आज के डिजिटल युग में
तकनीक ने हमारी रोजमर्रा की जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया है। इंटरनेट,ऐप्स और एआई जैसी तकनीकों ने न केवल हमारे कामकाज को अधिक सुविधाजनक और तेज
बना दिया है, बल्कि संवाद के तरीके को भी आमूल-चूल रूप से बदल दिया है। जहाँ
एक ओर यह तकनीक संचार को त्वरित और सुलभ बना रही है, वहीं दूसरी ओर इसका प्रभाव मानवीयता पर भी पड़ा है। संचार में मानवीय भावनाएँ, आवाज़ की गर्माहट, और चेहरों के भाव धीरे-धीरे गायब होते जा रहे हैं।
जो समस्याओं को सुलझाने के बजाय और बिगाड़ रही है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स हों या हमारे जीवन को आसान बनाने वाली ऑनलाइन कंपनियाँ ये हमारे जीवन का आज अहम हिस्सा बन गई है। चाहे अमेजन जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफार्म सामान मंगाना हो या ऊबर,ओला जैसी कैब सर्विस से कहीं जाना, इन एप बेस्ड कंपनियों ने हमारे रोजाना के कामों को सरल और सुविधाजनक बना दिया है। मगर इसका एक और पहलू भी है, इन तकनीकों और ऑनलाइन सेवाओं के फायदे के साथ कुछ चुनौतियाँ और समस्याएं भी जुड़ी हुई हैं। इन प्लेटफार्म्स पर हमारे पास सीधे और व्यक्तिगत संपर्क की कमी होती है, जिससे हमारी समस्याओं का समाधान मुश्किल हो जाता है। सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म फेसबुक, जिसने भारत में 32 करोड़ यूज़र्स का आंकड़ा पार कर लिया है, उपयोगकर्ताओं की समस्याओं के समाधान के लिए केवल हेल्प, सपोर्ट और रिपोर्ट जैसी सुविधाएं प्रदान करता है जो कि एक प्री डिसायडेड एक तरफा तंत्र के अलावा कुछ भी नहीं है।
यह स्थिति दर्शाती है कि कैसे तकनीकी सुविधाएँ हमारे समस्या समाधान की प्रक्रिया को जटिल बना सकती हैं और मानवीय संबंधों को एक तंत्र में बदल सकती हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप अमेज़न या फ्लिपकार्ट से कोई उत्पाद खरीदते हैं और वह ख़राब निकलता है, तो आपको अकसर चैटबॉट से ही मदद मिलती है। इसके बाद, वास्तविक कस्टमर सर्विस प्रतिनिधि से संपर्क करने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। इसी तरह, अगर फूड डिलीवरी ऐप पर आपके ऑर्डर में खराब या गलत भोजन आता है, तो आपको स्वचालित सपोर्ट और लंबे इंतजार का सामना करना पड़ता है। इन प्लेटफार्म पर स्वचालित सहायता और सीमित विकल्पों के कारण, कई बार समस्या मिनटों में सुलझने की बजाय घंटों तक उलझी रहती है। यह स्थिति ग्राहक को इतना निराश कर देती है कि उन्हें अंततः सोशल मीडिया पर अपने मुद्दे उठाने पड़ते हैं। हाल ही में CCW Digital और कस्टमर मैनेजमेंट सर्विस द्वारा किए गए अध्ययन में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है , रिपोर्ट में बताया गया है कि 55% उपभोक्ताओं का अनुभव चैट-बेस्ड सपोर्ट में बदतर हुआ है, जो यह दर्शाता है कि स्वचालित सहायता तंत्र अकसर मानवीय समाधान की कमी को पूरी नहीं कर पाती। तकनीक ने ग्राहक सेवा के क्षेत्र में एक बुनियादी परिवर्तन लाया है। ग्लोबल स्ट्रेटजिक बिज रिपोर्ट के मुताबिक साल 2023 तक विश्व भर का कॉल सेंटर का बाजार 332 बिलियन डॉलर का था, जिसमें भारत की हिस्सेदारी करीब दस प्रतिशत है| वहीं नैसकॉम के मुताबिक भारत में 5 करोड़ लोग इन बीपीओ और कॉल सेंटरों से रोजगार प्राप्त करते हैं।
जो समस्याओं को सुलझाने के बजाय और बिगाड़ रही है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स हों या हमारे जीवन को आसान बनाने वाली ऑनलाइन कंपनियाँ ये हमारे जीवन का आज अहम हिस्सा बन गई है। चाहे अमेजन जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफार्म सामान मंगाना हो या ऊबर,ओला जैसी कैब सर्विस से कहीं जाना, इन एप बेस्ड कंपनियों ने हमारे रोजाना के कामों को सरल और सुविधाजनक बना दिया है। मगर इसका एक और पहलू भी है, इन तकनीकों और ऑनलाइन सेवाओं के फायदे के साथ कुछ चुनौतियाँ और समस्याएं भी जुड़ी हुई हैं। इन प्लेटफार्म्स पर हमारे पास सीधे और व्यक्तिगत संपर्क की कमी होती है, जिससे हमारी समस्याओं का समाधान मुश्किल हो जाता है। सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म फेसबुक, जिसने भारत में 32 करोड़ यूज़र्स का आंकड़ा पार कर लिया है, उपयोगकर्ताओं की समस्याओं के समाधान के लिए केवल हेल्प, सपोर्ट और रिपोर्ट जैसी सुविधाएं प्रदान करता है जो कि एक प्री डिसायडेड एक तरफा तंत्र के अलावा कुछ भी नहीं है।
यह स्थिति दर्शाती है कि कैसे तकनीकी सुविधाएँ हमारे समस्या समाधान की प्रक्रिया को जटिल बना सकती हैं और मानवीय संबंधों को एक तंत्र में बदल सकती हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप अमेज़न या फ्लिपकार्ट से कोई उत्पाद खरीदते हैं और वह ख़राब निकलता है, तो आपको अकसर चैटबॉट से ही मदद मिलती है। इसके बाद, वास्तविक कस्टमर सर्विस प्रतिनिधि से संपर्क करने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। इसी तरह, अगर फूड डिलीवरी ऐप पर आपके ऑर्डर में खराब या गलत भोजन आता है, तो आपको स्वचालित सपोर्ट और लंबे इंतजार का सामना करना पड़ता है। इन प्लेटफार्म पर स्वचालित सहायता और सीमित विकल्पों के कारण, कई बार समस्या मिनटों में सुलझने की बजाय घंटों तक उलझी रहती है। यह स्थिति ग्राहक को इतना निराश कर देती है कि उन्हें अंततः सोशल मीडिया पर अपने मुद्दे उठाने पड़ते हैं। हाल ही में CCW Digital और कस्टमर मैनेजमेंट सर्विस द्वारा किए गए अध्ययन में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है , रिपोर्ट में बताया गया है कि 55% उपभोक्ताओं का अनुभव चैट-बेस्ड सपोर्ट में बदतर हुआ है, जो यह दर्शाता है कि स्वचालित सहायता तंत्र अकसर मानवीय समाधान की कमी को पूरी नहीं कर पाती। तकनीक ने ग्राहक सेवा के क्षेत्र में एक बुनियादी परिवर्तन लाया है। ग्लोबल स्ट्रेटजिक बिज रिपोर्ट के मुताबिक साल 2023 तक विश्व भर का कॉल सेंटर का बाजार 332 बिलियन डॉलर का था, जिसमें भारत की हिस्सेदारी करीब दस प्रतिशत है| वहीं नैसकॉम के मुताबिक भारत में 5 करोड़ लोग इन बीपीओ और कॉल सेंटरों से रोजगार प्राप्त करते हैं।
मगर ग्राहक सेवा क्षेत्र में तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल से इन नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है। बड़ी कंपनियों ने ग्राहक सेवा में वेटिंग टाइम को कम करने के लिए लाइव चैट का विकल्प दिया। जिसमें ग्राहकों को अपनी समस्याएं लिख कर देने के लिए प्रेरित किया जाने लगा। और धीरे-धीरे मौखिक संचार को कम कर कंपनियों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस चैटबॉट्स को तरजीह देनी शुरू कर दी, इससे कंपनियों को ग्राहक सेवा में खर्च कम पड़ रहा है। इस कटौती की शुरुआत कॉल सेंटर एग्जीक्यूटिव की संख्या घटाने से शुरू कर दी गई है।
वहीं विशेषज्ञ ये मानते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते प्रभाव से अधिकांश कॉल सेंटर्स का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। जेनेरेटिव एआई के व्यापक इस्तेमाल से एक साल के भीतर पारंपरिक कॉल सेंटर की प्रक्रियाओं में तेजी से बदलाव आएगा और एआई ग्राहकों की समस्याओं का अनुमान लगाकर उनका समाधान करेगी। कैंपेन एशिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक मई 2023 में इंडियन एयरलाइन्स के चैटबॉट 'महाराजा' ने 93 प्रतिशत ग्राहक सवालों का समाधान बिना कॉल सेंटर एजेंट्स के पास भेजे किया है। कंपनी का कहना है कि ग्राहकों की समस्या से जुड़े करीब 5 लाख कॉल हर महीने आते हैं जिसमें एआई ने काफी कटौती कर दी है।कंपनियों की लागत कम करने के लिए ये आसान तरीका है ताकि लोगों की कॉल सेंटर्स पर निर्भरता कम की जा सके, मगर इसके लिए कई प्रकार के बुरे हथकंडे भी अपनाये जाते हैं जैसे कि ज्यादातर समस्याओं के लिए FAQ और आईवीआरएस का उपयोग करना।
वहीं विशेषज्ञ ये मानते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते प्रभाव से अधिकांश कॉल सेंटर्स का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। जेनेरेटिव एआई के व्यापक इस्तेमाल से एक साल के भीतर पारंपरिक कॉल सेंटर की प्रक्रियाओं में तेजी से बदलाव आएगा और एआई ग्राहकों की समस्याओं का अनुमान लगाकर उनका समाधान करेगी। कैंपेन एशिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक मई 2023 में इंडियन एयरलाइन्स के चैटबॉट 'महाराजा' ने 93 प्रतिशत ग्राहक सवालों का समाधान बिना कॉल सेंटर एजेंट्स के पास भेजे किया है। कंपनी का कहना है कि ग्राहकों की समस्या से जुड़े करीब 5 लाख कॉल हर महीने आते हैं जिसमें एआई ने काफी कटौती कर दी है।कंपनियों की लागत कम करने के लिए ये आसान तरीका है ताकि लोगों की कॉल सेंटर्स पर निर्भरता कम की जा सके, मगर इसके लिए कई प्रकार के बुरे हथकंडे भी अपनाये जाते हैं जैसे कि ज्यादातर समस्याओं के लिए FAQ और आईवीआरएस का उपयोग करना।
कई ऐप्स कॉल हेल्पलाइन की लिंक तक पहुँचने की प्रक्रिया को इतना जटिल बना देते हैं कि ग्राहकों को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। न्यू वाइस मीडिया द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, खराब ग्राहक सेवा के कारण हर साल करीब 75 बिलियन डॉलर के व्यापार की हानि होती है। जिनमें कॉल सेंटर्स और खराब सहायता तंत्र भी एक अहम कारण होते है।हालांकि, कंपनियों की लागत में कटौती के दीर्घकालिक प्रभाव चिंताजनक है। तकनीक के अंधाधुंध प्रयोग से मानवीय संवाद का स्थान एक निर्जीव तंत्र ने ले लिया है, जहाँ अब समस्याओं का समाधान मशीनों और बिना मौखिक संवाद से बातचीत द्वारा किया जाता है वहीं यह सिर्फ व्यापार और ग्राहक सेवा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका असर हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक संबंधों पर भी पड़ रहा है। तकनीक जब हमारे संचार के हर पहलू को नियंत्रित करती है तो हम अपनी मानवीय संवेदनाओं से दूर होते जाते हैं। अंत में हमें इस बात पर विचार करना होगा कि तकनीक हमारे जीवन को जितना आसान बना रही है, उतना ही हमें मानवीय मूल्यों से दूर कर रही है। यह एक महत्वपूर्ण समय है जब हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तकनीक हमें उलझाने के बजाय हमारे जीवन को सुगम बनाए।
अमर उजाला में 17/09/2024 को प्रकाशित
अमर उजाला में 17/09/2024 को प्रकाशित
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