साथियों संचार हमारे जीवन का प्रमुख अंग है मानव सभ्यता का विकास संचार के विकास के साथ हुआ है हम रोज न जाने कितने लोगों से मिलते हैं और बात करते हैं लेकिन कुछ लोगों की बात का तरीका हमें इतना भा जाता है की हम मंत्र मुग्ध हो जाते हैं एक आची संचारक में नेत्रत्व का गुर आ जात है अब यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है की वह अपने इस गुड्ड को परिष्कृत करता है नहीं , संचार एक कला है और यह हमारे व्यक्तित्व को निखरती है.
अरे ये क्या बातों बातों में मैं आपको संचार है क्या ये तो बताना भूल ही गया ? संचार का मतलब होता है किसी निश्चित चिह्न संकेतों द्वारा भावों विचारों सूचनाओं आदि का आदान प्रदान ,मानव के सम्बन्ध में निश्चित चिह्न और संकेत से मतलब उस भाषा से है जिसमे हम बात करते हैं तथा लिपि उसी भाषा का लिखित संकेतेकरण होता है .
मुझे उम्मीद है अब आप संचार का मतलब समझ गए होंगे. किसी भी क्षेत्र में सफलता पाने के लिए व्यक्ति के व्यक्तित्व की निर्णायक भूमिका होती है। व्यक्तित्व का विकास हम स्वयं भी कर सकते हैं। आपकी बोली आपके व्यक्तित्व का आईना होती है। आप जैसे ही कोई पहला वाक्य बोलते हैं, सामने वाला आपकी गहराई आपके नॉलेज का बहुत जल्द आकलन कर लेता है। आपके बात करने का अंदाज आपके कठिन से कठिन काम को ठोस बना भी सकती है और सत्यानाश भी कर सकती है। आपके बात करने का अंदाज कैसा हो, जिससे आपके सभी काम आसानी से बन भी जाए और आपके आगे बढ़ने का मार्ग भी खुल जाए।वार्तालाप अथवा बात करने का अंदाज आपके संपूर्ण व्यक्तित्व को दर्शाता है। आप लोगों ने अक्सर देखा होगा हम सिर्फ बोले जा रहे होते हैं बगैर सोचे समझे कि हम कैसे बोल रहे हैं और क्या बोल रहे हैं ?
आज मै आप लोगों को प्रभावी संचार के कुछ तरीके बताऊंगा जिससे हम अपने व्यक्तित्व को संवार सकते हैं
. बोलने से पहले यह अपने दिमाग में निश्चित कर लें कि आपको क्या बोलना है और क्यों बोलना है आपसे जितना पूछा जाए उतना ही उत्तर दें अनावश्यक बातें करना आपके व्यक्तित्व को नकारात्मक बनाएगा .
.कभी कभी चुप रहना बोलने से ज्यादा बेहतर होता है इसलिए मौन की ताकत को पहचानिये .हर बात पर बोलना या पर्तिक्रिया देना ठीक नहीं होता.
. यदि आपको लगता है कि आप बहुत सारे लोगों के बीच अपनी बात नही रख पाते या आपको झिझक महसूस होती है तो आपके अन्दर कहीं न कहीं अताम्विश्वास की कमी है और इसको दूर करने का तरीका भी बहूत आसान है किसी चिन्तक ने कहा था बोलना बोलने से आता है तो शीशे के सामने खड़े होकर अपने आप से बातें करने का अभ्यास कीजिये ,शीशे के सामने बोलने से आपको इस बात का भी अहसास होगा कि बोलते वक्त आपके शरीर की भावः भंगिमा कैसी है और यदि कोई समस्या है तो आप उन्हें दूर कर पायेंगे और आपके अन्दर एक नयी उर्जा का संचार होगा.
जब भी बोलें या लिखे इस बात का ध्यान रखें कि वह स्पस्ट हो ऐसे संचार का कोई मतलब नहीं जो आस्पस्ट हो ऐसा संचार भरन्तियाँ बढ़ाएगा और समस्यें पैदा करेगा .
.अक्सर ये भी ध्यान दे कि बोलते या लिखते वक्त किसी खास शब्द का इस्तेमाल बार -बार तो नहीं कर रहे हैं इस तरह की प्रवर्ती प्रभावी संचार में बाधा है और संचार को दोषपुरण बनाती है.
. नर्मता प्रभावी संचार का एक आवश्यक गुण है यदि आप नर्मता से अपनी बात कहेंगे तो सामने वाला आपकी बात गौर से सुनेगा .
. प्रभावी संचार के लिए यह भी जरूरी है कि हम उन व्यक्तियों के भाव भंगिमाओं पर ध्यान दें जिनके साथ हम संचार में शामिल हैं प्रतिपुस्ती प्रभावी संचार के लिए आवश्यक है .
प्रभावी संचार का सीधा सम्बन्ध हमारे मष्तिस्क से होता है बोलने से पहले सोचा जाता है और हमारी सोच जैसी होगी उसका असर हमारे संचार में भी दिखेगा इसलिए अपनी सोच को हमेशा सकारात्मक रखना चाहियें.
.न तो बहुत तेज़ बोलना चाहिए और न ही बहुत धीमे क्योंकि यदि आप समझ नहीं पाते तो संसार के सुन्दरतम शब्द भी निरार्थक ध्वनियाँ है.
.आप सभी ने सुना होगा एक अच्छा वक्ता होने के लिए एक अच्छा शोरता होना जरूरी है अच्छा बोलने के लिए दूसरो के विचारों को भी सुने हमेशा आपनी बात थोपने की कोशिश न करें .
इस बात का ध्यान रखें कि आपके द्वारा प्रयोग किए गए वाक्य दूसरों के सामने आपकी छवि को बनाते या बिगाड़ते है। इसलिए जहां तक हो सके, अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करने से बचें। किसी की निंदा करने में हमें बहुत मजा आता है, लेकिन किसी समय पर आपके द्वारा की गई निंदा आपके लिए काफी महंगी साबित हो सकती है, इसलिए इस आदत से दूर रहना ही आपके लिए हितकर होगा।
आखिरकार जुबान से निकली बात वापस नहीं आती।.जिससे भी आप बातें कर रहे हों, उसके नाम लेना न भूलें। ऐसा करने से सामने वाले को सम्मान की अनुभूति होती है। साथ ही, सामने वाले की नजर में आपकी इज्जत ही बढ़ती है। आगे चलकर वह भी आपका सम्मान करने लगता है।
.जो बात मुख्य रूप से आप कहने गए हैं, उसे सबसे पहले प्रस्तुत करें। जिस बात को अहमियत देनी हो, वहां खास शब्दों पर बल दें। पर्याप्त उतार-चढ़ाव के साथ अपनी बात कहें। इससे सामने वाला आपकी बातें ध्यान से सुनेगा।
झूठ ज्यादा देर टिकता नहीं है। अपने बारे में सही आकलन कर वास्तविक तस्वीर पेश करें। निष्ठापूर्ण व्यवहार की सभी कद्र करते हैं। अपने काम के प्रति आपकी ईमानदारी आपको जीवन में सर्वोच्च स्थान दिला सकती है। भूलें नहीं, कार्य ही पूजा है और यही हमें प्रतिदिन कुछ नया करने, नया सोचने तथा नई योजना बनाने के लिए उत्साहित एवं प्रेरित करता है । जो कुछ किया गया है, उससे और भी अच्छा कैसे किया जाए, अपनी परिस्थिति और साधन के अनुरुप अच्छे से अच्छा कैसे किया जाए, इसकी प्रेरणा हमें प्रतिदिन के मूल्यांकन एवं आन्तरिक अवलोकन से मिलती है । हर दिन एक नये संकल्प के साथ नया कार्य प्रारम्भ करना चाहिए, जो सफल व्यक्तित्व की सहज विशेषता है ।
आप अपने शरीर को दिन में कई बार खुराक देते हैं; किन्तु अपने मस्तिष्क को भूखा मत रखिए। अपने पास एक दैनन्दिनी रखिए, जिसमें आप नई पुस्तकों के नाम अंकित करते रहिए। पुस्तक-विक्रेताओं से नई-पुरानी पुस्तकों के सूचीपात्र प्राप्त कीजिए। दूकानों पर सस्ती पुरानी पुस्तकों के लिए चक्कर लगाइए। अपनी एक स्वतन्त्र लाइब्रेरी बनाइए, चाहे वह कितनी ही छोटी हो। उन पुस्तकों पर गर्व कीजिए, जो आपके घर की शोभा बढ़ाती हैं। प्रत्येक पुस्तक को खरीदने के बाद, आप अपने मानसिक आकार में एक मिलीमीटर की वृद्धि करते हैं।
जीवन के कुरुक्षेत्र में आधी लड़ाई तो आत्मविश्वास द्वारा ही लड़ी जाती है। यदि योग्यता के साथ आत्मविश्वास विकसित किया जाए तो कॅरियर के कुरुक्षेत्र में आपको कोई पराजित नहीं कर पाएगा। अध्ययन के साथ-साथ उन गतिविधियों में भी हिस्सा लें, जिनसे आपका आत्मविश्वास बढ़े।
आकाशवाणी लखनऊ से प्रसारित वार्ता
Sunday, April 12, 2009
Thursday, April 9, 2009
मंदी का मौसम और हम
मंदी एक इकनॉमिक रियलिटी है जो आई है तो जायेगी भी लेकिन बुराई की सबसे बड़ी अच्छाई यही है की वो बुराई है नहीं समझे दोस्तों बात सिंपल है लाइफ वैसे ही कॉम्पलिकेटेड है तो उसे और कॉम्पलिकेटेड क्यों बनाया जाए थोडा सिंपल सोचो यार मंदी इकोनोमी मे है हमारी सोच और जज्बे मे नहीं क्योंकि इस यंगिस्तान में हर यांगिस्तानी ज्यादा का इरादा तो कर ही सकता है . अभी मैं पढ़ रहा था कि मंदी के बाद कई इंडियन घर लौट रहे हैं कुछ अपने देश लौट रहे हैं कुछ अपने नेटिव प्लेस जहाँ वे नए अवसरों की तलाश में हैं अब आप सोचेंगे की मंदी में नौकरियां हैं कहाँ ?लेकिन यही तो अंदर की बात है क्रिएटिविटी का एक रूल है जब कुछ न समझ में आये तो उल्टा सोचो शायद इसीलिए ईस्ट ऑर वेस्ट इंडिया इज द बेस्ट जब आप सर्व नहीं कर सकते तो सर्विस प्रोवाइडर बन जाइये और दूसरों को सर्व करने का मौका दीजिये.इंडियन इकोनोमी कुछ मायनों में अनोखी है यहाँ असंगठित क्षेत्र बहुत बड़ा है यहाँ डेली यूज़ की हर चीज़ एक प्रोडक्ट में नहीं बदली है .मंदी इसलिए हमें इतना नहीं रुला रही है और अभी भी हम अपनी डेली लाइफ की बहुत से चीज़ें बगैर ब्रांड की परवाह किये बगैर यूज़ करते हैं इसलिए यहाँ डिमांड पैदा करने की गुंजाईश ज्यादा है फिर आप भूल रहे हैं हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं भारत एक कृषि प्रधान गावों का देश है इस एरिया में रिसर्च और डेवेलोपमेंट की काफी संभावनाएं हैं.कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा हर परेशानी कुछ नयी राहें दिखा ही देती है और जिससे जिन्दगी बेहतर ही होती है एवरेस्ट कोई एक दिन में फतह नहीं कर लिया गया था लोग कोशिश करते रहे और गलतियों से सीखते रहे । ये गलतियों से सीख का नतीजा था कि एवरेस्ट जीता गया ।हमारे सिटीज़ ओवर क्राउडेड हैं .उनका एम्प्लॉयमेंट बेस इंडस्ट्री और सर्विस है जो इस वक्त मंदी से सबसे जयादा प्रभावित है. हमारे गावं अभी भी विकास की मुख्य धारा से दूर हैं डेवेलपमेंट का दीपक यहाँ नहीं जला है और इसीलिए गाँव खाली हो रहे हैं और शहरों में भीड़ बढ़ रही है . हमारे शहर इस भीड़ को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं हैं जिससे हर जगह भीड़ , शोर और प्रॉब्लम है.मंदी ने कम से कम हमें ये मौका तो दिया हम एक बार रुकें और सोचें कि हम कैसा और किसका डेवेलपमेंट चाहते हैं .आज का यूथ अब बैक टू दा रूट जा रहा है जहाँ अवसर भी हैं और पोटेंसियल भी .राजविंदर पाल सिंह एज MBA इन एडवर्टाइजिंग कई मल्टी नेशनल में काम कर चुके हैं अब मछली पालन से जुड़ गए हैं इस समय पंजाब के तेरह जगहों पर उनके फिश पोंड हैं वे गावों की पंचायतों को नजूल की ज़मीन पर फिश पोंड बनाने के लिए मोटिवेट कर रहे हैं जिससे नए रोज़गार पैदा किये जा सके.विनोद सैवियो सिंगापुर में एडवर्टाइजिंग एक्सीक्यूटिव थे .अब वे बंगलोर के पास कुनिगल में खेती कर रहे हैं और लोगों को रोज़गार दे रहे हैं . अशोक गोपाला एज ३९ इन्जीनियरिंग ग्रेजुएट एक मल्टी नेशनल में काम करते थे लेकिन अब वे रुड़की के पास खेती कर रहे हैं. ये एक्साम्पल भले ही कम हों लेकिन शुरुवात हो चुकी है और हर बड़े काम की शुरुवात छोटी चीज़ों से होती है . ये ट्रेंड डेडीकेटेड एजुकेटेड यूथ अगर गावों से जुड़ गया तो हमारे गावों की तस्वीर बदलते देर नहीं लगेगी .मंदी के बहाने ही सही हमें अपने गावों की याद तो आयी, नहीं तो शहरों में रहने वाले यूथ को गावों तो बस यादों में ही याद आता था . ये चेंज सोसाइटी के लिए तो अच्छा ही है इससे हमारी इकोनोमी को भी बूस्ट मिलेगा जिससे रोज़गार पैदा होगा और डिमांड बढेगी साथ साथ गावं भी आगे बढ़ेंगे . शहरों और गावों के बीच अंतर भी ख़तम होगा
आई नेक्स्ट मैं ९ अप्रैल को प्रकाशित
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