Friday, November 15, 2024

असली दुनिया से दूर ले जा रहे स्मार्टफोन

 

पिछले कुछ दशकों में तकनीक का हमारे जीवन पर गहरा असर हुआ है। तकनीक के बेजा इस्तेमाल ने हमारी आदतों, सोच और संज्ञानात्मक क्षमताओं में परिवर्तन लाया है। स्मार्टफोन, टैबलेट, लैपटॉप जैसे डिजिटल डिवाइस आज हर व्यक्ति की जीवनशैली का एक हिस्सा हो चले हैं। एक समय था जब खाली समय में किताबें पढ़ना, पत्र लिखना एक प्रचलित शौक हुआ करते थे, पर अब वह समय बिंज वॉचिंग, रील स्क्रॉलिंग और वीडियोज देखने में गुजरता है। विजुअल मीडिया खासकर शॉर्ट वीडियो ने हमारे देखने-सुनने के अनुभव को इतना मनोरंजक बना दिया है कि कई लोगों के लिए पढ़ना एक पुराने जमाने की बात लगता है। इस बदलाव का असर हमारे संज्ञानात्मक विकास और मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है, जो आज के शोधकर्ताओं के लिए एक चिंता का विषय बन गया है।बॉस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, 2010 में जहां लोग औसतन 2 घंटे फोन पर बिताते थे, वहीं 2024 में यह समय बढ़कर लगभग 4.9 घंटे हो गया है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में एक स्मार्टफोन उपयोगकर्ता दिन में औसतन 80 बार अपना फोन चेक करता है, जिनमें से ज्यादातर बार वह इसे किसी जरूरत से नहीं बल्कि सिर्फ आदतन करता है।

 इनमें से कई बार फोन चेक करने की आदत में सुबह उठने के 15 मिनट के भीतर फोन देखना भी शामिल है। यह आंकड़ा दिखाता है कि हम अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा डिजिटल स्क्रीन के सामने बिता रहे हैं। और उसका अधिकांश हिस्सा सिर्फ विजुअल कंटेट देखने में बिता रहे हैं। इस बढ़ते स्क्रीन टाइम और विजुअल कंटेंट के बढ़ते उपभोग से ना केवल हमारी पढ़ने लिखने की आदतें कम हो रही हैं बल्कि एक साथ ध्यान केंद्रित करने की क्षमता भी असर हो रहा है।स्मार्टफोन और विजुअल कंटेंट के बेतहाशा इस्तेमाल से हमारी किसी चीज़ पर ध्यान देने और समझने की क्षमता कम होती जा रही है। माइक्रोसॉफ्ट का एक अध्ययन बताता है कि डिजिटल लाइफस्टाइल की वजह से इंसानों की ध्यान अवधि एक गोल्डफिश से भी कम हो गई है! वहीं, कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर डॉ. ग्लोरिया मार्क का मानना है कि शॉर्ट वीडियो ऐप्स ने इस कमी को और भी बढ़ा दिया है। असल में, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे यूट्यूब और इंस्टाग्राम को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि हमारा दिमाग केवल छोटे और संक्षिप्त कंटेंट को एक बार में ही झट से पकड़ने के लिए तैयार हो जाए।  इसका सबसे बड़ा खतरा ये है कि ये प्लेटफॉर्म हमें इन कंटेंट की इतनी आदत डाल देते हैं कि इनसे दूर रहना मुश्किल हो जाता है।  जिससे हमें लंबे, जटिल और शब्दों से भरी किताबें, क्लासरूम के लंबे लेक्चर्स ऊबाऊ लगने लगते हैं और हमारा मस्तिष्क उन्हें पहले की तरह अच्छे से प्रोसेस नहीं कर पाता है। 

इन शॉर्ट वीडियो प्लेटफॉर्म पर जब हमें कुछ उबाऊ लगता है, तो हमारे पास अनगिनत स्क्रॉल का विकल्प होता है, लेकिन असल जिंदगी में ऐसा कुछ नहीं होता है।पीयू रिसर्च सेंटर के एक सर्वे के मुताबिक सोशल मीडिया के लगातार इस्तेमाल से छात्रों को कई बार पढ़ाई पर फोकस करने और काम पर ध्यान केंद्रित करने में मुश्किल महसूस होती है। सर्वे के मुताबिक 31% किशोरों ने माना कि वे क्लास में अपना ध्यान खो बैठते हैं क्योंकि उनका ध्यान बार-बार फोन चेक करने में रहता है, और 49% का कहना था कि उन्हें क्लासरूम में ज्यादा देर लेक्चर सुनना उबाऊ लगता है। रिपोर्ट में एक खास बात पर जोर दिया गया है कि अब किताबें पढ़ना पहले जितना आसान नहीं रह गया  है, जानकारी याद रखना एक चुनौती की तरह हो गया है जिससे लोगों में झुंझलाहट बढ़ गई है।भारत में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -5 के आंकड़े दिखाते हैं कि लोग पारंपरिक मीडिया जैसे अखबार, मैगजीन, और टीवी से मिलने वाली खबरों की तरफ अपनी रुचि खोते जा रहे हैं। लोगों की रुचि अब चीजों को डिजिटली देखने और सुनने की ओर बढ़ रही है। रॉयटर्स की 2023 डिजिटल  रिपोर्ट के एक सर्वे के  मुताबिक 71 प्रतिशत भारतीय ऑनलाइन समाचार देखना पसंद करते हैं वहीं केवल 29% लोगों का ही रुझान अखबार पढ़ने में है। वहीं इंडियन रीडरशिप सर्वे के मुताबिक 2026 तक ऑनलाइन न्यूज कारोबार 70 करोड़ भारतीयों तक पहुँच सकता है जबकि प्रिंट मीडिया का कारोबार 20 प्रतिशत तक घटने की संभावना है। खबरों के अलावा युवा पाठक अब ई-बुक्स और ऑडियोबुक्स को किताबों की तुलना में अधिक पसंद कर रहे हैं। सिरकाना बुकस्कैन की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2023 में 2022 के मुकाबले प्रिंट किताबों की बिक्री में 2.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं रिसर्च संस्था स्टेस्टिका के मुताबिक भारत में ऑडियोबुक का बाजार हर साल 10.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। ये आंकड़े दिखाते हैं कि लोगों का रुझान अब पढ़ने और लिखने के बजाये देखने की और सुनने की ओर बढ़ रहा है। विजुअल और ऑडियो मीडिया के इस बढ़ते बाजार का असर शिक्षा के क्षेत्र में भी नजर आता है। किताबों और लेखों की जगह अब वीडियो लेक्चर्स ने ली है। 

दिग्गज ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म यूडेमी के मुताबिक उनके प्लेफॉर्म पर इस समय 130 मिलियन से अधिक छात्र पढ़ाई करते हैं वहीं भारत की दिग्गज कंपनी अनएकेडमी पर 5 मिलियन से अधिक एक्टिव लर्नस मौजूद हैं। यूट्यूब पर तो यह आंकड़ा कहीं अधिक हो जाता है। दरअसल विजुअल और ऑडियो माध्यम से जानकारी को समझना और सीखना आसान हो जाता है। मगर छात्र किताबों को छोड़कर सिर्फ वीडियो लेक्चर्स पर निर्भर हो जायेंगे, तो इससे उनकी गहरी समझ पर असर पड़ सकता है। किताबें लोगों में विश्लेषण करने की क्षमता, एकाग्रता और एक गहरी सोच निर्माण करती है जो सिर्फ इन वीडियो लेक्चर्स से नहीं हो सकता है। लेकिन अगर यह सिलसिला यूं ही चलता रहा, तो हमारे पढ़ने और लिखने का कौशल सिर्फ शैक्षणिक कामों तक ही सीमित हो जाएगा। हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि किताबें पढ़ने से हमारी सोच, कल्पना और समझ बढ़ती है जिससे मनुष्य में तर्कशीलता और सृजनात्मकता आती है। हम अगर सिर्फ विजुअल और ऑडियो कंटेंट पर  निर्भर हो गए, तो हमारी सोचने और समझने की ताकत कमजोर हो सकती है। इसलिए हमें वक्त-वक्त पर अपने फोन से कुछ समय ब्रेक लेकर किताबों, लेखन और गहन अध्ययन के जरिए अपनी मानसिक क्षमता को बेहतर बनाना चाहिए। इस तरह हम दोनों दुनिया के फायदों का लाभ उठा सकते हैं और एक समग्र विकास की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।

नवभारत टाईम्स में 15/11/2024 को प्रकाशित 

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