Thursday, November 27, 2014

इंटरनेट चला हिंदी की ओर

भारत सही मायने में कन्वर्जेंस की अवधारणा को साकार होते हुए देख रहा है, जिसका असर तकनीक के हर क्षेत्र में दिख रहा है। भारत की विशाल जनसंख्या इस परिवर्तन के मूल में है। इंटरनेट पर अंग्रेजी भाषा का आधिपत्य खत्म होने की शुरुआत हो गई है। गूगल ने हिंदी वेब डॉट कॉम से एक ऐसी सेवा शुरू की है, जो इंटरनेट पर हिंदी में उपलब्ध समस्त सामग्री को एक जगह ले आएगी। इसमें हिंदी वॉयस सर्च जैसी सुविधा भी शामिल है। गूगल का यह प्रयास ज्यादा से ज्यादा लोगों को इंटरनेट से जोड़ने की दिशा में उठाया कदम है। इस प्रयास को गूगल ने इंडियन लैंग्वेज इंटरनेट एलाइंस (आईएलआईए) कहा है। इसका लक्ष्य 2017 तक 30 करोड़ ऐसे नए लोगों को इंटरनेट से जोड़ना है, जो इसका इस्तेमाल पहली बार स्मार्टफोन या अन्य किसी मोबाइल फोन से करेंगे।
गूगल के आंकड़ों के मुताबिक, अभी देश में अंग्रेजी भाषा समझने वालों की संख्या 19.8 करोड़ है, और इसमें से ज्यादातर लोग इंटरनेट से जुड़े हुए हैं। तथ्य यह भी है कि भारत में इंटरनेट बाजार का विस्तार इसलिए ठहर-सा गया है, क्योंकि सामग्रियां अंग्रेजी में हैं। आंकड़े बताते हैं कि इंटरनेट पर 55.8 प्रतिशत सामग्री अंग्रेजी में है, जबकि दुनिया की पांच प्रतिशत से कम आबादी अंग्रेजी का इस्तेमाल अपनी प्रथम भाषा के रूप में करती है, और दुनिया के मात्र 21 प्रतिशत लोग ही अंग्रेजी की समझ रखते हैं। इसके बरक्स अरबी या हिंदी जैसी भाषाओं में, जो दुनिया में बड़े पैमाने पर बोली जाती हैं, इंटरनेट सामग्री क्रमशः 0.8 और 0.1 प्रतिशत ही उपलब्ध है। बीते कुछ वर्षों में इंटरनेट और विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साइट्स जिस तरह लोगों की अभिव्यक्ति, आशाओं और अपेक्षाओं का माध्यम बनकर उभरी हैं, वह उल्लेखनीय जरूर है, मगर भारत की भाषाओं में जैसी विविधता है, वह इंटरनेट में नहीं दिखती। लिहाजा भारत में इंटरनेट को तभी गति दी जा सकती है, जब इसकी अधिकतर सामग्री हिंदी समेत अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में हो।वैश्विक परामर्श संस्था मैकेंजी का एक नया अध्ययन बताता है कि 2015 तक भारत के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में इंटरनेट 100 अरब डॉलर का योगदान देगा, जो 2011 के 30 अरब डॉलर के योगदान के तीन गुने से भी ज्यादा होगा। अध्ययन यह भी बताता है कि अगले तीन साल में भारत दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा इंटरनेट उपभोक्ताओं को जोड़ेगा। इसमें देश के ग्रामीण इलाकों की बड़ी भूमिका होगी। मगर इंटरनेट उपभोक्ताओं की यह रफ्तार तभी बरकरार रहेगी, जब इंटरनेट सर्च और सुगम बनेगा। यानी हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं को इंटरनेट पर बढ़ावा देना होगा, तभी गैर अंग्रेजी भाषी लोग इंटरनेट से ज्यादा जुड़ेंगे।
हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के विस्तार का दायरा अभी भले ही इंटरनेट खोज और वॉयस सर्च तक सिमटा है, मगर उम्मीद यही है कि इस प्रयोग का असर जीवन के हर क्षेत्र में पड़ेगा। इसका सबसे बड़ा फायदा ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले किसानों को मिलेगा, क्योंकि इंटरनेट पर हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में खेती से संबंधित बहुत ज्यादा सामग्री उपलब्ध नहीं है, और उनका अंग्रेजी ज्ञान सीमित है।
हिंदी में इंटरनेट का प्रसार बढ़ने से ग्रामीण क्षेत्र के किसान सबसे ज्यादा लाभान्वित होंगे।
अमर उजाला में 27/11/14को प्रकाशित 

Friday, November 21, 2014

स्मार्टफोन की तरह स्मार्ट है नेक्स्ट जेनरेशन

अच्छा आपने बदलाव बोले तो चेंज की बहुत बात सुनी होंगी पर क्या इस चेंज को महसूस किया है .अब देखिये न स्मार्ट फोन और इंटरनेट कितना तगड़ा चेंज हमारे जीवन के हर पहलू में ला रहे हैं .कुछ का पता हमें पता पड़ता और कुछ का बिलकुल भी नहीं ,पीसीओ और साईबर कैफे इतिहास हैं हर हाथ में इंटरनेट बोले तो स्मार्टफोन जो भरे हुए हैं दुनिया भर के एप्स से .हर इंसान बस कनेक्टेड रहना चाहता है.कुछ भी मिस नहीं होना चाहिए. वैसे अगर आप बदलाव को निरपेक्ष भाव से देखें मतलब न कुछ खोने का गम और न कुछ पाने की खुशी तो एहसास होता है ये दुनिया ऐसे ही नहीं बदली. जब हम बदलाव में एक पक्ष बन जाते हैं तब बदलाव अच्छा या बुरा हो सकता है पर मैंने पहले ही कहा था “निरपेक्ष भाव” से तो ये बदलाव बहुत कुछ कहता है पर क्या कभी हमने सुनने की कोशिश की है.टेक्नोलॉजी हमारी जिंदगी का कितना अहम हिस्सा होती जा रही है.पहले भारत के एक सामान्य  इंसान का अगर तकनीक से बहुत पाला पड़ता था तो दो चीजें थी पहला कैलकुलेटर और दूसरा टाईप राइटर पर और ये दोनों चीजें इतनी आम भी नहीं थी पर आज ये  “टरहमारे जीवन में कितने चेंज ले आया है.जी हाँ कंप्यूटर और उसके पीछे पीछे मोबाईल फोन वाकई हम बहुत दूर निकाल आयें हैं. एक ऐसी दुनिया जहाँ कम्युनिकेट करना ज्यादा इम्पोर्टेंट है.पर क्या आपने ध्यान दिया कि ये तकनीकी बदलाव हमारे बात चीत करने की एक नयी वर्तनी गढ़ रहे हैं कितने नए शब्द मिल गए हैं हमें थोडा सा डूड बनकर चलते हैं मार्केट घूमने  और देखते हैं इस नयी दुनिया में  लोग कैसे बोल बतिया रहे  हैं  उप्प्स चैट कर रहे  हैं.यार् पिज्जा खाना है नॉट वरी चिलेक्स मुझे गूगल करने दे अभी बताता हूँ कि कौन सा पिज्जा आउटलेट करीब है.नेट स्लो है सेम ओल्ड कनेक्शन प्रोब्लम, तू व्हाट्सएप पर लगा है और पेट में चूहे झम्पिंग झपाक कर रहे हैं.क्या तू अभी एस एम् एस में अटका है,फैंक दे इस फ़ोन को कोई बजट स्मार्ट फोन ले ले.देख इंसान स्मार्ट हो न हो पर गैजेट स्मार्ट होने चाहिए.यू नो दिस इस काल्ड एटीट्यूड.ये तो एक बानगी भर है वर्च्युल वर्ल्ड की बातें रीयल वर्ल्ड में कितनी तेजी से हमसे जुड़ती जा रही हैं.ओए तेरी फीड में ये एड अ फ्रैंड जैसी हरकत कौन कर रहा है और तेरा रिलेशनशिप स्टेटस सिंगल क्यूँ है.तू मेरा कैसा दोस्त है जो प्रोफेशनल लाइकर्स की तरह मेरी हर बात में हाँ हाँ किये जा रहा है तेरा भी कोई पॉइंट ऑफ व्यू है कि नहीं लाईफ का एक्टिव यूजर्स बन बिंदास कमेन्ट कर क्यूंकि जिंदगी न मिलेगी दोबारा.
ये तो दो दोस्तों की बातें हो गयीं पर यहाँ प्रेमी प्रेमिका भी कुछ ऐसी ही रौ में बहे चले जा रहे हैं उधर वो  चैट पर जल रही होती कभी हरी तो कभी पीली और इधर वो, तो बस लाल ही होता हूँ.तुम एक स्माइली भी नहीं भेज सकती,तुम बिजी हो तो मैं कौन सा हैबीटुएटेड चैटर हूँ और सुनो चैटर हो सकता हूँ चीटर नहीं.अब जवाब भी सुनिए वो भी कम दिलचस्प नहीं है काश तुम टाईम लाइन रिवियू होते जब चाहती  अनटैग कर देती  है.मुझे लगता है इस रिश्ते को साइन आउट करने का वक्त आ गया.उधर पेरेंट्स भी अपने लाडलों पर नजर रखे हुए हैं.बाप बेटे की रोड पर होती तकरार का आप भी लुत्फ़ लीजिए.तुम इतनी रात तक चैट की बत्तियों को जलाकर किसको हरी झंडी दिखाते रहते हो.क्या पापा ऐसा कुछ भी नहीं है मैं तो बस फोन पर ही ऑनलाइन रहता हूँ.बेटे बाप हूँ तेरा मैं इन्विजीबल रहकर तेरी हर हरकत पर नजर रखता हूँ पर बोलता कुछ नहीं तू खुद समझदार बन और ये लड़कियों का चक्कर छोड़ पढ़ाई पर ध्यान लगा नहीं तो जिंदगी तुझे ब्लॉक कर देगी तब तू बस लोगों को फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजता फिरेगा और लोग तुझे वेटिंग में डालते रहेंगे.अगर आपको ये लेख मजेदार लगा हो तो फेसबुक से लेकर ट्विटर तक जहाँ जहाँ शेयर कर सकते हों कर दीजिए.इसलिए नहीं कि लेख बड़ा अच्छा है बल्कि इसलिए कि हम एक ऐसी पीढ़ी को बिलोंग करते हैं जो सवाल पूछने से डरती नहीं जो हर चीज का जवाब मांगती है और ज्यादा रिस्पोंसिबल है तो देर किस् बात की जरा मोबाईल चेक कीजिये देखिये कोई आप से कुछ कहना चाह रहा है,और हाँ मुस्कुराईयेगा जरुर आखिर एक स्माईली का ही तो सवाल है .
आई नेक्स्ट में 21/11/14 को प्रकाशित लेख 

Tuesday, November 11, 2014

बढ़ते ई-बाजार का सीमित आधार

सजे हुए परंपरागत बाजार अभी इतिहास की चीज नहीं हुए हैं, शायद होंगे भी नहीं, पर ऑनलाइन शॉपिंग ने उनको कड़ी टक्कर देनी शुरू कर दी है। परंपरागत दुकानों की तरह ही ऑनलाइन खुदरा व्यापारियों के पास हर सामान उपलब्ध हैं। किताबों से शुरू हुआ यह सिलसिला फर्नीचर, कपड़ों, बीज, किराने के सामान से लेकर फल, सौंदर्य प्रसाधन तक पहुंच गया है। यह लिस्ट हर दिन बढ़ती जा रही है। इस खरीदारी की दुनिया में घुसना इतना आसान है कि आप अपने बेडरूम से लेकर दफ्तर या गाड़ी से, कहीं से भी यह काम कर सकते हैं। ई-कॉमर्स पोर्टलों की बहार है। इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोशिएशन ऑफ इंडिया व केपीएमजी की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का ई-कॉमर्स का बाजार 9.5 बिलियन डॉलर का है, जिसके इस साल के अंत तक 12.6 बिलियन डॉलर हो जाने की उम्मीद है और 2020 तक यह देश की जीडीपी में चार प्रतिशत का योगदान देगा।
लोगों की व्यस्त दिनचर्या, शहरों में पार्किंग व ट्रैफिक की समस्या, आमदनी में इजाफा और सस्ते इंटरनेट की सुलभता कुछ ऐसे कारण हैं, जिन्होंने लोगों को डिजिटल कॉमर्स का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित किया है। फॉरेस्टर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 3.5 करोड़ लोग ऑनलाइन खरीदारी करते हैं, जिनकी संख्या 2018 तक 12.80 करोड़ हो जाने की उम्मीद है। इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं के मामले में भारत दुनिया में तीसरे नंबर पर है, पर यहां ई-कॉमर्स का भविष्य मोबाइल के हाथों में है। मार्केट रिसर्च संस्था आईडीसी के मुताबिक, भारत में स्मार्टफोन का बाजार 40 प्रतिशत की गति से बढ़ रहा है। मोबाइल सिर्फ बातें करने, तस्वीरों व संदेशों का माध्यम भर नहीं रह गए हैं। अब स्मार्टफोन में चैटिंग ऐप के अलावा, ई-शॉपिंग के अनेक ऐप लोगों की जरूरत का हिस्सा बन चुके हैं।
खरीदारी के अनेक विकल्पों और कीमतों का तुलनात्मक रूप से मूल्याकंन की सुविधा और आसान मासिक किश्तों में चीजें खरीदने का विकल्प कुल मिलाकर चीजें खरीदने को काफी आसान बना देते हैं। महत्वपूर्ण यह भी है कि ऑनलाइन खरीदारी ने किसी खास सामान की सिर्फ बड़े शहरों में उपलब्धता की स्थिति को समाप्त किया है। आप किसी भी शहर में रहकर कोई भी सामान खरीद सकते हैं। अभी तक बहुत से सामानों के लिए किसी को बड़े शहरों के बाजार पर ही निर्भर रहना पड़ता है। ऑनलाइन खरीदारी के संदर्भ में तस्वीर का दूसरा रुख उतना चमकीला भी नहीं है। एक तो मोबाइल डाटा की कीमत ज्यादा और रफ्तार कम है। फिर बड़े शहरों को छोड़ दिया जाए, तो छोटे शहरों और कस्बों में इंटरनेट सुविधाजनक नहीं है। अंग्रेजी भाषा पर निर्भरता की वजह से ऑनलाइन करोबार का दायरा सीमित है। फिर इस क्षेत्र में उपभोक्ता के हितों की रक्षा के लिए नियम-कायदे अभी नहीं बने हैं। शिकायत निवारण जैसे इंतजाम भी नहीं हैं।
हिन्दुस्तान में 11/14/14 को प्रकाशित 

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