Tuesday, October 17, 2023

डेटिंग से शादी तक

 इंटरनेट ने लोक व लोकाचार के तरीकों को काफी हद तक बदल दिया है। बहुत-सी परंपराएं और बहत सारे रिवाज अब अपना रास्ता बदल रहे हैं। यह प्रक्रिया इतनी तेज है कि नया बहुत जल्दी पुराना हो जा रहा है। जीवन साथी  के चुनाव  और दोस्ती  जैसी भावनात्मक   और  निहायत व्यक्तिगत  जरूरतों   के लिए  दुनिया भर  के डेटिंग एप  निर्माताओं  की निगाह  में भारत सबसे  पसंदीदा जगह बन कर उभर  रहा है | उदारीकरण के पश्चात बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ और रोजगार की संभावनाएं  बड़े शहरों ज्यादा बढीं ,जड़ों और रिश्तों से कटे ऐसे युवा  भावनात्मक  सम्बल पाने के लिए और ऐसे रिश्ते बनाने में जिसे वो शादी के अंजाम तक पहुंचा सकें  डेटिंग एप का सहारा ले रहे हैं |विवाह तय करने जैसी सामाजिक प्रक्रिया पहले परिवार और यहां तक कि खानदान के बड़े बुजुर्गोंमित्रोंरिश्तेदारों वगैरह को शामिल करते हुए आगे बढ़ती थीअब उसमें भी ‘’ लग गया है। 

मैट्रीमोनी वेबसाइट से शुरू हुआ ये सिलसिला अब डेटिंग एप्प्स तक पहुँच गया है । आम तौर पर इंटरनेट की सहायता से किसी सम्बन्ध  को बनाना एक विशुद्ध शहरी घटना माना जाता था और छोटे शहरों को इस प्रवृत्ति से दूर माना जाता था |इस सांस्कृतिक अवरोध के बावजूद डेटिंग का व्यवसाय भारत में तेजी से पैर पसार रहा है |इंटरनेट साईट स्टेटीस्टा के अनुसार इस समय देश में 38 मिलीयन लोग डेटिंग एप्स का इस्तेमाल कर रहे हैं और रेवेन्यु के हिसाब से यह संख्या विश्व में चीन और अमेरिका के बाद तीसरे नम्बर की सबसे बड़ी संख्या है |ऑनलाइन  प्यार भारत में एक नयी परिघटना है|साल 2013 से शादी कराने वाली वेबसाईटस सुर्ख़ियों में आना शुरू हुईं पर डेटिंग एप का ट्रेंड साल 2014 में टिंडर के आने के बाद शुरू हुआ और तबसे वैश्विक रूप से लोकप्रिय डेटिंग एप बम्ब्ल , हिन्ज देश में अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुके हैं |जब से होमोसेक्सुअल्टी भारत में अपराध न रही “एलजीबीटीक्यू” समुदाय के लिए ग्रिंडर जैसे एप भी भारत आये पर बड़ी कम्पनियों में शामिल टिंडर और बम्ब्ल भी समान लिंगी साथियों के चुनाव की सुविधा भी देते हैं | देश की सांस्कृतिक विविधता के हिसाब से सभी प्रचलित डेटिंग एप्स अंग्रेजी भाषा को ही प्रमुखता देते हैं , टिंडर ने हिन्दी भाषा में भी अपनी सेवा देनी शुरू कर दी है पर अभी भी अंग्रेज़ी का बोलबाला है जबकि देश की मात्र बारह प्रतिशत जनसंख्या ही अंग्रजी बोलती है |

भारत में भाषा की समस्या डेटिंग एप के मामले में उतनी गंभीर नहीं क्योंकि लोग मोटे तौर पर यह जानते हैं कि एप चलता कैसे है जब संदेशों के आदान प्रदान की बात आती है तो लोग हिन्दी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को रोमन में लिख लेते हैं |इन एप्स ने अपने भारतीय संस्करणों में भारतीयता को भी अपनाया है | सम्बन्ध बनाने में शादी की ही प्रधानता रही है और इसीलिये भारत में शादियाँ कराने वाली वेबसाईट्स तेजी से उभरी |देश की सबसे बड़ी शादी कराने वाली वेबसाईट मेट्रेमोनी डॉट कॉम के देश में पांच मिलीयन सक्रीय उपभोक्ता हैं | डेटिंग पूरी तरह से पश्चिमी अवधारणा है और जब ये विदेशी वेबसाईट्स भारत आयीं तो इन्हें दिक्कतों का सामना करना पडा| इस स्थिति का मुकाबला करने में इन्होने अपनी रणनीति बदली| जिसमें डेटिंग के सहारे ऐसे गंभीर सम्बन्ध विकसित करने पर जोर दिया गया| जो शादी तक पहुंचें मतलब ऐसे एप्स अपनी एप्रोच में न तो डेटिंग जैसे कैजुवल रहें और न ही शादी कराने वाली वेबसाईट्स जैसे कठोर |सांस्कृतिक जटिलताओं के कारण देश में डेटिंग एप्स को ज्यादा मान्यता नहीं दी जाती है पर जब छोटे शहरों में पले बढ़े लोग अपने शहरों  से बाहर निकले तो ये एप उनकी पसंद में शामिल हो गए पर वे अपने शहरों में इनका इस्तेमाल ज्यादा नहीं करते रहे हैं |विडम्बना यह हुई कि जब देश में लॉक डाउन लगा तो ये अलग –अलग जगहों पर बिखरे हुए लोग अपने घर लौट आये |

डेटिंग एप ट्रूली मैडली की शुरुआत भारत में साल 2014 में हुई|  उसके रेवन्यू में साल 2020 में दस गुना बढ़ोत्तरी उन शहरों से हुई जो देश के मेट्रोपोलिटन शहर नहीं थे और उसके कुल रेवन्यू में साल 2019 के मुकाबले चार गुना बढ़ोत्तरी हुई |सामाजिक रूप से देखेंतो जहां पहले शादी के केंद्र में लड़का और लड़की का परिवार रहा करता थाअब वह धुरी खिसककर लड़के व लड़की की इच्छा पर केंद्रित होती दिखती है। वर या वधू तलाशने का काम अब मैट्रीमोनिअल साइट व ऑनलाइन डेटिंग साइट कर रही हैं और वह भी बगैर किसी बिचौलिये के। वैसे यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि इससे पारदर्शिता आई है। कुछ और तथ्यों पर गौर किया जाना भी जरूरी है। इन एप्स  से बने रिश्तों  में धोखाधड़ी के कई मामले भी सामने आए हैं। दी गई जानकारी कितनी सही हैइसे जांचने का कोई तरीका ये एप्स उपलब्ध नहीं कराते। उनकी जिम्मेदारी लड़का-लड़की को मिलाने तक सीमित रहती है। हालांकिझूठ बोलकर शादी कर लेने में नया कुछ नहींपर इंटरनेट एप्स से बने रिश्तों  के पीछे कोई सामजिक दबाव नहीं काम करता और गड़बड़ी की स्थिति में आप किसी मध्यस्थ को दोष देने की स्थिति में भी नहीं होते, और न कोई ऐसा होता हैजो बिगड़ी बात को पटरी पर लाने में मदद करे।

 अमर उजाला में 17/10/2023 को प्रकाशित 

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