Thursday, September 27, 2018

पारदर्शिता को बढ़ावा देती तकनीक

सुप्रीम कोर्ट ने आधार की अनिवार्यता पर फैसला सुनाते हुए आधार की संवैधानिकता को  कुछ बदलावों के साथ बरकरार रखा है .आधार कार्ड आम आदमी की पहचान बन चुका है .सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि आधार की वजह से निजता हनन के कोई मामले  नहीं मिले हैं. यूजीसीसीबीएसई और निफ्ट जैसी संस्थाओं के अलावा स्कूल भी अब आधार नहीं मांग सकते  हैं. अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि अब  मोबाइल और निजी कंपनी आधार नंबर नहीं मांग सकती और  आधार को मोबाइल से लिंक करने का फैसला भी रद्द कर दिया . आधार को बैंक खाते से लिंक करने की अनिवार्यता  को भी रद्द कर दिया पर पैन कार्ड से आधार लिंक रहेगा . सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सरकार के लिए एक बड़ा झटका है |  आधार अब अनिवार्य जरूरत नहीं है। हालांकिइसका इस्तेमाल सरकारी योजनाओं का लाभ पाने में किया जा सकता है पर आधार का न होना सरकारी योजनाओं के लाभ पाने में कोई बाधा नहीं बनेगा.
 पर तस्वीर का दूसरा रुख यह भी है कि आज का दौर आंकड़ों का दौर है . यूं तो आंकड़े महज कुछ गिनतियां हैं पर आंकड़े विकास में निवेश  के प्राथमिक आधार  हैं. बदलते समय के साथ ही आंकड़ों के भी विशेषीकरण पर जोर दिया गया और २०१० में आधार कार्ड योजना की शुरुआत हुई. वो आंकड़े ही हैं  जो सूचनाओं से ज्यादा पुष्ट हैं और इसीलिये जीवन के हर क्षेत्र में इनका महत्त्व बढ़ता जा रहा है .सरकारी योजनाओं में आधार कार्ड की अनिवार्यता ने इस तथ्य को पुष्ट किया था कि सरकार  यह सुनिश्चित करना चाहती है कि योजनाओं का लाभ सही व्यक्ति को मिले . समय बदला और तकनीक भी .भारत इस वक्त चीन के बाद दूसरे नम्बर का स्मार्ट फोन धारक देश है और इंटरनेट का इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है जिसने सरकारी प्रशासन में पारदर्शिता को बढ़ावा दिया और  आंकड़ों की उपलब्धता की दिशा में सरकारों ने भी काफी काम किया जिसमें आधार कार्ड भी एक ऐसी ही योजना थी जिसमें देश के सभी नागरिकों एक विशेष नम्बर प्रदान उनके बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करने के बाद जिसमें नागरिक का बायोमीट्रिक डाटा भी शामिल है ,दे दिया जाता है और एक नम्बर के दो नागरिक नहीं हो सकते हैं . इस तरह देश के सभी नागरिकों का आंकड़ा संग्रहण कर लिया गया . डिजीटल आंकड़ों की संप्रभुता को लेकर तमाम तरह की  आशंकाएं भारत में अभी भी  हैं.उल्लेखनीय  कि पूरी दुनिया में प्रोसेस हो रहे आउटसोर्स डाटा का सबसे बड़ा होस्ट भारत है . प्रारम्भ से ही इस योजना पर आलोचकों ने प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कहा था  कि ये सिर्फ  समय और धन की बर्बादी है. इसके बाद भी योजना आगे बढ़ीआलोचकों के प्रश्नों को दरकिनार नहीं किया जा सकता आम लोगों तक इस योजना की वास्तविक उपयोगिता नहीं पहुँची है इसे लोगों के निजता पर हमले के रूप में भी देखा जा रहा है .एकत्र किये गए आंकड़े की सुरक्षा भी बड़ा मुद्दा है.एक अन्य समस्या बायोमेट्रिक पहचान को लेकर भी है .जिसमें आँखों की पुतलियों और हाथ की उँगलियों के निशान  को किसी व्यक्ति की पहचान सुनिश्चित  करने में इस्तेमाल होता है .समस्या तब खडी होती है जब किसी व्यक्ति के ये दोनों अंग इस
स्थिति में न हो जिससे उनका डाटा मशीन में ले लिया जाए  तब ऐसे व्यक्तियों की पहचान कैसे निर्धारित की जाए . 2011 में 514,000 परिवारों पर भारतीय नेशनल काउंसिल फोर अप्लाइड इकॉनॉमिक रिसर्च (व्यावहारिक आर्थिक अनुसंधा राष्ट्रीय परिषद) द्वारा किया यह सर्वेक्षणयूआईडी के सामाजिक-आर्थिक प्रभावएक व्यापक बहु-वर्षीय अध्ययन का हिस्सा था . इस कार्यक्रम के तहत नामांकित छप्पन प्रतिशत  से ज्यादा लोगों के पास आधार कार्ड बनने से पहले किसी तरह का कोई वैध पहचान पत्र  जैसे  पासपोर्टड्राईविंग लाइसेंस या स्थायी लेखा संख्या कार्ड(पैन) नहीं था.इनमें से सत्तासी  प्रतिशत  परिवारों की आय दो हजार डॉलर प्रति वर्ष से कम थी .यह आंकड़े इस बात की पुष्टि करते है कि भारत में निम्न आय वर्ग के लोगों के पास बेहतर पहचान दस्तावेज नहीं होते.जगह बदलने पर ऐसे लोगों को विभिन्न सरकारी योजनाओं का फायदा सिर्फ वैध पहचान पत्र न होने से नहीं मिल पाता.आधार कार्ड योजना से इस बात पर भी बल मिलता है कि भारत में बढते डिजीटल डिवाईड को आंकड़ों को डिजीटल करके और उसी अनुसार नीतियां बना कर पाटा जा सकता है तकनीक सिर्फ साधन संपन्न लोगों का जीवन स्तर नहीं बेहतर कर रही है. सही मायने में अगर हम देखे तो आजाद भारत के इतिहास में पहली बार किसी सरकार के पास अपने नागरिकों के व्यवस्थित बायोमेट्रिक आंकड़े उपलब्ध हैं |आंकड़े का मतलब सटीकता और इसी बात को ध्यान में रखते हुए धीरे धीरे ही सही सरकार ने  मोबाईल,बैंक खाते,बीमा पॉलिसी ,जमीन की रजिस्ट्री से लेकर आयकर सभी को आधार से जोड़ने का काम शुरू किया सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद हालाँकि सरकार को एक झटका जरुर लगा है पर एक अरब पच्चीस करोड़ की जनसँख्या  वाले  देश में केवल 6.5 करोड़ लोगों के पास पासपोर्ट और लगभग बीस  करोड़ लोगों के पास ड्राइविंग लाइसेंस है  ऐसे में आधार उन करोड़ों लोग के लिए उम्मीद  लेकर आया है जो सालों से एक पहचान कार्ड चाहते थेभ्रष्टाचार एक सच है और इसे सिर्फ कानून बना के नहीं रोका जा सकता  बल्कि तकनीक के इस्तेमाल और पारदर्शिता को बढ़ावा देकर समाप्त किया जा सकता है |देश में सौ  करोड़ से ज्यादा लोगों के पास आधार है।भारत में 73.96 करोड़ (93 प्रतिशत) वयस्कों के पास और 5-18 वर्ष के 22.25करोड़ (67 प्रतिशत) बच्चों के पास और वर्ष से कम आयु के 2.30 करोड़ (20 प्रतिशत) बच्चों के पास आधार है तो देश में पिछले एक साल पहचान का सबसे बड़ा स्रोत आधार कार्ड बन कर उभरा है |भारत जैसे विविधता वाले देश में यदि लोगों का जीवन स्तर बेहतर करके देश की मुख्यधारा में लाने के लिए यह जरुरी है कि सरकार के पास सटीक सूचनाएं हों जिससे वह सरकारी नीतियों का वास्तविक आंकलन कर उन योजनाओं को और जनोन्मुखी बना सके |
दैनिक जागरण /आईनेक्स्ट में 27/09/2018 को प्रकाशित लेख 

Monday, September 24, 2018

फेक न्यूज की पहचान आसान

ये दुनिया का एक स्मार्ट दौर है जहाँ फोन से लेकर टीवी, फ्रिज तक सभी स्मार्ट होते जा रहे हैं |विरोधाभास यह है कि इस स्मार्ट युग में जहाँ हमने अपना दिमाग इस्तेमाल  करने का काम भी इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों को सौंप दिया है| उसी स्मार्ट समय में हम सबसे ज्यादा फेक न्यूज का शिकार हो रहे हैं |ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने ‘पोस्ट ट्रुथ’ शब्द को वर्ष 2016 का ‘वर्ड ऑफ द इयर’घोषित किया था । उपरोक्त शब्द को एक विशेषण के तौर पर परिभाषित किया गया है, जहां निजी मान्यताओं और भावनाओं के बजाय जनमत निर्माण में निष्पक्ष तथ्यों को कम महत्व दिया जाता है।यहीं से शुरू होता है फेक न्यूज का सिलसिला| बात ज्यादा पुरानी नहीं है लैंडलाइन फोन के युग में जब पूरा देश गणेश जी को दूध पिलाने निकल पड़ा था पर पिछले एक दशक में हुई सूचना क्रांति ने अफवाहों को तस्वीरें और वीडियों के माध्यम से ऐसी गति दे दी है जिसकी कल्पना करना मुश्किल है |

वैसे भी  सरकारों ने हमेशा से ही काल्पनिक तथ्यों के जरिए प्रोपेगंडा को बढ़ावा दिया है। पर  सोशल मीडिया के तेज प्रसार और इसके आर्थिक पक्ष  ने झूठ को तथ्य बना कर परोसने की कला को नए स्तर पर पहुंचाया है और इस असत्य ज्ञान के स्रोत के रूप में फेसबुक और व्हाट्स एप नए ज्ञान के केंद्र के रूप में उभरे हैं | कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक शोध में सामने आया है कि लोगों को यदि गलत सूचनायें दी जाएं तो वैकल्पिक तथ्यों से ज्यादा उन पर थोपे गए तथ्यों पर विश्वास करते हैं। भारत फेक न्यूज की इस विकराल  समस्या का सामना इन दिनों कर रहा है | फेक न्यूज आज के समय का सच है |भारत जैसे देश में जहाँ लोग प्राप्त सूचनाओं का आंकलन अर्जित ज्ञान की बजाय जन श्रुतियों ,मान्यताओं और परम्पराओं के आधार पर करते हैं वहां भूतों से मुलाक़ात पर बना कोई भी यूट्यूब चैनल रातों रात हजारों सब्सक्राईबर जुटा लेगा |वीडियो भले ही झूठे हों पर उसे हिट्स मिलेंगे तो उसे बनाने वाले को आर्थिक रूप से फायदा भी मिलेगा |किसी विकसित देश के मुकाबले भारत में झूठ का कारोबार तेजी से गति भी पकड़ेगा और आर्थिक फायदा भी पहुंचाएगा | फेक न्यूज के चक्र को समझने से पहले मिस इन्फोर्मेशन और डिसइन्फोर्मेशन में अंतर समझना जरुरी है |मिस इन्फोर्मेशन का मतलब ऐसी सूचना जो असत्य है पर जो इसे फैला रहा है वह यह मानता है कि यह सूचना सही है |वहीं डिस इन्फोर्मेशन का मतलब ऐसी सूचना से है जो असत्य है और इसे फैलाने वाला भी यह जानता है कि अमुक सूचना गलत है फिर भी वह फैला रहा है |देश में  दोनों तरह की सूचनाओं के फैलने की उर्वर जमीन मौजूद है |एक तरफ वो भोले भाले लोग जो इंटरनेट के प्रथम उपभोक्ता बने हैं और वहां जो भी सामाग्री मिल रही है वे उसकी सत्यता जाने समझे उसे आगे बढ़ा देते हैं |दूसरी तरफ विभिन्न राजनैतिक दलों के  साइबर  सेल के समझदार लोग उन झूठी सूचनाओं को यह जानते  बूझते हुए भी कि वे गलत या संदर्भ से कटी हुई हैं |इस मकसद से फैलाते हैं जिससे अपने पक्ष में लोगों को संगठित कर अपने संख्या बल को बढ़ाया जा सके | इन सबके पीछे कुछ खास मकसद होता है। जैसे हिट्स पाना, किसी का मजाक उड़ाना, किसी व्यक्ति या संस्था पर कीचड़ उछालना, साझेदारी, लाभ कमाना, राजनीतिक फायदा उठाना, या दुष्प्रचार। फेक न्यूज ज्यादातर भ्रमित करने वाली सूचनाएं होती हैं या बनाई  हुई सामग्री |अक्सर झूठे संदर्भ या गलत सम्बन्धों को आधार बना कर ऐसी सूचनाएं फैलाई जाती हैं | इंटरनेट ऐंड मोबाइल असोसिएशन ऑफ इंडिया और कंटार-आईएमआरबी की रिपोर्ट के अनुसार बीते जून तक देश में इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं की संख्या पांच करोड़ हो चुकी थी, जबकि दिसंबर 2017 में इनकी संख्या 4.8 करोड़ थी। इस तरह छह महीने में 11.34 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इंटरनेट उपभोक्ताओं में इतनी वृद्धि साफ इशारा करती है कि इंटरनेट के ये प्रथम उपभोक्ता सूचनाओं के लिए सोशल मीडिया, वॉट्सऐप और फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर निर्भर हैं। समस्या यहीं से शुरू होती है। भारत में लगभग बीस करोड़ लोग वॉट्सऐप का प्रयोग करते हैं जिसमें कई संदेश, फोटो और विडियो फेक होते हैं। पर जागरूकता के अभाव में देखते ही देखते ये वायरल हो जाते हैं। एंड टु एंड एनक्रिप्शन के कारण वॉट्सऐप पर कोई तस्वीर सबसे पहले किसने डाली, यह पता करना लगभग असंभव है। उम्र के लिहाज से देखा जाए तो इन्टरनेट अब प्रौढ़ हो चला है पर भारतीय परिवेश के लिहाज से इन्टरनेट एक युवा माध्यम है जिसे यहाँ आये अभी बाईस  साल ही हुए हैं | इसी परिप्रेक्ष्य में अगर सोशल नेटवर्किंग को जोड़ दिया जाए तो ये तो अभी बाल्यवस्था में ही है |इस समस्या से निपटने की पहली जिम्मेदारी पत्रकारों और पत्रकारिता के विद्यार्थियों की है|इंटरनेट ने खबर पाने के पुराने तरीके को बदल दिया जहाँ पत्रकार खुद किसी खबर की तह में जाकर सच्चाई पता करता था और तस्दीक कर लेने के बाद ही उसे पाठकों तक प्रेषित किया जाता था|आज इंटरनेट ने गति के कारण खबर पाने के  इस तरीके को बदल दिया है |इंटरनेट पर जो कुछ है वो सच ही हो ऐसा जरुरी नहीं इसलिए अपनी सामान्य समझ  का इस्तेमाल जरुरी है|पिछले दिनों देश के कई सम्मानित चैनलों ने मुम्बई में आये ओखी साइक्लोन पर मुम्बई पुणे एक्सप्रेस वे पर ओले गिरने का फर्जी वीडियो चला दिया |जबकि उस वीडियो में दिखने वाली गाड़ियाँ लेफ्ट हैण्ड ड्राइविंग थी जबकि भारत में राईट हैण्ड ड्राइविंग का इस्तेमाल होता है |इन गाडियों की नम्बर प्लेट के नम्बर भी भारतीय नहीं थे |यूट्यूब पर इन विभिन्न चैनलों के वीडियो अभी भी मौजूद हैं |खबर को जल्दी से जल्दी पाठकों और दर्शकों को पहुंचाने  की यह मनोवृत्ति फेक न्यूज के फैलने का भी एक बड़ा कारण बन रहे हैं और इसी प्रवृत्ति का  विस्तार  आम आदमी के व्हाट्स एप चैट बॉक्स कर रहे हैं जहाँ बगैर असली सच जाने विभिन्न व्हाट्स एप ग्रुपों में लगातार ऐसी असत्य या सन्दर्भ से कटी सूचनाएं फोटो या वीडियो के माध्यम से प्रेषित की जा रही हैं | फर्जी चित्रों को पहचानने में गूगलऔर यांडेक्स  ने रिवर्स इमेज सुविधा  शुरू की है जहाँ आप कोई भी फोटो अपलोड करके यह पता कर सकते हैं कि कोई फोटो इंटरनेट पर यदि है तो वह सबसे पहले कब अपलोड  की गयी है |एमनेस्टी इंटरनेशल ने वीडियो में छेड़ छाड़ और उसका अपलोड इतिहास पता करने  के लिए यूट्यूब के साथ मिलकर यू ट्यूब डाटा व्यूअर सेवा शुरू की है |अनुभव यह बताता है कि नब्बे प्रतिशत वीडियो सही होते हैं पर उन्हें गलत सन्दर्भ में पेश किया जाता है |किसी भी वीडियो की जांच करने  के लिए उसे ध्यान से बार –बार देखा जाना चाहिए | किसी भी वीडियो को समझने के लिए उसमें  कुछ ख़ास  चीजों की तलाश करनी चाहिए जिससे उसके सत्य या सत्य होने की पुष्टि की जा सके |जैसे वीडियो में  पोस्टर,बैनर ,गाड़ियों की नम्बर प्लेट फोन नंबर  की तलाश की जानी चाहिए जिससे गूगल द्वारा उन्हें खोज कर उनके क्षेत्र की पहचान की जा सके |किसी लैंडमार्क की तलाश की जाए ,वीडियो में दिख रहे लोगों ने किस तरह के कपडे पहने हैं वो किस भाषा या बोली में बात कर रहे हैं उसको देखा जाना चाहिए |सबसे जरुरी बात किसी भी  वीडियो और फोटो को देखने के बाद यह जरुर सोचें कि यह आपको किस मकसद से भेजा जा रहा है ,सिर्फ जागरूकता या जानकारी के लिए या फिर भड़काने के लिए |
दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में 24/09/2018

Saturday, September 22, 2018

गलत सूचनाओं से जंग की तैयारी

यह भी कैसी विडंबना है कि तकनीक ने एक तरफ हमारे जीवन को काफी आसान बनाया है, दूसरी तरफ कई स्तरों पर अराजकता भी पैदा कर दी है। आज सूचनाओं के संजाल में यह तय करना मुश्किल है कि क्या सही है क्या गलत। इससे हमारे समाज के सामने एक नई चुनौती पैदा हो गई है। गलत सूचनाओं को पहचानना और उनसे निपटना आज के दौर के लिए एक बड़ा सबक है। फेक न्यूज आज के समय का सच है। पिछले दिनों देश में घटी मॉब लिंचिंग की कई घटनाओं के पीछे इसी फेक न्यूज का हाथ रहा है। केरल में आई बाढ़ के वक्त कई समाचार चैनलों ने पानी से भरे एक विदेशी एयरपोर्ट के विडियो को कोच्चि एयरपोर्ट बता कर चला दिया। फेक न्यूज के चक्र को समझने के लिए मिसइनफॉर्मेशन और डिसइनफॉर्मेशन में अंतर समझना जरूरी है।
मिसइनफॉर्मेशन का मतलब ऐसी सूचनाओं से है जो असत्य हैं पर जो इसे फैला रहा है वह यह मानता है कि यह सूचना सही है। वहीं डिसइनफॉर्मेशन का मतलब ऐसी सूचना से है जो असत्य है और इसे फैलाने वाला भी यह जानता है कि अमुक सूचना गलत है, फिर भी वह फैला रहा है। भारत डिसइनफॉर्मेशन और मिसइनफॉर्मेशन के बीच फंसा हुआ है। जियो क्रांति के बाद सस्ते फोन और इंटरनेट ने उन करोड़ों भारतीयों के हाथ में सूचना तकनीक पहुंचा दी है जो ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं। वे इंटरनेट पर मिली हर चीज को सच मान बैठते हैं और उस मिसइनफॉर्मेशन के अभियान का हिस्सा बन जाते हैं। दूसरी ओर विभिन्न राजनीतिक पार्टियों की साइबर आर्मी और ट्रोलर्स कई सारी ऐसी डिसइनफॉर्मेशन को यह जानते हुए फैलाते है कि वे गलत हैं या संदर्भ से कटी हुई हैं। इन सबके पीछे कुछ खास मकसद होता है। जैसे हिट्स पाना, किसी का मजाक उड़ाना, किसी व्यक्ति या संस्था पर कीचड़ उछालना, साझेदारी, लाभ कमाना, राजनीतिक फायदा उठाना, या दुष्प्रचार।
फेक न्यूज ज्यादातर भ्रमित करने वाली सूचनाएं होती हैं। अक्सर झूठे संदर्भ या गलत संबंधों को आधार बनाकर ऐसी सूचनाएं फैलाई जाती हैं। जून 2016 में देश 20 करोड़ जीबी डाटा इस्तेमाल कर रहा था। यह आंकड़ा मार्च 2017 में बढ़कर 130 करोड़ जीबी हो गया जो लगातार बढ़ रहा है। इंटरनेट ऐंड मोबाइल असोसिएशन ऑफ इंडिया और कंटार-आईएमआरबी की रिपोर्ट के अनुसार बीते जून तक देश में इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं की संख्या पांच करोड़ हो चुकी थी, जबकि दिसंबर 2017 में इनकी संख्या 4.8 करोड़ थी। इस तरह छह महीने में 11.34 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इंटरनेट उपभोक्ताओं में इतनी वृद्धि साफ इशारा करती है कि इंटरनेट के ये प्रथम उपभोक्ता सूचनाओं के लिए सोशल मीडिया, वॉट्सऐप और फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर निर्भर हैं। समस्या यहीं से शुरू होती है। भारत में लगभग बीस करोड़ लोग वॉट्सऐप का प्रयोग करते हैं जिसमें कई संदेश, फोटो और विडियो फेक होते हैं। पर जागरूकता के अभाव में देखते ही देखते ये वायरल हो जाते हैं। एंड टु एंड एनक्रिप्शन के कारण वॉट्सऐप पर कोई तस्वीर सबसे पहले किसने डाली, यह पता करना लगभग असंभव है।
अपनी इसी खूबी के कारण वॉट्सऐप सारी दुनिया में लोकप्रियता हासिल कर रहा है क्योंकि इस चैटिंग ऐप के इस्तेमाल में कभी कोई विज्ञापन नहीं आता। इसके मालिक भी अगर चाहें तो किसी और के संदेश नहीं पढ़ सकते। वॉट्सऐप से शुरू फेक न्यूज का सिलसिला ट्विटर और फेसबुक पर आते ही गति पकड़ लेता है। फेक न्यूज को पकड़ने के लिए गूगल ने बूम लाइव, इंटर न्यूज और डाटालीड्स जैसी संस्थाओं के साथ मिलकर गूगल न्यूज इनिशटिव नामक कार्यक्रम शुरू किया है जो देश भर में अंग्रेजी समेत सात क्षेत्रीय भाषाओं के दो सौ पत्रकारों और पत्रकारिता के शिक्षकों को प्रशिक्षण दे रहा है। ये सभी लोग इस क्रम में अगले एक साल में देश के आठ हजार पत्रकारों और पत्रकारिता के विद्यार्थियों को फेक न्यूज पकड़ने का प्रशिक्षण देंगे। फर्जी चित्रों को पहचानने में गूगल ने गूगल इमेज सेवा शुरू की है, जहां आप कोई भी फोटो अपलोड करके यह पता कर सकते हैं कि कोई फोटो इंटरनेट पर यदि है, तो वह सबसे पहले कब अपलोड की गई है। एमनेस्टी इंटरनैशनल ने विडियो में छेड़छाड़ और उसका अपलोड इतिहास पता करने के लिए यूट्यूब के साथ मिलकर यू ट्यूब डेटा व्यूअर सेवा शुरू की है ।
अनुभव बताता है कि नब्बे प्रतिशत विडियो सही होते हैं पर उन्हें गलत संदर्भ में पेश किया जाता है। किसी भी विडियो की जांच करने के लिए उसे ध्यान से बार-बार देखा जाना चाहिए। यह काम क्रोम ब्राउजर में इनविड (InVID) एक्सटेंशन जोड़ कर किया जा सकता है। इनविड जहां किसी भी विडियो को फ्रेम दर फ्रेम देखने में मदद करता है वहीं इसमें विडियो के किसी भी दृश्य को मैग्निफाई (बड़ा) करके भी देखा जा सकता है। यह विडियो को देखने की बजाय उसे पढ़ने में मदद करता है। मतलब, किसी भी विडियो को पढ़ने के लिए किन चीजों की तलाश करनी चाहिए, ताकि उसके सही होने की पुष्टि की जा सके। जैसे विडियो में पोस्टर-बैनर, गाड़ियों की नंबर प्लेट और फोन नंबर की तलाश की जानी चाहिए, ताकि गूगल द्वारा उन्हें खोज कर उनके क्षेत्र की पहचान की जा सके। कोई लैंडमार्क खोजने की कोशिश की जाए। विडियो में दिख रहे लोग कैसे कपड़े पहने हुए हैं, वे किस भाषा या बोली में बात कर रहे हैं, उसको देखा जाना चाहिए। इंटरनेट पर ऐसे कई सॉफ्टवेयर मौजूद हैं जो विडियो और फोटो की सत्यता पता लगाने में मदद कर सकते हैं। फेक न्यूज से बचने का एकमात्र तरीका है, अपनी सामान्य समझ का इस्तेमाल और थोड़ी सी जागरूकता।
नवभारत टाईम्स में 22/09/2018 को प्रकाशित 

Saturday, September 8, 2018

साक्षरता पर तय करना है लम्बा सफ़र

दुनिया  से निरक्षरता को खत्म  करने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र के शैक्षणिक , वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने सत्रह नवंबर 1965 के दिन 8 सितम्बर को विश्व साक्षरता दिवस मनाने का निर्णय लिया था और तब से यह सिलसिला पूरी दुनिया में चल पडा जिसकी शुरुआत वर्ष 1966 में हुई |
अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस का मुख्य उद्देश्य दुनिया भर के लोगों, समुदाय और समाज में साक्षरता के महत्व को स्थापित करना है। अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस प्रत्येक वर्ष एक नए उद्देश्य के साथ मनाया जाता है।साक्षरता को सीखने और पढ़ने की क्षमता के रुप में परिभाषित किया जा सकता है। ये एक ऐसी  अवधारणा है जो न केवल छपी हुई सामग्री  को अच्छे से समझने की क्षमता पर बल्कि तमाम तरह की  तकनीकी जागरुकताओं पर भी जोर डालती है। ये एक बहुआयामी अवधारणा है जो वैश्विक दुनिया में विकास के सन्दर्भ में इसके नये मानकों को जोड़ने के लिए बहुत जरुरी है ।सामान्य शब्दों में साक्षरता से तात्पर्य पहचानने, समझने, टोकने, निर्माण करने, वार्तालाप करने और अलग-अलग संदर्भों के साथ जुड़े छपी   और लिखी सामग्री के प्रयोग से गणना करने की क्षमता है। जिसमें एक  व्यक्ति के रूप में अपने उद्देश्यों की प्राप्ति और विकास के लिये अपने ज्ञान का प्रयोग  अपने समुदाय और बाहरी समाज में भाग लेने के लिये सीखने की निरंतरता भी शामिल है|

 विषय कोई भी हो चाहे इतिहास, भूगोल गणित या फिर साहित्य बगैर साक्षरता  के इनका कोई अस्तित्व नहीं है |यानि दुनिया को समझने के लिए हमें साक्षरता  की जरुरत है|कॉपियों में लिखने का अभ्यास बगैर साक्षरता  के नहीं हो सकता  है |भारत के लिए यह दिन इस लिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि देश का अभी भी एक बड़ा तबका निरक्षर है |निरक्षरता महज एक समस्या भर नहीं है बल्कि यह कई समस्याओं की जननी है |कोई भी सभी समाज निर्देश से चलता है क्योंकि आधुनिक समाज का आधार सरकार है| सरकार समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए समय समय पर अपने नागरिको को निर्देश देती रहती है जिसे हम कानून के रूप में जानते हैं |अगर जनता समान रूप से कानून को समझ के उनका पालन करने लग जाए तो किसी भी देश में नियमों का  उल्लंघन कम होगा या बिलकुल न होगा |इससे सरकार को अनावश्यक रूप से कानून लागू करवाने वाली एजेंसियों पर ज्यादा निवेश नहीं करना होगा ,क्योंकि लोगों को वास्तविक रूप से कानून की जानकारी है|यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जिस देश में निरक्षरता ज्यादा होगी वहां की सरकार को शासन देने  में कितनी दिक्कत आयेगी |उसी तरह से लोगों में भी निरक्षरता के कारण जागरूकता की कमी होगी जिससे लोगों का हक़ मारा जाएगा और ऐसे समाज में फिर भ्रष्टाचार की अधिकता होगी |भारत इस मामले में अपवाद नहीं है जहाँ सिर्फ लोगों के निरक्षर होने के कारण कितनी तरह की ऐसी समस्याएं हैं |बड़ा  कारण लोगों का निरक्षर होना है | संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में पंद्रह साल से ऊपर सात सौ इक्यासी मिलीयन लोग साल 2015 में निरक्षर थे जिनमें चार सौ छियानबे मिलीयन  महिलायें हैं |सरकारी आंकड़ों के अनुसार  2011 की सामाजिक-आर्थिक और जातीय जनगणना के अनुसार देश के ग्रामीण इलाकों में निरक्षर लोगों की आबादी करीब 32 करोड़ है जो कुल ग्रामीण जनसंख्या का लगभग 35 प्रतिशत है। प्रतिशत के हिसाब से राजस्थान में ग्रामीण निरक्षर जनसंख्या सर्वाधिक है जिसका प्रतिशत 47.58 है और वहीं सबसे कम  लक्षद्वीप में 9.30 प्रतिशत है। देश के सर्वाधिक साक्षर राज्य केरल में ग्रामीण निरक्षर लोगों का प्रतिशत 11.38 प्रतिशत  है।  2011 की जनगणना के अनुसार देश के ग्रामीण इलाकों में सात साल और इससे अधिक के आयुवर्ग में निरक्षर लोगों की संख्या 22,96,32,152 रही जो 2001 की जनगणना की तुलना में थोड़ी कम है। 2001 की जनगणना में यह आंकड़ा 25,41,49,325 का था।आंकड़े अपने आप में देश में साक्षरता की स्थिति बयान कर रहे हैं |साक्षरता की कमी गरीबी ,भ्रष्टाचार ,कुपोषण अपराध और बढ़ती जनसँख्या जैसी समस्याओं को जन्म देती  हैं |देश तभी तरक्की कर सकता है जब उसका मानव संसाधन योग्य कुशल और उत्पादक हो |यह उत्पादकता अर्थव्यवस्था को गति देगी जिससे सरकार को गवर्नेन्स देने में आसानी होगी |सामाजिक रूप से देश में कई तरह की समस्याएं हैं जिनका इलाज कानून बनाकर नहीं किया जा सकता है |ऐसी बहुत सी समस्याओं का निदान जागरूकता से ही हो सकता है |सरकार सर्व शिक्षा अभियान में बहुत सारा धन खर्च कर रही है पर जागरूकता के अभाव में अगर लोग अपने बच्चों  को स्कूल न भेजें तो इस अभियान का उद्देश्य विफल हो जाएगा |पूरी दुनिया ऑन लाइन हो रही है भारत भी इसमें अपवाद नहीं है पर देश में निरक्षरों की बड़ी संख्या होने के कारण डिजीटल डिवाईड भी बढ़ा है और लोग पढ़े लिखे न होने के कारण बदलाव की इस बयार का फायदा नहीं उठा पा रहे हैं |सरकार साक्षरता को बढाने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है और शिक्षा का अधिकार इसी दिशा में उठाया गया एक सार्थक  कदम है पर यह प्रयास तभी सफल होगा जब इसमें जनभागीदारी जुड़ेगी और यह जिम्मेदारी उन पढ़े लिखे लोगों की ज्यादा है कि वे अपने आस पास के निरक्षर लोगों को साक्षर होने के लिए न केवल प्रेरित करें बल्कि अपना खुद का भी योगदान दें |कोई भी देश महान अपने लोगों से बनता है पर जनसंख्या का बड़ा तबका अगर शिक्षा की रौशनी से दूर है तो पहले से साक्षर लोगों को इस प्रयास में हाथ बंटाना ही होगा | साक्षरता का दिया जब तक भारत के हर घर में नहीं जलेगा तब तक हम विकास की दौड़ में भी पीछे रहेंगे और लोगों का जीवन स्तर भी बेहतर नहीं होगा |इस साक्षरता दिवस हम यह शपथ लेकर कि हम किसी एक व्यक्ति को साक्षर करेंगे राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे सकते हैं |
दैनिक जागरण /आईनेक्स्ट में 08/09/2018 को  प्रकाशित लेख 

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