90 के दशक के आखिरी सालों में जब इंटरनेट हमारी-आपकी ज़िंदगी में धीरे-धीरे दाख़िल हो रहा था, तब लेखन की दुनिया में ब्लॉगिंग के रूप में एक नई क्रांति ने जन्म लिया। ऐसा पहली बार हुआ था जब लेखकों को बिना किसी संपादक, प्रकाशक या अखबार के बजाय सीधे पाठकों से जुड़ने का एक मौका मिला। ब्लॉग्स ने लेखकों को एक मंच दिया जहाँ वे अपनी बात, अनुभव और विचारों को दुनिया के सामने रख सकते थे। वक्त बदलने के साथ जैसे-जैसे इंटरनेट की पहुँच बढ़ी, यह मंच भी और व्यापक होता गया। ब्लॉगिंग के उस दौर में कोई यात्रा के संस्मरण बाँट रहा था, कोई सामाजिक मसलों पर राय दे रहा वहीं कोई कविताएं लिख रहा था। लेकिन यह सिलसिला बहुत लंबा नहीं चला। सोशल मीडिया की दस्तक के साथ ही फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स सामने आए और धीरे-धीरे संवाद के तरीकों पर उनका असर दिखने लगा। अब लोग लंबा पढ़ने के बजाय छोटी, दृश्य आधारित सामग्री को तरजीह देने लगे हैं। पहले जहाँ लेख, कॉलम और विचार की शक्ल में संवाद होता था, अब वहीं रील्स, मीम्स और शॉर्ट्स का राज है। पर बीते कुछ सालों में कुछ ऐसे डिजिटल कोने उभर रहे हैं जो शब्दों को फिर से अहमियत दे रहे हैं और आय कमाने का जरिया भी । ऐसे ही एक न्यूजलेटर आधारित प्लेटफॉर्म का नाम है सब्सटैक, जो लेखकों और पाठकों के लिए नए ब्लॉगिंग विकल्प के रूप में सामने आया है।
सब्सटैक एक अमेरिकी ऑनलाइन न्यूजलेटर प्लेटफॉर्म है जो लेखकों को फ्री या पेड सब्सक्रिप्शन के माधयम से अपनी सामग्री प्रकाशित करने की आजादी देता है। टेक क्रंच की रिपोर्ट के मुताबिक हाल ही में इस प्लेटफॉर्म ने 5 मिलियन पे़ड और 40 मिलियन एक्टिव सब्सक्रिप्शन का आंकड़ा पार किया है। जिस तरह क्रियेटर्स यूट्यूब पर अपना चैनल बनाकर सीधे दर्शकों से जुड़ते हैं, ठीक उसी प्रकार सब्सटैक लेखकों को उनके पाठकों से सीधे जुड़ने का एक मौका देता है। यहाँ लेखकों को पूरी रचनात्मक स्वतंत्रता मिलती है और वे अपने सब्सक्राइबर लिस्ट और बौद्धिक संपदा के मालिक भी बने रहते हैं। जिस तरह एक समय ब्लॉग्स ने लेखकों और पाठकों के बीच एक संबंध स्थापित करते थे ठीक उसी प्रकार सब्सटैक जैसे प्लेटफॉर्म्स एक बार फिर आधुनिक ब्लॉगिंग वेबसाइट्स के रूप में सामने आये हैं। लेकिन पारंपरिक ब्लॉगिंग csx जहाँ लेखक आमदनी के लिए अक्सर वेबसाइट ट्रैफिक, विज्ञापन और एसईओ जैसी चीजों के पीछे भागते थे| वहीं सब्सटैक ने उस पूरी प्रणाली को उलट कर रख दिया है। यहाँ लेखक का न तो एल्गोरिदम की कृपा पर निर्भर होता है, न ही क्लिक-बेट शीर्षकों की होड़ पर। पाठक स्वयं तय करता है कि वह किस लेखक को पढ़ना चाहता है और सब्सक्रिप्शन के जरिये लेखकों की भी सीधे कमाई हो जाती है। एक्सिओस की एक रिपोर्ट के मुताबिक सब्सटैक पर एक लेखक अगर एक हजार सब्सक्राइबर्स बना लेता है तो वह लगभग 50 हजार डॉलर तक की कमाई कर सकता है। साल 2024 तक सब्सटैक का वार्षिक रेवेन्यू 25 मिलियन डॉलर को पार कर चुका है। कंपनी की कमाई मुख्यता पेड़ न्यूजलेटर्स की सब्सक्रिप्शन फीस के जरिये होती है। हालांकि तकनीक की इस दौड़ में आंकड़े हमे यह बताते हैं कि लोगों की लंबा पढ़ने की प्रवृति पहले जैसी नहीं रही है। स्टेस्टिका की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक औसत व्यक्ति जो साल 2004 में करीब 23 मिनट रोजाना पढ़ता था अब 2024 तक केवल 16 मिनट की पढ़ने को समय देता है। वहीं मोबाइल पर बिताया गया औसत समय रोजाना 4 घंटे से भी अधिक हो चुका है। इसमें ज्यादातर समय लोग वीडियो, सोशल मीडिया और स्क्रॉलिंग में खर्च कर देते हैं। ऐसे में लेखन आधारित प्लेटफॉर्म्स के लिए यह समय और भी चुनौतीपूर्ण हो गया है।
कोविड महामारी के दौरान कई भारतीय लेखकों और पत्रकारों ने सब्स्टैक, मीडियम जैसे प्लेटफार्म्स का रुख किया। हालांकि सब्सटैक की पहुँच अभी भारत में सीमित है। रॉयटर्स डिजिटल न्यूज रिपोर्ट 2024 के अनुसार केवल 12 प्रतिशत भारतीय ही डिजिटल न्यूज पढ़ते समय लंबे लेखों को प्राथमिकता देते हैं। ऐसे में पूरे इंटरनेट पर सतही और भावनात्मक और तुरंत उपभोग किए जा सकने वाले लेखों की बाढ़ सी आ गई है। चूंकि सब्सेटैक जैसे न्यूजलेटर प्लेटफॉर्म पर लोग स्वयं सब्सक्रिप्शन शुल्क अदा करते हैं, तो वे सतही समाचार की बजाय गुणवत्ता औऱ विश्लेषणात्मक सामग्री की अपेक्षा करते हैं। इंटरनेट पर जहाँ हर पल नए कंटेंट भरमार रहती है, वहीं एक तबका स्लो मीडिया का भी है। स्लो मीडिया का अर्थ है ऐसा कंटेंट जो त्वरित मनोरंजन नहीं बल्कि सोच, समझ और विवेक की माँग करता है। सब्सटैक जैसे प्लेटफॉर्म्स उसी दिशा में एक कदम हैं । जहाँ पाठक शोधपरक, नए दृष्टिकोण आधारित लेखों को महत्व देते हैं। हालांकि भारत में सब्सटैक पर लिखना जितना आसान है, लेखकों के लिए कमाना उतना ही मुश्किल है। आरबीआई का नियम कहता है कि अगर कोई भी ऑनलाइन सब्सक्रिप्शन अगर पाँच हजार से ज़्यादा का है तो ग्राहक को ओटीपी की जरूरत होती है, यह प्रक्रिया अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म्स पर पेमेंट करते समय कई बार विफल हो जाती है, जिससे लेखकों और पाठकों दोनों के लिए असुविधा उत्पन्न होती है। इसके साथ भारतीय लेखक इन प्लेटफॉर्म्स पर केवल भारतीय रुपये में ही भुगतान स्वीकार कर सकते हैं, जबकि वैश्विक प्लेटफॉर्म्स प्रायः डॉलर, यूरो जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा में लेन-देन करते हैं। इस असमानता के चलते भारतीय क्रिएटर्स को वैश्विक आय संभावनाओं का पूरा लाभ नहीं मिल पाता है। एक तरफ सोशल मीडिया की सफलता में भारतीय भाषाओं का बड़ा योगदान रहा है, वहीं दूसरी ओर अधिकतर न्यूजलेटर प्लेटफॉर्म्स अंग्रेजी में है। हालांकि अभी भी भारत में पेड सब्सक्रिप्शन की स्वीकार्यता कम है। ये भारतीय भाषाओं में लिखने वाले लेखकों के लिए यह मंच अभी तक पूरी तरह सहज नहीं बन पाया है। भारत में डिजिटल साक्षरता और इंटरनेट की पहुँच तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में नई पीढ़ी के लेखकों के लिए सबस्टैक एक अहम मंच हो सकता है। जिस तरीके से यूट्यूब पर लाखो भारतीय कंटेंट क्रियेटर्स ने लाखों की संख्या में दर्शक बनाए और अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार किया ठीक उसी तरह सब्सटैक भी स्वतंत्र लेखकों के लिए आय का स्त्रोत बन सकता है। हाल में रॉयटर्स इंस्टीट्यूट की ओर से किये गए सर्वे के मुताबिक भारत में लोगों का पारंपरिक मीडिया से भरोसा घट रहा है, रिपोर्ट के मुताबिक लोगों का पारंपरिक खबरों पर भरोसा 38 प्रतिशत तक सिमट गया है। ऐसे में सबस्टैक, लेखकों और पत्रकारों को संपादकीय दबाव से मुक्त होकर स्वतंत्र रूप से जनता से जुड़ने का अवसर दे रहा है।
तेजी से बदलते इस दौर में जहाँ रील्स और स्क्रॉलिंग ने हमारी गहराई से पढ़ने की आदत को हाशिए पर डाल दिया है, ऐसे में सब्सटैक जैसे न्यूजलेटर प्लेटफॉर्म पाठकों को डिजिटल शोर से दूर जाकर ठहरने, सोचने और समझने का एक ऐसा स्थान देते हैं जहाँ अब भी शब्दों की अहमियत ज़िंदा है। भारत जैसे देशों में मुद्रीकरण नियम, तकनीकी और भाषायी चुनौतियाँ जरूर हैं, लेकिन जिस तरह एक समय ब्लॉगिंग ने लोगों के बीच अपनी जगह बनाई थी, उसी तरह न्यूजलेटर आधारित लेखन भी धीरे-धीरे गंभीर पाठक वर्ग तैयार कर रहा है। अब जरूरत इस बात की है कि लेखक अपनी विश्वसनीयता और गुणवत्ता को बनाए रखे और पाठक शब्दों की अहमियत को फिर से समझें। क्योंकि इस डिजिटल भीड़ में वही टिकेगा जिसमें ठहराव हो, विचार और सबसे बढ़कर ईमानदारी हो।
अमर उजाला में 26/08/2025 को प्रकाशित
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