Saturday, July 13, 2024

यूजर्स के बीच बढ़ती अरुचि

 


साल 2010 साल 2010 में जो सोशल मीडिया आशाओं का अग्रदूत बन कर उभर रहा था वो साल 2020 तक आते –आते फेक न्यूज और लोगों की राजनीतिक विचारों को प्रभावित करने जैसे आरोपों का शिकार  हो चुका था सोशल मीडिया की आंधी आये हुए महज दस साल में ही लोग अपनी राय पोस्ट करने में अब कम लोग ही सक्रिय हैं|पोस्ट करने से आशय टेक्स्ट इमेज फॉर्म में अपने आपको व्यक्त करने से है |सोशल  मीडिया पर रोज  बहुत सारे लोग लॉग इन करते हैंपर  वास्तव में बहुत कम लोग ही पोस्ट कर रहे हैं।

हम  प्रतिदिन लगभग दो घंटे इंस्टाग्राम फेसबुक या ट्विटर  पर स्क्रॉल करते हुए समय बिताते हैंलेकिन उनके मुख्य फ़ीड पर उनकी आखिरी पोस्ट एक साल पहले की थी। कभी कभी लोग सोशल मीडिया स्टोरीज जरुर शेयर करते हैं ,जो चौबीस  घंटों के बाद गायब हो जाती हैं। सोशल मीडिया के अधिक इस्तेमाल ने लोगों को अब यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अब जीवन में और अधिक झगड़े जोड़ने की जरूरत नहीं है और लोगों को इस बात पर झगड़ने की ज़रूरत नहीं है कि मैंने किसे वोट दिया या मैं क्या सोचता हूँ।अब वह वह आमने-सामने और समूह चैट को प्राथमिकता देता है—जिसे अब  "निजी नेटवर्किंग" कहा जा रहा है। उपयोगकर्ताओं के सर्वेक्षण और डेटा-एनालिटिक्स फर्मों के शोध के अनुसारअरबों लोग मासिक रूप से सोशल मीडिया का उपयोग करते हैंलेकिन सोशल मीडिया उपयोगकर्ता कम पोस्ट कर रहे हैं और अधिक निष्क्रिय अनुभव का आनंद  ले रहे हैं।इसे दुसरे शब्दों में यूँ समझा जा सकता है कि ऐसा नहीं है लोगों का सोशल मीडिया से मोह  भंग हो रहा है वे अभी भी लोगों की सोशल मीडिया फीड देखने या राष्ट्रीय समय पास करना बन चुका शगल ,रील देखने में समय बिता रहे हैं पर वे अब अपनी राय रखने में उतने सक्रिय नहीं रहे हैं |डेटा-इंटेलिजेंस कंपनी मॉर्निंग कंसल्ट की अक्टूबर रिपोर्ट में,सोशल-मीडिया अकाउंट वाले 61 प्रतिशत अमेरिकी वयस्क उत्तरदाताओं ने कहा कि वे जो पोस्ट करते हैं उसके बारे में वे अधिक चयनात्मक हो गए हैं यनि अब लोग क्या पोस्ट करना है उसके बारे में सोचने लग गए है ।

भारत भी अपवाद नहीं है|भले ही अपने विशाल सोशल मीडिया यूजर बेस के कारण यहाँ ऐसा नहीं दिखता पर अब लोग सोशल मीडिया पर कम पोस्ट शेयर कर रहे हैं इसके कई कारण हैं इस शोध के हिसाब से लोग ये मानने लगे हैं  कि वे जो सामग्री देखते हैं उसे नियंत्रित नहीं कर सकते। वेअपने जीवन को ऑनलाइन साझा करने को लेकर अधिक सुरक्षात्मक हो गए हैं और अब उन्हें अपनी निजता की भी चिंता होने लग गयी हैं ।सोशल मीडिया पर ट्रोलर्स की बढ़ती संख्या के कारण लोगों का मजा किरकिरा भी हुआ है |सारे मेटा प्लेटफोर्म  (इन्स्टाग्राम और फेसबुक )में यह गुप्त प्रवृत्ति जिसमें टिकटोक और एक्स(ट्विटर ) इन सभी के व्यवसाय के लिए ख़तरा है। उपयोगकर्ताओं के ज्यादा से  ज्यादा शेयर करने के कारण वे दुनिया की सबसे शक्तिशाली कंपनियों और प्लेटफार्मों में से बन गए हैं।मजेदार तथ्य यह है कि इनमें से कोई भी कम्पनी  कोई उत्पाद नहीं बनाती है,फिर भी ये  नई कम्पनियां दुनिया की बड़ी और लाभकारी कम्पनियां बन गयीं है|

 सिर्फ यूजर जेनरेटेड कंटेंट जाहिर है लोगों की कहने की आदत के कारण|भारत अभी अमेरिका जैसी गंभीर स्थिति में नहीं है पर यह साफ़ तौर पर अब देखा जा सकता है कि लोग अपनी निजता और सब कुछ सोशल मीडिया पर डालने की मानसिकता से किनारा  कर रहे हैं |इसका एक बड़ा कारण सोशल मीडिया अकाउंट का उपयोग मार्केटिंग और ब्रांडिग के लिए किया जाना इसके अलावा मीडिया लिट्रेसी का प्रचार प्रसार भी है वैसे  भी सोशल मीडिया पर आते ही उपभोक्ता डाटा में तब्दील हो जाता हैफिर उस डाटा ने और डाटा ने पैदा करना शुरू कर दिया |इस तरह देश में हर सेकेण्ड असंख्य मात्रा में डाटा जेनरेट हो रहा है पर उसका बड़ा फायदा इंटरनेट के व्यवसाय में लगी कम्पनियों को हो रहा है यूजर जेनरेटेड कंटेंट से चलने वाली इन कम्पनियों की कमाई का बड़ा फायदा उपभोक्ताओं को नहीं होता |

आधिकारिक तौर पर सोशल मीडिया से भारत मे  कितने रोजगार पैदा हुए इसका विशेष उल्लेख नही मिलता क्योंकि ये सारी कम्पनियां इन से सम्बन्धित आंकड़े सार्वजनिक रूप से नहीं जारी करतीं । साथ ही प्रत्यक्ष रोजगार के काफी कम होने का संकेत इन कम्पनीज के एम्प्लाइज की कम संख्या से प्रमाणित होता  है । ऐसा भी नहीं कि ये सोशल मीडिया कंपनियां इस तथ्य से अनजान हैं |अब वे सोशल मीडिया के उपभोक्ताओं को ज्यादा पर्सनलाइज्ड अनुभव देने की ओर अग्रसर हैं |वे मैसेजिंग जैसे अधिक निजी उपयोगकर्ता अनुभवों में निवेश कर रहे हैं और बातचीत को अधिक सुरक्षित बना रहे हैं। जिसमें  लोगों को अधिक अंतरंग साथियों के लिए पोस्ट करने के लिए प्रोत्साहित करना भी शामिल है  - जैसा कि इंस्टाग्राम के हाल ही में जारी किये गए  क्लोज फ्रेंड्स फीचर के साथ हुआ है।इन सबके बावजूद सोशल मीडिया से लोगों की बढ़ती अरुचि किसी नए माध्यम के विकास का बहाना बनेगी या नए यूजर  की बढ़ती संख्या इस प्रक्रिया को चलायमान रखेगी यह देखना दिलचस्प होगा |में जो सोशल मीडिया आशाओं का अग्रदूत बन कर उभर रहा था वो साल 2020 तक आते –आते फेक न्यूज और लोगों की राजनीतिक विचारों को प्रभावित करने जैसे आरोपों का शिकार  हो चुका था सोशल मीडिया की आंधी आये हुए महज दस साल में ही लोग अपनी राय पोस्ट करने में अब कम लोग ही सक्रिय हैं|पोस्ट करने से आशय टेक्स्ट इमेज फॉर्म में अपने आपको व्यक्त करने से है |सोशल  मीडिया पर रोज  बहुत सारे लोग लॉग इन करते हैंपर  वास्तव में बहुत कम लोग ही पोस्ट कर रहे हैं।

हम  प्रतिदिन लगभग दो घंटे इंस्टाग्राम फेसबुक या ट्विटर  पर स्क्रॉल करते हुए समय बिताते हैंलेकिन उनके मुख्य फ़ीड पर उनकी आखिरी पोस्ट एक साल पहले की थी। कभी कभी लोग सोशल मीडिया स्टोरीज जरुर शेयर करते हैं ,जो चौबीस  घंटों के बाद गायब हो जाती हैं। सोशल मीडिया के अधिक इस्तेमाल ने लोगों को अब यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अब जीवन में और अधिक झगड़े जोड़ने की जरूरत नहीं है और लोगों को इस बात पर झगड़ने की ज़रूरत नहीं है कि मैंने किसे वोट दिया या मैं क्या सोचता हूँ।अब वह वह आमने-सामने और समूह चैट को प्राथमिकता देता है—जिसे अब  "निजी नेटवर्किंग" कहा जा रहा है। उपयोगकर्ताओं के सर्वेक्षण और डेटा-एनालिटिक्स फर्मों के शोध के अनुसारअरबों लोग मासिक रूप से सोशल मीडिया का उपयोग करते हैंलेकिन सोशल मीडिया उपयोगकर्ता कम पोस्ट कर रहे हैं और अधिक निष्क्रिय अनुभव का आनंद  ले रहे हैं।इसे दुसरे शब्दों में यूँ समझा जा सकता है कि ऐसा नहीं है लोगों का सोशल मीडिया से मोह  भंग हो रहा है वे अभी भी लोगों की सोशल मीडिया फीड देखने या राष्ट्रीय समय पास करना बन चुका शगल ,रील देखने में समय बिता रहे हैं पर वे अब अपनी राय रखने में उतने सक्रिय नहीं रहे हैं |डेटा-इंटेलिजेंस कंपनी मॉर्निंग कंसल्ट की अक्टूबर रिपोर्ट में,सोशल-मीडिया अकाउंट वाले 61 प्रतिशत अमेरिकी वयस्क उत्तरदाताओं ने कहा कि वे जो पोस्ट करते हैं उसके बारे में वे अधिक चयनात्मक हो गए हैं यनि अब लोग क्या पोस्ट करना है उसके बारे में सोचने लग गए है ।

भारत भी अपवाद नहीं है|भले ही अपने विशाल सोशल मीडिया यूजर बेस के कारण यहाँ ऐसा नहीं दिखता पर अब लोग सोशल मीडिया पर कम पोस्ट शेयर कर रहे हैं इसके कई कारण हैं इस शोध के हिसाब से लोग ये मानने लगे हैं  कि वे जो सामग्री देखते हैं उसे नियंत्रित नहीं कर सकते। वेअपने जीवन को ऑनलाइन साझा करने को लेकर अधिक सुरक्षात्मक हो गए हैं और अब उन्हें अपनी निजता की भी चिंता होने लग गयी हैं ।सोशल मीडिया पर ट्रोलर्स की बढ़ती संख्या के कारण लोगों का मजा किरकिरा भी हुआ है |सारे मेटा प्लेटफोर्म  (इन्स्टाग्राम और फेसबुक )में यह गुप्त प्रवृत्ति जिसमें टिकटोक और एक्स(ट्विटर ) इन सभी के व्यवसाय के लिए ख़तरा है। उपयोगकर्ताओं के ज्यादा से  ज्यादा शेयर करने के कारण वे दुनिया की सबसे शक्तिशाली कंपनियों और प्लेटफार्मों में से बन गए हैं।मजेदार तथ्य यह है कि इनमें से कोई भी कम्पनी  कोई उत्पाद नहीं बनाती है,फिर भी ये  नई कम्पनियां दुनिया की बड़ी और लाभकारी कम्पनियां बन गयीं है|

 सिर्फ यूजर जेनरेटेड कंटेंट जाहिर है लोगों की कहने की आदत के कारण|भारत अभी अमेरिका जैसी गंभीर स्थिति में नहीं है पर यह साफ़ तौर पर अब देखा जा सकता है कि लोग अपनी निजता और सब कुछ सोशल मीडिया पर डालने की मानसिकता से किनारा  कर रहे हैं |इसका एक बड़ा कारण सोशल मीडिया अकाउंट का उपयोग मार्केटिंग और ब्रांडिग के लिए किया जाना इसके अलावा मीडिया लिट्रेसी का प्रचार प्रसार भी है वैसे  भी सोशल मीडिया पर आते ही उपभोक्ता डाटा में तब्दील हो जाता हैफिर उस डाटा ने और डाटा ने पैदा करना शुरू कर दिया |इस तरह देश में हर सेकेण्ड असंख्य मात्रा में डाटा जेनरेट हो रहा है पर उसका बड़ा फायदा इंटरनेट के व्यवसाय में लगी कम्पनियों को हो रहा है यूजर जेनरेटेड कंटेंट से चलने वाली इन कम्पनियों की कमाई का बड़ा फायदा उपभोक्ताओं को नहीं होता |

आधिकारिक तौर पर सोशल मीडिया से भारत मे  कितने रोजगार पैदा हुए इसका विशेष उल्लेख नही मिलता क्योंकि ये सारी कम्पनियां इन से सम्बन्धित आंकड़े सार्वजनिक रूप से नहीं जारी करतीं । साथ ही प्रत्यक्ष रोजगार के काफी कम होने का संकेत इन कम्पनीज के एम्प्लाइज की कम संख्या से प्रमाणित होता  है । ऐसा भी नहीं कि ये सोशल मीडिया कंपनियां इस तथ्य से अनजान हैं |अब वे सोशल मीडिया के उपभोक्ताओं को ज्यादा पर्सनलाइज्ड अनुभव देने की ओर अग्रसर हैं |वे मैसेजिंग जैसे अधिक निजी उपयोगकर्ता अनुभवों में निवेश कर रहे हैं और बातचीत को अधिक सुरक्षित बना रहे हैं। जिसमें  लोगों को अधिक अंतरंग साथियों के लिए पोस्ट करने के लिए प्रोत्साहित करना भी शामिल है  - जैसा कि इंस्टाग्राम के हाल ही में जारी किये गए  क्लोज फ्रेंड्स फीचर के साथ हुआ है।इन सबके बावजूद सोशल मीडिया से लोगों की बढ़ती अरुचि किसी नए माध्यम के विकास का बहाना बनेगी या नए यूजर  की बढ़ती संख्या इस प्रक्रिया को चलायमान रखेगी यह देखना दिलचस्प होगा |

दैनिक जागरण में 13/07/2024 को प्रकाशित 

Tuesday, July 9, 2024

आख़िरी बार कोई किताब पूरी कब पढी थी

 

क्या आपको याद है आखिरी बार आपने कोई किताब पूरी कब पढ़ी थीया अपने किसी मित्र के लिए पत्र कब लिखा थाआप में से कई लोगों के लिए यह अंतराल हफ्तेमहीने और कुछ के लिए साल भी हो सकता है। आज के डिजिटल युग में हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पर तकनीक ने खासा प्रभाव डाला हैइस बदलती दुनिया में हम चारों तरफ स्मार्टफोनटैबलैटकम्यूटर जैसे तमाम इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से घिर गये हैं।चैटिंग एप्स पर कुछ लिखने की बजाय वायस  नोट्स भेजे रहे हैं |वीडियो काल की बाढ़ आई हुई है |  इस बदलते दौर में विजुअल मीडिया यानि वीडियो  का बोलबाला हैओटीटी पर बिंज वॉचिंग(किसी लम्बे वीडियो को बगैर रुके पूरा देखना ) से लेकर सोशल मीडिया साइट्स पर अनगिनत रील स्क्रॉल करने तकविजुअल मीडिया हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा हो चला है। विजुअल कंटेट की ओर इस बढ़ते झुकाव ने शोधकर्ताओं को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हम पढने के दौर से आगे निकल जाने वाले हैं |हाल ही में मार्केटिंग फर्म इन-मोबी की मोबाइल मार्केटिंग हैंडबुक-2024 की ताजा रिपोर्ट सामने आई हैजिसमें कहा गया है कि एक औसत भारतीय 4 घंटे से अधिक समय रोजाना स्मार्टफोन पर बिताता हैजो वैश्विक औसत से लगभग एक घंटे ज्यादा है |यह आंकड़ा दिखाता है कि हम अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा डिजिटल स्क्रीन के सामने बिता रहे हैं। इस बढ़ते स्क्रीन टाइम और वीडियो कंटेंट के बढ़ते उपभोग से हमारे दिमाग पर संज्ञानात्मात्क प्रभाव पड़ा है। इससे ना केवल हमारे दिमागी कौशल बल्कि हमारी पढ़ने और लिखने की आदतें बदलने के साथ साथ ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता भी कम हो रही है |

 स्मार्ट फोन  और स्ट्रीमिंग साइट्स जैसे प्लेटफार्म्स से हमारी किसी चीज को गौर से  समझने की  अवधि कम हो गई है। माइक्रोसॉफ्ट कॉर्पोरेशन के एक अध्ययन के अनुसार लोग आम तौर पर आठ सैकेंड के बाद एकाग्रता खो देते हैंजो मस्तिष्क पर तेजी से डिजिटल होती जीवनशैली के प्रभावों को उजागर करता है। इस शोध में कहा गया मनुष्यों की ध्यान अवधि एक गोल्ड फिश से भी कम हो गई है। अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डॉ ग्लोरिया मार्क का कहना है कि शॉर्ट वीडियोज एप ने ध्यान अवधि में होने वाली गिरावट में अहम भूमिका निभाई हैवहीं लंबे समय तक वीडियो देखने और स्क्रीन टाइम बढ़ने से हमारी एकाग्रता और स्मृति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उनके शोध के अनुसार 2004 मेंस्क्रीन पर औसत ध्यान अवधि औसतन ढाई मिनट थी  2012 में  यह 75 सेकंड हो गयी और फिर पिछले पांचछह वर्षों मेंयह औसत लगभग 47 सेकंड का हो चुका है|

जिसके कारण  लोगों की रुचि पढ़ने से ज्यादा देखने और सुनने की ओर बढ़ रही है|यह बदलाव सामाजिकतकनीकी और मनोवैज्ञानिक कारणों से हो रहा है। रॉयटर्स की डिजिटल रिपोर्ट के मुताबिक इकहत्तर  प्रतिशत भारतीय ऑनलाइन समाचार  देखना पसंद करते हैंवहीं केवल उनतीस  प्रतिशत लोग ही अखबार पढ़ते हैं। लोगों के पास समय कम होने के कारण वे लंबे लेखों और किताबों को पढ़ने के बजाय वीडियो और ऑ़डियो क्लिप के माध्यम से जानकारी प्राप्त करना पसंद कर रहे हैं |

इसने  हमारे पढ़ने के तरीकों पर भी खासा प्रभाव डाला हैयुवा पाठक ई-बुक्स और ऑडियोबुक को प्रकाशित  किताबों की तुलना में अधिक पसंद कर रहे हैं। इसका एक कारण है कि ई-बुक और ऑडियोबुकप्रिंटेड किताबों की तुलना में कम खर्चीले होते हैं और उन्हे आसानी से कहीं भी पढ़ा और सुना जा सकता है। कोविड महामारी के बाद भारत में भी ई-बुक्स और ऑडियोबुक का बाजार तेजी से बढ़ रहा हैवहीं पारंपरिक किताबों के प्रति लोगों का रुझान कम होता नजर आ रहा है। सिरकाना बुकस्कैन की एक रिपोर्ट में सामने आया कि साल 2023 में 2022 के मुकाबले प्रिंट किताबों की बिक्री में 2.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गईवहीं इसके विपरीत शोध वेबसाइट स्टेस्टिका के मुताबिक भारत में ऑडियोबुक का बाजार हर साल 10.51 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। इससे स्पष्ट होता है कि लोगों का रुझान अब किताबों के इतर ऑडियोबुक्स की ओर बढ़ रहा है।

स्टेस्टिका की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में स्मार्टफोन यूजर्स की संख्या 100 करोड़ के पार पहुँच गई हैजिनमें 90 प्रतिशत यूजर्स वीडियो कंटेंट देखते हैं। हालांकि वीडियो कटेंट मनोरंजक होते हैं और दर्शकों को आकर्षित करते हैं और पढ़ने की तुलना में अधिक मनोरंजक  अनुभव प्रदान करते हैं। वहीं इस तकनीकी दुनिया में शैक्षिक पढ़ाई के तरीके भी बदलते जा रहे हैंकिताबों और लेखों की जगह अब वीडियो लेक्चेर्स और डिजिटल मीडिया ने ले ली है। जहाँ एक ओर विजुअल और ऑडियो से जानकारी को समझना और सीखना आसान हो जाता है वहीं इससे छात्रों की पढ़ाई की आदतों पर प्रभाव पड़ सकता है। भारत की दिग्गज ऑनलाइन लर्निंग कंपनी अनएकेडमी के मुताबिक उनके पास 5 करोड़ से अधिक एक्टिव लर्नस पढ़ाई करते हैं। वहीं यूट्यूब जैसे स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म्स पर पढ़ने वालों की संख्या इससे कहीं अधिक है।

 जाहिर है वीडियो और ऑडियो कंटेंट  मनोरंजक होते हैं और लोगों को आकर्षित करते हैं। वे कहानियों को रोचक दृश्योंसंगीत और ध्वनि प्रभावों के साथ प्रस्तुत करते हैंजो पढ़ने की तुलना में अधिक मनोरंजक अनुभव प्रदान करते हैं।यह सच है कि लोग आजकल पढ़ने की बजाय देखना-सुनना ज़्यादा पसंद करते हैं। आंकड़े भी इस बात का समर्थन करते हैं कि लोग वीडियोफिल्मेंटीवी शो और ऑडियोबुक पर अधिक समय बिता रहे हैं। लेकिन अगर ऐसा चलता रहा तो हमारी लिखने और पढ़ने की आदत धीरे धीरे महज शैक्षाणिक कामों और लिखने पढ़ने से जुड़े अन्य पेशों तक ही सीमित हो जाएगी।  हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पढ़ने के भी अनेक लाभ हैं।पढ़ना लोगों की कल्पना शक्ति को परिष्कृत करता है जिससे सृजनात्मकता बढ़ती है तर्कशीलता का विकास होता है |इसलिए  पढ़ने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिएताकि भविष्य में हम मशीनों के गुलाम भर न बने रह जाए क्योंकि साहित्य संगीत और कला की धुरी पढ़ना है और इससे विहीन मनुष्य  पशु के समान होता है 

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 अमर उजाला में 09/07/2024 को प्रकाशित 

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