Friday, August 18, 2023

पाइरेसी के विरूद्ध पहल

 

फिल्म 'गदर 2ऑनलाइन लीक हो गई है |फिल्म का एचडी प्रिंट टोरेंट साइट्स पर रिलीज कर दिया गया हैयह फिल्म तमिल रोकर्स , टेलीग्राम  , फिल्मज़िला  और मूवीरुल्ज  जैसी पाइरेसी वेबसाइट्स पर डाल दी गई है|सारी दुनिया में पाइरेसी एक बड़ी समस्या है और इंटरनेट ने इस समस्या को और भी जटिल बना दिया हैसोफ्टवेयर पाइरेसी से शुरू हुआ यह सफर फिल्मसंगीत धारावाहिकों तक पहुँच गया है |मोटे तौर पर पाइरेसी से तात्पर्य किसी भी सोफ्टवेयर ,संगीत,चित्र और फिल्म  आदि के पुनरुत्पाद से हैजिमसें मौलिक रूप से इनको बनाने वाले को कोई आर्थिक लाभ नहीं होता और पाइरेसी से पैदा हुई आय इस गैर कानूनी काम में शामिल लोगों में बंट जाती है |इंटरनेट से पहले यह काम ज्यादा श्रम साध्य था और इसकी गति धीमी थीपर इंटरनेट ने उपरोक्त के वितरण में बहुत तेजी ला दी हैजिससे मुनाफा बढ़ा है |भारत जैसे देश में जहाँ इंटरनेट बहुत तेजी से फ़ैल रहा हैऑनलाईन पाइरेसी का कारोबार भी अपना रूप बदल रहा है |पहले इंटरनेट स्पीड कम होने की वजह से ज्यादातर पाइरेसी टोरेंट से होती थी पर अब भारत समेत सारी दुनिया में पाइरेसी का चरित्र बदल रहा है क्योंकि अब हाई स्पीड इंटरनेट स्मार्टफोन के जरिये हर हाथ में पहुँच रहा हैतो लोग पाइरेटेड कंटेंट को सेव करने की बजाय सीधे इंटरनेट स्ट्रीमिंग सुविधा से देख रहे हैं |ऑनलाइन पाइरेसी में मूलतः दो चीजें शामिल हैं पहला सॉफ्टवेयर दूसरा ऑडियो -वीडियो कंटेंट जिनमें फ़िल्में ,गीत संगीत शामिल हैं |सॉफ्टवेयर की लोगों को रोज –रोज जरुरत होती नहीं वैसे भी मोटे तौर पर काम के कंप्यूटर सोफ्टवेयर आज ऑनलाईन मुफ्त में उपलब्ध हैं या फिर काफी सस्ते हैं पर आज की भागती दौडती जिन्दगी में जब सारा मनोरंजन फोन की स्क्रीन में सिमट आया है और इन कामों के लिए कुछ वेबसाईट वो सारे कंटेंट उपभोक्ताओं को मुफ्त में उपलब्ध कराती हैं और अपनी वेबसाईट पर आने वाले ट्रैफिक से विज्ञापनों से कमाई करती हैं पर जो कंटेंट वे उपभोक्ताओं को उपलब्ध करा रही होती हैं वे उनके बनाये कंटेंट नहीं होते हैं और उस कंटेंट से वेबसाईट जो लाभ कमा रही होती हैं उसका हिस्सा भी मूल कंटेंट निर्माताओं तक नहीं जाता है |ऑडियो –वीडियो कंटेंट को मुफ्त में पाने के लिए लाईव स्ट्रीमिंग का सहारा लिया जा रहा है क्योंकि इंटरनेट की गति बढ़ी है और उपभोक्ता को बार –बार कंटेंट बफर नहीं करना पड़ता यानि अभी सेव करो और बाद में देखो वाला वक्त जा रहा है |यू ट्यूब जैसी वीडियो वेबसाईट जो कॉपी राईट जैसे मुद्दों के प्रति जरुरत से ज्यादा संवेदनशील हैपाइरेटेड वीडियो को तुरंत अपनी साईट से हटा देती है पर इंटरनेट के इस विशाल समुद्र में ऐसी लाखों वेबसाईट हैं जो पाइरेटेड आडियो वीडियो कंटेंट उपभोक्ताओं को उपलब्ध करा रही हैं |

मनोरंजन उद्योग में ऑनलाइन चोरी पर नज़र रखने वाली मुसोसाईट के अनुसार पाइरेसी के लिए जिस तकनीक का सबसे ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है उसमें स्ट्रीमिंग पहले नम्बर पर है |मुसो कॉपीराइट उल्लंघनों पर आंकडा  एकत्र करती  है |इंटरनेट पर ऐसी कई साईट्स  हैंजहां से पाइरेटेड कंटेंट  मिल जाती हैं. जेलर और पठान जैसी फ़िल्में भी लीक हुईं . दक्षिण में  में तमिल रॉकर्स जैसी पाइरेसी साइट्स ने तो कोहराम  मचा रखा है. इन्हें जैसे ही ब्लोक  किया जाता हैये यूआरएल बदलकर फिर से काम  करने लगती हैं. पाइरेसी फिल्म इंडस्ट्री की एक बड़ी समस्या है. पाइरेसी के कारण  फिल्म इंडस्ट्री को 20 हज़ार करोड़ का नुकसान हो रहा है. वैश्विक सलाहकार फर्म अंकुरा की एक रिपोर्ट के अनुसार2022 में टोरेंट साइटों के माध्यम से 7 बिलियन से अधिक विज़िट के साथ कंटेंट पायरेसी वेबसाइटों पर जाने के मामले में  भारत तीसरे स्थान पर है। भारत से आगे अमेरिका और रूस जैसे देश हैं |स्पाइडर-मैन: नो वे होम 2022 में भारत में सबसे अधिक पायरेटेड फिल्म थीजबकि गेम ऑफ थ्रोन्स सबसे अधिक पायरेटेड श्रृंखला थी। केजीएफ: चैप्टर 2 और आरआरआर सबसे अधिक पायरेटेड भारतीय फिल्में थीं। संगीतफिल्मोंसॉफ्टवेयर और किताबों की पाइरेसी में व्हाट्स एप और टेलीग्राम जैसे मेसेजिंग एप नें स्थिति को और गंभीर बना दिया है | जो टॉरेंट साइट्स या एग्रीगेटर ऐप्स के बारे में जानकारी प्रसारित करते हैं जहाँ पाइरेटेड सामाग्री उपलब्ध हैं |

रिपोर्ट के अनुसार पायरेसी वेबसाइटों पर आने वाले कुल ट्रैफ़िक में टीवी सामग्री का हिस्सा 46.6 प्रतिशत थाइसके बाद प्रकाशन सामग्री (किताबें) का योगदान 27.80 प्रतिशत  रहा । फिल्म पाइरेसी 12.40 प्रतिशत  तक पहुंच गई हैइसके बाद संगीत और सॉफ्टवेयर का स्थान आता हैजो क्रमशः 7 प्रतिशत  और 6.20 प्रतिशत है।भारत में वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पायरेसी के कारण कुल राजस्व का 25-30 प्रतिशत हिस्सा गँवा रहे हैं|सरकार ने इसके लिए सिनेमैटोग्राफ संशोधन बिल 2023 में कुछ नए प्रावधान जोड़े हैंइस विधेयक का उद्देश्य पायरेसीकी समस्या पर व्यापक रूप से अंकुश लगाना हैइस बिल के तहत फिल्म की पाइरेसी करने वालों को तीन महीने से लेकर तीन साल की जेल हो सकती है. साथ ही फिल्म  की निर्माण लागत  का पांच  प्रतिशत जुर्माना भी भरना होगा. फिल्म को गैरकानूनी तरीके से दिखाना या फिर इसकी गैर कानूनी रिकॉर्डिंग भी अपराध की श्रेणी में आएगी. निजी इस्तेमालकरेंट अफेयर्सरिपोर्टिंग और फिल्म क्रिटिसिज्म के लिए कॉपीराइट कंटेंट इस्तेमाल किया जा सकेगा. सिनेमैटोग्राफ अधिनियम1952 में अंतिम महत्वपूर्ण संशोधन वर्ष 1984 में किया गया था। भले ही नई प्रौद्योगिकी प्लेटफार्मों पर पाइरेसी  व्यापक हो गई हैकई कानून आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं हैं। कॉपीराइट अधिनियम, 1957 जैसे मौजूदा कानूनों  में कई समस्याएं  हैं और वे पर्याप्त कठोर नहीं हैंजिससे अपराधियों को दण्डित करना मुश्किल  हो जाता है। राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) नीति 2016 सहित नए कानूनों का पालन  और साइबर डिजिटल अपराध इकाइयों की स्थापना अभी भी प्रारंभिक चरण में है। पर्याप्त कानूनों के अभाव मेंअदालतें पाइरेसी के मामले में कुछ ख़ास नहीं कर पाती हैं तकनीक के तौर पर इंटरनेट की जटिलता को देखते हुए ये सिनेमैटोग्राफ संशोधन बिल 2023 पाइरेसी की समस्या को कितना कम कर पायेगा इसका फैसला अभी होना है |

अमर उजाला में 18/08/2023 को प्रकाशित 

 

Wednesday, August 9, 2023

विज्ञापन कर रहे सोशल इन्फ़्ल्युएन्सर


 बात ज्यादा पुरानी नहीं है .आज से पांच साल पहले किसी ने नहीं सोचा था कि एक ऐसा वक्त भी आएगा जब आप कुछ न करते हुए भी बहुत कुछ करेंगे और पैसे भी कमाएंगे .बात चाहे यात्राओं की हो या खान –पान की या फिर फैशन की देश विदेश की बड़ी कम्पनिया ऐसे लोगों को जो इंटरनेट पर ज्यादा फोलोवर रखते हैं अपने प्रोडक्ट के विज्ञापन के लिए पैसे दे रही हैं और उनके खर्चे भी उठा रही हैं . सोशल मीडिया प्लेटफोर्म नित नए रूप बदल रहे हैं उसमें नए –नए फीचर्स जोड़े जा रहे हैं .इस सारी कवायद का मतलब ऑडिएंस को ज्यादा से ज्यादा वक्त तक अपने प्लेटफोर्म से जोड़े रखना .इसका बड़ा कारण इंटरनेट द्वारा पैदा हो रही आय भी है .

मूल्यांकन सलाहकार फर्म (Valuation Advisory firm  Kroll) क्रोल  की एक नवीन रिपोर्ट के अनुसार एक साल में भारतीय ब्रांड्स ने अपनी इन्फ़्लुएन्सर मार्केटिंग पर खर्च दोगुना कर दिया .पिछले एक साल में एक तिहाई भारतीय ब्रांड्स ने सोशल मीडिया इन्फ़्लुएन्सेर्स पर अपना खर्च दो गुना कर दिया है . भारत में सोशल मीडिया की कंटेंट क्रियेटर इंडस्ट्री पच्चीस प्रतिशत की रफ़्तार से बढ़ रही है.आज भारत में लगभग 80 मिलियन कॉन्टेंट क्रिएटर हैंजिनमें वीडियो स्ट्रीमर्स,   इन्फ़्लुएन्सेर्स    और ब्लॉगर्स शामिल हैं। डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी आई क्यूब्स वायर के  एक शोध से पता चलता है कि लगभग 35 प्रतिशत  ग्राहकों के खरीदारी निर्णय सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर पोस्टरील्स और वीडियो देखकर लिए जा रहे हैं . affable.ai नामक एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता-संचालित इंफ्लुएंसर मार्केटिंग प्लेटफोर्म के आंकड़ों के अनुसार नैनो- इंफ्लुएंसरजिनके पास 10,000 से कम फॉलोअर हैंने 2022 में इंस्टाग्राम पर सबसे अधिक इंगेजमेंट अर्जित की है .जबकि माइक्रो इंफ्लुएंसर जिनके दस हजार से पचास हजार के बीच फॉलोअर ने इन्स्टाग्राम और यू ट्यूब पर ज्यादा दर्शक मिले पर उनकी इंगेजमेंट दर कम थी .

 देश  में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरव्यक्ति और ब्रांड प्रमोशन का बड़ा औजार  बनकर सामने आया है .  सोशल मीडिया विज्ञापन का एक अपरंपरागत माध्यम  है . जो बाकी सारे मीडिया (प्रिंटइलेक्ट्रॉनिक और समानांतर मीडिया) से अलग है .यह एक वर्चुअल वर्ल्ड बनाता है जिसे उपयोग करने वाला व्यक्ति सोशल मीडिया के किसी प्लेटफॉर्म (फेसबुकट्विटरइंस्टाग्राम) आदि का इंटरनेट के माध्यम से  उपयोग कर किसी भी नेट कनेक्टेड व्यक्ति तक पहुंच बना सकता है .

सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर वह आम व्यक्ति होता है जिसकी विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर काफी सारे फोलोवर होते हैं और वह अपनी इस लोकप्रियता का इस्तेमाल  विभिन्न तरह के उत्पाद बेचने में करता है . इसमें रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट दूसरे विज्ञापन  माध्यमों के मुक़ाबले अधिक हैसोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर जहाँ विज्ञापनों की दुनिया में एक नया आयाम गढ़ रहा है वहीं विज्ञापनों की दुनिया में सेलिब्रेटी स्टेट्स को खत्म भी कर रहा है .जहाँ हमारे आपके बीच के लोग ही स्टार बन रहे है .

भारत में चूँकि अभी इंटरनेट बाजार में पर्याप्त संभावनाएं हैं इसलिए अभी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर का यह दौर चलेगा पर कुछ चिंताएं भी है भारत के इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग उद्योग को विनियमन की आवश्यकता है ताकि तथ्यों के गलत प्रस्तुतीकरण  से बचा जा सके। जनवरी मेंभारत के उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने घोषणा की कि ऐसे में ये गाइडलाइंस ग्राहक हितों की रक्षा के लिए जरूरी हैंसोशल मीडिया पर ऐड्स करने वाले सेलेब्रिटीज़ भी इसके दायरे में होंगेकिसी भी भ्रामक विज्ञापन व  इन्हें नहीं मानने पर इंफ्लूएंसर्स को 10 लाख तक का जुर्माना देना होगालगातार अवमानना पर 50 लाख तक जुर्माना देना होगासाथ ही एंडोर्स करने वाले को 2 से 6 महीने तक किसी भी एंडोर्समेंट करने  से रोका जा सकता हैउस प्लेटफॉर्म को ब्लॉक करने की कार्रवाई भी सम्भव है.

प्रभात खबर में 09/08/2023 को प्रकाशित 

 


Friday, August 4, 2023

एआइ से सभी तक पहुंच संभव

 आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) लगभग हर क्षेत्र में क्रांति ला रहा है और हेल्थकेयर डिजिटलाइजेशन कोई अपवाद नहीं है। स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में एआई एक व्यापक शब्द है |जो जटिल चिकित्सा डेटा का विश्लेषणसमझने और प्रस्तुत करने के लिए मानव अनुभूति की नकल करने के लिए मशीन लर्निंग एल्गोरिदम के उपयोग का इस्तेमाल  करता है।देश में अस्पताल और स्वास्थ्य सेवा संस्थाएं भी बदल रही है जिसको गति कोरोना काल में और तेजी मिली  | अब ई कन्सलटेशन (आभासी परामर्श ) वास्तविकता है  जो ऑडियो और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग टूल के माध्यम से किया जा रहा है सरकार की टेलीमेडिसिन प्रेक्टीस गाईड लाईन्स  देश के सुदूर इलाकों में चिकित्सकों को इंटरनेट के माध्यम से अपनी सेवाएँ देने को विधिक स्वरुप प्रदान करती है |चिकित्सा का यह तरीका न केवल संकट के इस समय बल्कि भविष्य में भी लोगों को फायदा पहुंचाएगा |  डॉक्टर तथा मरीज इन-पर्सन विजिट के बजाय वस्तुतः डिजिटल प्लेटफॉर्म से जुड़ सकेंगे |जिससे अस्पतालों  में अनावश्यक भीड़ को कम किया जा सकेगा और गंभीर रोगों के इलाज के लिए रोगी अस्पताल पहुंचेंगे | गूगल के हेल्थ प्रोग्राम से जुड़े वैज्ञानिकों की एक टीम ने आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस यानि AI को लेकर एक कमाल किया है। इस टीम ने AI प्रोग्राम के एक अंतर्गत एक ऐसा सॉफ्टवेयर बनाया हैजो मशीन लर्निंग की मदद से किसी भी इंसान के शरीर में मौजूद बीमारियों का पता लगाएगा। यही नहीं इन छिपी हुई बातों को पता लगाने के लिए किसी भारी भरकम टेस्ट या डायग्नोस्टिक मशीन की जरूरत नहीं होगी और न ही इसके लिए ब्लड सैंपल लेना पड़ेगा। जनाब इसके लिए गूगल का खास सॉफ्टवेयर स्मार्टफोन या दूसरी कैमरा डिवाइस के द्वारा लोगों की आंखें स्कैन करेगा। इसके बाद रेटीना स्कैन के डेटा को प्रोसेस करके गूगल का सॉफ्टवेयर उस व्यक्ति की उम्रब्लड प्रेशर के अलावा यह भी बता देगा कि वो स्मोकिंग करता है या नहीं।

 इन सब बातों को चेक करके गूगल का प्रोग्राम बता देगा कि उस व्यक्ति को दिल की बीमारी या हार्ट अटैक का कितना खतरा है और कितने सालों बाद उसे ऐसी कोई बीमारी हो सकती है। डाटा एनालिसिस से डॉक्टर बेहतर फ़ैसले भी ले सकेंगे| धीरे-धीरे एक्स-रेसीटी स्कैनएमआरआई की ज़रूरत नहीं रहेगी. गलत निदान स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में एक बड़ा मुद्दा है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार , अमेरिका में हर साल लगभग 12 मिलियन लोगों का गलत निदान किया जाता हैऔर उनमें से 44प्रतिशत कैंसर रोगी होते हैं। एआई डायग्नोस्टिक सटीकता और दक्षता में सुधार करके इस मुद्दे को दूर करने में मदद कर रहा है।भारत में भी स्थिति कुछ अलग नहीं है |छोटे शहरों और कस्बों में जगह जगह निजी डायग्नोस्टिक सेंटर और हॉस्पिटल की भरमार है पर उनके द्वारा देखे जा रहे मरीजों द्वारा पैदा किया जा रहा आंकडा शोध के काम में नहीं आ पा रहा है और न ही इन सेंटरों पर किया जा रहा इलाज कितना सटीक है |इसके आंकलन की कोई केंद्रीयकृत व्यवस्था है | स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग बढ़ने के अनुपात में  चिकित्सकों की आपूर्ति सीमित रहती है|ऐसे में  रोगी की लगातार देखभाल को बनाए रखना कठिन हो जाता है।चिकित्सा क्षेत्र में ज्यादा जोर रोग ठीक करने में है न कि ऐसी परिस्थिती का निर्माण हो जिसमें रोग हों ही न

एआई के साथ सक्षम कंप्यूटर विजन जैसे डिजिटल चिकित्सा समाधान, चिकित्सा इमेजिंग का सटीक विश्लेषण प्रदान करते हैंजिसमें रोगी की रिपोर्टसीटी स्कैनएमआरआई रिपोर्टएक्स-रेमैमोग्राम आदि शामिल हैंजो मानव आंखों को दिखाई नहीं देने वाले डेटा को निकालने में सक्षम  हैं।अधिकांश चिकित्सा डेटा का विश्लेषण करने में एआई रेडियोलॉजिस्ट की तुलना में तेज़ और सटीक हो सकता हैयह अभी भी रेडियोलॉजिस्ट को पूरी तरह से बदलने के लिए पर्याप्त परिपक्व नहीं है। इसलिएमेसचुटेस इंस्टिट्यट ऑफ़ टेक्नोलॉजी  ने हाइब्रिड दृष्टिकोण के आधार पर एक मशीन लर्निंग सिस्टम बनाया है जो मेडिकल रिपोर्ट का विश्लेषण करके विभिन्न प्रकार के कैंसर का निदान कर सकता है या कार्य को विशेषज्ञ रेडियोलॉजिस्ट को संदर्भित कर सकता है।

एआई के माध्यम से रोगी के साथ संचार को स्वचालित करने से अपॉइंटमेंट प्रबंधनरिमाइंडरभुगतान संबंधी समस्याएं जैसे थकाऊ कार्य समाप्त हो सकते हैं। इन कार्यों से बचाए गए समय को रोगियों की देखभाल में लगाया जा सकता हैजो स्वास्थ्य पेशेवरों का मुख्य उद्देश्य है।एआई डेटा का त्वरित विश्लेषण भी कर सकता हैरिपोर्ट प्राप्त कर सकता है और रोगियों को संबंधित डॉक्टरों के पास भेज सकता है। एआई सर्जरी को सुरक्षित और स्मार्ट बना रहा है। रोबोटिक-असिस्टेड सर्जरी सर्जनों को जटिल सर्जिकल प्रक्रियाओं में उच्च परिशुद्धतासुरक्षालचीलापन और नियंत्रण प्राप्त करने में सक्षम बनाती है।यह रिमोट सर्जरी को भी सक्षम बनाता हैजिसे दुनिया में कहीं से भी उन क्षेत्रों में किया जा सकता है जहां सर्जन उपलब्ध नहीं हैं। यह वैश्विक महामारी के दौरान भी लागू होता है जब सामाजिक दूरी आवश्यक है। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल द्वारा प्रकाशित शोध ने पारंपरिक और रोबोट-समर्थित प्रोस्टेट कैंसर सर्जरी के बीच अंतर की तुलना की। अध्ययन में पाया गया कि रोबोट-सहायता प्राप्त रोगियों में प्रक्रिया के बाद अस्पताल में कम समय तक रहना पड़ा और उन्हें सर्जरी के बाद दर्द भी कम हुआ |भारत इंटरनेट के प्रयोगकर्ताओं के हिसाब से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है | आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल और इंटरनेट की पहुंच स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती है |  

भारत जैसे गरीब देशों में मेडिकल सुविधाओं की पहुंच बढ़ाने में आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस अहम टूल साबित हो सकता है | आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस को सभी जगहों तक पहुंचाने के लिए हेल्थ रिकॉर्ड को डिजिटाइज करना पहला अहम कदम है |  वर्तमान स्थिति,सरकार का संरक्षण और विभिन्न स्टार्टअप्स की शुरुआत   भारत को आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस को अपनाने के लिए आवश्यक गति  प्रदान कर सकता है। देश में आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि लोग स्वास्थ्य सेवाओं में तकनीक का इस्तेमाल कितनी जल्दी अपने व्यवहार में ले आयेंगे और क्या तकनीक उन्हें वो भरोसा दे सकती है जितना की इंसान |

 दैनिक जागरण  के राष्ट्रीय संस्करण  में 04/08/2023 को प्रकाशित 

पसंद आया हो तो