Friday, March 5, 2021

सिक्किम यात्रा ;चौथा भाग

बादल पर पाँव है 
हम लोगों को नामची जाना था यह तो पता था पर वहां है क्या इसकी जानकारी किसी को भी ठीक ठाक नहीं थी |छान्गू झील के कार्यक्रम में परिवर्तन होने के कारण यह वैकल्पिक व्यवस्था थी खैर मुझे इससे मतलब नहीं था कि वहां क्या होगा मैं तो देश के पूर्वोत्तर भाग के इस हिस्से की हरियाली को अपनी आँखों में भर लेना चाहता था ये बात अलग है कि सावन का महीना दूर था |तिस्ता एक बार फिर हमारा साथ दे रही थी |बीच बीच में बारिश हो रही थी सूरज का नामोनिशान नहीं था |रास्ते बादलों से भरे हुए थे |हमारी गाडी जब उनके बीच से गुजरती थी तो एक ठंडा सा अहसास होता है |प्रार्थना झंडियों से भरे रास्ते हमें याद दिला रहे थे यहाँ प्रकृति से बड़ा कोई नहीं है |
सड़क किनारे लगी प्रार्थना झंडियाँ 
रंग बिरंगी प्रार्थना झंडियाँ जहाँ पूजा की प्रतीक थीं वहीं सफ़ेद झंडियाँ शोक और म्रत्यु का |सच है पहाड़ लोगों को धीरज धरना सिखा देते हैं तभी शायद देश के इस हिस्से में सब कुछ शांत थमा है सब अपनी बारी का इन्तजार करना जानते हैं किसी को किसी से आगे जाने की कोई जल्दी नहीं है वो चाहे गाड़ियाँ हों या इंसान, उत्तर भारत के मैदानी इलाकों की तरह बात –बात में प्रतिक्रिया नहीं देते शायद उनको मालूम है जन्नत की हकीकत |

मैं शान्ति से सडक पर गाड़ियों का अनुशासन देख रहा था सामने वाली गाडी को पास देना ,उस पहाडी मोड़ पर जब दो गाड़ियाँ अगल –बगल होती हैं दोनों ड्राइवरों का हँसते मुस्कुराते हुए हाल चाल लेना बता रहा था ये देश का वह हिस्सा नहीं है जहाँ मैं रहता हूँ हाँ यह देश का वह हिस्सा जरुर है जहाँ कोई भी शांति से जीना चाहेगा बगैर किसी को हराए हुए जीतना चाहेगा |पहाड़ आपको जीना सिखा देते हैं मैं सोच रहा था वैसे भी जब आपके हाथ में कुछ न हो तो आप अपने आप धीरज धरना सीख जाते हैं यहाँ के निवासियों को यह भ्रम नहीं है कि वे शक्तिशाली है यहाँ कोई शक्तिशाली है तो वह सिर्फ और सिर्फ प्रकृति है |रास्ता कहीं अच्छा और कहीं बहुत खराब है जगह –जगह सडक बनाने का काम चल रहा था |तीन घंटे की यात्रा के बाद हम नामची पहुंचे |
सर्वेश्वर धाम परिसर 
नामची इलाका गंगटोक की तरह विकसित और साफ़ सुथरा था उसके तीन किलोमीटर के बाद हमारी मंजिल थी जिसके बारे में हमें सिर्फ इतना पता था कि कोई पूजा स्थल है पर वह किस धर्म का है हमें नहीं पता था |

गाडी पार्किंग में लगी हमें ड्राइवर ने कहा आप लोग सामने चले जाइए कुछ सीढियां चढ़ कर हम एक विशाल परिसर में पहुंचे पर अभी भी कुछ समझ में नहीं आ रहा  था |सुरक्षा जांच के बाद आगे बढे एक आदमकद भगवान शिव की प्रतिमा दिखी मन में एक निराशा सी आयी मतलब एक मंदिर जिसका कोई ऐतिहासिक महत्व नहीं है ये दिखाने इतनी दूर लाये |

मंदिर तो हमारे इलाके में बहुत से हैं इसी उधेड़बुन में उस सुरक्षा जांच के क्षेत्र से बाहर निकले जहाँ भगवान शिव की वह मूर्ति लगी हुई थी, पर अब जो हमारे साथ होने वाला था वो न भूतो न भविष्यति वाला मामला था हम जैसे ही बाहर निकले तो लगा जैसे हमारे सारे भ्रम दूर किये जा रहे हैं कोई पर्दा खुल रहा हो दूर एक विशाल शिव जी की मूर्ति दिखी |इतनी विशाल हिन्दू देवता की मूर्ति मैंने अभी तक नहीं देखी थी हाँ बुद्ध जी की विशाल प्रतिमाएं मैंने खूब देखी थी |मैं एकटक उसको देखते हुए आगे बढ़ रहा हूँ मूर्ति  के चारों ओर मंदिर ही मंदिर रामेश्वर का भी मंदिर भी वहां दिख रहा था पर मैं तो सिक्किम में हूँ यहाँ कैसे यह मंदिर ?
एक सौ आठ फीट ऊँची मूर्ति सर्वेश्वर धाम 
सवाल ही सवाल जैसे जैसे मैं आगे बढ़ रहा था धरती का कैनवास बड़ा होता जा रहा था |सबसे पहले मैं अपने सारे सवालों का जवाब चाहता था पर मेरी पत्नी दर्शन करना चाहती थी पर उसी वक्त उस परिसर के समस्त मंदिरों के आधे घंटे के लिए बंद होने का समय हो चुका था इसलिए मेरे पास अपने सारे सवालों का जवाब पाने का मौका था |मैंने एक गार्ड को भरोसे में लिया और उससे कुछ पता किया शोफोलोक पहाडी पर बने इस विशाल मंदिर की आधारशिला साल 2005 में रखी गयी और साल 2013 में इसे लोगों के लिए खोल दिया गया जिसका उद्घाटन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने किया |शिव जी की मूर्ति की उंचाई एक सौ आठ फीट है और यहाँ देश के बारह ज्योतिर्लिंग और चार धाम के सभी मंदिरों की प्रतिकृति बनाई गयी है मकसद इतना है जो लोग अपने जीवन में इन मंदिरों में न जा पायें वे यहाँ आकर उनके दर्शनों का लाभ उठा सकें |हमें लग ही नहीं रहा था कि हम किसी  मंदिर परिसर  में है चारों ओर शांति पहाड़ बादल भीड़ के नाम पर लोगों के कुछ झुण्ड और कुछ भी नहीं ,किसी तरह के पंडों का कोई आतंक नहीं हमने शान्ति से उस पूरे परिसर का जायजा लिया |
सर्वेश्वर धाम की यह फोटो गूगल के सौजन्य से 
मैंने न तो चार धाम देखें हैं न ही बारह ज्योतिर्लिंग इसलिए मेरे लिए एक विजुअल ट्रीट जैसा मामला हो गया |प्रतिक्रतियां  इतनी शानदार है कि आप धोखा खा सकते हैं कि  ये असल है या नकल वैसे भी सिक्किम में बौद्ध धर्म ज्यादा प्रचलित है इसलिए मोनेस्ट्री के प्रदेश में इतना शानदार मंदिर मन को लुभा रहा था जहाँ  धर्म के नाम पर कोई लूट नहीं थी जहाँ प्रसाद के दुकानों की भरमार नहीं थी जो आपसे कुछ खरीदने के लिए कह रही हों |इस परिसर में बैठकर प्रकृति से एकाकार हो सकते हैं कहने को यह धार्मिक स्थल था पर माहौल किसी पर्यटक स्थल जैसा था जगह –जगह लोग सेल्फी लेने में व्यस्त थे पर एक सीमा  रेखा  जरुर थी पर्यटक स्थल वाली उच्चश्रृंखलता नहीं थी |मंदिर में घूमते –घूमते दो घंटे बीत चुके थे इसलिए अब बारी पेट पूजा की थी |

मंदिर परिसर में एक विशाल कैंटीन है जहाँ खाने पीने का सारा सामान बाजार भाव से महंगा उपलब्ध है आप यहाँ बाहर से खाने पीने का कोई सामान नहीं ला सकते हैं जो लेना है यहीं से खरीदीये |
साईं मन्दिर 
आज का दिन धर्म के नाम रहने वाला था इसके बाद मुझे बताया गया हम एक और मंदिर जायेंगे जो साईं बाबा का मंदिर है |

मेरे मन में जिज्ञासा थी देश के इस हिस्से में भी साईं बाबा की पूजा कैसे होती होगी और यह जिज्ञासा मुझे इस मंदिर की ओर ले गयी ,यहाँ के साईं बाबा मंदिर की ख़ास बात यह थी कि यह मंदिर दो मंजिल का था नीचे के परिसर में शिर्डी के साई बाबा की मूर्ति थी तो ऊपर वाले परिसर में सत्य साईं बाबा की मूर्ति लगी थी और उसी मंदिर परिसर में भगवान शिव की भी पूजा हो रही थी |सिक्किम में मेरा एक और दिन समाप्त हो रहा था |
जारी..................................

पांचवां भाग पढने के लिए क्लिक करें
भारतीय रेल के मार्च 2021 के अंक में प्रकाशित 

Thursday, March 4, 2021

सिक्किम यात्रा :तीसरा भाग



महात्मा गांधी बाजार से होटल तक पहुँचने का रास्ता ड्राइवर तिलोक हमें अच्छी तरह समझा के गया था आपको सीढ़ियों से उतरना है और टैक्सी स्टैंड पर अम्दु बुलाई के लिए टैक्सी लेनी है वहीं हमारा होटल था जो इंदिरा बाई पास पर स्थित था कहना बड़ा आसान था पर मेरे जैसे आदमी के लिए थोडा मुश्किल था |इस कहानी को आगे बढ़ाने से पहले सिक्किम की टैक्सी के बारे में बता दूँ क्योंकि जहाँ तक मेरी जानकारी है ऐसी टैक्सियाँ पूरे भारत में कहीं न चलती होंगी |आपको जानकार हैरत होगी उत्तर भारत की मध्यम वर्ग की शान की शान की सवारी वैगन आर और आल्टो यहाँ ऑटो की तरह चलती हैं |


गाड़ियाँ वही रहती हैं बस आगे का बोनट पीले रंग से रंग दिया जाता है कुछ के ऊपर टैक्सी लिखा रहता है नहीं तो ये पीला रंग ही किसी कार के टैक्सी होने की निशानी है |पहाडी भाग होने के कारण रिक्शा चल नहीं सकता और तीन पहिये वाले ऑटो को चलाना खतरनाक हो सकता है |
ट्रैफिक बूथ और व्यवस्थित ट्रैफिक 
आपको पूरे सिक्किम में उत्तर भारत की ये शान की सवारी टैक्सी के रूप में चलती दिखेंगी |एक जिज्ञासा मेरे मन में ही रह गयी जिसका जवाब मैं तलाश नहीं पाया |आम तौर पर पहाडी भागों में (कश्मीर, उत्तराखंड ) ये माना जाता है कि आल्टो और वैगन आर छोटी गाड़ियाँ होती और कमोबेश कमजोर भी इसलिए पहाड़ों में इनका बहुतायत से इस्तेमाल नहीं होता वहां बड़ी भारी गाड़ियाँ जैसे इनोवा ,सूमो ,क्वालिस जैसी गाड़ियाँ सफल रहती हैं क्योंकि ये ज्यादा मजबूत रहती हैं पर सिक्किम में इनका इस्तेमाल क्यों ज्यादा होता है पता नहीं चल पाया |गंगटोक शहर में भी दुपहिया वाहन मुझे न के बराबर दिखे और सुदूर इलाकों में भी यही गाड़ियाँ दिखी इसका मतलब आमतौर एक सामान्य सिक्किम निवासी गरीब नहीं है क्योंकि सुदूर पहाड़ों में बसे गाँवों के घरों में भी चार पहिया वाहन खड़े दिखे |

वापस मुद्दे पर लौटते हैं मुझे बताया गया था अगर हम शेयर्ड टैक्सी लेंगे तो होटल तक किराया बीस रूपये प्रति व्यक्ति लगेगा और अगर पूरी टैक्सी लेंगे तो डेढ़ सौ रुपये हम टैक्सी स्टैंड पहुंचे ही थे कि हमारे साथ यात्रा कर रहे एक साथी यात्री अपनी पत्नी के साथ टैक्सी करने जा रहे थे उन्हें भी उसी होटल जाना था जब उन्होंने हमें देखा तो हमें भी अपने साथ आने के लिए कहा ये उनकी सदाशयता नहीं बल्कि पैसा बचाने का जुगाड़ था क्योंकि उन्होंने डेढ़ सौ में पूरी टैक्सी की थी पर टैक्सी वाले ने साफ़ –साफ़ कह दिया ड्राइवर समेत गाडी में पांच लोगों से ज्यादा नहीं बैठ सकते नियम सख्त है ढाई हजार रुपये का दंड लगेगा |नियम के प्रति ऐसी ईमानदारी अद्भुत थी वो बड़े आराम से हमें बैठा के पचास रुपये अतिरिक्त लेता तो भी हम फायदे में रहते पर उसने ऐसा नहीं किया |हमने एक सजी संवरी दूसरी टैक्सी ली जो लाल रंग की आल्टो थी जिसे एक खूबसूरत सांवला लड़का चला रहा था उसकी बोली से लगा उसका ताल्लुक बिहार से है पर मेरा अंदाजा गलत निकला उसकी जड़ें उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की थी पर वो पैदा यहीं हुआ था |पढ़ाई लिखाई में मन नहीं लगा तो माता –पिता ने गाडी खरीदवा दी उसकी वहां तीन गाड़ियाँ चलती थी उसने एक बोलेरो बलिया भी भेजी थी किराए पर चलवाने के लिए |मैंने पूछा कभी अपने माता –पिता के घर (बलिया ) जाते हो तो बोला साल में एक बार वहां जा के क्या करेगा वहां गोली पहले चलती बोली बाद में ,मैंने कहा फिर वही लोग जब बाहर के प्रदेश में जाते हैं तो ठीक कैसे हो जाते हैं उसका सीधा जवाब था यहाँ कानून टाईट है |मैं एक बार फिर सोच रहा था ऐसा क्यों ,किराया उतना ही पड़ा जितना हमें पहले बताया गया था न उससे कम न ज्यादा |
सडक पर बना पैदल पथ 
सिक्किम की टैक्सी 

भीगा भीगा मौसम 
इस टैक्सी पुराण के बहाने मैं आपको गंगटोक की ट्रैफिक व्यवस्था के बारे में बताते चलूँ |पूरे शहर में सडक के किनारे –किनारे एक पैदल पथ है जिस पर पैदल चलने वाले लोग दिखेंगे |सडक संकरी हैं पर सड़कों पर सिर्फ गाड़ियाँ हैं लोग नहीं |टैक्सी सिर्फ टैक्सी स्टैंड पर रुकेगी चाहे आपका गंतव्य उससे कितना भी करीब क्यों न हो टैक्सी कहीं भी कभी भी नहीं रुकेगी |अगले दिन का एक वाकया है हम लोग घूम कर लौट रहे  थे और जोरदार बारिश हो रही थी सडक पर लोग नहीं थे पर हमारी टैक्सी होटल पर नहीं रुकी उसने  हमें भीगने से बचाने के लिए एक दूसरा रास्ता पकड़ा जो होटल के बेसमेंट में जाता था |वहां से होटल को फोन किया गया होटल वाले ने अपना वो बंद पड़ा बेसमेंट खोला जिससे चढ़ कर हम अपने कमरे तक पहुंचे |ये होती है नियमों के प्रति प्रतिबद्धता जिसका सम्मान भारत के जिस हिस्से में मैं रहता हूँ वहां नहीं दिखता |रात होते होते बादल उमड़ घुमड़ के बरसने लगे गंगटोक के होटल में एसी और पंखे नहीं होते इसलिए मैंने खिड़की खोल रखी थी मैं रात भर वर्ष्टि पड़े टापुर टुपुर सुनता रहा सुबह गंगटोक बादलों के आगोश में था और हमारा छान्गू झील जाने का कार्यक्रम बेकार हो चुका था क्योंकि बारिश से उस रास्ते पर भूस्खलन हुआ था और वह रास्ता पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया था इसी रास्ते पर आगे भारत चीन सीमा नाथू ला पास भी पड़ता है |सीमा देखने की मेरी कोई ख़ास इच्छा नहीं थी क्योंकि मैं राजौरी में भारत पाकिस्तान नियंत्रण रेखा देख चुका था पर छान्गू झील न देख पाने का दुख जरुर था |अब हमारे कार्यक्रम में तबदीली हो रही थी अब हमें नामची घूमने जाना जो गंगटोक से लगभग सत्तर किलोमीटर दूर था |मैंने अपने ड्राइवर तिलोक से पूछा वहां क्या उसने कहा कुछ पूजा का है मैंने सोचा कुछ बौद्ध धर्म से सम्बन्धित मामला होगा मेरे लिए ज्यादा मजेदार प्रकृति का साथ जो गाड़ियों में चलने के कारण हमें रास्ते में मिलता था | मैंने पहाड़ों पर इतनी ज्यादा हरियाली कहीं नहीं देखी थी और इतने घने जंगल मन को मोह लेते थे कश्मीर और उत्तराखंड में भी हरियाली है पर इतनी  नहीं आपको कहीं भी पचास मीटर से ज्यादा खाली पहाड़ नहीं  दिखेंगे चारों ओर सिर्फ पेड़ ही पेड |

यहाँ के पहाड़ों पर ख़ास बात है कि बांस के झुरमुट खूब मिलेंगे जो यहाँ के पहाड़ों को उत्तर भारत के पहाड़ों से अलग बनाते हैं दूसरी ख़ास बात उन पहाड़ों से गिरते हुए छोटे मोटे सैकड़ों झरने ,जहाँ कोई झरना बड़ा हो गया उसे एक टूरिस्ट स्पॉट मान लिया गया |यहाँ साल के पेड़ और बांस के झुरमुट आपका  सर उठा के स्वागत करेंगे तो नामची की यात्रा हमने भीगे मौसम में शुरू की |गंगटोक के बाहरी हिस्से में कई भुट्टे बेचने वाली महिलाएं दुकान सजा कर बैठी थी और उनकी दुकान मक्के के खेतों से मिली हुई थी मतलब इससे ताजा भुट्टे आपको भारत के किसी पहाडी हिस्से में नहीं मिलने वाले |मैं तिलोक से सिक्किम के बारे में पूछ रहा था उसने भारत का सिर्फ एक शहर देखा था वो भी कोलकाता जहाँ उसकी पहली बीवी का घर था |पहली बीवी ? हाँ उसने मुझे छोड़ दिया तो मैंने दूसरी शादी कर ली जब हम लौटेंगे तो मेरी बीवी भी इसी गाडी में लौटेगी क्योंकि नामची उसका मायका था और वो अपने घर गयी थी | बच्चे ?मैंने पूछा |दो हैं उसने बताया लेकिन वो गंगटोक में घर पर हैं वो अकेले गयी है |तलाक कैसे होता है बोला हम लोग कोर्ट नहीं जाते सब समुदाय में ही हो जाता शांति से वैसे भी सिक्किम में लड़के कम और लड़कियां ज्यादा हैं और लड़कियां ज्यादा लड़के छोडती हैं |तिलोक कहीं बाहर नहीं जाना चाहता वो यह भी चाहता है टूरिस्ट यहाँ खूब आयें लेकिन यहाँ बसने के बारे में न सोचें |हम उस भीगते मौसम में आगे बढे चले जा रहे थे |खिड़कियाँ खोल दी गईं इतनी शुद्ध हवा न जाने फेफड़ो 
में कब जाए |
भारतीय रेल के मार्च 2021 अंक में प्रकाशित 

पसंद आया हो तो