Monday, February 22, 2021

लोकाचार में बदलाव का वाहक

 


इंटरनेट ने लोक व लोकाचार के तरीकों को काफी हद तक बदल दिया है। बहुत-सी परंपराएं और बहत सारे रिवाज अब अपना रास्ता बदल रहे हैं। यह प्रक्रिया इतनी तेज है कि नया बहुत जल्दी पुराना हो जा रहा है। आने वाली पीढियां  इस  समाज को एक “एपसमाज के रूप में याद  करेंगी जब  लोक और लोकाचार  को सबसे  ज्यादा  एपप्रभावित कर रहा  था |हम हर चीज के लिए बस एक अदद एपकी तलाश  करते हैं |जीवन की जरुरी आवश्यकताओं के लिए  यह  एपतो ठीक  था  पर  जीवन साथी  के चुनाव  और दोस्ती  जैसी भावनात्मक   और  निहायत व्यक्तिगत  जरूरतों   के लिए  दुनिया भर  के डेटिंग एप  निर्माताओं  की निगाह  में भारत सबसे  पसंदीदा जगह बन कर उभर  रहा है | उदारीकरण के पश्चात बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ और रोजगार की संभावनाएं  बड़े शहरों ज्यादा बढीं ,जड़ों और रिश्तों से कटे ऐसे युवा  भावनात्मक  सम्बल पाने के लिए और ऐसे रिश्ते बनाने में जिसे वो शादी के अंजाम तक पहुंचा सकें  डेटिंग एप का सहारा ले रहे हैं | विवाह तय करने जैसी सामाजिक प्रक्रिया पहले परिवार और यहां तक कि खानदान के बड़े बुजुर्गों, मित्रों, रिश्तेदारों वगैरह को शामिल करते हुए आगे बढ़ती थी, अब उसमें भी लग गया है। मैट्रीमोनी वेबसाइट से शुरू हुआ ये सिलसिला अब डेटिंग एप्प्स तक पहुँच गया है । आम तौर पर इंटरनेट की सहायता से किसी सम्बन्ध  को बनाना एक विशुद्ध शहरी घटना माना जाता था और छोटे शहरों को इस प्रवृत्ति से दूर माना जाता था |इस सांस्कृतिक अवरोध के बावजूद डेटिंग का व्यवसाय भारत में तेजी से पैर पसार रहा है |इंटरनेट साईट स्टेटीस्टा के अनुसार इस समय देश में 38 मिलीयन लोग डेटिंग ईपीएस का इस्तेमाल कर रहे हैं और रेवेन्यु के हिसाब से यह संख्या विश्व में चीन और अमेरिका के बाद तीसरे नम्बर की सबसे बड़ी संख्या है इसमें कोरोना महामारी की भी एक बड़ी भूमिका है जिसने लॉकडाउन में बड़े शहरों में रहने वाले लोगों को अपने छोटे शहरों और कस्बों में रहने के लिए भेज दिया |इस घटना ने डेटिंग एप्स को उन छोटे शहरों और कस्बों तक पहुंचा दिया जहाँ तक पहुँचने में उन्हें सालों लगते| ओनलाईन प्यार भारत में एक नयी परिघटना है साल 2013 से शादी कराने वाली वेबसाईटस सुर्ख़ियों में आना शुरू हुईं पर डेटिंग एप का ट्रेंड साल 2014 में टिंडर के आने के बाद शुरू हुआ और तबसे वैश्विक रूप से लोकप्रिय डेटिंग एपबम्ब्ल , हप्प्न , और हिन्ज देश में अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुके हैं |जब से होमोसेक्सुअल्टी भारत में अपराध न रही एलजीबीटीक्यूसमुदाय के लिए ग्रिंडर जैसे एप भी भारत आये पर बड़ी कम्पनियों में शामिल टिंडर और बम्ब्ल भी समान लिंगी साथियों के चुनाव की सुविधा भी देते हैं |

 देश की संस्कृतिक विविधता के हिसाब से सभी प्रचलित डेटिंग एप्स अंग्रेजी भाषा को ही प्रमुखता देते हैं , टिंडर ने हिन्दी भाषा में भी अपनी सेवा देनी शुरू कर दी है पर अभी भी अंग्रेज़ी का बोलबाला है जबकि देश की मात्र बारह प्रतिशत जनसंख्या ही अंग्रजी बोलती है |जानकार मानते हैं कि भारत में भाषा की समस्या अब उतनी गंभीर डेटिंग एप के मामले में उतनी गंभीर नहीं क्योंकि लोग मोटे तौर पर यह जानते हैं कि एप चलता कैसे है जब संदेशों के आदान प्रदान की बात आती है तो लोग हिन्दी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को रोमन में लिख लेते हैं |

इन एप्स ने अपने भारतीय संस्करणों में भारतीयता को भी अपनाया है | सम्बन्ध बनाने में शादी की ही प्रधानता रही है और इसीलिये भारत में शादियाँ कराने वाली वेबसाईट्स तेजी से उभरी |देश की सबसे बड़ी शादी कराने वाली वेबसाईट मेट्रेमोनी डॉट कॉम के देश में पांच मिलीयन सक्रीय उपभोक्ता हैं | डेटिंग पूरी तरह से पश्चिमी अवधारणा है और जब ये विदेशी वेबसाईट्स भारत आयीं तो इन्हें दिक्कतों का सामना करना पडा इस स्थिति का मुकाबला करने में इन्होने अपनी रणनीति बदली जिसमें डेटिंग के सहारे ऐसे गंभीर सम्बन्ध विकसित करने पर जोर दिया गया जो शादी तक पहुंचें मतलब ऐसे एप्स अपनी एप्रोच में न तो डेटिंग जैसे कैजुवल रहें और न ही शादी कराने वाली वेबसाईट्स जैसे कठोर |

सांस्कृतिक जतिलाताओं के कारण देश में डेटिंग एप्स को ज्यादा मान्यता नहीं दी जाती है पर जब छोटे शहरों में पले बढ़े लोग अपने शहरों  से बाहर निकले तो ये एप उनकी पसंद में शामिल हो गए पर वे अपने शहरों में इनका इस्तेमाल ज्यादा नहीं करते रहे हैं |विडम्बना यह हुई कि जब देश में लॉक डाउन लगा तो ये अलग अलग जगहों पर बिखरे हुए लोग अपने घर लौट आये |डेटिंग एप ट्रूली मैडली जो साल 2014 में बना उसके रेवन्यू में साल 2020 में दस गुना बढ़ोत्तरी उन शहरों से हुई जो देश के मेट्रोपोलिटन शहर नहीं थे और उसके कुल रेवन्यू में साल 2019 के मुकाबले चार गुना बढ़ोत्तरी हुई |

तथ्य यह भी कि डेटिंग एप व्यवसाय में इस  बढ़ोत्तरी का एक बड़ा कारण रिवर्स माइग्रेशन है जो लॉक डाउन के कारण हुआ पर इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि इन एप्स का कारोबार फ़ैल रहा है |सामाजिक रूप से देखें, तो जहां पहले शादी के केंद्र में लड़का और लड़की का परिवार रहा करता था, अब वह धुरी खिसककर लड़के व लड़की की इच्छा पर केंद्रित होती दिखती है। वर या वधू तलाशने का काम अब मैट्रीमोनिअल साइट व ऑनलाइन डेटिंग साइट कर रही हैं और वह भी बगैर किसी बिचौलिये के। वैसे यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि इससे पारदर्शिता आई है। इन वेबसाइटों पर आप सुविधाजनक रूप से प्रोफाइल सेट कर सकते हैं। अपनी तस्वीर डाल सकते हैं तथा अपनी पसंद से उन प्रोफाइल को चेक करके कदम बढ़ा सकते हैं। कई वेबसाइटों में चैटिंग की सुविधा है, जिसमें ऑनलाइन चैटिंग कर लड़का या लड़की एक-दूसरे को समझ सकते हैं।

लेकिन कुछ और तथ्यों पर गौर किया जाना भी जरूरी है। इन एप्स  से बने रिश्तों  में धोखाधड़ी के कई मामले भी सामने आए हैं। दी गई जानकारी कितनी सही है, इसे जांचने का कोई तरीका ये एप्स उपलब्ध नहीं कराते। उनकी जिम्मेदारी लड़का-लड़की को मिलाने तक सीमित रहती है। हालांकि, झूठ बोलकर शादी कर लेने में नया कुछ नहीं, पर इंटरनेट एप्स से बने रिश्तों  के पीछे कोई सामजिक दबाव नहीं काम करता और गड़बड़ी की स्थिति में आप किसी मध्यस्थ को दोष देने की स्थिति में भी नहीं होते। और न कोई ऐसा होता है, जो बिगड़ी बात को पटरी पर लाने में मदद करे।

 दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित  22/02/2021 

Saturday, February 20, 2021

मशीन ही सुनती है अब सारे दुःख


 आज के दौर में विचारों के संप्रेषण का सबसे स्वतंत्र और द्रुतगामी माध्यम है इंटरनेट पर जैसे जैसे इसका इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है मानव संचार में शामिल मानवीयता की जगह  तकनीक लेती जा रही है जहाँ मानव चेहरा गायब है ,इसमें कोई दो राय नहीं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में संवाद एक महत्वपूर्ण घटक है |  दुनिया की समस्त समस्याओं का समाधान  अंत में  मौखिक संवाद से ही निकलता  है | आज के दौर में विचारों के संप्रेषण का सबसे स्वतंत्र और द्रुतगामी माध्यम है इंटरनेट पर जैसे जैसे इसका इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है मानव संचार में शामिल मानवीयता की जगह  तकनीक लेती जा रही है जहाँ मानव चेहरा गायब है और यह समस्याओं को सुलझाने की बजाय बिगाड़ रही है |तथ्य यह भी है कि इस प्रक्रिया में एक ओर जहाँ हमें तकनीक से जोड़ने वाली और इंटरनेट पर कुछ न कुछ लिखने या पोस्ट करने वाली सभी प्रमुख सोशल नेटवर्किंग साईट्स हो या हमारे जीवन को आसान बनाने वाली ऑन लाइन कम्पनिया जिनमें अर्बन कम्पनी से लेकर उबर जैसी टैक्सी आधारित सेवाएँ देने वाली कम्पनी शामिल हैं |हम अधिकांश के बारे  में न तो ज्यादा कुछ जानते हैं और न ही हम तकनीक के सहारे मौखिक रूप से हम अपनी समस्या ,पीड़ा ,खुशी अपनी आवाज में भावों के साथ इन्हें प्रेषित कर सकते हैं | जो भी कहना है आप लिख कर कहिये और उसके बाद अगर उन कम्पनियों को लगेगा तो वो अपनी सुविधा के हिसाब से आप से बात कर सकती हैं |अक्टूबर 2020 तक प्रमुख सोशल मीडिया साईट फेसबुक के 2.45 बिलियन सक्रीय उपभोक्ता   थे जो कि चीन और भारत की जनसंख्या से भी अधिक है। हमारी  लगभग हर जानकारीहम क्या पसंद करते हैंक्या नापसंद करते हैंक्या ख़रीदते हैं?कहाँ घूमने जाते हैंघर की , दोस्तों की तस्वीरें , विडियो सब फेसबुक और ट्विटर जैसी साईट्स  के पास है। एक संस्थागत तंत्र के रूप में सिवाय हेल्प,सपोर्ट  और रिपोर्ट अ पोस्ट  / पेज  / अकाउंट के अतिरिक्त इनका कोई सम्पर्क नहीं । वो चाहे आधुनिक युग का सबसे बड़ा सामाजिक नेटवर्क हो या अन्य ओनलाईन कम्पनियां यह सब कितना असामाजिक और  अमानवीय है |ये बात हमें डराती नहीं ये बात हमारी नींद भी नहीं उड़ाती।पिछले साल दिसम्बर महीने की 14 तारीख को 45 मिनट तक गूगल  और यूट्यूब  की सेवाएँ काम नहीं कर रही थी पर कोई इंसानी चेहरा  सामने आकर बोलने वाला नहीं था।  किसी शहर या राज्य में हम  डीएमएसपी को जानते हैं या वहाँ तक पहुँच सकते हैंबैंक में मैनेजर को , किसी कम्पनी में उसके सुपरवाइज़र को , स्कूल में प्रिन्सिपल को वैसे क्या फेसबुक या उबर में हम किसी तक पहुँच के या फोन द्वारा अपनी बात पहुंचा सकते हैं ? उसको फ़ोन या ईमेल कर सकते हैंनहीं आपको कोई शिकायत करनी हो , कोई जानकारी लेनी हो तो सिवाय कुछ प्री डिसायडेड एक तरफ़ा हेल्प  /कोंटेक्ट तंत्र के अलावा कुछ भी नहीं। कोई चेहरा नहीं जो सामने आकर आपकी शिकायत सुने , आपको तसल्ली दे।लिख कर बात कह पाने की एक अपनी सीमा है और उसकी अपनी चुनौतियाँ  है | इस कारण  से जो समस्या एक मिनट की बात से सुलझ सकती थी उसी समस्या के समाधान में घण्टों लगते हैं और इसके बाद भी कोई जरुरी नहीं है की समस्या सुलझे | अक्सर देखा गया है कि  ऐसे में झुंझलाया हुआ उपभोक्ता उन मुद्दों को ले कर सोशल मीडिया पर चला जाता है और छोटी सी बात का बतंगड़ बन जाता है |इसका मतलब लिखित सम्वाद की प्रक्रिया समस्या को और ज्यादा दुरूह बना रही है |इंटरनेट की तकनीक लोगों की समस्या समाधान के व्यवसाय को तेजी से बदल रही है |एड्रायेट मार्केट रिसर्च के आंकड़ों के मुताबिक़  साल 2017 में भारत में कॉल सेण्टर का बाजार  28.19 बिलियन डॉलर था और इसके 2025 तक 54.25 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाने की संभावना थी | परन्तु मार्किट लीडर्स के सेवा प्रदान करने के तरीके में बदलाव आने से इस रुझान में भी बदलाव आने की सम्भावना तेजी से बढ़ रही है | एक समय में रुझान ऐसे थे कि  कैसे ग्राहक सेवा में वेटिंग टाइम को कम से कम किया जाए परन्तु धीरे धीरे इसमें बदलाव की शुरुआत हुई और कॉल सेंटर की बजाय लोगों से अपनी समस्याएं लिख कर देने को प्रेरित किया जाने लगा  और यहाँ से मौखिक संचार की बजाय आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की सहायता से लिखित संचार की ओर कम्पनियों का झुकाव बढ़ा सेवा प्रदाता खास कर प्रमुख टेलीकॉम कंपनी ने कॉल सेण्टर में बात करने के पैसे चार्ज करने शुरू कर दिये और इसी चलन में आगे चल कर वर्तमान में बड़ी कंपनीओं ने इस मद में खर्च में कटौती करने की शुरवात कॉल सेण्टर एग्जीक्यूटिव की संख्या घटाने से शुरू कर दी है | भारत में भारत में कॉल सेण्टर की प्रति घंटा दर छ डॉलर से दस डॉलर के बीच है  जबकि विदेशों में यही  दर बीस डॉलर से तीस डॉलर प्रति घंटा है | ऐसे में लागत कम करने का आसान तरीका ये है कि लोगों की कॉल सेण्टर पर निर्भरता कम की जाए  इसके लिये कई प्रकार के अच्छे और बुरे हथकंडे अपनाये जाते हैं जैसे की की कस्टमर की ज़्यदातर समस्याओं का समाधान FAQ के माध्यम से करना या आई वी आर एस  के विकल्प की तरफ प्रेषित करना | एक तरीका इस प्रकार का  भी होता है की कॉल सेण्टर के लिंक तक पहुँचने को इतना जटिल बना देना की कस्टमर उस तक पहुँच ही न पाए | हालाँकि इससे कंपनी का टाइम और पैसा दोनों बचता है परन्तु दूसरी तरफ लोगों का समय ज्यादा  लगता है और साथ ही उसको  तनाव भी होता है | इस तनाव का कारण  ज्यादातर  समस्या का समाधान नहीं होना नहीं होता है बल्कि सही ढंग से उसे हैंडल न किये जाने से होता है | इंटरनेट पर ऐसे बहुत से शोध उपलब्ध है जिसमे कॉल सेण्टर एग्जीक्यूटिव के तनाव और उसके कारण और परिणामो का अध्धयन किया गया है पर बहुत खोजने पर भी ऐसे शोध ज्यादा नहीं मिलते जो यह बताते हो कि  समस्या को गलत तरीके से हैंडल करने पर लोगों  के ऊपर क्या प्रभाव पड़ता है और उसके क्या परिणाम होते हैं | ऑनलाईन कम्पनियों के अपने तर्क है कि उपभोक्ता ऐसी समस्याओं के लिए फोन करते हाँ जिनका निदान आसानी से वेबसाईट के हेल्प पेज पर मिल सकता है |उसके अतिरिक्त भद्दी और अश्लील काल्स अनावश्यक दबाव बढाते हैं जिससे इस व्यवसाय में लगे लोगों की गुणवत्ता प्रभावित होती है और जेनुइन लोग परेशान होते हैं |सभ्यता के साथ संचार के तौर तरीके बदले है जिनमें तकनीक का जोर ज्यादा है ऐसे में खतरा इस बात का है कि जैसे कंप्यूटर पर टाईप करने के कारण हस्तलिखित पाठ्य की महत्ता बहुत तेजी से कम होती जा रही है और लोग लिखना भूल रहे है कहीं ऐसी प्रवृत्ति हमें  एक ऐसे युग की तरफ न ले जाए जिसमें बोलने की बजाय तकनीकी आधारित लेखन पर जोर हो ऐसे समय में जब लोगों के पास लोगों से बात करने के अवसर सिमटते जा रहे हैं ऐसे में बात करके समस्या का समाधान निकालने के तरीके पर इन ऑनलाईन कम्पनियों   को विशेष ध्यान देना  चाहिए क्यूंकि कहते है न बात करने से ही बात बनती है | 

 नवभारत टाइम्स में 20/02/2021 को प्रकाशित 

Friday, February 12, 2021

मानसिक स्वास्थ्य की कीमत पर

 कोविड महामारी ने मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे की तरफ सारी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा है और भारत भी इसमें अपवाद नहीं है लेकिन तस्वीर का दूसरा रुख यह भी है कि सरकार के पास कुल मानसिक स्वास्थ्य पेशवरों का कोई आंकडा उपलब्ध नहीं है |स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने राज्यसभा में बताया कि सरकारी और निजी क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य पेशवरों जिसमें मनोचिकित्सक भी शामिल हैं,के आंकड़े सरकार  केन्द्रीय रूप में नहीं रखती है | एक स्वस्थ तन में ही स्वस्थ  मस्तिष्क का वास होता है पर अगर  मष्तिस्क स्वस्थ नहीं होगा तो तन भी बहुत जल्दी रोगी हो जाएगा |शरीर में अगर कोई समस्या है तो जीवन के बाकी के कामों पर सीधे असर पड़ता है और इसे जल्दी महसूस किया जा सकता है पर बीमार मस्तिष्क  के साथ ऐसा नहीं होता  है |

 विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2019 के आंकड़ों के मुताबिक़ भारत की 7.5 प्रतिशत जनसंख्या मानसिक स्वास्थ्य विकारों से पीड़ित है,जिनमें अवसाद प्रमुख है और कोविड महामारी के पश्चात निश्चित तौर पर इस संख्या में बढ़ोत्तरी हुई होगी |मानव संसाधन के लिहाज से ऐसे आंकड़े किसी भी देश के लिए अच्छे नहीं कहे जायेंगे|मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ मामला अवसाद का हैअवसाद से पीड़ित व्यक्ति भीषण दुःख और हताशा से गुजरते हैं|उल्लेखनीय है कि ह्रदय रोग और मधुमेह जैसे रोग अवसाद के जोखिम को तीन गुना तक बढ़ा देते हैं|समाज शास्त्रीय नजरिये से देखा जाए तो यह प्रव्रत्ति हमारे सामाजिक ताने बाने के बिखरने की ओर इशारा कर रही है|बढ़ता शहरीकरण और एकल परिवारों की बढ़ती संख्या लोगों में अकेलापन बढ़ा रहा है और सम्बन्धों की डोर कमजोर हो रही हैबदलती दुनिया में विकास के मायने सिर्फ आर्थिक विकास से ही मापे जाते हैं यानि आर्थिक विकास ही वो पैमाना है जिससे व्यक्ति की सफलता का आंकलन किया जाता है जबकि सामाजिक  पक्ष को एकदम से अनदेखा किया जा रहा हैशहरों में संयुक्त परिवार इतिहास हैं जहाँ लोग अपने सुख दुःख बाँट लिया करते थे और छतों का तो वजूद ही ख़त्म होता जा रहा हैफ़्लैट संस्कृति अपने साथ अपने तरह की समस्याएं लाई हैं जिसमें अकेलापन महसूस करना प्रमुख है |

इसका निदान लोग अधिक व्यस्ततता में खोज रहे हैं नतीजा अधिक काम करना ,कम सोना और टेक्नोलॉजी पर बढ़ती निर्भरता सोशल नेटवर्किंग पर लोगों की बढ़ती भीड़ और सेल्फी खींचने की सनक इसी संक्रमण की निशानी है जहाँ हम की बजाय मैं पर ज्यादा जोर दिया जाता है | आर्थिक विकास मानसिक स्वास्थ्य की कीमत पर किया जा रहा है |

इस तरह अवसाद के एक ऐसे दुश्चक्र का निर्माण होता है जिससे निकल पाना लगभग असंभव होता है |अवसाद से निपटने के लिए नशीले पदार्थों का अधिक इस्तेमाल समस्या की गंभीरता को बढ़ा देता हैभारत में नशे की बढ़ती समस्या को इसी से जोड़कर देखा जा सकता है |आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों में यह समस्या ज्यादा देखी जा रही है |जागरूकता की कमी भी एक बड़ा  कारण है,मानसिक स्वास्थ्य कभी भी लोगों की प्राथमिकता में नहीं रहा है | मानसिक समस्याओं को उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता इस दिशा में सांस्थानिक सहायता की भी पर्याप्त आवश्यकता है|

मेंटल हेल्थ केयर एक्ट 2017 के मुताबिक़ जिसमें इस बात का प्रावधान है कि एक केन्द्रीय प्राधिकरण नैदानिक मनोचिकित्सक,मानसिक स्वस्थ नर्सों,मनोरोगी देखभाल सामाजिक कार्यकर्ता का आंकड़ा रखेगा| सारे रजिस्टर्ड मानसिक स्वास्थ्य पेशवरों का आंकड़ा इस उद्देश्य से राज्यों द्वारा उपलब्ध कराया जाएगा कि इस सूची को इंटरनेट और अन्य जगहों पर प्रकाशित किया जायेगा |यह एक्ट मनोचिकित्सक, मनोरोगी देखभाल सामाजिक कार्यकर्ता (psychiatric social workers), नैदानिक मनोचिकित्सक के बीच अंतर जरुर  स्पष्ट करता है लेकिन आमतौर पर समझे जाने वाले शब्द साइको थेरपिस्ट और परामर्शदाता (counselor) के बीच अंतर नहीं परिभाषित करता है |

यह उलझन मंत्रालयों के बीच भी है जहाँ नैदानिक मनोचिकित्सक को पुनर्वास पेशेवरों की तरह माना जाता है और उन्हें सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय के अधीन भारतीय  पुनर्वास परिषद् में अपना पंजीकरण करवाना होता है |देश में कोई भी नैदानिक मनोचिकित्सक भारतीय  पुनर्वास परिषद् के केन्द्रीय पंजीकरण के बिना प्रैक्टिस नहीं कर सकता |

एक ऐसा देश जहाँ मानसिक स्वास्थ्य की समस्या लगातार गहराती जा रही है और जहाँ दस हजार की आबादी में मात्र दो मानसिक स्वास्थ्य बिस्तर उपलब्ध हों वहां मेंटल हेल्थ सोहल वर्कर ,थेरेपिस्ट और काउंसलर सामुदायिक स्वास्थ्य में एक पुल की भूमिका निभा सकते हैं |माना जाता है किसी भी रोग का आधा निदान उसकी सही पहचान होने से हो जाता है |रोग की पहचान हो चुकी है भारत इसका निदान कैसे करेगा इसका फैसला होना अभी बाकी है |

 अमर उजाला में 12/02/2021 को प्रकाशित 

 

Thursday, February 11, 2021

सिक्किम यात्रा :दूसरा भाग

“बन जाखरी” जल प्रपात
गंगटोंक में एक रात बिताने के बाद अगली सुबह घूमने का कार्यक्रम शुरू हुआ पर मैं सिर्फ घूम नहीं रहा था मैं इस देश की विचित्रता को समझना चाहता था |भौगौलिक रूप से हमारी सुबह एकदम अलग हुई सामने पहाड़ों में बादलों ने डेरा डाला हुआ था और वो हमारे एकदम करीब थे |घूमने फिरने की जगह ज्यादातर एक जैसी होती हैं या तो इतिहास या प्राकृतिक या फिर मानव निर्मित कुछ अनूठी चीजें ,मैं समझना चाहता था जैसे उत्तर भारत के मैदानों में बैठकर हम अपने देश के जिन मुद्दों  के बारे में सोचते हैं क्या वाकई वो सारे देश के मुद्दे हैं या ये मुद्दे मीडिया निर्मित हैं जो एक निश्चित एजेंडे के साथ भावनाओं की चाशनी में लपेट कर हमारे सामने परोसे जाते हैं तो घूमने की शुरुआत करने से पहले बताते चलूँ सिक्किम अधिकारिक रूप से भारत का हिस्सा 1975 में बना उससे पहले इसकी स्थिति भूटान जैसी थी |
विचित्र किन्तु सत्य अब जरा 1975 के पहले के सिक्किम के बारे में सोचिये और अंदाजा लगाइए कि वहां के लोगों के लिए दिल्ली और वहां के निवासी कैसे होंगे |वैसे अंग्रेजों को लाख गाली दी जाए पर कम से कम हमें वो एक पूरा देश बना कर दे गए नहीं तो देश के अलग –अलग हिस्सों में अलग –अलग राजवंश शासन कर रहे थे और तब के निवासियों में भारत देश के प्रति वैसी आक्रमकता नहीं  थी जैसी आज देखने पढने को मिलती सच तो यह है देश के आधे से ज्यादा लोगोंको सच में अपने देश के बारे में कुछ पता ही नहीं है |खैर नाश्ता करके होटल से बाहर निकला तो लगा थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ यूरोप के देश में हूँ |सड़क पर कूड़ा उठाने वाली मशीन महिला सफाई कर्मियों के साथ काम पर लगी है शहर में कूड़ा डालने के लिए जगह जगह पात्र रखे हुए हैं और पूरे गंगटोक शहर में तीन दिन के प्रवास में मुझे कहीं कूड़ा और प्लास्टिक देखने को नहीं मिला |
प्लास्टिक सिक्किम में बैन है या नहीं इसका पता मुझे नहीं पड़ पाया क्योंकि प्लास्टिक के लिफाफे हमारे पास थे और किसी ने हमें टोंका नहीं पर इतने साफ़ पहाड़ आपको न तो कश्मीर में मिलेंगे न उत्तराखंड में (ये दोनों जगह मेरी देखी हुई हैं ) ऐसे न जाने सवाल मेरे जहाँ में घूम रहे थे

सिक्किम और और उत्तर प्रदेश दोनों भारत में हैं फिर साफ़ –सफाई को लेकर ऐसा आग्रह पूरे भारत में क्यों नहीं दिखता यहाँ लोग खुले में क्यों नहीं फारिग होते |आप को जानकार ताज्जुब होगा मुझे बताया गया कि लघुशंका भी खुले में लोग नहीं करते खासकर पहाड़ों में क्योंकि वो पूजनीय है ,मुझे अपना प्रदेश याद आया तो ऐसे न जाने कितने सांस्कृतिक सवालों से दो चार होते हुए हम निकल पड़े अपने पहले पड़ाव “बन जाखरी” जल प्रपात देखने |बन जाखरी एक ऐसा झरना जहाँ कभी कोई तांत्रिक रहता था और अपनी तंत्र विद्याओं से लोगों का इलाज करता था हमने वहां ऐसी कई गुफाएं वहां देखीं और एक गुफा में बाकयदा एक शिवलिंग भी था जिस पर काई जमी हुई थी जो इस और इशारा कर रहा था यहाँ अमूमन पूजा नहीं होती  पर वहां हमने किसी पर्यटक को पूजा करते नहीं देखा  |
गुफा में  शिवलिंग 
एक हरे भरे पहाड़ में उंचाई से  गिरता झरना जो मनोहारी द्रश्य पैदा करता है चूँकि यह हमारा सिक्किम में पहला दिन था इसलिए उस प्रपात कोदेख कर अच्छा लगा पर एक पूरे हफ्ते सिक्किम के जिन हिस्सों से हम गुजरे ऐसे छोटे बड़े सैकड़ों प्रपात पहाड़ों से गिरते देखे |

पर्यटकों में ज्यादातर बिहार और पश्चिम बंगाल के ही थे वैसे अब तक के अपने पर्यटन के अनुभव से कह सकता हूँ कि बंगाली सबसे ज्यादा पर्यटन प्रेमी होते हैं आप लेह से कन्याकुमारी और राजस्थान से पूर्वोत्तर तक कहीं भी जाइए आपको बंगाली जरुर मिलेंगे पर ये पर्यटन के वक्त अपने में सिमटे रहते हैं |बन जाखरी में कुछ घंटे बिताने के बाद अगला ठिकाना रूमटेक मोनेस्ट्री थी पर आगे चलने से पहले थोडा सा ज्ञान हम भारतीय अपने देश के बारे में कितना कम जानते हैं और एक ही देश में कितने तरह की स्थितियां एक साथ हैं |सिक्किम में मात्र चार जिले हैं  पूर्व सिक्किम, पश्चिम सिक्किम, उत्तरी सिक्किम एवं दक्षिणी सिक्किम हैं
जिनकी राजधानियाँ क्रमश: गंगटोक, गेज़िंग, मंगन एवं  नामची हैं गंगटोक पूरे सिक्किम की भी राजधानी है यानि शहरों के अपने मुख्यालय हैं जिन्हें वहां की राजधानी कहा जाता है यह चार जिले पुन: विभिन्न उप-विभागों में बाँटे गये हैं। "पकयोंग" पूर्वी जिले का, "सोरेंग" पश्चिमी जिले का, "चुंगथांग" उत्तरी जिले का और "रावोंगला" दक्षिणी जिले का उपविभाग है।उत्तर भारत में ऐसी व्यवस्था नहीं शायद ऐसा वहां की भौगौलिक परिस्थिति के कारण हो |हमें गंगटोक ,ग्रेजिंग और नामची देखने का या कहें वहां से गुजरने का मौका मिला |रुम्टेक मोनेस्ट्री का रास्ता बहुत खराब था और धूप बहुत तेज पर गाड़ियों में एसी नहीं चलते अमूमन क्योंकि हवा रह रह कर ठंडी हवा इस धूप की तपन को कम कर देती है |गंगटोक से रुम्टेक की दूरी चौबीस किलोमीटर है |
रुम्टेक मोनेस्ट्री 
कबूतरों को दाना खिलाते पर्यटक 
चूँकि मैंने लेह पूरा घूमा हुआ था इसलिए यहाँ मुझे ज्यादा आनंद नहीं आया लेह की मोनेस्ट्री के सामने यह कुछ भी नहीं है और इसका इतिहास भी ज्यादा पुराना नहीं है वैसे यह मठ लगभग तीन सौ साल पुराना है पर वर्तमान मठ का निर्माण 1960  में हुआ है  पर लेह के मुकाबले यहाँ  सुरक्षा का ज्यादा ताम –झाम है
बगैर पहचान पत्र दिखाए आप यहाँ प्रवेश नहीं कर सकते यहाँ कबूतरों की एक बड़ी आबादी है जिन्हें आप दाने खरीदकर खिला सकते हैं |पूर्वोत्तर के राज्यों में जाने वाले पर्यटकों को मेरी सलाह अपना पहचान पत्र हमेशा अपने साथ रखें क्योंकि चीन से विवाद के कारण सेना से आपका आमना सामना होता रहेगा |
वैसे रुम्टेक मठ चर्चा में तब आया जब 17वें करमापा उग्येन त्रिनेल दोरजे तिब्बत से भागकर धर्मशाला होते हुए यहाँ आ गये कहानी में एक ट्विस्ट है एक और भारतीय करमापा भी थे जिन्हें दलाई लामा का समर्थन था और मठ की सम्पति को लेकर काफी विवाद हुआ मामला कोर्ट तक पहुंचा और अभी भी लंबित है |माना जाता है रुम्टेक मठ के पास 1.5 अरब डॉलर का खजाना है |दुनिया को मोह माया से ऊपर उठने की सीख देने वाले भी हमारे जैसे ही होते हैं अद्भुत किन्तु सत्य |17वें करमापा उग्येन त्रिनेल दोरजे यहीं रहते हैं मैंने वहां घूम रहे लामा से पूछा क्या मैं 17वें करमापा उग्येन त्रिनेल दोरजे से मिल सकता हूँ क्योंकि मुझे बताया गया वो यहीं रहते हैं तो मुझे उत्तर मिला अभी वो कनाडा में हैं |
एक और जिज्ञासा भी थी जिसका कोई भी लामा संतोष जनक उत्तर नहीं दे सका चूँकि मठ के अन्दर तस्वीर खींचने की इजाजत नहीं थी सो मैंने उस जिज्ञासा की तस्वीर नहीं ली हालाँकि लोग आसानी से मठ के अंदर की तस्वीरें ले रहे थे वैसे बगैर फ्लैश के तस्वीर लेने में कोई हर्ज नहीं होना पुरानी इमारतों में उकेरे भित्ति चित्र फ्लैश लाईट में खराब हो जाते हैं फिर भी भाईलोग धडधड फ्लैश चला रहे थे |मठ के अंदर घुसते सामने 17वें करमापा उग्येन त्रिनेल दोरजे का एक बड़ा सा चित्र है उसके नीचे दिया जल रहा है और नीचे बौद्ध परम्परा के अनुसार सिक्के और पैसे चढ़े हैं सिक्के बेतरतीब बिखरे हैं पर नोटों को एक कीप के आकार में मोड़कर खोंस कर लगाया गया ऐसा ही कुछ माहौल हमारे टैक्सी ड्राइवर ने अपनी गाडी में बना रखा था आप तस्वीर में देखकर उस माहौल का अंदाजा लग सकते हैं |
बौद्ध मठों में कुछ इस अंदाज में चढ़ावा चढ़ा रहता है 
जब हम मठ के अंदर की परिक्रमा करने गए तो हमने देखा 17वें करमापा उग्येन त्रिनेल दोरजे की तस्वीर के पीछे एक दीवार है और उसके पीछे गौतम बुद्ध की विशाल मूर्ति है जो उस दिवाल से छुप गयी है जिस पर 17वें करमापा उग्येन त्रिनेल दोरजे  की तस्वीर लगी हुई मतलब 17वें करमापा उग्येन त्रिनेल दोरजे की तस्वीर वाली दीवाल जल्दी बनाई गयी है जिसके पीछे बुद्ध की प्रतिमा छुप गयी है |17वें करमापा उग्येन त्रिनेल दोरजे  को आगे कर बुद्ध को क्यों छिपाया गया मैंने लामा से पूछा उसने कहा पूजा करने के लिए किसकी पूजा ? उसने जो कुछ मुझे बताया वो मेरे सामान्य ज्ञान से परे था |दिन के दो बज चुके थे अब बारी थी  इंस्‍टीट्यूट ऑफ तिब्‍बतोलॉजी देखने की  यहां बौद्ध धर्म से संबंधित अमूल्‍य प्राचीन अवशेष तथा धर्मग्रन्‍थ रखे हुए हैं। यहां अलग से तिब्‍बती भाषा, संस्‍कृति, दर्शन तथा साहित्‍य की शिक्षा दी जाती है।पर हाय रे नियति इतवार होने के कारण यह संस्थान बंद था वैसे हमारे ड्राइवर ने बताया यह पिछले इतवार को खुला था उसी परिसर से लगा हुआ |
द्रुल चोर्तेन स्तूप 
द्रुल चोर्तेन स्तूप था बौद्ध परम्परा में पूजा का स्थल अपर ऐतिहासिक रूप से काफी नया मेरे जैसे घुमक्कड़ जीव के लिए यहाँ कुछ नया नहीं था सिवाय इसके कि पूरे परिसर में अलसाई बिल्लियों की संख्या काफी ज्यादा थी जिन पर पर्यटकों की आवा जाही का कोई असर नहीं था वो बस मस्ती में सोई हुई थीं | अब बारी फूल प्रदर्शनी देखने की थी |यह एक ऐसी जगह थी जहाँ पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए फूलों की प्रदर्शनी चलती रहती है वैसे सिक्किम को लोग पर्यावरण के प्रति बहुत जागरूक हैं फिर भी चोग्याल पाल्देन ठोंदुप नामग्याल मेमोरियल पार्क में लगे इस फ्लावर शो ने मेरी  पेड़ पौधों के प्रति कम जानकारी को थोडा और बेहतर किया |रास्ते में एक छोटा सा भवन दिखा जो सिक्किम विधानसभा होने की गवाही दे रहा था न कोई सिक्योरिटी का ताम झाम न कोई रोड ब्लोक मतलब अगर हम अपनी गाड़ी रोक कर उतरते तो मुश्किल से बीस मीटर भी हमसे दूर नहीं था |मैं जब तक अपना कैमरा निकालता हम आगे बढ़ गए जनतंत्र को सही मायने में परिभाषित करती वो इमारत मेरी यादों में है क्योंकि उसके गला –बगल की इमारतों में ऐसी घुली मिली थी कि वो ख़ास इमारत है इसका आभास उसे देखकर नहीं होता जी हम भारत के ही एक राज्य में थे |
फ्लावर शो की यादें 
 चार बज गए थे अब हमारे पास दो विकल्प थे होटल जाकर आराम करें या गंगटोक की मशहूर महात्मा गांधी मार्केट से कुछ खरीददारी की जाए |हालंकि व्यक्तिगत रूप से बाजार घूमना और कुछ खरीददारी मेरे लिए दुनिया के सबसे बेकार कामों में से एक रहा है पर जनमत बाजार घूमने के पक्ष में था मैंने बेमन से हाँ कह दी ,हालाँकि सच बताऊँ अगर मैंने गंगटोक का वो बाजार न देखा होता तो निश्चित रूप से मैं सिक्किम के समाजीकरण के इस पक्ष के लिए हमेशा के लिए वंचित रह जाता पर अनजानी जगह डर बहुत लगता है क्योंकि हमारा ड्राइवर हमें मार्केट अकेला छोड़कर चला जाने वाला था और वहां से हमें अकेले अपने होटल जाना था जो वहां से पांच किलोमीटर दूर था |मैंने अपने डर को काबू करते हुए हर चीज नोट कर ली यहाँ तक आपात काल में किस को फोन करना है वगैरह वगैरह पर विश्वास जानिये इतना सौम्य अहसास मुझे आजतक भारत के किसी बाजार में नहीं हुआ |सिक्किम में बादल आते जाते रहते हैं कभी चमकदार तेज धूप तो थोड़ी देर बाद काले बादल (वैसे भी हम बारिश के मौसम में थे वैसे सिक्किम में साल भर थोड़ी बहुत बारिश होती रहती है इसीलिए यहाँ के पहाड़ पर काई बहुत जमी रहती है )| 
गंगटोक का बाजार 
 पहाड़ पर स्थित बाजार में हम सीढ़ी चढ़कर पहुंचे भदेस शैली में इस बाजार को देखते हुए मेरे मुंह से निकला “ओ तेरी” करीब दो सौ मीटर की सीधी लेन जहाँ किसी तरह का कोई वाहन नहीं बीच में डिवाइडर की जगह बैठने के लिए बेंच दोनों तरफ और छोटे छोटे पेड़ सफाई का आलम यह कि आप सडक पर लेट सकते हैं और मजाल है कि धूल का कोई कण आपके कपड़ों या शरीर पर लगे |गुटखा सिक्किम में प्रतिबंधित है पान की इक्का दुक्का दुकाने है जो आपको बहुत खोजने पर मिलेंगी जिसे कोई अपना कोई बिहारी भाई चला रहा होगा |बाजार में कोई शोर नहीं सब शांत खुबसूरत लड़कियां घूम रही हैं ,बैठी हैं झुण्ड में वो भी खालिस पाश्चात्य परिधान में पर न तो कोई फब्ती कस रहा है न घूर रहा है और सब कुछ अनुशासित अद्भुत अभी कुछ और झटके लगने थे |पार्किंग का कोई झंझट नहीं क्योंकि गाड़ियों के लिए एक जगह निश्चित है और उससे आगे कोई अपने बड़े होने का रुवाब झाड़ते कोई नहीं जाता यही अंतर है उत्तर भारत से जहाँ जो जितना कानून तोड़ता है वो उतना बड़ा माना जाता है पर यहाँ कानून डंडे के जोर से नहीं लागू है बल्कि कानून का पालन लोगों के व्यवहार में |खरीदने लायक मुझे ऐसा कोई सामान नहीं मिला वही सारे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के ब्रांड जिनसे हमारे माल्स भरे हुए वही यहाँ भी थे बस फर्क ये था कि ये सब छोटी छोटी दुकानों में थे |शराब की दुकान पर एक महिला अंग्रेजी शराब बेच रही है और लोगों की भीड़ है क्योंकि सिक्किम में  शराब उत्तर भारत के मुकाबले  बहुत सस्ती है और मजेदार बात यह कि लड़कियां भी बगैर डरे सहमे उस होती शाम को अपनी बारी आने की प्रतीक्षा में खडी हैं |एक बार फिर मैं बहुत कुछ सोच रहा था ऐसा क्यों है हमारा भारत सामजिक व्यवहार में इतना अलग –अलग क्यों है |इनको स्वच्छ भारत अभियान की जरुरत क्यों नहीं बेटी बचाओ बेटी पढाओ कि इनको क्यों नहीं जरुरत है इनका जीवन कितना मुश्किल है फिर भी सामाजिक व्यवहार में हमसे इतना आगे क्यों है यहाँ इतने स्कूल कॉलेज भी नहीं हैं जितने उत्तर प्रदेश  ,बिहार में  है फिर इतना अंतर क्यों |हमें हर चीज को समझाना पड़ता है यह तो सब कुछ समझे हुए है |अभी और शानदार अनुभव होने थे बहरहाल अब हमें होटल लौटना था और समस्या यह थी कैसे होटल तक पहुंचूं |
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Sunday, February 7, 2021

आत्म निर्भर भारत सुरक्षित इंटरनेट

 

इंटरनेट साईट स्टेटीस्टा के अनुसार देश में साल 2020 में इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं की संख्या सात सौ मिलियन रही जिसकी साल 2025 तक 974मिलीयन हो जाने की उम्मीद है | भारत दुनिया का सबसे बड़ा ऑनलाईन बाजार है |यह अपने आप में बड़ा बदलाव है इतनी तो दुनिया के कई विकसित देशों की आबादी भी नहीं है । यह आंकड़ा भारत की डिजिटल साक्षरता का भी आंकड़ा है यानी इतने लोग कार्यव्यापार व अन्य जरूरतों के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करते है।भारत के लिए यह रास्ता महत्वपूर्ण इसलिए हो सकता है क्योंकि मोबाइल हैंडसेट अकेला ऐसा माध्यम है जिससे देश की आबादी के एक बड़े हिस्से तक पहुंचा जा सकता है। यह अकेला ऐसा माध्यम है जो शहरों और कस्बों की सीमा लांघता हुआ तेजी से दूरदराज के गांवों तक पहुंच भी गया है। तथ्य यह भी है कि हिन्दी समेत अन्य भारतीय भाषाओं ने अंग्रेजी को भारत में इंटरनेट प्रयोगकर्ता भाषा के रूप में पहले ही दूसरे स्थान पर ढकेल दिया  है | गूगल और के पी एम् जी की रिपोर्ट के मुताबिक इंटरनेट पर भारतीय भाषाओँ के साल 2011 में 42 मिलीयन प्रयोगकर्ता थे जो साल 2016 में बढ़कर 234 मिलीयन हो गए हैं और यह सिलसिला लगातार बढ़ ही रहा है | एक टाईप” ग्रुप  के पंद्रह लोगों की टीम ने भारतीय भाषाओँ के लिए छ: ऐसे यूनिकोड फॉण्ट विकसित किये हैं जो भारत की क्षेत्रीय भाषाओँ को एक ही तरीके से लिखे जा सकते हैं  इस ग्रुप के द्वारा विकसित मुक्ता देवनागरी फॉण्ट प्रधानमंत्री कार्यालय समेत लगभग पैतालीस हजार वेबसाईट के द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है .इसी का बालू फॉण्ट दस भारतीय भाषाओँ में उपलब्ध है जिनमें मलयालम,कन्नड़ और उड़िया जैसी भाषाएँ शामिल हैं .यह भारतीयों की ताकत को दिखाता है इसके साथ ही देश में कंप्यूटर के मुकाबले मोबाइल पर इंटरनेट सुविधा हासिल करने वालों की संख्या भी बढ़ चुकी है। लोगों के लिए तो यह कई तरह की सुविधाएं हासिल करने का महत्वपूर्ण माध्यम है हीसाथ ही सरकार के लिए भी यह महत्वपूर्ण साबित हो सकता है पिछले तकरीबन एक दशक से भारत को किसी और चीज ने उतना नहीं बदलाजितना इंटरनेट ने बदल दिया है। रही-सही कसर इंटरनेट आधारित फोन यानी स्मार्टफोन ने पूरी कर दी पर कोई भी तकनीक अपने आप में परिपूर्ण नहीं होती है यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि हम उसका इस्तेमाल कैसे करते है |आज इंटरनेट भले ही हमारा जीवन आसान कर रहा हो पर अब इंटरनेट से जुड़े खतरों की चुनौती से देश जूझ रहा है इसीलिये अब इंटरनेट को सुरक्षित बनाने पर बल दिया जा रहा है क्योंकि इंटरनेट जितनी तेजी से हमारे जीवन में घर कर गया कि इससे पहले कि  इस तकनीक के इस्तेमाल से जुड़े मानक स्थापित हो पाते यह सबकी जरुरत बन गया |यहीं से शुरू हुआ इंटरनेट अपराध का सिलसिला जो आज फेक न्यूज  ,फेक सोशल मीडिया हैंडल से शुरू हो कर तमाम तरह के वित्तीय अपराधों तक पहुँच चुका है |फर्जी पहचान के सहारे नौकरी दिलाने से लेकर पैसे मांगने तक कई तरह के अपराध इस ओर इशारा करते हैं कि इंटरनेट को सुरक्षित बनाये रखने का वक्त अब आ गया है |

भारत के इंटरनेट उपभोक्ता आज दुनिया की कई बड़ी कम्पनियों के प्रगति करते रहने का बड़ा कारण है पर यदि यह कम्पनियां भारतीय होती तो आज देश की अर्थव्यवस्था की तस्वीर कुछ और होती और इन कम्पनियों के बाहरी होने के कारण कई बार देश विरोधी तत्वों को सर उठाने का मौका मिल जाता है वे फर्जी पहचान के सहारे ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देने में सफल हो जाते हैं जिससे देश के तंत्र को अस्थिर किया जा सके और लोगों में भ्रम फैलाया जा सके |

हालिया किसान आन्दोलन में हुई हिंसा के पश्चात दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर प्रवीर रंजन का कहना है कि "हाल के दिनों में लगभग 300 सोशल मीडिया हैंडल पाये गए हैंजिनका इस्तेमाल घृणित और निंदनीय कंटेंट फैलाने के लिए किया जा रहा है जिसमें कुछ विदेशी संस्थाएं  भी शामिल हैं  जो किसान आंदोलन के नाम पर भारत सरकार के ख़िलाफ़ ग़लत प्रचार कर रहे हैं|ऐसे में इंटरनेट को सुरक्षित बनाये रखने की जिम्मेदारी एक उपभोक्ता के तौर पर हमारी भी जिम्मेदारी है क्योंकि ऐसे दुष्प्रचार जिन भी सोशल मीडिया साईट्स से किये जा रहे हैं वे सभी विदेशी हैं |प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने शायद इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखकर आत्मनिर्भर भारत का नारा दिया है |अगर इंटरनेट में भारतीय कम्पनिया विश्व स्तर पर अपनी जगह बनाये तो भारत का विशाल डाटा किसी अन्य देश के सर्वर में रह कर देश के ही सर्वर में सुरक्षित रहेगा और ये जो विदेशी कम्पनिया भारत से पैसे कमा कर भारत विरोधी प्रचार को हवा दे रही हैं उन पर लगाम लगेगी | भारतीय कम्पनी रिलायंस जियो के स्वामी मुकेश अंबानी ने कहा कि 2021 में जियो भारत में 5जी क्रांति लेकर आएगी। पूरा नेटवर्क स्वदेशी होगा। इसके अलावा हार्डवेयर और टेक्नॉलजी भी स्वदेशी होगा। जिसके जरिये आत्म निर्भर भारत का सपना पूरा होगा |फिलहाल कुछ तथ्यों पर नजर डालते हैं साल 2018 में फेसबुक ने पचपन बिलियन डॉलर और गूगल ने एक सौ सोलह बिलियन डॉलर विज्ञापन से कमाए |मजेदार तथ्य यह है कि फेसबुक कोई भी उत्पाद नहीं बनाता हैडाटा आज की सबसे बड़ी पूंजी है यह डाटा का ही कमाल  है कि गूगल और फेसबुक जैसी अपेक्षाकृत नई कम्पनियां दुनिया की बड़ी और लाभकारी कम्पनियां बन गयीं है|डाटा ही वह इंधन है जो अनगिनत कम्पनियों को चलाए रखने के लिए जिम्मेदार हैं |वह चाहे तमाम तरह के एप्स हो या विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साईट्स सभी उपभोक्ताओं के लिए मुफ्त हैं |इसका मतलब यह है की सोशल मीडिया में रोजगार के कई सारे नए अवसर पैदा किये होंगे |भारत मे 462 मिलियन लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं जिसमे से करीब 250 मिलियन लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं । सबसे ज्यादा पेनिट्रेशन फेसबुक और यू ट्यूब का है। आज की सर्च के मुताबिक आज के दिन नौकरी डॉट कॉम पर सोशल मीडिया से संबंधित केवल 19057 नौकरियाँ  हैं। इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2018 के कारोबारी साल में फेसबुक इंडिया के मुनाफे में 40 प्रतिशत उछाल आया है । जबकि 2019 के कारोबारी साल में ये ही मुनाफा बढ़ कर 84% हो गया ।यू ट्यूब के भारत मे 265 मिलियन एक्टिव यूज़र्स हैं लिंकेडीन के भारत मे 50 मिलियन एक्टिव यूजर है 2017 के कारोबारी साल से लिंकेडीन का मुनाफा 26 प्रतिशत बढ़ा है|लिंकेडीन के भारत मे मात्र 750 कर्मचारी  हैं | 

इन आंकड़ों की रौशनी में यह दिखता  है  कि सोशल मीडिया साइट्स में प्रत्यक्ष रोजगार बहुत ही कम है और इन सभी साइट्स की ज्यादातर आमदनी "यूजर सेंट्रिक"  विज्ञापन से होती है और जबकि ज्यादातर ये सभी साइट्स फ्री है|आधिकारिक तौर पर सोशल मीडिया से भारत मे  कितने रोजगार पैदा हुए इसका विशेष उल्लेख नही मिलता क्योंकि ये सारी कम्पनियां इन से सम्बन्धित आंकड़े सार्वजनिक रूप से नहीं जारी करती  । साथ ही प्रत्यक्ष रोजगार के काफी कम होने का संकेत इन कम्पनीज के एम्प्लाइज की कम संख्या से प्रमाणित होता  है । बिजनेस स्टैण्डर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 में भारत में गूगल और फेसबुक ने 1०००० करोड़ रुपये कमाए |वहीँ  इकॉनमिक टाइम्स की रिपोर्ट के हिसाब से 2019 में रिलायंस इंडस्ट्रीज  ने 11,262 करोड़  रुपये कमाए परन्तु जब हम दोनों कम्पनीज से मिले प्रत्यक्ष रोजगार और साथ ही उसके साथ बने इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास को देखते हैं तो दोनों में जमीन आसमान का अंतर मिलता हैं | जैसे 90 बिलियन डॉलर वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज 194056 लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार देती है और इससे कहीं ज्यादा लोग वेन्डर कंपनियों के माध्यम से रोजगार पाते हैं।

इंटरनेट को सुरक्षित बनाये रखने के दो रास्ते हैं पहला ज्यादा से ज्यादा भारतीय उधमियों का इस क्षेत्र में प्रवेश जिससे हम आत्म निर्भर भारत की अवधारणा को सिर्फ उत्पाद के क्षेत्र में ही सीमित न करें बल्कि इंटरनेट के विभिन्न उत्पाद में भी भारतीयता को बढ़ावा दें और दूसरा इंटरनेट पर थोड़ी जिम्मेदारी से पेश आयें |फेक न्यूज से बचें  फर्जी चित्रों को पहचानने में गूगल ने गूगल इमेज सेवा शुरू की हैजहां आप कोई भी फोटो अपलोड करके यह पता कर सकते हैं कि कोई फोटो इंटरनेट पर यदि हैतो वह सबसे पहले कब अपलोड की गई है इससे यदि कोई फोटो किसी गलत सन्दर्भ में प्रचारित की जा रही है तो हम ये समझ सकें कि ऐसी खबरें वैमनस्यता फैलाने के लिए प्रसारित की जा रही हैं । एमनेस्टी इंटरनैशनल ने विडियो में छेड़छाड़ और उसका अपलोड इतिहास पता करने के लिए यूट्यूब के साथ मिलकर यू ट्यूब डेटा व्यूअर सेवा शुरू की है ।

अनुभव बताता है कि नब्बे प्रतिशत विडियो सही होते हैं पर उन्हें गलत संदर्भ में पेश किया जाता है। किसी भी विडियो की जांच करने के लिए उसे ध्यान से बार-बार देखा जाना चाहिए। यह काम क्रोम ब्राउजर में इनविड (InVID) एक्सटेंशन जोड़ कर किया जा सकता है। इनविड जहां किसी भी विडियो को फ्रेम दर फ्रेम देखने में मदद करता है वहीं इसमें विडियो के किसी भी दृश्य को मैग्निफाई (बड़ा) करके भी देखा जा सकता है। यह विडियो को देखने की बजाय उसे पढ़ने में मदद करता है। मतलबकिसी भी विडियो को पढ़ने के लिए किन चीजों की तलाश करनी चाहिएताकि उसके सही होने की पुष्टि की जा सके। जैसे विडियो में पोस्टर-बैनरगाड़ियों की नंबर प्लेट और फोन नंबर की तलाश की जानी चाहिएताकि गूगल द्वारा उन्हें खोज कर उनके क्षेत्र की पहचान की जा सके। कोई लैंडमार्क खोजने की कोशिश की जाए। विडियो में दिख रहे लोग कैसे कपड़े पहने हुए हैंवे किस भाषा या बोली में बात कर रहे हैंउसको देखा जाना चाहिए। इंटरनेट पर ऐसे कई सॉफ्टवेयर मौजूद हैं जो विडियो और फोटो की सत्यता पता लगाने में मदद कर सकते हैं। 

 

दैनिक जागरण के झंकार परिशिष्ट में 07/02/2021 को प्रकाशित 

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