Tuesday, February 13, 2024

मनोरंजन उद्योग में पायरेसी

 

सारी दुनिया में पाइरेसी एक बड़ी समस्या है और इंटरनेट ने इस समस्या को और भी जटिल बना दिया हैसोफ्टवेयर पाइरेसी से शुरू हुआ यह सफर फिल्मसंगीत धारावाहिकों तक पहुँच गया है |मोटे तौर पर पाइरेसी से तात्पर्य किसी भी सोफ्टवेयर ,संगीत,चित्र और फिल्म  आदि के पुनरुत्पाद से हैजिमसें मौलिक रूप से इनको बनाने वाले को कोई आर्थिक लाभ नहीं होता और पाइरेसी से पैदा हुई आय इस गैर कानूनी काम में शामिल लोगों में बंट जाती है |इंटरनेट से पहले यह काम ज्यादा श्रम साध्य था और इसकी गति धीमी थीपर इंटरनेट ने उपरोक्त के वितरण में बहुत तेजी ला दी हैजिससे मुनाफा बढ़ा है |भारत जैसे देश में जहाँ इंटरनेट बहुत तेजी से फ़ैल रहा हैऑनलाईन पाइरेसी का कारोबार भी अपना रूप बदल रहा है |पहले इंटरनेट स्पीड कम होने की वजह से ज्यादातर पाइरेसी टोरेंट से होती थी पर अब भारत समेत सारी दुनिया में पाइरेसी का चरित्र बदल रहा है क्योंकि अब हाई स्पीड इंटरनेट स्मार्टफोन के जरिये हर हाथ में पहुँच रहा हैतो लोग पाइरेटेड कंटेंट को सेव करने की बजाय सीधे इंटरनेट स्ट्रीमिंग सुविधा से देख रहे हैं |

ऑनलाइन पाइरेसी में मूलतः दो चीजें शामिल हैं पहला सॉफ्टवेयर दूसरा ऑडियो -वीडियो कंटेंट जिनमें फ़िल्में ,गीत संगीत शामिल हैं |सॉफ्टवेयर की लोगों को रोज –रोज जरुरत होती नहीं वैसे भी मोटे तौर पर काम के कंप्यूटर सोफ्टवेयर आज ऑनलाईन मुफ्त में उपलब्ध हैं या फिर काफी सस्ते हैं पर आज की भागती दौडती जिन्दगी में जब सारा मनोरंजन फोन की स्क्रीन में सिमट आया है और इन कामों के लिए कुछ वेबसाईट वो सारे कंटेंट उपभोक्ताओं को मुफ्त में उपलब्ध कराती हैं और अपनी वेबसाईट पर आने वाले ट्रैफिक से विज्ञापनों से कमाई करती हैं पर जो कंटेंट वे उपभोक्ताओं को उपलब्ध करा रही होती हैं वे उनके बनाये कंटेंट नहीं होते हैं और उस कंटेंट से वेबसाईट जो लाभ कमा रही होती हैं उसका हिस्सा भी मूल कंटेंट निर्माताओं तक नहीं जाता है |ऑडियो –वीडियो कंटेंट को मुफ्त में पाने के लिए लाईव स्ट्रीमिंग का सहारा लिया जा रहा है क्योंकि इंटरनेट की गति बढ़ी है और उपभोक्ता को बार –बार कंटेंट बफर नहीं करना पड़ता यानि अभी सेव करो और बाद में देखो वाला वक्त जा रहा है |यू ट्यूब जैसी वीडियो वेबसाईट जो कॉपी राईट जैसे मुद्दों के प्रति जरुरत से ज्यादा संवेदनशील हैपाइरेटेड वीडियो को तुरंत अपनी साईट से हटा देती है पर इंटरनेट के इस विशाल समुद्र में ऐसी लाखों वेबसाईट हैं जो पाइरेटेड आडियो वीडियो कंटेंट उपभोक्ताओं को उपलब्ध करा रही हैं |

मनोरंजन उद्योग में ऑनलाइन चोरी पर नज़र रखने वाली मुसोसाईट के अनुसार पाइरेसी के लिए जिस तकनीक का सबसे ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है उसमें स्ट्रीमिंग पहले नम्बर पर है |मुसो कॉपीराइट उल्लंघनों पर आंकडा  एकत्र करती  है |इंटरनेट पर ऐसी कई साईट्स  हैंजहां से पाइरेटेड कंटेंट  मिल जाती हैं. जेलर और पठान जैसी फ़िल्में भी लीक हुईं . दक्षिण में  में तमिल रॉकर्स जैसी पाइरेसी साइट्स ने तो कोहराम  मचा रखा है. इन्हें जैसे ही ब्लोक  किया जाता हैये यूआरएल बदलकर फिर से काम  करने लगती हैं. पाइरेसी फिल्म इंडस्ट्री की एक बड़ी समस्या है. पाइरेसी के कारण  फिल्म इंडस्ट्री को 20 हज़ार करोड़ का नुकसान हो रहा है. वैश्विक सलाहकार फर्म अंकुरा की एक रिपोर्ट के अनुसार2022 में टोरेंट साइटों के माध्यम से 7 बिलियन से अधिक विज़िट के साथ कंटेंट पायरेसी वेबसाइटों पर जाने के मामले में  भारत तीसरे स्थान पर है। भारत से आगे अमेरिका और रूस जैसे देश हैं |स्पाइडर-मैन: नो वे होम 2022 में भारत में सबसे अधिक पायरेटेड फिल्म थीजबकि गेम ऑफ थ्रोन्स सबसे अधिक पायरेटेड श्रृंखला थी। केजीएफ: चैप्टर 2 और आरआरआर सबसे अधिक पायरेटेड भारतीय फिल्में थीं। संगीतफिल्मोंसॉफ्टवेयर और किताबों की पाइरेसी में व्हाट्स एप और टेलीग्राम जैसे मेसेजिंग एप नें स्थिति को और गंभीर बना दिया है | जो टॉरेंट साइट्स या एग्रीगेटर ऐप्स के बारे में जानकारी प्रसारित करते हैं जहाँ पाइरेटेड सामाग्री उपलब्ध हैं |

रिपोर्ट के अनुसार पायरेसी वेबसाइटों पर आने वाले कुल ट्रैफ़िक में टीवी सामग्री का हिस्सा 46.6 प्रतिशत थाइसके बाद प्रकाशन सामग्री (किताबें) का योगदान 27.80 प्रतिशत  रहा । फिल्म पाइरेसी 12.40 प्रतिशत  तक पहुंच गई हैइसके बाद संगीत और सॉफ्टवेयर का स्थान आता हैजो क्रमशः 7 प्रतिशत  और 6.20 प्रतिशत है।भारत में वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पायरेसी के कारण कुल राजस्व का 25-30 प्रतिशत हिस्सा गँवा रहे हैं|सरकार ने इसके लिए सिनेमैटोग्राफ संशोधन बिल 2023 में कुछ नए प्रावधान जोड़े हैंइस विधेयक का उद्देश्य ‘पायरेसी’ की समस्या पर व्यापक रूप से अंकुश लगाना हैइस बिल के तहत फिल्म की पाइरेसी करने वालों को तीन महीने से लेकर तीन साल की जेल हो सकती है. साथ ही फिल्म  की निर्माण लागत  का पांच  प्रतिशत जुर्माना भी भरना होगा. फिल्म को गैरकानूनी तरीके से दिखाना या फिर इसकी गैर कानूनी रिकॉर्डिंग भी अपराध की श्रेणी में आएगी. निजी इस्तेमालकरेंट अफेयर्सरिपोर्टिंग और फिल्म क्रिटिसिज्म के लिए कॉपीराइट कंटेंट इस्तेमाल किया जा सकेगा. सिनेमैटोग्राफ अधिनियम1952 में अंतिम महत्वपूर्ण संशोधन वर्ष 1984 में किया गया था। भले ही नई प्रौद्योगिकी प्लेटफार्मों पर पाइरेसी  व्यापक हो गई हैकई कानून आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं हैं। कॉपीराइट अधिनियम, 1957 जैसे मौजूदा कानूनों  में कई समस्याएं  हैं और वे पर्याप्त कठोर नहीं हैंजिससे अपराधियों को दण्डित करना मुश्किल  हो जाता है। राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) नीति 2016 सहित नए कानूनों का पालन  और साइबर डिजिटल अपराध इकाइयों की स्थापना अभी भी प्रारंभिक चरण में है। पर्याप्त कानूनों के अभाव मेंअदालतें पाइरेसी के मामले में कुछ ख़ास नहीं कर पाती हैं तकनीक के तौर पर इंटरनेट की जटिलता को देखते हुए ये सिनेमैटोग्राफ संशोधन बिल 2023 पाइरेसी की समस्या को कितना कम कर पायेगा इसका फैसला अभी होना है |

 दैनिक जागरण में 13/02/2024 को प्रकाशित 

 

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