Friday, October 20, 2023

फेक वीडियो की बढ़ती चुनौती

 यह भी कैसी विडंबना है कि तकनीक ने एक तरफ हमारे जीवन को काफी आसान बनाया हैदूसरी तरफ कई स्तरों पर अराजकता भी पैदा कर दी है। आज सूचनाओं के संजाल में यह तय करना मुश्किल है कि क्या सही है क्या गलत। इससे हमारे समाज के सामने एक नई चुनौती पैदा हो गई है। गलत सूचनाओं को पहचानना और उनसे निपटना आज के दौर के लिए एक बड़ा सबक है। फेक न्यूज आज के समय का सच है। फेक न्यूज ज्यादातर भ्रमित करने वाली सूचनाएं होती हैं। अक्सर झूठे संदर्भ या गलत संबंधों को आधार बनाकर ऐसी सूचनाएं फैलाई जाती हैं। हाल ही में मुम्बई उच्च न्यायालय की गोवा पीठ के न्यायाधीश महेश सोनक ने अपने एक व्याख्यान में  कहा कि सोशल मीडिया या मास मीडिया जनसंहार का हथियार बन गया है और उनसे निपटने के लिए अब तक कोई समन्वित कोशिश नहीं की गई है।अपनी बात को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा  ‘‘हम ऐसे युग में रहते हैंजहां हम कंप्यूटर और स्मार्टफोन जैसी सोचने वाली मशीनों को पसंद करते हैं और उनका महिमामंडन करते हैं। लेकिन हम उन व्यक्तियों पर बेहद संदेह करते हैं या उनसे सावधान भी रहते हैंजो सोचने की कोशिश करते हैं।कुछ दशक पहलेदुनिया जनसंहार के हथियारों के खिलाफ लड़ रही थी। आजसोशल मीडिया या मास मीडिया बड़े पैमाने पर ध्यान भटकाने वाले हथियार बन गए हैं और फिर भी उनसे निपटने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए हैं।समाचार न पढ़ने या न देखने सेऐसा लगा कि मुझे कई मुद्दों के बारे में जानकारी नहीं है। लेकिन मुझे लगता है कि यह गलत जानकारी होने से बेहतर है।

कुछ साल पहलेपत्रकारिता में आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस के आगमन  ने  पत्रकारिता उद्योग में काफी उम्मीदें बढ़ाई थी कि इससे  समाचारों का वितरण  एक नयी पीढी में पहुंचेगा और पत्रकारिता जगत में  क्रांतिकारी उलटफेर होगा। उम्मीद तो यह भी जताई जा रही थी कि आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस से फेक न्यूज  और मिस इन्फोर्मेशन  के प्रसार को रोकने का एक प्रभावी तरीका भी मिल जाएगा पर व्यवहार में इसके उलट ही हो रहा है | एक तरफ प्रौद्योगिकी ने आर्थिक और सामाजिक विकास किया है तो दूसरी फेक न्यज  में काफी  वृद्धि हुई हैलोकतांत्रिक राजनीति के लिए अड़चन  पैदा करने में और चारित्रिक हत्या करने में  इंटरनेट एक शक्तिशाली औजार के रूप में उभरा है|अपने सरलतम रूप मेंएआई को इस तरह से समझा जा सकता है कि उन चीजों को करने के लिए कंप्यूटर का उपयोग किया जाता  है जिनके लिए मानव बुद्धि की आवश्यकता होती है।ए आई  बाजार पर कब्जा करने के लिए इन दिनों माइक्रोसॉफ्ट के चैटजीपीटी और गूगल के बार्ड के बीच चल रही प्रतिस्पर्धा इसका एक उदाहरण है |

फेक न्यूज की समस्या को डीप फेक ने और ज्यादा गंभीर बना दिया है |असल में डीप फेक में आर्टिफिसियल इंटेलीजेंस एवं आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल के जरिए किसी वीडियो क्लिप  या फोटो पर किसी और व्यक्ति का चेहरा लगाने का चलन तेजी से बढ़ा हैइसके जरिए कृत्रिम तरीके से ऐसे क्लिप या फोटो विकसित कर लिए जा रहे हैं जो देखने में बिल्कुल वास्तविक लगते हैं|‘डीपफेकएक बिल्कुल अलग  तरह  की समस्या  है इसमें वीडियो सही होता है पर तकनीक से चेहरेवातावरण या असली औडियो बदल दिया जाता है और देखने वाले को इसका बिलकुल पता नहीं लगता कि वह डीप फेक वीडियो देख रहा है |एक बार ऐसे वीडियो जब किसी सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर आ जाते हैं तो उनकी प्रसार गति बहुत तेज हो जाती है|इंटरनेट पर ऐसे करोडो डीप फेक वीडियो मौजूद हैंदेश में जहाँ डिजीटल साक्षरता बहुत कम है वहां डीप फेक वीडियो समस्या को गंभीर करते है |हालाँकि  ऐसे वीडियो को पकड़ना आसान भी हो सकता है क्योंकि ऐसे वीडियो इंटरनेट पर मौजूद असली वीडियो से ही बनाये जा सकते हैं पर इस काम को करने के लिए जिस धैर्य की जरुरत होती हैवह भारतीयों के पास वहाट्स एप मेसेज को फॉरवर्ड करने में नहीं दिखती |ऐसे में जब फेक न्यूज वीडियो के रूप में मिलेगी तो लोग उसे तुरंत आगे बढ़ने में नहीं हिचकते | ए सी नेल्सन की हालिया इंडिया इंटरनेट रिपोर्ट 2023' शीर्षक वाली रिपोर्ट के आंकड़े चौंकाते हैं ग्रामीण भारत में 425 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता थेजो शहरी भारत की तुलना में चौआलीस प्रतिशत  अधिक थाजिसमें 295 मिलियन लोग नियमित रूप से इंटरनेट का उपयोग करते थे। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि लगभग आधा ग्रामीण भारत इंटरनेट तीस प्रतिशत  की मजबूत वृद्धि के साथइंटरनेट पर है और जिसके  भविष्य में और बढ़ने की सम्भावना है| सामान्यतः: सोशल मीडिया एक तरह के ईको चैंबर का निर्माण करते हैं जिनमें एक जैसी रुचियों और प्रव्रत्तियों वाले लोग आपस में जुड़ते हैं |ऐसे में डीप फेक वीडियो के प्रसार को रोकने के लिए बुनियादी शिक्षा में मीडिया साक्षरता और आलोचनात्मक सोच पाठ्यक्रम को शामिल करने की आवश्यकता है ताकि जागरूकता को बढ़ावा दिया जा सकेजिससे  लोगों को फेक न्यूज  से बचाने में मदद करने के लिए एक सक्रिय दृष्टिकोण का निर्माण किया जा सके। डीपफेक और फेक न्यूज  से सतर्क रहने के लिए हमें आज और आने वाले कल के जटिल डिजिटल परिदृश्य वाले भविष्य  के लिएसभी उम्र के लोगों को तैयार करने में पूरे भारत में एक बहु-आयामीक्रॉस-सेक्टर दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

 दैनिक जागरण में 20/10/2023 को प्रकाशित 

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