Tuesday, April 21, 2020

मुश्किल दौर में प्रभावी उपाय

कोविड -19 कोरोना वायरस के  देश भर में फैल जाने  के बादमरीज़ों और डॉक्टरों दोनों के लिए आमने-सामने बैठ कर इलाज करना और करवाना जोखिम भरा काम हो गया है इसका परिणाम यह हुआ है कि देश की ज़्यादातर निजी मेडिकल सेवाएं बंद है और सरकारी अस्पतालों का सारा जोर  करोना वायरस से ग्रसित  मरीज़ों के उपचार पर है |देश की स्वास्थ्य सेवाओं का  आधारभूत ढांचा खुद रोगग्रस्त है|ऐसे में ऐसे लोग जो डायबिटीजह्रदय रोग या अन्य सामान्य  जीवन शैली आधारित  बीमारियों से ग्रसित है| जिसमें चिकित्सकों से नियमित जांच की जरुरत होती है|उन लोगों के स्वास्थ्य पर भारी संकट आ गया है |
मोदी सरकार की खासियत यह है कि यह समस्याओं में अवसर खोज लेती है जैसे नोटबंदी के समय लोगों को डिजीटल भुगतान की करने के लिए प्रेरित किया गया,जिसका अब असर भी दिख रहा है |उसी तरह कोरोना जैसी भयानक महामारी में सरकार टेलीमेडिसिन को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है |दुनिया में दूसरे नम्बर पर सबसे ज्यादा इंटरनेट यूजर्स भारत में है जिसमें बड़ी भूमिका स्मार्टफोन धारकों की है |स्पीच रीकिग्निशन टूल की सहायता से इंटरनेट इस्तेमाल में अंग्रेजी आने की बाध्यता कब का समाप्त हो चुकी है और इंटरनेट विभिन्न भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है|ऐसे में सबको बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ देने में टेलीमेडिसिन का इस्तेमाल गेम चेंजर साबित हो सकता है |
सरकार की टेलीमेडिसिन प्रेक्टीस गाईड लाईन्स  देश के सुदूर इलाकों में चिकित्सकों को इंटरनेट के माध्यम से अपनी सेवाएँ देने को विधिक स्वरुप प्रदान करती है जिसे बीस मार्च को जारी किया गया है |चिकित्सा का यह तरीका न केवल संकट के इस समय बल्कि भविष्य में भी लोगों को फायदा पहुंचाएगा टेलीमेडिसिन प्रेक्टीस गाईड लाईन्स  को मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इण्डिया और नीति आयोग के द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किया गया है |  वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने टेलीमेडिसिन को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है जिसमें स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच उन लोगों तक जहाँ दूरी एक महत्वपूर्ण कारक है वहां रोगों और चोटों में अनुसंधानमूल्यांकन और स्वास्थ्य सेवा की सतत शिक्षा के लिए निदान,उपचार और उनके रोकथाम के लिए वैध जानकारी के आदान प्रदान में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग स्वास्थ्य पेशेवरों  द्वारा किया जाना है |शाब्दिक रूप से टेलीमेडिसिन का तात्पर्य इंटरनेट के माध्यम से  दूरी से किया गया उपचार है |देश में टेलीमेडिसिन के क्षेत्र में वर्तमान समय में काफी वृद्धि देखी जा रही है डॉक्सऐपएमफाइन और प्रेक्टो जैसे इंटरनेट  प्लेटफॉर्म मरीजों को डॉक्टरों से जुड़ने और आभासी परामर्श को शेड्यूल करने में सहायता प्रदान कर रहे हैं |हालाँकि अभी यह प्रयोग बहुत ही सीमित मात्रा में है क्योंकि इसमें सबसे बड़ी बाधा रोगी की उस मानसिकता में जिसमें वह डॉक्टरों से आमने सामने मिल कर ही अपने रोग का निदान चाहता है |ये मानसिकता अस्पतालों में अनावश्यक भीड़ बढाती है |दूसरा स्वास्थ्य तकनीक के क्षेत्र में अनिश्चतता इस क्षेत्र के धीमे विस्तार का बड़ा कारण है |उदाहरण के लिए ई फार्मेसी कम्पनियां अभी भी सरकार के उन नियमों को इन्तजार कर रही हैं जिसमें सरकार को उन नियमों को अंतिम रूप देना है जिससे उनके  प्लेटफोर्म नियंत्रित होंगे |विदित हो कि साल 2018 में  दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश ने ऑनलाइन दवाओं की अवैध बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था |
ऐसे में इस क्षेत्र को मान्यता देने से टेलीमेडिसिन के क्षेत्र में मौजूदा व्यवसायी और संभावित निवेशकों के लिए बहुत आवश्यक स्पष्टता प्रदान करती है  जो इस क्षेत्र में निवेश करने के लिए इन्तजार कर रहे हैं |इस गाईड लाईन्स के अनुसार अब डॉक्टर रोगियों को वीडियोऑडियोईमेल द्वारा परामर्श प्रदान कर सकते हैं यह गाईड लाईन्स उन दवाओं को भी श्रेणी बद्ध करती है जिन्हें टेलीमेडिसिन द्वारा रोगियों को नियत किया जा सकता है |जैसे पैरासिटामोल और इसके जैसी हल्की दवाएं किसी भी परामर्श द्वारा रोगी को दी जा सकती हैं लेकिन उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसे रोगों की दवाएं निरन्तरता परामर्श में ही रोगी को टेलीमेडिसिन द्वारा दी जा सकती हैं जिसमें अनिवार्य रूप से सबसे पहला परामर्श रोगी  और डॉक्टर का आमने सामने का होगा |गंभीर रोगों के विषय में डॉक्टर टेलीमेडिसिन के इस्तेमाल से दवाएं नहीं निर्धारित करेंगे |इस बात का निर्धारण कि रोगी का  दूर से इलाज (टेलीमेडिसिन) किया  जाए या नहीं डॉक्टर के अपने पेशेवर निर्णय के अधीन होगा आगे जाकरडॉक्टरों को दूरस्थ परामर्श प्रदान करने के लिए एमसीआई के बोर्ड द्वारा प्रशासित एक ऑनलाइन कोर्स पूरा करना होगा।चूँकि ऑनलाईन कोर्स के विकसित होने में अभी समय लगेगा तब तक डॉक्टर अंतरिम रूप से सरकार द्वारा निर्धारित गाईडलाईन्स के अनुसार मरीज देख सकते हैं |महत्वपूर्ण रूप से यह गाईड लाईन्स रोगी को परामर्श देने में एक चिकित्सक को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और मशीन लर्निंग टूल के इस्तेमाल  की अनुमति देती है |हालाँकि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का प्रयोग सीधे मरीजों के परामर्श के लिए नहीं किया जा सकता है जिसमें बाट्स का इस्तेमाल न करना भी शामिल है |रोगी को इलाज का परामर्श सीधे डॉक्टर से ही मिलना चाहिए |
टेलीमेडिसिन का यह प्रारूप भविष्यमें  ई-स्वास्थ्य सेवाओं को व्यापक रूप देने में मदद करेगा इसमें न केवल दूरस्थ परामर्श को लोकप्रिय बनाने में मदद मिलेगी बल्कि यह ऐसे समाधान भी निकालेगा  जो रोगियोंडॉक्टरोंडाइग्निसोटिक क्लीनिकों और फार्मेसियों को आपस में जोड़ देंगे।जिसका फायदा निश्चित रूप से रोगी को जल्दी स्वस्थ होने में मिलेगा टेलीमेडिसिन भारत के छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में बेहद लाभकारी  हो सकता है जहां डॉक्टरों की भारी कमी है।देश की आधी आबादी विशेषकर वे महिलायें इससे ज्यादा लाभान्वित होंगी जो सामाजिक रूप से किसी पुरुष साथी के बगैर डॉक्टरों तक पहुँचने में असमर्थ होती हैं|यह विशेष रूप से उन महिलाओं को लाभान्वित कर सकता है जो अक्सर स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंचने में अतिरिक्त बाधाओं का सामना करते हैंजैसे कि पुरुष साथी के बिना स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों का दौरा करने में असमर्थ होना। यह सुनिश्चित करने के लिए कि भारत के सुदूर कस्बों में ई-स्वास्थ्य के उद्देश्य से पहले से ही कई सार्वजनिक-निजी भागीदारी हैं। भारत के सुदूर कस्बों जिलों में ई-स्वास्थ्य के उद्देश्य से पहले से ही कई सार्वजनिक-निजी भागीदारी हैं।
एसोचेम के एक शोध के अनुसार देश में टेलिमेडिसिन का कारोबार  बीस प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है जिसकी साल 2020 के अंत में बत्तीस मिलीयन डॉलर हो जाने की उम्मीद है|सरकार द्वारा जारी आरोग्य सेतु एप कोरोना के खिलाफ जारी देश की लड़ाई में अहम् भूमिका निभा सकता है|प्रधानमंत्री मोदी ने देश के निवासियों को इसे अपने मोबाईल पर डाउनलोड करने की सलाह दी है|
भारत जैसे गरीब देशों में मेडिकल सुविधाओं की पहुंच बढ़ाने में टेलिमेडिसिन अहम टूल साबित हो सकता है टेलिमेडिसिन को सभी जगहों तक पहुंचाने के लिए हेल्थ रिकॉर्ड को डिजिटाइज करना पहला अहम कदम है स्वास्थ्य और स्वास्थ्य शिक्षा के क्षेत्र में टेलीमेडिसिन के बहुत से फायदे देखने को मिले हैं दुनिया के एक कोने में बैठा विशेषज्ञ और रोगी  दुनिया के दूसरे कोने में बैठे विशेषज्ञ की राय ले सकता है |वर्तमान स्थिति,सरकार का संरक्षण और विभिन्न स्टार्टअप्स की शुरुआत   भारत को टेलीमेडिसिन को अपनाने के लिए आवश्यक गति  प्रदान कर सकता है। देश में टेलिमेडिसिन की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि लोग स्वास्थ्य सेवाओं में तकनीक का इस्तेमाल कितनी जल्दी अपने व्यवहार में ले आयेंगे |
 दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में 21/04/2020 को प्रकाशित 

Wednesday, April 8, 2020

जरुरी है दायरा

लॉक  डाउन के इस समय घर की सफाई में एक पुरानी किताब मिली जानते हैं उसका विषय था ज्योमेट्री जी हाँ रेखा गणित और क्या कुछ आँखों के आगे घूम गया. वो स्कूल के दिन वो एल एच एस इस ईक्युल टू आर एच एस और इतिसिद्धम. तब लगता था हम ये सब क्यूँ पढते हैं वैसे भी गणित मुझे बहुत बोर करती थी. जिंदगी तो आगे बढ़ चली पर अब समझ आ रहा है जीवन में रेखा का क्या महत्व है क्योंकि इसी पर जिंदगी का गणित टिका हुआ है.
रेखा मतलब लाइनलिमिट ,सीमा या फिर कुछ आड़ी तिरछी सीधी पंक्ति वैसे इनका कोई मतलब नहीं है, पर इन्हें सिलसिलेवार लगा दिया जाए तो किसी के घर का नक्शा बन जाता है या कोई कुछ ऐसा जान जाता है जिसे कल तक कोई नहीं जानता था.रेखा ही है वो टूल है जिससे आप अपने सपनों को वास्तविकता का जामा पहना सकते हैं पर ये ध्यान रहे कि उस रेखा का डायरेक्शन किस तरफ है क्योंकि वो चाहे गणित का सवाल हो या जिंदगी की उलझन काफी कुछ आपके दिमाग के डायरेक्शन पर निर्भर करता है.

विषय कोई भी हो चाहे इतिहासभूगोल गणित या फिर साहित्य बगैर रेखाओं के इनका कोई अस्तित्व नहीं है अब देखिये ना लिपि या स्क्रिप्ट भी तो कुछ रेखाओं का कॉम्बिनेशन है यानि दुनिया को समझने के लिए हमें रेखाओं की जरुरत है. इतिहास में समयरेखा है, तो भूगोल में अक्षांश और भूमध्य जैसी रेखाएं. कॉपियों में लिखने का अभ्यास पहले लाईनदार पन्नों से होता है बाद में जब हम अभ्यस्त हो जाते हैं तो उनकी जगह सफ़ेद पन्ने ले लेते है और तब हम कितनी भी जल्दी क्यूँ ना लिखें शब्द अपनी जगह से नहीं भागते. वे उसी तरह लिखें जाते हैं जैसे हम लाईनदार कॉपियों में लिखते हैं. जीवन में इन रेखाओं का कितना बड़ा दायरा है वो जीवन की रेखा से लेकर गरीबी रेखा तक देखा और समझा जा सकता है. जीवन में स्वछंदता और उन्मुक्तता मौज मस्ती अच्छी है पर उसकी भी  एक सीमा होनी चाहिए और इस रेखा को हमें ही खींचना होगा. ये बात कोई दूसरा हमें ना बताये क्योंकि सेल्फ रेग्युलेशन,सेल्फ से आता है और यही सेल्फ रेग्युलेशन जो हमें अनुशासित करता है.जब हम दूसरे की सीमाओं का सम्मान करेंगे तो लोग खुद ब खुद हमें अपना जीवन जीने के लिए स्वतंत्र छोड़ देंगे पर हम ये सोचें कि हम सबके बारे में कुछ भी गॉसिप कर सकते हैं पर कोई हमारे बारे में कोई कुछ नहीं बोलेगा ऐसा होना मुश्किल है. सफल होने की कोई सीमा नहीं है पर ख्वाब अगर हकीकत के आइने में देखें जाएँ तो उनके सफल होने की गुंजाईश ज्यादा होती है. मतलब अपनी सीमाओं को जानकर उसके हिसाब से जब योजनाएं बनाई जाती हैं तो वो निश्चित रूप से सफल होती हैं.कोरोना लॉक डाउन में घर को हमने अपनी लक्ष्मण रेखा बना रखा पर अगर आप ये मान लेंगे  कि सब तो अपने घर में बंद है मैं थोडा घूम लेता हूँ तो हम अपनी लक्ष्मण का अतिक्रमण करते हैं और इसका असर दूसरों पर पड़ेगा.तो कोरोना से लड़ाई तभी जीती जा सकती है जब हम अपनी लक्ष्मण रेखा न लाघें. मुझे तो अपनी सीमाओं  का अंदाजा है और अपनी जीवन रेखा को इसी तरह बना रहा हूँ कि मेरी जिंदगी के कुछ मायने निकले पर आप क्या कर रहे हैं जरुर बताइयेगा.
प्रभात खबर में 08/04/2020 को प्रकाशित 

Tuesday, April 7, 2020

लॉकडाउन में बढ़े फेक विडियो, देखिए यह है हकीकत



बरसों पुराने विडियो हो रहे वायरल


गूगल के सर्टिफाइड फैक्ट चेकर के साथ एनबीटी ने किया फैक्ट चेक• एनबीटी संवाददाता, लखनऊ : कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए पूरा देश एकजुट है, लेकिन इस बीच कुछ अराजकतत्व फेक विडियो के जरिए माहौल बिगाड़ने में लगे हैं। लॉकडाउन के बीच तबलीगी जमात की घटना के बाद मुस्लिम समाज से जुड़े कई विडियो वायरल हो रहे हैं। किसी विडियो में पुलिस वैन के भीतर सिपाही पर थूकते हुए युवक को कोरोना संक्रमित बताया जा रहा है तो किसी में सूफी पद्धति से हो रही उपासना को संक्रमण फैलाने की साजिश करार दिया जा रहा है। एनबीटी ने गूगल के सर्टिफाइड फैक्ट चेकर प्रो. मुकुल श्रीवास्तव के साथ ऐसे कई विडियो की पड़ताल कर उनका सच जाना...


(जैसा कि गूगल सर्टिफाइड फैक्ट चेकर प्रो़ मुकुल श्रीवास्तव ने बताया।)
थोड़ी सी एहतियात से समझ सकते हैं फेक विडियो का खेल

हकीकत• 90% विडियो सही होते हैं, लेकिन उन्हें गलत संदर्भ के साथ वायरल किया जाता है। किसी विडियो की जांच करने के लिए ध्यान से देखना चाहिए। • क्रोम ब्राउजर में इनविड (InVID) एक्सटेंशन जोड़कर विडियो की पड़ताल आसानी से की जा सकती है। इनविड विडियो को फ्रेम दर फ्रेम देखने में मदद करता है। इसमें किसी दृश्य को बड़ा करके भी देखा जा सकता है। • किसी विडियो को समझने के लिए उसमें मौजूद पोस्टर-बैनर, गाड़ियों की नंबर प्लेट और फोन नंबर की तलाश करनी चाहिए या कोई लैंडमार्क ताकि उसके भौगोलिक जुड़ाव की पहचान हो सके। • विडियो में दिख रहे लोगों के कपड़े, भाषा या बोली पर भी ध्यान देना चाहिए। • इंटरनेट पर ऐसे कई सॉफ्टवेयर हैं, जो विडियो और फोटो की सत्यता पता लगाने में मदद कर सकते हैं।

07/04/2020 को नवभारत टाईम्स लखनऊ में प्रकाशित समाचार 

Saturday, April 4, 2020

घर के लिए अच्छा हो ये बुरा वक्त

वैश्विक महामारी कोरोना ने दुनिया के सभी देशों की दिनचर्या बदल को बदल कर रख दिया है  | घर और ऑफिस के बीच का अंतर खत्म हो गया है लोग घरों में बंद हैं |भारत भी इससे अछूता नहीं परंतु सभी का ध्यान इस महामारी से बचाव और लॉक-डाउन से दिखने वाले  प्रभाव पर है |  संस्थान घर से काम  करने को प्राथमिकता दे रहे हैं |इस नए तरीके की कार्य पद्धति में भी महिलायें दोहरी चुनौती का सामना कर रही हैं | कोरोनोवायरस लॉकडाउन के इस साइड इफेक्ट में कामकाजी महिलाओं के लिए  विडंबना यह है कि उनका बोझ दोगुना हो गया है | प्रोफेशनल प्रतिबद्धता की मांग  है कि घर से काम करोऔर परिवार चाहता है कि घर के लिए काम करो | 
            भारत में सामाजिक मानदंडों के कारण घर के काम  और बच्चों की परवरिश को महिलाओं  का कार्य माना जाता है | पुरुषों का घरेलू काम  करना सामजिक रूप में  हेय दृष्टि से देखा जाता है | कुछ प्रगतिशील पुरुष गर्व से कहते हैं कि वे महिलाओं के काम में हाथ बंटाते हैंपरंतु यह समझ से परे है कि ऐसा कौन सा कार्य है जो महिलाओं का है घर का नहीं ?
पिछले कई दिनों से,घरों में कामकाजी  महिलाओं के  लिए मदद देने वाली मेड ,कपडा धोने वाली और झाड़ू पोंछा का आना बंद हो चुका है ऐसे में घर से काम करना साथ ही साथ नौकरानी के बिनाएक बच्चे  की देखभाल करनापरिवार के लिए खाना पकाना और स्वच्छता बनाए रखना लगभग असंभव है | जिससे वे बारह घंटे की शिफ्ट के दौरानभारत की महिलायें अतिरिक्त शारीरिक और मानसिक बोझ झेल रही  है |कारण सीधा है  भारतीय परिवारों में यह सहज नियम है कि पुरुष सदस्य से घर के काम करने की उम्मीद नहीं की जाती है | ज्यादातर भारतीय घरों में घरेलू काम काज का बंटवारा नहीं  होता है। भले ही पति और पत्नी दोनों घर से काम कर रहे होंलेकिन भार महिलाओं द्वारा पूरी तरह से वहन किया जाएगा | पर इससे  यह निष्कर्ष नहीं निकाला जाना चाहिए  है कि पूरी तरह से  घरेलू काम काज करने वाली महिलायें  बेहतर स्थिति में हैं | उनके पास ससुराली  रिश्तों की मांगों को पूरा करना एक बड़ी जिम्मेदारी है जैसे पति के  माता -पिताया ननददेवर  आदि  का अतिरिक्त काम होता है | ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ इकोनोमिक कोऑपरेशन एंड डेवेलपमेंट 2015 के एक सर्वे के अनुसार एक भारतीय महिला अन्य देशों के  मुकाबले   हर दिन औसतन छह-घंटे  बगैर भुगतान का घरेलू श्रम करती है  |सर्वे में भारत के बाद मेक्सिको की महिलायें इस लिस्ट में हैं जो औसतन छ घंटे तेईस मिनट का बगैर भुगतान घरेलू श्रम करती हैं जबकि जापानफ्रांस और कनाडा की महिलायें क्रमशः तीन घंटे  चौआलीस मिनट ,तीन घंटे तैंतालीस मिनट बगैर भुगतान का घरेलू श्रम करती हैं |दूसरी ओरभारतीय पुरुष इस मोर्चे पर सबसे खराब हैंवे प्रत्येक दिन एक घंटे से भी कम बावन मिनट का  घरेलू काम करते है | घरेलू मामले में ज्यादातर फैसले महिलाओं  को लेने होते है | जैसे खाना क्या बनेगा खाना पकानासब्जियाँ खरीदना और फिर बच्चों को खाना खिलाना  ऐसी परिस्थिति में घरेलू काम वाली मेड ही वह कड़ी थी जो थोडा बहुत शक्ति संतुलन साधती थी पर अब वह कड़ी भी टूटी हुई है |
इन  बदली  परिस्थितियों में घर में महिलाओं पर अतिरिक्त बोझ आन पड़ा है | घरेलू कार्यबच्चों की जवाबदेही और घर में रहने के कारण बच्चों और पुरुषों की विभिन्न फरमाइशों के बीच कामवाली बाई की अनुपस्थिति समस्या को और गंभीर बना रहें हैं | घर से दूर बाहर रह कर पढ़ाई करने वाले बच्चे भी लम्बे समय बाद घर में हैं | लेकिन मां की ममता और ख्वाहिशों के बीच सब्जियों की किल्लत रसोई के विकल्पों को सीमित करने के लिए पर्याप्त हैं |
घरेलु माहौल को खुशनुमा बनाये रखने की चुनौती
ज्यादा काम का बोझ और घर के सभी सदस्यों की आशाओं पर खरा उतरने की कोशिश महिलाओं  को चिड़चिड़ा बना देती  है | लॉक डाउन से पैदा हुई  समस्याएं और उससे उपजी दैनिक गतिविधियों में  एकरूपता के कारण इसकी संभावना और बढ़ जाती है | जिससे  घरेलू माहौल भी प्रभावित होता है लॉक डाउन से  उपजा तनावकल क्या होगा जैसी अनिश्चित स्थिति में घर में सामंजस्य बनाये रखने की अलिखित जिम्मेदारी भी महिलाओं की है क्योंकि ये वे ही हैं जिनके इर्द गिर्द पूरा घर घूमता है |
खाना बनानाकपड़े साफ करना या घर का अन्य कार्य महिलाओं का नहीं घर का काम और जीवन का कौशल है |भारतीय पुरुषों को  अब यह समझने का वक्त आ चुका  है |जेंडर स्टीरियो टाइपिंग की कैद से जितनी जल्दी हम बाहर निकलेंगे उतना ही परिवार के लिए बेहतर होगा और बच्चे भी अपने पिता से सीखेंगे कि घर का काम करने की जिम्मेदारी सिर्फ महिलाओं  की नहीं होती है बल्कि पुरुष भी इसमें बराबर के भागीदार हैं इस  लॉक डाउन का प्रयोग एक अवसर के रूप में किया जाना चाहिए  |बच्चे भी  इन जीवन कौशल से जब परिचित होंगे तो आने वाले कल में जब ऐसी परिस्थतियाँ पैदा हों तो वे बेहतर अभिभावक साबित होंगे और  ऐसी परिस्थितियों का सामना बेहतर तरीके से करपायेंगे  | पिता जब बाहर होते हैं तब बच्चों के अपेक्षाएं भिन्न होती हैं. लेकिन घर पर रहते हुए भी पिता बच्चों पर ध्यान ना दें तो बच्चे उपेक्षित महसूस करते हैं. अतः कार्यालय की जिम्मेदारी रूटीन पूर्वक घर से पूर्ण करें लेकिन दिन में भी बच्चों के लिए भी कुछ समय अवश्य निर्धारित अवश्य करें. कोरोना से सुरक्षा के साथ-साथ पारिवारिक एकजुटतामाधुर्यताभविष्य की योजनाओं पर भी ध्यान दें.महिलाएं जब घर का कार्य निबटा कर आराम करती हैं तो ऐसा न हो कि बाकि लोग पहले आराम कर लें और उनके आराम के वक्त फरमाइश करने लगें. हम अपनी दिनचर्या को घर की  महिलाओं के सुविधानुसार ढाल कर इस बुरे वक्त को अच्छे वक्त में तब्दील किया जा सकता है |
नवभारत टाईम्स में 04/04/2020 को प्रकाशित 

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