Thursday, November 8, 2018

हमेशा खुश रहना बेटे !



प्रिय बेटा
तुम्हारा ई मेल मिला .मैंने भी ई मेल करना सीख लिया है. ये तो तुम देख ही रहे होगे अब मुझे तुम्हें चिठ्ठी भेजने के लिए पोस्ट ऑफिस के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे. तुम्हारा भेजा हुआ मोबाइल मुझे तुम्हारा अहसास कराता है. ऐसा लगता है कि तुम मेरे आस पास हो.मैं तुमसे जब चाहूँ बातें कर सकता हूँ. मुझ जैसे बूढ़े के लिए यह सब तो वरदान है. जिन्दगी कितनी आसान  हो गयी है .तुमने लिखा है कि इस बार दीपावली पर तुम घर नही आ पाओगे.
 दुःख तो हुआ, लेकिन इस बात कि तसल्ली  भी है कि तुम भले ही कितनी दूर हो लेकिन मैं तुमसे जब चाहूँ बात कर सकता हूँ और विडियो कॉल से देख भी सकता हूँ .मैं जब पहली बार अपने घर से बाहर निकला था तो चिठ्ठी को घर तक पहुँचने में सात दिन लग जाते थे और आज अमेरिका  से तुम्हारा भेजा गया गिफ्ट दो दिन में मिल गयापैसे भी मेरे अकाउंट में ट्रान्सफर हो गए हैं .शुगर फ्री चॉकलेट तुम्हरी मां को बहुत पसंद आई.बेटा एक बात तुम मुझसे अक्सर पूछा करते थे कि पापा घर से स्कूल की दूरी तो उतनी ही रहती है लेकिन रिक्शे वाला किराया क्यों हर साल बढ़ा देता है मैं तुम्हें अर्थशास्त्र  के जरिये किराया क्यों बढ़ता है समझाता था. लेकिन मैं जानता था कि मैं तुम्हें समझा नहीं पा रहा हूँ .
इतनी उम्र  बीतने के बाद मुझे ये समझ में आ गया है कि परिवर्तन  को रोका नहीं जा सकता है, और अगर वह अच्छे के लिए हो रहा है तो हमें बाहें फैला कर उसका स्वागत करना चाहिए . जब तुमने पहली बार कंप्यूटर खरीदने की मांग  की थी तो मैं बड़ा कन्फ्यूज था. एक मशीन से पढ़ाई कैसे होगी ? लेकिन तुम्हारी जिद के आगे मुझे न चाहते हुए भी कंप्यूटर खरीदना पड़ा. इसी कंप्यूटर ने हम सब की जिन्दगी बदल दी .शुरुआती दौर   में मुझे लगता था की उम्र  के आखिरी पडाव पर मै यह सब सीख कर क्या करूँगा ? मैं अपनी पुरानी मान्यताओं पर टिका रहना चाहता था .तुम्हें काम करते देख थोड़ा बहुत मैं भी सीख गया . और आज जब तुम हम सब से इतनी दूर हो तुम्हारी कमी जरूर खलती है लेकिन जीवन में कोई समस्या  नहीं है .मुझे याद है कि तुम्हारी इंजीनियरिंग की फीस के ड्राफ्ट के लिए मुझे आधे दिन की छुट्टी लेनी पड़ती थी और बैंक में धक्के अलग से खाने पड़ते थे. आज एक ई मेल या फ़ोन पर ड्राफ्ट घर आ जाता है.
मेरी पुरानी मान्यताओं  से तुम अक्सर सहमत नहीं रहा करते थे और तुम जब पहली बार दीपावली में मिठाइयों   के साथ चौकलेट  के पैकेट ले आए थे तो मैंने तुम्हें डाटा था कि तुम अपनी परम्पराएँ भूलते जा रहे हो. शायद तुम्हें याद हो,  तुमने कहा था पापा परम्पराओं को जबरदस्ती नहीं थोपा जा सकता अगर खील बताशे के साथ चोकलेट आ गयीं तो बुरा क्या ?वाकई तुम सही थे बेटा.अब खुशियाँ मनाने के लिए किसी त्यौहार का इंतज़ार नहीं करना पड़ता है.जब तुम विदेश से लौटे थे तब हम पहली बार किसी होटल में खाना खाने गए थे तुमने मुझसे से एक बात कही थी पापा बचत बहुत जरुरी है, लेकिन आप खुशियाँ मनाने के लिए त्योहारों का इंतज़ार क्यों करते हैं. हालाँकि उस वक्त मुझे तुम्हारी बात बुरी लगी थी . आज जब मैं अपने आस पास की दुनिया को देखता हूँ. तब मुझे लगता है तुम सही थे. मेरी उम्र के तमाम लोग अपने ही बनाये नियम कानूनों में सिमटे रहना चाहते हैं. वो बदलना तो चाहते हैं पर न जाने किस डर से वो हर बदलाव को डर की नज़र से देखते हैं. लेकिन तुमको  देखकर लगता है कि तुम  जिन्दगी का लुत्फ़ उठाना जानते हो . मुझे गर्व है कि मैं तुम्हारा पिता  हूँ .खुश रहना मेरे बेटे.
दीपावली की शुभकामनायें.
प्रभात खबर में 08/11/18 को प्रकाशित 

3 comments:

Jyoti Dehliwal said...

एक पिता का बदलते वक्त के सामंजस्य बैठाते हुए अपने पुत्र को लिखा मार्मिक खत।

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन भाई दूज, श्री चित्रगुप्त पूजा और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

मन की वीणा said...

वाह बहुत सार्थक लेखन ।

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