Saturday, February 15, 2025

गिग वर्कर्स भी हमारे समाज का हिस्सा हैं

 भारत  में हर रोज एक नए स्टार्टअप का जन्म होता है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2025 तक देश में स्टार्टअप्स की कुल संख्या करीब 1 लाख 60 हजार पहुँच गई है। जिसके साथ ही भारत अब दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम बन चुका है। आंकड़े बताते हैं कि अब तक देश में एक अरब डॉलर से अधिक वैल्यू वाले 100 से अधिक यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स स्थापित हो चुके हैं। इस उभरते हुए स्टार्टअप कल्चर के साथ ही देश में एक नए प्रकार की कामकाजी संस्कृति का चलन तेजी से बढ़ रहा है जिसे गिग इकॉनमी कहा जाता है। गिग इकॉनमी का मतलब ऐसी बाजार प्रणाली से है जिसमें लोग किसी कंपनी में स्थायी कर्मचारी बनने के बजाय अस्थायी, फ्रीलांस, या क्रांटैक्ट-बेस पर काम करते हैं। यानी ऐसे काम जिनमें नौकरियों की तरह कोई तय वक्त, तय जगह या तय वेतन नहीं होता। गिग इकॉनमी में काम करने वाले लोग खुद को एक स्वतंत्र पेशेवर के रूप में देखते हैं, जो सुविधा और समय के हिसाब से काम करते हैं। उदाहरण के लिए अर्बन कंपनी, उबर-ओला, और  जोमैटो जैसी कंपनियाँ कुछ समय के लिए स्वतंत्र कामगारों के साथ कांट्रैक्ट करती हैं और उनके द्वारा किए गए काम के घंटे या प्रत्येक कार्य के लिए एक निश्चित राशि का भुगतान करती हैं। ऐसे में गिग इकॉनमी आर्थिक अवसरों का एक नया मॉडल पेश कर रही है, जो पारंपरिक नौकरियों की तुलना में अधिक लचीलापन और स्वतंत्रता प्रदान करता है।नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक देश के गिग वर्कफोर्स में आईटी सर्विसेस, डिलीवरी, कैब सर्विसेज और अन्य पार्ट टाइम जैसी नौकरियों में साल 2020-21 में करीब 77 लाख श्रमिक कार्यरत थे जिनकी संख्या साल 2029-30 तक बढ़कर करीब ढाई करोड़ पहुँचने की उम्मीद है। गिग इकॉनमी कोई नई अवधारणा नहीं है, बल्कि यह हमेशा से हमारे समाज का हिस्सा रही है। फर्क बस इतना है कि अब इसका तरीका डिजिटल हो चुका है। जैसे ऑटो और कैब चालक जो सड़क पर सवारी का इंतजार करते थे अब वे ओला और उबर जैसे प्लेटफॉर्म्स पर ऑन डिमांड उपलब्ध होते हैं। इसी तरह फूड डिलीवरी, घर की सफाई, पेंटिंग, मेकअप और अन्य सेवाएं देने वाले श्रमिक अब ऐप्स के माध्यम से बुक किए जाते हैं। स्टार्टअप कंपनियाँ तकनीक की मदद से भारत के असंगठित रोजगार को ऐप्स के जरिये बड़े पैमाने पर संगठित कर रही हैं।

 नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में गिग वर्कस को तीन श्रेणियों में बांटा है जिसमें लो-स्किल्ड वर्कर्स जैसे डिलीवरी पर्सनल, राइडशेयर ड्राइवर्स, मीडियम स्किल्ड वर्कस जैसे इलेक्ट्रीशियन, कारपेंटर और ब्यूटिशियन्स और हाई स्किल्ड वर्कर्स जैसे सॉफ्टवेयर डेवलपर्स, कंटेंट राइटर्स, ग्राफिक डिजाइनर  एवं अन्य शामिल हैं। वर्तमान में भारत में मिडिल स्किल्ड वर्कर्स की संख्या सबसे अधिक 47 प्रतिशत हैं। फोरम फॉर प्रोग्रेसिव गिग वर्कर्स की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था में गिग इकॉनमी ने साल 2024 में 455 बिलियन डॉलर का योगदान दिया था। और साल दर साल यह इंडस्ट्री 17 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। गिग इकॉनमी के बढ़ते प्रभाव ने कार्यबल में कई महत्वपूर्ण बदलाव लाये हैं। ऑफलाइन क्षेत्र के साथ-साथ ऑनलाइन गिग वर्कर्स की संख्या भी काफी तेजी से बढ़ रही है।   इसमें फ्रीलांसर्स अपने पसंद का काम कर सकते हैं, वहीं कई लोग अपनी स्किल को लगातार निखार रहे हैं ताकि मार्केट में उनकी डिमांड बनी रहे। गिग इकॉनमी ने उन लोगों के लिए भी नौकरी के कई अवसर खोले हैं जिन्हें पारंपरिक नौकरियों में दिक्कत आती थी, जैसे दिव्यांग, छात्र और गृहिणियाँ जो अब घर बैठे भी फ्रीलांसिंग कर सकते है। विश्व बैंक की रिपोर्ट वर्किंग विदाउट बॉर्डर्स के मुताबिक दुनियाभर में 435 मिलियन से अधिक गिग वर्कर्स इंटरनेट के माध्यम से रोजगार प्राप्त कर रहे हैं।
विकसित देशों से इतर भारत में गिग इकॉनमी का स्वरूप काफी भिन्न है, यहाँ असंगठित और अनस्किल्ड लेबर की बहुलता है। विकसित देशों में गिग इकॉनमी मुख्यतः उच्च कौशल वाले कार्यों जैसे सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, डिज़ाइनिंग, और कंसल्टेंसी पर केंद्रित है। वहीं भारत में गिग इकॉनमी का बड़ा हिस्सा कैब ड्राइवर, डिलीवरी एजेंट, घरेलू सहायकों और निर्माण श्रमिकों जैसे कम कौशल वाले कार्यों पर आधारित है। वहीं पारंपरिक रोजगार के विकल्पों के आभाव में भी लोग गिग प्लेटफॉर्म्स का रुख करते हैं।
हम सभी के दिमाग में कभी न कभी यह ख्याल जरूर आता है कि हमारे घर का खाना डिलीवरी करने वाले लोग, कैब ड्राइवर या अन्य गिग वर्कर्स जो हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन चुके हैं- अंतत:हमारे ही समाज के लोग हैं। जिन्हें कभी कभी रोजगार के लिए उपभोक्ता के साथ बहस, जान जोखिम में डालना या आमानवीय व्यवहार तक झेलना पड़ता हैं। यह कार्य उनके लिए फ्री टाइम में किया जाने वाला कोई फ्रीलांस काम नहीं, बल्कि जीवनयापन का प्रमुख माध्यम है। संस्था पैगाम और यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सेल्वेनिया द्वारा भारत में ऐप बेस्ड वर्कर्स पर किये गये एक शोध में सामने आया है कि भारत में गिग श्रमिक स्थायी नौकरियों से भी अधिक लंबे समय तक काम कर रहे हैं। गिग श्रमिकों में कैब ड्राइवर् और डिलीवरी एजेंट्स दिन में 8 से 12 घंटे और कभी कभी उससे भी अधिक घंटे प्रतिदिन काम करते हैं।
ये ऐप बेस्ड कंपनियाँ गिग वर्कर्स के जरिये मोटा पैसा कमा रही हैं मगर क्या इससे वर्कर्स को कुछ फायदा मिल रहा है ?  यह ठीक है कंपनियाँ इन्हें कांट्रैक्ट के अनुसार पैसे देती है, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि इन कामगारों को स्थायी नौकरी की तरह वित्तीय असुरक्षा, स्वास्थ्य बीमा और सामाजिक सुरक्षा की सुविधाएं तक नहीं मिल पाती। इनकी पहचान केवल एक सेवा प्रदाता के रूप में बन जाती है। हालांकि हाल ही में संसद में पेश बजट 2025 में सरकार ने गिग वर्कर्स के लिए कई प्रावधान किये हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस अंसगठित क्षेत्रों के कर्मचारियों को पहचान पत्र, ई-श्रम पोर्टल पर उनका पंजीकरण और पीएम जन आरोग्य योजना के तहत 5 लाख रुपये तक के स्वास्थ्य बीमा कवरेज मुहैया कराने का ऐलान किया है। सरकार के इस फैसले से करीब 1 करोड़ गिग वर्कर्स को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से फायदा पहुँचेगा। इन गिग वर्कर्स में कैब ड्राइवर, फूड डिलीवरी एजेंट्स और अन्य प्लेटफॉर्म कर्मचारी भी शामिल हैं। जिन्हें अब पारंपरिक कर्मचारियों जैसी सामाजिक सुरक्षा एवं लाभ मिलेंगें। हालांकि सरकार ने गिग वर्कर्स के न्यूनतम वेतन के लिए बजट में कोई प्रावधान नहीं किया है। समस्या यह भी है कि अगर सरकार  न्यूनतम वेतन, काम के घंटे सीमित करना जैसे कड़े रेगुलेशन ले भी आये , तो इससे इस सेक्टर को नुकसान हो सकता है। ऐसा करने से कंपनियाँ अपनी हायरिंग कम कर सकती हैं, साथ ही नियमों के बोझ के चलते अनावश्यक लालफीताशाही या इंस्पेक्टर राज को बढ़ावा मिल सकता है। दूसरी ओर अनियोजित श्रम में आपूर्ति माँग से हमेशा अधिक होने की संभावना रहती है। ऐसे में इस विषय पर सरकार और स्टार्टअप कंपनियों को गहन चिंतन की जरूरत है कि वह क्या कदम उठा सकती है, जिससे एक बेहतर संतुलन बनाया जा सके । आखिर में गिग इकॉनमी मॉडल न सिर्फ युवाओं को रोजगार का एक विकल्प मुहैया करा रहा है, बल्कि देश की आर्थिक दिशा को भी बदल रहा  है। इसके लिए संस्थापकों और निवेशकों को केवल अपने स्टार्टअप्स का विस्तार करने के बजाय उन्हें बेहतर बनाने पर ध्यान देना चाहिए। भारत जहाँ असंगठित श्रम बहुतायत में है, यहाँ गिग इकॉनमी के लिए संभावनाएं अपार हैं लेकिन यह आवश्यक है इसकी नींव उन श्रमिकों की भलाई और सुरक्षा पर आधारित हो जो इस पूरे मॉडल का आधार है।
अमर उजाला में 15/02/2025 को प्रकाशित 

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