उसने मुझे झिड़कते हुए कहा इस सबकी मुझे जरूरत नहीं अगले दिन हम भारत पाकिस्तान सीमा पर जाने वाले थे उसके बाद वहीं से जम्मू के लिए निकलना था जहां से मुझे लखनऊ लौटना था सौगत से स्टेशन पर मिलने की उम्मीद थी क्योंकि वह भी उसी दिन दिल्ली जा रहा था ।
भारतीय रेल के जून 2021 अंक में प्रकाशित 

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सौगत और मैं राजौरी यात्रा चतुर्थ भाग(यात्रा संस्मरण)

डी के जी की झोपडियां 

पच्चीस अक्टूबर को हम राजौरी को एक्सप्लोर करने निकल पड़े पहला पड़ाव था राजौरी से तीस किलोमीटर दूर बाबा गुलाम शाह की दरगाह इन्हीं संत के नाम पर अभी राजौरी में एक विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी है |अब असली जम्मू कश्मीर देखने की बारी थी पहाड़ों के चक्कर लगते हुए हम कई गाँवों से गुजर रहे थे कई जगह सेब बिकते देखे सोचा खरीदा जाए भाव सुनकर खुशी का परवार ना रहा बीस रुपये किलो ,सीढीदार खेत मक्के की कटाई हो चुकी थी उनको सूखने के लिए खेतों में ही ढेर बना कर छोड़ दिया गया है मक्का और दूध बहुतायत में उपलव्ध है भूमिहीन किसानों की संख्या नगण्य है |मजदूर बहुत महेंगे है |मनरेगा का असर और काम दोनों दिख रहा था पहाड़ों से निकालने वाले चश्मे आस पास के दृश्यों  की सुंदरता में चार चाँद लगा रहे थे|चश्मे प्राकृतिक पानी के ऐसे स्रोत हैं जो पहाड़ों से निकलते हैं | पानी को बर्बादी से बचाने  के लिए जगह जगह नालियां बना दी गयीं जिससे लोग पानी का इस्तेमाल पीने और  खेतों के लिए करते हैं |परवेज बता रहे थे कि कैसे आतंकवाद के दिनों में इन रास्तों में शाम तो क्या दिन में भी लोग नहीं गुजरते थे रास्ते के कई हिस्से एनकाउंटर की खौफनाक कहानियों  के गवाह रह चुके थे पर अब सब शान्ति है खुदा करे ये शांति बनी रहे|दो घंटे के सफर के बाद हम दरगाह पहुँच चुके थे|
कितनी खूबसूरत तस्वीर है ये  कश्मीर है 
ऊँचाई पर बनी दरगाह लगभग २५० साल पुरानी है जहाँ चौबीस घंटे लंगर चलता है जिसमें चावल दाल और मक्के की रोटी प्रसाद में मिलती है हमने पहले दरगाह में सजदा किया और चादर चढ़ाई सबकुछ व्यवस्थित और शांत दरगाह का प्रबंधन सरकार द्वारा स्थापित ट्रस्ट करता है जो भी चढावा आता है उसकी बाकायदा नाम पते के साथ रसीद दी जाती है एक खास बात ये थी कि इस दरगाह पर सभी मजहब के लोग आते हैं जिनकी मन्नत पूरी हो जाती हैं उनमें कुछ मुर्गे और पशु भी चढाते हैं पर उन पशुओं का वध दरगाह परिसर में नहीं किया जाता है उन्हें जरूरतमंदों को दे दिया जाता है|दरगाह के लंगर में सिर्फ शाकाहारी भोजन ही मिलता है यहीं नमकीन कश्मीरी चाय भी पीने को मिली |दरगाह पर भीड़ तो थी पर वो परेशांन करने वाले नहीं थी|
दरगाह में दो घंटे बिताने के बाद हम चल पड़े पर्यटक स्थल डी के जी देखने इसका फुलफॉर्म भूल रहा हूँ पर दरगाह से एक घंटे की यात्रा के बाद हम यहाँ पहुंचे क्या नज़ारे थे इस जगह पर हमारे सिवा कोई नहीं था सिर्फ बर्फ से ढंके पहाड जो पाक अधिकृत कश्मीर में थे ठंडी हवा हालाँकि धूप तेज थी पर ठण्ड थी एक पहाड़ी पर कुछ लकड़ी की झोपडियां बनाई गयी हैं जिनको गरम रखने के लिए सोलर एनर्जी का इस्तेमाल किया जाता है जिससे पर्यावरण को नुक्सान ना पहुंचे इसी पहाड़ी के समीप एक व्यू पॉइंट बनाया गया है जहाँ से पूरे राजौरी का नजारा लिया जा सकता है|हमारे पीछे पूँछ शहर दिख रहा था और उसके पार पाक अधिकृत कश्मीर सब कुछ एक था पर बीच में नियंत्रण रेखा भारत और पाकिस्तान को अलग अलग कर रही थी|
दूर दिखता पुंछ शहर बीच में बहती चिनाव नदी 
कश्मीरी  बंजारों का कैम्प 
दिन के भोजन की व्यवस्था यहीं की गयी थी|भुना चिकन खाने के बाद एक लड्डू जैसा मांस का व्यंजन परोसा गया जो भेंड के मांस  से बना था जिसे रिस्ता कहते हैं खाने में बहुत स्वादिष्ट था |चूँकि मैं बहुत कम खा पाता हूँ मैं एक से ज्यादा नहीं खा पाया |मुझे बताया गया कि यह कश्मीरी दस्तरख्वान का हिस्सा है जिमें भेंड के मांस को लकड़ी के बर्तन में गुंथा जाता है फिर दही के साथ पकाया जाता है|आतंकवाद प्रभावित इलाका होने के कारण पर्यटक यहाँ नहीं आते पर अब शांति हो जाने के बाद राजौरी में बहुत सारी ऐसी जगहें जो एकदम अनछुई हैं| ऐसे में मेरे जैसे इंसान के लिए जो भीड़ भाड़ कम पसंद करता है उसके लिए ऐसी जगहें जन्नत से कम नहीं हैं|खाना खा कर हम वहीं घूमें फोटोग्राफी की शांति इतनी की हम अपनी साँसों की आवाज़ को सुन सकते थे|शाम हो रही थी अब लौटने का वक्त रास्ते में दिखते चीड के पेड़ों पर जब सूर्य की किरणें पड़ती तो वो हरे पेड भी सुनहली आभा देते और बगल में बहने वाले पानी के चश्मे चांदी जैसे चमकते बहुत सी किताबों में इस तरह के द्रश्यों के बारे में पढ़ा था पर अपनी आँखों से प्रकृति के सोना चांदी को पहली बार देखा रहा था|लौटते वक्त परवेज ने बताया कि इन गावों में रहने वाले काफी लोग मध्यपूर्व के देशों में बेहतर जीवन की तलाश में चले गए हैं उनके भेजे हुए पैसों से गाँव के घरों में छत टिन की बनने लग गयी है मिट्टी या सीमेंट की छत बर्फबारी में घर की रक्षा नहीं कर पाती और ये टिन की छतों वाले घर सूर्य की किरणों से ऐसे चमक रहे थे जैसे पहाड पर अनगिनत शीशे रख दिए गए हों|
एक फोटो मेरी भी 
जगह जगह श्रीनगर से लौटते बंजारों के भेड़ बकरियों का झुण्ड हमारा रास्ता रोक रहा था जो सर्दियों में राजौरी जैसी जगहों पर लौट आते हैं और गर्मियों में फिर श्रीनगर का रुख कर देते हैं|धन के नाम पर इनके पास भेंड,बकरियां और घोड़े ही होते हैं जिनसे इनका जीवन चलता है ये सारा साल पैदल ही घूमते हैं|वापस लौटते समय मैं साथ बहती नदी में जाने से अपने आपको रोक नहीं पाया कुछ बंजारों का कैम्प लगा था और वे शाम के भोजन की व्यवस्था में लगे थे|पुरुष सुस्ता रहे थे महिलाएं चूल्हों पर रोटियां सेंक रही थी मैंने नदी में हाथ डाला बर्फ से भी ठंडा पानी था जो पहाड़ों पर जमी बर्फ के पिघलने से आ रहा था ये पानी गर्मियों में भी इतना ही ठंडा रहता है ऐसा मुझे बताया गया|सबको आगे भेजकर मैं आस पास के लोगों से बात करने लगा|पास ही एक दूकान थी जहाँ का दुकानदार आतंकवाद से प्रभावित रह चुका था|मेरे हाथ में कैमरा देखकर उसने बहुत खुलकर मुझसे बात नहीं की पर उसने बताया कि वो एस पी ओ (जम्मू कश्मीर सरकार का एक आतंकवाद विरोधी कार्यक्रम जिसमे सरकार लोगों को शस्त्र और मासिक तनख्वाह देती है )रह चुका था पर सरकार पैसे समय पर नहीं देती थी और जो पैसे मिलते वो भी बहुत कम थे इसलिए उसने किराने की दूकान खोल ली|हाँ एक बात जो मुझे अच्छी लगी वो नए  डी सी (जम्मू कश्मीर में डी एम् को डी सी कहते हैं )के जनता दरबार से खुश था वो रेड डालते हैं और तुरंत कार्यवाही करते हैं |उसे बिलकुल नहीं पता था कि मैं डी सी का दोस्त हूँ |शाम हो चुकी थी और हम वापस राजौरी में थे सौगत ने मुझे अपने ऑफिस बुला लिया जो उसके बंगले के ठीक सामने है वहां लोगों का जमावड़ा था वो काम भी कर रहा था और मुझसे बात भी करता जा रहा है |धीरे धीरे लोगों का जमावड़ा खत्म हुआ लेकिन उसको कुछ फाइलें अभी और भी निपटानी थी मैंने कहा आप काम करते चलें मैं इसी का आनंद उठा रहा हूँ |आखिरकार हमने घर का रुख किया जहाँ ठण्ड और हीटर के बीच दो परिवार जमा हुए और गप्पें मारने का एक और दौर शुरू हुआ|खाने में प्रसिद्ध ट्राउट मछली और चिकन था|ट्राउट का नाम डिस्कवरी पर खूब सुना था पर खाने का सौभाग्य पहली बार मिल रहा था|इधर उधर की बातें करते रात के ग्यारह बज गए और राजौरी में मेरा एक दिन औरखत्म  हुआ |
जारी है .......................














भारतीय रेल के जून 2021 अंक में प्रकाशित 

सौगत और मैं राजौरी यात्रा तृतीय भाग (यात्रा संस्मरण)


चिंगस 
जंगल बचे इंसानी लाशों की कीमत पर , ये भी विकास का एक पहलू था |रास्ता मन मोह लेने वाला था सम्पूर्ण शांति का एहसास आप कर सकते थे राजौरी से लगभग तीस किलोमीटर पहले एक चिंगस नाम की जगह ,चिंगस के बारे में बताने से पहले आपको बता दूँ राजौरी का यह इलाका उस रास्ते का हिस्सा है जिस रास्ते से मुग़ल शासक गर्मियों में कश्मीर घाटी जाते थे |मुगलों के द्वारा बनवाई गयी सरायों के अवशेष आज भी मिलते हैं मैंने भी ऐसी दो सरायें देखीं पर अब उन जगहों पर भारतीय सेना का कब्ज़ा है जहाँ किसी आम आदमी के लिए जाना उतना आसान नहीं है चूँकि सेना का मामला था इसलिए मैंने अपना कैमरा नहीं निकाला|थोड़ी दूर चलने पर चिंगस नाम की वो सराय आ गयी जिसे मुग़ल बादशाह अकबर ने बनवाया था.आज ये मुख्य सड़क से सटा एक वीरान इलाका है जहाँ मुग़ल बादशाह जहाँगीर के शरीर का कुछ हिस्सा दफ़न है|

चिंगस को फारसी भाषा में आंत कहते हैं किस्सा कुछ यूँ है कि मुग़ल बादशाह जहाँगीर अपनी बेगम नूरजहाँ के साथ अपने वार्षिक प्रवास के बाद कश्मीर से अपनी सल्तनत की ओर लौट रहे थे |
चिंगस :यहीं जहाँगीर की आंतें दफ़न हैं 
चिंगस सराय 
 चिंगस में उनकी तबियत खराब हुई और उनकी मौत हो गयी|उत्तराधिकार के संघर्ष को टालने के लिए नूरजहाँ इस बात का पता आगरा  पहुँचने से पहले सार्वजनिक नहीं करना चाहती थी|शरीर के वो हिस्से जो मौत के बाद सबसे जल्दी सड़ते हैं उन अंगों को इसी जगह काटकर निकल दिया गया और उनको यहीं दफना दिया गया जिसमें जहाँगीर की आंत भी शामिल थी|आंत और पेट के अंदरूनी हिस्से को निकाल कर उसके शरीर को सिल कर इस तरह रखा गया कि आगरा पहुँचने से पहले किसी को भी इस बात का आभास् नहीं हुआ कि जहाँगीर मर चुके हैं| इस तरह उसकी आँतों को जहाँ दफनाया गया वो चिंगस के नाम से प्रसिद्ध हो गया|यहाँ जहाँगीर की आँतों की कब्र आज भी सुरक्षित है लेकिन यहाँ एकदम सन्नाटा पसरा था लगता है यहाँ ज्यादा लोगों का आना जाना नहीं है हालांकि जम्मू कश्मीर पुरातत्व विभाग के लगे बोर्ड इस बात की गवाही दे रहे थे कि सरकार के लिए यह स्थल महत्वपूर्ण है|मैंने अपने कैमरे का यहाँ बखूबी इस्तेमाल किया|अब राजौरी करीब था हम भी थक चुके थे लखनऊ छोड़े हुए करीब चौबीस घंटे होने को आ रहे थे |शाम के पांच बजे हमने राजौरी में प्रवेश किया शांत कस्बाई रंगत वाला शहर जहाँ अभी विकास का कीड़ा नहीं लगा था और ना लोग प्रगति के पीछे पागल थे|जहाँ हमारे रुकने की व्यवस्था की गई थी वो एक सरकारी गेस्ट हाउस था पर उसके कमरे को देखकर लग रहा था जैसे कोई शानदार होटल हो खैर सुबह के बाद से हमारी सौगत से कोई बात नहीं हुई थी हमें ये बताया गया कि साहब बाहर हैं शाम को लौटेंगे|शाम हो चली थी हमने एक बार फिर गरम पानी से नहा कर थकान को कम करने की कोशिश की पर नहाने के बाद पता  पड़ा यहाँ ठंडक का मामला गंभीर था लखनऊ के मुकाबले |अँधेरा घिर आया था मैं समय काटने के लिए नीचे उतर कर गेस्ट हाउस के लॉन में चहलकदमी शुरू करने लग गया |राजौरी अंधरे में डूब रहा था पहाड़ों पर रौशनियाँ जगमगाने लगी थीं|अचानक एक शोर सा उठा साहब आ गए साहब आ गए मैंने गेट पर नजर डाली मुझसे दौ सौ मीटर की दूरी पर एक लाल बत्ती वाली  सफ़ेद इनोवा हमारी तरफ आ रही थी जिसके अंदर सौगत बैठे हुए थे गाड़ी कुछ पलों में मेरे सामने आकर रुकी वो पल मेरे जीवन के कुछ रोमांचक पलों में से एक बन गया सौगत के साथ बिताए गए वो सारे साल  फ्लैश बैक में मेरी आँखों के आगे घूम गए|
राजौरी की शाम 
पुरानी यादें :मैं और सौगत उपराष्ट्रपति के कार्यक्रम में हैलीपेड पर 
           मुझे याद आया 2002 में पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर में एक बार उप राष्ट्रपति स्व. भैरव सिंह शेखावत दीक्षांत समारोह में आये थे| हैलीपेड से विश्वविद्यालय तक के डेढ़ किलोमीटर के फासले में उनकी फ्लीट में सबसे अंत में एक गाड़ी चल रही थी जो उनकी अधिकारिक फ्लीट का हिस्सा नहीं थी और उस गाड़ी में दो मास्टर बैठे थे एक उस सारे घटनाक्रम का वीडियो बना रहा था दूसरा मीडिया कर्मियों को ब्रीफिंग के लिए आवशयक घटनाओं को कलमबद्ध कर रहा था मसलन किन लोगों ने पुष्पगुच्छ दिए कौन हैलीपेड पर आगवानी के लिए आया वो दो मास्टर मैं और सौगत थे उन फर्राटा भरती गाड़ियों का एक  हिस्सा बन कर इतनी खुशी हुई थी कि उस पूरे वाकये को बाकी के मास्टरों को नमक मिर्च लगा कर कई दिन तक सुनाया गया (हम दोनों मीडिया में अपने अपने क्षेत्रों में विशेज्ञता के कारण कुलपतियों के सीधे संपर्क में रहा करते थे जो और शिक्षकों के लिए ईर्ष्या का विषय रहा करता था कम से कम मुझे ऐसा लगता था ) क्योंकि इस मौके पर पूरे विश्वविद्यालय से मात्र दो ही लोग हैलीपेड पर जाने का सौभाग्य प्राप्त कर पाए थे| और आज सौगत खुद उस नायकत्व की स्थिति में था जहाँ एक पुलिस जिप्सी उसकी गाड़ी को सुरक्षा दे रही थी| वैसे भी राजौरी एक संवेदनशील जिला था इसलिए सुरक्षा हो सकता है आप लोगों को ये कोई बड़ी बात ना लगे पर मैं तो पलों में सदियाँ जी रहा था|मैंने उसको परिस्थितियों से लड़ते देखा था जूझते देखा था क्योंकि जब भी हम कोई काम प्लान करते थे उसमें कुछ ना कुछ गडबड जरुर आती थी पर काम हो जाता था| चलिए वापस लौटते हैं उस जगह जहाँ मैं सौगत से पांच साल बाद मिल रहा था |  मैं गाड़ी के पास पहुंचा उस समय मेरे स्थिति विचित्र थी जिसे शब्दों में वर्णन करना मुश्किल है मैं समझ नहीं पा रहा था कि मैं उससे कैसे मिलूँगा मैं अपनों से हाथ नहीं मिलाता और सौगत भी बिलकुल  औपचारिक नहीं था हमने आज तक कभी हाथ नहीं मिलाया क्यूंकि जब दिल मिल गया फिर हाथ मिलाने की क्या जरुरत है |
सौगत 
          गले लगने का विकल्प जोखिम भरा लग रहा था वहां उसके बहुत मातहत थे वे पता नहीं इस मिलन को किस तरह से देखें मैं इन्हीं विचारों में झूल रहा था कि सौगत बाहर निकला दो चार लोगों को कुछ निर्देश देने के बाद सीधे मेरी तरफ मुखातिब और बे कहकर गले लगा लिया चल ऊपर चल यहाँ कहाँ घूम रहा है |मतलब हम लोगों के बीच कुछ भी नहीं बदला था वो दोस्त भी क्या जो तमीज से बात करे ,हा हा |
थोड़ी देर में हम कमरे में बैठे थे दस मिनट के बाद निर्णय लिया गया कि यहाँ नहीं मजा आ रहा है ,घर चला जाए चूँकि मैं अपने परिवार के साथ गया था इसलिए ये दो परिवारों का पुनर्मिलन हो रहा था|किस्से, बातें,कहानियां भूले बिसरे लोग उनसे जुडी यादें पर मैं ठण्ड से ठिठुर रहा था जबकि ये अक्टूबर की शुरुवात थी और कमरे में और  बाहर हर जगह हीटर की व्यवस्था थी|भाभी से सौगत का स्वेटर लेकर पहना तब जाकर चैन पड़ा जबकि पहले से मैंने एक ऊनी इनर पहन रखा था अगले चार दिन मैंने सौगत के उस स्वेटर का खूब शोषण किया| हम रात के बारह बजे वापस अपने सुइट पहुंचे (कमरा कहना उस जगह की बेइज्जती होगी)
जारी है .......................


भारतीय रेल के जून 2021 अंक में प्रकाशित 

सौगत और मैं राजौरी यात्रा द्वितीय भाग(यात्रा संस्मरण)


मंसूरी की वो शाम 

हम देर रात तक मंसूरी के सड़कों पर घूमें और देश के भावी प्रशासनिक अधिकारीयों के मन टटोले और जून के महीने में सर्दी से ठिठुरे क्योंकि रजाई एक ही थी ऐसा ही सौगत बिस्वास फिर मैं अपनी जिंदगी में रम गया बीच में एक बार छोटी सी मुलाक़ात हुई थी दिल्ली में जब मैं इटली जा रहा था सौभाग्य से सौगत उस वक्त दिल्ली में था उसके बाद से गोमती में बहुत सा पानी बह गया उसकी पोस्टिंग बदलती रहीं और हम कभी कभार फोन पर बात कर लिया करते थे एक बार यूँ ही सौगत ने एक प्रस्ताव रखा था कि चल हम लोग स्लीपर में भारत भ्रमण पर निकलते हैं बगैर किसी प्लानिंग के ये उसकी पोस्टिंग के शुरुवाती दिन थे उसके बाद वो भी व्यस्त होता गया और मैं बगैर किसी व्यस्तता के व्यस्त इंडिया टुडे ने जब मेरे ऊपर एक स्टोरी के लिए किसी एक ऐसे शख्स का नाम माँगा तो मुझे सिर्फ उसका नाम सूझा धर्म संबंधी मेरे विचारों में सबसे बड़ा परिवर्तन उसके पिता जी की किताबों को पढकर आया जिन्होंने मेरे जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया शायद पहली बार मैंने किसी समस्या को मानवीय नजरिये से देखा ना हिंदू ना मुसलमान सिर्फ इंसान, तो बस ऐसे ही एक ही दिन मैंने फैसला किया मुझे सौगत से मिलने जाना है ना कोई काम था ना घूमने की इच्छा बस आमने सामने बैठकर गप्प लड़ाने का मन.राजौरी के लिए ट्रेन जम्मू तक ही जाती है वहां से लगभग 165 किमी दूर सडक से ही पहुंचा जा सकता है हालंकि राजौरी में एअरपोर्ट है पर वहां से से नियमित उड़ान का कोई सिलिसला नहीं है वो एअरपोर्ट ज्यादातर भारतीय सेना या मंत्रियों के हेलीकॉप्टर के काम ही आता है |

आतंकवाद के दिनों में राजौरी भी उन जिलों में से एक था जो आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित थे |अब समस्या ट्रेन के टिकट की थी मैंने दो दिन के टिकट बुक किये पर जाने के दिन आते आते मुझे लगा कि वो कन्फर्म नहीं हो पायेंगे आख़िरकार फिर उसी चीज का इस्तेमाल करना पड़ा जिसके बिना हिन्दुस्तान में कोई काम संभव नहीं होता यानि जुगाड एक ट्रैवल एजेंट से बात हुई तत्काल में उसने टिकट दिलवा दिया और हम चल पड़े सौगत से मिलने पांच साल बाद हम एक दूसरे को साक्षात देखने वाले थे |मैंने सौगत को फोन करके बता दिया कि मैं आ रहा हूँ उसने बगैर किसी उत्साह के स्वागत किया हालंकि ये उसका स्वभाव है जो मैं अच्छे तरीके से जानता हूँ फिर भी दिल में एक चोर था पहले हम साथ काम करते थे हमारे सुख दुःख साझे थे पर अब वो राजौरी का जिलाधिकारी था और मैं एक मास्टर,पता नहीं कैसे मिलेगा समय दे भी पायेगा या नहीं एक जिलाधिकारी और एक मास्टर की जुगलबंदी अब जमेगी भी या नहीं संशय तो था ही फिर मेरे पास और कोई प्रयोजन भी नहीं था कि हम तो फलां काम से जा रहे हैं मिल लिया तो ठीक है नहीं तो अपना काम करेंगे और घर लौट जायेंगे हमें तो ये भी पता नहीं था कि राजौरी जगह कैसी है बस ख़बरों में ही सुना था शायद इसीलिये मैं ज्यादा उनी कपडे नहीं ले जा रहा था सोचा जम्मू जैसा ही होगा जब जम्मू में ज्यादा ठण्ड नहीं पड़ती तो राजौरी भी ऐसा ही होगा पर हुआ इसका उल्टा राजौरी में अच्छी ठण्ड थी |मैं एक बार अगर राजौरी के भूगोल के बारे में गूगल ही कर लेता तो कुछ समस्या से बच सकता था पर हम तो निकल पड़े बस सौगत से मिलना है|ट्रेन समय से निकल पडी पन्द्रह घंटे के सफर के बाद हम जम्मू पहुँच जाने वाले थे सुबह हमारे पहुँचने से पहले सौगत का फोन आ गया था  कि आपको लेने के लिए लोग वहां हैं आप निश्चिन्त रहें जैसे ही ट्रेन रुकी दो लोग सीधे हमारे पास आये और हमारा सामान सम्हाल लिया जीवन में पहली बार खास होने का एहसास हुआ हम सीधे वी वी आई पी पार्किंग में पहुंचे जहाँ एक शानदार गाड़ी हमारे लिए आरक्षित थी और हम चल पड़े अभी हमें लंबा रास्ता तय करना |

सुरक्षाधिकारी परवेज और ड्राईवर रशीद अगले चार दिन तक हमारे साथ साये की तरह रहने वाले थे हमें इसका कोई अंदाज़ा नहीं था दिन के दो बज तक हम  अखनूर पार कर चुके थे और उसके बाद राजौरी जिला शुरू हुआ सुंदरबनी के पी डबल्यू डी गेस्ट हाउस में दोपहर के भोजन की व्यवस्था थी खूबसूरत कमरा था जहाँ मैंने स्नान किया और भोजन पर टूट पड़े पता नहीं सौगत को मेरे मांसाहारी भोजन के लगाव की बात याद थी या ये सिर्फ एक संयोग था कि अगले चार दिन मुझे सिर्फ मांसाहारी भोजन परोसा गया जिसकी शुरुवात सुंदरबनी से हो रही थी चिकन चावल और नरम नरम रोटी फिर एक गरम चाय |हम तरोताजा  होकर फिर निकल पड़े अब रास्ता में सन्नाटा बढ़ रहा था जंगल घने हो रहे थे और एक पहाड़ी नदी लगातार हमारे साथ चल रही थी जिसका कोई नाम मुझे परवेज और रशीद बता नहीं पाए वो बोले ये जिस जगह से गुजरती है|
परवेज और रशीद 
 उस जगह का नाम नदी को दे दिया जाता है मैं जंगल और हरियाली में खो गया हम जगह जगह गाड़ी रोक कर फोटोग्राफी भी कर ले रहे थे पर मैंने अपने जीवन में इतनी शुद्ध और अच्छी हवा कहीं नहीं महसूस की थी मैं खूब लंबी लंबी साँसे ले रहा था |हम नौशेरा से गुजर रहे थे आर्मी के ट्रकों का आना जाना लगा था उसके बाद तीथवाल पड़ा 1947-48 मे यहाँ पाकिस्तानी कबाइलों ने यहाँ घुसपैठ कर ली थी मैंने इतिहास में पढ़ा था और आज देख रहा था इतिहास को जीना अच्छा लग रहा था |
 परवेज कहीं से पुलिस वाले नहीं लग रहे थे मैंने कहा भी कि यू पी में ऐसे पुलिस वाले क्यूँ नहीं हैं तो वो मुस्कुरा दिए पुलिस में होने की उन्होंने बड़ी कीमत चुकाई है जिसका पता मुझे बाद में पता चला उनके सगे छोटे भाई को आतंकवादियों ने मार दिया था |रास्ता लंबा था तो मैंने मिलिटेंसी के दौर की बात शुरू कर दी उस दर्द को शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है और जब जब मैंने जिस किसी से आतंकवाद के उस दौर की बात की तो लगा जैसे वे तटस्थ हो चुके हैं इतना कुछ झेलने के बाद  सुख दुख राग द्वेष सबसे बस ये जवाब हर बार मिला हम तो दोनों तरफ से मारे जा रहे थे मिलीटेंट को खाना ना दो तो वो मार देते थे और दे दो तो आर्मी |
राजौरी के रास्ते में 
 बातों बातों में आतंकवाद का  एक सकारात्मक पहलू एक चायवाले ने बताया कि हमारे जंगल अंधाधुंध काटने से बच गए नहीं तो इतनी हरियाली ना दिखती मेरे कैसे पूछने पर बड़ा मजेदार उत्तर मिला होता यूँ था कि पाकिस्तान से आये आतंकवादी जंगलों में पनाह लेतेथे दिन में अगर कोई लकड़ी काटने वाला जंगल में जाता तो उसे मार पीटकर जंगल से भगा देते थे जिससे सेना या पुलिस को उनकी छुपने की जगह का पता नहीं चलता था |इस तरह उन लोगों ने इतना दहशत का माहौल बना दिया कि लोग जंगलों में जाते ही नहीं थे जिससे अवैध कटाई पर पूरी तरह रोक लग गयी|

भारतीय रेल के जून 2021 अंक में प्रकाशित 

टेंशन बहुत है यार

 

टेंशन बहुत है यार’ आपने भी ये जुमला सुना होगा और टेंशन को महसूस भी किया होगा. ये टेंशन बोले तो तनाव हम सब की जिन्दगी का हिस्सा है.कुछ कम या ज्यादा पर हम सब इसके मारे हैं.हम अपने जीवन से टेंशन को हमेशा के लिए खत्म  तो नहीं कर सकते हैं पर इसको कम  जरुर कर सकते हैं. अगर टेंशन को सकारात्मक तरीके से लेंगे तो जिंदगी में आगे बढ़ने के रास्ते यहीं से निकलेंगे.इस गला काट प्रतिस्पर्धा वाले समय में आप  मस्त होकर जीवन तो गुजार सकते हैं पर  जो बगैर चिंता किये जीवन गुजारते हैं वो जिंदगी में कम ही सफल हो पाते हैं. कैसे मैं आपको समझाता हूँ अब अगर पढ़ाई का टेंशन नहीं लेंगे तो परीक्षा वाले दिन और ज्यादा टेंशन होगा कि काश रोज थोड़ी पढ़ाई करते तो परीक्षा वाली रात कयामत की रात न होती .यानि रोज पढ़ कर हम परीक्षा  की टेंशन को खत्म तो नहीं कर सकते पर कम जरुर कर सकते हैं.वैसे हमारी प्रगति में टेंशन का बड़ा योगदान  है इस दुनिया से लेकर अपने करियर तक आप हर जगह इस टेंशन को पायेंगे.

आपने गौर किया होगा कि जब काम हमारे हिसाब से नहीं होता तब हमें टेंशन होती है और तब हम चीजें बेहतर करने की कोशिश करते हैं. जो लोग टेंशन से हार मानकर हथियार डाल देते हैं वो जीवन में कुछ ख़ास नहीं कर पाते और जो टेंशन से लड़ते हैं वो बड़े लीडर या आविष्कारक बन जाते हैं.जिन्हें दुनिया पहचानती है.न्यूटन ने जब सेब को जमीन पर गिरते देखा तो ये सोचा कि ये जमीन पर क्यूँ गिरा ये ऊपर आसमान में क्यूँ नहीं गया और इस टेंशन में उन्होंने धरती का गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत खोज निकाला.पर अगर आप सिर्फ टेंशन ले रहे हैं और काम नहीं कर रहे हैं तो समझ लीजिये आप मुश्किल में  हैं.काम का ज़िक्र करना और ज़िक्र का फ़िक्र करना अपने आप में एक समस्या  है और ऐसे ही लोग अक्सर ये बोलते सुने जाते हैं बड़ी टेंशन है यार,टेंशन सभी को है पर उसका जिक्र सबसे करके क्या फायदा तो टेंशन के टशन का दूसरा सबक है. अगर तनाव आपको बहुत ज्यादा है तो उसका जिक्र उन लोगों से कीजिये जो आपके अपने हैं और ऐसे ही लोग आपको टेंशन से निकाल पायेंगे पर ध्यान रहे आपको उन पर भरोसा करना पड़ेगा.

टेंशन एक स्टेट आफ माईंड है पर जिसे आप मैनेज कर सकते हैं,जब आप किसी मसले पर ज्यादा देर तक चिंता के साथ सोचते हैं तो वो टेंशन हो जाता है  पर इसे जरुरत से ज्यादा मत बढ़ने दीजिये और समय रहते इसका मैनेजमेंट कीजिये.टेंशन को मैनेज करने का हर इंसान का अपना एक अलग तरीका होता है.कोई गाने सुनता है तो कोई लॉन्ग ड्राइव पर निकल जाता है तो आपको जब लगे कि तनाव ज्यादा ज्यादा बढ़ रहा है तो वो आम करें जो आपको पसंद हो फिर देखिये कि कैसे आपका सारा टेंशन छू मंतर हो जाएगा.जैसे खाने में स्वाद बढाने के लिए मसालों  का इस्तेमाल होता है वैसे ही जिन्दगी का असली मजा तो तभी है जब उसमें थोडा बहुत मसाला हो.भाई जब चैलेंजेस होंगे तो टेंशन भी होगा सीधी सपाट लाईफ कभी आपने किसी की देखी है भला.कुछ न कुछ तो सबके जीवन में होता है ये आपके ऊपर है क्यूंकि आज का ये दिन कल बन जाएगा कल तो पीछे मुड़ कर क्या देखना तो टेंशन को तार तार कीजिये.

प्रभात खबर में 13/07/2021 को प्रकाशित 

सौगत और मैं राजौरी यात्रा प्रथम भाग(यात्रा संस्मरण )


यात्राएं मुझे हमेशा सुकून देती हैं एक ऐसी ही  यात्रा पिछले दिनों हुई मैं बड़ा पेशोपेश में हूँ पहले उस व्यक्ति के बारे में बताऊँ जिसके लिए यात्रा की गयी या जगह के बारे में जहाँ यात्रा की गयी |मैं कोशिश करता हूँ कि आपको बारी बारी से दोनों का वर्णन मिलता रहे तो जम्मू कश्मीर के बारे में सबने सुना होगा खासकर  अपने नैसर्गिक प्राकृतिक सौंदर्य के कारण और  लंबे समय  तक आतंकवाद से पीड़ित राज्य के रूप में |जब जम्मू कश्मीर घूमने की बात  होती है तो दो चार जगह ही ध्यान में आती है एक वैष्णोदेवी और दूसरा श्रीनगर के आस पास का इलाका, एक आम मध्यमवर्गीय हिन्दुस्तानी होने के नाते मुझे भी कश्मीर के पर्यटक स्थलों के बारे में उतनी जानकारी नहीं थी| मैं दो बार जम्मू गया जा चुका था लेकिन वो बहुत साल पहले की बात है पर उसके आगे ना कभी सोचा और ना कभी मौका लगा पर पिछले पांच सालों से मैं लगातार वहां जाने के बारे में सोच रहा था पर मौका हाथ नहीं लग रहा था वहाँ जाने का कारण बहुत सीधा था अपने एक पुराने मित्र से मिलना जिससे एक दर्द का रिश्ता था सौगत नाम है उसका मैंने कभी उसके ऊपर एक पैरोडी भी बनाई थी हम होंगे कामयाब की तर्ज पर सौगत है बिस्वास पूरा है बिस्वास हा हा तो सौगत बिस्वास उनका पूरा नाम है| तो जम्मू कश्मीर जाने का प्रयोजन यूँ हुआ कि सौगत भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी (आई .ए. एस )हैं और जब से वे जम्मू कश्मीर पहुंचे तब से ना जाने कितनी बार आने को कह चुके थे वैसे भी सौगत से आख़िरी मुलाक़ात को लगभग पांच साल बीत चुके थे |
सौगत और मैं साल 2006 फरवरी 
  इस यात्रा पर निकालने से पहले मैं आप सबको अपनी और सौगत की कहानी बताना चाहता हूँ क्यूँ सौगत खास रहा मेरे लिए कुछ चीजें तो सौगत खुद नहीं जानता जो पहली बार इस ब्लॉग को पढ़ कर जानेगा तो पहले सौगत पुराण ,सौगत बिस्वास से मेरी मुलाक़ात 23 दिसंबर 1999 को पहली बार जौनपुर में हुई| मैं अपनी पहली नौकरी में नया नया था जाड़े के दिन एक लंबा लड़का हमारे विभाग के कमरे मे दाखिल हुआ और बोला  मैं यहाँ अपनी ज्वाईनिंग  देने आया हूँ चूँकि हमारा और सौगत का चयन एक साथ पूर्वांचल विश्वविद्यालय में हुआ था और मैं पहले कार्यभार ग्रहण कर चुका था तो मुझे सारी प्रक्रिया की जानकारी थी| मैंने उसकी मदद की और दिन भर साथ रहे अगले दिन से विश्वविद्यालय में जाड़े की छुट्टी हो जाने वाली थी और सौगत के पास रहने का कोई ठिकाना नहीं था मैं विश्वविद्यालय के अतिथि गृह में रह रहा था तो सौगत ने मुझे एक अनोखा ऑफर दिया कि  उस  रात मैं उसके साथ उस होटल में रुक जाऊं अगले दिन मुझे लखनऊ और उसे दिल्ली लौटना था| मैं थोडा हिचक रहा था अभी उसको जाने हुए मुझे ६ घंटे भी नहीं हुये और वो इतना बेतकल्लुफ हो रहा था वो मेरी हिचक को समझ गया पर जो जवाब उसने दिया वो अप्रत्याशित था ओए मैं दूसरे टाईप का आदमी नहीं हूँ तू रुक सकता है मेरे साथ हा हा खैर उस रात ना तो मुझे नींद पडी और ना ही सौगत सोया|दो कारण  एक तो वो जौनपुर का काफी घटिया होटल था  दूसरा हम दोनों उस शहर के लिए नए थे तो क्या सारी रात हम बातें करते रहें जामिया एम् सी आर सी का पढ़ा सौगत मुझे एक नयी दुनिया का लग रहा था विषय पर उसका अद्भुत ज्ञान था उस पर दिल्ली का एक्सपोजर अद्भुत कॉकटेल उस दिन से जो साथ शुरू हुआ वो आज तक जारी है| हम् नौकरियां भले ही बदल रहे थे पर एक दूसरे से संपर्क हमेशा बना रहा उसी रात उसने अपने एक सपने को मुझसे हल्का सा बांटा था कि वो आई ए एस बनना चाहता है और इसलिए वो दिल्ली को छोड़कर जौनपुर जैसी छोटी जगह नौकरी करने को तैयार हो गया|मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं कि मानसिक रूप से मैं अभी भी सौगत के सामने कॉलेज का बच्चा ही था जिसे बाहर की दुनिया और उसकी मक्कारी के बारे में ज्यादा पता नहीं था, वहीं सौगत संतुलित था उसके दिल में क्या चल रहा है कोई नहीं जान सकता और मैं क्या करूँगा सारा विश्वविद्यालय जानता था ऐसे शुरू हुआ नयी नौकरी का सफर बहुत से लोग वहाँ मिले सब ही नए थे पर जो मानसिक मेल सौगत और पंकज के साथ हुआ वो किसी और के साथ ना हो पाया (पंकज की कहानी फिर कभी ) और ये बात सारा विश्वविद्यालय जान गया कि मुकुल इन दोनों से आगे नहीं देखता |ये अलग बात है कि सौगत ने संतुलन बनाये रखा और  अपने आप को बाहर ऐसी किसी छवि में नहीं बाँधा शाम को अक्सर होने वाली परिचर्चा में सौगत और पंकज मुझे अक्सर ये समझाया करते थे कि सबसे मिला करो पर जब तक मैं जौनपुर में रहा ऐसा कर नहीं पाया जिसका साथ नहीं पसंद है उनके साथ मैं औपचारिक संबंध भी ठीक से नहीं निभा पाया पर जिंदगी जैसे जैसे आगे बढ़ी प्रोफेशनलिज्म के नाम पर ये मक्कारी मैं भी सीख गया और चेहरे पर मुखौटा डालना आ गया |

छुट्टियों के बाद सौगत ने मेरे बगल के मकान में कमरा ले लिया और हम साथ साथ विश्वविद्यालय आने जाने लग गए सौगत ज्यादा से ज्यादा समय अपनी पढ़ाई के निकलना चाहता था इसलिए दो साल बाद विश्वविद्यालय रहने चला गया क्योंकि आने जाने में बहुत समय लगता था पर इससे  हमारी जुगलबंदी में कोई कमी नहीं आई |पूर्वांचल का पत्रकारिता विभाग गुलजार रहने लगा हम अक्सर कुछ ना कुछ खुरापात किया करते थे वो कैमरा सम्हालता और मै कलम| सौगत के आई ए एस बन जाने से भले ही देश को योग्य अधिकारी मिल गया पर पत्रकारिता शिक्षा के लिए एक बड़ा नुक्सान हुआ अगर सौगत आज यहाँ होता तो व्यवहारिक पत्रकारिता शिक्षण का स्तर और बेहतर होता खैर क्या लिखूं क्या ना लिखूं समझ नहीं पा रहा हूँ कितनी शामें हमने साथ गुजारीं क्या बहसे हुआ करती थी |मैं एक श्रोता की हैसियत से काफी कुछ सीख रहा था| कितनी वाराणसी की यात्राएं हमने साथ की और उन यात्राओं में होने वाला
फन आज भी रोमांचित करता (जौनपुर में मनबहलाव की कोई जगह नहीं थी तो अक्सर हम वाराणसी का रुख करते थे )|एक शिक्षक के रूप में मैंने सौगत से बहुत कुछ सीखा तो दिन बीतते रहे जब तक मेरे पास स्कूटर नहीं था कई दिन हम बस और जीप में लटक कर विश्वविद्यालय पहुँचते थे फिर गाड़ी आ गयी पर कुछ चीजें मुझे सौगत की नहीं समझ नहीं आती थी वो हिसाब किताब बहुत किया करता था जिसमे मैं पहले भी कच्चा था और आज भी हूँ पर अंत में होता वही था जो वह चाहता वो मेरे स्कूटर से विश्वविद्यालय जाता था तो आने जाने के पैसे देता था फिर एक नया फोर्मूला निकाला कि एक दिन मेरी स्कूटर जायेगी और एक दिन उसकी मोटर सायकिल, दिन भर के खाने का हिसाब किताब लगा कर मुझे खास सौगतियन स्टाईल में बताया यार देख मैं दिन भर के तीस रुपैये से ज्यादा खाने पर नहीं खर्च कर सकता बसऔर ये अभिनव प्रयोग विभाग में भी  हो रहे थे एक दिन निर्णय लिया गया कि नुक्कड़ नाटक होगा अब छात्रों के लिए ये समस्या का विषय हो गया लोगों को ज्यादा इसके बारे में पता नहीं था पर चार दिन में प्ले बनकर तैयार हो गया और लोगों की पर्याप्त सराहना भी मिली | बहुत सारे खट्टे मीठे अनुभव होते रहे सौगत मोमबत्ती जलाये डटे रहते और अपने बिंदास स्वभाव के कारण चर्चा का केंद्र रहते हम एक शादी में बनारस गए और भाई साहब ने जींस कुर्ते के ऊपर कोट पहन लिया और पहुँच गए कोई अगर कुछ कहता भी तो जवाब तैयार क्या हुआ |बहुत सारे उतार चढावों के बीच सौगत ने सितम्बर 2003 में जौनपुर छोड़ दिया उसका चयन निफ्ट दिल्ली में हो गया था जौनपुर मुझे कभी रास आया नहीं था पर विभाग में उसके साथ से ऊर्जा मिलती थी पर अब वो जा रहा था खैर उसके परिवार को विदा करने के बाद सौगत को रोक लिया गया कि एक रात हम फिर से पार्टी करेंगे पुराने दिन ताजा करेंगे हालंकि तब तक हमारे दल में  इसमें अविनाश और ब्रजेश दो और लोग जुड चुके थे | साल बीतते गए इस बीच वो निफ्ट से निकल कर जामिया एम् सी आर सी में लेक्चरर बन गया और मैं जौनपुर से लखनऊ आ गया फोन पर बात भी अक्सर नहीं होती हाँ पर जब मैं दिल्ली जाता  तो जम के धमाल होता था ये बात अलग है कि धमाल मचाने वाले दो ही लोग होते थे और ऐसा मौका उसके जौनपुर छोड़ने के बाद एक ही बार आया जब हम दिल्ली में मिले|
लाल बहादुर शास्त्री प्रशासनिक अकादमी मंसूरी में सौगत के साथ 
2006 में सौगत  लखनऊ में प्रैक्टिकल परीक्षाएं लेने आये थे  जब वो  अपने रिजल्ट की प्रतीक्षा कर रहा था गेस्ट हाउस के उस कमरे में हम कितनी देर तक अपनी अपनी जिंदगियों के बारे में बात करते रहे मैं उसके आई ए एस के साक्षात्कार के किस्से सुनता रहा और फिर वो खबर आयी जिसका हम सबको इंतज़ार था एक सपना जिसको सौगत जी रहा था सच हुई उसका चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए हो गया और वो मंसूरी प्रशिक्षण के लिए चला गया बीच बीच में कभी कभार बात हो जाती हमें मिले हुए एक साल हो चुके थे कि नियति ने फिर हमें मिला दिया हुआ कि जिस दिन सौगत के प्रशिक्षण का अंतिम दिन था मैं देहरादून में था सौगत से बात हुई और उसने हमें मंसूरी के लाल बहादुर शास्त्री प्रशासनिक अकादमी  में बुला लिया और रात ज्यादा हो जाने कारण मुझे भी उस संस्थान में एक रात रुकने का सौभाग्य प्राप्त हुआ अद्भुत अनुभव था |

भारतीय रेल के जून 2021 अंक में प्रकाशित 

Tuesday, July 6, 2021

पॉडकास्ट की बढ़ती लोकप्रियता

 

इंटरनेट पर हमेशा वीडियो और चित्रों का राज रहा है |दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले जहाँ ध्वनिया यानि पॉडकास्ट तेजी से लोकप्रिय हो रहा था |भारत में वीडियो के प्रति दीवानगी बरकरार रही| कोरोना महामारी और वर्क फ्रॉम होम जैसी न्यू नार्मल चीजों ने  काफी कुछ बदला है ,और इसी दौर में लोगों की इंटरनेट पर पसंद वीडियो के साथ साथ ध्वनियों ने भी जगह बनाई और पॉडकास्ट की लोकप्रियता में बढ़ोत्तरी होनी शुरू हुई | ऑडियो ओ टी टी रिपोर्ट कंटार और वी टी आई ओ एन के अनुसार संगीत  और पॉडकास्ट स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म जैसे स्पोटीफाई,गाना जियो सावन में मार्च 2020 में समय बिताने की संख्या में बयालीस प्रतिशत का इजाफा हुआ |ग्लोबल इंटरटेनमेंट एंड मीडिया आउटलुक रिपोर्ट(Global Entertainment & Media Outlook 2019–2023) के अनुसार साल 2018 के अंत में भारत में मासिक रूप से पॉडकास्ट सुनने वाले लोगों की संख्या चार करोड़ रही| यह संख्या साल 2017 के आंकड़ों से 57.6 प्रतिशत ज्यादा रही | मासिक श्रोताओं की संख्या से आशय  ऐसे श्रोताओं से है जो महीने में कम से कम एक पॉडकास्ट जरुर सुनते हैं| रिपोर्ट के पूर्वानुमान के मुताबिक़ यह आंकड़े साल 2023 तक 34.5प्रतिशत की दर के साथ बढ़कर 17.61करोड़ हो जाने की उम्मीद है |इन आंकड़ों के साथ भारत पॉडकास्ट की दुनिया का चीन, अमेरिका के बाद दुनिया का तीसरे नम्बर का सबसे बड़ा बाजार बन गया |इसी रिपोर्ट के अनुसार देश में संगीत ,रेडियो और पॉडकास्ट का बाजार साल 2014 में 3890 करोड़ रुपये का था जो साल 2018 में बढ़कर 5573 करोड़ रूपये का हो गया |
भारत के विविधता वाले बाजार में पॉडकास्ट एक शहरी प्रवृत्ति बन कर रह गया था और इसके बाजार में जितनी तेजी से वृद्धि होनी चाहिए उसका बड़ा कारण इन आडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफोर्म में इंटरैक्टिवटी का ख़ासा अभाव था |इंटरनेट की तेज दुनिया में अब कोई इन्तजार नहीं करना चाहता और इसीलिये पॉडकास्ट को वो लोकप्रियता नहीं मिल रही थी जितनी सोशल मीडिया साईट्स को मिली |जबकि ध्वनियों का मामला इंटरनेट के एक आम उपभोक्ता के लिए वीडियो के मुकाबले ज्यादा सरल है और इसमें डाटा भी कम खर्च होता है | भारत जैसे देशों में, जहां इंटरनेट की स्पीड काफी कम होती है, वीडियो के मुकाबले पॉडकास्टिंग ज्यादा कामयाब हो सकती है। भारतजैसे भाषाई विविधता वाले देश में जहाँ निरक्षरता अभी भी मौजूद है | पॉडकास्ट लोगों तक उनकी ही भाषा में संचार करने का एक सस्ता और आसान विकल्प हो सकता है |प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की मन की बात कार्यक्रम का पॉडकास्ट काफी लोकप्रिय है |
 पॉडकास्ट की सबसे बड़ी खूबी है इसकी ग्लोबल रीच यानि अगर आप कुछ ऐसा सुना रहे हैं जो लोग सुनने चाहते हैं तो किसी चैनल के लोकप्रिय होते देर नहीं लगेगी | भारत हमेशा श्रोत परम्परा वाला देश रहा है जहाँ हमारे सामाजिक जीवन में कहानियां बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है   कोरोना महामारी से उपजी पीड़ा और चिंताओं ने लोगों को कहानियाँ कहने और सुनने दोनों के लिए प्रेरित किया |उधर लोग सोशल मीडिया पर लोग अपनी राय व्यक्त करने के लिए लिखने में अपना समय नष्ट नहीं करना चाहते है तो इसका विकल्प ध्वनियाँ ही ही हो सकती हैं |फेसबुक (लाईव ऑडियो रूम )और ट्विटर (स्पेक्स) आवाज की दुनिया में पहले ही कदम रख चुके हैं | इसी कड़ी में 2021  मई  में देश में लॉन्च होते ही  क्लबहाउस लोगों की चर्चा का केंद्र बन गया |क्लब हाउस  ध्वनि  आधारित एक सोशल नेटवर्किंग साइट है| जो लोगों को ‘किसी भी चीज’ और ‘हर चीज के बारे में’ बात करने की सुविधा  देता है। लांच होने के बाद ही ये तेजी से लोकप्रिय हो रहा है|आधिकारिक तौर पर भारत में इसके कितने उपभोक्ता है इसका आंकड़ा जारी नहीं किया गया है |

इसकी लोकप्रियता से उत्साहित होकर आडियो स्ट्रीमिंग में उपभोक्ताओं की पहले ही पसंद बन चुकी कम्पनी स्पोटीफाई ने क्लब हाउस को टक्कर देने के लिए इसी माह आवाज पर आधारित एक सोशल नेटवर्किंग एप ग्रीन रूम लांच कर दिया है माना जा रहा है कि लाईव आडियो मार्केट में एक कदम आगे निकले हुए ग्रीन रूम कलाकारों पर ज्यादा ध्यान केन्द्रित करेगा और इसके लिए कम्पनी जल्दी ही एक क्रियेटर फंड बनाने जा रही है जिससे ऑडियो  क्रियेटर को यू ट्यूब की तर्ज पर अपने लोकप्रिय काम के पैसे भी मिलेंगे |

रेड्शीर कंसलटिंग की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में पांच प्रमुख म्यूजिक स्ट्रीमिंग एप के कुल उपभोक्ता आधार का मात्र एक प्रतिशत ही सशुल्क उपभोक्ता हैं जो कुल राजस्व का चालीस प्रतिशत योगदान दे रहे हैं |रिपोर्ट के मुताबिक़ इन कम्पनियों को अपने उपभोक्ता आधार में कम से कम छ प्रतिशत को सशुल्क उपभोक्ता बनाना पडेगा तभी ये मुनाफा कमा  पाएंगी|पॉडकास्ट में विज्ञापनों से आय दूसरा साधन है|साल 2014 में में पॉडकास्ट विज्ञापनों से 0.5 मिलीयन डॉलर का विज्ञापन राजस्व आया था जो साल 2018 में बढ़कर 7.2 मिलीयन डॉलर हो गया|प्राईस वाटर कूपर्स के एक आंकलन के मुताबिक़ यह राजस्व 58.9प्रतिशत की दर से बढ़कर साल 2023 में 58.9 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़कर 72.9 मिलीयन डॉलर हो जाएगा |देश में ध्वनि आधारित इस तरह के सेवाओं की कोई परम्परा नहीं ऐसे में इस तरह के एप पर क्या बोलें और क्या न बोलें जैसी समस्या से लोगों को दो चार होना पड़ेगा|इंटरनेट पर हुई वीडियो क्रांति के अनुभव बताते हैं कि वीडियो कंटेंट में बहुत अश्लीलता, फूहड़ मजाक और फेक न्यूज की बाढ़ भी आ गयी है |

चूँकि इंटरनेट पर किसी तरह का कोइ सेंसर नहीं है ऐसे में बच्चों को अवांछित ऑडियो  कंटेंट से कैसे बचाया जाएगा |उपभोक्ताओं द्वारा बोले गए शब्द कंटेंट का क्या होगा उसकी निजता की रक्षा कैसे की जायेगी | इसके अलावा, नफरत फैलाने वाले भाषण जैसे दुरुपयोग की निगरानी के लिए सुरक्षा प्रोटोकॉल की कमी के कारण इस तरह के एप कैसे अपने उपभोक्ताओं को इंटरनेट पर ध्वनि की दुनिया में  सुरक्षित अनुभव दे पायेंगे इसका फैसला अभी होना है |


दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण में 06/7/2021 को प्रकाशित 

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