Saturday, July 13, 2019

जैविक नमूनों से आसान होगी पहचान


डीएनए प्रोफाइलिंग विधेयक पिछली सरकार के कार्यकाल में नौ जनवरी को लोकसभा से पारित हो गया था किन्तु राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण यह बिल कानून न बन सका |मोदी सरकार को मिले नए जनादेश से यह उम्मीद की जा रही है कि यह बिल अब जल्दी ही कानून का रूप ले सकता है | देश में हर वर्ष लाखों लावारिश लाशें मिलती हैं जिनकी कोई पहचान नहींहोती और हजारों लोग लापता होते हैं पर सरकार के पास ऐसा कोई तंत्र नहीं है जिससे यह पता चल सके कि कितने लापता अकाल काल कवलित हो गए  और न ही कोई आँकड़ा उपलब्ध है| प्रश्न  यह है कि इन लाशों की पहचान कैसे हो? बात चाहे केदार नाथ में आई आपदा की हो या जम्मू कश्मीर में आई बाढ़ ऐसी कई आपदाओं में सैंकड़ों लोगों की मौत हो जाती है और हजारोंलोग लापता हो जाते हैं| इनमें से कई मामलों में न तो व्यक्ति की पहचान हो पाती है और न ही उनके परिचित की जानकारी मिल पाती है| ऐसा ही कुछ बहुत सी अपराधिक घटनाओं के साथ होता है जिनकी गुत्थी  अनसुलझी ही रह जाती  है |ऐसे कई सवालों के जवाब डीएनए जांच में मिल सकते हैं लेकिन सरकार के पास अपने नागरिकों का कोई आधिकारिक डीएनए आंकड़ानहीं है | डीएनए की खोज पहली बार जेम्स वाटसन और फ्रांसिस क्रिक ने 1953 में की थी और साल 1985 में ब्रिटिश वैज्ञानिक एलेक जेफ्रीज ने डीएनए  प्रोफाईल की आधुनिक तकनीक की खोज की|उसी  साल 1985 में देश  में पहली बार कानूनी कार्रवाई में डीएनए  जाँच को  विधिक मान्यता मिली और 1988 में पहली बार डीएन ए जांच के बाद किसी दोषी को सजा मिलीलेकिन तब से लेकर आज तक इसके लिए कोई ठोस विधिक तंत्र  का विकास नहीं हो पाया. आलोचकों का मानना है कि ऐसा कानून व्यक्ति की निजता का उल्लंघन है और उसके मानवाधिकारों का हनन भी |ऐसी ही सवालों के कारण डीएनए प्रोफाईल विधेयक को कानूनी रूप देने की सरकार की कोशिशे परवान न चढ़ सकीं | ये प्रावधान इतना विवादास्पद हो चुका  है कि सरकार2007,2012,2015,2016 और फिर 2017 में प्रस्तुत ड्राफ्ट में कई संशोधन कर चुकी है| भारत में यह प्रावधान पहले से ही है कि ज़रूरत पड़ने पर न्यायिक मजिस्ट्रेट को जानकारी देकर कई अपराधों के मामलों में संदिग्धों की डीएनए प्रोफ़ाइल बनाने के लिए जैविक नमूने लिए जा सकते हैं| कई लैबोरेट्री में डीएनए प्रोफ़ाइल से जुड़ी जांच करने की व्यवस्था है|
 डीएनए प्रोफाइलिंग क्या है : यह किसी व्यक्ति की पहचान की ऐसी फोरेंसिक तकनीक है जिसके जरिये जैविक नमूनों जैसे त्वचा, बाल, रक्त या लार की बूँदें लेकर किसी भी व्यक्ति की पहचान की जा सकती है. फिर उसके डीएनए सैम्पल के आधार पर उसकी एक विशिष्ट डीएनए प्रोफाईल  बनाई जाती है.यह प्रोफाईल एकदम विशिष्ट होगी और ऐसी कोई दूसरी प्रोफाईल सारीदुनिया में कोई और नहीं हो सकती |इस प्रोफाईल के जरिये किसी व्यक्ति की किसी स्थान और जगह विशेष पर उपस्थिति या अनुपस्थिति सुनिश्चित की जा सकती है | 99.9% डीएनए सभी व्यक्तियों में एक जैसा होता है| केवल 0.1प्रतिशत  अंतर के कारण प्रत्येक व्यक्ति का डीएनए एक-दूसरे से अलग होता है और इसी के आधार पर किसी व्यक्ति की पहचान की जा सकती है|उन्नाव में परियर गांव से सटे परियर घाट पर गंगा नदी में मिले दो सौ  से ज्यादा शव और उनके अवशेष मिले| उन्नाव की तत्कालीन डीएम सौम्या अग्रवाल के आदेश पर शवों को नदी के किनारे बालू खोदकर दफना दिया गया । अनुमान के मुताबिक बरामद शव छह महीने से लेकर एक साल पुराने हो सकते हैं। यही वजह है कि लाशों का पोस्टमार्टम नहीं कराया जा सका क्योंकिशव बहुत ज्यादा गल चुके थे और उन्हें उठाने पर शरीर के हिस्से अलग हो रहे हैं।यह सवाल आज भी अनुत्तरित है कि ये शव किसके थे |क्योंकि सरकार के पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है | इस कानून के बनने के बाद डीएनए के नमूने लेना और डीएनए बैंक को स्थापित करना आसान हो जाएगा|डीएनए नमूनों का गलत इस्तेमाल रोका जा सकेगा|गलत इस्तेमाल करने वालों को सजादिलाई जा सकेगी|इसके साथ ही यह कानून लावारिश लाशों की पहचान करने में मददगार साबित होगा.बलात्कार  जैसे गंभीर आपराधिक मामलों में अपराधियों की पहचान की जा सकेगी चाहे यह मामला कितना भी पुराना क्यों न हो| किसी भी आपदा में शिकार हुए लोगों की पहचान हो  सकेगी|लापता लोगों की तलाश, अपराध नियंत्रण और अपराधियों की पहचान की जासकेगी|  डीएनए तकनीक का प्रयोग सिविल वाद को  सुलझाने के लिए भी किया जा सकता है जिनमें बच्चे के जैविक माता-पिता की पहचान,आव्रजन  केस और मानव अंगों के ट्रांसप्लांट जैसे कुछ महत्वपूर्ण आयाम भी  शामिल हैं।  इस कानून के समर्थकों का मानना है कि किसी की अनुवांशिक जानकारी इकठ्ठा करना किसी की  निजता को भंग करने जैसा मामला नहीं है |इसीआधार पर शुरुआत में लोगों ने आधार का भी विरोध किया था हालांकि लोगों की गोपनीय जानकारी सामने आने के तथ्य कई बार प्रकाश में आये पर यह भी सत्य है कि आधार के सरकारी योजनाओं में जुड़ने से भ्रष्टाचार में कमी आई है और सही लाभार्थी को लाभ मिलना सुनिश्चित हुआ |सरकार के पास पर्याप्त संख्या में आंकड़े आये जिससे नीतियां बनाने और उनके पालन करानेमें आसानी हुई है | इस बिल के कानून बन जाने के बाद यह उम्मीद की जा सकती है कि नए भारत में कोई अपराधी अपराध करके बच जाएगा| एक बोर्ड की मदद से डीएनए प्रोफ़ाइलिंग के काम में लगी प्रयोगशालाओं और उनसे जुड़े लोगों का स्तर तय करना; एक राष्ट्रीय डीएनए डेटा बैंक की स्थापना, इकट्ठा किए गए नमूनों की सुरक्षा |इसमें नमूनों के अनधिकृत या ग़लत तरीके सेइस्तेमाल करने पर सज़ा की व्यवस्था होगी और दोषी क़रार दिए जाने के बाद लोगों को ये मौका भी दिया जाएगा कि वो डीएनए जांच के ज़रिए ख़ुद को बेकसूर साबित कर सकें| वहीं हमारी पुलिसिंग भी ज्यादा वैज्ञानिक तरीके से अपराधों की जांच कर पायेगी और विज्ञान जनित साक्ष्य यह सुनिश्चित करेंगे कि कोई निर्दोष जेल की काल कोठरी में न सड़े|लेकिन सरकार को भी इसबात का ख्याल रखना होगा कि डीएनए बैंक में संरक्षित डीएनए पूरी तरह से सुरक्षित हाथों में रहे और लोगों के निजता के अधिकार जैसी चिंताओं का तार्किक तरीके से समाधान करना होगा | हमारी पुलिस व्यवस्था जो अभी भी अंग्रेजों के ज़माने के तौर तरीके से चल रही है उसे भी प्रशिक्षित किये जाने की जरुरत है |
 दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण में 13/07/2019 को प्रकाशित 


3 comments:

Karan Rajput said...

Thanks for share this information
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HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 60 साल के हुए - पर्यावरण कार्यकर्ता राजेन्द्र सिंह - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

Enoxo said...

आपके इस ब्लॉगपोस्ट की शानदार चर्चा हमारे ब्लॉग पंच के नेक्स्ट एपिसोड में की जाएगी और उसमें से बेस्ट ब्लॉग चुना जाएगा पाठको की कमेंट के आधार पर ।

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