Saturday, April 17, 2021

समयानुकूल बने कम्प्यूटर शिक्षा

 

नब्बे के दशक में स्कूली शिक्षा में पुस्तक कला जैसे विषयों को हटाकर कंप्यूटर शिक्षा को स्कूली शिक्षा का अंग बनाया गया जिसका परिणाम यह हुआ कि दो हजार के शुरुआती दशक में ही भारतीय परचम इस क्षेत्र में लहराने लगा जिससे कई सारी मध्यम वर्गीय सफलता की कहानी बनी जैसे की इन्फ़ोसिस और अन्य स्वदेशी  कम्पनियां जिन्होंने लाखों युवाओं को इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रेरित किया पर यह सफलता की कहानियां लम्बे समय तक जारी नहीं रह सकीं  |भारत की एप इकोनोमी बहुत तेजी से बढ़ रही है जबकि चीन राजस्व और उपभोग के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा बाजार बना हुआ  हैवहीं अमेरिकन कम्पनियां एप निर्माण के मामले में  शायद सबसे ज्यादा इनोवेटिव (नवोन्मेषी ) हैं |भारत सबसे ज्यादा प्रति माह  एप इंस्टाल करने और उसका प्रयोग करने के मामले  में अव्वल है |भारतीय एप परिद्रश्य का नेतृत्व टेलीकॉम दिग्गज एयरटेल और जिओ  करते हैं यद्यपि स्ट्रीमिंग कम्पनियाँ जैसे नोवी डिजिटल और जिओ सावन और पेटी एम् ,फोन पे और फ्लिप्कार्ट जैसी  ई कोमर्स साईट्स ने अपने आप को वैश्विक परिद्रश्य पर भी स्थापित किया है |फोर्टी टू मैटर्स डॉट कॉम साईट्स के मुताबिक़ गूगल प्ले स्टोर पर  कुल 882,939 एप पब्लिशर्स में से 24359 भारतीय एप पब्लिशर्स हैं |कुछ बड़े भारतीय एप पब्लिशर्स में गेमेशन टेक्नोलॉजी,वर्ड्स मोबाईल,मूटोन,मिलीयन गेम्स ,एआई फैक्ट्री जैसे नाम शामिल हैं | गूगल प्ले स्टोर्स में उपलब्ध सभी एप पब्लिशर्स  में से मात्र तीन प्रतिशत एप पब्लिशर्स ही भारतीय हैं |वहीं गूगल प्ले स्टोर पर कुल एप्स की संख्या 2,942,574है जिसमें भारतीय एप की संख्या 121,834 है  जो प्ले स्टोर पर कुल उपलब्ध एप्स का मात्र चार प्रतिशत है |आंकड़ों के  नजरिये से देश में  उपभोक्ताओं की उपलब्धता के हिसाब से भारतीय एप की संख्या बहुत ही कम है |वैश्विक परिद्रश्य में आंकड़ों के विश्लेषण से कई रोचक तथ्य सामने आते हैं जैसे प्ले स्टोर्स पर उपलब्ध कुल भारतीय एप पब्लिशर्स की औसत रेटिंग पांच में से  3.65 है जो प्ले स्टोर पर सभी पब्लिशर्स की औसत रेटिंग 3.22 से बेहतर है |उसी तरह प्ले स्टोर पर भारतीय एप की औसत रेटिंग 1874 है जबकि प्ले स्टोर पर उपलब्ध सभी एप की औसत रेटिंग 1,112 से ज्यादा है|आंकड़ों की दुनिया से दूर कुछ धरातल की बात क्यों भारतीय एप वैश्विक स्तर पर सफल नहीं है |

भारत में  सूचना प्रौद्योगिकी  का बाजार एक सौ पचास बिलियन डॉलर का है जो भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद का 9.5 प्रतिशत है और पूरी दुनिया में 3.7 मिलीयन लोगों को रोजगार प्रदान कर रहा  है |अर्थव्यवस्था को इतना महतवपूर्ण योगदान देने वाला क्षेत्र आज उत्पादकता के लिहाज से इसलिए पिछड़ रहा है क्योंकि भारत की कंप्यूटर शिक्षा में नवोन्मेष की भारी कमी है और यह बाजार की मांग के हिसाब से खासी पिछड़ी हुई है तकनीक पर बढ़ती इस   निर्भरता को अनवरत और लाभ उठाने वाला तभी बनाया जा सकता है जबकि सूचना प्रौद्योगिकी  शिक्षा का अभ्यास कॉलेज और स्कूली स्तर पर ज्यादा अद्यतन तरीके से कराया जाए स्कूल स्तर  पर कंप्यूटर शिक्षा पर दो तरह की समस्याओं का शिकार हैपहला स्कूलों में अभी भी फोकस एम् एस वर्ड,एक्सेल,पावर प्वाईंट आदि पर है |दूसरा कंप्यूटर की प्राथमिक भाषाओँ को सिखाने में सारा जोर बेसिक” और लोगो” जैसी भाषाओं पर ही है |एक समय की अग्रणी कंप्यूटर भाषाएँ जैसे सीलोगो ,पास्कल ,कोबोल बेसिक ,जावा जो की अब चलन से बाहर हो चुकी हैं अभी भी पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं जबकि कंप्यूटर प्रौद्योगिकी में अग्रणी देश ओपेन सोर्स सोफ्टवेयर और ओपन सोर्स लेंग्वेज को अपना चुके हैं जैसे कि  आर , पायथॉन,   रूबी  ऑन  रेललिस्प , टाइप स्क्रिप्ट , कोटलिन , स्विफ्ट और रस्ट इत्यादि |यह भाषाएँ  सीलोगो ,पास्कल ,कोबोल बेसिक ,जावा के मुकाबले ज्यादा संक्षिप्त,सहज और समझने में आसान हैं |इन भाषाओँ के प्रयोग से किसी भी काम को कल्पना से व्यवहार में बड़ी आसानी से लाया जा सकता है |उल्लेखनीय है की यह भाषाएँ ही हैं जिनसे एक कोड का निर्माण कर किसी भी काम को करने के लिए सोफ्टवेयर का निर्माण किया जाता है |महत्वपूर्ण है कि ये भाषाएँ उन क्षेत्रों में भी ज्यादा काम की हैं जो आजकल बहुत मांग में है जैसे कि आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस”, रोबोटिक्स आदि|

भविष्य की दुनिया तकनीक और ऑटोमेशन की है जहाँ सभी प्रकार के उद्योग धंधे और व्यवसाय सॉफ्टवेयर आधारित होंगे आज हर उद्योग  किसी न किसी रूप में सूचना प्रौद्योगिकी की सहायता से चल रहा है  वो चाहे निर्माण,परिचालन ,भर्ती हो या लेखा सभी कम्प्युटरीकृत होते जा रहे हैं  और उपभोक्ता भी पहले के मुकाबले आज निर्णय और खरीदने की प्रक्रिया में ज्यादा से ज्यादा तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है |अब कंप्यूटर कौशल और उसकी भाषाएँ आधारभूत जरूरतें हैं कंप्यूटर की उच्च शिक्षा का और भी बुरा हाल है |शिक्षण संस्थान प्रायोगिक कार्य और वास्तविक कोड निर्माण नहीं करवा पा रहे हैं इसलिए जब कोई कम्प्यूटर स्नातक किसी नौकरी में आता है तो वह अपनी कम्पनी में  इन कार्यों को  सीखता है जिससे कम्पनी पर अनावश्यक बोझ पड़ता है और बहुत समय नष्ट होता है |

 साल 2011 में आयी नासकॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार देश के  मात्र 25 प्रतिशत आई टी इंजीनियर  स्नातक ही रोजगार के लायक थे पर छ साल बाद स्थिति और खराब हुई है अस्पाएरिंग माईंड स्टडी की एक रिपोर्ट स्थिति की गंभीरता की ओर इशारा करती है ,रिपोर्ट के अनुसार भारत के पांच  प्रतिशत कंप्यूटर इंजीनियर ही  उच्च स्तर की प्रोग्रामिंग के लिए उपयुक्त  हैं |यह रिपोर्ट उस समय आयी है जब ग्राहकों की मांग लगातार बढ़ रही है |तेजी से डिजीटल होते भारत में जब रोजगार के नए क्षेत्र तेजी से ऑनलाईन दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं जिनमें कपडे प्रेस करने से लेकर टूटे नल को ठीक करने वाले प्लंबर जैसे काम भी  शामिल हैं  ये बताते हैं कि इस क्षेत्र में काम के अवसर और तेजी से बढ़ते रहेंगे |नई-नई  तकनीक और तकनीकी नवोन्मेष को भारतीय कौशल की विचार शक्ति में लाने के लिए ज्यादा मुक्त और उन्नत कंप्यूटर शिक्षा की तरफ बढना ही एकमात्र समाधान है अन्यथा एक वक्त में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अगुआ बनकर उभरे भारत के लिए प्रतिस्पर्धा के बाजार में टिकना सम्भव नहीं होगा |

दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में 17/04/2021 को प्रकाशित 

Friday, April 2, 2021

सिक्किम यात्रा :अंतिम भाग

पीलिंग की अगली सुबह कंचनजंघा पर्वतमाला में सूर्योदय के साथ शुरू हुई |सिर्फ चिड़ियों की चहचाहट और कोई मशीनी शोर नहीं ऐसी सुबह का आनन्द दशकों बाद उठाया था |गर्म पानी से नहाने के बाद एक बार फिर स्थानीय पर्यटन शुरू जो होना था |गाडी में कुछ दूर चलते ही पता लगा सडक पर जाम लगा पीछे गाड़ियों का काफिला बढ़ता ही गया पता चला आगे सडक पर बनाने का काम चल रहा है पर मजाल है किसी गाडी में हॉर्न की आवाज सुनाई पडी हो लगभग आधे घंटे के बाद सडक थोड़ी देर के लिए खोली गयी और हमारी गाडी उस जाम में से निकल गयी |
अगला पड़ाव था रिम्बी फाल या रिम्बी जलप्रपात वैसे सच बताऊँ तो सिक्किम झरनों का प्रदेश है आप सडक से कहीं की भी थोड़ी दूरी की यात्रा कीजिये आपको किसी न किसी पहाड़ से कोई झरना गिरता जरुर दिखेगा हाँ ये जरुर हो सकता है कि आकार में जो झरने के मानक हैं वो उस पर खरा न उतरे पर पानी पहाड़ों से गिरता आपको यत्र –तत्र दिख ही जाएगा तो रिम्बी झरना बस आकार में थोडा बड़ा है इसलिए वह एक पर्यटक स्थल बन गया है पर यहाँ के पर्यटक स्थल पर आपको स्थानीय लोग नहीं दिखेंगे और न ही भीड़ भाड़ रहती है गंदगी का नामों निशाँ नहीं है हाँ और जो गंदगी दिखेगी वो बाहर से आये पर्यटकों का छोड़ा हुआ सामान होगा |मतलब आम सिक्किम का निवासी पर्यवरण के प्रति खासा जागरूक है |रिम्बी फाल्स में ऐसा कुछ नहीं था जो अनोखा हो एक झरना जो काफी उंचाई से गिर रहा था पूरा का पूरा वातावरण प्रक्रतिक था और कोई भी मानवीय ढाँचे का निर्माण वहां नहीं किया गया था |यहीं रास्ते में दरप गाँव पड़ता है जहाँ बड़ी ईलायची की खेती होती है और कई सारे होम स्टे हैं जहाँ आप घर के वातावरण में रहकर पीलिंग की खूबसूरती का आनंद ले सकते हैं और ये होटल के मुकाबले सस्ते पड़ते हैं पर होटल की लक्जरी आपको नहीं मिलेगी जो कुछ मिलेगा वो सब प्राकृतिक होगा | अब बारी थी सिक्किम का एक बाग़ देखने की थी यूँ तो बाग़ में देखने कुछ होता नहीं पर यह सिक्किम का एक संतरे का बाग़ था |घुमावदार सीढीयों में तरह -तरह के पेड़ पौधे और उनके पीछे एक पहाडी नदी कल कल बह रही थी |संतरे का मौसम न होने के कारण हमें संतरे के छोटे -छोटे कच्चे फलों को देखकर दिल को खुश करना पड़ा जो भी हो पार्क था बहुत लुभावना |
सिक्किम का संतरे का बाग़ 
इसके और आगे एक प्रमुख झील का भी दर्शन करना था जो पहाड़ों की तलहटी में स्थित है जिसका नाम खेतोपलारी झील था |इस झील के पहुँचने का रास्ता बहुत संकरा और वीरान है अगर गाड़ियों की आवा जाही न हो तो यह कह पाना बहुत मुश्किल है कि यहाँ बौद्ध धर्म से संबंधित इतना महतवपूर्ण केंद्र होगा जो हिन्दुओं  द्वारा भी पूजनीय है ऐसा माना जाता है कि यहाँ लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं |यह झील करीब पैंतीस सौ साल पुरानी है जहाँ कुछ बौद्ध मठ हैं जहाँ पूजा हो रही थी |
खेतोपलारी झील
प्राकृतिक तौर पर यह इलाका पर्याप्त जैव विविधता लिए हुए था रास्तों और पहाड़ों पर जमी हुई काई बता रही थी कि यहाँ बारिश का पानी सूखने नहीं पाता कारण चारों तरफ ऊँचे ऊँचे पेड़ों का होना जो सूर्य की किरणों को धरती पर आने से रोक लेते हैं इसीलिये झील से मुख्य मार्ग का रास्ता जो करीब एक किलोमीटर का था ठंडा और फिसलन भरा था जबकि बाहर सूर्य अपनी तेजी के साथ विराजमान था |दोपहर के बारह चुके थे अब हमें पीलिंग वापस लौटना था और वहां से दार्जिलिंग के लिए प्रस्थान करना था |
करीब एक घंटे के बाद हम दार्जिलिंग के रास्ते में थे पीलिंग से दार्जिलिंग तक की दूरी करीब चार घंटे में पूरी होनी थी इस यात्रा के शुरू होने से पूर्व ही दार्जिलिंग में तनाव शुरू हो गया था

और हम निश्चिन्त नहीं थे कि हम दार्जिलिंग पहुँच पायेंगे भी या नहीं खैर उस दिन हमें बताया गया कि दार्जिलिंग में सब ठीक थे और आप दार्जिलिंग जा सकते हैं |वैसे एक बात बताऊँ जिन्दगी में घूमने का सिलसिला बड़ी देर से शुरू हुआ पर जब से मैंने होश सम्हाला अगर कहीं जाने का मन होता था तो वह दार्जीलिंग ही था शायद इसके लिए वे हिन्दी फ़िल्में जिम्मेदार थी जो उन दिनों दूरदर्शन पर दिखाई जाती थीं तो मन बल्लियों उछल रहा था कि आखिरकार मेरे जीवन की यह अधूरी इच्छा भी पूरी होने वाली है |सिक्किम पश्चिम बंगाल द्वारा प्रशासित स्वायत्तशासी क्षेत्र है जो सिक्किम से एक दम सटा हुआ है और इस क्षेत्र के अधिकतर निवासी नेपाली मूल के हैं जोअपने लिए अलग राज्य गोरखा लैंड की मांग लम्बे समय से कर रहे हैं |सिक्किम राज्य तक को सडक बहुत अच्छी है पर जहाँ से सिक्किम खत्म होता है और पश्चिम बंगाल की सीमा शुरू होती है रास्ता वहीं से खराब होना शुरू हुआ और जिसका चरम था दार्जिलिंग से पहले के पंद्रह किलोमीटर का रास्ता उस पहाडी रास्ते में आपको सडक खोजनी पड़ेगी |
दार्जिलिंग पीस पगोड़ा
थोड़ी देर समतल इलाके में चलने के बाद एक बार फिर हमारी गाडी पहाडी पर चढ़ने लगी |आस-पास के चाय बागान बता रहे थे हम दार्जिलिंग आ चुके थे पर शहर अभी थोड़ी दूरी पर था |
यार्ड में खड़ी टॉय ट्रेन 
शहर में घुसने पर दार्जिलिंग को लेकर जो मेरे सपने थे वो धीरे धीरे ध्वस्त होने शुरू हुए |काफी गन्दा शहर लोगों और गाड़ियों से भरा हुआ जैसे गर्मियों में शिमला और मंसूरी का हाल होता है लेकिन शहर में तनाव साफ़ महसूस किया जा सकता था जगह –जगह सेना और पुलिस की मौजूदगी यह बता रही थी कि सब ठीक नहीं है |हमारा ड्राइवर जिसका नाम मैं भूल चुका हूँ दार्जिलिंग की समस्या के बारे में बता रहा था और अभी जो आग भड़की है उसके पीछे ममता बनर्जी सरकार का बंगाली भाषा को अनिवार्य बनाने का तुगलकी फैसला था पर इसी के साथ अलग राज्य की मांग भी जोर पकड़ गयी जिससे हिंसा होने लग गयी |सच बताऊँ तो दार्जिलिंग को देखकर यह अहसास हुआ कि मैं यहाँ दोबारा नहीं आना चाहूँगा |अतिक्रमण और अनाधिकृत निर्माण ने पहाड़ों को बर्बाद कर दिया है हर जगह पर्यटकों की भीड़ और गंदगी |शाम हो चुकी थी इसलिए अब आराम का वक्त था वैसे भी सुबह साढ़े तीन बजे उठकर टाइगर हिल पर सूर्योदय देखने जाने का कार्यक्रम था हालंकि मेरी इसमें कोई रूचि नहीं थी पर एक बार फिर जनमत के फैसले के आगे झुकना पड़ा |
टाइगर हिल से सूर्योदय 
सुबह साढ़े तीन बजे दार्जिलिंग में ठीक ठाक ठण्ड थी हम टाइगर हिल जाने के लिए निकल पड़े |गाड़ियों और लोगों का हुजूम धीरे –धीरे बढ़ता गया उस जगह जहाँ से सूर्योदय का नजारा किया जाना था सुबह के चार बजे एक छोटा मोटा बाजार लगा था जहाँ ऊनी कपडे बिक रहे थे और हैरत की बात है लोग खरीद भी रहे थे |कुछ युवतियां थर्मस में कॉफ़ी बेच रही थी मैंने एक कोट डाल रखा था पर ठण्ड से बचने के लिए कॉफ़ी एक अच्छा विकल्प था बीस रुपये में एक छोटे से कागज के कप में कॉफ़ी मिली जो मीठी ज्यादा थी |आसमान का माहौल देखकर मैंने अंदाजा लगा लिया आज सूरज नहीं दिखेगा क्योंकि आसमान में बादल थे तो कंचनजंघा की चोटियों में से आज सूरज के दर्शन न हो पायेंगे इसलिए मैं वहां से पहले ही खिसक लिया और मेरा यह निर्णय सही साबित हुआ क्योंकि उस दिन सूरज नहीं निकला  और हम सूर्योदय के बाद गाड़ियों की होने वाली भागम भाग और जाम से बचकर पहले निकल गए |लौटते वक्त बतासिया लूप मेमोरियल पार्क का भ्रमण किया गया |
बतासिया वार मेमोरियल :फोटो साभार गूगल 
बतासिया लूप दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे का एक स्टेशन है जहाँ एक वार मेमोरियल भी बनाया गया है जहाँ गोरखा रेजीमेंट के  उन सारे जवानों के नाम अंकित  है जो 1987 के बाद वीरगति को प्राप्त हुए |बतासिया लूप एक ऐसा स्टेशन है जहाँ रेलवे की पटरियां अंगरेजी का आठ बनाती हैं |अब कुछ बातें दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे के बारे में दार्जिलिंग को विकसित करने का श्रेय अंग्रेजों  को जाता है यहाँ 1881 से नेरो गेज की ट्रेन अभी भी चलती है जिसे यूनेस्को की तरफ से वर्ल्ड हेरीटेज का दर्जा मिला है यह दो तरह के रास्ते पर चलती है पहला दार्जिलिंग से घूम स्टेशन जिसका आनंद जयादातर पर्यटक उठाते हैं इसे टॉय ट्रेन के नाम से जाना जाता है पर इसका किराया बहुत मंहगा है और दूसरा दार्जिलिंग से सिलीगुड़ी जिसमें यह ट्रेन सत्तर किलोमीटर का रास्ता यह ट्रेन करीब आठ घंटे में पूरा करती है |

सडक से सिलीगुड़ी से दार्जिलिंग का रास्ता बहुत अच्छा होने के कारण यह दूरी अब तीन घंटे में सिमट गयी है इसलिए लोग अब ट्रेन को प्राथमिकता नहीं देते ऐसे पर्यटक जिनके पास समय है और प्रकृति से प्यार वही अब इस ट्रेन से दार्जिलिंग तक का सफ़र तय करते हैं वैसे लम्बे समय तक यह टॉय ट्रेन मुम्बईया फिल्मों का हिस्सा रही है |आराधना फिल्म का वह मशहूर गाना “मेरे सपनों की रानी कब आयेगी तू” कौन भूल सकता है जो इसी ट्रेन पर शूट हुआ है |हम इस ट्रेन को चलता हुआ न देख पाए क्योंकि दार्जिलिंग में तनाव के कारण यह ट्रेन बंद थी हां यार्ड में जाकर जरुर इस ट्रेन को निहारा जो पिछले सौ सालों से भी ज्यादा दार्जिलिंग के जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बनी हुई है |
पटरियों पर सजा बाजार 
ट्रेन के मुख्य ट्रैक पर यहाँ मेक शिफ्ट अरेंजमेंट वाली कई दुकानें भी हैं जो ट्रेन के आने पर बंद हो जाती हैं और जाने के बाद फिर खुल जाती हैं |बतासिया लूप पर सस्ते उनी कपडे आप खरीद सकते हैं |
होटल लौट कर थोडा सुस्ताने के बाद हम जापान सरकार द्वारा निर्मित पीस पेगोडा देखने गये तब तक बादल पूरे दार्जिलिंग को अपने जद में ले चुके थे और ऐसे मौसम में किसी पेगोडा को देखना उसकी सार्थकता सिद्ध कर रहा था शान्ति निस्तब्धता और प्रकृति का साथ |हम उसकी खूबसूरती में खोये ही थे तभी मेरी तन्द्रा को एक बुरी खबर ने तोडा शहर में हड़ताल हो गयी हम लोगों को तुरंत होटल लौटना होगा |लौटते वक्त वो दार्जिलिंग जो भीड़ और गाड़ियों से भरा था एकदम खाली हो गया हम जल्दी से होटल पहुंचे |बंद इतना जबरदस्त था कि हमारे होटल भी ताला पड़ा हुआ था हम लोगों के पहुँचने पर गेट खुला और फिर ताला बंद हो गया |अब दार्जिलिंग घूमने का सारा कार्यक्रम मुल्तवी होकर इस पर केन्द्रित था कि सुरक्षित वापस बागडोगरा कैसे पहुंचा जाए जहाँ से हमारी उड़ान अगले दिन थी पूरी दोपहर टैक्सी के जुगाड़ में बीत गयी करते –करते शाम को पांच बजे हम लोग दार्जिलिंग से सिलीगुड़ी के लिए निकले और रात आठ बजे सिलीगुड़ी पहुँच गये |एक यात्रा अपने अंत की तरफ थी पर जिन्दगी की यात्रा और भटकन अभी भी जारी है किसी नए पड़ाव के इन्तजार में |
सिक्किम पर प्रख्यात निर्देशक सत्यजीत रे द्वारा बनाया गया वृत्तचित्र देखना चाहें तो यहाँ क्लिक करें |

 समाप्त 
भारतीय रेल के अप्रैल 2021 के अंक में प्रकाशित 


Thursday, April 1, 2021

सिक्किम यात्रा :पांचवां भाग

विदा गंगटोंक
अब गंगटोक से स्थायी रूप से विदा लेने की बारी थी सामान समेट कर गाड़ियों में भरा गया अब अगला ठिकाना पीलिंग था जहाँ हमें एक रात बितानी थी और पीलिंग घूमते हुए अगली शाम को ग्रेजिंग होते हुए दार्जिलिंग के लिए निकल जाना था |पीलिंग गंगटोंक से ज्यादा उंचाई पर है |पीलिंग की उंचाई 2,150 मीटर है और गंगटोंक से लगभग एक सौ तेरह किलोमीटर दूर है जहाँ पहुँचने में लगभग पांच घंटे लगने की उम्मीद थी |पीलिंग अपनी आबोहवा और सुन्दर दृश्यों के लिए मशहूर है |सुबह सात बजे के करीब हमने अपना होटल छोड़ दिया |

धीरे –धीरे गंगटोंक पीछे छूट गया और अब हम थे और हरे भरे पहाड़ आधा रास्ता वही था जिन रास्तों में हम पिछले दो दिन से आ जा रहे थे पर उसके बाद सब कुछ बदल जाने वाला था |रास्ता लम्बा था इसलिए मेरी नजर पर सडक पर चल रही गतिविधियों पर थी |हम लगभग जंगल में चल रहे थे पर बीच-बीच  में अपनी एक मोटरसाइकिल के साथ पुलिस कभी कभार दिख जाती थी इसमें ख़ास बात यह थी कि इनमें ज्यादातर महिलाएं थी जो उस वीराने में बगैर किसी भय के अपनी ड्यूटी बजा रही थी न बैठने के लिए कुर्सी न आस –पास कोई आबादी पर वो मुस्तैद थीं |मैंने कहीं पढ़ा था हमें वैसी पुलिस मिलती है जैसा हमारा समाज होता है सच है सिक्किम का समाज डरा हुआ नहीं था और नियम को मानने वाला भी |उत्तर भारत में दिन के समय भी कोई जगह लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं है पर यहाँ कोई समस्या नहीं है |
बुद्ध की एक सौ तीस फीट ऊँची मूर्ति 

स्कूल जल्दी ही बंद होने वाले थे यहाँ गर्मियों की छुट्टियाँ बारिश में शुरू होती हैं इस वक्त परीक्षा का मौसम चल रहा था रास्ते में दो तीन के झुण्ड में लड़के लड़कियां अपना प्रश्न पत्र और क्लिप बोर्ड लिए आते जाते दिख रहे थे |इस वीराने में जहाँ गाड़ियाँ भी ज्यादा नहीं चल रही थी वो आराम से हँसते खेलते हुए अपनी मंजिल की तरफ बढे जा रहे थे |रास्ते में पड़ने वाले गाँवों में आबादी ज्यादा नहीं थी पर एक चीज जो मुझे बार –बार मोहित कर रही थी यहाँ की लड़कियों के चेहरे पर छाई मुस्कान, इतनी अलहड़ और उन्मुक्त मुस्कान जिस पर मोहित हुए बगैर  नहीं रहा जा सकता |उनके पहनावे से यह अंदाजा लगाया जा सकता था कि यहाँ लड़कियों के पहनावे से उनके चरित्र की पहचान नहीं होती है हम नेशनल हाइवे से गुजर रहे थे और रास्ते में पड़ने वाली दुकानों में ज्यादातर लड़कियां ही थीं जो शॉर्ट्स और टी शर्ट में बड़े आराम से अपनी दुकान के सामने  बैठी थी या ग्राहकों को सामान बेच रही थी बगैर किसी हिचक के पूरे आत्मविश्वास के |
सूना पेट्रोल पम्प और पीछे कंचनजंघा की चोटियाँ 
यह मामला बता रहा है सिक्किम का समाज लैंगिक समानता के मामले में उत्तर भारत के अन्य राज्यों से कहीं आगे है |हम सिंगतम पार कर रहे थे यहाँ के पहाडी रास्तों की एक ख़ास बात मुझे समझ आयी कि क्यों यहाँ छोटी गाड़ियाँ भी बहुतायत से चलती हैं वो यह था कि आम तौर पर पहाड़ों पर एक तरफ पहाड़ होता है और दूसरी तरफ गहरी खाई जिसमें दुर्घटना होने पर गाडी कई फीट नीचे खाई में गिरती है अगर गाडी छोटी होती है तो जान जाने या चोटिल होने की आशंका रहती है पर सिक्किम के पहाड़ और यहाँ के रास्ते इस मायने में उत्तर भारत के पहाड़ों से अलग हैं यहाँ जिस तरफ खाई है उस तरफ भी बहुत पेड़ पौधे हैं जिससे गाड़ियों के नीचे गिरने का खतरा कम रहता है और अगर गिरी भी तो वो ज्यादा नीचे नहीं जा पाएंगी क्योंकि पहाड़ पर दूसरी तरफ भी बहुत से पेड़ हैं जिनमें साल और बांस की बहुतायत है |

पहाड़ पूरी  तरह से यहाँ संजोये गए हैं और विकास का वह रोग अभी यहाँ नहीं पहुंचा है |सिक्किम में सीढ़ीदार खेतों में खेती होती है जिनमें बड़ी इलायची और संतरा प्रमुख हैं |खेतों में यूरिया का इस्तेमाल नहीं होता और सरकार भी ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देती है इसलिए यहाँ आपको खाने के लिए जो कुछ मिलेगा वह शुद्ध ही मिलेगा |प्रदुषण न होने से शुद्धता का स्तर कई गुना बढ़ जाता है |रास्ते में हमारे ड्राइवर ने बताया कि  रवानगला कस्बे में एक बुद्ध पार्क पड़ता है|बस  उसको देखने की इच्छा बलवती हो उठी गाडी घुमवाई गयी |एक सौ तीस फुट ऊँची बुद्ध की प्रतिमा दूर से ही दिखती है |
पीलिंग की वो सुहानी शाम 
बादलों की आवा जाही के बीच जब हम उस पार्क में पहुंचे तो बुद्ध प्रतिमा बादलों की छाँव में थी और हल्की बूंदा बांदी हो रही थी पर धीरे धीरे बादल चले गए और सूरज चमकने लग गया यह भी जल्दी बना पार्क है जिसका उदघाटन 2013 में बौद्ध गुरु दलाई लामा ने किया |मूर्ति के अन्दर पुजाग्रह है और इसके अंदर चलते चलते मूर्ति के सर तक पहुँच सकते हैं |जहाँ महात्मा बुद्ध के जीवन के कहानी को विशाल चित्रों में उकेरा गया है |शान्ति और शानदार मौसम यहाँ आप तन और मन से उस परालौकिक शक्ति से एकाकार हो सकते हैं |कई लोग वहां ध्यान कर रहे थे कुछ सो भी रहे थे ऐसा मुझे लगा हो सकता है वो ध्यान ही कर रहे हों पर हमारे पास इतना समय नहीं था इसलिए जल्दी ही हमने उस पार्क से विदा ली |करीब दिन के दो बजे हम पीलिंग के अपने होटल में पहुँच गए |पहली नजर में पीलिंग ने मुझे कुछ ख़ास आकर्षित नहीं किया हो सकता हो ये सफर की थकान हो या कुछ और उस वक्त धूप भी थी हमने फटाफट अपने कमरे में कब्ज़ा जमाया और एक चाय पी| यहाँ चाय के पाउच और बिजली की केतली हर होटल के कमरे में मिलेगी तो आपको बस पानी गर्म करना है और चाय कॉफ़ी जो पीना चाहें पीयें |कुछ देर सुस्ताने के बाद मैंने आस पास नजर डालने के लिए कमरे की खिड़की खोली थी तो देशी भाषा में अलबला गये इतने सुंदर द्रश्य की कल्पना नहीं की थी 

मेरे कमरे से बाहर का नजारा 
मेरे  पीछे हिमालय और आगे कंचनजंगा की चोटियाँ थी |मैंने सोचा जरा नहा कर सफर की थकान उतारी जाए पर पानी इतना ठंडा था कि हिम्मत जवाब सी देती दिखी लेकिन मैंने हथियार नहीं डाले और नहाया वो बात अलग है कि उस ठन्डे पानी से नहीं बल्कि गीजर के गर्म पानी से अब शाम गहरा रही थी और मैं पीलिंग की सड़कों पर था |मौसम का आलम यह था कि मुझे कोट डालना पड़ा सड़कें लोगों से भरी थी कुछ विदेशी भी थे पर शोर नाम की कोई चीज नहीं सब कुछ शांत मोटे तौर पर अगर लोगों को बदल दिया जाए तो मुझे एकबारगी लगा मैं यूरोप की किसी गली में घूम रहा था |

एक स्थानीय निवासी से बात करने पर पता चला यहाँ कुछ भी नहीं है बस मौसम के कारण सैलानी आते हैं तो आपको सिर्फ होटल ही मिलेंगे पर पीलिंग की वो शाम आज भी मेरे जेहन में जीवंत है पहाड़ जब धीरे धीरे हरे से काले होते जा रहे थे सड़कों पर गाड़ियों की हेडलाईट चमक रही थीं और मैं जून के महीने में कोट डाले हुए देश के एक ऐसे हिस्से में जहाँ मैं अजनबी था यूँ ही भटक रहा था |भटक ही तो रहा हूँ और शायद तभी भटकते हुए पीलिंग आ पहुंचा |मै सडक की रौशनी से दूर जाकर उन काले पहाड़ों को देख रहा था जो न जाने क्या क्या अपने अंदर समेटे हुए हैं |उस रात मैंने आईपोड को स्पीकर मोड में डाला और अपने कान के पास रखकर सोया शायद  सत्तर के दशक के उन मधुर गानों की स्वर लहरी में हिमालय और कंचनजंघा 
के वो पहाड़ भी सोये होंगे जो सदियों से जग रहे हैं
भारतीय रेल के अप्रैल 2021 के अंक में प्रकशित 

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