Saturday, January 25, 2020

अभी तो इंटरनेट से बीस हैं थियेटर

बढ़ती तकनीक के साथ ही सिनेमा और मनोरंजन के रूप  बदल रहे हैं ।आज फिल्मकारों की कोशिश रहती है कि वह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी पहुंच बना सके और ऐसा संभव भी हुआ है । इंटरनेट के साथ ही ऐसी अलग-अलग सेवाएं भी उत्पादित हुई हैं ,जो कि हमें मनोरंजन, फिल्में ,वेब सीरीज आदि फोन और टीवी पर ही देखने का मौका देते हैं । आज  हॉटस्टार, नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम जैसे ऐसे कई सारे ओवर-द-टाप मीडिया स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म मौजूद है, जिनकी लोकप्रियता दिन पर दिन बढ़ती जा रही है । अधिकांश स्ट्रीमिंग सेवाएं केवल सब्सक्रिप्शन के साथ इस्तेमाल की जा सकती हैं , तो कुछ सेवाएं ऐसी भी हैं ,जो विज्ञापनों के साथ आपको  मुफ्त  भी मिलती है।फिल्मों और संगीत के लिए लोग  आज स्ट्रीमिंग सब्सक्रिप्शन खरीद रहे हैं। के पी एम् जी मीडिया और इंटरटेमेंट रिपोर्ट 2018 के अनुसार भारत में ओ टी टी पैंतालीस प्रतिशत की वृधि दर से बढ़ते हुए साल 2023 तक 138 बिलियन रुपये का हो जाएगा |अर्नेस्ट एंड यंग की रिपोर्ट के अनुसार देश में साल 2020 तक ओ टी टी यूजर्स की संख्या पांच सौ मिलियन हो जायेगी जो अमेरिका के बाद भारत को सबसे ज्यादा ओ टी टी यूजर्स की संख्या का विश्व में दूसरे नम्बर का देश बना देगी |ऐसा माना जाने लगा है कि ऑनलाइन मीडिया स्ट्रीमिंग प्लेटफोर्म के आने से हमारे सिनेमा के उपर वैसा ही खतरा मंडराने लग गया है जिस तरह का खतरा नब्बे के दशक में वी सी आर ने सिनेमा को दिया था ,पर आंकड़े कुछ और ही कहानी कह रहे हैं | ऑनलाइन मीडिया स्ट्रीमिंग प्लेटफोर्म के यूजर्स भले ही बढ़ रहे हों पर आज भी लोग सिनेमा हॉल  में ही जाकर फिल्में देखना पसंद कर रहे  हैं । देश के सबसे बड़े सिनेमा चेन पी वी आर की आय पिछले साल के मुकाबले  मार्च 2019 में बतीस प्रतिशत की दर से बढ़कर 3118.70 करोड़ रूपये (437 मिलीयन डॉलर ) हो गयी | 
वहीं सिनेमा हॉल में आने वाले लोगों की संख्या भी पच्चीस प्रतिशत बढ़ी है |लोगो ने सिनेमा हाल आकर सिर्फ फिल्म ही नहीं देखी बल्कि वहां आकर खाने पीनेपर किये जाने वाले खर्च में अडतीस प्रतिशत की दर से बढ़ोत्तरी हुई है | जिसका मुनाफा सिनेमा को हुआ।इन आंकड़ों के आईने में यह माना जा सकता है कि देश में सिनेमा हाल में टिकट खरीद कर फिल्म देखने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है |जबकि उनके पास ओटीटी का सस्ता और अच्छा विकल्प मौजूद है | हालाँकि, स्ट्रीमिंग की सुविधा ,सिनेमा हॉल में फिल्मों के आकर्षण को कम नहीं करती है।  कबीर सिंह और उरी जैसी फिल्मों ने इस साल रिकॉर्ड-तोड़ बॉक्स ऑफिस पर 276 करोड़ रुपये और 244.01 करोड़ रुपये की कमाई की।  तो वहीं मिशन मंगल, छिछोरे, द लायन किंग और ड्रीम गर्ल जैसी अन्य फिल्मों ने आश्चर्यजनक रूप से शानदार प्रदर्शन किया, आयुष्मान खुराना की सभी तथाकथित छोटी फिल्में जैसे आर्टिकल 15, बाला और ड्रीम गर्ल, उम्मीदों से अधिक कमाई करने वाली निकलीं।  जबकि बड़े बजट वाली ठ्ग्स  ऑफ़ हिन्दुस्तान जैसी फ़िल्में मुंह के बल गिरी |आंकड़े यह बताते हैं कि देश का सिनेमा बदल रहा है और दर्शकों का सिनेमा देखने का नजरिया भी |देश में अभी भी फिल्म देखना एक सामूहिक क्रिया है और यही सामूहिकता सिनेमा की लोकप्रियता के लगातार बढ़ने का कारण है |मोबाईल की स्क्रीन और बड़े एंड्रयाड टीवी सिनेमा हॉल के उस अनुभव को नहीं दे सकते जो सिनेमा हॉल देता है क्योंकि तब दर्शक उसकी विषय वस्तु के साथ एक तरह का तादातम्य स्थापित कर लेता है जबकि ओटीटी पर सिनेमा का अनुभव टुकड़ों में कटा सा मिलता है | 
सिनेमा  देखने की आदत हमारे सामाजिक ताने-बाने का हिस्सा रही हैं । पर ओटीटी की बढ़ती लोकप्रियता की वजह से सिनेमा को चुनौतियां का सामना करना  पड़ रहा है|  इस सब के बावजूद भी देश में सिनेमा स्क्रीन की संख्या जरुरत से कहीं कम स्क्रीन है|साल 2018 में चीन में 30,000 से ज्यादा सिनेमा स्क्रीन थे। जिसकी तुलना में भारत में 10,000 स्क्रीन भी नहीं थी| देश में  प्रति मिलियन लोगों पर  केवल आठ स्क्रीन है। दो-तिहाई भारतीय आबादी आज भी फिल्में रिलीज होने के बाद तुरंत उस समय उन्हे नहीं देख पाती   हैं देश की  फिल्म इंडस्ट्री हर साल 300 से 400 मल्टीप्लेक्स स्क्रीन जोड़ रही है। अप्रैल 2019 में आई नाक्स ने भी अगले 2 वर्षों में 850  स्क्रीन बढ़ाने का लक्ष्य रखा  है ,वही अजय देवगन की कम्पनी  एनवाई सिनेमा का भी लक्ष्य अगले 5 साल में ढाई सौ स्क्रीन बढ़ाने का है। बढ़ते स्क्रीन काउंट के साथ-साथ थिएटर के अनुभव को भी समय के साथ बढ़ाया गया है और यह बेहतरीन हुआ है । आज के परिवेश को देखें तो हालांकि स्ट्रीमिंग सेवाएं लोकप्रिय हैं ,पर आज भी सिनेमा जाकर फिल्में देखने के अनुभव का कोई मुकाबला नहीं है। हर छह में से एक भारतीय हर हफ्ते एक फिल्म देखता है और इसे परिवार और दोस्तों से मिलने जुलने का जरिया भी कहा जाता है।उल्लेखनीय है कि सिनेमा पर जो फिल्म नई  लगी होती है,वह  नेटफ्लिक्स या किसी और ऑनलाइन मीडिया स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म पर सात या आठ हफ्ते के बाद उपलब्ध हो पाती हैं । जिसकी वजह से उसमें लोगों की उतनी रुचि नहीं रह जाती और लोग सिनेमा जाकर ही फिल्म देखना पसंद करते हैं। इसके अलावा, ओटीटी उद्योग उत्पादकों के लिए एक बढ़ते राजस्व का जरिया बन गया है, जो सिनेमाघरों के लिए बड़ी और बेहतर फिल्में बनाने के लिए उस पैसे का उपयोग कर रहे हैं। मीडिया स्ट्रीमिंग मनोरंजन का सशक्त  विकल्प बनकर तो उभरा है पर अभी यह सिनेमा की जगह नहीं ले पाया है । सिनेमा की लोकप्रियता आज भी वैसे ही बरकरार हैं पर भविष्य में भी ऐसा ही रहेगा यह निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी |
नवभारत टाईम्स में 25/01/2020 को प्रकाशित 

Tuesday, January 14, 2020

रोजमर्रा की जरुरत बना इंटरनेट

इंटरनेट शुरुवात में किसी ने नहीं सोचा होगा कि यह एक ऐसा आविष्कार बनेगा जिससे मानव सभ्यता का चेहरा हमेशा के लिए बदल जाएगा | आग और पहिया के बाद इंटरनेट ही वह क्रांतिकारी कारक जिससे मानव सभ्यता के विकास को चमत्कारिक गति मिली|इंटरनेट के विस्तार के साथ ही इसका व्यवसायिक पक्ष भी विकसित होना शुरू हो गया|प्रारंभ में इसका विस्तार विकसित देशों के पक्ष में ज्यादा पर जैसे जैसे तकनीक विकास होता गया इंटरनेट ने विकासशील देशों की और रुख करना शुरू किया और नयी नयी सेवाएँ इससे जुडती चली गयीं  |आज के वक्त में इंटरनेट के बगैर जीवन की कल्पना करना थोडा मुश्किल है |जम्मू कश्मीर में लगी इंटरनेट की पाबंदी के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी यह इशारा करती है कि अब इंटरनेट महज एक तकनीक भर नहीं रहा बल्कि  हमारी जीवन शैली का अंग बन चुका है |सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इंटरनेट के जरिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत मौलिक अधिकार है। इंटरनेट के जरिए कारोबार करने के अधिकार को भी अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत संवैधानिक संरक्षण मिला हुआ है।इंटरनेट को एक तय अवधि की जगह अपनी मर्जी से कितने भी समय के लिए बंद करना टेलीकॉम नियमों का उल्लंघन है।स्कूल-कॉलेज और अस्पताल जैसी जरूरी सेवाओं वाले संस्थानों में इंटरनेट बहाल किया जाना चाहिए।इंटरनेट अब सिर्फ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए ही नहीं जरुरी है बल्कि हमारा पूरा समाजीकरण उसी से निर्धारित हो रहा है  और यह जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है |
इंटरनेट ने लोक व लोकाचार के तरीकों को काफी हद तक बदल दिया है। बहुत-सी परंपराएं और बहत सारे रिवाज अब अपना रास्ता बदल रहे हैं। यह प्रक्रिया इतनी तेज है कि नया बहुत जल्दी पुराना हो जा रहा है। विवाह तय करने जैसी सामाजिक प्रक्रिया पहले परिवार और यहां तक कि खानदान के बड़े-बुजुर्गोंमित्रोंरिश्तेदारों वगैरह को शामिल करते हुए आगे बढ़ती थीअब उसमें भी ’ लग गया है। अब लोग मैट्रीमोनी वेबसाइट की सहायता से जोड़ियां ही नहीं बना रहेशादियां भी रचा रहे हैं। देश की ऑनलाइन मैट्रीमोनी का कारोबार अगले तीन साल में 1,500 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है। इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसारवैवाहिक वेबसाइटों पर साल 2013 में 8.5 लाख प्रोफाइल अपलोड की गईजिनकी संख्या साल 2014 में बढ़कर 19.6 लाख हो गई। यानी एक साल में 130 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी । सामाजिक रूप से देखेंतो जहां पहले शादी के केंद्र में लड़का और लड़की का परिवार रहा करता था,जिसमें भी लड़के की इच्छा ज्यादा महत्वपूर्ण रहा करती थी अब वह धुरी खिसककर लड़के व लड़की की इच्छा पर केंद्रित होती दिखती है। यह अच्छा भी हैक्योंकि शादी जिन लोगों को करनी हैउनकी सहमति परिवार में एक तरह के प्रजातांत्रिक आधार का निर्माण करती हैन कि उस पुरातन परंपरा के आधार परजहां माता-पिता की इच्छा ही सब कुछ होती थी। इस पूरी प्रक्रिया में महिलाओं को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार देने वाला इंटरनेट और शादी करने वाले विभिन्न एप बन रहे हैं |
हमारे रसोई घर इनोवेशन का माध्यम भी हो सकते हैं इस ओर कभी ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया तभी तो दादी नानी के हाथों के बने विभिन्न व्यंजन उनके जाने के साथ इतिहास हो गये पर जब हमारे रसोईघरों को इंटरनेट का साथ मिला तो भारत में एक नई तरह की खाना क्रांति आकार लेने लगी|ताजा उदाहरण है भारत में एप के माध्यम से घर में बने खाने का तेजी से बढ़ता व्यापार,बदलती जीवन शैलीबढ़ता माध्यम वर्ग और काम काजी महिलाओं की संख्या में इजाफा और दुनिया में दुसरे नंबर पर सबसे ज्यादा स्मार्ट फोन धारकों की उपस्थिति ये कुछ ऐसे कारक हैं जिनसे घर पर खाना बनाने की प्रवर्ति प्रभावित हुई है | बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के अनुसार भारत में खाने का बाजार जो साल 2014 में तेइस लाख  करोड़ रुपये का था | साल 2020 में इस बाजार के बयालीस लाख करोड़ रुपये हो जाने की उम्मीद है और इसमें सबसे बड़ी भूमिका खाने के विभिन्न एप निभा रहे हैं जो घर पर बना खाना वाजिब कीमत पर आपकी मनपसंद जगह पर पहुंचा रहें हैं | ऐतिहासिक रूप से भारत में घर पर  खाना बनाना कभी आर्थिक गणना में शामिल नहीं रहा पर एप के माध्यम से खाने का बढ़ता कारोबार इस मिथक को तोड़ रहा है |
इंटरनेट के आगमन और सोशल नेटवर्किंग साइट्स के बढ़ते चलन ने संचार के चलनों को कई तरह से प्रभावित किया है  जिसमें चिन्हों  और चित्र का इस्तेमाल संवाद का नया माध्यम बन रहा है इसके पहले उपभोक्ता और प्रयोगकर्ता देश के युवा बन रहे हैं |जिसमें हैशटैग सबसे आगे है जो अपनी बात को कहने का एकदम नया जरिया है| हैशटैग सोशल (#) मीडिया में अपनी बात को व्यवस्थित तरीके से कहने का नया तरीका  बन रहा है | जागरूकता के निर्माण के अलावा यह उन संगठनों के लिए वरदान है जिनके पास लोगों को संगठित करने के लिए विशाल संसाधन नहीं है |जिन लोगों के पास न तो समय है और न ही किसी ख़ास विचार धारा के प्रति  प्रतिबद्धता कि वे किसी मार्च ,धरने या अध्ययन समूह में जा सकें |वे  हैशटैग के सहारे तर्क वितर्क का हिस्सा बन रहे हैं सोशल मीडिया पर चलने वाली दिशाहीन बहसें जटिल मुद्दों  को व्यवस्थित कर ज्ञान में एक नया आयाम जोड़ रही हैं | हैशटैग के पीछे नेटवर्क नहीं विचारों का संकलन तर्क शामिल है |इससे जब आप किसी हैशटैग के साथ किसी विचार को आगे बढाते हैं तो वह इंटरनेट पर मौजूद उस विशाल जनसमूह का हिस्सा बन जाता है जो उसी हैश टैग के साथ अपनी बात कह रहा है | दूसरा तरीका है द्रश्यों के सहारे अपनी बात कहना जल्दी ही वह समय  इतिहास हो जाने वाला है जब आपको कोई एसएमएस मिलेगा कि क्या हो रहा है और आप लिखकर जवाब देंगे। अब समय दृश्य संचार का है। आप तुरंत एक तस्वीर खींचेंगे या वीडियो बनाएंगे और पूछने वाले को भेज देंगे या एक स्माइली भेज देंगे। फोटो या छायाचित्र बहुत पहले से संचार का माध्यम रहे हैंपर सोशल नेटवर्किंग साइट्स और इंटरनेट के साथ ने इन्हें इंस्टेंट कम्युनिकेशन मोड (त्वरित संचार माध्यम) में बदल दिया है। अब महज शब्द नहींभाव और परिवेश भी बोल रहे हैं। इस संचार को समझने के लिए न तो किसी भाषा विशेष को जानने की अनिवार्यता है और न ही वर्तनी और व्याकरण की बंदिशें। तस्वीरें पूरी दुनिया की एक सार्वभौमिक भाषा बनकर उभर रही हैं।
सजे हुए परंपरागत बाजार अभी इतिहास की चीज नहीं हुए हैंशायद होंगे भी नहींपर ऑनलाइन शॉपिंग ने उनको कड़ी टक्कर देनी शुरू कर दी है। परंपरागत दुकानों की तरह ही ऑनलाइन खुदरा व्यापारियों के पास हर सामान उपलब्ध हैं। किताबों से शुरू हुआ यह सिलसिला फर्नीचरकपड़ोंबीजकिराने के सामान से लेकर फलसौंदर्य प्रसाधन तक पहुंच गया है। स्नैप डील कम्पनी की रिपोर्ट के अनुसार फिलहाल भारत में ऑनलाइन बाजार 800 अरब डॉलर का है जो लगातार बढ़ रहा है और वर्ष 2025 तक यह लगभग 2,000 अरब डॉलर का हो जायेगा |अब वक्त आ गया है कि सरकार आपात स्थिति में इंटरनेट बंद करने के इतर विकल्पों पर विचार करे क्योंकि इंटरनेट अब एक आवश्यक आवश्यकता बन चुका है |
दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण मे 14/01/2020 को प्रकाशित 

कमाता है पर काम नहीं देता सोशल मीडिया

सोशल मीडिया का दशक आने वाले वक्त में जब कभी सोशल मीडिया की बात की जायेगी साल दो हजार का दशक इस मायने में महतवपूर्ण होगा क्योंकि यही वह दौर था जब सोशल मीडिया फला फूला और उसके राजनैतिक सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभावों पर भी चर्चा शुरू हुई |जाहिर है भारत इससे अछूता नहीं रहा क्योंकि सोशल मीडिया के इस युग का केंद्र भारत ही रहा |साल 2010 में जो सोशल मीडिया आशाओं का अग्रदूत बन कर उभर रहा था वो साल 2020 तक आते –आते फेक न्यूज और लोगों की राजनैतिक विचारों को प्रभावित करने जैसे आरोपों का शिकार  हो चुका था |फेसबुक ,ट्विटर और इन्स्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफोर्म के  राजनैतिक सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभावों पर तो काफी चर्चा हुई पर इस दशक में सबसे कम चर्चा इसके आर्थिक पक्ष की हुई |सोशल मीडिया की आंधी में हमें इस तथ्य को नहीं भूलना चाहिए कि कोई भी नयी तकनीक रोजगार के नए अवसर पैदा करती है और नए उन्नयन और नवोन्मेष को बढ़ावा देती है |इस कसौटी पर सोशल मीडिया को अभी तक नहीं कसा गया ||साल 2018 में फेसबुक ने पचपन बिलियन डॉलर और गूगल ने एक सौ सोलह बिलियन डॉलर विज्ञापन से कमाए |मजेदार तथ्य यह है कि फेसबुक कोई भी उत्पाद नहीं बनाता है| डाटा आज की सबसे बड़ी पूंजी है यह डाटा का ही कमाल  है कि गूगल और फेसबुक जैसी अपेक्षाकृत नई कम्पनियां दुनिया की बड़ी और लाभकारी कम्पनियां बन गयीं है|डाटा ही वह इंधन है जो अनगिनत कम्पनियों को चलाए रखने के लिए जिम्मेदार हैं |वह चाहे तमाम तरह के एप्स हो या विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साईट्स सभी उपभोक्ताओं के लिए मुफ्त हैं |इसका मतलब यह है की सोशल मीडिया में रोजगार के कई सारे नए अवसर पैदा किये होंगे |भारत मे 462 मिलियन लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं जिसमे से करीब 250 मिलियन लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं । सबसे ज्यादा पेनिट्रेशन फेसबुक और यू ट्यूब का है। आज की सर्च के मुताबिक आज के दिन नौकरी डॉट कॉम पर सोशल मीडिया से संबंधित केवल 19057 नौकरियाँ  हैं। इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2018 के कारोबारी साल में फेसबुक इंडिया के मुनाफे में 40 प्रतिशत उछाल आया है । जबकि 2019 के कारोबारी साल में ये ही मुनाफा बढ़ कर 84% हो गया ।यू ट्यूब के भारत मे 265 मिलियन एक्टिव यूज़र्स हैं लिंकेडीन के भारत मे 50 मिलियन एक्टिव यूजर है 2017 के कारोबारी साल से लिंकेडीन का मुनाफा 26 प्रतिशत बढ़ा है|भारत मे हेलो टिकटोक और वीगो वीडियो की स्वामित्व वाली कम्पनी बाइट डांस के करीब 250 मिलियन एक्टिव यूजर है इस कंपनी ने कारोबारी साल 2019 में 3.4 करोड़ का मुनाफा कमाया । ज़ैउबा कॉर्प के हिसाब से इस कंपनी के भारत मे 10 से कम कर्मचारी है | लिंकेडीन के भारत मे मात्र 750 कर्मचारी  हैं | इन आंकड़ों की रौशनी में यह दिखता  है  कि सोशल मीडिया साइट्स में प्रत्यक्ष रोजगार बहुत ही कम है और इन सभी साइट्स की ज्यादातर आमदनी "यूजर सेंट्रिक"  विज्ञापन से होती है और जबकि ज्यादातर ये सभी साइट्स फ्री है परन्तु उपभोक्ता को फ्री यूज़ की कीमत अपनी निजी जानकारी से चुकाता है | इंसान एक डाटा (आंकड़े )में परिवर्तित हो गया और आज इससे मूल्यवान कोई चीज नहीं है असल मे जो चीज हमें मुफ्त दिखाई दे रही है वह सुविधा हमें हमारे संवेदनशील निजी डाटा के बदले मिल रही है |इनमे से अधिकतर कम्पनियां उपभोक्ताओं द्वारा उपलब्ध कार्य गए आंकड़ों को सम्हाल पाने में असफल रहती हैं जिसका परिणाम लागातार आंकड़ों की चोरी और उनके  दुरूपयोग के मामले सामने आते रहते हैं  और इसकी आमदनी का बड़ा हिस्सा विज्ञापनों से आता है और आप क्या विज्ञापन देखेंगे इसके लिए आपको जानना जरुरी है |यही से आंकड़े महत्वपूर्ण हो उठते हैं और इनको जुटाने में सोशल मीडिया साईट्स ने एक बड़ी भूमिका निभाई है | किसे भी सोशल मीडिया पर आते ही  उपभोक्ता डाटा में तब्दील हो जाता है| फिर उस डाटा ने और डाटा ने पैदा करना शुरू कर दिया |इस तरह देश में हर सेकेण्ड असंख्य मात्रा में डाटा जेनरेट हो रहा है पर उसका बड़ा फायदा इंटरनेट के व्यवसाय में लगी कम्पनियों को हो रहा है |
आधिकारिक तौर पर सोशल मीडिया से भारत मे  कितने रोजगार पैदा हुए इसका विशेष उल्लेख नही मिलता क्योंकि ये सारी कम्पनियां इन से सम्बन्धित आंकड़े सार्वजनिक रूप से नहीं जारी कर्तीब  । साथ ही प्रत्यक्ष रोजगार के काफी कम होने का संकेत इन कम्पनीज के एम्प्लाइज की कम संख्या से प्रमाणित होता  है । बिजनेस स्टैण्डर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 में भारत में गूगल और फेसबुक ने 1०००० करोड़ रुपये कमाए |वहीँ  इकॉनमिक टाइम्स की रिपोर्ट के हिसाब से 2019 में रिलायंस इंडस्ट्रीज  ने 11,262 करोड़  रुपये कमाए परन्तु जब हम दोनों कम्पनीज से मिले प्रत्यक्ष रोजगार और साथ ही उसके साथ बने इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास को देखते हैं तो दोनों में जमीन आसमान का अंतर मिलता हैं | इंफ्रास्ट्रक्चर और कंज्यूमर  गुड्स जैसे पारंपरिक उद्योग अपने रेवेन्यू के मुकाबले कहीं ज्यादा रोजगार देते हैं ।जैसे 90 बिलियन डॉलर वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज 194056 लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार देती है और इससे कहीं ज्यादा लोग वेन्डर कंपनियों के माध्यम से रोजगार पाते हैं। अकेले टाटा स्टील ही 660,800 लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार देती हैं |यह आंकड़ा अपने आप काफी कुछ कह देता है |सोशल मीडिया आम भारतीय के लिए मनोरंजन के माध्यम से ज्यादा कुछ उपयोगिता नही रखता । ग्लोबल वेब इंडेक्स सोशल मीडिया ट्रेंड की रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर एक यूजर लगभग 2.5 घण्टे दिन में  सोशल नेटवर्क और मेसेजिंग में खर्च करता है| वहीँ ट्रेंडिंग एकनॉमिस की एक स्टडी के मुताबिक भारत में डेली वेजेस में अनुमानतः एक व्यक्ति 2020 में 372 रूपये घण्टा कमायेगा तो इस हिसाब से सोशल मीडिया पर महीने में औसतन एक व्यक्ति अपने नौ काम के घंटे खर्च करता है जिससे वह महीने में न्यूनतम 3348 रुपये और साल के 40176  रुपये कोई और उत्पादक काम करते हुए कमा सकता है जिस प्रकार पारम्परिक मनोरंजन के साधनो में कुछ रोजगार के अवसर पैदा होते हैं वैसे ही सोशल मीडिया के साथ भी है परन्तु इसका लाभ कुछ सीमित  व्यक्तिओं और संस्थाओं तक ही सीमित है | उम्मीद की जानी चाहिए कि अगला दशक सोशल मीडिया के मालिकों द्वरा कमाई जा रही आय के एक हिस्से को उन तक पहुंचाने का होगा जिनके कौशल के कारण ये  कम्पनिया चल रही हैं |
नवभारत टाईम्स में 14/01/2020  को प्रकाशित 
x

पसंद आया हो तो