Thursday, December 6, 2018

ग्लोबल वार्मिंग :अनुमान से बड़ा खतरा

ग्लोबल वार्मिंग या वैश्विक तापमान बढ़ने का मतलब है कि पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही हैवैज्ञनिकों  का कहना है कि आने वाले दिनों में सूखा बढ़ेगाबाढ़ की घटनाएँ बढ़ेंगी और मौसम का मिज़ाज बुरी तरह बिगड़ा हुआ दिखेगा.इसका असर दिखने भी लगा हैग्लेशियर भी पिघल रहे हैं और रेगिस्तान पसरते जा रहे हैंकहीं असामान्य बारिश हो रही है तो कहीं असमय ओले पड़ रहे हैं.हाल ही में आई लेंसेट काउंट डाउन रिपोर्ट 2018 के अनुसार खतरा जितना अनुमान लगाया गया था उससे ज्यादा बड़ा है ,ग्लोबल वार्मिंग रोकने में जितने कारगर कदम उठाये जाने चाहिए थे वे नहीं उठाये गए जिससे मानवीय जीवन  और देशों के स्वास्थ्य तंत्र दोनों को खतरा है .इस रिपोर्ट में दुनिया के पांच सौ शहरों में किये गए सर्वे के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया कि उनका सार्वजनिक स्वास्थ्य आधारभूत ढांचा जलवायु परिवर्तन से बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है जो यह बताता है कि रोगियों की संख्या जिस तेजी से बढ़ रही है उस तेजी से रोगों से निपटने के लिए  दुनिया के अस्पताल  तैयार नहीं है .इसमें विकसित और विकासशील दोनों देश शामिल हैं .बीती गर्मियों में चली गर्म हवाओं ने सिर्फ इंग्लैंड में ही सैकड़ों लोगों को अकाल मौत का शिकार बना डाला .कारण सीधा है इंग्लैंड के अस्पताल अचानक जलवायु में हुए इस परिवर्तन के कारण बीमार पड़े लोगों से निपटने के लिए तैयार नहीं थे .इस रिपोर्ट के अनुसार साल 2017 में अत्यधिक गर्मी के कारण एक सौ तिरपन बिलियन घंटों का नुक्सान सारी दुनिया के खेती में लगे लोगों को उठाना पड़ा .सारी दुनिया में हुए कुल नुक्सान का आधा हिस्सा अकेले भारत ने उठाया जो कि भारत की कुल कार्यशील जनसँख्या का सात प्रतिशत है जबकि चीन को 1.4 प्रतिशत का ही नुक्सान हुआ.कुल मिलाकर इन सबका परिणाम राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं और लोगों के घरेलु बजट पर पड़ा .उसी तरह तापमान और वर्षा में हल्का सा परिवर्तन पानी और मच्छरों द्वारा फैलने वाले रोगों की वृद्धि के रूप में सामने आया .दुनिया भर में हो रहे इस जलवायु परिवर्तन का कारण वैज्ञानिक के अनुसार  ग्रीन हाउस गैसों के कारण हैजिन्हें सीएफसी या क्लोरो फ्लोरो कार्बन भी कहते हैं.इनमें कार्बन डाई ऑक्साइड हैमीथेन हैनाइट्रस ऑक्साइड है और वाष्प है.वैज्ञानिकों का कहना है कि ये गैसें वातावरण में बढ़ती जा रही हैं और इससे ओज़ोन परत की छेद का दायरा बढ़ता ही जा रहा है.ओज़ोन की परत ही सूरज और पृथ्वी के बीच एक कवच की तरह है.ग्लोबल वार्मिंग मनुष्यों की गतिविधियों के परिणाम के रुप में समय की एक अपेक्षाकृत कम अवधि में पृथ्वी की जलवायु के तापमान में एक उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. विशिष्ट शब्दों में सौ या दौ सौ साल में1 सेल्सियस या अधिक की व्रद्धि को ग्लोबल वार्मिंग की श्रेणी में रखा जाता हैऔर पिछ्ले सौ साल में  यह 0.4 सेल्सियस बढ चुका है जो की बहुत महत्वपूर्ण  है.ग्लोबल वार्मिंग को समझने के लिए मौसम और जलवायु के अंतर को समझना बहुत जरूरी है .मौसम स्थानीय और अल्पकालिक होता हैमान लीजिये की आप हिमाचल में है और वहां बर्फ़ गिर रही है तो उस मौसम और बर्फ़ का असर सिर्फ़ हिमाचल  और उसके आसपास के इलाकों में ही रहेगा सिर्फ़ उन इलाको में ही ठंड बढेगी जो हिमाचल के आस पास होंगे । जलवायु की अवधि लम्बी होती है और ये एक छोटे से स्थान से संबंधित नही है। एक क्षेत्र की जलवायु समय की एक लंबी अवधि में एक क्षेत्र के औसत मौसम की स्थिति है।अब धरती के लिए चिंता करने की बात यह है कि धरती की जलवायु में परिवर्तन आ रहा है . जानना ज़रुरी है की जब हम लम्बी अवधि की जलवायु की बात करते है तो उसका मतलब होता है बहुत लम्बी अवधियहां तक की कई सौ साल भी बहुत कम अवधि है जलवायु में आने के लिये। वास्तव मेंजलवायु में परिवर्तन होते-होते कभी-कभी दसियों से हज़ारों वर्ष लग जाते है। इसका मतलब है की अगर एक सर्दी में बर्फ़ नही गिरी और ठंड नही पडीं---और एक साथ दो-तीन सर्दियों में ऐसा हो जाये----तो इससे जलवायु में परिवर्तन नहीं होता है.
ग्लोबल वार्मिंग ग्रीनहाउस प्रभाव में वृद्धि के कारण होता है। वैसे ग्रीनहाउस प्रभाव कोई बुरी चीज़ नही है अपने-आप में---ये पृथ्वी को जीवन के लायक बनाये रखने के लिये गर्म रखता है. मान लीजिये पृथ्वी आपकी कार की तरह है जो दोपहर के वक्त धूप  में पार्किंग में खडी है। आपने गौर किया होगा की जब आप कार में बैठते है तो कार का तापमान बाहर के तापमान से ज़्यादा गर्म होता है थोडे वक्त तक। जब सूर्य  की किरणें आपकी कार की खिडकियों से अन्दर प्रवेश करती है तो सूर्य  की कुछ गर्मी कार की सीट्सकारपेटसडेशबोर्ड और फ़्लोर मेटस सोख लेते हैजब ये सब चीज़े उस सोखी हुई गर्मी को वापस बाहर फ़ेंकते है तो सारी गर्मी खिडकियों से बाहर नही जाती कुछ वापस आ जाती है। सीटों से निकली गर्मी का तरंगदैधर्य (Wavelength) उन सूर्य की किरणों के तरंगदैधर्य (Wavelength) से अलग होता है जो पहली बार कार की खिडकी से अन्दर आयीं थीतो अन्दर ज़्यादा ऊर्जा आ रही है और ऊर्जा बाहर कम जा रही है। इसके परिणाम में आपकी कार के तापमान में एक क्रमिक वृद्धि हुई। आपकी गर्म कार के मुकाबले ग्रीनहाउस प्रभाव थोडा जटिल हैजब सूर्य की किरणें पृथ्वी के वातावरण और सतह से टकराती है तो सत्तर  प्रतिशत ऊर्जा पृथ्वी पर ही रह जाती है जिसको धरतीसमुद्र पेड तथा अन्य चीज़े सोख लेती है। बाकी का तीस प्रतिशत अंतरिक्ष में बादलोंबर्फ़ के मैदानोंतथा अन्य रिफ़लेक्टिव चीज़ो की वजह से रिफ़लेक्ट हो जाता है .परन्तु जो सत्तर प्रतिशत ऊर्जा पृथ्वी पर रह जाती वो हमेशा नही रहती (वर्ना अब तक पृथ्वी आग का गोला बन चुकी होती)। पृथ्वी के महासागर और धरती अकसर उस गर्मी को बाहर फ़ेंकते रहते है जिसमें से कुछ गर्मी अंतरिक्ष में चली जाती है बाकी यहीं वातावरण में दूसरी चीज़ों द्वारा सोखने के बाद समाप्त हो जाती है जैसे कार्बन डाई-आक्साइडमेथेन गैसऔर पानी की भाप। इन सब चीज़ों के ऊर्जा को सोखने के बाद बाकी ऊर्ज़ा गर्मी के रूप में हमारी पृथ्वी पर मौजुद रहती है. बाहर के वातावरण के मुकाबले जितनी ऊर्जा वातावरण में प्रवेश कर रही है उतनी बाहर नही जा रही है जिसके परिणाम में पृथ्वी गर्म रह्ती है।ग्लोबल वार्मिंग में कमी के लिए मुख्य रुप से सीएफसी गैसों का ऊत्सर्जन कम रोकना होगा और इसके लिए फ्रिज़एयर कंडीशनर और दूसरे कूलिंग मशीनों का इस्तेमाल कम करना होगा या ऐसी मशीनों का उपयोग करना होगा जिनसे सीएफसी गैसें कम निकलती हैं.औद्योगिक इकाइयों की चिमनियों से निकले वाला धुँआ हानिकारक हैं और इनसे निकलने वाला कार्बन डाई ऑक्साइड गर्मी बढ़ाता हैइन इकाइयों में प्रदूषण रोकने के उपाय करने होंगे.वाहनों में से निकलने वाले धुँए का प्रभाव कम करने के लिए पर्यावरण मानकों का सख़्ती से पालन करना होगा.उद्योगों और ख़ासकर रासायनिक इकाइयों से निकलने वाले कचरे को फिर से उपयोग में लाने लायक बनाने की कोशिश करनी होगी.और प्राथमिकता के आधार पर पेड़ों की कटाई रोकनी होगी और जंगलों के संरक्षण पर बल देना होगा.अक्षय ऊर्जा के उपायों पर ध्यान देना होगा यानी अगर कोयले से बनने वाली बिजली के बदले पवन ऊर्जासौर ऊर्जा और पनबिजली पर ध्यान दिया जाए तो आबोहवा को गर्म करने वाली गैसों पर नियंत्रण पाया जा सकता है.याद रहे कि जो कुछ हो रहा है या हो चुका है वैज्ञानिकों के अनुसार उसके लिए मानवीय गतिविधियाँ ही दोषी हैं.
दैनिक जागरण /आई नेक्स्ट में 06/12/2018 को प्रकाशित लेख 

1 comment:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (07-12-2018) को "भवसागर भयभीत हो गया" (चर्चा अंक-3178) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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