Friday, November 23, 2018

चुनाव प्रचार में 'जंग' का मैदान

हाल ही में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की एक फर्जी तस्वीर को सोशल मीडिया पर खूब  शेयर किया गया  जिसमें वो मांस  खाते नजर आ रहे थे .देखते देखते ये फेक न्यूज वाइरल हो गयी .देश के चार राज्यों में विधानसभा चुनाव में मतदान हो रहे  है.ये विधानसभा चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इनके तुरंत बाद लोकसभा चुनाव की बारी आ जायेगी ,और इसी के साथ फेक न्यूज का दौर सोशल मीडिया भी जोर शोर से चल पड़ा है .पहले चुनाव ज़मीन पर  लादे जाते थे पर अब सोशल मीडिया भी जंग का मैदान बन चुका है जहाँ किसी भी तरह मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की जा रही है .ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने पोस्ट ट्रुथ’ शब्द को वर्ष 2016 का वर्ड ऑफ द इयरघोषित किया था । उपरोक्त शब्द को एक विशेषण के तौर पर परिभाषित किया गया हैजहां निजी मान्यताओं और भावनाओं के बजाय जनमत निर्माण में निष्पक्ष तथ्यों को कम महत्व दिया जाता है।यहीं से शुरू होता है फेक न्यूज का सिलसिला .फेक न्यूज ज्यादातर भ्रमित करने वाली सूचनाएं होती हैं। अक्सर झूठे संदर्भ या गलत संबंधों को आधार बनाकर ऐसी सूचनाएं फैलाई जाती हैं। जून 2016 में देश 20 करोड़ जीबी डाटा इस्तेमाल कर रहा था। यह आंकड़ा मार्च 2017 में बढ़कर 130 करोड़ जीबी हो गया जो लगातार बढ़ रहा है।इंटरनेट ऐंड मोबाइल असोसिएशन ऑफ इंडिया और कंटार-आईएमआरबी की रिपोर्ट के अनुसार बीते जून तक देश में इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं की संख्या पांच करोड़ हो चुकी थीजबकि दिसंबर 2017 में इनकी संख्या 4.8 करोड़ थी। इस तरह छह महीने में 11.34 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इंटरनेट उपभोक्ताओं में इतनी वृद्धि साफ इशारा करती है कि इंटरनेट के ये प्रथम उपभोक्ता सूचनाओं के लिए सोशल मीडियावॉट्सऐप और फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर निर्भर हैं। समस्या यहीं से शुरू होती है। भारत में लगभग बीस करोड़ लोग वॉट्सऐप का प्रयोग करते हैं जिसमें कई संदेशफोटो और विडियो फेक होते हैं। पर जागरूकता के अभाव में देखते ही देखते ये वायरल हो जाते हैं। एंड टु एंड एनक्रिप्शन के कारण वॉट्सऐप पर कोई तस्वीर सबसे पहले किसने डालीयह पता करना लगभग असंभव है। उम्र के लिहाज से देखा जाए तो इन्टरनेट अब प्रौढ़ हो चला है पर भारतीय परिवेश के लिहाज से इन्टरनेट एक युवा माध्यम है जिसे यहाँ आये अभी बाईस  साल ही हुए हैं इसी परिप्रेक्ष्य में अगर सोशल नेटवर्किंग को जोड़ दिया जाए तो ये तो अभी बाल्यवस्था में ही है .पिछले दिनों देश में घटी मॉब लिंचिंग की कई घटनाओं के पीछे इसी फेक न्यूज का हाथ रहा है। केरल में आई बाढ़ के वक्त कई समाचार चैनलों ने पानी से भरे एक विदेशी एयरपोर्ट के विडियो को कोच्चि एयरपोर्ट बता कर चला दिया। फेक न्यूज के चक्र को समझने के लिए मिसइनफॉर्मेशन और डिसइनफॉर्मेशन में अंतर समझना जरूरी है।
मिसइनफॉर्मेशन का मतलब ऐसी सूचनाओं से है जो असत्य हैं पर जो इसे फैला रहा है वह यह मानता है कि यह सूचना सही है। वहीं डिसइनफॉर्मेशन का मतलब ऐसी सूचना से है जो असत्य है और इसे फैलाने वाला भी यह जानता है कि अमुक सूचना गलत हैफिर भी वह फैला रहा है। भारत डिसइनफॉर्मेशन और मिसइनफॉर्मेशन के बीच फंसा हुआ है। जियो क्रांति के बाद सस्ते फोन और इंटरनेट ने उन करोड़ों भारतीयों के हाथ में सूचना तकनीक पहुंचा दी है जो ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं। वे इंटरनेट पर मिली हर चीज को सच मान बैठते हैं और उस मिसइनफॉर्मेशन के अभियान का हिस्सा बन जाते हैं। दूसरी ओर विभिन्न राजनीतिक पार्टियों की साइबर आर्मी और ट्रोलर्स कई सारी ऐसी डिसइनफॉर्मेशन को यह जानते हुए फैलाते है कि वे गलत हैं या संदर्भ से कटी हुई हैं। इन सबके पीछे कुछ खास मकसद होता है। जैसे हिट्स पानाकिसी का मजाक उड़ानाकिसी व्यक्ति या संस्था पर कीचड़ उछालनासाझेदारीआर्थिक लाभ कमानाराजनीतिक फायदा उठानाया दुष्प्रचार।
चुनाव के मौसम में इस तरह की फेक न्यूज फैला कर राजनैतिक दल अपने विरोधी की छवि को खराब करने की कोशिश करते हैं जिससे वोटों की फसल काटी जा सके .फेक तस्वीरों  को पहचानने में गूगल ने गूगल इमेज सेवा शुरू की हैजहां आप कोई भी फोटो अपलोड करके यह पता कर सकते हैं कि कोई फोटो इंटरनेट पर यदि हैतो वह सबसे पहले कब अपलोड की गई है। एमनेस्टी इंटरनैशनल ने विडियो में छेड़छाड़ और उसका अपलोड इतिहास पता करने के लिए यूट्यूब के साथ मिलकर यू ट्यूब डेटा व्यूअर सेवा शुरू की है ।
अनुभव बताता है  कि नब्बे प्रतिशत विडियो सही होते हैं पर उन्हें गलत संदर्भ में पेश किया जाता है। किसी भी विडियो की जांच करने के लिए उसे ध्यान से बार-बार देखा जाना चाहिए। यह काम क्रोम ब्राउजर में इनविड (InVID) एक्सटेंशन जोड़ कर किया जा सकता है। इनविड जहां किसी भी विडियो को फ्रेम दर फ्रेम देखने में मदद करता है वहीं इसमें विडियो के किसी भी दृश्य को मैग्निफाई (बड़ा) करके भी देखा जा सकता है। यह विडियो को देखने की बजाय उसे पढ़ने में मदद करता है। मतलबकिसी भी विडियो को पढ़ने के लिए किन चीजों की तलाश करनी चाहिएताकि उसके सही होने की पुष्टि की जा सके। फेक न्यूज के कारोबार को रोकने के लिए सख्त कानून समय की मांग है भारत जैसे देश में जहाँ अभी डिजीटल साक्षरता बहुत कम है वहां स्थितियां और भी खतरनाक हो सकती हैं .चुनाव आयोग ने भी  फेक न्यूज को रोकने के लिए सरकार से एक कड़े  कानून की मांग की है। फेक न्यूज से बचने का एकमात्र तरीका हैअपनी सामान्य समझ का इस्तेमाल और थोड़ी सी जागरूकता ।किसी भी खबर को फॉरवर्ड करने से पहले थोडा ठंडे दिमाग से सोचें .
दैनिक जागरण /आईनेक्स्ट में 23/11/2108 को प्रकाशित 

1 comment:

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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