Tuesday, July 13, 2021

सौगत और मैं राजौरी यात्रा पंचम भाग(यात्रा संस्मरण)



अगला दिन धर्म कर्म के नाम पर था दोनों परिवारों ने वैष्णो देवी जाने का निश्चय किया
।मैं वैष्णो देवी करीब दस साल पहले आया था । ये मेरी तीसरी वैष्णो देवी यात्रा होने वाली थी । हम अभी राजौरी से तीस किलोमीटर आगे चले होंगे तो रास्ते में एक भयानक एक्सीडेंट हुआ देखा मोटरबाईक औए एक कार में ।

एक घायल युवक रोड पर पड़ा था उसको देख कर तो ऐसा लगा कि उसके जीवन की अंतिम सांसें चल रही हों, हमारे साथ चल रहे पुलिस वालों ने कई गाड़ियाँ रोक कर उस युवक को अस्पताल पहुंचवाने की कोशिश की,लेकिन कोई फायदा नहीं वे लोगों से निवेदन कर रहे थे तभी भाभी ने फैसला किया कि उस युवक को अपनी गाड़ी में सवार कराया जाए ।
राजौरी का जिला अस्पताल वहां से दूर था और हम लोग विपरीत दिशा में जा रहे थे । जहां कोई अस्पताल पास में नहीं था । ड्राईवर रशीद ने बताया कि यहां से पाँच किलोमीटर दूर एक सेना का अस्पताल था पता नहीं वे उस युवक का इलाज करेंगे या नहीं । भाभी ने फैसला किया कि किसी भी हालात में इसे अस्पताल ले चलेंगे और हमारी दोनों गाड़ियां अपनी अधिकतम गति से उन पहाड़ी सड़कों पर दौड़ने लगीं । तब मुझे एहसास हुआ कि इस खूबसूरत जगह पर जीवन कितना दुश्वार है चारों और पहाड़ उन पर घूमती हुई कम चौड़ी सड़कें और हर तरफ जंगल । ऐसे में कोई भी दुर्घटना खतरनाक हो सकती है । दोनों गाड़ियां सेना के बैरीकेटिंग को नजरंदाज  करते हुए सेना के अस्पताल पहुंची । वहां तुरंत उसको भर्ती कर लिया गया हम सेना के मानवीय रूप से प्रभावित हुए बगैर ना रह सके चूंकि सेना वहां लंबे समय से है इसलिए जगह-जगह उनके कैम्प और अस्पताल बने हैं । सड़कों और पुलों के मामले में सीमा सड़क संगठन (बी आर ओ) ने बहुत अच्छा काम किया है ऐसी मुश्किल जगहों पर सड़क बनाना आसान काम नहीं है ।
       चार घंटे बाद हम कटरा पहुंच गए जहां से सिर्फ पाँच  मिनट के बाद हम वैष्णो देवी के हैलिपैड पर थे । तकनीक ने यात्रा का समय कितना घटा दिया हेलीकॉप्टर की उड़ान मात्र पाँच मिनट की थी । चालक के बगल में दो लोग और पीछे चार लोग बैठाए जाते हैं आगे बैठने वालों को हिदायत दी जाती है कि चालक से बात ना करें और मशीनों को ना छेड़े । जगह की कमी के कारण चालक अपनी सीट पर लटक कर बैठा था उसे देखकर मुझे भरी हुई टैक्सी याद आ गयी जिसका ड्राइवर ज्यादा सवारियों को बैठाने के लिए अपनी जगह भी कुर्बान कर देता है  
     हेलीकॉप्टर से उड़ते हुए कटरा रेलवे स्टेशन दिखा । जहां श्री नगर से जम्मू को जोड़ने वाली रेल पटरी बिछाने का काम तेजी से चल रहा है, इस रेल लाइन के शुरू होने के बाद जम्मू से श्रीनगर जाना पर्यटकों के लिए आसान हो जाएगा अभी
जम्मू श्रीनगर से सिर्फ हवाई और सड़कमार्ग से जुड़ा है । इस रेल लाइन को पहाड़ों के अंदर से निकाला जा रहा है जिससे पर्यावरण को कम से कम नुक्सान हो । पहाड़ के ऊपर से रेलवे लाइन निकालने में जंगलों को काटना पड़ता ।
      दो  किलोमीटर पैदल चलने के बाद हम मंदिर के प्रांगण में थे । धर्म का कारोबार चरम पर था । एक संयोग रहा है कि मैं पहली बार वैष्णो देवी 1991 में दूसरी बार 2001 में और अब 2012 में आ रहा था हर बार मंदिर में परिवर्तन और कुछ नहीं नई मूर्तियां दिखती, मंदिर लगातार भव्य हो रहा है, भगवान के पैसा भी खूब आ रहा है । भगवान को रूप बदलते देखना अच्छा लगता है । आखिर वो भक्तों की परीक्षा ना ले तो भक्त उसे  भगवान क्यों माने । पिछले बीस  सालों में वैष्णो देवी उत्तर भारत में धार्मिक पर्यटन के बड़े क्षेत्र के रूप में उभरा है उसमें कुछ फिल्मों और टी सीरीज कैसेट  कंपनी के मालिक स्व. गुलशन कुमार का बड़ा हाथ है । मैं तो निरपेक्ष रूप से धर्म के इस  मर्म को समझ रहा था जहां कहीं घोड़े वाला ठग रहा है कहीं बैटरी टैक्सी वाला ,प्रसाद के नाम पर सब जय माता दी  के नाम पर,सुरक्षा के नाम पर डर भगवान के दरबार में जहां सब बराबर हैं वहां वी आई पी दर्शन भी था । हमने फटाफट दर्शन किये और पैदल लौटने का फैसला किया गया क्योंकि शाम हो गई थी और हेलीकॉप्टर रात में नहीं चलते । उस दिन रात में  दो  बजे राजौरी पहुंचे सन्नाटे में परवेज ने बताया कि आज से पाँच साल पहले रात में तो क्या शाम के बाद इस सड़क पर निकलना असंभव था पर अब हालात एकदम सामान्य हैं ।
         अगले दिन हम सो ही रहे थे तभी मुझे लगा कि कोई मुझे आवाज दे रहा है सुबह के सात  बजे थे पता चला सौगत बकरीद होने के कारण नमाज की तैयारियों का जायजा सुबह से ही ले रहे थे उसी कड़ी में हमारे गेस्ट हाउस आ गए । मुझे आदेश मिला कि हम जल्दी तैयार हो जाएं घर चलना है हम सभी ने आदेश का पालन किया । थोड़ी देर में एक सरप्राइज़ हमारे लिए था जो मेरे लिए अप्रत्याशित था । मैं यह मान कर चल रहा था कि आज बकरीद होने के कारण स्वागत की व्यस्तता ज्यादा रहेगी पर सौगत नें सुबह सुबह सब व्यवस्था का जायजा लेकर पूरा दिन हमारे साथ बिताने का फैसला किया । आज कहीं नहीं जाना सामने लॉन में चटाई बिछ गई और सोफे लग गए परिवार का हर सदस्य अपने-अपने समूह के साथ बैठ गए । पहले क्रिकेट और बैडमिंटन हुआ फिर गाना बजाना । हम और सौगत इन सबसे दूर गुफ्तगू में व्यस्त हो गए कुछ पुराने किस्से कुछ नई कहानी और बीच में हम सब की जिंदगानी और इन सब में दोपहर होने को आयी । समय कैसे पंख लगा के उड़ा पता ही नहीं चला । बीच में सौगत ने कैमरे पर अपना कमाल दिखाया आज से दस साल पहले खींचे उसके कुछ फोटोग्राफ आज भी मेरे घर की शोभा बढ़ा रहे हैं । एक बार फिर उसने कुछ कमाल की तस्वीरें निकाली ।
      अचानक उसने कहा आज का लंच कुछ अलग तरीके से किया  जाए और फिर क्या था घर में लगे केले के पत्ते काटे जाने लगे उनको धोकर एक शानदार लंच का इंतजाम किया गया । केले पर मछली और चावल इसके अलावा कुछ और  मांसाहारी व्यंजन और भी थे । मैंने मछली पर ध्यान केंद्रित किया क्योंकि ट्राउट लखनऊ में तो मिलने से रही इस गरीब मास्टर को । सौगत के घर से एक पहाड़ी पर मुझे एक किला पिछले दो दिनों से दिख रहा था । मैंने कहा,वहां क्या है? सौगत ने पूछा,चलेगा क्या ? मैंने कहा, हाँ । बस फिर क्या, थोड़ी देर में लश्कर तैयार डी.सी.साहब की गाड़ी चल पड़ी दो  किलोमीटर की ऊंचाई पर । वह किला पुराना था पर अब वहां सेना का कब्जा है और खरगोशों की पूरी कॉलोनी बसी हुई थी कुछ छोटे, कुछ बड़े और कुछ एकदम बच्चे, रात घिर रही थी राजौरी बिजली में जगमग कर रहा था हवा ठंडी थी सूरज डूब रहा था मेरा मन भारी हो रहा था कल मुझे अपनी दुनिया में लौटना है आज की रात राजौरी की आखरी रात थी पर मुझे लगता है जैसे जैसे उम्र बढ़ रही है मैं जिंदगी के प्रति निर्मम होता जा रहा हूं । यह सब कुछ तो सपने जैसा लग रहा है अब वापस लौटने का वक़्त था । रात को  खाने पर मेरी खास पसंद पर मटन बना था जो जरूरत से ज्यादा स्वादिष्ट था । मैं पिछले पाँच दिन से लगातार मांसाहार कर रहा था । भारत में भ्रमण के दौरान ऐसा पहली बार हुआ था । हम आखरी बार खाने की टेबल पर साथ -साथ बैठे शायद पहली बार मैंने सौगत को थोड़ी देर के लिए जज्बाती होते देखा सौगत इस मामले में एकदम अलग है वह अपनी भावनाएं कभी नहीं दिखाता वह क्या सोच रहा है कोई नहीं जान सकता खाने के बाद उसने फिर रोक लिया हम इधर उधर की बातें करने लग गए । मैंने औपचारिकता वश उसे शुक्रिया कहा तो उसने मुझे झिड़कते हुए कहा इस सबकी मुझे जरूरत नहीं अगले दिन हम भारत पाकिस्तान सीमा पर जाने वाले थे उसके बाद वहीं से जम्मू के लिए निकलना था जहां से मुझे लखनऊ लौटना था सौगत से स्टेशन पर मिलने की उम्मीद थी क्योंकि वह भी उसी दिन दिल्ली जा रहा था ।
भारतीय रेल के जून 2021 अंक में प्रकाशित 

x

1 comment:

डॉ. मनोज मिश्र said...

जय हो वैष्णो मइया की ...हम पढ़ रहे हैं ...जानदार यात्रा विवरण।

पसंद आया हो तो