Tuesday, January 11, 2022

उपभोक्ता का डाटा में बदल जाना

 

साल 2019 में कैलिफोर्निया के गर्वनर गेविन न्यूसम ने अमेरिका में एक डाटा डिविडेंड बिल प्रस्तुत किया था |जिसमें उपभोक्ताओं के निजी डाटा से पैदा हुई सम्पति का बंटवारा उपभोक्ताओं के साथ किये जाने की मांग की गयी थी  | इंसान का एक डाटा (आंकड़े )में परिवर्तित हो जाना अपने समय की सबसे विलक्षण घटना है  और आज इससे मूल्यवान कोई चीज नहीं है |अब तो इन्फोमोनिक्स का युग आ चूका है जो आंकड़ों से जुड़ा है |डाटा आज की सबसे बड़ी पूंजी है यह डाटा का ही कमाल  है कि गूगल और फेसबुक जैसी अपेक्षाकृत नई कम्पनियां दुनिया की बड़ी और लाभकारी कम्पनियां बन गयीं है|डाटा ही वह इंधन है जो अनगिनत कम्पनियों को चलाए रखने के लिए जिम्मेदार हैं |वह चाहे तमाम तरह के एप्स हो या विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साईट्स सभी उपभोक्ताओं  के लिए मुफ्त हैं |असल मे जो चीज हमें मुफ्त दिखाई दे रही है |वह सुविधा हमें हमारे संवेदनशील निजी डाटा के बदले मिल रही है |इनमे से अधिकतर कम्पनियां उपभोक्ताओं द्वारा उपलब्ध कराए  गए आंकड़ों को सम्हाल पाने में असफल रहती हैंजिसका परिणाम लागातार आंकड़ों की चोरी और उनके  दुरूपयोग के मामले सामने आते रहते हैं |साल 2020 में फेसबुक ने लगभग  छियासी बिलियन डॉलर और गूगल ने एक सौ इक्यासी  बिलियन डॉलर विज्ञापन से कमाए |

मजेदार तथ्य यह है कि फेसबुक कोई भी उत्पाद नहीं बनाता है और इसकी आमदनी का बड़ा हिस्सा विज्ञापनों से आता है और आप क्या विज्ञापन देखेंगे इसके लिए आपको जानना जरुरी है |यही से आंकड़े महत्वपूर्ण हो उठते हैं | 25 मई2018 को यूरोपीय संघ के नेतृत्व में जीडीपीआर (जनरल डाटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन) को पूरी तरह से लागू किया और इस तरह यूरोपीय संघ (इयू) में डाटा प्रोटेक्शन कानूनों की दिशा में एक मील का पत्थर स्थापित किया गया . जनरल डाटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (जीडीपीआर) एक नियंत्रण व्यवस्था है जिसके तहत समूचे यूरोपीय संघ में नागरिकों के डाटा प्रोटेक्शन अधिकारों को मजबूत बनाया गया है और इसे मानकीकृत‍ किया गया है | इसके तहत माना जाता है कि उपभोक्ता ही आंकड़ों का असली स्वामी या मालिक है | इस कारण से संगठन को उपभोक्ता से स्वीकृति लेनी पड़ती है तभी उपभोक्ता के आंकड़ों का प्रयोग किया जा सकता है या फिर उपभोक्ता से स्वीकृति मिलने के बाद ही आंकड़ों को समाप्त किया जाता है .  निजी जानकारियों को सुरक्षित रखने और इसके  गलत इस्तेमाल को रोकने  के लिए सरकार ने 11 दिसंबर 2019 को लोकसभा में पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल पेश किया था इस पर गठित संयुक्त संसदीय समिति (JPC) ने अपनी रिपोर्ट सदन के समक्ष नवम्बर 2021 में रख दी है जिस पर आगे चर्चा होनी है |जिस तरह इंटरनेट की इस दुनिया में आंकड़े महत्वपूर्ण हो चले हैं इस बिल के कानून बनने में अभी वक्त है |देश में जिस तेजी से इंटरनेट का विस्तार हुआ उस तेजी से हम अपने निजी आंकडे (फोन ई मेल आदि) के प्रति जागरूक नहीं हुए हैं परिणाम तरह तरह के एप मोबाईल में भरे हुए जिनको इंस्टाल करते वक्त कोई यह नहीं ध्यान देता कि एप को इंस्टाल करते वक्त किन –किन चीजों को एक्सेस देने की जरुरत है |यदि किसी उपभोक्ता ने मौसम का हाल जानने के लिए कोई एप डाउनलोड किया और एप ने उसके फोन में उपलब्ध सारे कॉन्टेक्ट तक पहुँचने की अनुमति माँगी तो ज्यादातर लोग बगैर यह सोचे की मौसम का हाल बताने वाला एप कांटेक्ट की जानकारी क्यों मांग रहा है उसकी अनुमति दे देंगे |

अब उस एप के निर्मताओं के पास किसी के मोबाईल में जितने कोंटेक्ट उन तक पहुँचने की सुविधा मिल जायेगी|यानि एप डाउनलोड करते ही उपभोक्ता आंकड़ों में तब्दील हुआ फिर उस डाटा ने और डाटा ने पैदा करना शुरू कर दिया |इस तरह देश में हर सेकेण्ड असंख्य मात्रा में डाटा जेनरेट हो रहा है पर उसका बड़ा फायदा इंटरनेट के व्यवसाय में लगी कम्पनियों को हो रहा है |यह भी उल्लेखनीय है कि डेटा चुराने के लिए बहुत से फर्जी एप गूगल प्ले स्टोर पर डाल दिए जाते हैं और गूगल भी समय समय  पर ऐसे एप को हटाता रहता है पर ओपन प्लेटफोर्म होने के कारण जब तक ऐसे एप की पहचान होती है तब तक फर्जी एप निर्माता अपना काम कर चुके होते हैं |ग्रोसरी स्टोर और कई तरह के क्लब जब कोई उपभोक्ता वहां से कोई खरीददारी करता है या सेवाओं का उपभोग करता है तो वे उपभोक्ताओं के आंकड़े ले लेते हैं लेकिन उन आंकड़ों पर उपभोक्ताओं पर कोई अधिकार नहीं रहता है |उपभोक्ता अधिकारों के तहत अभी आंकड़े नहीं आये हैं |किसी भी उपभोक्ता को ये नहीं पता चलता है कि उसकी निजी जानकारियों का (आंकड़ों )किस तरह इस्तेमाल होता है और उससे पैदा हुई आय का भी उपभोक्ता को कोई हिस्सा नहीं मिलता |आंकड़ों की दुनिया में भी वर्ग संघर्ष का दौर शुरू हो गया है किसी के निजी आंकड़ों की कीमत उसकी इंटरनेट पर कम उपस्थिति से तय होती है यानि अगर आप कई तरह की सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर हैं तो आपका डाटा यूनिक नहीं रहेगा लोगों के निजी डाटा सिर्फ कम्पनियों के प्रोडक्ट को बेचने में ही मदद नहीं कर रहे बल्कि  यह आंकड़े हमें  भविष्य के समाज के लिए तैयार भी कर रहे हैं जिसमें एआई यनी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक बड़ी भूमिका निभाने वाला है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंप्यूटर विज्ञान की वह शाखा है जो कंप्यूटर के इंसानों की तरह व्यवहार करने की धारणा पर आधारित है जो  मशीनों की सोचनेसमझनेसीखनेसमस्या हल करने और निर्णय लेने जैसी संज्ञानात्मक कार्यों को करने की क्षमता पर कार्य करता है पर भविष्य का भारतीय समाज कैसा होगा यह इस मुद्दे पर निर्भर करेगा कि अभी हम अपने निजी आंकड़ों के बारे में कितने जागरूक है |

अमर उजाला में 11/01/2022 में प्रकाशित 

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (12-01-2022) को चर्चा मंच     "सन्त विवेकानन्द"  जन्म दिवस पर विशेष  (चर्चा अंक-4307)     पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

Manisha Goswami said...

सार्थक लेख!
मैंने कल ही आपका यह लेख अमर उजाला में पढ़ा था!
आज के समय की सबसे बड़ी पूंजी डाटा ही है!
सर क्या आम लोग भी अपना लेख अमर उजाला पर प्रकाशित करवा सकते हैं या फिर सिर्फ कुछ खास लोग हैं जो अमर उजाला से जुड़े हो! अगर मैं भेजना चाहूं अपना देख तो क्या भेज सकती हूं! अगर हां तो कृपया पता बता दे दीजिए सर🙏🙏🙏

Sudha Devrani said...

बहुत सुन्दर एवं सार्थक लेख।

विकास नैनवाल 'अंजान' said...

सार्थक आलेख। कहते हैं डाटा ने अब तेल की जगह ले ली है। अगर व्यक्ति के डाटा से हुई कमाई में से कुछ किस्सा व्यक्ति को मिलता है तो यह एक सार्थक पहल होगी।

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