आधुनिक विकास की अवधारणा के साथ ही
कूड़े की समस्या मानव सभ्यता के साथ आयी |जब तक यह प्रव्रत्ति प्रकृति सापेक्ष
थी परेशानी की कोई बात नहीं रही पर इंसान जैसे जैसे प्रकृति को चुनौती देता गया
कूड़ा प्रबंधन एक गंभीर समस्या में तब्दील होता गया क्योंकि मानव ऐसा कूड़ा छोड़ रहा
था जो प्राकृतिक तरीके से समाप्त नहीं होता या जिसके क्षय में पर्याप्त समय
लगता है और उसी बीच कई गुना और कूड़ा इकट्ठा हो जाता है जो इस प्रक्रिया को और
लम्बा कर देता है जिससे कई तरह के प्रदूषण का जन्म होता है और साफ़ –सफाई की समस्या उत्पन्न होती है |देश की हवा लगातार रोगी होती जा रही
है |पेट्रोल
डीजल और अन्य कार्बन जनित उत्पाद जिसमें कोयला भी शामिल है |तीसरी
दुनिया के देश जिसमें भारत भी शामिल है प्रदूषण के मोर्चे पर दोहरी लड़ाई लड़ रहे
हैं | पेट्रोल
डीजल और कोयला ऊर्जा के मुख्य श्रोत हैं अगर देश के विकास को गति देनी है तो
आधारभूत अवस्थापना में निवेश करना ही पड़ेगा और इसमें बड़े पैमाने पर निर्माण भी
शामिल है निर्माण के लिए ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए पेट्रोल डीजल
और कोयला आसान विकल्प पड़ता है दूसरी और निर्माण कार्य के
लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटान और पक्के निर्माण भी किये जाते हैं जिससे पेट्रोल
डीजल और कोयला के जलने से निकला धुंवा वातावरण को प्रदूषित करता है | ऊर्जा
के अन्य गैर परम्परा गत विकल्पों में सौर उर्जा और परमाणु ऊर्जा महंगी है और इनके
इस्तेमाल में भारत काफी पीछे है |पर्यावरण की समस्या देश में
भ्रष्टाचार की तरह हो गयी है जानते सभी है पर कोई ठोस कदम न उठाये जाने से सब इसे
अपनी नियति मान चुके है |हर साल स्मोग़ की समस्या से दिल्ली और उसके आस –पास
इलाके जूझते हैं| पर्यावरण एक चक्रीय व्यवस्था है। अगर इसमें कोई
कड़ी टूटती है, तो
पूरा चक्र प्रभावित होता है। पर विकास और प्रगति के फेर में हमने इस चक्र की कई
कड़ियों से खिलवाड़ करना शुरू कर दिया है। पूंजी वाद के इस युग में कोई चीज मुफ्त
में नहीं मिलती, इस
सामान्य ज्ञान को हम प्रकृति के साथ जोड़कर न देख सके, जिसका
नतीजा धरती पर अत्यधिक बोझ के रूप में सामने है|
दुर्भाग्य से भारत में विकास की जो
अवधारणा लोगों के मन में है उसमें प्रकृति कहीं भी नहीं है,हालाँकि
हमारी विकास की अवधारणा पश्चिम की विकास सम्बन्धी अवधारणा की ही नकल है पर
स्वच्छ पर्यावरण के प्रति जो उनकी जागरूकता है उसका अंश मात्र भी हमारी विकास के
प्रति जो दीवानगी है उसमें नहीं दिखती है |
तथ्य यह भी है कि बढ़ते तापमान और
मृत्यु दर के लगभग-सर्वनाश पूर्ण परिदृश्य की खुली भविष्य वाणी कर रहे है, लेकिन
हम भविष्य में इसके लिए उतनी मुस्तैदी से तैयार न हो रहे हैं | प्रदूषण
की समस्या को केवल एक आपदा या सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में देखा जा रहा
है, बल्कि
होना यह चाहिए कि इसे समाज के अलग-अलग क्षेत्रों जैसे श्रम, पेयजल, कृषि
और बिजली के विभागों के लिए भी चिंता का विषय होना चाहिए | इससे
जलवायु परिवर्तन की समस्या सबकी समस्या बनेगी जिससे अलग अलग स्तरों पर इससे
निपटने के लिए गहन विचार होगा |
प्रभात खबर में 23/01/2025 को प्रकाशित
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