Tuesday, March 11, 2025

जीवन जीने का तरीका

 

पिछले दिनों जीवन के एक नए अनुभव से सामना हुआ |बात कुछ यूँ है कि मुझे किन्ही कारणों से अरुणाचल प्रदेश की यात्रा करनी पडी |रास्ते में समय काटने के लिए ब्रॉनी वेयर की किताब द टॉप फाइव रिग्रेट्स ऑफ द डाइंग पढने लग गया |यात्रा के द्रश्य जितने सुहाने थे वाही किताब का कथ्य बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर रहा था |किताब उन लोगों के उपर थी जो जल्दी ही मर जाने वाले थे |उनको अपने जीवन से क्या –क्या शिकवे रह गए किताब उन्हीं के अनुभवों पर थी |मैं किताब समाप्त कर अपनी यात्रा के अंतिम पड़ाव अरुणाचल की जीरो घाटी के जनजातीय इलाके में पहुँच गया जहाँ उनके जनजातीय जीवन को करीब से देखने का मौका मिला | जीरो घाटी की खूबसूरती देख कर मैं मन्त्रमुग्ध हो रहा था लेकिन वो  किताब मेरे जेहन से नहीं निकल रही थी |किताब मोटे तौर पर इन कुछ बिन्दुओं के आस पास घूमती है |  काश मैंने अपने सपनों के अनुसार जीवन जिया होता, न कि दूसरों की अपेक्षाओं के अनुसार।  काश मैंने इतनी मेहनत न की होती।काश मैंने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का साहस किया होता।काश मैंने अपने दोस्तों के साथ संबंध बनाए रखा होता।  काश मैंने खुद को खुश रहने की अनुमति दी होती।

मैं समझ नहीं पा रहा था कि आज की इस दुनिया में मानसिक बीमारियाँ और दुःख क्यों बढ़ते जा रहे हैं |हालांकि हम सभ्यता और तकनीक के चरम की ओर लगातार बढे जा रहे हैं |इन्हीं बिन्दुवो में उलझा हुआ मैं जीरो घाटी के स्थानीय जनजाति आपातानीलोगों के गाँव में पहुंचा |खुशहाल लोग जो  अपनी पारंपरिक गीली चावल की के लिए प्रसिद्ध हैं।जिसमें चावल की पैदावार के साथ साथ मछलियाँ भी पाली जाती हैं | यह बिना मशीनीकरण के जैविक खेती का एक अनूठा उदाहरण है।इसी जनजाति के एक घर में जब घुसा तो जीवन के देखने के मेरे मायने बदल गए |एक छोटा सा बांस का ऊँचाई पर बना घर जिसमें घर के अनुपात में पीछे और आगे थोड़ी जगह छोड़ी गयी थी |न कोई ड्राईंग रूम न बेड रूम न कोई बेड बस  जमीन पर चारों तरफ बिस्तर बिछे हुए हैं और बीच में आग जल रही है | एक छोटा सा शौचालय घर से थोड़ा अलग था |मैं ठंड के महीने में जीरो घाटी में था लेकिन उस घर में बगैर किसी हीटर के ठीक ठाक  गर्माहट थी |आग के एक तरफ कुछ मांस टंगा था जो धुएं में धीरे –धीरे सिंक रहा था |कुछ मांस वहीं एक छोटी सी अलमारी में रखा हुआ था |भूख लगे तो वो मांस का टुकडा काम आयेगा |चावल और बाजरे की देशी वाइन बनाने के लिए घर का पीछे का हिस्सा काम में लाया जा रहा था |गाँव में एकदम शान्ति थी |कुछ मुर्गों की आवाजें जरुर उस शान्ति को भंग कर रही थी |उस शान्ति में ब्रॉनी वेयर की किताब द टॉप फाइव रिग्रेट्स ऑफ द डाइंग के बारे में सोच रहा था कि जीवन में हमें कितनी कम चीजों की जरुरत होती है वो चाहे लोग हों या रिश्ते |आपातानी जनजाति के लोग कितने कम में गुजर बसर कर रहे हैं और इन्हें किसी से कोई शिकायत नहीं वो चाहे सरकार हो या भगवान |अंधाधुंध विकास और सोशल मीडिया के दिखावे के चक्कर में कितनी फ़ालतू की चीजें और रिश्ते हम अपने आस –पास जुटा लेते हैं और अंत में वही हमारे दुःख और तनाव का कारण बनती हैं |
प्रभात खबर में 11/03/25 को प्रकाशित 

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