आज भारत में इंटरनेट और सस्ते मोबाइल डेटा प्लान्स के जरिये इस तरह के डिजिटल मनोरंजन और वर्चुअल अनुभवों की खपत तेजी से बढ़ी है। पारम्परिक टेलीविजन और फिल्म जैसे माध्यम लोगों की मनोरंजन की भूख को शांत करने में असमर्थ हो रहे हैं और एक ऐसे नए तरह के दर्शक वर्ग का निर्माण हो रहा है जो गानों और कहानियों से इतर कार्यक्रमों की तलाश में यूट्यूब जैसे डिजीटल प्लेटफ़ॉर्म की ओर रूख कर रहा है|ये एक ऐसा दर्शक वर्ग है जो डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर केवल मनोरंजन के लिए नहीं जाता। वह वहाँ मानसिक सुकून और दृश्य आनंद भी तलाशता है। बहुत साधारण से दिखने वाले कार्य अब आकर्षण रुपया का केंद्र बन गए हैं। मसलन साफ-सफाई, स्ट्रीट फूड, घरेलू काम या टूटी चीज़ की मरम्मत जैसे वीडियोज लाखों-करोड़ों बार देखे जा रहे हैं। इन वीडियो को देखकर दर्शक उस ठहराव और सुकून को अनुभव करता है जिसकी तलाश उसे भागदौड़ और तनाव से भरी रोजमर्रा की जिंदगी में रहती है।
कुल मिलाकर, यूट्यूब और सोशल मीडिया पर कंटेंट की यह विविधता बताती है कि दर्शकों की रुचि अब सिर्फ हँसी-मज़ाक या हल्के मनोरंजन तक सीमित नहीं है। लोग इन वीडियो से सीखना चाहते हैं, सुकून पाना चाहते हैं और रोज़मर्रा की ज़िंदगी के छोटे-छोटे अनुभवों का आनंद लेना चाहते हैं।
यही वजह है कि सोशल मीडिया और यूट्यूब पर अब अचानक ऑडली सेटिस्फाइंग वीडियो की जैसे बाढ़ आ गई है। ऑडली सैटिसफाइंग का मतलब ऐसे वीडियो जो देखने में भले ही सामान्य या अजीब लगें लेकिन उन्हें देखने पर हमें अप्रत्याशित रूप से गहरी संतुष्टि या तसल्ली का अनुभव होता है। यही अनुभव दर्शकों को एएसएमआर (Autonomous Sensory Meridian Response) और डीआईवाई Do it yourself विडियो को देखकर भी होता है। इन वीडियोज में हल्की आवाजें, धीमी गतिविधियां या बारीक ध्वनियाँ होती हैं, मस्तिष्क को एक माइक्रो मेडिटेशन जैसा प्रभाव देती हैं। वहीं डीआईवाई, डू इट योरसेल्फ वीडियो में रचनात्मकता के जरिये ध्यान खींचा जाता है। संस्था डाटा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब 80 करोड़ इंटरनेट उपभोक्ता हैं, जिसमें 50 करोड़ से अधिक सोशल मीडिया और यूट्यूब जैसे प्लेटफार्म्स का उपयोग करते हैं। हाल ही में कंसल्टिंग कंपनी ईवाई की ओर से एक चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया था, रिपोर्ट के मुताबिक साल 2024 में भारतीयों ने करीब 1.1 लाख करोड़ घंटे मोबाइल स्क्रीन पर बिताए। जिसका मतलब हुआ हर व्यक्ति ने औसतन रोजाना पाँच घंटें अपने फोन पर बिताए। इस समय का बड़ा हिस्सा सोशल मीडिया, गेमिंग और वीडियो देखने में लोगों ने गुजारा।
यूट्यूब पर कई अन्य प्रकार के वीडियो भी तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। जिनमें मेकओवर और ट्रांसफॉर्मेशन वीडियो, साफ-सफाई, कुकिंग, स्ट्रीट फूड, प्रकृति, गाँव की जिंदगी, अनबॉक्सिंग, रेस्टोरेशन, और सेटिस्फाइंग वीडियो शामिल हैं। पहले और बाद का संतोष हर किसी को अच्छा लगता है। इसमें कोई पुरानी दीवार को नया रंग मिलता है, जर्जर फर्नीचर को फिर से चमकाया जाता है या किसी जगह का मेकओवर करके उसे नया लुक दिया जाता है। इसके अलावा, लोग प्रकृति और गाँव की जीवन शैली से जुड़ी वीडियो को भी खूब पसंद कर रहे हैं। इन वीडियोज़ में सरल जीवन, प्राकृतिक दृश्यों और पारंपरिक गतिविधियों का अनुभव मिलता है, जो शहर की भागदौड़ भरी जिंदगी से एक तरह का मानसिक ब्रेक प्रदान करता है। अनबॉक्सिंग और रेस्टोरेशन वीडियो भी दर्शकों को उत्सुकता और संतोष देते हैं, चाहे वह कोई नया गैजेट खोलना हो या पुरानी चीजों को फिर से पहले जैसा करना। लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के एक शोध के मुताबिक, स्लाइम या सफाई वाले वीडियो लोगों को इसलिए इतने अच्छे लगते हैं क्योंकि उनका अंत पहले से तय होता है। ये निश्चितता दर्शकों में भरोसा और संतोष पैदा करती है, जिससे वे कम तनाव महसूस करते हैं। इसी तरह पॉल पोप अपने ब्लॉग में बताते हैं कि सेटिस्फाइंग वीडियो हमें तीन स्तर पर संतुष्टि देते हैं पहला, उपलब्धि का अहसास, दूसरा, दृश्य और श्रव्य आनंद और तीसरा, यह भरोसा कि आखिर में सब अच्छा ही होगा।
आज के दौर ये कंटेंट के नए स्वरूप केवल टाइमपास नहीं रह गए हैं, बल्कि हमारी आदतों, सोच और यहाँ तक की हमारी मानसिक संरचना को नया आकार दे रहे हैं।तस्वीर का दूसरा पहलु यह है कि साफ-सफाई, एएसएमआर, सेटिस्फाइंग वीडियो भले हमें कुछ सेकेंड का सुकून देते हैं, लेकिन उसी सुकून के साथ हमारा वक्त, हमारा ध्यान और हमारी असली ज़िंदगी भी फिसलती चली जाती है। यही कंटेंट का खेल है कि यह साधारण को असाधारण बना देता है, और हमें यकीन दिलाता है कि हम बस आराम कर रहे हैं। जबकि दरअसल उस आभासी आराम में हम अपनी सबसे कीमती चीज समय और उत्पादकता को खो रहे होते हैं।जबकि जब हम मोबाईल स्क्रीन से दूर आराम करते हैं या किताब पढ़ते हैं तो हमारी रचनात्मकता और उत्पादकता बढ़ती है | हम सोचते हैं हम स्क्रीन देख रहे हैं जबकि असल में स्क्रीन हमें देख रही होती है, और ये एल्गोरिद्म हमारे ही मनोविज्ञान को पढ़कर हमें नियंत्रित करते रहते हैं। लेकिन यह भी सच है कि इंटरनेट केवल लत और टाइमपास करने का साधन भर नहीं है। यहाँ सीखने और समझने की अनगिनत संभावनाएं भी मौजूद हैं। यह पूरी तरह हमारे चुनाव पर निर्भर करता है कि हम इसे केवल मनोरंजन का साधन बनाते हैं या फिर इसे अपने ज्ञान और क्षमता को निखारने का ज़रिया।
अमर उजाला में 25/09/2025 को प्रकाशित
कुल मिलाकर, यूट्यूब और सोशल मीडिया पर कंटेंट की यह विविधता बताती है कि दर्शकों की रुचि अब सिर्फ हँसी-मज़ाक या हल्के मनोरंजन तक सीमित नहीं है। लोग इन वीडियो से सीखना चाहते हैं, सुकून पाना चाहते हैं और रोज़मर्रा की ज़िंदगी के छोटे-छोटे अनुभवों का आनंद लेना चाहते हैं।
यही वजह है कि सोशल मीडिया और यूट्यूब पर अब अचानक ऑडली सेटिस्फाइंग वीडियो की जैसे बाढ़ आ गई है। ऑडली सैटिसफाइंग का मतलब ऐसे वीडियो जो देखने में भले ही सामान्य या अजीब लगें लेकिन उन्हें देखने पर हमें अप्रत्याशित रूप से गहरी संतुष्टि या तसल्ली का अनुभव होता है। यही अनुभव दर्शकों को एएसएमआर (Autonomous Sensory Meridian Response) और डीआईवाई Do it yourself विडियो को देखकर भी होता है। इन वीडियोज में हल्की आवाजें, धीमी गतिविधियां या बारीक ध्वनियाँ होती हैं, मस्तिष्क को एक माइक्रो मेडिटेशन जैसा प्रभाव देती हैं। वहीं डीआईवाई, डू इट योरसेल्फ वीडियो में रचनात्मकता के जरिये ध्यान खींचा जाता है। संस्था डाटा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब 80 करोड़ इंटरनेट उपभोक्ता हैं, जिसमें 50 करोड़ से अधिक सोशल मीडिया और यूट्यूब जैसे प्लेटफार्म्स का उपयोग करते हैं। हाल ही में कंसल्टिंग कंपनी ईवाई की ओर से एक चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया था, रिपोर्ट के मुताबिक साल 2024 में भारतीयों ने करीब 1.1 लाख करोड़ घंटे मोबाइल स्क्रीन पर बिताए। जिसका मतलब हुआ हर व्यक्ति ने औसतन रोजाना पाँच घंटें अपने फोन पर बिताए। इस समय का बड़ा हिस्सा सोशल मीडिया, गेमिंग और वीडियो देखने में लोगों ने गुजारा।
यूट्यूब पर कई अन्य प्रकार के वीडियो भी तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। जिनमें मेकओवर और ट्रांसफॉर्मेशन वीडियो, साफ-सफाई, कुकिंग, स्ट्रीट फूड, प्रकृति, गाँव की जिंदगी, अनबॉक्सिंग, रेस्टोरेशन, और सेटिस्फाइंग वीडियो शामिल हैं। पहले और बाद का संतोष हर किसी को अच्छा लगता है। इसमें कोई पुरानी दीवार को नया रंग मिलता है, जर्जर फर्नीचर को फिर से चमकाया जाता है या किसी जगह का मेकओवर करके उसे नया लुक दिया जाता है। इसके अलावा, लोग प्रकृति और गाँव की जीवन शैली से जुड़ी वीडियो को भी खूब पसंद कर रहे हैं। इन वीडियोज़ में सरल जीवन, प्राकृतिक दृश्यों और पारंपरिक गतिविधियों का अनुभव मिलता है, जो शहर की भागदौड़ भरी जिंदगी से एक तरह का मानसिक ब्रेक प्रदान करता है। अनबॉक्सिंग और रेस्टोरेशन वीडियो भी दर्शकों को उत्सुकता और संतोष देते हैं, चाहे वह कोई नया गैजेट खोलना हो या पुरानी चीजों को फिर से पहले जैसा करना। लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के एक शोध के मुताबिक, स्लाइम या सफाई वाले वीडियो लोगों को इसलिए इतने अच्छे लगते हैं क्योंकि उनका अंत पहले से तय होता है। ये निश्चितता दर्शकों में भरोसा और संतोष पैदा करती है, जिससे वे कम तनाव महसूस करते हैं। इसी तरह पॉल पोप अपने ब्लॉग में बताते हैं कि सेटिस्फाइंग वीडियो हमें तीन स्तर पर संतुष्टि देते हैं पहला, उपलब्धि का अहसास, दूसरा, दृश्य और श्रव्य आनंद और तीसरा, यह भरोसा कि आखिर में सब अच्छा ही होगा।
आज के दौर ये कंटेंट के नए स्वरूप केवल टाइमपास नहीं रह गए हैं, बल्कि हमारी आदतों, सोच और यहाँ तक की हमारी मानसिक संरचना को नया आकार दे रहे हैं।तस्वीर का दूसरा पहलु यह है कि साफ-सफाई, एएसएमआर, सेटिस्फाइंग वीडियो भले हमें कुछ सेकेंड का सुकून देते हैं, लेकिन उसी सुकून के साथ हमारा वक्त, हमारा ध्यान और हमारी असली ज़िंदगी भी फिसलती चली जाती है। यही कंटेंट का खेल है कि यह साधारण को असाधारण बना देता है, और हमें यकीन दिलाता है कि हम बस आराम कर रहे हैं। जबकि दरअसल उस आभासी आराम में हम अपनी सबसे कीमती चीज समय और उत्पादकता को खो रहे होते हैं।जबकि जब हम मोबाईल स्क्रीन से दूर आराम करते हैं या किताब पढ़ते हैं तो हमारी रचनात्मकता और उत्पादकता बढ़ती है | हम सोचते हैं हम स्क्रीन देख रहे हैं जबकि असल में स्क्रीन हमें देख रही होती है, और ये एल्गोरिद्म हमारे ही मनोविज्ञान को पढ़कर हमें नियंत्रित करते रहते हैं। लेकिन यह भी सच है कि इंटरनेट केवल लत और टाइमपास करने का साधन भर नहीं है। यहाँ सीखने और समझने की अनगिनत संभावनाएं भी मौजूद हैं। यह पूरी तरह हमारे चुनाव पर निर्भर करता है कि हम इसे केवल मनोरंजन का साधन बनाते हैं या फिर इसे अपने ज्ञान और क्षमता को निखारने का ज़रिया।
अमर उजाला में 25/09/2025 को प्रकाशित
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