Thursday, March 7, 2024

जिम्मेदारी निभाने का समय

 

मेरे जीवन के कई बसंत सिर्फ यह सुनते सुनते बीत गए कि देश का युवा जागरूक नहीं है  पर क्या ऐसा वास्तव में है|  मस्ती की पाठशाला में बिंदास जीवन का पाठ पढ़ रहे युवाओं ने देश ही  क्या सारी दुनिया में दिखा दिया कि ना तो वो गैर जिम्मेदार हैं और ना ही अपने आस पास के परिवेश से कटे हुए| वास्तव ऐसा है नहीं |यही युवा है जो दुनिया भर की सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर कई मुद्दों पर लोगों को जागरूक करने में लगे हुए है |वो एक गाना है “ना बोले तुम ना मैंने कुछ कहा” कोई ध्वनि प्रदूषण नहीं हुआ पर सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर जो कुछ लिखा पढ़ा गया उसका असर सारे देश ने देखा और सुना भी |निर्भया काण्ड के बाद युवाओं की इसी मुहिम ने लोगों को  अपने घरों से बाहर निकालाये एक सेल्फ मोटीवेटेड प्रयास था ना लाउडस्पीकर बजे ना लोग घरों घरों में जाकर घूमे यानि ना बिल आये ना दिल घबराये फिर भी कमाल का असर हुआ और महिलाओं के लिए एक नया कानून बना  |अब जब सिस्टम को सुधारने की बात की जायेगी तो उसका भारत में कम से कम एक ही तरीका है राजनीति  में अच्छे और नए लोग ज्यादा से ज्यादा चुनकर आयें और ये काम पांच साल में एक ही बार होता है 

एक बार अगर हमने गलती कर दी तो पांच साल का इन्तिज़ार करना पड़ेगा .अमूमन यूथ चुनाव  के समय वोट ये सोचकर नहीं जाता कि हमारे एक वोट से क्या होगा और वही एक कम  वोट सही  कैन्डीडेट को हरा देता है . अब  देश का यूथ पोलिटकली एक्टिव हो रहा है |हम जैसा सिस्टम चाहते हैं उसको बनाने की जिम्मेदारी हम किसको सौपने जा रहे हैं और इसके लिए हमें वोट देने जाना जरूरी है .वोटिंग डे को होलिडे मत समझिए ये सबसे बड़े काम का दिन है .मेरी बात पढकर शायद आप मान जाएँ पर वो जिसने ये लेख नहीं पढ़ा या चुनाव जिसकी  प्राथमिकता में नहीं है उनका क्या करें ? चलिए एक कोशिश कर के देखते हैं हम सभी टेक्सेवी तो हैं ही ना तो तकनीक को हम  अपना माध्यम बनाते हैं .आज से सोशल नेटवर्किंग साईट्स का इस्तेमाल लोगो को इस बात को मोटिवेट करने के लिए कीजिये कि लोग वोट देने जरुर जाएँ और वोट सही उम्मीदवार को दें .

वोट देने के बाद तुरंत अपना स्टेटस अपडेट कीजिये जिससे आपका वो फ्रैंड जो थोडा सुस्त है उसे भी याद आ जाए कि जैसे हर एक फ्रैंड जरूरी होता है वैसे ही हर एक वोट भी .ब्लॉग लिखिए ,ग्रुप्स बनाइये लोगों को याद दिलाइए कि वोट डालने के लिए उन्होंने अपना नाम रजिस्टर्ड कराया या नहीं और ये काम हमें इसलिए करना है कि   ये हमारा देश है पर इसकी ज्यादा जिम्मेदारी हर यांगिस्तानी की है ध्यान रखियेगा भारत में 70 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या ऐसे युवाओं की हैजिनकी उम्र 35 वर्ष से कम है तो आपकी जिम्मेदारी ज्यादा है .सोच क्या रहे हैं जल्दी से लग जाइए काम पर ये गाते हुए हर एक वोट जरूरी होता है.

--प्रभात खबर में 07/03/2024 को प्रकाशित लेख 

'मीम' संवाद की भाषा भाषा बदल रहे हैं

 इंटरनेट ने लोक व लोकाचार के तरीकों को काफी हद तक बदल दिया है। बहुत-सी परंपराएं और बहत सारे रिवाज अब अपना रास्ता बदल रहे हैं। यह प्रक्रिया इतनी तेज है कि नया बहुत जल्दी पुराना हो जा रहा है। अब शब्द नहीं भाव और परिवेश बोल रहे हैं|जहाँ संचार के लिए न तो किसी भाषा विशेष को जानने की अनिवार्यता है और न ही  वर्तनी और व्याकरण की बंदिशें|तस्वीरें एक सार्वभौमिक भाषा बनकर उभर रही हैं दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाला व्यक्ति तस्वीरों और वीडियो  के माध्यम से अपनी बात दूसरों तक पहुंचा पा रहा है|जाहिर है इंटरनेट के कारण हम एक ऐसे युग के साक्षी बन रहे हैं जो अपने आप में अनूठा है |संवाद के इसी माध्यम के रूप में जेन जी में तेजी से लोकप्रिय होती शैली है “मीम” | पिछले कई वर्षों मेंइंटरनेट उपयोगकर्ताओं ने नए शॉर्टहैंड बनाकर तेजी से संवाद करने के तरीके विकसित किए हैं। BTW और LOL जैसे संक्षिप्त रूप इंटरनेट उपयोगकर्ताओं द्वारा बनाए गए एक पूरी तरह से नए शब्दकोष का हिस्सा हैं। इमोटिकॉन्सया टेक्स्ट-आधारित एक्सप्रेशनजैसे =) और :-भी लोकप्रिय मीम बन गए हैं। इंटरनेट मीम  भी विषय हो सकते हैंजैसे ब्लॉग या अन्य वेबसाइटों द्वारा लोकप्रिय हुए  लोग स्थान या जानवर। उदाहरण के लिएएक सार्वजनिक घोटाले में शामिल एक राजनेता या सेलिब्रिटी कई ब्लॉगर्स के लिए इंटरनेट मीम  बन सकता है|

मीम  की |आधुनिक परिभाषा एक विनोदी छवि, वीडियो, किसी टेक्स्ट ( पाठ) का टुकड़ा या एनीमेटेड तस्वीर( जीआईएफ) है जो सोशल मीडिया पर अक्सर थोड़े बदलाव के साथ प्रसारितहै, मीम्स कोई भी बना सकता है और किसी भी चीज़ के बारे में हो सकता है, वर्तमान घटनाओं से लेकर किसी भी सांसारिक कार्यों तक, जिसमें राजनीतिक सांस्कृतिक और फिल्म के सन्दर्भ शामिल होते हैं |मीम की लंबाई अलग-अलग होती है. क्योंकि वे छवियों, प्रतीकों , पाठ, वीडियो या जीआईएफ का रूप ले सकते हैं , वे एक छवि या वाक्यांश जितने छोटे हो सकते हैं और एक विस्तृत कथा के साथ कई मिनट के वीडियो जितने लंबे हो सकते हैं। कुछ मीम्स की सोशल मीडिया पर लोकप्रियता क्षणिक  होती है, जबकि कुछ  वर्षों तक टिके रहते हैं।मीम्स की अवधारणा की जड़ें जीवविज्ञानी रिचर्ड डॉकिन्स की 1976 में प्रकाशित  किताब, द सेल्फिश जीन से मिलती हैं । डॉकिन्स ने मीम  को एक सांस्कृतिक इकाई के रूप में परिभाषित किया है | जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलती है, जैसे कि जीन प्रजनन के माध्यम से फैलते हैं। मीम  शब्द स्वयं ग्रीक शब्द माइमेमा  से आया है , जिसका अर्थ है "जिसकी नकल की जाती है।"डॉकिन्स की किताब से पता चलता है कि मीम्स के उदाहरण सदियों पुराने हैं। लेकिन इन दिनों, जब हम मीम्स के बारे में सोचते हैं, तो आमतौर पर इंटरनेट मीम्स ही दिमाग में आते हैं। पहला इंटरनेट मीम व्यापक रूप से " डांसिंग बेबी " माना जाता है, जिसमें एक 3डी एनिमेटेड बच्चा जो चा-चा नृत्य कर रहा था, यह 1990 के दशक के अंत में लोकप्रिय हुआ।इंटरनेट कंसल्टिंग फर्म रेड्शीर की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2022 में भारतीय स्मार्टफोन उपयोगकर्ता प्रतिदिन तीस  मिनट का समय मीम्स देखने में बिता रहे हैं |

साल 2021 के मुकाबले भारत में मीम्स  खपत में  अस्सी प्रतिशत की वृद्धि हुई है |इसी शोध के अनुसार मीम लोगों का तनाव दूर करने का एक अच्छा माध्यम बन कर उभरा है |2021 के इंस्टाग्राम के आंकड़ों  से पता चलता है कि सारी दुनिया में मीम शेयरिंग में दोगुनी वृद्धि हुई है, आज रोज लगभग  एक मिलियन मीम शेयर किए जाते हैंजो 2018 में 500,000 से अधिक है| ये आंकड़े मीम की बढ़ती लोकप्रियता को उजागर करते  है। फोर्ब्स के एक शोध के  अनुसार  मीम विज्ञापन  अभियान ईमेल मार्केटिंग की तुलना में चौदह प्रतिशत  अधिक क्लिक-थ्रू दर प्राप्त करते हैंजो उनकी शक्तिशाली वायरल अपील और व्यापक पहुंच को प्रदर्शित करता है।हालाँकि मीम का एक अवधारणा के रूप में अभी आंकलन होना बाकी है लेकिन पर्याप्त इंटरनेट जागरूकता के अभाव में मीम चरित्र हनन का भी एक बड़ा जरिया बन रहे हैं |जिसके लिए लोगों को सचेत होने की जरुरत है |मनोरंजन के लिए किसी का मजाक किस हद तक उड़ाया जाए |दूसरी समस्या सामान्य लोगों की निजता की भी है जिनके चेहरे इंटरनेट पर किसी वजह से वायरल हो जाते हैं फिर वे तरह तरह के मीम का हिस्सा बन जाते हैं |संवाद और मनोरंजन का यह नया रूप भविष्य में कैसे जिम्मेदारी से विकसित होगा |इसका फैसला होने में अभी वक्त है |

अमर उजाला में 07/03/2024 को प्रकाशित 

Saturday, March 2, 2024

इन्फ़्लुएन्सर मार्केटिंग पर नकेल

 बात ज्यादा पुरानी नहीं है |आज से पांच साल पहले किसी ने नहीं सोचा था कि एक ऐसा वक्त भी आएगा जब आप कुछ न करते हुए भी बहुत कुछ करेंगे और पैसे भी कमाएंगे |बात चाहे यात्राओं की हो या खान –पान की या फिर फैशन की देश विदेश की बड़ी कम्पनिया ऐसे लोगों को जो इंटरनेट पर ज्यादा फोलोवर रखते हैं अपने प्रोडक्ट के विज्ञापन के लिए पैसे दे रही हैं और उनके खर्चे भी उठा रही हैं इंटरनेट की दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण बात है इसकी गतिशीलता नया बहुत जल्दी पुराना हो जाता है और नई संभावनाओं के द्वार खुल जाते हैं |सोशल मीडिया प्लेटफोर्म नित नए रूप बदल रहे हैं उसमें नए –नए फीचर्स जोड़े जा रहे हैं |इस सारी कवायद का मतलब ऑडिएंस को ज्यादा से ज्यादा वक्त तक अपने प्लेटफोर्म से जोड़े रखना |इसका बड़ा कारण इंटरनेट द्वारा पैदा हो रही आय भी है |अब सोशल मीडिया इतना तेज़ और जन-सामान्य का संचार माध्यम बन गया कि इसने हर उस व्यक्ति को जिसके पास स्मार्ट फोन है और सोशल मीडिया पर उसकी एक बड़ी फैन फोलोविंग  वह एक चलता फिरता मीडिया हाउस बन गया  है अब वह वक्त जा चुका है जब सेलेब्रेटी स्टेट्स माने के लिए किसी को सालों इन्तजार करना पड़ता था |सोशल मीडिया रातों रात लोगों को सेलिब्रटी बना दे रहा है जिसमें बड़ी भूमिका ,फेसबुक ,इन्स्टाग्राम और यू ट्यूब जैसी साईट्स निभा रही हैं |

मूल्यांकन सलाहकार फर्म (Valuation Advisory firm  Kroll) क्रोल  की एक नवीन रिपोर्ट के अनुसार एक साल में भारतीय ब्रांड्स ने अपनी इन्फ़्लुएन्सर मार्केटिंग पर खर्च दोगुना कर दिया |पिछले एक साल में एक तिहाई भारतीय ब्रांड्स ने सोशल मीडिया इन्फ़्लुएन्सेर्स पर अपना खर्च दो गुना कर दिया है कोरोना महामारी ने बड़ी मात्रा में डिजिटलीकरण को प्रेरित किया भारत में सोशल मीडिया की कंटेंट क्रियेटर इंडस्ट्री पच्चीस प्रतिशत की रफ़्तार से बढ़ रही है और जिसके साल 2025 में 290|3 मिलीयन डालर हो जाने की उम्मीद है |  सोशल मीडिया इन्फ़्लुएन्सेर्स   अब ब्रांड को एक बड़े दर्शक वर्ग पर कम खर्च में पहुंचने का एक सुलभ तरीका बन रहा है आज भारत में लगभग 80 मिलियन कॉन्टेंट क्रिएटर हैंजिनमें वीडियो स्ट्रीमर्स,   इन्फ़्लुएन्सेर्स    और ब्लॉगर्स शामिल हैं। डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी आई क्यूब्स वायर के  एक शोध से पता चलता है कि लगभग 35 प्रतिशत  ग्राहकों के खरीदारी निर्णय सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर पोस्टरील्स और वीडियो देखकर लिए जा रहे हैं | affable|ai नामक एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता-संचालित इंफ्लुएंसर मार्केटिंग प्लेटफोर्म के आंकड़ों के अनुसार नैनो- इंफ्लुएंसरजिनके पास 10,000 से कम फॉलोअर हैंने 2022 में इंस्टाग्राम पर सबसे अधिक इंगेजमेंट अर्जित की है |जबकि माइक्रो इंफ्लुएंसर जिनके दस हजार से पचास हजार के बीच फॉलोअर ने इन्स्टाग्राम और यू ट्यूब पर ज्यादा दर्शक मिले पर उनकी इंगेजमेंट दर कम थी |

सोशल मीडिया यूजर्स अपनी बड़ी फैन फोलोइंग का फ़ायदा सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर  के तौर पर उठा रहें और यह एक विज्ञापन के नए माध्यम के रूप में तेजी से उभर रहा हैसोशल मीडिया अब आम इंटरनेट यूजर्स को सितारा बना रहा है |

 देश  में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरव्यक्ति और ब्रांड प्रमोशन का बड़ा औजार  बनकर सामने आया है |  सोशल मीडिया विज्ञापन का एक अपरंपरागत माध्यम  है जो बाकी सारे मीडिया (प्रिंटइलेक्ट्रॉनिक और समानांतर मीडिया) से अलग है |यह एक वर्चुअल वर्ल्ड बनाता है जिसे उपयोग करने वाला व्यक्ति सोशल मीडिया के किसी प्लेटफॉर्म (फेसबुकट्विटरइंस्टाग्राम) आदि का इंटरनेट के माध्यम से  उपयोग कर किसी भी नेट कनेक्टेड व्यक्ति तक पहुंच बना सकता है |

सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर वह आम व्यक्ति होता है जिसकी विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर काफी सारे फोलोवर होते हैं और वह अपनी इस लोकप्रियता का इस्तेमाल  विभिन्न तरह के उत्पाद बेचने में करता है इसमें रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट दूसरे विज्ञापन  माध्यमों के मुक़ाबले अधिक हैदेश के लाखों युवा सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर को एक करियर के अच्छे विकल्प के रूप में देख रहे हैं सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर जहाँ विज्ञापनों की दुनिया में एक नया आयाम गढ़ रहा है वहीं विज्ञापनों की दुनिया में सेलिब्रेटी स्टेट्स को खत्म भी कर रहा है |जहाँ हमारे आपके बीच के लोग ही स्टार बन रहे है |

भारत में चूँकि अभी इंटरनेट बाजार में पर्याप्त संभावनाएं हैं इसलिए अभी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर का यह दौर चलेगा पर कुछ चिंताएं भी है भारत के इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग उद्योग को विनियमन की आवश्यकता है ताकि तथ्यों के गलत प्रस्तुतीकरण  से बचा जा सके। जनवरी मेंभारत के उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने घोषणा की कि ऐसे में ये गाइडलाइंस ग्राहक हितों की रक्षा के लिए जरूरी हैंसोशल मीडिया पर ऐड्स करने वाले सेलेब्रिटीज़ भी इसके दायरे में होंगेकिसी भी भ्रामक विज्ञापन व  इन्हें नहीं मानने पर इंफ्लूएंसर्स को 10 लाख तक का जुर्माना देना होगालगातार अवमानना पर 50 लाख तक जुर्माना देना होगासाथ ही एंडोर्स करने वाले को से महीने तक किसी भी एंडोर्समेंट करने  से रोका जा सकता हैउस प्लेटफॉर्म को ब्लॉक करने की कार्रवाई भी सम्भव है|

सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर को आत्म-नियंत्रित करने की आवश्यकता है जिससे वे  नीति निर्माण में भाग ले सकें ताकि इस उद्योग पर सकारात्मक प्रभाव होपरम्परागत विज्ञापनों में शामिल खिलाड़ियों और सिने कलाकारों के प्रति लोगों का मोह एकदम से कम तो नहीं हुआ है पर इसकी शुरुआत जरुर हो गयी है |इन दोनों की लड़ाई में कौन जीतेगा इसका फैसला वक्त को करना है|


दैनिक जागरण में 02/03/2024 को प्रकाशित 

Wednesday, February 14, 2024

अंगदान में आगे हैं महिलायें

 

दुनिया की बड़ी आबादी वाले देशों में से एक भारत में प्रतिवर्ष लगभग 3,00,000 लोग वक़्त पर अंग न मिल पाने के कारण अपनी जान गंवा देते हैं .औसतन  कम से कम 20 व्यक्तियों की रोज़ाना मौत अंगदान की कमी से हो जाती है .लेकिन उम्मीद की एक किरण देश की आधी आबादी से नजर आ रही है .2021 में एक्सपेरिमेंटल एंड क्लिनिकल ट्रांसप्लांटेशन जर्नल में प्रकाशित एक शोध पत्र  में जीवित अंग प्रत्यारोपण के मामले में देश में भारी लैंगिक असमानता पाई गई । आंकड़ों के अनुसार 2019 में अंग प्रत्यारोपण का विश्लेषण किया और पाया कि अस्सी प्रतिशत  जीवित अंग दाता महिलाएं हैंमुख्य रूप से पत्नी या मां जबकि अस्सी प्रतिशत  प्राप्तकर्ता पुरुष हैं।देश में अंग प्राप्त करने वाली प्रत्येक महिला के मुकाबले चार पुरुषों का अंग प्रत्यारोपण हुआ है. 1995 से 2021 तक के आंकड़ों से पता चलता है कि 36,640 अंग प्रत्यारोपण किए गएजिनमें से 29,000 से अधिक पुरुषों के लिए और 6,945 महिलाओं के लिए थेअध्ययन में यह भी पाया गया कि अंग दान करने के लिए अधिकांश महिलाओं का प्राथमिक कारण उन पर परिवार में देखभाल करने वाला होने और देने वाला होने का सामाजिक-आर्थिक दबाव है और चूंकि ज्यादातर मामलों में पुरुष कमाने वाले होते हैंइसलिए वे किसी भी सर्जरी से गुजरने से झिझकते हैं.

हालांकि अंगदान को लेकर लिंगभेद के दूसरे मोर्चे भी हैंपुरुषों  के मुक़ाबले महिलायें  ज़्यादा अंगदान क्यों करती हैंइसकी कई वजहें हो सकती हैं .माना जाता है कि महिलाएंपुरुषों के मुक़ाबले ज़्यादा सम्वेदनशील  होती हैंउन्हें अपने रिश्तेदारों  से ज़्यादा हमदर्दी होती है.लेकिन इसका बड़ा कारण आर्थिक ही है और यह अंगदान महिलाओं द्वारा किये जाने इसकी बड़ी वजह आर्थिक बताई जाती हैघर में नियमित आमदनी का स्रोत  का उद्गम  पुरुषों से ही होता  हैबीमारी या ट्रांसप्लांट के दौरानदान देने वाले को अक्सर महीने-दो महीने के लिए घर बैठना पड़ता हैइससे दोहरा आर्थिक नुक़सान होता हैइस परिस्थिति में  अक्सर महिलाओं को ये लगता है कि वे  अंग दान कर के घर को होने वाला आर्थिक नुक़सान को कम कर सकती हैं.

यदि महिलायें आर्थिक रूप से पुरुषों के बराबर होंगी तो यह आंकड़ा बराबरी का हो सकता है पर फिलहाल जीवन के हर क्षेत्र में महिलायें पितृसत्ता के दंश का शिकार होते हुए भी त्याग के ऐसे प्रतिमान गढ़ रही हैं जिसकी कहीं चर्चा नहीं हो रही है .महिलाओं का वित्तीय रूप से आत्म निर्भर न होने के कारण वे खुद भी कई समस्याओं का सामना कर रही होती है.जैसे प्राकृतिक आपदाओं के दौरान पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं को ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ता  है। वर्ष  2007 में लंदन स्कूल ऑफ इक्नोमिक्स और एसेक्स विश्वविद्यालया के शोधकर्ताओं द्वारा किए १४१ देशों में किए गए गए एक अध्ययन के अनुसार वर्ष १९८१ से लेकर वर्ष २००२ तक हुई प्राकृतिक आपदाओं के दौरान मरने वाली महिलाओं की संख्या पुरुषों की संख्या से काफी अधिक थी। साथ ही इस शोध में यह तथ्य भी सामने आया कि जैसे-जैसे प्राकृतिक आपदा की विभीषिका बढ़ती गयी वैसे-वैसे पुरुष और महिला मृत्यु-दर के बीच का फासला भी बढ़ता गया। अब इस पुरुषवादी समाज को भी सोचना होगा कि हम आर्थिक रूप से उन्हें स्वावलंबी बनाने में न केवल  मदद करें बल्कि उन्हें  इस बात का एहसास भी कराएं कि समाज की गाड़ी को चलाने के लिए जितनी जरुरत पुरुषों की है उतनी ही महिलाओं की भी .

 प्रभात खबर में 14/02/2024 को प्रकाशित 

 

Tuesday, February 13, 2024

मनोरंजन उद्योग में पायरेसी

 

सारी दुनिया में पाइरेसी एक बड़ी समस्या है और इंटरनेट ने इस समस्या को और भी जटिल बना दिया हैसोफ्टवेयर पाइरेसी से शुरू हुआ यह सफर फिल्मसंगीत धारावाहिकों तक पहुँच गया है |मोटे तौर पर पाइरेसी से तात्पर्य किसी भी सोफ्टवेयर ,संगीत,चित्र और फिल्म  आदि के पुनरुत्पाद से हैजिमसें मौलिक रूप से इनको बनाने वाले को कोई आर्थिक लाभ नहीं होता और पाइरेसी से पैदा हुई आय इस गैर कानूनी काम में शामिल लोगों में बंट जाती है |इंटरनेट से पहले यह काम ज्यादा श्रम साध्य था और इसकी गति धीमी थीपर इंटरनेट ने उपरोक्त के वितरण में बहुत तेजी ला दी हैजिससे मुनाफा बढ़ा है |भारत जैसे देश में जहाँ इंटरनेट बहुत तेजी से फ़ैल रहा हैऑनलाईन पाइरेसी का कारोबार भी अपना रूप बदल रहा है |पहले इंटरनेट स्पीड कम होने की वजह से ज्यादातर पाइरेसी टोरेंट से होती थी पर अब भारत समेत सारी दुनिया में पाइरेसी का चरित्र बदल रहा है क्योंकि अब हाई स्पीड इंटरनेट स्मार्टफोन के जरिये हर हाथ में पहुँच रहा हैतो लोग पाइरेटेड कंटेंट को सेव करने की बजाय सीधे इंटरनेट स्ट्रीमिंग सुविधा से देख रहे हैं |

ऑनलाइन पाइरेसी में मूलतः दो चीजें शामिल हैं पहला सॉफ्टवेयर दूसरा ऑडियो -वीडियो कंटेंट जिनमें फ़िल्में ,गीत संगीत शामिल हैं |सॉफ्टवेयर की लोगों को रोज –रोज जरुरत होती नहीं वैसे भी मोटे तौर पर काम के कंप्यूटर सोफ्टवेयर आज ऑनलाईन मुफ्त में उपलब्ध हैं या फिर काफी सस्ते हैं पर आज की भागती दौडती जिन्दगी में जब सारा मनोरंजन फोन की स्क्रीन में सिमट आया है और इन कामों के लिए कुछ वेबसाईट वो सारे कंटेंट उपभोक्ताओं को मुफ्त में उपलब्ध कराती हैं और अपनी वेबसाईट पर आने वाले ट्रैफिक से विज्ञापनों से कमाई करती हैं पर जो कंटेंट वे उपभोक्ताओं को उपलब्ध करा रही होती हैं वे उनके बनाये कंटेंट नहीं होते हैं और उस कंटेंट से वेबसाईट जो लाभ कमा रही होती हैं उसका हिस्सा भी मूल कंटेंट निर्माताओं तक नहीं जाता है |ऑडियो –वीडियो कंटेंट को मुफ्त में पाने के लिए लाईव स्ट्रीमिंग का सहारा लिया जा रहा है क्योंकि इंटरनेट की गति बढ़ी है और उपभोक्ता को बार –बार कंटेंट बफर नहीं करना पड़ता यानि अभी सेव करो और बाद में देखो वाला वक्त जा रहा है |यू ट्यूब जैसी वीडियो वेबसाईट जो कॉपी राईट जैसे मुद्दों के प्रति जरुरत से ज्यादा संवेदनशील हैपाइरेटेड वीडियो को तुरंत अपनी साईट से हटा देती है पर इंटरनेट के इस विशाल समुद्र में ऐसी लाखों वेबसाईट हैं जो पाइरेटेड आडियो वीडियो कंटेंट उपभोक्ताओं को उपलब्ध करा रही हैं |

मनोरंजन उद्योग में ऑनलाइन चोरी पर नज़र रखने वाली मुसोसाईट के अनुसार पाइरेसी के लिए जिस तकनीक का सबसे ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है उसमें स्ट्रीमिंग पहले नम्बर पर है |मुसो कॉपीराइट उल्लंघनों पर आंकडा  एकत्र करती  है |इंटरनेट पर ऐसी कई साईट्स  हैंजहां से पाइरेटेड कंटेंट  मिल जाती हैं. जेलर और पठान जैसी फ़िल्में भी लीक हुईं . दक्षिण में  में तमिल रॉकर्स जैसी पाइरेसी साइट्स ने तो कोहराम  मचा रखा है. इन्हें जैसे ही ब्लोक  किया जाता हैये यूआरएल बदलकर फिर से काम  करने लगती हैं. पाइरेसी फिल्म इंडस्ट्री की एक बड़ी समस्या है. पाइरेसी के कारण  फिल्म इंडस्ट्री को 20 हज़ार करोड़ का नुकसान हो रहा है. वैश्विक सलाहकार फर्म अंकुरा की एक रिपोर्ट के अनुसार2022 में टोरेंट साइटों के माध्यम से 7 बिलियन से अधिक विज़िट के साथ कंटेंट पायरेसी वेबसाइटों पर जाने के मामले में  भारत तीसरे स्थान पर है। भारत से आगे अमेरिका और रूस जैसे देश हैं |स्पाइडर-मैन: नो वे होम 2022 में भारत में सबसे अधिक पायरेटेड फिल्म थीजबकि गेम ऑफ थ्रोन्स सबसे अधिक पायरेटेड श्रृंखला थी। केजीएफ: चैप्टर 2 और आरआरआर सबसे अधिक पायरेटेड भारतीय फिल्में थीं। संगीतफिल्मोंसॉफ्टवेयर और किताबों की पाइरेसी में व्हाट्स एप और टेलीग्राम जैसे मेसेजिंग एप नें स्थिति को और गंभीर बना दिया है | जो टॉरेंट साइट्स या एग्रीगेटर ऐप्स के बारे में जानकारी प्रसारित करते हैं जहाँ पाइरेटेड सामाग्री उपलब्ध हैं |

रिपोर्ट के अनुसार पायरेसी वेबसाइटों पर आने वाले कुल ट्रैफ़िक में टीवी सामग्री का हिस्सा 46.6 प्रतिशत थाइसके बाद प्रकाशन सामग्री (किताबें) का योगदान 27.80 प्रतिशत  रहा । फिल्म पाइरेसी 12.40 प्रतिशत  तक पहुंच गई हैइसके बाद संगीत और सॉफ्टवेयर का स्थान आता हैजो क्रमशः 7 प्रतिशत  और 6.20 प्रतिशत है।भारत में वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पायरेसी के कारण कुल राजस्व का 25-30 प्रतिशत हिस्सा गँवा रहे हैं|सरकार ने इसके लिए सिनेमैटोग्राफ संशोधन बिल 2023 में कुछ नए प्रावधान जोड़े हैंइस विधेयक का उद्देश्य ‘पायरेसी’ की समस्या पर व्यापक रूप से अंकुश लगाना हैइस बिल के तहत फिल्म की पाइरेसी करने वालों को तीन महीने से लेकर तीन साल की जेल हो सकती है. साथ ही फिल्म  की निर्माण लागत  का पांच  प्रतिशत जुर्माना भी भरना होगा. फिल्म को गैरकानूनी तरीके से दिखाना या फिर इसकी गैर कानूनी रिकॉर्डिंग भी अपराध की श्रेणी में आएगी. निजी इस्तेमालकरेंट अफेयर्सरिपोर्टिंग और फिल्म क्रिटिसिज्म के लिए कॉपीराइट कंटेंट इस्तेमाल किया जा सकेगा. सिनेमैटोग्राफ अधिनियम1952 में अंतिम महत्वपूर्ण संशोधन वर्ष 1984 में किया गया था। भले ही नई प्रौद्योगिकी प्लेटफार्मों पर पाइरेसी  व्यापक हो गई हैकई कानून आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं हैं। कॉपीराइट अधिनियम, 1957 जैसे मौजूदा कानूनों  में कई समस्याएं  हैं और वे पर्याप्त कठोर नहीं हैंजिससे अपराधियों को दण्डित करना मुश्किल  हो जाता है। राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) नीति 2016 सहित नए कानूनों का पालन  और साइबर डिजिटल अपराध इकाइयों की स्थापना अभी भी प्रारंभिक चरण में है। पर्याप्त कानूनों के अभाव मेंअदालतें पाइरेसी के मामले में कुछ ख़ास नहीं कर पाती हैं तकनीक के तौर पर इंटरनेट की जटिलता को देखते हुए ये सिनेमैटोग्राफ संशोधन बिल 2023 पाइरेसी की समस्या को कितना कम कर पायेगा इसका फैसला अभी होना है |

 दैनिक जागरण में 13/02/2024 को प्रकाशित 

 

रील्स के बढ़ते ट्रेंड के दौर में तस्वीरें

 इंटरनेट के आने से पहले की दुनिया में बदलाव की गति धीमी थी |नया देर से पुराना होता था पर अब यह प्रक्रिया इतनी तेज है कि नया  द्रुत गति से पुराना हो रहा है|सोशल मीडिया के आने के बाद लोगों ने अपनी बात कहने के लिए  ब्लॉग पोस्ट और तस्वीरों को जरिया  बनाया फिर वीडियो और आडियो कंटेंट की धूम मची पर तस्वीरें या फोटोग्राफ मांग में लगातार बने रहे |बात चाहे अपना जन्मदिन मनाते जोड़े की हो या दुनिया घूमती एक युवा लड़की की हर जगह तस्वीरें प्रमुखता से अपनी भूमिका निभा रही थी|ये तस्वीरों का ही कमाल  था|जिसने  मोबाइल से अपनी खुद की तस्वीरें लेने की कला सेल्फी को विकसित किया  और देखते -देखते सारी दुनिया में छा गयी|लेकिन  इंटरनेट पर रील्स की बढ़ती लोकप्रियता ने इन तस्वीरों   की लोकप्रियता को खत्म  तो नहीं पर कम जरुर कर दिया है|रील्स जैसा ही एक और प्रारूप इंटरनेट पर सुर्खियाँ बटोर रहा है |वह है "व्लॉगिंग"|ये  दो अलग-अलग डिजिटल मीडिया प्रारूप हैं जिनका उपयोग वीडियो सामग्री बनाने और साझा करने के लिए किया जाता है।जिनके कारण तस्वीरों की लोकप्रियता में कमी आ रही हैव्लॉगिंग का मतलब होता है कि व्यक्तिगत अनुभवोंज्ञानकलासाहित्ययात्राओं आदि को वीडियो के माध्यम से साझा करना।इनकी अवधि रील के मुकाबले ज्यादा होती है | रील्स एक प्रकार की वीडियो सामग्री है जो आमतौर पर एम एक्स शोर्ट विडियोमौज ,जोश ,चिंगारी,मित्रों इन्स्टाग्राम,यूट्यूब और फेसबुक  जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बनाई जाती है।हालाँकि  यह विभिन्न  विषयों पर छोटे-छोटे वीडियो होते हैं जिन्हें संगीतडायलॉगआदि के साथ तस्वीरों और क्लिप्स के साथ मिलाकर बनाया जाता है। रील में गति होती है जबकि तस्वीरों में अगर गति लानी भी  है तो रील्स का ही सहारा लेना पड़ेगा |सोशल इनसाइडर  के अनुसार रील्स इंस्टाग्राम पर किसी भी अन्य सामग्री प्रकार से दोगुनी पहुंच उत्पन्न करते हैं।रील्स की औसत पहुंच दर 30.81 प्रतिशत  हैजबकि कैरोसल  (ऐसी पोस्ट जिसमें एक से अधिक फ़ोटो या वीडियो हों , जिन्हें उपयोगकर्ता फ़ोन ऐप के माध्यम से पोस्ट पर स्वाइप करके देख सकते हैं। ) और फोटो  पोस्ट की औसत पहुंच दर क्रमशः 14.45 प्रतिशत  और 13.14प्रतिशत  है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि 2022 और 2023 के बीच कैरोसेल पोस्ट  की पहुंच दर में महत्वपूर्ण  गिरावट आई है।

स्टैटिस्टा की एक रिपोर्ट के अनुसारइंस्टाग्राम  रील्स की पहुंच दर उन खातों के लिए कहीं अधिक है। जो कम फ़ॉलोअर्स रखते हैं500 फ़ॉलोअर तक के खातों की औसत पहुँच दर 892 प्रतिशत  होती है। हालांकि यह उन खातों की पहुँच दर से कई गुना ज्यादा  है जिनके पास ज्यादा  फ़ॉलोअर्स होते हैं,  पर बड़े खातों वालों के इंस्टाग्राम  रील्स की पहुँच में  भी काफी महत्वपूर्ण वृद्धि देखी जा रही  है।

ये आंकड़े सुझाव देते हैं कि भारत में  फोटो ग्राफ    की तुलना में रील्स एक अधिक प्रभावी तरीका है जिससे भारत में जनसंचार करनेलोकप्रियता प्राप्त करने और जनों को परिवर्तित करने का सही तरीका है। डिमांड्सएज वेबसाईट के अनुसार 230.25 मिलियन इंस्टाग्राम उपयोगकर्ताओं के साथभारत इंस्टाग्राम रील्स का सबसे बड़ा बाजार हैदूसरे नम्बर पर  अमेरिका (159.75 मिलियन) और तीसरे स्थान पट ब्राजील  (119.45 मिलियन) है।

रील्स के लोकप्रिय होने के कुछ कारण हैं. पहलावे स्थिर तस्वीरों की तुलना में अधिक आकर्षक हैंरील्स कहानियां बता सकती हैंगति दिखा सकती हैंऔर संगीत और ध्वनि प्रभाव जोड़ सकती हैंजो उन्हें दृश्य रूप से अधिक आकर्षक और देखने में दिलचस्प बना सकती हैंदूसरारील्स बनाने के लिए पहले से कहीं अधिक आसान हैंस्मार्टफोन और वीडियो संपादन ऐप्स के आगमन के साथकोई भी कुछ ही टैप के साथ एक रील बना सकता है. तीसरारील्स एक व्यापक दर्शकों तक पहुंचने का एक शानदार तरीका है. उन्हें इंस्टाग्राम यु ट्यूब शॉर्ट्स  जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर साझा किया जा सकता हैजिनके अरबों उपयोगकर्ता हैं|फिर भी स्थिर चित्रों का महत्त्व खत्म नहीं हुआ है |वे यादें कैद करने का एक अधिक स्थायी और कालातीत तरीका हैउन्हें घरों और व्यवसायों में मुद्रित और प्रदर्शित किया जा सकता हैजिन्हें कई  वर्षों तक संजोया जा सकता हैस्थिर तस्वीरें दूसरों से व्यक्तिगत तौर पर जुड़ने से  एक अधिक अंतरंग तरीका भी हैंजिनका उपयोग व्यक्तिगत कहानियां बताने और निजी क्षणों को साझा करने के लिए किया जा सकता हैउनका उपयोग विशेष अवसरोंयात्रा और रोजमर्रा की जिंदगी का दस्तावेजीकरण करने के लिए होता है|रील्स छोटे   मनोरंजक वीडियो साझा करने का एक शानदार तरीका है. जिनका उपयोग  अक्सर हास्यरचनात्मकता और व्यक्तित्व को प्रदर्शित करने के लिए होता हैइसलिएजबकि रील्स लोकप्रिय हो रहे हैंयह संभावना नहीं है कि वे पूरी तरह से स्थिर तस्वीरों को समाप्त कर देंगे | दोनों प्रारूपों की अपने ताकत और कमजोरियां हैंऔर वे आने वाले वर्षों में सह-अस्तित्व के साथ कितनी देर तक रह पाएंगे इसका फैसला होने में अभी वक्त है |

अमर उजाला में 13/02/2024 को प्रकाशित 

Wednesday, January 17, 2024

गूगल खुद को बदल रहा है

 गूगल वेब पर अपने उपयोगकर्ताओं को कैसे ट्रैक करता है, इसमें कई बड़े बदलाव कर रहा है | इसी बदलाव की शुरुआत करने वाला है, गूगल ने एक सीमित परीक्षण शुरू किया है |जिसमें वह अपने क्रोम ब्राउज़र का उपयोग करने वाले एक प्रतिशत लोगों के लिए थर्ड पार्टी कुकीज़ को प्रतिबंधित करेगा, क्रोम बारुजर  दुनिया भर में सबसे ज्यादा लोकप्रिय ब्राउजर  है। इस वर्ष के अंत तक, गूगल का इरादा है कि वह सभी क्रोम उपयोगकर्ताओं के लिए थर्ड पार्टी कुकीज़ को समाप्त कर देगा |विश्व के 600 अरब डॉलर वार्षिक  ऑनलाइन विज्ञापन उद्योग के इतिहास में यह सबसे बड़े बदलावों में से एक होगा|नब्बे के दशक में कंप्यूटर इंटरनेट की दुनिया में एक छोटी सी पहल ने लोगों के वेबसाइट इस्तेमाल के अनुभव को उल्लेखनीय तरीके से बदल दिया और इसका श्रेय जाता है नेटवर्क इंजीनियर लू मोंटुल्ली को जिन्होंने  एच टी टी पी  कुकी का आविष्कार किया | इसी कुकी के द्वारा ही हमारा वेबसाइट अनुभव नियंत्रित्र होता है | कुकीज  को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है  जैसे अतिआवश्यक कुकीज , वर्किंग कुकीज , फर्स्ट पार्टी कुकीज, सेकंड पार्टी कुकीज़ तथा थर्ड पार्टी कुकीज़ आदि |

 वर्तमान समय मे गूगल द्वारा थर्ड पार्टी कूकीज का सपोर्ट बंद किया जा रहा जिससे ऑनलाईन विज्ञापन के  बाजार मे बड़ी हलचल मची हुई है | इस हलचल को समझने के लिये ये समझना होगा कि इन कुकीज कि उपयोगिता क्या है ? प्रमुखता कुकीज अनलाइन वेबसाईट पर हमारी गतिविधियां ट्रैक करती हैं और उन गतिविधियों  को कुकीज़ देने वाली वेबसाईट को अवगत कराती हैं |मान लीजिये  मुझे हिन्दी मे वेबसाईट देखनी है तो मैने भाषा हिन्दी चुनी तो ये गतिविधि वेबसाईट प्रदाता कंपनी को कुकीज़ के माध्यम से पता चल जाती है और अगली बार जब हम उस वेबसाईट पर आते हैं तो हमे भाषा का चुनाव नहीं करना पड़ता इससे हमारा अनुभव अच्छा रहता हैं क्योंकि कुकीज के माध्यम से अमुक वेबसाईट हमारी रुचियाँ जान जाती है |हमारे व्यवहार को समझते हुए |महत्वपूर्ण है कि ऑनलाईन विज्ञापन का बड़ा बाजार इसी बात पर टिका है कि उपभोक्ता क्या चाहता है और यहीं से उपभोक्ता का ब्राउजिंग  डाटा महत्वपूर्ण हो जाता है  |  

अब प्रश्न ये है कि फिर थर्ड पार्टी कूकीज बंद होने पर इतना हंगामा क्यूँ हो रहा तो उसका कारण ये हैं कि थर्ड पार्टी कूकीज प्रायः वेबसाईट सेवा प्रदाता के अनुबंध के कारण किसी अन्य सेवा प्रदाता के द्वारा  प्रदान की जाती है जो हमारे अनुभव से इतर ये रिकार्ड करती हैं कि हम वेबसाईट या ऑन लाइन क्या कर रहे हैं |अगर इसको ऐसे समझे कि हुमने गूगल पर जूते सर्च किये और उसके बाद हम जब किसी अन्यत्र वेबसाईट पर जाते हैं तो वहाँ हमे जूते के विज्ञापन दिखने लगते हैं जो कि थर्ड पार्टी कुकीज द्वारा दी गई सूचना के कारण  होता हैं |अब  लोग अपनी निजता   के प्रति बहुत जागरूक हुए हैं और इसी को ध्यान मे रखते हुए और उपभोक्ताओं कि मांग का सम्मान करते हुए गूगल के थर्ड पार्टी कुकीज का प्रयोग चरणबद्ध तरीके से बंद करना शुरू कर दिया है जिसका असर बहुत सारी कम्पनियों पर पड़ रहा है जो उपभोक्ता सूचना और विज्ञापन के क्षेत्र मे काम कर रही हैं | गूगल की इस नीति के कारण  उनका खर्च बढ़ने कि संभावना है|हालाँकि गूगल का यह प्रयास पहले केवल क्रोम उपयोगकर्ताओं के एक हिस्से  को प्रभावित करेंगे, लेकिन अंततः इसका नतीजा  यह हो सकता है कि अरबों इंटरनेट उपयोगकर्ताओं को कम विज्ञापन दिखाई देंगे जो उनकी ऑनलाइन ब्राउज़िंग आदतों से काफी मेल खाते हैं। पिछले दशक के अंत में, मोज़िला के फ़ायरफ़ॉक्स और ऐप्पल के सफ़ारी ब्राउज़र ने लोगों की निजता और गोपनीयता चिंताओं के कारण कुकीज़ को ट्रैक करने पर सीमाएं लगानी शुरू कर दीं थी ।

 गूगल  ने 2020 में उन्हें क्रोम से हटाने की योजना बनाई, लेकिन विज्ञापन उद्योग और गोपनीयता के समर्थकों  की चिंताओं  को दूर करने के लिए इस प्रक्रिया में कई बार देरी हुई। और गेट एप की एक रिपोर्ट के अनुसार इकतालीस प्रतिशत  सेवा प्रदाताओं कि सबसे बड़ी चुनौती सही डेटा को ट्रैक करना होगा वहीं चौवालीस प्रतिशत  सेवा प्रदाताओं को लगता हैं कि  उन्हे अपने व्यसाययिक  लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये अपनी लागत को को पांच  प्रतिशत से पच्चीस प्रतिशत तक बढ़ाना पड़ सकता है | हालांकि उपभोक्ताओं  की निजता के लिये यह  कोई बहुत बड़ी राहत नहीं है क्योंकि अधिकतर सेवा प्रदाता अब एप का इस्तेमाल बढ़ा रहे हैं| जिससे उन्हे ज्यादा सटीक और ज्यादा  व्यक्तिगत सूचनाएं प्राप्त होंगी | दुनिया भर के देश गोपनीयता कानून अब कुकी प्रयोग और उस पर सहमति संबंधी प्रावधान जोड़ रहे हैं ताकि बिना सहमति के सूचनाएं साझा न हो और गोपनीयता बरकरार रहे | गूगल का ये प्रयास निजी सूचना आधारित व्ययसायों पर न केवल दूरगामी प्रभाव डालेगा बल्कि ऑनलाईन विज्ञापन के नये नए तरीकों को भी जन्म देगा |

अमर उजाला में 17/01/2024 को प्रकाशित 

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