Friday, June 17, 2011

मीडिया आगे बढ़ रहा है


मीडिया सवाल कई जवाब नहीं देश  और विदेश में रोज नए सवाल खड़ा करने वाला मीडिया तंत्र आज खुद सवालों के घेरे में है कभी राडिया प्रकरण कभी पेड न्यूज़ और कभी खबरों को परोसने के पीछे निहित मंशा एक लोकतांत्रिक समाज में एक स्वतंत्र जन माध्यम का होना आवश्यक है. भारत में वो सारी चीजें मीडिया को हासिल है उसके बाद भी सवाल उठे हैं और मीडिया की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिहन लगा है  पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इन सवालों के
उठने की शुरुवात मीडिया से हुई है भारतीय संचार मीडिया का ढांचा वर्तमान में एक त्रि स्तरीय व्यवस्था के अंतर्गत काम कर रहा है .दो दशक पहले तक प्रिंट मीडिया का बोलबाला रहा करता था और अखबारों की उस हनक को आज भी लोग याद करते हैं पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ऐसी व्यवस्था में अख़बारों में जो कुछ भी छापा जा रहा था उसमे सबकुछ सही ही था उचित नहीं होगा तब रेडियो और टी वी के सीमित दायरे थे विज्ञापन ज्यादातर अखबार केंद्रित थे और अखबारों के समाचारों से कोई समस्या होने पर पर एक ही संस्था जो शिकयतसुनती थी वह प्रेस परिषद पाठक आमतौर पर उतना जागरूक नहीं था  यानि उसे जो कुछ परोस दिया जाता वो उसका आनंद उठाता बगैर परेशानी के १९९१ में नयी आर्थिक नीति के लागू होने के बाद देश के आसमान विदेशी प्रसारकों के लिए खुल गए और अखबारों की सत्ता को चुनौती मिली टेलीविजन से पाठक धीरे धीरे दर्शक बनने लग गए और लोगों को पहली बार समाचारों की जीवन्तता का एहसास हुआ ध्वनि और चित्रों के माध्यम से लेकिन जल्दी ही यह परिद्रश्य भी बदल गया अब लोगों  को ये पता चलने लगा गया कि किस खबर के क्या निहितार्थ है .प्रेस परिषद के अलावा टेलीविजन प्रसारकों का अपना एक संगठन  है जहाँ कोई भी व्यक्ति किसी भी चैनल से सम्बंधित अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है यहाँ यह महत्वपूर्ण है कि इस संगठन का निर्माण खुद टेलीविजन चैनलों ने खुद अपनी साख बरक़रार रखने के लिए किया है .       एक तरह से लोगों में मीडिया के प्रति जागरूकता बढी और मीडिया जो सवालों से परे था उस पर भी सवाल लगने शुरू हुए लेकिन इसका प्रभाव बहुत व्यापक नहीं था .२००० के दशक तक डॉट कॉम क्रांति  हो चुकी थी और इन्टरनेट धीरे धीरे अपने पावं पसार रहा था पर परिवर्तन की असली शुरुवात हुई ब्लोग्स से अब हर आदमी एक पत्रकार था वो अपनी कहानी लोगों को सुना सकता था और इसके लिए न तो किसी पूंजी की जरुरत थी और न ही किसी के आगे हाथ जोड़ने की बस जो कहना चाहते हैं लिख डालिए रही सही कसर फेसबुक और ट्विट्टर जैसी सोसल नेटवर्किंग साईट्स ने पूरी कर दी यहाँ यह बात ध्यान देने की है जैसे मीडिया का विस्तार हो रहा है  उसी अनुपात में उसकी आलोचना बढ़ रही है यानि जनता अब मुखर हो रही है इसका पता  फेसबुक ट्विटर पर लोगों के द्वारा मीडिया कार्यकर्मों की गयी टिप्पड़ियों से लग जाता है यह स्थिति एक
सकारात्मक परिवर्तन का संकेत देती है यानि यदि मीडिया संस्थान किसी एजेंडे पर चल रहे हो तो इसका पता लोगों को बहुत जल्दी लग जाता है और एजेंडा यदि नकारात्मक है तो उसका भंडाफोड हो जाता है .सूचना प्रवाह के इस युग में अब सूचनाओं को रोकना लगभग असम्भव हो गया है वहीं चैनलों और समाचार पत्रों के विस्तार ने अब उस दौर को भी खतम कर दिया है जब गिने चुने अखबार या चैनल हुआ करते थे .देखा जाए तो मीडिया पर उठते सवाल इस मायने में सकारात्मक संकेत देते हैं कि श्रोता /दर्शक /पाठक अब ज्यादा समझदार है और उसकी उम्मीदें मीडिया से बढी हैं इस दबाव का सामना करने के लिए ही टी आर पी और रीडरशिप की होड शुरू हुई है. हालाँकि कभी कभी इसके नकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले हैं लेकिन सूचनाओं की गति तेज हुई है  वहीं दूसरी  ओर मीडिया के जबरदस्त फैलाव ने अपने आप एक ऐसा तंत्र विकसित करना शुरू कर दिया है जो एक दूसरे पर नज़र रख रहा है इसीलिये अखबारों में ब्लॉग या इन्टरनेट से सम्बंधित एक कोना सुरक्षित करना शुरू कर दिया है वहीं समाचार पोर्टल और सोसल नेटवर्किंग साईट्स चैनलों की पहरेदारी कर रहे हैं टेलीविजन चैनल समाचार पत्रों के सम्पादकीय और सुर्ख़ियों पर भी बात कर रहे हैं इस प्रक्रिया का परिणाम ये हो रहा है कि आज की जनता ज्यादा जागरूक है और जनमत निर्माण की प्रक्रिया ज्यादा तेज हुई वो चाहे भ्रष्टाचार से जुड़ा लोकपाल बिल का मामला हो या किसानों और गरीबों के लिए मनरेगा जैसे कार्यक्रम इन सभी मामलों में जनमत के दबाव ने बड़ी भूमिका अदा की है . यह व्यवस्था भारत जैसे विविधता वाले देश के लिए महत्वपूर्ण है जहाँ कंप्यूटर साक्षर भी हैं और निरक्षर भी हैं जहाँ अमीर भी हैं और गरीब भी मीडिया का ये त्रिस्तरीय मोडल हर तरह के पाठक /दर्शक /श्रोता को जगह देता है शायद इसीलिये सूचना के इस युग में सूचना साम्रज्यवाद भारत में टिक नहीं सकता और इसमें एक बड़ी भूमिका न्यू मीडिया निभाने वाला है इसलिए अगर सवाल उठ रहे है तो जवाब भी मिल रहे हैं इसका मतलब है हमारा मीडिया आगे बढ़ रहा है विकसित हो रहा है .

जनसंदेश टाईम्स में १७ जून को प्रकाशित 

Tuesday, June 14, 2011

इन्टरनेट को मानवाधिकार बनाने का अर्थ


आज के दौर में विचारों के संप्रेषण का सबसे स्वतंत्र और द्रुतगामी माध्यम है इंटरनेट. संचार के लिहाज़ से देखा जाये तो इन्टरनेट हमारे समाज की समाज की एक बड़ी आवश्यकता के रूप में उभर रहा है. फिर चाहे वो करप्शन के खिलाफ आवाज उठाने का साधन रहा हो, कार्यपालिका में पारदर्शिता लाने की बात हो या फिर सामाजिक  क्रांति की, समय समय पर इन्टरनेट ने अपना रोल अदा करके यह साबित किया है की आने वाले समय में सूचना समाज की एक नई संकल्पना में इन्टरनेट का ही वर्चस्व रहेगा. संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार इन्टरनेट सेवा से लोगों को वंचित करना और ऑनलाइन सूचनाओं के मुक्त प्रसार में बाधा पहुँचाना मानवाधिकारों के उल्लघंन की श्रेणी में माना जाएगा संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिनिधि फ़्रैंक ला रू ने ये रिपोर्ट विचारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के प्रसार  और संरक्षण के अधीन तैयार की है.
यानि हम कह सकते हैं कि इन्टरनेट आने वाले समय में संविधान सम्मत और मानवीय अधिकारों का एक प्रतिनिधि बन कर उभरेगा इसी कड़ी में फिनलैंड ने विश्व के सभी देशों के समक्ष एक उदहारण पेश करते हुए इन्टरनेट को मूलभूत कानूनी अधिकार में शामिल कर लिया .1980 में यूनेस्को ने तीसरी दुनिया के देशों के संचार तंत्र और सूचना साम्रज्यवाद को समझने के लिए शीन मैकब्राइड की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गयी जिसने “मैनी वोइसस वन वर्ल्ड” के नाम से अपनी रिपोर्ट दी जिसमे कहा गया कि मौजूदा सूचना व्यवस्था
विकसित और धनी देशोन्मुख है धनी देशों का सूचना तंत्र पर वर्चस्व है, जो इसका अपने हित में इस्तेमाल करते हैं। इस संतुलन को दूरकरने के लिए    आयोग ने नई विश्व सूचना व्यवस्था की सिफारिश की इस रिपोर्ट को आये हुए दो दशक बीत चुके हैं लेकिन जमीनी हकीकत पर कोई खास बदलाव तब तक नहीं हुआ जब तक की इन्टरनेट ने लोगों के दरवाजे पर दस्तक नहीं दी .भारत में भी शुरुवाती दौर में कंप्यूटर और इन्टरनेट को एक हिचक के साथ स्वीकार किया गया लेकिन आज इन्टरनेट जिस तरह देश और दुनिया बदल रहा है कि अब इसके बगैर जीवन की कल्पना करना संभव नहीं पहले इंसान की मूलभूत आवयश्कता थी रोटी कपड़ा और मकान लेकिन अब इसमें इन्टरनेट को शामिल कर संयुक्त राष्ट्र ने एक प्रगतिशील कदम उठा कर इस धारणा को पुष्ट किया है कि मानवाधिकार एक गतिशील अवधारणा है जैसे जैसे दुनिया बदलेगी मानवाधिकारों का दायरा भी बढ़ेगा पर इसमें इन्टरनेट का शामिल होना इन्टरनेट की व्यापकता और इसकी शक्ति को दर्शाता है. जापान में आयी सुनामी के समय लोगों तक मदद पहुँचाना या इजिप्ट में हुए सत्ता  परिवर्तन में इन्टरनेट ने अपनी  व्यापकता को सिद्ध तो किया है एक जनमाध्यम के रूप में अपनी पहचान को स्थापित किया है .इसके अनुसार देखें तो इन्टरनेट ही इकलौता माध्यम है जो रेडियो अखबार और टेलिविजन की तरह एकतरफा माध्यम न होकर बहुआयामी है. अन्य दूसरे माध्यमों के इतर यह उन देशों में भी कारगर है जहाँ संचार साधनों को पर्याप्त स्वतंत्रता नहीं प्राप्त है. इस माध्यम में विचारों का प्रवाह रोकना या उन्हें प्रभावित करना उतना आसान नहीं होता. इससे स्वतंत्र विचारों का सम्प्रेषण अधिक आसानी से होता है.सिटीजन जर्नलिस्ट की अवधारणा को पुष्ट करने में इन्टरनेट का सबसे बड़ा योगदान है आप कुछ भी दुनिया के साथ बाँट सकते हैं बगैर किसी सेंसर के आपको अपनी बात जन जन तक पहुंचाने के लिए कोई इंतिजार नहीं करना है .
एक तरह से देखें तो इन्टरनेट ने जनमाध्यमों के परिद्रश्य को पूरी तरह से बदल दिया है
अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार यूनियन यानि आईटीयू के आंकड़ों के अनुसार विश्व में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या में पिछले चार वर्षों में 77 करोड़ का इजाफ़ा हुआ है. प्रतिदिन ट्विटर पर पांच करोड़ संदेश भेजे जा रहे हैं और फ़ेसबुक के सदस्यों की संख्या 40 करोड़ तक पहुंच गई है.मोबाइल ब्रॉडबैंड कनेक्शन की संख्या चार वर्ष पहले सात करोड़ थी और अब ये बढ़कर 67 करोड़ हो गई है.सारी दुनिया की अर्थव्यवस्था विकास केंद्रित हुई है मैकिंसे के नए अध्ययन में खुलासा हुआ है कि भारत में इंटरनेट ने बीते पांच साल में जीडीपी की वृद्धि  में पांच प्रतिशत का  योगदान किया हैजबकि ब्रिक (ब्राजीलरूसभारत और चीन) की  अर्थव्यवस्थाओं के लिए यह दर औसतन तीन प्रतिशत रही  है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि विकास की गति को बढ़ाने में इन्टरनेट की कितनी महतवपूर्ण भूमिका है ।  विकास के फल को समाज के अंतिम आदमी तक पहुंचाने के लिए व्वस्था का  भ्रष्टाचार मुक्त और पारदर्शी होना जरूरी है और इस काम को तेज गति से करने में इन्टरनेट एक सशक्त माध्यम के रूप में उभरा है वो चाहे अन्ना हजारे द्वारा लोकपाल बिल पास करने के लिए चलाया जाने वाला अभियान हो या बाबा रामदेव की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साईट्स की मदद से तेजी से आगे बढ़ी और फ़ैली . इन्टरनेट विरोध या असहमति दर्ज कराने के एक नए प्लेटफॉर्म के रूप में उभरा है अमेरिकी सरकार  निरंकुश शासन वाले देशों में राजनीतिक विरोधियों को इंटरनेट की आज़ादी हासिल करने के लिए ढाई करोड़ डॉलर की आर्थिक मदद दे रहा है . विकासशील देशों में भले ही इन्टरनेट अपने पैर तेजी से पसार रहा हो पर उसकी गति विकसित देशों के मुकाबले कम है आईटीयू के ही आंकड़ों के अनुसार विकसित देशों में हर तीसरा व्यक्ति इंटरनेट से जुड़ा है वहीं विकासशील देशों में पांच में से चार व्यक्ति अब भी इंटरनेट से दूर हैं.भारत जैसे देश में जहाँ आर्थिक असमानता ज्यादा है वहाँ डिजीटल डिवाइड की समस्या और ज्यादा  गंभीर हो जाती है लेकिन रोटी कपडा और मकान जैसी जीवन की मूलभूत आवश्यकता के साथ जुड़ने से  अब इन्टरनेट सेवाओं का विस्तार भी दुनिया की सरकारों की प्राथमिकता में रहेगा और जैसे जैसे सरकारें अपनी जनता को एक बेहतर जीवन उपलब्ध करती जायेंगी इन्टरनेट का विस्तार अपने आप होता जाएगा .यह कहना ठीक नहीं होगा कि इससे एक दिन में देश या दुनिया की तस्वीर बदल जायेगी पर एक शुरुवात तो हो ही गयी है 
हिन्दुस्तान के सम्पादकीय पृष्ठ पर १४ जून को प्रकाशित 

Wednesday, June 8, 2011

काले का बोलबाला


 आजकल हर जगह काले धन की ही चर्चा है बाबा रामदेव ने काले धन के खिलाफ मुहिम छेड़ दी है काला बाज़ार से लेकर काले रंग तक हम किसी न किसी तरह से काले के प्रभाव में रहते हैं. जहाँ सरकार काले धन से छुटकारा पाना चाहती है वहीं बाजार में काले से गोरा बनाने वाली क्रीम की भरमार है .पर कहानी में यहीं से थोडा ट्विस्ट आता है क्योंकि आज हम इस काले रंग के किस्से को खालिस तरीके से समझेंगे हाँ ये लेख लिखते हुए मेरे काले कम्पूटर की काली स्क्रीन में काले अक्षर ही उभर रहे हैं .यूँ तो काला रंग हमेशा से प्रभुत्व और वर्चस्व के प्रतीक रूप में इस्तेमाल होता आया है. सफ़ेद ने अगर शांति के प्रतीक के रूप में अपनी पहचान बनायीं  है तो काला रंग जाने अनजाने अपने अंदर एक अलग आकर्षण रखता है. फिर चाहे वह ब्लैक ब्यूटी हो या फिर कोई ब्लैक वेहिकल. अफ्रीका के ब्लैक लोगों की शारीरिक सौष्ठव की बात हो या फिर भारत में बंगाल के काले जादू की. सबकी अपनी एक पहचान है. अमावस की काली रात हो या काल भैरव की पूजा हर जगह काले का ही बोलबाला है आइये कुछ और आगे चलते हैं और देखते हैं कि हमारे जीवन में ये काला रंग क्या महत्व रखता है जिंदगी की डगर पर अगर आगे बढ़ना है तो पेन्सिल की काली रेखा की जरुरत होगी या फिर इस डिजीटल वर्ल्ड में ओ एम् आर शीट के काले गोले जो आपको सफलता के दरवाजे तक ले जायेंगे .
जीवन में सफल होने के लिए सिर्फ शिक्षा की ही जरुरत नहीं होती जरा  सोचिये जेम्स वाट ने किस तरह भाप की शक्ति को पहचान कर काले  कोयले को उर्जा के एक नए साधन के रूप में दुनिया से परिचित कराया और बाद में इन्ही भाप के इंजनों ने औधोगिकी करण की नीव रखी जिससे हम सबकी जिंदगी बेहतर हुई .बात जब जिंदगी की चल पडी है तो फिर हमारा आपका किस्सा तो होगा ही तो इस किस्से को और आगे बढ़ाते हुए कुछ खूबसूरत सी चीज़ आपको याद दिलाना चाहता हूँ सही पहचाना आपने काला तिल कितना कुछ है हमारे जीवन में जो काला होते हुए भी सुन्दर है आकर्षक है वो चाहे बालों का काला रंग हो या कजरारे नैन, भगवान कृष्ण के सांवले सलोने रूप को ही ले लीजिए . नीबू वाली काली चाय का असली मजा तो आप तभी ले सकते हैं जब आसमान में काली घटायें छाई हो मेरे जैसे न जाने कितने लेखकों ने कितने पन्ने काले कर दिए सिर्फ अपनी बात को दूसरों तक पहुँचाने के लिए हाँ मेरे और आपके सभी के शैक्षिक जीवन  की शुरुआत का  आधार भी एक काला बोर्ड ही था लेकिन फिर भी हम काले रंग से न जाने क्यों एक बचना चाहते हैं.

जीवन ने  हमें कई रंग दिए हैं उनमे से एक रंग काला भी है इंसान या उससे जुडी हुई कोई चीज़ अच्छी बुरी हो सकती है पर रंग नहीं आप रंगों की भाषा में आप इसको यूँ समझें हम काले रंग के खिलाफ नहीं है बल्कि समाज में होने वाली काली करतूतों के खिलाफ हैं फिर वो चाहे काला धन हो या काला बाजारी तो अपना रंग गोरा करने की बजाय जो रंग भगवान ने आपको दिया है उसमे खुश रहें पर समाज के कालेपन को खतम करने के लिए जो आप कर सकते हैं वो जरुर करें तो याद रखियेगा कोई रंग बुरा नहीं होता .

आई नेक्स्ट में ८ जून को प्रकाशित 

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