Saturday, March 30, 2019

सोशल मीडिया में भी छाये चीनी


इंटरनेट पर वीडियो की धूम है पर अब जमाना माइक्रो वीडियो का मतलब ऐसे वीडियो जो एक मिनट से कम के हों और  उनमें रोचकता हो |ऐसा ही एक माइक्रो वीडियो एप है टिक टोक |चीन जिस तरह से स्मार्ट फोन की मैन्युफैक्चरिंग में सारी दुनिया को पछाड़ते हुए नंबर एक पर पहुँच गया हैअब उसकी नजर है एप की विशाल दुनिया में तहलका मचाने की,साल 2017 में जहाँ भारत में प्ले स्टोर से सबसे ज्यादा डाउनलोड होने वाले प्रमुख दस एप में मात्र दो ही चीन के थेवहीं 2018 में प्रमुख दस एप में से पांच चीन के हो चुके थे जिनमें तीन टिक- टोक,लाईक और हीलो जैसे  वीडियो एप थे |जाहिर है इसके केंद्र में भारत ही है क्योंकि चीन ने अपना इंटरनेट बाजार फेसबुक और गूगल जैसी कम्पनियों के लिए बंद कर रखा है पर भारत का बाजार सभी के लिए खुला है |
जिस तरह से टिक टोक के प्रयोगकर्ता बढ़ रहे हैं उसने इंटरनेट की नामी कम्पनियों को अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया है |फेसबुक ने टिक टोक को टक्कर देने के लिए चुपचाप लासो वीडियो एप लॉन्च कर दिया है फिलहाल अभी यह अमेरिका के लोगों के लिए ही उपलब्ध है पर भारत में जिस तरह फेसबुक लोगों का पसंदीदा एप बना हुआ है जल्दी ही ‘लासो’ भारत में भी उपलब्ध होगा |
2016 में लॉन्च हुए टिक टोक वीडियो एप को 2018 के गूगल प्ले अवार्ड में  भारत के सबसे मनोरंजक एप का खिताब मिला अगस्त 2018 में दुनिया के दो सबसे तेजी से उभरते हुए शोर्ट वीडियो एप म्यूजिकल डॉट एल वाई और टिक टोक ने मिलकर एक नई वैश्विक एप टिक टोक बनाया | छोटे वीडियो बनाने वाला यह एप यूटयूब ट्विटर और इन्स्टाग्राम से पूरे सोशल मीडिया पर तहलका मचाये हुए है |दुनिया की कई बड़ी हस्तियों ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म को लोकप्रिय बनाने के लिए इस एप का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है | टिक टोक की चर्चा करते वक्त हमें देश में एप के समाज शास्त्र को समझना अत्यंत आवश्यक है जहाँ फेसबुक इन्स्टाग्राम जैसे एप देश के क्लास तबके सम्बन्ध रखते हैं जहाँ देश के बड़े शहरों में रहने वाले लोग ज्यादा सक्रिय हैवहीं टिक टोक एप के वीडियो कंटेंट में असली भारत दिख रहा है | जहाँ गाँव है धूल मिट्टी है और सुअर,कुत्ते जैसे जानवर और वो लोग जिन्हें हम मास या जनता  कहते हैं यानि इस एप के कंटेंट क्रियेटर टियर टू और टियर थ्री जैसे छोटे शहरों और कस्बों में रहने वाले ऐसे लोग हैं जो अपनी क्षेत्रीय भाषाएं बोलते हैं दिखने में मीडिया द्वारा गढ़े गए सुन्दरता के मानकों के हिसाब से नहीं दिखते |जिसका प्रमुख कारण सस्ता इंटरनेट और स्मार्ट फोन हैं और देश की बड़ी युवा आबादी इन्हीं शहरों में रहती है |
इस तरह के वीडियो कंटेंट की शुरुआत सबसे पहले डब्स्मास ने शुरू की थी|जिसमें पहले से दिए गए ऑडियो पर लोग अपने चेहरे के साथ एक नया वीडियो बनाते थे | वो ऑडियो किसी फिल्म का संवाद या गाना हो सकता है या फिर इंटरनेट पर वाइरल हो रहे किसी वीडियो कंटेंट का ऑडियो पर डब्स्मास ज्यादा सफल नहीं हो पाया क्योंकि उसके पास बनाये गए कंटेंट को प्रमोट करने का कोई अपना कोई प्लेटफोर्म नहीं था यानि यूजर को अपने कंटेंट को प्रमोट करने के लिए किसी अन्य सोशल मीडिया प्लेटफोर्म का सहारा चाहिए होता जबकि टिकटोक जहाँ वीडियो कंटेंट बनाने में मदद करता है वहीं उसे अपने प्लेटफोर्म पर प्रमोट भी करता है |फैक्टर्स डेली वेबसाईट के मुताबिक़ टिक टोक ने देश के दस प्रतिशत इंटरनेट उपभोक्ताओं में अपनी पैठ बना ली है हालाँकि यह पैठ गूगल ,फेसबुक ,इन्स्टाग्राम के यूजर बेस के मुकाबले कम है|टिक टोक  एप के सारी दुनिया में पांच सौ मिलियन प्रयोगकर्ता हैंजिसमें से उनतालीस प्रतिशत भारत से आते हैं | इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि साल भर के अंदर ही इस एप के अपने स्टार भी हो गए हैं |अवेज दरबार नाम के एक व्यक्ति के 4.2 मिलीयन फालोवर हैं | इसमें लाईव फीचर एक हजार फोलोवर बनने के बाद ही एक्टिवेट होता है | हालाँकि यह कहना अभी जल्दीबाजी होगी कि भविष्य में क्या टिक टोक जैसे एप यूट्यूब को नष्ट कर देंगे  पर जिस तरह से चीन के वीडियो एप ऐसी अनगढ़ प्रतिभाओं को सबके  सामने ला रहे हैं  उससे इस तथ्य को पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता  |पर कुछ ऐसे मुद्दें हैं जिन पर देश को अभी सोचना है अभी तक भारत सरकार की नीतियां फेसबुक और अमेजन जैसी अमेरिकी वैश्विक कम्पनियों को ध्यान में रखकर बनाई जा रही थीं जिसके मूल में भारतीय स्टार्ट अप की मदद करना भी शामिल था पर चीन की कम्पनियों के दखल से परिद्रश्य बदल गया है |पिछले साल जुलाई में इंडोनेशिया ने आपत्तिजनक सामाग्री के प्रसारण के कारण टिक टोक को बैन कर दिया था |देश में सोशल मीडिया पर फेक न्यूज से लेकर आपत्तिजनक वीडियो के मामले सामने आते रहते हैं जिसमें सरकार सम्बन्धित कम्पनियों को तलब भी करती रहती है यूजर जेनरेटेड कंटेंट में  लोगों के डाटा की सुरक्षा से जुड़ा मामला  भी एक बड़ा मुद्दा है |चीन की कम्पनियों का इस मामले में रिकॉर्ड काफी अच्छा नहीं है |हालांकि लोग अपनी जानकारियों को लेकर सतर्क जरूर हुए हैंपर यह सतर्कता भारत में केवल एक तबके तक ही सीमित है क्योंकि यह जागरूकता अभी बड़े शहरों में आनी शुरू हुई है पर छोटे शहरो और कस्बों में लोग इससे बिलकुल अनजान हैं |टिक टोक जैसे एप रजिस्ट्रेशन के लिए उपभोक्ता का नाम फोन नम्बर और ई मेल जैसी जानकारियाँ जुटा रहे हैं पर उनके सर्वर भारतीय सीमा में नहीं है |चीन की सरकार अपने नागरिकों के डाटा को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैवहीं भारत में इस संबंध में ड्राफ्ट डाटा प्रोटेक्शन बिल 2018 को जस्टिस कृष्णा कमेटी ने इलेक्ट्रॉनिक एंड इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी मंत्रलय को भेजा है जिसका मुख्य मकसद उस समस्या से निजात दिलाना है जो विदेशों में इंडियन डाटा सेव है। उसमें कहा गया कि हर वेब कंपनी का जो डाटा विदेश में सेव है उसकी एक कॉपी भारत में भी सेव करनी पड़ेगी।

नवभारत टाईम्स में 30/03/2019 को प्रकाशित 

Friday, March 29, 2019

जाड़े की चिट्ठी

प्यारी गर्मी
फिजाओं में प्यार है शायद ये तुम्हारे आने का असर है कि बर्फ पिघल रही है और रिश्तों के साथ साथ मौसम में भी गर्मी आ रही है तुम भी सोच रही होगी कि आज अचानक इतने दिन के बाद मैं तुम्हें चिठी क्यूँ लिख रहा हूँ.तुम ये तो जानती हो कि मैं ज्यादा बोल नहीं पाता इसलिए लोग मुझे जाड़ा कहते हैं मेरा नेचर ठंडा है पर मैं लोगों को गर्मी की अहमियत समझाता हूँ कि तुम मेरे लिए खास हो  बस तो मैंने सोचा अपने दिल  की भावनाओं को लिख कर तुम्हें बताऊँ जिससे जब तुम आओ तो लोग तुमको वो इज्ज़त दें जिसकी तुम हकदार हो. वैसे भी तुमको गुस्सा जल्दी आता है आये भी क्यूँ न तुम तो गर्मी हो पर तुम खास हो मेरे लिए अब देखो न जब सारी दुनिया वेलेन्टाईन डे यानि प्यार का दिन मनाती है तब न पूरी तुम होती हो न पर लोग कितना एन्जॉय करते हैं तो तुम ये तो मानोगी कि हमारी तुम्हारी जोड़ी भले ही थोड़े समय के लिए बने पर होती गज़ब की है.वैसे बसंत और होली के दो त्यौहार ऐसे मौके पर ही पड़ते हैं जब पूरा देश कुछ तुम्हारे और कुछ मेरे होने के अहसास का जश्न त्यौहार मना कर करता है . भारत में इन दो त्योहारों का ख़ास महत्व है.जहाँ बसंत में फूलों पर बहार आ जातीखेतों में हरी सरसों के पीले फूल सोना बनके चमकने लगता  हैं.  जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतींआमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। वैसे भंवरों के गुन गुन करने का भी तो यही मौसम होता है .वैसे बसंत के जश्न में जब सारी दुनिया डूबी होती है तो हम भी भूल जाते हैं कि हमारे बिछड़ने का समय आ रहा है | मुश्किल तो यही है तुम मेरी बात मानती कहाँ हो ?तुम्हारे आने की आहट मिलते ही लोग जश्न मनाने की तैयारी करने लग जाते हैं.उस जश्न को दुनिया होली  के नाम से जानती है जब धूप का मखमलापन कम होता है और उसके चुभन बढ़ने की शुरुआत होने लगती है.
अब तुम तो जानती हो जैसे होली में रंग बिरंगे रंगों का इस्तेमाल होता है वैसे ही जिन्दगी में भी कई रंग होते हैं गुस्सा, ख़ुशी, दुःख, अपना पन, प्यार और न जाने क्या क्या. दो रंगों को मिला देने से जैसे एक नया रंग बन जाता है वैसे जिन्दगी के भी रंग बड़े अनोखे होते हैं .अब मूड ऑफ हो जाना जिन्दगी के दो रंगों का मिल जाना ही है तो है. आप एकदम ठीक हैं किसी तरह की कोई प्रॉब्लम नहीं है लेकिन न जाने क्यों काम में मन नहीं लगता. देखा न बन गया जिन्दगी का नया रंग. कोई रंग न जाने क्यों हमें किसी की याद दिला देता है और हम यादों के समंदर में डूबने लगते हैं तो कोई रंग हम किसी के होने का एहसास कराता है. यूँ कहें कि हर रंग की अलग कहानी होती है जो सीधे सीधे हमारी जिन्दगी  से जुडी होती हैं. वो कहते हैं न मेड फॉर ईच अदर .पर होली के बीत जाने का  मतलब ये नहीं कि हमारे जीवन  से रंग की चमक  कम हो जाए,तो होली के बाद मैं धीरे –धीरे अपने सारे सामान समेट कर जाने की  तैयारी करता हूँ.ये जाना भी कैसा एहसास होता है .आखिर बसंत के इस सुहाने के अहसास और होली की इस मस्ती को छोड़कर भला कौन जाना चाहेगा ?मुझे तो जाना ही होता है क्योंकि अगर मैं जाऊँगा नहीं तो दुनिया को इस मिलने बिछुड़ने का फलसफा कैसे समझ आएगा.वैसे मुझे इस मस्ती और खुमारी से भरे मौसम में जाना इसलिए ज्यादा नहीं खलता क्योंकि लोगों के चेहरे पर खुशी देखकर अच्छा लगता है .



 पर मेरी प्यारी गर्मी इस जश्न को देख कर ये मत समझ लेना कि लोग तुम्हें ज्यादा पसंद करते हैं क्यूंकि तुम जैसे जैसे बढ़ोगी लोग तुम्हारे जाने का इन्तजार करने लग जायेंगे यही तो जीवन का खेल है जो आया है वो जाएगा पर मेरा तुम्हारा रिश्ता अनोखा है.हम बार बार जायेंगे लेकिन आने के लिए तो जब तुम आओगी मैं जा चुका हूँगा पर मैं फिर आऊंगा ये वादा रहा.ये उम्मीद मेरा जाना थोड़ा आसान कर देती है.अब मैं तो रहूँगा नहीं तुम्हें सम्हालने के लिए तो इस बात का ख्याल रखना कि रिश्ते ऐसे बनाना जिसमें गए हुए लोगों के आने की गुंजाईश रहे और तुम अगर ऐसा नहीं कर पायी तो समझ लेना तुमने जिंदगी से कुछ नहीं सिखा और रिश्ते मतलब से बनाये.कोई तुमको मतलबी कहेगा तो मुझे बहुत बुरा लगेगा. तुम गुस्सा हो कर अक्सर कहा करती थी कि किसी के आने जाने से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. मैं जी लूंगी अपनी जिंदगी पर मेरी “प्यारी गर्मी” तुम मानो या न मानो पर लोगों के आने जाने से फर्क जरुर पड़ता है.मैं जा तो रहा हूँ पर बड़े भारी मन से.काश ये काश मेरे जीवन का सच है.अब देखो न मैं और तुम कभी नहीं मिल पाते हैं जब तक मैं अपने जाड़े होने पर इतराता रहता हूँ और तुम अपनी गर्मी को अपनी ताकत मानती रहती हो पर जब ये मैं हम बन जाता है तो वेदर कितना खूबसूरत हो जाता है. थोडा मेरा और थोडा तुम्हारा तो बन गया न हमारा.मेरी सुबह सुहानी होती है तो तुम्हारी शाम पर जब बसंत आता है तो पूरा दिन वंडरफुल हो जाता है.मुझे पता है कि तुम्हें मेरी लंबी चिठ्ठी बोर करती है कितना लड़ते थे तुम मेरे लंबे खर्रे से.अच्छा सुनो न... कितना कुछ हमारे तुम्हारे बीच में हमेशा अनकहा रह जाता है.हमें एक दूसरे के साथ कभी फेस टू फेस बात करने का मौका ही नहीं मिलता तो कम्युनिकेशन गैप से कहीं तुम किसी गलतफहमी का शिकार न हो जाओ इसलिए मुझे चिठ्ठी लिखनी पडी जिससे मैं तुम्हें अपनी भावनाएं  बता सकूँतुम गर्मी हो ये तुम्हारा स्वभाव  है और मैं जाड़ा ये मेरी प्रकृति. मेरे मौसम में लोग तुम्हें याद करते हैं और तुम्हारे मौसम में मुझे. हमारी यही नियति  है. हम एक दूसरे को हमेशा याद  ही करते रहेंगे. तुम्हारे जीवन में बहुत से लोग आयेंगे पर जाड़े की वो शाम नहीं आयेगी.मेरे जीवन में बहुत सी सुबह आयेंगी पर वैसी सुबह नहीं आयेगी और हम दोनों बस याद ही करेंगे. वैसे भी तुम्हारी यादों  का कॉपीराइट तो मेरे पास ही है .
हम भले ही अलग अलग हों और कभी भी मिल न पायें पर क्या कभी तुमने सोचा कि कितना कुछ कॉमन है हमारे बीच में ज्यादा ठण्ड में लोग अपनी पूरी बॉडी को कवर करते हैं खासकर सिर और जब ज्यादा गर्मी पड़ती तो भी लोग सबसे पहले सिर ही ढकते हैं.आईसक्रीम स्वाद में ठंडी होती है पर उसकी तासीर गर्म होती है इसलिए जाड़ा हो या गर्मी लोग दोनों मौसम में इसे एन्जॉय करते हैं.जाड़ा और गर्मी तभी बढ़ती है जब हवाएं चलती हैं गर्मी में वही हवा लू बन जाती है तो जाड़े में शीत लहर.मौसम कैसा भी हो जिंदगी तो चलती रहती है हम भले ही कभी नहीं मिल पाते पर हमारे कारण ही लोगों को जीवन के मायने मिलते हैं और मिलने मिलाने के मौके भी .फिलहाल चलता हूँ पर इतना विश्वास दिलाता हूँ मैं कहीं भी रहूँ तुम्हें हमेशा याद करता रहूँगा.होली की शुभकामनाओं के साथ
विदा
सिर्फ तुम्हारा जाड़ा
प्रभात खबर के होली विशेषांक में मार्च 2019 को प्रकाशित 

Wednesday, March 27, 2019

सिर्फ अधिकार नहीं कर्तव्यों की भी हो बात

दिल को खुश रखने को ये ख्याल अच्छा है ,लिखने वाले ने जब ये पंक्तियाँ लिखी होंगी तो ये नहीं सोचा होगा कि  दिल के खुश रखने को क्या ख्याल अच्छा हो सकता है पर दुनिया बहुत तेजी से  बदल रही है अब दिल को खुश रखने को क्या ख्याल अच्छा हो सकता है उसके कई सारे पैमाने है और उन्हीं के आधार पर सारी दुनिया के देशों का खुशहाली का इंडेक्स जारी किया जाता है सामान्य  शब्दों में औसत रूप में दुनिया के सारे देशों के निवासी किस पैमाने पर सबसे ज्यादा खुश हैं यही है खुशहाली का पैमाना संयुक्त राष्ट्र संघ  के वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स में भारत 140वें पायदान के साथ दुनिया के सबसे दुखी देशों में शामिल है. इस हैप्पीनेस इंडेक्स के  मुताबिक बांग्लादेशश्रीलंका और पाकिस्तान में लोग भारत के मुकाबले कहीं ज्यादा खुश हैं. 159 देशों की सूची में साल 2013 में भारत 111वें पायदान पर था इसके बाद साल 2016 में यह 118वें पायदान पर आ गया। 2017 में भारत 122 वें पायदान पर आ गया। इसके बाद 2018 में 133वें पायदान पर और अब 2019 में यह 140वें पायदान पर पहुंच गया।
इस बार लगातार दूसरे साल फिनलैंड पहले नंबर पर है। उसके बाद डेनमार्कनॉर्वेआइसलैंड और नीदरलैंड का स्थान है. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2012 में 20 मार्च को विश्व खुशहाली दिवस घोषित किया था.संयुक्त राष्ट्र की ये सूची 6 पैमानों  पर तय की जाती है. इसमें आयस्वस्थ जीवन प्रत्याशासामाजिक साथ साथ आजादीविश्वास और उदारता शामिल हैं.
संयुक्त राष्ट्र की सातवीं वार्षिक विश्व खुशहाली रिपोर्टजो दुनिया के 156 देशों को इस आधार पर रैंक करती है कि उसके नागरिक खुद को कितना खुश महसूस करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान 67 वेंबांग्लादेश 125 वें और चीन 93 वें स्थान पर है. युद्धग्रस्त दक्षिण सूडान के लोग अपने जीवन से सबसे अधिक नाखुश हैंइसके बाद मध्य अफ्रीकी गणराज्य (155)अफगानिस्तान (154)तंजानिया (153) और रवांडा (152) हैं. दुनिया के सबसे अमीर देशों में से एक होने के बावजूदअमेरिका खुशहाली के मामले में 19 वें स्थान पर है. क्यों दुखी है भारत ऐसा नहीं है कि भारत सभी पैमानों पर इतना पिछड़ा हुआ है । यह ठीक है कि हमारी प्रति व्यक्ति और सकल उत्पाद में वृद्धि हुई है लेकिन आर्थिक उन्नति ही सुखी होने का एकमात्र साधन नहीं है. यह रिपोर्ट अपने आप में अंतिम नहीं है लेकिन यह हमें सोचने पर मजबूर जरूर करती है की आखिर वसुधैव कुटुंबकम की बात करने वाला देश अचानक इतना दुखी क्यों हो गया और दुनिया भर में  आतंक को निर्यात करने वाला देश पाकिस्तान क्या वास्तव में हमसे ज्यादा खुशहाल है   ?ऐसे सारे प्रश्नों के जवाब छिपे हैं दुनिया की आधुनिक व्यवस्था में जहाँ हर चीज बाजार तय करती है और भारत भी अपवाद नहीं है.खुशी एक मानसिक अवस्था है जिसका वास्तविकता से एकदम दो दूनी चार वाला संबंध हो ये जरूरी नहीं है। अनुभव यह बताता है कि  आप खुश किसी भी परिस्थिति में रह सकते हैं और वैसा  दुखी होने के मामले में है ,.फिर भी  इस तथ्य को नाकारा नहीं जा सकता है कि  हम खुशहाली के पैमाने पर फिसले हैं।
आज देश की बहुसंख्यक जनता के साथ -साथ देश को नेत्तृत्व देने वाली सरकारें भी दुबिधा में है की वो किस राह चलें वहीं भारत जैसे विविधता वाले देश में जनता के सामान्य व्यवहार का समान्यीकरण नहीं किया जा सकता। सरकारों के ऊपर जहाँ लोक लुभावन योजनाएं चलाने की मजबूरी रहती है वहीं दूसरी ओर  देश को विकास के पथ पर अग्रसर करने का दायित्व भी।
लोग जहाँ आजादी के नाम पर सिर्फ अधिकारों की बात करते हैं पर जब कर्तव्यों का मामला आता है तो उसकी जिम्मेदारी सरकारों पर छोड़ देते हैं और इस मनोवृत्ति से जो निर्वात उतपन्न होता है ,वह होता है लोगों के दुखों का कारण लोगों को लगता है सरकार उनकी नहीं सुन रही वहीं सरकार चला रहे राजनैतिक दलों  को लगता है की जनता बदलना नहीं चाहती इसलिए जो चल रहा है वही चलाया जाए नहीं तो अगला चुनाव जीतना मुश्किल होगा। यही से शुरू होता है तदर्थवाद और तुष्टिकरण का सिलसिला। जिसकी चरम परिणीति लोगों के दुःख में इजाफा ही करती है |
किसी देश की खुशी का पैमाना वहां के निवासियों के कर्तव्यबोध और सरकारों के जनहितकारी कार्यों के सम्यक संतुलन से निर्धारित हो सकता है पर भारत में यह साम्य दूर की कौड़ी लगता है अमीरी गरीबों के बीच की खाई लगातार बढ़ती जा रही है। ऑक्सफैम के एक शोध के मुताबिक़ भारत की कुल संपत्ति के 73 प्रतिशत  हिस्‍से पर देश के 1 प्रतिशत अमीरों का कब्‍जा है। यह आंकड़ा बताता है कि देश में आय के मामले में असमानता बढ़ती जा रही है। यानी देश के अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और गरीब उस अनुपात में कम नहीं हो रहे हैं  .यह आंकड़ा तस्वीर की हकीकत बयान करने के लिए पर्याप्त है कि आजादी के बाद से देश की सरकारों की नीतियां किस तरह पूंजीपतियों की झोली भरती  चली आईं हैं। दूसरी  तरफ जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा सामजिक आर्थिक आधार पर लगातार पिछड़ता चला जा रहा है और हर चुनाव के बाद वो अपने आप को ठगा हुआ महसूस करता है जो लोग कड़ी मेहनत कर रहे हैंदेश के लिए अन्‍न उगा रहे हैं,  फैक्ट्रियों में काम कर रहे हैंवे अपने बच्‍चों की शिक्षापरिवार के सदस्‍यों के लिए दवाएं खरीदने और दिन में दो बार का खाना जुटाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। आय के मोर्चे पर बढ़ती खाई लोकतंत्र को कमजोर करती है और भ्रष्‍टाचार को बढ़ावा देती है।    दूसरा  कारण देश की जनसंख्या के एक बड़े हिस्से का अभी नागरिक के तौर पर तैयार न हो पाना है जबकि वो अपने लिए उन सभी सुविधाओं की मांग करते हैं जो किसी भी देश के आदर्श नागरिकों को मिलनी चाहिए पर सुविधाओं की  मांग में वे नागरिक के तौर पर अपने कर्तव्य को भूल जाते हैं।
आई नेक्स्ट /दैनिक जागरण में 27/03/2019 को प्रकाशित 

Monday, March 18, 2019

डाटा सुरक्षा में चीन से काफी पीछे भारत

चीन और भारत , दो ऐसे देश जिन्हें इंटरनेट की दुनिया में हमेशा एक दूसरे का प्रतिस्पर्धी समझा जाता है| चीन और भारत इंटरनेट के बाजार के हिसाब से दुनिया में सबसे ज्यादा उपभोक्ताओं वाले देश हैं और आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं |दोनों देशों के इस बड़े बाजार के लिए वहां की विशाल जनसंख्या जिम्मेदार है ,क्योंकि इतनी बड़ी जनसंख्या वाले देशों में इंटरनेट लगभग हर समस्या का समाधान बन के उभरा है |वो दैनिक उपभोग से जुडी खरीददारी हो या बिजली और फोन के बिल जमा करने  जैसे काम इंटरनेट के पास हर समस्या का हल है |जब बात आंकड़ों की होगी तो इंटरनेट का जिक्र होना लाजिमी है क्योंकि इंटरनेट ने इस दुनिया में हर इंसान को एक आंकड़े या डाटा में तब्दील कर दिया है | वी आर सोशल की डिजिटल सोशल ऐंड मोबाइल 2015 रिपोर्ट के मुताबिकभारत में इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं के आंकड़े काफी कुछ कहते हैं। इसके अनुसारएक भारतीय औसतन पांच घंटे चार मिनट कंप्यूटर या टैबलेट पर इंटरनेट का इस्तेमाल करता है। इंटरनेट पर एक घंटा 58मिनटसोशल मीडिया पर दो घंटे 31 मिनट के अलावा इनके मोबाइल इंटरनेट के इस्तेमाल की औसत दैनिक अवधि है दो घंटे 24मिनट और जो लगातार बढ़ रही है आंकड़ों में जितना गहरा डूबते जायेंगे उतना ही समझ आता जायेगा कि चीनभारत से अधिक दूरदर्शी   कई मायनों में बेहतर है| इंटरनेट के इस्तेमाल के मामले में चीन की किसी दूसरे देश पर निर्भर  रहने की नीति उसे भारत से ऊपर स्थान देती है| यहाँ तक कि जब पूरी दुनिया में गूगल और फेसबुक का डंका बज रहा है  |चीन के पास इन सबसे अलग  सोशल मीडिया प्लेटफोर्म  है और फेसबुक , ट्विटर जैसी वेबसाइट पूरी तरह से बैन हैं| हालाँकि कई बार इसे सरकार के मीडिया पर एकाधिकार के तौर पर भी देखा जाता है लेकिन यदि इसे डाटा कोलोनाइज़ेशन के सन्दर्भमें देखें तो चीन ने अपने डाटा की सुरक्षा पुख्ता की हुई है |
डाटा है नया सोना :
कॉलोनी वह देश या क्षेत्र है जिसका नियंत्रण किसी दूसरे देश से आने वालों के पास है अथवा दूसरे देश से आकर बस जाने वालों के पास| इसी शब्द से कॉलोनाइजेशन शब्द बना है| कॉलोनाइजेशन एक प्रक्रिया है जिसमें शक्तियों का एक केंद्र अपने आसपास के  भू-भाग को नियंत्रित करता है| डाटा कॉलोनाइजेशन शब्द डिजिटल दुनियां से आया| इसे ऐसे समझा जा सकता है कि आप भारत में हैं और इसकी भौगौलिक सीमा के अन्दर ही आप डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर सक्रिय है| लेकिन आपका डाटा भौगौलिक सीमा से बाहर जा चुका है| किसके पास है, कौन आपके डाटा को नियंत्रित कर रहा है आप नहीं जानते| आपकी आदतें, खाना पीना, दिनचर्या सब कुछ किसी दूसरी भौगौलिक सीमा में है| आपके डाटा का किस तरह कहाँ इस्तेमाल किया जा रहा है, यह पूरी तरह आपके नियंत्रण से बाहर है| इस समय आपके गूगल सर्च और अन्य सर्चइंजन पर सर्च के आधार पर या फिर ई-मार्केटपेलेस पर जाने को लेकर आपका पूरा डेटा प्राप्त किया जा सकता है| कंपनियां यह भी जान जाती हैं कि आप कहां गए हैंआपने क्या सर्च किया या फिर आपकी पसंद क्या है। इसकी वजह यह होती थी कि आपका समस्त डाटा यहां से विदेश जाता था| वहां पर भारतीय कानून प्रभावी नहीं है और ऐसे में जिस कंपनी के पास आपका डाटा हैयह उस पर निर्भर करता है कि वह आपका डाटा किसे दे|
पिछले साल कैंब्रिज एनालिटिका द्वारा एक रिसर्चर को आधिकारिक तौर पर यू एस के फेसबुक  यूज़र्स का दाता इकठ्ठा करने का काम दिया गया| “लाइक” एक्टिविटी के द्वारा लोगों को चुना गया| करीब 87 मिलियन लोगों का डाटा इकठ्ठा किया गया|गूगल पर भी यूजर का डाटा चोरी करने का आरोप लगा| इन दो बड़े समूहों पर डाटा चोरी करने का आरोप लगने के बाद से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यूजर के डाटा को लेकर गंभीर चर्चाएँ शुरू हुईं| दावोस में हुए वर्ल्ड इकनोमिक फोरम में डाटा को लेकर सवाल पूछे जाने पर गूगल के सीईओ सुन्दर पिचई ने अपनी बात रखते हुए कहा कि यूजर का डाटा उन्हीं के पास रहना चाहिये व डाटा का नियंत्रण भी उन्हीं के पास होना चाहिए| हम केवल एक परिचालक के तौर पर ही कार्य कर सकते हैं|
चीन : सोशल मीडिया के सन्दर्भ में
भारत में फेसबुक और ट्विटर की लोकप्रियता से हर कोई वाकिफ़ है | आंकड़े भी यही कहते हैं| Statista की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ही 2020 में केवल फेसबुक के उपभोक्ताओं की संख्या करीब 262 मिलियन होगी| और ट्विटर तो भारत में राजनीति का दूसरा अड्डा बना हुआ है | बड़ी संख्या में राजनीतिज्ञ ट्विटर पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा चुके हैं| और केवल  राजनीतिज्ञ ही नहीं, तमाम बड़े सितारे  और आम नागरिक भी ट्विटर का इस्तेमाल भरपूर करते हैं| और यू ट्यूब तो कई लोगों की कमाई का ज़रिया बन गया है|
लेकिन इस्तेमाल करते वक़्त किसी भी शायद ही याद रहता भी हो कि ये सोशल मीडिया प्लेटफार्म भारत के नहीं हैं| इनके सर्वर भारत की भौगौलिक सीमा से बहुत दूर यूनाइटेड स्टेट्स में हैं| जिस दिन ये सभी प्लेटफार्म भारत में सुविधा देना बंद कर देंगे, हमारा सारा डाटा हमारे पहुँच से बहुत दूर जा चुका होगा| इसी स्थिति को यही चीन के सन्दर्भ में देखें तो चीन ने अपने डाटा पूरी तरह सुरक्षित रखा हुआ है|  चीन ने अपना एक अलग सोशल मीडिया ही विकसित कर लिया|चीन की सबसे लोकप्रिय एप्प है वी चैट| इसे चीन का फेसबुक , ट्विटर , गूगल न्यूज़, टिंडर और पिन्टेरेस्ट कहा जा सकता है | हाल में आये आंकड़े कहते हैं कि इस एप्प के क़रीब 1.08 बिलियन उपभोक्ता हैं|

चीन के पास अपना ट्विटर भी है | Sina Weibo नाम के माइक्रो ब्लॉगिंग प्लेटफार्म को लगभग 446 मिलियन उपभोक्ता हर महीने इस्तेमाल करतें हैं| और हर दिन करीब 116 मिलियन लोग इस साईट का उपयोग करते हैं|   चीन के पास अपना यू ट्यूब भी है| Youku Tudou एप्प के मासिक उपभोक्ताओं की संख्या करीब 580 मिलियन है| सबसे पहले ये एप्प चाइना में काफी लोकप्रिय थी| सोशल मीडिया के नए प्लेटफार्म आने का बाद इस एप्प की लोकप्रियता में काफी गिरावट आई| चीन के पास अपना हर तरह का सोशल मीडिया प्लेटफार्म है| यहाँ तक कि गूगल जैसा सर्च इंजन में चीन में अपनी जगह नहीं बना पाया | चीन के पास अपना सर्च इंजन है Baidu Teiba | चीन का सबसे बड़ा कम्युनिकेशन का प्लेटफार्म| फ़रवरी 2017 के आंकड़ों के मुताबिक इसके हर माह करीब 665 मिलियन उपभोक्ता हैं| हर दिन करीब 148 मिलियन उपभोक्ता इसका उपयोग करते हैं|

इनके अलावा भी चीन के पास कई और एप्प हैं जिनका इस्तेमाल लोग अपने जीवन में कर रहे हैं| यदि अब भविष्य में चीन इन प्लेटफॉर्म्स को बंद भी कर देता है तो उसका डाटा पूरी तरह सुरक्षित है| चीन की सरकार अपने नागरिकों के डाटा को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है| वहीँ पर भारत की तकनीकी निर्भरता ने अपने देश के नागरिकों के डाटा को संकट में डाला हुआ है| यहाँ के लोगों का डाटा भारत की सीमा से पहले ही बहुत दूर जा चुका है और उसके सुरक्षित होने का या भविष्य में उसका दुरुपयोग न हो उसके लिए भी कोई प्लान तैयार नहीं है|  फेसबुक और गूगल पर डाटा चोरी करने का आरोप लगने के बाद से ही निजता और सुरक्षा को सुनिश्चित करना चर्चा में है 25 मई2018 को यूरोपीय संघ के नेतृत्व में जीडीपीआर (जनरल डाटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन) को पूरी तरह से लागू किया और इस तरह यूरोपीय संघ (इयू) में डाटा प्रोटेक्शन कानूनों की दिशा में एक मील का पत्थर स्थापित किया गया |

 

भारत की कैसी है तैयारी

जल्दी ही सरकार इंटरनेट पर देसी सर्वर की सुविधा उपलब्ध कराने जा रही है। यह सुविधा नेशनल इन्फॉरमेटिक्स सेंटर के जरिए मिलेगी जो जल्द ही इसके लिए पब्लिक डोमेन नेम सर्विस के तौर पर नया प्लेटफार्म उपलब्ध कराएगी। इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों के लिए यह मौजूदा सिस्टम से ज्यादा सुरक्षित और भरोसेमंद होगा।केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी एवं कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद की पहल पर बन  रहे नए डीएनएस लोगों की ई-मेल न केवल पहले से ज्यादा सुरक्षित होगी बल्कि उनका डाटा भी बाहर के देश तक नहीं जाएगा। इससे गूगलअमेजन समेत कोई भी कंपनी यह नहीं पता कर पाएगी कि आपने किस वेबसाइट को देखा है या फिर किस ई-प्लेटफॉर्म से क्या खरीदारी की है। अभी वे इस बड़े डाटा को गूगल और अन्य अंतरराष्ट्रीय आईटी कंपनियों की मदद से हासिल कर लेती थी और उसके अनुरूप अपने व्यवसाय  को विस्तार देती थी। डीएनएस प्रोजेक्ट में इंटरनेट को अनावश्यक या गैर जरूरी वेबसाइट पर जाने से भी रोका जाएगा। इससे इंटरनेट की स्पीड भी बढ़ेगी।एनआईसी की ओर से एक यूनिफाइड मैसेजिंग सेवा भी शुरू की। इसके तहत देश के करोड़ सरकारी ई-मेल सेवा एनआईसी को पहले से अधिक सुरक्षित और मजबूत बनाया जाएगा। जिससे इसमें किसी भी तरह की सेंधमारी नहीं हो पाएगी। यह सभी कार्य बैकएंड या एनआईसी के सर्वर केंद्रों से होगा। ऐसे में आम इंटरनेट उपयोगकर्ता को इसके लिए कुछ नहीं करना होगा। 
डीएनएस प्रोजेक्ट से क्या होंगे फायदे  डीएनएस प्रोजेक्ट के शुरू होने के बाद यह डाटा भारत में ही रहेगा। ऐसे में आपका डाटा विदेशी हाथों या किसी कंपनी के पास नहीं पहुंच पाएगा। कई बार किसी वेबसाइट को सर्च करते हुए आप गलती से किसी पोर्न या अन्य साइट पर चले जाते हैं। डीएनएस प्रोजेक्ट के तहत आपको गलत वेबसाइट पर जाने से रोका जाएगा। देश में करोड़ों लोग हर पल गलत साइट पर चले जाते हैं। जब यह योजना प्रभावी हो जाएगी तो इससे इंटरनेट की स्पीड भी बढ़ जाएगी क्योंकि हजारों-करोड़ों लोग गलत साइट पर जाने से बचेंगे। जिससे इंटरनेट की स्पीड बढ़ जाएगी। इस अधिकारी ने कहा कि इसी तरह सरकारी ईमेल सेवा एनआईसी के लिए दोहरे पासवर्डविदेश जाने पर वहां उपस्थित होने की सूचना देने जैसे महत्वपूर्ण उपाय किये जा रहे हैं। जिससे कोई अन्य आपका ईमेल हैक नहीं कर पाएगा। इसी तरह से देश में भी सरकारी ईमेल सेवा के लिए पासवर्ड के साथ ही मोबाइल पर अलर्टउंगुली के निशानचेहरे की पहचान के नियम शुरू किये जा रहे हैं।भारत ने देर से ही सही आंकड़ों के महत्व को समझते हुए कदम उठाने शुरू कर दिए है | चीन से इस मामले में सीख भी ली जा सकती है| चीन ने हमेशा से ही अमेरिका व उसके इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों से सुरक्षित दूरी बनाये रखते हुए अपने खुद के विकल्प तैयार किये  है| जहाँ विश्व के सभी देश अमेरिका को सुपरपॉवर के रूप में देखते हैं वहीँ चीन खुद ही सुपरपॉवर बनने की दिशा में अग्रसर है| भारत अभी तकनीकी रूप से बहुत पीछे है| ऐसे में डाटा की महत्ता को ध्यान में रखते हुए अब दायित्व सरकार का बनता है कि वह देश के लोगों का डाटा देश में ही रखने के लिए पर्याप्त कदम उठाये| चूँकि सरकार भी डिजिटल होने की दिशा में लगातार प्रयास कर रही है , साथ ही आधार व डिजिटल होते बैंक खातों व इसी तरह की सुविधाओं से देश में रहने वाले लोगों का डाटा भी संचित कर रही है| ऐसे में यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि डाटा को लेकर लोगों में भरोसा बना रहे| देश की भौगौलिक सीमा में रहने वाले लोगों की तरह ही उनका डाटा भी भौगौलिक सीमा  के अन्दर ही रहे| साथ ही आने वाले दिनों में डिजिटल होती दुनियां और आगे बढ़ेगी| ऐसे में डाटा का संरक्षण बेहद महत्वपूर्ण है|
दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण में 18/03/19 को प्रकाशित 

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