भारत आज दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ मोबाइल इंटरनेट का बाजार है। औसतन हर व्यक्ति दिन में लगभग पाँच घंटे अपनी स्क्रीन से चिपका रहता है। यह सिर्फ एक आदत नहीं बल्कि हमारे समय, ध्यान और जीवनशैली पर तकनीक की गहरी पकड़ का संकेत है। पर सवाल यह है कि इन पाँच घंटों में हम देख क्या रहे हैं? लंबी फीचर फिल्में और टीवी धारावाहिक धीरे-धीरे हाशिए पर जा रहे हैं। आज का युवा सब कुछ शॉर्ट फॉर्म में चाहता है, चाहे मनोरंजन हो, भावनाएं हों या कहानियाँ। रील्स देखते-देखते उसकी ध्यान अवधि में लगातार गिरावट हो रही है, नतीजन घंटे भर के सीरियल पर गौर करना अब बड़ी चुनौती हो गई है। इस बदलते परिदृश्य को समझते हुए कंटेंट निर्माताओं ने हमारे सामने एक नया विकल्प पेश किया है, माइक्रो ड्रामा। यानी कुछ ही मिनटों में पूरी हो जाने वाली कहानियाँ, जिनमें सस्पेंस भी है, इमोशन भी और क्लाइमेक्स भी।
माइक्रो ड्रामा जिसे लोग वर्टिकल माइक्रो वेब-सीरीज भी कहते हैं, असल में स्मार्टफोन के लिए बनी एक नई कंटेंट स्टाइल है। ये छोटे-छोटे एपिसोड होते हैं, जिनकी समय अवधि 1-2 मिनट होती है। सबसे खास बात यह है कि ये वीडियो हॉरिजॉन्टल नहीं बल्कि पोर्ट्रेट मोड में बनाए जाते हैं ताकि इन्हें मोबाइल स्क्रीन पर आसानी से देखा जा सके। हर एपिसोड तेज रफ्तार, डायलॉग्स और ट्विस्ट से भरा होता है। कि देखने वाले को अगली कड़ी देखने का मन हो जाए। अमेरिका और चीन जैसे देशों में यह नया कंटेंट फॉर्मेट बाजार का रूप ले चुका है। चीन में इसका विस्तार सबसे ज्यादा हुआ है। समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक साल 2024 के अंत तक माइक्रो ड्रामा का बाजार 7 अरब डॉलर से भी अधिक हो गया है। यानी माइक्रो ड्रामा ने चीन के बॉक्स ऑफिस से भी अधिक राजस्व इकठ्ठा कर लिया। चीनी प्लेटफॉर्म क्वाइशोउ पर हर दिन 27 करोड़ लोग माइक्रो ड्रामा देखते हैं। इसी तरह अमेरिका में भी इन एप्स ने करीब डेढ़ अरब डॉलर का राजस्व हासिल किया है। भारत में भी इस माइक्रो ड्रामा फॉर्मेट ने अपने पैर पसारने शुरु कर दिए हैं। वेन्चर इन्टेलिजेंस के आंकड़ों के मुताबिक साल 2024 में माइक्रो ड्रामा ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने करीब 28 मिलियन डॉलर की रकम जुटाई वहीं इस साल जुलाई तक ही 44 मिलियन डॉलर का निवेश हासिल किया है। फाइनेंशनियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत का माइक्रो-ड्रामा बाजार अगले पाँच सालों में 5 से 10 अरब डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है। उदाहरण के लिए भारत में माइक्रो ड्रामा प्लेटफॉर्म कुकू टीवी ने एक साल के भीतर ही 5 करोड़ से अधिक डाउनलोड्स दर्ज किये हैं। इसी तरह रील टीवी,पॉकेट टीवी रील शॉर्ट, फ्लिकरील्स जैसे कई प्लेटफॉर्म भी इस नए शॉर्ट वीडियो फॉर्मेट में उतरे हैं। दिग्गज एंटरटेंनमेंट प्लेयर जैसे जी, टीवीएफ, एमएक्स प्लेयर जैसे बड़े प्लेटफॉर्म भी इसमें काफी निवेश कर रहे हैं। जी ने हाल ही में अपने वर्टिकल एप बुलेट को लॉन्च किया है।
कंपनियों के लगातार निवेश से साफ है कि यह नया फॉर्मेट अब महज़ एक ट्रेंड नहीं बल्कि आने वाले मनोरंजन उद्योग की मुख्य धारा बनने की ओर बढ़ रहा है। भारत में इस साल तक इंटरनेट उपयोगकर्ताओं ने 80 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया है। हाल ही में एक इंटरनेट के इस्तेमाल से जुड़ा एक चौकाने वाला आंकड़ा सामने आया है। कंसल्टिंग फर्म बर्नस्टीन की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में दूसरी और तीसरी श्रेणी के शहरों के इंटरनेट यूजर्स महीने में औसतन 35-40 जीबी डाटा का उपयोग करते हैं। जबकि मेट्रो शहरों में यह आंकड़ा 30 जीबी से भी कम है। ऐसे में माइक्रो ड्रामा बनाने वाले एप्स अपना ध्यान इन शहरों के लोगों पर ज्यादा कर रहे हैं। मसलन अलग-अलग भारतीय भाषा, संस्कृति और ऐसी कहानियाँ जिससे कोई भी जुड़ जाए। इन ड्रामों में ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं होती है, कई बार ये पारंपरिक धारावाहिकों की तरह बिना तर्क और बे सिर-पैर के भी दिखाई देते हैं। जिससे छोटे शहरों और कस्बों में माइक्रो ड्रामा अच्छी लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं। दिलचस्प बात यह भी है कि महिलाओं की हिस्सेदारी भी इसके दर्शक वर्ग में लगातार बढ़ रही है। दर्शक अक्सर बस या मेट्रो में सफर के दौरान, बिस्तर पर सोने से पहले या छोटे-छोटे ब्रेक में इन्हें देखकर अपना खाली समय भरते हैं।
हालांकि ये माइक्रो ड्रामा बड़े बजट, बड़े सेट या बड़े एक्टर्स के मोहताज नहीं होते हैं। बस अच्छी कहानी और कुछ ठीक-ठाठ कलाकारों से भी काम चल जाता है। फिल्म इंडस्ट्री में पहचान बनाने की राह देख रहे एक्टर्स-इंफ्लुएंसर्स के लिए भी यह एक अच्छा मंच है। साथ ही इसे बनाने में खर्च भी काफी कम होता है और शूटिंग भी जल्दी खत्म हो जाती है। इसलिए कंटेंट इडस्ट्री और प्लेटफॉर्म्स इस तरह के कंटेंट पर अच्छा खासा निवेश कर रहे हैं। अब तो इंस्टाग्राम रील्स और यूट्यूब शॉर्ट्स पर इन्फुलएंसर्स और कंटेंट क्रियेटर्स खुद का माइक्रो ड्रामा बना रहे हैं। वे अपने लंबे वीडियो को छोटे-छोटे क्लिप्स में काटकर हर क्लिप का अंत ऐसा रखते कि लगे अगले पार्ट में क्या होगा। इससे दर्शक खुद ही अगले पार्ट के लिए बेताब हो जाते है। हालांकि इस तरह के कंटेंट से क्रियेटर्स पर अब दबाव भी बना है कि कैसे कम समय में इतना कुछ कैसे दिखाया जाये। गाने पर लिप्सिंग, छोटे संदेश या इन्फॉर्मेटिव वीडियो तो करना आसान है, मगर एक मिनट में कोई कहानी या ड्रामा दिखाना काफी मुश्किल भी है। वह भी इतनी तेजी से कि दर्शक बीच में स्क्रॉल न कर दे। इसका मतलब है कि क्रियेटर को अब निर्देशक की तरह कहानी में इमोशन भी डालने है, सस्पेंस भी रचना है और क्लाइमेक्स भी गढ़ना है वो भी चंद मिनटों में ।
हालांकि माइक्रो ड्रामे की लोकप्रियता के साथ-साथ उनकी कंटेंट गुणवत्ता पर प्रश्न उठते हैं। चूंकि प्रोडक्शन तेज और बजट कम होता है, तो कई बार कहानियाँ सतही और बिना मतलब की होती है। आलोचक कहते हैं इनमें कई बार इनमें विवादित और अश्लील कंटेंट का भी उपयोग होता है। साथ ही चीन और अमेरिका की तरह भारत का दर्शक वर्ग अभी कंटेंट के लिए ज्यादा पैसे चुकाने का आदी नहीं है। भारत में इन देशों की तर्ज पर अभी हर एपिसोड के लिए भुगतान और फ्रीमियम जैसे मॉडल उतने सहज नहीं है। हालांकि कुकू टीवी जैसे एप्स अपने सब्सक्रिपशन मॉडल और कुछ एप्स अपने विज्ञापन मॉडल के जरिए पैसा बनाने की कोशिश कर रहे हैं, मगर यह अभी उतने कारगर नहीं है। अंत में माइक्रो ड्रामा न सिर्फ क्रिएटर्स और प्लेटफॉर्म्स के लिए नए अवसर खोल रहा है बल्कि दर्शकों की बदलती आदतों को भाँप कर मनोरंजन का नया फॉर्मेट भी परोस रहा है। छोटे एपिसोड, तेज़ और सस्पेंस भरी कहानी और मोबाइल-फ्रेंडली डिजाइन ने इसे डिजिटल दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया है। साथ ही भविष्य में यह बड़े बजट वाले प्रोजेक्ट्स का भी हिस्सा बन सकता है। इन शॉर्ट फॉर्म कंटेंट ने यह तो साफ कर दिया है कि सोशल मीडिया के दौर में कहानी कहने का तरीका बदल गया है , अब स्क्रीन छोटी है, समय म है लेकिन दर्शकों को मनोरंजन भरपूर और पहले से अधिक चाहिए।
अमर उजाला में 08/10/2025 को प्रकाशित लेख
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