Tuesday, November 5, 2024

एआइ का पर्यावरण पर दुष्प्रभाव

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानि कृत्रिम बुद्धिमत्ता अब  हमारे दैनिक जीवन का एक अहम हिस्सा बनती जा रही हैं। वर्चुअल असिस्टेंट से लेकर स्मार्ट होम तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हर जगह है। चाहे चैट जीपीटी जैसे एआई जनित प्लेटफार्म पर हमे जटिल प्रश्नों के हल जानना हो या गूगल और एलेक्सा जैसे वर्चुअल असिस्टेंट्स पर अपनी आवाज भर से कोई काम कराना होआर्टिफिशियल इंटेलिजेंस धीरे धीरे हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बनने की ओर अग्रसर है। मगर क्या इस अचंभित कर देने वाली तकनीक के कुछ और पहलू हो सकते हैंजो भविष्य में पर्यावरण और मानव सभ्यता के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं?इस साल जारी हुई गूगल की वार्षिक पर्यावरण रिपोर्ट में चौकाने वाले आंकड़े सामने आये हैंसाल 2022  के मुकाबले 2023 में गूगल के डाटा सेंटर पर कार्बन उत्सर्जन फुटप्रिंट में तेरह प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है । यह वृद्धि मूल रूप से उसके डेटा सेंटरों और आपूर्ति श्रृंखलाओं में बिजली की खपत बढ़ने के कारण हुई। कंपनी का कहना है कि साल 2023 में उसके डेटा सेंटरों ने पहले की तुलना में 17 प्रतिशत अधिक बिजली का उपयोग किया और एआई टूल्स का उपयोग होने के कारण यह वृद्धि आने वाले सालों में और बढ़ेगी।जाहिर है कि एआई के उपयोग कई क्षेत्रों में परिवर्तनकारी बदलाव लाने के लिए किया जा रहा हैजिनमें जलवायु परिवर्तन से जुड़े समाधान भी शामिल हैं। लेकिन बढ़ती एआई तकनीक ने एक भारी कार्बन उत्सर्जन फुटप्रिंट जैसी समस्या उत्पन्न कर दी है। अध्ययनों से पता चलता है कि एआई चैटबॉट चैट-जीपीटी पर पूछी गई एक साधारण क्वेरीगूगूल खोज की तुलना में 10 से 33 गुना अधिक ऊर्जा का उपयोग करती है। वहीं इमेज आधारित प्लेटफार्म पर इससे कहीं अधिक ऊर्जा खर्च होती है।  

 दरअसल एआई मॉडल सामान्य गूगल खोज की तुलना में अधिक डेटा को प्रोसेस और फिल्टर करते हैं, अधिक काम का मतलब है कि कंप्यूटर को डेटा प्रोसेसिंग, स्टोरिंग और रिट्रीविंग के समय अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होगी। वहीं अधिक काम करने से उत्पन्न गर्मी को कम करने के लिए डेटा सेंटर्स पर अधिक शक्तिशाली एयर कंडीशनिंग  और अन्य ठंडे उपाय किये जाते हैं।यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया रिवरसाइड के एक अध्ययन के मुताबिक़ साल 2022 में, गूगल ने अपने डेटा केंद्रों को ठंडा रखने के लिए लगभग 20 बिलियन लीटर ताजे पानी का उपयोग किया। वहीं बीते साल माइक्रोसॉफ्ट की जल खपत में पिछले वर्ष की तुलना में 34 प्रतिशत की वृद्धि हुई। वर्तमान में डेटा सेंटर्स की खपत वैश्विक बिजली की खपत का 1 से 1.3 प्रतिशत है, मगर जैसे जैसे एआई टूल्स का उपयोग बढ़ेगा यह खपत भी बढ़ती जाएगी। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी IEA के अनुसार 2 तक यह आंकड़ा दोगुना होकर 3 प्रतिशत तक जा सकता है। इसके विपरीत, बढ़ते इलेक्ट्रिक वाहनों के बावजूद, ई-वाहनों की वैश्विक बिजली खपत मात्र 0.5% है। वहीं कई कई देशों में डेटा सेंटर्स की ऊर्जा खपत उनकी राष्ट्रीय माँग की दहाई हिस्सेदारी तक पहुँच गई है। आयरलैंड जैसे देश जहाँ टैक्स में छूट और प्रोत्साहन के कारण डेटा सेंटर्स की संख्या असामान्य रूप से अधिक है, आयरलैंड सेंट्रल स्टैटिक्स ऑफिस रिपोर्ट 2023 के अनुसार   यह हिस्सेदारी 18 प्रतिशत पहुँच गई |

 भारत में भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा सेंटर्स का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। हालांकि भारत में डेटा सेंटर्स की ऊर्जा और जल खपत के आंकड़े अभी सीमित हैंलेकिन आने वाले वर्षों में AI के बढ़ते उपयोग के साथयह स्थिति बदल सकती है।भारत की सिलिकॉन वैलीबेंगलुरु पानी की भारी कमी से जूझ रही हैशहर में डिजिटल बुनियादी ढांचे को संचालित करने वाले डेटा केंद्रों के चलते यहाँ यह समस्या और बढ़ गई है। अकेले बेंगलुरु में डेटा सेंटर्स की संख्या सोलह  है। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक बेंगलुरु के अलावा दिल्लीचैन्नई और मुंबई जैसे महानगरों में भी डेटा सेंटर्स में पानी की खपत बढ़ गई है। भारत में स्थापित डेटा केंद्रों की क्षमता 2 हजार मेगावॉट से 2029 तक  4.77 हजार मेगावाट तक पहुँचने की उम्मीद है। जिससे पहले से पानी की कमी से जूझ रहे भारत के सिलिकन वैली की डिजिटल महत्वाकांक्षाओं पर  संकट खड़ा हो जाएगा। 

इस समस्या के समाधान के लिए गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों डेटा केंद्रों के शीतलन के लिए  अपशिष्ट जल को पुनर्नवीनीकृत कर इस्तेमाल कर रही हैं। वहीं भारतीय डेटा केंद्र अभी भी ताजे  पानी की आपूर्ति पर निर्भर हैं।यहाँ यह भी महत्वपूर्ण है कि   केवल बिजली खपत की बात नहीं हैंडेटा सेंटर्स को ठंडा रखने के लिए पानी के संसाधनों की माँग बढ़ती जा रही है। जो भविष्य में भारत के जल संसाधनों पर दबाव डाल सकती है। हालांकि डेटा सेंटर्स पर पानी की खपत को लेकर अभी पर्याप्त डेटा सामने नहीं आया हैडेन मोइन्स रिवर पर एसोसिएटेड प्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका के आयोवा शहर में OpenAI के GPT-4 मॉडल को सेवा देने वाला एक डेटा सेंटर उस जिले की पानी की आपूर्ति का करीब 6 प्रतिशत  उपयोग करता है। वहीं इस मामले में कुछ विशेषज्ञों ने एक वैकल्पिक दृष्टिकोण पेश किया है| 

बॉस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के  एक अध्ययन के अनुसार,  AI के कॉर्पोरेट और औद्योगिक कामों के उपयोग से 2030 तक वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 5-10 प्रतिशत की कमी हो सकती है वहीं 1.3 ट्रिलियन से 2.6 ट्रिलियन डॉलर के राजस्व की भी बचत हो सकती है।

 इन पहलुओं को ध्यान में रखते हुएहमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विकास के साथ-साथ इसके पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों पर भी ध्यान देना चाहिए। जिससे हम एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए एआई के फायदों का लाभ उठा सकते हैं और इसके पर्यावरणीय असर को कम कर सकते हैं। ऐसा कर हम एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैंजहाँ तकनीक और प्रकृति दोनों के बीच तालमेल बना रहे।

दैनिक जागरण में ०५/११/२०२४ को प्रकाशित 

Wednesday, October 23, 2024

जिन्दगी में कभी हार न माने

 मैं जब दुखी होता  हूँ तो गाने सुनता हूँ और तुरंत फीलिंग हैप्पी वाला मामला हो जाता है  फिर गाने तो मूड बना ही देते हैं.मैं आजकल रमैया वस्तावैया का गाना  खूब सुन रहा हूँ  जीने लगा हूँ पहले से ज्यादा तुम पर मरने लगा हूँ आप कहेंगे मैं कौन सा बड़ा काम कर रहा हूँ .कहानी में सस्पेंस है मैं नए गाने कम ही सुनता हूँ. हमें तो ज्यादा अच्छा फिल्म गाईड का ये गाना लगता है आज फिर जीने की तमन्ना है आज फिर मरने का इरादा है आपने ध्यान दिया दोनों गाने में मर कर जीने की बात की जा रही है लेकिन फिर भी कितनी खुशी  है. क्योंकि वो प्यार में मर रहे हैं.पर जिन्दगी में कभी कभी कुछ ऐसा हो जाता है कि मूड ठीक ही नहीं होता. जैसे दोस्तों से अनबन, ब्रेकअप या कोई और तनाव. उसके बाद मन में न जाने कैसे नकारात्मक ख्याल आते हैं. जैसे दुनिया बेकार है .मेरे जीने का क्या फायदा. पर रिश्तों में मिली नाकामी के आगे अगर आपके  सारे सपने हार मान गए और आप ऐसे किसी ख्यालों में डूब रहे हैं तो ये आपकी  हार नहीं ये आपके सपनों की हार है. अरे आप हमेशा इश्क वाले लव के चक्कर में पड़ कर क्यूँ घनचक्कर बन जाते हैं. जिंदगी में और भी रिश्ते हैं जिनको हमारी जरुरत होती है. मरना ,जिंदगी के साथ अन्याय है क्योंकि जी रहे हैं तभी तो मर रहे हैं किसी के प्यार में. तो जब तक जिंदगी जियेंगे नहीं किसी के प्यार में कैसे मरेंगे.
रिश्ते कभी एक जैसे नहीं रहते उनका एहसासउनका रूप बदलता रहता है तो अगर आपको आपके प्यार का जवाब,प्यार से नहीं मिल रहा है तो कोई बात नहीं ये तो आप भी मानते हैं न कि जो होता है अच्छे के लिए होता है.आप जिसके प्यार में पागल होकर मरने की सोच रहे हैं वो आपके लायक था ही नहीं तो अच्छा ही हुआ न क्योंकि ऐसे लोग आपके जीवन में रहते तो और ज्यादा टेंशन देते तो आपको ब्रेकअप की पार्टी कर डालनी चाहिए न कि अपने अंदर सुसाइडल टेंडेंसीज को पैदा होने देना चाहिए.
प्यार की पींग जिंदगी की जंग में किसी पर मर कर ही बढ़ाई जा सकती है न कि खुद को मारकर. जिंदगी के सफ़र में हर क़दम पर आपको नयी चाल चलनी होती है...आगे बढ़ने का रास्ता तैयार करना होता है..जिसके लिए सबसे जरूरी है जिंदा रहना. दौड़ में जितने लम्बे समय तक बने रहेंगे.....उतने ज्यादा दांव आप पर लगेंगे और तब आपके काम यही अनुभव आयेंगे. सिर्फ़ फिल्मों में ही नहीं असल ज़िंदगी के भी कई ऐसे किस्से हैं, इमरोज़ और अमृता प्रीतम से लेकर नीना और क्रिकेटर विवियन रिचर्ड्स हों या रतन टाटा.ये सब प्यार में पड़े और असफल भी रहे.अगर कहें कि प्यार में मिली असफलता ही इनकी ताक़त बन गयी तो गलत न होगा. प्यार की असफलता को जिंदगी की सफलता से जोड़ दीजिए और फिर देखिये कि आप पर मरने वाले कितने लोग हो जायेंगे लेकिन इसके लिए थोडा इन्तजार करना होगा क्यूंकि सफलता नूडल्स की तरह दो मिनट में तैयार नहीं होती हैं .जहाँ इश्क की राहें जुदा हो जाएँ.उसे सूफ़ियाना मोड़ देकर छोड़ दीजिये. डर्टी पिक्चर का वो गाना याद करिए तो जरा ...तेरे वास्ते मेरा इश्क सूफ़ियाना.ताकि जब भी कभी फुरसत के लम्हे मिलें तो यही यादें आकर आपकी पीठ सहलाएं.

प्रभात खबर में 23/10/2024 को प्रकाशित 

Monday, October 21, 2024

अश्लील वीडियो और कठघरे में नैतिकता

 

इस बदलते दौर में तकनीक ने हमारे जीवन को कई तरह से आसान और सुविधाजनक बनाया हैलेकिन इसके साथ ही मानवीय संवेदनाओं पर गहरे घाव भी किये हैं। जैसे-जैसे तकनीकी प्रगति हो रही हैहमारे समाज में संवेदनहीनताहिंसा और आपराधिक गतिविधयों का एक नया चेहरा उभर रहा है। अब अपराधियों के पास डिजिटल तकनीक के रूप में एक ऐसा हथियार हैजिससे वे अपनी घिनौनी मंशाओं को पूरा करने के लिए बेतहाशा इस्तेमाल कर रहे हैं। इसी तकनीक की आड़ में एक नया अपराध तेजी से फल-फूल रहा है- रेप वीडियोज को खरीदने-बेचने का कारोबार। अपराधी डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का सहारा लेकर ऐसे घिनौने अपराधों के वीडियोज को रिकॉर्ड करउन्हें न केवल बेच रहे हैंबल्कि एक पूरा काला कारोबार खड़ा कर चुके हैं। हालांकि यह केवल अपराधियों तक ही सीमित नहीं हैबल्कि समाज का एक तबका भी इसका एक हिस्सा बन गया हैजो ऐसे वीडियोज को इंटरनेट पर खोजता और देखता है। जब भी रेप जब भी कोई रेप का मामला सुर्खियों में आता हैउस वक्त उस घटना से जुड़े तथाकथित वीडियो को लोग इंटरनेट पर खोजने में जुट जाते हैं। हाल में पब्लिका द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्टइस प्रवृत्ति की घिनौनी हकीकत को और उजागर करती है। हाल में हुई कोलकाता के आरजी मेडिकल कॉलेज की महिला डॉक्टर की हत्या और रेप के मामले के खबरों में आने के बाद गूगल ट्रेंड्स पर पीड़िता के नाम से रेप वीडियो की खोजों में वृद्धि देखी गई। इससे पहले भीजेडीएस नेता प्रज्वल रेवन्ना के कथित सेक्स स्कैंडल केस में भी इसी तरह का पैर्टन सामने आया थाजहाँ गूगल और पॉर्न साइट्स पर मामले से जुड़े वीडियो देखने की कोशिश की गई। इस तरह के वीडियो देखने वालों को महज कौतहुल या सेंशेलेनल कंटेंट की तलाश की आड़ में बरी नहीं किया जा सकता। इस तरह से सर्च करने वाले लोगों में एक गहरी संवेदनहीनता झलकती हैजिसमें वे पीड़िता का दर्द और उसकी पीड़ा को महज एक मनोरंजन का साधन समझ लेते हैं।

 भारत में रेप और असहमति से बनाये गये इन सेक्स वीडियोज का बड़ा कारोबार हैइसकी जड़ें शहरों के ठिकानों से लेकर ऑनलाइन बाजारों तक फैली हुई हैं। पहले ये वीडियो देश के कस्बों और शहरों के एक कोने में सीडी और पेन ड्राइव के माध्यम से बेचे जाते थे। लेकिन इंटरनेट के आने के साथयह काला कारोबार अब इन्हीं इन्क्रिप्टेड ऐप्स पर चला गया हैजहाँ एक बार ऑनलाइन हो जाने के बाद क्लिप्स को रोकना संभव नहीं है। वाहट्सअपटेलीग्राम जैसे मैसेजिंग ऐप्स पर एन्क्रिप्शन की आड़ में इस तरह के वीडियो के लिंक खुलेआम बेचे जा रहे हैं। इन एप्स पर कथित रेप वीडियोजचाइल्ड पॉर्नोग्रॉफी से संबंधित वीडियो चंद पैसों में बेची जाती है। फैक्ट चैकिंग संस्था बूम की एक रिपोर्ट के मुताबिक इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म्स पर भी ये अपराधी अपनी पैठ जमाये हुए हैं। इंस्टाग्राम से ये अपराधी लिंक के जरिये प्राइवेट टेलीग्राम चैनल पर ले जाते हैं जहाँ यह काला कारोबार होता है। वहीं रिपोर्ट में कहा गया है कि सोशल मीडिया साइट्स पर अगर आप ऐसे एक आपत्तिजनक पेज को फॉलो करते हैं तो एल्गोरिदम और भी इसी तरह के अकाउंट आपको सुझाता है। लिंक के लिए यूपीआईइंस्टेंट पे से भुगतान करने के बाद इच्छुक सब्सक्राइबर को टैराबॉक्स और क्लाउड एग्रीगेटर ऐप्स की ओर ले जाया जाता है। जहां वे इन अवैध और अमानवीय सामग्री तक पहुँच कर उसे डाउनलोड कर सकते हैं। एक बार डाउनलोडिंग के बाद इसे ट्रेस करना या रोकना लगभग असंभव हो जाता है।

 अमेरिकी गैर लाभकारी संस्था नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लॉइटेड चिल्ड्रन की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत दुनिया में बाल यौन शोषण सामग्री का सबसे बड़ा निर्माता है। पॉक्सो एक्ट जैसे कठिन प्रावधानों और सजा के बाद भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर बाल यौन शोषण सामग्री भरी हुई है। टेलीग्राम जैसे ऐप्स पर ऐसे अनेक चैनल्स हैं जो बाल यौन शोषण सामग्री को चंद पैसों से लेकर हजारों रुपयों तक बेचते हैं। यह व्यापार इतनी तेजी से बढ़ता जा रहा है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियां भी इसे रोकने में असमर्थ नजर आ रही हैं। इन एन्क्रिप्टेड चैनलों को बंद करना भी एक अस्थायी समाधान हैक्योंकि नए चैनल्स कुछ ही मिनटों में शुरू हो जाते हैं। इस अनैतिक व्यापार ने न केवल कानून को चुनौती दी हैबल्कि समाज की नैतिकता और संवेदनशीलता को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है। इस कड़ी में एआई जैसी तकनीक आने से अपराधियों के हौसले और बढ़ गये हैं। जहाँ तकनीक की मदद से किसी भी शख्स की सामान्य तस्वीर को फेक न्यूड तस्वीरों और डीप फेक वीडियो में बदला जा सकता है। टेक रिसर्च संस्था वर्ज की एक रिपोर्ट के मुताबिक हाल ही में अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को प्रशासन ने 18 वेबसाइट्स और ऐप्स के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया हैजो इस तरह के न्यूड फेक वीडियो को बनाने में मदद करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ये वेबसाइट्स केवल 2024 के पहले छह महीनों में 200 मिलियन से अधिक बार देखी गई थीं। आज के दौर में किसी के भी शरीर का हक छीनकर उसकी इज्जत को तार तार किया जा सकता हैऔर तकनीक की मदद से इसे बेचनाफैलाना कितना आसान हो गया है।

 साल 2023 में सूचना और प्रसारण मंत्रालयभारत सरकार ने सोशल मीडिया साइट्स जैसे फेसबुकयूट्यूब और टेलीग्राम जैसी कंपनियों को इस तरह की सामग्री के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए नोटिस जारी किया था। इसके बाद यूट्यूब ने अपनी नई कम्युनिटी गाइड लाइन्स के मुताबिक अक्टूबर से दिसंबर माह के बीच करीब 25 लाख वीडियो को अपने प्लेटफॉर्म से हटाया था। वहींटेलीग्राम पर 'स्टॉप चाइल्ड अब्यूजचैनल के डेटा के मुताबिक इस साल अब तक करीब 6 लाख 70 हजार चैनल्स को बैन किया जा चुका हैजिनमें अगस्त महीने में अकेले 52 हजार के करीब चैनलों को बैन किया गया।पॉर्नोग्राफी और इस तरह की यौन हिंसा के वीडियो देखने की आदत के बीच गहरा ताल्लुक है।

मनोचिकित्सक मानते हैं कि इस तरह की सामग्री देखने से व्यक्ति की यौन और हिंसा के प्रति सामान्य दृष्टि विकृत हो गई है। भारत जैसे देश में जहां यौन शिक्षा की कमी भी इस समस्या को और गंभीर कर देती है। दुनियाभर में पॉर्न के उपभोग पर मंकी इंसाइडर नामक संस्था की एक रिपोर्ट में चौकाने वाला खुलासा सामने आया हैरिपोर्ट में कहा गया है कि पॉर्न वीडियो देखने के मामले में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर आता है। जिनमे 18 से 24 साल के युवाओं की संख्या 24 प्रतिशत है।ब्रिटिश जर्नल ऑफ क्रिमिनोलॉजी में छपी एक रिपोर्ट के अनुसारमुख्यधारा की पोर्न साइट्स पर पहली बार आने वाले हर आठ में से एक उपयोगकर्ता को ऐसे वीडियो दिखाए जाते हैंजिनमें यौन हिंसा या बिना पीड़ित की सहमति के रिकॉर्ड की गई गतिविधियों का उल्लेख होता है। यह आंकड़ा हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि इंटरनेट पर इस तरह की सामग्री कितनी सामान्य होती जा रही है और किस हद तक हमारी मानसिकता और नैतिकता को प्रभावित कर रही है। इस समस्या का समाधान हम सिर्फ कानून से नहीं , बल्कि जागरूकता लाकर ही कर सकते हैं। ताकि हम न केवल इस तरह की सामग्री को नकारेबल्कि इसके खिलाफ खड़े  हों। हमें समझना होगा कि इस तरह का हर क्लिकहर शेयर किसी की जिंदगी को तबाह कर सकता है।  

 अमर उजाला में दिनांक 21/10/2024 को प्रकाशित 


Tuesday, September 17, 2024

सुलझाने की बजाय उलझा रही तकनीक

 

आज के डिजिटल युग में तकनीक ने हमारी रोजमर्रा की जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया है। इंटरनेट,ऐप्स और एआई जैसी तकनीकों ने न केवल हमारे कामकाज को अधिक सुविधाजनक और तेज बना दिया हैबल्कि संवाद के तरीके को भी आमूल-चूल रूप से बदल दिया है। जहाँ एक ओर यह तकनीक संचार को त्वरित और सुलभ बना रही हैवहीं दूसरी ओर इसका प्रभाव मानवीयता पर भी पड़ा है। संचार में मानवीय भावनाएँआवाज़ की गर्माहटऔर चेहरों के भाव धीरे-धीरे गायब होते जा रहे हैं। 
जो समस्याओं को सुलझाने के बजाय और बिगाड़ रही है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स हों या हमारे जीवन को आसान बनाने वाली ऑनलाइन कंपनियाँ ये हमारे जीवन का आज अहम हिस्सा बन गई है। चाहे अमेजन जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफार्म सामान मंगाना हो या ऊबर,ओला जैसी कैब सर्विस से कहीं जानाइन एप बेस्ड कंपनियों ने हमारे रोजाना के कामों को सरल और सुविधाजनक बना दिया है। मगर इसका एक और पहलू भी हैइन तकनीकों और ऑनलाइन सेवाओं के फायदे के साथ कुछ चुनौतियाँ और समस्याएं भी जुड़ी हुई हैं। इन प्लेटफार्म्स पर हमारे पास सीधे और व्यक्तिगत संपर्क की कमी होती हैजिससे हमारी समस्याओं का समाधान मुश्किल हो जाता है। सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म फेसबुकजिसने भारत में 32 करोड़ यूज़र्स का आंकड़ा पार कर लिया हैउपयोगकर्ताओं की समस्याओं के समाधान के लिए केवल हेल्पसपोर्ट और रिपोर्ट जैसी सुविधाएं प्रदान करता है जो कि एक प्री डिसायडेड एक तरफा तंत्र के अलावा कुछ भी नहीं है। 
यह स्थिति दर्शाती है कि कैसे तकनीकी सुविधाएँ हमारे समस्या समाधान की प्रक्रिया को जटिल बना सकती हैं और मानवीय संबंधों को एक तंत्र में बदल सकती हैं। उदाहरण के लिएयदि आप अमेज़न या फ्लिपकार्ट से कोई उत्पाद खरीदते हैं और वह ख़राब निकलता हैतो आपको अकसर चैटबॉट से ही मदद मिलती है। इसके बादवास्तविक कस्टमर सर्विस प्रतिनिधि से संपर्क करने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। इसी तरहअगर फूड डिलीवरी ऐप पर आपके ऑर्डर में खराब या गलत भोजन आता हैतो आपको स्वचालित सपोर्ट और लंबे इंतजार का सामना करना पड़ता है। इन प्लेटफार्म पर स्वचालित सहायता और सीमित विकल्पों के कारणकई बार समस्या मिनटों में सुलझने की बजाय घंटों तक उलझी रहती है। यह स्थिति ग्राहक को इतना निराश कर देती है कि उन्हें अंततः सोशल मीडिया पर अपने मुद्दे उठाने पड़ते हैं। हाल ही में CCW Digital और कस्टमर मैनेजमेंट सर्विस द्वारा किए गए अध्ययन में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है रिपोर्ट में बताया गया है कि 55% उपभोक्ताओं का अनुभव चैट-बेस्ड सपोर्ट में बदतर हुआ हैजो यह दर्शाता है कि स्वचालित सहायता तंत्र अकसर मानवीय समाधान की कमी को पूरी नहीं कर पाती। तकनीक ने ग्राहक सेवा के क्षेत्र में एक बुनियादी परिवर्तन लाया है। ग्लोबल स्ट्रेटजिक बिज रिपोर्ट के मुताबिक साल 2023 तक विश्व भर का कॉल सेंटर का बाजार 332 बिलियन डॉलर का थाजिसमें भारत की हिस्सेदारी करीब दस  प्रतिशत हैवहीं नैसकॉम के मुताबिक भारत में 5 करोड़ लोग इन बीपीओ और कॉल सेंटरों से रोजगार प्राप्त करते हैं।
 मगर ग्राहक सेवा क्षेत्र में तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल से इन नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है। बड़ी कंपनियों ने ग्राहक सेवा में वेटिंग टाइम को कम करने के लिए लाइव चैट का विकल्प दिया। जिसमें ग्राहकों को अपनी समस्याएं लिख कर देने के लिए प्रेरित किया जाने लगा। और धीरे-धीरे मौखिक संचार को कम कर कंपनियों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस चैटबॉट्स को तरजीह देनी शुरू कर दीइससे कंपनियों को ग्राहक सेवा में खर्च कम पड़ रहा है। इस कटौती की शुरुआत कॉल सेंटर एग्जीक्यूटिव की संख्या घटाने से शुरू कर दी गई है।
वहीं विशेषज्ञ ये मानते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते प्रभाव से अधिकांश कॉल सेंटर्स का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। जेनेरेटिव एआई के व्यापक इस्तेमाल से एक साल के भीतर पारंपरिक कॉल सेंटर की प्रक्रियाओं में तेजी से बदलाव आएगा और एआई ग्राहकों की समस्याओं का अनुमान लगाकर उनका समाधान करेगी। कैंपेन एशिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक मई 2023 में इंडियन एयरलाइन्स के चैटबॉट 'महाराजाने 93 प्रतिशत ग्राहक सवालों का समाधान बिना कॉल सेंटर एजेंट्स के पास भेजे किया है। कंपनी का कहना है कि ग्राहकों की समस्या से जुड़े करीब 5 लाख कॉल हर महीने आते हैं जिसमें एआई ने काफी कटौती कर दी है।कंपनियों की लागत कम करने के लिए ये आसान तरीका है ताकि लोगों की कॉल सेंटर्स पर निर्भरता कम की जा सकेमगर इसके लिए कई प्रकार के बुरे हथकंडे भी अपनाये जाते हैं जैसे कि ज्यादातर समस्याओं के लिए FAQ और आईवीआरएस का उपयोग करना।
 कई ऐप्स कॉल हेल्पलाइन की लिंक तक पहुँचने की प्रक्रिया को इतना जटिल बना देते हैं कि ग्राहकों को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। न्यू वाइस मीडिया द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसारखराब ग्राहक सेवा के कारण हर साल करीब 75 बिलियन डॉलर के व्यापार की हानि होती है। जिनमें कॉल सेंटर्स और खराब सहायता तंत्र भी एक  अहम कारण होते है।हालांकिकंपनियों की लागत में कटौती के दीर्घकालिक प्रभाव चिंताजनक है। तकनीक के अंधाधुंध प्रयोग से मानवीय संवाद का स्थान एक निर्जीव तंत्र ने ले लिया हैजहाँ अब समस्याओं का समाधान मशीनों और बिना मौखिक संवाद से बातचीत द्वारा किया जाता है वहीं यह सिर्फ व्यापार और ग्राहक सेवा तक ही सीमित नहीं हैबल्कि इसका असर हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक संबंधों पर भी पड़ रहा है। तकनीक जब हमारे संचार के हर पहलू को नियंत्रित करती है तो हम अपनी मानवीय संवेदनाओं से दूर होते जाते हैं। अंत में हमें इस बात पर विचार करना होगा कि तकनीक हमारे जीवन को जितना आसान बना रही हैउतना ही हमें मानवीय मूल्यों से दूर कर रही है। यह एक महत्वपूर्ण समय है जब हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तकनीक हमें उलझाने के बजाय हमारे जीवन को सुगम बनाए।
अमर उजाला में 17/09/2024 को प्रकाशित 

Tuesday, September 10, 2024

जीवन की यात्रा

 

बचपन,जवानी ,और बुढ़ापा जीवन के ये तीन हिस्से माने गए हैं ,बचपन में बेफिक्री जवानी में करियर और बुढ़ापा मतलब जिन्दगी की शाम पर जीवन में एक वक्त ऐसा आता है जब बचपने जैसी बेफिक्री रहती है जवानी में करियर जैसा कुछ  बनाने की चिंता और ही अभी जिन्दगी की शाम हुई होती है यानि बुढ़ापा .शायद यही है अधेड़ावस्था जब जिन्दगी में एक ठहराव होता है पर यही उम्र का वो मुकाम है जब मौत सबसे ज्यादा डराती हैउम्र के इस  पड़ाव पर जो कभी हमारे बड़े थे धीरे धीरे सब जा रहे हैं और हम बड़े होते जा रहे हैं. मुझे इतना बड़प्पन नहीं चाहिए कि हमारे ऊपर कोई हो ही  .मौत किसे नहीं डराती पर जिंदगी में एक वक्त ऐसा आता है. जब मौत के वाकये से आप रोज दो चार होने लगते हैं , मुझे अच्छी तरह याद है बचपन के दिन जब मैंने होश संभाला ही था. कितने खुशनुमा थे बस थोड़ा बहुत इतना ही पता था कि कोई मर जाता है पर उसके बाद कैसा लगता है उसके अपनों को ,कितना खालीपन आता है. जीवन में इस तरह के तो कोई सवाल जेहन में आते थे और ही कभी ये सोचा कि एक दिन हमको और हमसे  जुड़े लोगों को मर जाना है  हमेशा के लिएमम्मी पापा का साथ दादी –बाबा  का सानिध्य,लगता था जिन्दगी हमेशा ऐसी ही रहेगी. हम सोचते थे कि जल्दी से बड़े हो जाएँ सबके साथ कितना मजा आएगा पर बड़ा होने की कितनी बड़ी कीमत हम सबको चुकानी पड़ेगी इसका रत्ती भर अंदाज़ा नहीं था . मौत से पहली बार वास्ता पड़ा 1989 में. बाबा जी का देहांत हुआ हालांकि वह ज्यादातर वक्त हम लोगों के साथ ही रहा करते थे पर अपनी मौत के वक्त गाँव चले गये थे. उनकी मौत की खबर आयी,गर्मी की छुट्टियाँ चल रही थीं.  पहली बार किसी के जाने के खालीपन को महसूस किया शायद यह मेरे बड़े होने की शुरुआत थी .  जल्दी ही हम सब अपनी जिन्दगी में रम गए. तीन साल बाद फिर गर्मी की छुट्टियों में दादी की मौत देखी वह भी अपनी आँखों के सामने .उस दिन  जब मैं सुबह की सैर के लिए निकल रहा था दादी अपने कमरे में आराम से सो रही थी ,मुझे बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि अगली सुबह वह अपने बिस्तर पर नहीं बर्फ की सिल्लियों पर लेटी होंगी . जिन्दगी बहुत क्रूर होती है .दादी जल्दी ही यादों का हिस्सा बन गयीं .हम भी आगे बढ़ चले .जिन्दगी खुल रही थी ,भविष्य ,करियर ,परिवार के कई पड़ाव पार करते हुए जिन्दगी को समझते हुए बीच के कुछ साल फिर ऐसे आये जब हम भूल गए कि मौत सबकी होनी है.

बाबा की मौत के बाद से किसी अपने के जाने से उपजा खालीपन लगातार बढ़ता रहा. बचपन के दिन बीते,  हम जवान से अधेड़ हो गए और माता –पिता जी बूढ़े जिन्दगी थिरने लग गयी. अब नया ज्यादा कुछ नहीं जुड़ना है. अब जो है उसी को सहेजना है पर वक्त तो कम है आस –पास से अचानक मौत की ख़बरें मिलने बढ़ गईं हैं. पड़ोस के शर्मा जी हों या चाचा- मामा जिनके साथ हम खेले कूदे बड़े हुई धीरे –धीरे सब जा रहे हैं. सच कहूँ तो उम्र के इस पड़ाव पर अब मौत ज्यादा डराती है.

प्रभात खबर में 10/09/2024 को प्रकाशित 

 

 

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