Monday, September 15, 2008

सबको लुभाती पैसे की खनक

फिल्मों और पैसों का गहरा रिश्ता है आज समझते हैं हिन्दी फिल्मी गाने पैसों को कितनी अहमियत देते हैं.पैसा ओ पैसा ये हो मुसीबत न हो मुसीबत (क़र्ज़ )कुछ ऐसी ही कहानी है आज की दुनिया मैं पैसे की आज जिसके पास पैसा है वो और ज्यादा पाना चाहता है जिसके पास नहीं है वो भी पैसा पाना चाहता है मतलब “पैसा पैसा करती है ये दुनिया” (सलीमा ), लापरवाह फ़िल्म का ये गाना तो यही बताता है “पैसा जिसके पास है दुनिया उसकी दास है” . पैसे की माया अपरम्पार है शायद इसी दर्शन को काला बाज़ार फ़िल्म का यह गाना आगे बढाता है “ठन ठन की सुनो झंकार कि पैसा बोलता है” . पैसा सर चढ़ कर बोलता है गलोब्लिजेशन के इस दौर में हर आदमी पैसा कमाने के किसी मौके को चूकना नहीं चाहता है .पैसा इंसान की एक जरूरत है लेकिन आज के इस दौर में ऐसा लगता है कि पैसा इंसान की एक मात्र जरुरत है पैसे पाने की चाह में कहीं छूटती जा रही है रिश्तों की गरमी और अपनेपन का एहसास सब कुछ मशीनी होता जा रहा है कोई बीमार है देखने जाने की बजाय कुछ कम पैसे खर्च करके एस ऍम एस भेज दीजिये गेट वेल सून , काम हो गया शुभकामना संदेश भेजना हो तो इ मेल कर दीजिये. और कुछ जयादा पैसे हों तो तरह तरह के कार्ड तो मौजूद हैं मतलब सारा खेल पैसे का ही है, सही ही कहा गया है सफलता अपनी कीमत मांगती है अगर आगे बढ़ना है तो समय के साथ तो दौड़ना ही पढेगा नहीं तो हम पीछे छूट जायेंगे.तो परवाह किसे है रिश्तों की गर्मी और अपनेपन के एहसास की अब किसे याद आती है गरमी की उन रातों की जब पुरा घर छत पर सोता था कूलर और एसी के बगैर भी वो रातें कितनी ठंडी होती थीं या जाडे की नर्म दोपहर में नर्म धूप सेंकते हुए सुख दुःख बांटना और वो नर्म धूप किसी हीटर के बगैर भी कितनी गरमी देती थी. वो छत पर बैठकर यूँ ही तारों को देखना .
विकास तो खूब हुआ है समय और स्थान की दूरियां घटी है इन सब के बावजूद दिलों में दूरियां बढ़ी है एक दूसरे पर अविश्वास बढ़ा है पैसा तो खूब है ,चैन नहीं है . होली या दीपावली की तैयारी महीनो पहले से होती थी चिप्स या पापड़ बनाने का मामला हो या पटाखे की खरीददारी कोई बनावट नहीं थी लेकिन आज तो “पैसा फैंको तमाशा देखो” (दुश्मन ) सब कुछ रेडी मेड है चिप्स पापड़ से लेकर चोकलेट में तब्दील होती हुई मिठाइयों तक , लेकिन रिश्ते न तो रेडी मेड होते हैं और न ही बाज़ार में मिलते हैं रिश्ते तो बनते हैं प्यार की उर्जा ,त्याग समर्पण और अपनेपन के एहसास से रिश्ते तो ही मकान को घर बनते हैं आज मकान तो खूब बन रहे हैं लेकिन घर गायब होते जा रहे हैं. त्यौहार मनाने के लिए अब साल भर इंतज़ार करने की जरुरत नहीं जेब में पैसा हो तो हर दिन दसहरा है और रात दिवाली है लेकिन मनी मस्ती और मोबाइल ही जिन्दगी नहीं है आज पैसा पॉवर का पर्यायवाची बन गया है . विटामिन ऍम (मनी ) का अत्यधिक सेवन समाज के स्वास्थ्य में समस्या ला सकता है विटामिन स्वास्थ्य के लिए अच्छे होते हैं लेकिन अति किसी भी चीज की बुरी होती है ऐसे में पैसे की प्यास को नियंत्रित करना जरुरी है मनी को जीवन का एक मात्र मिशन बनाना मनुष्य के मन की संवेदनाओं को मार सकता है . ये समय की मांग है या किसी भी कीमत पर सफल होने की चाह ? तो रिश्तों को कारपोरेट करण होने से बचाइए और चलिए आज यूँ करें की किसी पुराने रिश्ते को जिन्दा किया जाए किसी परिचित दोस्त या रिश्तेदार के घर बगैर किसी काम के चला जाए और देखा जाए कि बगैर पैसे के भी दुनिया में काफी जुटाया जा सकता है .
निदा फाजली साहब की इन पंक्तियों के साथ आप से विदा लेता हूँ:
मुमकिन है सफर हो आसां अब साथ भी चल कर देखें
कुछ तुम भी बदल कर देखो , कुछ हम भी बदल कर देखें
आंखों में कोई चेहरा हो , हर गाम पे एक पहरा हो
जंगल से चलें बस्ती में दुनिया को संभल कर देखें
दो -चार कदम हर रास्ता पहले की तरह लगता है
शायद कोई मंज़र बदले कुछ दूर तो चल कर देखें
लेखक मीडिया एक्सपर्ट हैं
आई नेक्स्ट १५ सितम्बर 2008 को प्रकाशित


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