Tuesday, May 20, 2025

इन्फ्ल्युंसर भी तो निष्पक्ष हों

 

इस डिजिटल होते दौर में सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक नया मंच प्रदान किया है। आज इस मंच का प्रभाव इतना व्यापक हो चुका है कि आम जनता से लेकर बड़ी-बड़ी कंपनियाँहर कोई इसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर रहा है। इस कड़ी में सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स इस बदलाव के सबसे बड़े वाहक बने हैं। आजकल कुछ भी खरीदने से पहले हम सबसे पहले इन इंफ्लुएंसर्स की राय और समीक्षा देखते हैं । मोबाइल से लेकर क्रीम तक कौन सा उत्पाद खरीदना चाहिए ये लोग यूट्यूब रिव्यू या इंस्टाग्राम रील देखकर तय करते हैं। यह एक तरह की इंफ्लुएंसर्स मार्केटिंग संस्कृति है जिसने पारंपरिक मार्केटिंग के तौर तरीकों पीछे छोड़ दिया है। इंफ्लुएंसर अब केवल उत्पादों का प्रचार ही नहीं करते बल्कि उपभोक्ताओं के भरोसे और निर्णय प्रक्रिया को गहराई से प्रभावित करते है।
 यही वजह है कि आज हर ब्रांड अपनी डिजिटल पहचान को मजबूत करने के लिए इन इंफ्लुएंसर्स का सहारा ले रहा है। अक्सर हम सभी के साथ ऐसा होता है कि किसी आकर्षक विज्ञापन को देखकर हम किसी उत्पाद को खरीदने का मन बना लेते हैंलेकिन जब सोशल मीडिया पर उसके नकारात्मक रिव्यू देखते हैंतो हमारा विचार बदल जाता है। कई बार इंफ्लुएंसर्स की नकारात्मक समीक्षा ब्रांड्स और कंपनियों को नागवार गुजरती है। और वे उस इंफ्लुएंसर पर मानहानि या कानूनी दबाव बनाने की कोशिश करते हैं। हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस बहस में हस्तक्षेप करते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि किसी ब्रांड की आलोचना वैज्ञानिक तथ्योंप्रमाणों और उपभोक्ता हितों पर आधारित हो तो उसे मानहानि नहीं माना जा सकता।
इतना ही नहीं कोर्ट ने व्यंग्य और अतिशयोक्ति को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में स्वीकार किया है। दरअसल सैंस न्यूट्रिशन प्राइवेट लिमिटेड नामक एक कंपनी ने चार यूट्यूबर्स के खिलाफ मानहानि का केस किया था। इन यूट्यूबर्स ने अपने चैनल्स पर हेल्थ और न्यूट्रिशन से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करते हुए कंपनी के प्रोडक्ट्स की गुणवत्ता और उनके विज्ञापन दावों पर सवाल उठाए थे। जिसके बाद कंपनी ने इनके खिलाफ मानहानि का दावा कर अदालत का दरवाजा खटखटाया था। मगर मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि  सोशल मीडिया पर तथ्य आधारित आलोचना कोई अपराध नहीं बल्कि अभिव्यक्ति का अधिकार है। इस फैसले के ने यह भी साफ कर दिया कि सोशल मीडिया अब केवल व्यक्तिगत राय तक सीमित नहीं हैबल्कि यह एक विशाल जनसंवाद और उपभोक्ता संवाद का मंच बन चुका है। 
वेबसाइट स्टेस्टिका के मुताबिक भारत में सोशल मीडिया यूजर्स की संख्या करीब 50 करोड़ पहुँच चुकी है।  वहीं केपीएमजी इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब 80 लाख कंटेंट क्रिएटर्स हैं जिनमें वीडियो स्ट्रीमर्स,इन्फ़्लुएन्सेर्स और ब्लॉगर्स शामिल हैं।  डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी आईक्यूब्स वायर के अनुसारकरीब 35% ग्राहक सोशल मीडिया पोस्ट और रील्स देखकर ही अपने खरीदारी के फैसले लेते हैंजबकि मेट्रो शहरों में यह आँकड़ा 80% से भी ऊपर है। दिलचस्प बात यह है कि लोग अब बड़े-बड़े सेलेब्रिटी इन्फ्लुएंसर्स के बजाय उन पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं जिनके फॉलोअर्स की संख्या कम है। ऑडियंस ऑउटलुक फोरकॉस्ट 2025 रिपोर्ट के मुताबिक 84 प्रतिशत लोग एक मिलियन से कम फॉलोवर्स वाले इंफ्लुएंसर्स पर ज्यादा भरोसा करते हैं। एफैलेबल एआई इंफ्लुएंसर मार्केटिंग फर्म के अनुसारभारत में अब ब्रांड्स का रुझान माइक्रो और नैनो इंफ्लुएंसर्स की ओर तेजी से बढ़ रहा है। माइक्रो इंफ्लुएंसर्स वे होते हैं जिनके फॉलोअर्स की संख्या 10 से 50 हजार के बीच होती हैजबकि नैनो इंफ्लुएंसर्स के फॉलोअर्स 10 हजार से कम होते हैं। ब्रांड्स इन्हें बेहतर इंगेजमेंट दर और अपेक्षाकृत कम खर्च के कारण चुनते हैं। हाईप ऑडिटर की रिपोर्ट के अनुसार इंफ्लुएंसर मार्केटिंग पर औसतन हर 1 डॉलर खर्च करने पर ब्रांड्स को करीब 4 डॉलर का रिटर्न मिलता है। 
यहीं कारण है कि ब्रांड्स अब अपने मार्केटिंग बजट का एक बड़ा हिस्सा इंफ्लुएंसर्स पर खर्च कर रहे हैं।फॉर्चुन बिजनेस के आंकड़ें बताते हैं कि 2024 तक दुनियाभर में इंफ्लुएंसर मार्केटिंग का कुल बाजार 20 बिलियन डॉलर को पार कर चुका है वहीं 2032 तक इसके 70 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है। हाल ही में भारत में लाइफस्टाइलगेमिंगस्वास्थ्यऔर शिक्षा जैसे क्षेत्रों में कई इंफ्लुएंसर्स की तादाद काफी बढ़ गई है। इंफ्लुएंसर्स मार्केटिंग फर्म क्वोरूज की हालिया रिपोर्ट के अनुसारभारत में इन्फ्लुएंसर्स की संख्या में पिछले चार वर्षों में 322% की वृद्धि हुई है। साल 2020 में देशभर में 9.62 लाख इंफ्लुएंसर थे वहीं 2024 तक ये आंकड़ा 40 लाख के करीब पहुँच गया है। जिसमें फैशन और ब्यूटी के क्षेत्र में सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। लाइफस्टाइल इंफ्लुएंसर्स पर की गई एक स्टडी कांतर इंफ्लुएंसर प्लेबुक 2025 के अनुसार भारत में 67% लोग पारंपरिक विज्ञापनों की तुलना में फैशन और ब्यूटी प्रोडक्ट्स के लिए इंफ्लुएंसर की सिफारिशों पर ज्यादा भरोसा करते हैं। इंफ्लुएंसर्स आमतौर पर दो तरीके से किसी ब्रांड या प्रोडक्ट का प्रचार करते हैं। एक तो पेड और स्पॉन्सर्ड पोस्ट के जरिएजिसमें ब्रांड्स उन्हें पैसे देकर अपने प्रोडक्ट का प्रचार करवाते हैंऔर दूसरा स्वतंत्र समीक्षा  के ज़रिएजिसमें इंफ्लुएंसर ईमानदारी से अपने  अनुभव उस प्रोडक्ट के लिए साझा करते हैं। हालांकि ग्राहक अक्सर पेड और स्पॉन्सर्ड वीडियो पर कम भरोसा करते हैं। यूएसए में किये गए मार्केटिंग चार्ट्स के एक सर्वे के मुताबिक 47 प्रतिशत लोग पेड इन्फ्लुएंसर्स की बातों को अविश्वसनीय मानते हैं। इसके विपरीतस्वतंत्र और निष्पक्ष रिव्यू को उपभोक्ता अधिक प्रामाणिक और भरोसेमंद मानते हैंक्योंकि उन्हें इसमें व्यावसायिक पक्षपात की संभावना कम लगती है। 
 यही कारण है कि जब इंफ्लुएंसर किसी उत्पाद की ईमानदार समीक्षा करता है चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक तो उपभोक्ता उसे विशेष महत्व देते हैं। इस संदर्भ में रेवंत हिमतसिंका उर्फ फूडफार्मर का मामला उल्लेखनीय है। साल 2023 में उन्होंने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो में कैडबरी बॉर्नवीटा में मौजूद चीनी और अन्य तत्वों को बच्चों के लिए हानिकारक बताया था। जवाब में कैडबरी ने उन्हें कानूनी नोटिस भेजाऔर दबाव में आकर उन्हें वीडियो हटाना पड़ा था। हालांकि इस घटना ने सोशल मीडिया पर व्यापक बहस छेड़ दी थी और उपभोक्ताओं और अन्य इंफ्लुएंसर्स ने रेवंत के समर्थन में आवाज भी उठाई। दिल्ली हाईकोर्ट के हालिया फैसले ने इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया हैजो इंफ्लुएंसर्स को तथ्य और वैज्ञानिक आधारित आलोचना करने की आजादी देता है। आज इंफ्लुएंसर मार्केटिंग एक शक्तिशाली उपकरण बन चुका है जो ब्रांड्स और उपभोक्ताओं के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी की भूमिका निभा रहा है। वहीं जैसे-जैसे इंफ्लुएंसर्स की भूमिका उपभोक्ता व्यवहार को आकार देने में और अहम होती जा रही है वैसे-वैसे  उनके लिए निर्भीकनिष्पक्ष और स्वतंत्र बने रहना जरूरी हो गया है। क्योंकि सोशल मीडिया का दायरा बढ़ने के साथ इंफ्लुएंसर्स की जिम्मेदारी भी बढ़ रही है।भारत में इनका भविष्य क्या होगा इसका फैसला समय को करना है |

  अमर उजाला में  20/05/2025 को प्रकाशित लेख 


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