Saturday, November 26, 2022

तकनीक है असली खलनायक


 

श्रद्धा हत्याकांड यूँ तो महिलाओं के प्रति होने वाले वीभत्स अपराधों में से एक माना जाएगा |इसकी समाज शास्त्रीय विवेचना में हम इस हत्याकांड में तकनीक के हस्तक्षेप को नजरंदाज नहीं कर सकते | मानव सभ्यता के ज्ञात इतिहास में किसी और चीज ने नहीं बदला है ,यह बदलाव बहु आयामी है बोल चाल  के तौर तरीके से  शुरू हुआ यह सिलसिला  खरीददारी  ,भाषा  साहित्य  और  हमारी अन्य प्रचलित मान्यताएं और परम्पराएँ  सब  अपना रास्ता बदल रहे हैं। यह बदलाव इतना  तेज है कि इसकी नब्ज को पकड़  पाना समाज शास्त्रियों  के लिए भी आसान नहीं है  और  आज इस तेजी  के मूल में “एप” ( मोबाईल एप्लीकेशन ) जैसी यांत्रिक  चीज  जिसके माध्यम से मोबाईल  फोन में  आपको किसी वेबसाईट को खोलने की जरुरत नहीं पड़ती |आने वाली पीढियां  इस  समाज को एक “एप” समाज के रूप में याद  करेंगी जब  लोक और लोकाचार  को सबसे  ज्यादा  “एप” प्रभावित कर रहा  था |

हम हर चीज के लिए बस एक अदद “एप” की तलाश  करते हैं |जीवन की जरुरी आवश्यकताओं के लिए  यह  “एप” तो ठीक  था  पर  जीवन साथी  के चुनाव  और दोस्ती  जैसी भावनात्मक   और  निहायत व्यक्तिगत  जरूरतों   के लिए  दुनिया भर  के डेटिंग एप  निर्माताओं  की निगाह  में भारत सबसे  पसंदीदा जगह बन कर उभर  रहा है | उदारीकरण के पश्चात बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ और रोजगार की संभावनाएं  बड़े शहरों ज्यादा बढीं ,जड़ों और रिश्तों से कटे ऐसे युवा  भावनात्मक  सम्बल पाने के लिए और ऐसे रिश्ते बनाने में जिसे वो शादी के अंजाम तक पहुंचा सकें  डेटिंग एप का सहारा ले रहे हैं |स्टेइस्टा सर्वे कंपनी के अनुसार इंटरनेट पर जितने लोग एक्टिव हैं, उनमें से तीन प्रतिशत फिलहाल ऑनलाइन डेटिंग ऐप्स या साइट का इस्तेमाल कर रहे हैं. 2025 तक इसकी संख्या बढ़कर 4.3 प्रतिशत हो जाएगी. वर्तमान में भारत में ऑनलाइन डेटिंग सेगमेंट में 53.6 करोड़ डॉलर का कारोबार हो रहा है. यह कारोबार 17. 61 प्रतिशत की सालाना दर से बढ़ रहा है. इन आंकड़ों से भारत में डेटिंग ऐप्स के भविष्य का अंदाजा लगाया जा सकता है. लेकिन इस तस्वीर का एक और भी पहलू है |


इन डेटिंग एप से बनने वाले सम्बन्धों की कोई सामाजिक स्वीकृति नहीं रहती | डेटिंग एप से पहले सम्बन्ध साथ पढ़ाई लिखाई करने ,मोहल्ले या फिर साथ कम करते वक्त  की परिधि में बनते थे जिसमें काफी कुछ समानता हुआ करती थी |भले ही ये सम्बन्ध निजता के दायरे में आते थे पर आस -पास के लोगों को इनके बारे में एक अंदाज़ा हुआ करता था |यह अंदाजा बात बिगड़ने की सूरत में एक ढाल का काम किया करता था | श्रद्धा हत्याकांड अपने आप में एक बानगी है कि इंटरनेट की दुनिया में लगातार विचरने वाली युवा पीढी कितनी अकेली होती जा रही है |चैटिंग एप के स्क्रीन शॉट वायरल हो जाने की संभवनाओं के चलते लोग इस पर अनौपचारिक और अन्तरंग चर्चा करने से बचते हैं |मिल जुल के समस्याओं को समझाने का वक्त किसी के पास नहीं है | क्या डेटिंग ऐप्स पर मिले लोगों को एक-दूसरे के बारे में ज्यादातर जानकारी नहीं होती है?

सिर्फ नाम पता और तस्वीर देखकर मुलाक़ात तय कर ली जाती हैं और फिट उन मुलाकातों में जो कुछ दिख रहा है वो कितना असली है |इसकी गारंटी कोई भी नहीं ले सकता क्योंकि डेटिंग एप्स पर आने वाले  लोगों का कोई वेरिफिकेशन नहीं होता है और इसी बिंदु से असली समस्या शुरू होती है |नेटफ्लिक्स पर “द टिंडर स्विंडलर” वृत्तचित्र एक ऐसी ही सच्ची घटना का प्रस्तुतीकरण है जिसमें एक व्यक्ति अपने इन्स्टाग्राम अकाउंट के जरिये महिलाओं को ठगता है |चूँकि डेटिंग या रिश्ते जैसी चीजें वैसी भी बहुत निजी तरह का मामला होता है फिर उसमें असफलता जैसी चीजें लोग अपने अभिन्न मित्रों से बताने में संकोच करते हैं |सोशल मीडिया और डेटिंग एप जैसा प्लेटफोर्म पर अपनी पीड़ा रखना या मदद मांगना तो दूर की बात है |ऐसे में कोई भी व्यक्ति जो रिश्तों में ईमानदार नहीं है उसका मायाजाल चलता रहता है और उसकी वास्तविकता कभी सबके सामने नहीं आ पाती |

ट्रूली मैडली, वू ,टिनडर,आई क्रश फ्लश और एश्ले मेडिसन ,बम्बल जैसे डेटिंग एप भारत में काफी लोकप्रिय हो रहे हैं जिसमें एश्ले मेडिसन जैसे एप किसी भी तरह की मान्यताओं को नहीं मानते हैं आप विवाहित हों या अविवाहित अगर आप ऑनलाईन किसी तरह की सम्बन्ध की तलाश में हैं तो ये एप आपको भुगतान लेकर सम्बन्ध बनाने के लिए प्रेरित करता है |

हालंकि डेटिंग एप का यह कल्चर अभी मेट्रो और बड़े शहरों  तक सीमित है पर जिस तरह से भारत में स्मार्ट फोन का विस्तार हो रहा है और इंटरनेट हर जगह पहुँच रहा है इनके छोटे शहरों में पहुँचते देर नहीं लगेगी |पर यह डेटिंग संस्कृति भारत में अपने तरह की  कुछ समस्याएं भी लाई है जिसमें सेक्स्युल कल्चर को बढ़ावा देना भी शामिल है |वैश्विक सॉफ्टवेयर एंटी वायरस  कंपनी नॉर्टन बाई सिमेंटेक के अनुसार ऑनलाइन डेटिंग सर्विस एप साइबर अपराधियों का मनपसंद प्लेटफार्म बन चुका है। भारत के लगभग 38 प्रतिशत उपभोक्ताओं ने कहा कि वह ऑनलाइन डेटिंग एप्स का प्रयोग करते हैं। ऐसे व्यक्ति  जो मोबाइल में डेटिंग एप रखते है, उनमें से करीब 64 प्रतिशत  महिलाओं और 57 प्रतिशत  पुरुषों ने सुरक्षा संबंधी परेशानियों का सामना किया है। आपको कोई फॉलो कर रहा है, आप की पहचान चोरी होने के डर, के साथ-साथ उत्पीड़ित और कैटफिशिंग के शिकार होने का खतरा बरकरार रहता है।

राष्ट्रीय सहारा हस्तक्षेप में 26/11/2022 को प्रकाशित 

Tuesday, November 22, 2022

आंकड़ों की सुरक्षा का सवाल

 


इन्फोमोनिक्स की दुनिया  आंकड़ों से ही जुड़ी है |डाटा आज की सबसे बड़ी पूंजी है यह डाटा का ही कमाल  है कि गूगल और फेसबुक जैसी अपेक्षाकृत नई कम्पनियां दुनिया की बड़ी और लाभकारी कम्पनियां बन गयीं है|डाटा ही वह इंधन है जो अनगिनत कम्पनियों को चलाए रखने के लिए जिम्मेदार हैं |वह चाहे तमाम तरह के एप्स हो या विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साईट्स सभी उपभोक्ताओं  के लिए मुफ्त हैं |असल मे जो चीज हमें मुफ्त दिखाई दे रही है |वह सुविधा हमें हमारे संवेदनशील निजी डाटा के बदले मिल रही है |इनमे से अधिकतर कम्पनियां उपभोक्ताओं द्वारा उपलब्ध कराए  गए आंकड़ों को सम्हाल पाने में असफल रहती हैं| जिसका परिणाम लागातार आंकड़ों की चोरी और उनके  दुरूपयोग के मामले सामने आते रहते हैं |साल 2020 में फेसबुक ने लगभग  छियासी बिलियन डॉलर और गूगल ने एक सौ इक्यासी  बिलियन डॉलर विज्ञापन से कमाए | सारी दुनिया में आज खोज का पर्याय बन चुकी कम्पनी का नाम है गूगल | गूगल इंटरनेट का प्रवेश द्वार है और खोज-विज्ञापन के बाजार में यह विशालकाय है।गूगल लगातार हमारे जीवन में घुसपैठ बढाता रहा सर्च इंजन से शुरू हुआ सफर ई मेल फोटो वीडियो और न जाने कितनी सेवाओं को जोड़कर हमारे जीवन को आसान करता रहा | लेकिन गूगल और उस जैसी टेक कम्पनियों का एक और चेहरा है जो अपने मुनाफे को बढाने के लिए लगातार अपने उपभोक्ताओं की निजी जानकारियों का अनाधिकृत इस्तेमाल करता है |ताजा मामला अमेरिका का है जहाँ  अमेरिका के 40 राज्यों ने गूगल  पर  बड़ी कार्यवाही  करते हुए भारी भरकम जुर्माना लगाने का फैसला  किया है| मिशिगन के अटॉर्नी जनरल डाना नेसेल के ऑफिस ने इस मामले पर जानकारी देते हुए बताया कि चालीस  राज्यों ने गूगल पर यह कार्रवाई लोकेशन ट्रैकिंग केस में की है| कंपनी पर यह आरोप लगा था कि वह लोकेशन ट्रैकिंग प्रैक्टिस के जरिए ग्राहकों को गुमराह कर रही थी और  कंपनी ने उपयोगकर्ताओं के स्थानों को ट्रैक करना तब भी जारी रखा, जब उन्होंने  लोकेशन ट्रेकिंग  सुविधा को बंद करने का ऑप्शन चुना था | 

जांच में पाया गया कि Google ने कम से कम 2014 से उपभोक्ताओं को उनके स्थान ट्रैकिंग प्रथाओं के बारे में गुमराह करके राज्य उपभोक्ता संरक्षण कानूनों का उल्लंघन किया था| गूगल की कमाई का ज्यादातर हिस्सा लोगों की व्यक्तिगत जानकारियों  के जरिए ही आता है| लोग अपने जरुरत की चीजों को  अपने ब्राउजर में खोजते हैं चूँकि मोबाईल एक व्यक्तिगत माध्यम है तो लोग जहाँ भी जाते हैं मोबाईल उनके साथ रहता है और वे किन ऐप्स का इस्तेमाल करते हैं |यह सभी जानकारी गूगल के पास रहती है| ऐसे में इन डेटा के जरिए लोगों को उनकी पसंद का कंटेंट और ऐप्स उन्हें अपने स्क्रीन पर दिखने लगते हैं| इस मामले पर अमेरिका के चालीस  राज्यों ने गूगल के साथ समझौते के तहत अब गूगल को राज्यों को कुल 32 अरब रुपये यानी करीब 400 मिलियन डॉलर का भुगतान करने का फैसला किया है| ध्यान देने वाली बात ये है कि यह अब तक का सबसे बड़ा प्राइवेसी समझौता है|

वही भारत जो कि दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इंटरनेट यूजर देश है वहां डेटा और डेटा प्राइवेसी को लेकर अभी भी कोई जागरूकता नहीं दिखती है|निजी जानकारियों को सुरक्षित रखने और इसके  गलत इस्तेमाल को रोकने  के लिए सरकार ने 11 दिसंबर 2019 को लोकसभा में पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल पेश किया था इस पर गठित संयुक्त संसदीय समिति (JPC) ने अपनी रिपोर्ट सदन के समक्ष नवम्बर 2021 में रख दी है जिस पर आगे चर्चा होनी है |  उम्मीद की जा रही है कि इस बजट सत्र के बाद डिजीटल डाटा सुरक्षा बिल कानून का रूप ले लेगा |जिस तरह इंटरनेट की इस दुनिया में आंकड़े महत्वपूर्ण हो चले हैं इस बिल के कानून बनने में अभी वक्त है |देश में जिस तेजी से इंटरनेट का विस्तार हुआ उस तेजी से हम अपने निजी आंकडे (फोन ई मेल आदि) के प्रति जागरूक नहीं हुए हैं परिणाम तरह तरह के एप मोबाईल में भरे हुए जिनको इंस्टाल करते वक्त कोई यह नहीं ध्यान देता कि एप को इंस्टाल करते वक्त किन –किन चीजों को एक्सेस देने की जरुरत है |यदि किसी उपभोक्ता ने मौसम का हाल जानने के लिए कोई एप डाउनलोड किया और एप ने उसके फोन में उपलब्ध सारे कॉन्टेक्ट तक पहुँचने की अनुमति माँगी तो ज्यादातर लोग बगैर यह सोचे की मौसम का हाल बताने वाला एप कांटेक्ट की जानकारी क्यों मांग रहा है उसकी अनुमति दे देंगे |अब उस एप के निर्मताओं के पास किसी के मोबाईल में जितने कोंटेक्ट उन तक पहुँचने की सुविधा मिल जायेगी|यानि एप डाउनलोड करते ही उपभोक्ता आंकड़ों में तब्दील हुआ फिर उस डाटा ने और डाटा ने पैदा करना शुरू कर दिया |इस तरह देश में हर सेकेण्ड असंख्य मात्रा में डाटा जेनरेट हो रहा है पर उसका बड़ा फायदा इंटरनेट के व्यवसाय में लगी कम्पनियों को हो रहा है |ऐसे में लोगों की डेटा प्राइवेंसी पर बहुत बड़ा सवाल उठता है| 

दैनिक जागरण में 21/11/2022 को प्रकाशित 

 

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