Sunday, January 31, 2021

सिक्किम यात्रा :पहला भाग

गंगटोक कुछ ऐसा दिखता है 
मेरे लिए यात्रा का मतलब घूमना कभी नहीं रहा अमूमन मेरा पालन पोषण जिस परिवेश में हुआ है वहां महज घूमने के लिए यात्रा करना पैसे की बर्बादी है हाँ अगर आप किसी काम से कहीं जा रहे हैं और उसके साथ यात्रा हो जाए तो बढ़िया,

मैंने अपने जीवन में कई परम्पराओं को तोडा है  जिसके गवाह मेरे अपने रहे हैं जब तक माता पिता के ऊपर आर्थिक रूप से निर्भर रहा उनके हिसाब से जीवन जीया पर जैसे ही आर्थिक रूप से स्वावलंबी हुआ सारी बेड़ियाँ एक एक करके तोड़ता गया और उन्हीं बेड़ियों में से एक है जब मौका मिले कहीं घूमने निकल जाओ |सच बताऊँ मैं बहुत आराम तलब आदमी हूँ और यात्रा मुझे कष्ट देती है पर यह कष्ट मुझे मजा देता है हर यात्रा के बाद मैं एक नए तरह का नजरिया लेकर वापस लौटता हूँ |मैं कौन हूँ इस दुनिया में क्या कर रहा हूँ ऐसे प्रश्नों के जवाब तो नहीं मिलते पर जवाब  के थोडा और करीब हो जाता हूँ और शायद इसीलिये जब भी मुझे मौका मिलता है मैं इस कष्ट का मज़ा लेने निकल पड़ता हूँ |

वो कहते हैं न “मेरे मन कुछ और कर्ता के मन कुछ और” तो जिस यात्रा के लिए मैं इस बार निकल रहा था तब मेरे दिमाग में सिर्फ कुछ दिन आराम करना और भारत को थोडा और करीब से देखना था इससे ज्यादा कुछ नहीं था पर जब मैं इस यात्रा से लौटा तो जीवन के प्रति एक नया नजरिया पुष्ट होता गया और वो था “कर्ता बनने की कोशिश न करो” जीवन एक नदी है बस जिस तरफ नदी ले जा रही है चुपचाप बहते चलो,हम कुछ नहीं कर रहे हैं हमसे सब करवाया जा रहा है क्योंकि हमारा जीवन एकांगी नहीं यह बहुत से लोगों के जीवन से बंधा हुआ इसलिए यह संभव ही नहीं है कि आप कुछ कर रहे हैं |मैं अपनी बात और स्पष्ट करता हूँ और लौटता हूँ उस यात्रा वृतांत की ओर जिसकी उम्मीद में आप मेरा ब्लॉग पढ़ रहे हैं |इस बार मैंने पूर्वोत्तर भारत देखने का निश्चय किया पर कहाँ जाऊं कुछ समझ नहीं आ रहा था |गूगल किया और उससे भ्रम काफी बढ़ गया पूर्वोत्तर में कई राज्य हैं सबकी अपनी विशिष्टता हैं |मेरे पास किसी तरह एक हफ्ते का समय था तो मैंने सिक्किम जाने का निश्चय किया और जिसमें तीन दिन गैंगटोक एक दिन पीलिंग और दो दिन दार्जिलिंग शामिल थे| मैंने पहले ही लिखा मैं बहुत आरामतलब इंसान हूँ और उसी कारण पहले से ही सब व्यवस्था कर ली थी दिल्ली से बागडोगरा हवाई जहाज से,लखनऊ से दिल्ली ट्रेन से ,सब निश्चित था|

मतलब कहीं कोई तनाव न हो और मैं यात्रा का लुत्फ़ उठा सकूँ पर यहीं से होनी का खेल शुरू हुआ मेरी फ्लाईट के जाने और ट्रेन के  पहुँचने के बीच लगभग सात घंटे का फासला था पर हमारी ट्रेन रास्ते में ही रह गयी और फ्लाईट हमें छोड़ के बागडोगरा के लिए उड़ गयी |यात्रा अभी शुरू हुई थी कि मेरे अनुभवों का खजाना भरने लग गया एक नए तरह का अनुभव जिसकी आजतक कोई ट्रेन न छूटी हो उसे हवाई जहाज के छूटने का सदमा सहना था खैर थोड़ी देर तनाव रहा फिर गीता सार याद आया क्या ले के आये थे बस सारा तनाव छूमंतर |अब शांत दिमाग से आगे की योजना पर ध्यान देना था नए टिकट बुक करने थे और समय पर बागडोगरा पहुंचना था जिससे आगे की बुकिंग न प्रभावित न हो खैर एयरपोर्ट पहुँचने से पहले मैं टिकट बुक कर चुका था अब अगली फ्लाईट का इन्तजार था जो दिन के तीन बजे उड़ने वाली थी मैं सोच रहा था अगर मेरी फ्लाईट न छूटी होती तो इस वक्त मैं बागडोगरा में होता खैर जीवन यूँ होता तो क्या होता जैसी सोच में बीत ही जाता है |खैर हम नियत समय पर बागडोगरा पहुँच गये |बागडोगरा एयरपोर्ट सिलीगुड़ी शहर में सेना द्वारा बनाया एयरपोर्ट है हरे भरे खेतों के बीच एक बहुत छोटा सा हवाई अड्डा जहाँ आप परेशान हो जायेंगे पिछले एक दशक में पूर्वोत्तर भारत आने वाले पर्यटकों की संख्या में खासी वृद्धि हुई है पर एअरपोर्ट की हालत बुरी है खैर दिनभर की भगादौडी के बाद अभी हम अपनी मंजिल पर नहीं पहुंचे थे |यहाँ से सिक्किम की राजधानी गंगटोक हमारा ठिकाना थी लगभग एक सौ बीस किलोमीटर की सड़क यात्रा अभी और करनी थी वह भी पहाडी रास्तों में ,हमारी टैक्सी पहले से ही बुक थी |
तिस्ता दिन के समय 

ड्राइवर  सुकुल राय मिले ,पहली नज़र में मुझे वो एक घाघ टैक्सी ड्राइवर लगे मैंने सोचा पूरे रास्ते मैं चुप रहूँगा और दिन भर की थकान को सो कर पूरा करूँगा और हो भी क्यों न मैं सुबह तीन बजे से जग रहा था और मेरी ट्रेन के दिल्ली पहुँचने का सही समय साढ़े चार बजे था खैर हम बागडोगरा एयरपोर्ट से बाहर आये कहने को हम पश्चिम बंगाल में थे पर हर जगह बिहार के लोग मिल रहे थे उनके बोलने के अंदाज़ से साफ़ अंदाजा लगाया जा सकता था कि इनकी जड़ें बिहार में हैं |मैंने सुकुल जी से पूछा गंगटोंक पहुँचने में कितना वक्त लगेगा उसने कहा हम बड़ी आसानी से तीन साढ़े तीन घंटे में गंगटोंक पहुँच जायेंगे |मैंने शुक्र मनाया कि रात के नौ बजे तक हम होटल के अपने कमरे में होंगे पर वो दिन सचमुच एक खराब दिन था और आगे नियति हमारे सब्र की और परीक्षा लेने वाली थी हम सिलीगुड़ी से गंगटोंक के लिए बढे जमीन धीरे -धीरे ऊँची होने लगी मतलब हम पहाड़ पर जा रहे थे |सच बताऊँ किताबो के अलावा मुझे पूर्वोत्तर भारत का कोई ख़ास अंदाज़ा नहीं था पर यह यात्रा मेरी भारत के बारे में धारणा को हमेशा के लिए बदलने वाली थी |

हम उत्तर भारतीय लोग सिर्फ टीवी चैनल से अंदाजा लगाते हैं कि भारत क्या है और उसकी समस्याएं कैसी हैं |मेरे अंदाज़े के विपरीत सुकुल (ड्राइवर ) एक भले और ईमानदार इंसान निकले अगर उनको मैं पूर्वोत्तर के वाहन चालकों का प्रतिनिधि मानूं तो जो मेरी धारणा उत्तर भारत के ड्राइवरों को देख कर बनी थी पूर्वोत्तर के ड्राइवर ज्यादा स्वाभिमानी और मेहनतकश होते हैं |उन्होंने बताया हम लगभग दो घंटे पश्चिम बंगाल में चलेंगे और पैतालीस मिनट सिक्किम में ,शाम हो चुकी थी सूरज डूब रहा था और पहाड़ पहले हरे फिर धीरे -धीरे काले होने लग गये हवा में ठंडक थी पर इतनी भी नहीं कि आपको ठंडक लगे गाड़ी के शीशे खोल दिए गये और मैं जल्दी से सिक्किम पहुँच जाना चाहता था |

डूबता सूरज और ऊपर चढ़ते हम 
पहाडी संकरे रास्ते को सुकुल जी नेशनल हाई वे बता रहे थे इतने संकरे रास्ते को हम उत्तर भारतीय गली ही कह सकते हैं गाड़ी धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी मेरी निगाह थकान के बावजूद रास्ते पर जमी हुई थी |मेरा एक अवलोकन रहा है वो चाहे लद्दाख हो या उत्तरांचल या फिर उडीसा और अब पूर्वोत्तर की देहरी पर सडक किनारे एक खाने की चीज जरुर मिलती और वो है भुट्टा (मक्का ) तो यहाँ भी सडक के किनारे भुट्टे बिक रहे थे बीच -बीच में में कुछ लोग मुज्ज़फर पुर की लीची भी बेच रहे थे हालांकि उससे सस्ती  लीची मैं लखनऊ में खाकर गया था |हमारे साथ -साथ तिस्ता नदी भी अपनी रास्ता तय कर रही थी |वही तिस्ता जिस पर येशु दास का मशहूर गाना "तिस्ता नदी सी तू चंचला सुनकर मैं बड़ा हुआ था |अँधेरा पूरी तरह घिर चुका था पर सडक पर लगने वाला जाम खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था हमारी गाड़ी सरक -सरक कर आगे बढ़ रही थी |सुकुल जी जो मूलतः सिक्किम के रहने वाले नेपाली गोरखा थे अपनी स्थानीय भाषा में आते हुए अपने साथी ड्राइवरों से बात कर रहे थे उनसे मिली सूचना के हिसाब से   हमारे पहुँचने का समय अब बढ़कर रात के ग्यारह बजे हो चुका था उन्होंने जो जाम लगने की  जो कहानी बताई वो काफी रोचक थी दो दोस्त एक इनोवा गाड़ी पर जा रहे थे दोनों में किसी बात पर झगडा हुआ और रक दोस्त ने इनोवा की चाभी निकाल कर उसे नीचे खाई में फेंक दिया और उनकी गाड़ी रोड पर खडी हो गयी बाद में सेना की मदद से उनकी गाड़ी सड़क के किनारे किसी तरह की गयी हमने जाते समय रोड पर उस खडी इनोवा और उन दोस्तों को भी देखा जिनको पुलिस वाले कुछ समझा रहे थे |धीरे –धीरे रात गहराने लग गयी और रास्ते सूने होने लग गए दुकाने बंद थी मैंने पूछा इतनी जल्दी अभी तो आठ ही बजे हैं सुकुल जी ने बताया यहाँ शाम के सात बजे दुकानें बंद हो जाती हैं और सुबह चार पांच बजे खुल जाती हैं |

मैं भारत में ही था पर रास्ते में कोई गाड़ी हॉर्न नहीं बजा रही थी सब शान्ति से एक दूसरे को पास देते हुए आगे बढ़ रहे थे चढ़ती गाड़ी को रास्ता देने के लिए अगर गाड़ी थोड़ी पीछे भी करनी पड़े तो कोई हर्ज़ नहीं सब कुछ शान्ति से हो रहा था मोड़ पर जब दोनों तरफ की गाडिया एकदम अगल बगल होती ड्राईवर हँसते मुस्कुराते हुए एक दूसरे का हाल चाल लेते तिस्ता नदी की आवाज डराने वाली थी सिर्फ हर्र हर्र आवाज रास्ते में कई बाँध भी मिले जिनसे बिजली की जरूरतों को पूरा किया जा रहा है पर रात होने के कारण हम गाड़ी से नहीं निकले |फोटो खींचने का कोई सवाल ही नहीं था |रात के दस बज चुके थे अभी हम गैंगटोक से एक घंटे दूर थे पर भूख जोर मार रही थी सोचा चलो किसी पहाडी ढाबे के भोजन का आनंद लिया जाए वो भी धीरे –धीरे बंद हो रहे थे |गाड़ी किनारे लगी |हमने चाउमीन और चाय का ऑर्डर दिया |सुकुल जी ने हाथ मुंह धोने के लिए एक जगह दिखाई मैंने हाथ  मुंह धोने के बाद जैसे ही सर उठाया नीचे विशाल तिस्ता नदी अपने पूरे वेग से उस चांदनी रात में  बहती दिखी उस दुधिया रौशनी में तिस्ता का पानी चांदी जैसा चमक रहा था और मैं विस्मित खड़ा सोच रहा था आखिर कौन थे वे लोग जो सबसे पहले मानव सभ्यता के केन्द्रों से दूर यहाँ आकर बसे होंगे जहाँ जीवन कठिन लेकिन खुबसूरत है ,वो कौन से कारण रहे होंगे जो लोगों को मैदान छोड़कर पहाड़ में बसने के लिए प्रेरित करते होंगे वो भी तब जब सभ्यता को विकास का रोग नहीं लगा था और यहाँ बसना बहुत दुष्कर रहा होगा |बात ड्राइवरों की हो रही थी जब हम नाश्ता कर रहे थे मैंने सुकुल जी से कहा आप भी नाश्ता कर लो उन्होंने विन्रमता पूर्वक कहा वो सिर्फ चाय पीयेंगे |हम चाय पी ही रहे थे मैंने उनको अपने लिए एक शीतल पेय खरीदते देखा ,चूँकि उत्तर भारत में हमने ड्राइवरों का एक दूसरा रूप देखा भले ही ट्रेवल एजेंसी कहती है कि उनके खाने पीने से सवारी को कोई मतलब नहीं रहेगा पर वे इस जुगाड़ में रहते हैं कि पैसेंजर उनके खाने पीने का खर्चा उठाये पर यहाँ का ड्राइवर इस सारे मामले से ऊपर है और अपने खाने पीने का बोझ किसी भी जुगत से अपनी सवारी पर नहीं डाल रहा था मैंने तुरंत उन्हें पैसा देने से रोका और कहा इसका पैसा भी मैं ही दूंगा |हमारे इस वार्तालाप में ढाबा मालिक भी शामिल हो गया उसने पूछा मैं कहाँ से आया हूँ ,मैंने गर्व से बताया लखनऊ बस फिर क्या था वो बताने लगा वो भी लखनऊ से और विकास नगर में घर है मैंने कहा यहाँ काहे चले आये जंगल में उसने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया और मुस्कुरा के बात को बदल गया उसकी बोलने की शैली से लग रहा था उसकी जड़ें बिहार में हैं हो सकता है लखनऊ में कोई रिश्तेदार रहता हो या उसका आना जाना लगा रहता हूँ एक उत्तर भारतीय के ढाबे में सारे कामगार मजदूर स्थानीय लोग थे यही है चमत्कार वो अपनी जमीन पर मजदूर थे और बाहर से आया एक आदमी मालिक बना बैठा था |अभी हमारा सफर जारी था सुकुल जी की हिन्दी को समझने में थोड़ी दिक्कत हो रही थी इसलिए ज्यादा बातचीत न हो पा रही थी पर एक चीज  हम दोनों में कॉमन थी वो पुराने हिन्दी गानों के प्रति प्रेम खासकर नब्बे के दशक के जब हम जवान हो रहे थे |शांत चांदनी रात में हम नदीम श्रवण ,कुमार शानू ,अलका याग्निक और समीर की शानदार जुगलबंदी में गंगटोंक की तरफ बढ़ते चले जा रहे थे रास्ते धीरे –धीरे चौड़े होते जा रहे थे पर उंचाई बढ़ती जा रही थे सिक्किम में  प्रवेश का एक विशाल द्वार हमारा स्वागत कर रहा था और गूगल मैप बता रहा था होटल देवाचीन रिट्रीट  दस मिनट की दूरी पर है  हम गैंगटोक में थे ..........


जारी 
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Friday, January 29, 2021

परदे पर खेल

 


खेल हमेशा किसी न किसी वजह से चर्चा में रहते हैं फिलहाल ऑस्ट्रेलिया में भारत की धमाकेदार जीत चर्चा में है . वैसे जिंदगी भी तो एक खेल ही है जैसे जिंदगी चलती रहती है वैसे जिंदगी का खेल भी जिंदगी में अगर खेल महतवपूर्ण हैं तो हमारी फ़िल्में भी इनसे कहाँ अछूती हैं बहुत सी फिल्मों की कहानी खेलों के इर्द गिर्द ही घूमती है .१९७७ में बनी  शतरंज के खिलाड़ी’ हालाँकि प्रेमचंद के प्रसिद्ध उपन्यास पर आधारित थी पर शतरंज के बहाने इस फिल्म ने भारत में अंग्रेजों के आने का समय  और नवाबों के रवैये का अच्छा चित्रण किया था १९८४ में बनी हिप्प हिप्प हुर्रेने पहली बार फ़ुटबाल के खेल को बड़े परदे पर उतारा .हार और जीत तो हर खेल के साथ जुडी रहती है पर हार के डर से खेल नहीं छोड़ा जाता है महत्वपूर्ण  है खेल को खेलना अगर ये दर्शन  हम अपने जीवन  में उतार लें तो जिंदगी का खेल टेंशन फ्री हो जाएगा .अस्सी के दशक में खेलों पर आधारित अन्य फिल्मों में बोक्सर(१९८४),आल राउंडर(१९८४),कभी अजनबी थे (१९८५)और मालामाल (१९८८)प्रमुख थी .जिसमें बोक्सर को छोडकर सभी की विषय वस्तु क्रिकेट ही थी आपको याद दिलाता चलूँ यही वह दौर था जब भारत ने १९८३ का क्रिकेट का वर्ल्ड कप जीता था और धीरे धीरे क्रिकेट का जादू लोगों के सर चढ़कर बोलने लगा था .

असल में खेलों की दुनिया कभी हार न मानने की मानवीय प्रवृत्ति को दिखाती  है और यहीं से खेल हमारी जिंदगी से जुड जाते हैं .नब्बे का दशक खेलों के लिहाज़ से ज्यादा बेहतरीन नहीं माना जा सकता सिर्फ दो फ़िल्में ऐसी थी जिनका कथानक खेलों से प्रेरित था अव्वल नंबर’ (१९९२) क्रिकेट और जो जीता वही वही सिकंदर’ (१९९२) सायक्लिंग रेस पर आधारित थी .

फिर आया २००० का दशक दुनिया और खेल में बहुत कुछ बदल चुका था खेल रात में फ्लड लाईट में खेले जाने लग गए खेलों को रोचक बनाने के लिए उनके नियम में बदलाव हुआ और यही वक्त था जब हमारी जिंदगी के नियमों को  मोबाईल और मल्टीप्लेक्स बदल रहे थे बदलाव के इस दौर में  फिल्मों को भी बदलना था हमजोली फिल्म के जीतेन्द्र और लीना चंदावर्कर   के बेडमिंटन मैच के बाद से अब तक काफी कुछ बदल चुका था .इस दशक में क्रिकेट को ध्यान में रखकर एक के बाद एक फ़िल्में आयें जिनमे सबसे पहले लगान(२००३) का जिक्र करना जरूरी है ये वो पहली फिल्म थी जिसने पारम्परिक  भारतीय सिनेमा की ताकत का एहसास दुनिया को कराया .लगान के अलावा स्टम्प्ड (२००३),इकबाल (२००५) हैटट्रिक (२००७) से सलाम इंडिया (२००७)दिल बोले हडिप्पा (२००७ ) ऐसी और फ़िल्में थी.

 

 क्रिकेट पर ज्यादा फ़िल्में बनने का कारण लोगों में इस खेल के प्रति जुनून की हद तक लगाव है ऐसे में चक दे इंडिया’ एक नया नजरिया ले कर आयी सिनेमा के रूपहले परदे पर जिसका विषय एकदम नया और अनोखा था महिला हॉकी  फिल्म ने सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किया और लोगों में होकी के प्रति एक नया जोश भरा .ऐसा नहीं है कि फ़िल्में पोपुलर स्पोर्ट्स को ध्यान में रखकरबनाई जाती हैं तीन पत्ती :ताश तारा रम  पम :रेसिंग स्ट्राइकर: कैरम लाहौर:किक बॉक्सिंगमेरी कोम: बॉक्सिंग,और भाग मिल्खा भाग:दौड़   पर आधारित फिल्में  हैजैसी  विविधता खेलों  में है वो हमारी फिल्मों में भी दिखती  है पर जैसे खेल को खेल भावना से खेला जाता है उसी तरह से जिंदगी के खेल को भी खेलिए आज अगर आप हारें तो कल जीत भी सकते हैं और अगर आज जीते हैं तो कल हार भी सकते हैं .


प्रभात खबर में 29/01/2021 को प्रकाशित 


Thursday, January 28, 2021

शेयार बाजार में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स

 


इंटरनेट की दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण बात है इसकी गतिशीलता नया बहुत जल्दी पुराना हो जाता है और नई संभावनाओं के द्वार खुल जाते हैं .सोशल मीडिया प्लेटफोर्म नित नए रूप बदल रहे हैं उसमें नए नए फीचर्स जोड़े जा रहे हैं .इस सारी कवायद का मतलब ऑडिएंस को ज्यादा से ज्यादा वक्त तक अपने प्लेटफोर्म से जोड़े रखना .इसका बड़ा कारण इंटरनेट द्वारा पैदा हो रही आय भी है .अब सोशल मीडिया इतना तेज़ और जन-सामान्य का संचार माध्यम बन गया कि इसने हर उस व्यक्ति को जिसके पास स्मार्ट फोन है और सोशल मीडिया पर उसकी एक बड़ी फैन फोलोविंग  वह एक चलता फिरता मीडिया हाउस बन गया  है और इसी से उभरी है सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर की एक नयी पौध| कोरोना लॉक डाउन के समय जब सभी घर में बैठकर पारिवारिक समय बीता रहे थे तभी बहुत से नए चेहरे शेयर मार्केट के बारे में जानकारी देने के क्षेत्र में उतरे |

मूलत: अर्थ और वित्त के क्षेत्र में अपनी जटिलता के कारण ऑडिएंस के तौर पर  नए लोग इनसे जुड़े कंटेंट से दूरी बना कर रखते हैं और वे संगीत समाचार और कॉमेडी जैसी शैलियों में ही संतुष्ट रहते हैं पर देश के बढ़ते माध्यम वर्ग और इंटरनेट के विस्तार ने इस क्षेत्र में कंटेंट की जरुरत पर इंटरनेट कंटेंट क्रियेटर का ध्यान खींचा |

 आम तौर पर सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर ब्रांड और सेवाओं के अलावा संगीत और कॉमेडी जैसे क्षेत्र में ही अपनी पहुँच का इस्तेमाल करते थे, पर कोविड काल ने बहुत कुछ बदला है और उसी का परिणाम है इन सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर का अर्थ और वित्त जैसे मुश्किल विषय में उतरना और तेजी से लोकप्रिय हो जाना भी शामिल है | ऑनलाईन वीडियो इन साईट कम्पनी विडूली के अनुसार यूटब के वित्त के क्षेत्र में देश के तीन सबसे बड़े चैनल में प्रो कैपिटल  डॉट मोहम्मद फैज चैनल (298 मिलीयन व्यूज) फिन्नोवेशन जेड डॉट कॉम (99 मिलीयन व्यूज के साथ 1.3 मिलीयन सब्सक्राईबर) और असेटयोगी (78मिलीयन व्यूज के साथ 1.8 मिलीयन सब्सक्राइबर )शामिल हैं| किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के  आंकलन का एक पैमाना देश की कुल जनसख्या का शेयरों में निवेश का प्रतिशत भी होता है,इस संदर्भ में भारत में भारत की स्थिति रोचक है यहाँ लोग शेयर मार्केट में कम निवेश करते हैं एक अरब से ज्यादा आबादी वाले देश में सिर्फ 18 मिलीयन निवेशक हैं|ऐसी ही स्थिति म्युच्युल फंड की है जिसमें सिर्फ दो करोड़ निवेशक हैं | शेयर बाजार के बारे में आम भारतीय को कम जानकारी है और चौबीस घंटे चलने वाले वित्त और व्यवसाय के चैनल भी लोगों की जागरूकता बढ़ा पाने में नाकामयाब रहे|ऐसे में इंटरनेट पर एक बड़ा सेगमेंट इस क्षेत्र में खाली रहा| जिसे सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर की नयी पौध भरने की कोशिश कर रही है|ये सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर उन नए निवेशकों के लिए बड़े लाभकारी है जिन्हें शेयर बाजार के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं और उन्हें शून्य से शुरुआत करनी है |स्टॉक मार्केट की विशेषीकृत शब्दावली आप निवेशकों को परेशान करती है पर इंटरनेट पर अब लाखों ऐसे चैनल हैं जो लोगों को शेयर बाजार की बारीकियों को आसान शब्दों में समझा रहे हैं |सस्ते डाटा ने हर शैली के मीडिया कंटेंट को बढ़ावा दिया है जिसमें शेयर बाजार और अर्थशास्त्र से जुड़े मुद्दे भी शामिल हैं |मार्च में कोविड लॉक डाउन के बाद शेयर बाजार ने बड़ा गोता लगाया था पर अब शेयर बाजार की बढ़त ने ये उम्मीद जगाई है कि कोविड महामारी से क्षतिग्रस्त अर्थव्यवस्था उम्मीद से जल्दी पटरी पर लौट आयेगी |वित्त के क्षेत्र में शामिल सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर न केवल अपने चैनल से पैसे बना रहे हैं बल्कि इस क्षेत्र में अग्रणी कम्पनियों से करार कर उन्हें भी प्रोमोट कर रहे हैं |एक तरफ ऐसे चैनल जहाँ लोगों को अर्थ और वित्त के क्षेत्र में जागरूक कर रहे हैं जो नए लोगों को शेयर मार्केट में जोड़ने और उनका भरोसा जीतने का बड़ा जरिया हो सकता है,लेकिन तस्वीर का एक दूसरा पहलु भी है जिस तरह देश में इंटरनेट का विस्तार हो रहा है उसी रफ़्तार से साईबर अपराध भी बढ़ रहे हैं दिल्ली पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक लॉक डाउन के दौरान सिर्फ दिल्ली में ही साइबर अपराधों में नब्बे प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है जिसमें वित्तीय अपराधों का आंकडा कुल अपराध का पचास प्रतिशत था |एक कंटेंट शैली के रूप में वित्त और अर्थ जैसे विषयों का इंटरनेट पर उभरना देश के आर्थिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा संकेत है लेकिन शेयर बाजार का इतिहास स्कैम और धोखाधड़ी से भरा हुआ रहा है| जिससे नए निवेशक एक निवेश के रूप में उसे एक बेहतर विकल्प के रूप में नहीं देखते वहीं इंटरनेट पर होने वाले वित्तीय लेन देन भी पूरी तरह से सुरक्षित नहीं माने जाते हैं |वहीं रूपये पैसे के मामले में भारतीय एक सुरक्षित निवेश की तलाश में रहते हैं और शेयर मार्केट अनिश्चिताओं से भरा हुआ है |एक अनाम कंटेंट क्रियेटर की राय वित्त और क्षेत्र की बारीकियों को समझने में दर्शकों की मदद भले ही कर सकती हो पर उसकी राय से किया गया शेयर बाजार में किया गया निवेश हमेशा अच्छा भुगतान देगा ऐसा जरुरी नहीं |तो भविष्य में यह देखना दिलचस्प होगा कि अर्थ-वित्त और इंटरनेट की यह जुगलबंदी क्या आम निवेशकों को ज्यादा से ज्यादा शेयर बाजार से जुड़ने के लिए प्रेरित कर पायेगी या यह दौर थोड़े समय बाद थम जाएगा |किसी भी परिस्थिति में यह तो तय है कि इंटरनेट के कंटेंट क्रियेटर संगीत कॉमेडी और समाचार जैसे प्रचलित विषयों से इतर सोच रहे हैं और एक दर्शक के रूप में इंटरनेट पर ऐसे नए विषय दर्शकों को इंटरनेट पर देखने के ज्यादा विकल्प सुझाते रहेंगे |

 नवभारत टाईम्स में 28/01/2021 को प्रकाशित 

 

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