Wednesday, December 31, 2008

चला मैं चला


प्रिय दोस्तों 
मैं साल २००८ हूँ ,चौंक गए न, मैंने आप सभी के साथ काफी अच्छा वक्त गुजारा तो सोचा मैंने इस दुनिया को किस तरह समझा इस राज़ को आपके साथ बाँटता चलूँ .चलते-चलते क्यों ना अपनों से अपनी बात कर ली जाए .जिस तरह दुनिया का नियम है जो आया है उसे जाना है .मेरा भी जाने का वक्त हो गया है और मुझे इसे एक्सेप्ट करने में कोई प्रॉब्लम नहीं है और वैसे भी लाइफ में जो भी जैसे मिले अगर उसे वैसे ही एक्सेप्ट कर लिया जाए तो जिन्दगी थोड़ी आसान हो जाती है .ये है मेरा पहला सबक जो मै आपके साथ बांटना चाहता हूँ .
मुझे याद है जब मै आया था तो लोगों ने तरह तरह से खुशियाँ मना कर मेरा स्वागत किया था वे मानते थे कि मैं उनके जीवन में खुशियों की बहारें लेकर आऊंगा. कुछ की उम्मीदें पूरी हुई ,कुछ की उम्मीदें टूटी और कुछ को मायूसी हाथ लगी और अब उम्मीदों का बोझ मेरे छोटे भाई साल २००९ पर होगा .जाते साल का दूसरा सबक किसी से एक्सपेकटशन मत रखिये, क्योंकि अगर एक्सपेकटशन नहीं पूरी होंगी तो परेशानी होंगी .दिन तो इसी तरह से बीतते जायेंगे साल आते रहेंगे और जाते रहेंगे और हर साल लोग न्यू इयर से उम्मीदें लगाते रहेंगे.और यही उम्मीद हमें जीने की और आगे बढ़ने का मोटिवेशन देती है लेकिन कोरी उम्मीदों से लाइफ न तो बदलती है और न ही आगे बढ़ती है इसके लिए प्रयास अपने आपको करना पड़ता है ये प्रयास ही हमारी लाइफ को बेहतर बना सकता है .आप सभी न्यू इयर सलेबेरेशन की प्रेपरेशन में बिजी होंगे .साल के पहले दिन कहाँ पार्टी करनी है क्या रेसोलुशन लेना है लेकिन मैं जानता हूँ जैसा कि मेरे साथ हुआ है और मेरे छोटे भाई २००९ के साथ भी होगा .साल के पहले दिन का स्वागत आप जिस जोश और उमंग के साथ करेंगे वो आधा साल बीतते न जाने कहाँ गायब हो जाएगा .वो रेसोलुशन जो साल के पहले दिन हमने लिए थे हम आधे साल भी उन्हें निभा नहीं पायेंगे. और वो नया साल जिसका आप बेकरारी से इंतज़ार कर रहे थे आप को प्रॉब्लम देने लगेगा .तीसरा सबक सफलता के लिए डेडिकेशन के साथ कनसिसटेंसी भी जरूरी है .मैंने पिछले एक साल में जिन्दगी के कई मौसम देखें जिन्दगी कहीं गरमी की धूप की तरह गरम लगी , कभी बरसात की फुहार की तरह सुहानी और कभी सर्दी की ठंडी रातों की तरह सर्द ,मैंने होली ईद और दिवाली में सुख और उल्लास के पल देखे वहीँ मुंबई , जयपुर ब्लास्ट में इंसानी हैवानियत के साथ दुःख के पलों का सामना किया लेकिन मैं चलता रहा बीती बातों को छोड़ते हुए तो मेरा चौथा सबक परेशानियों की परवाह किए बिना अपना काम करते रहें क्योंकि कोई इन्सान महान नहीं होता , महान होती है चुनोतियाँ और जब एक आदमी इन्हें स्वीकार करें तब वो महान कहलाता है ।साल के सारे दिन एक जैसे ही होते हैं हर सुबह सूरज निकलता है और शाम होती है बस जिन्दगी के प्रति हमारा नजरिया और आगे बढ़ने की चाह साल के हर दिन को खुशनुमा और नए साल के पहले दिन जैसा बना सकती है और अगर आप ऐसा कर पाये तो आपको खुशियाँ मनाने और नए रेसोलुशन लेने के लिए नए साल का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा हर दिन खुशनुमा होगा और तब शायद जाते हुए साल को जाते हुए इतना दुःख भी न होगा जितना मुझे हो रहा है. तो नया साल नई बातों नई सोच का कुछ कर गुजरने का साल होना चाहिए .अपने आप से वादा कीजिये कि कुछ नया होगा ,जिन्दगी में , पर्सनल लाइफ में, प्रोफेशन में कुछ अलग एंड आय होप ये साल यूं ही नहीं गुजर जाएगा.आप सब के साथ बिताये पलों की मधुर स्मर्तियों के साथ मै जा रहा हूँ फ़िर न कभी न आने लिए तो जाते साल का अन्तिम सबक जिन्दगी आज का नाम है जो दिन आज बीत गया वो फ़िर कभी नहीं आएगा चाहे आप कुछ भी कर लें इसलिए जिन्दगी को जी भर कर जी लीजिये , क्योंकि कल किसने देखा कल आए न आए ?

इस नए साल में कुछ नया कीजिये
जो किया है उसके सिवा कीजिये
ख़त बधाई का बेशक लिखें दोस्तों
दुश्मनों के लिए भी दुआ कीजिये .

शुभकामनाओं के साथ हमेशा के लिए विदा
सिर्फ़ आपका

साल २००८।
आई नेक्स्ट मैं ३१ दिसम्बर को प्रकाशित

Monday, December 15, 2008

आइये फ़िल्म देखें

आज बहुत दिनों के बाद अपने हॉस्टल के दिनों की याद ताज़ा हो आयी और इस बात के एहसास भी हुआ की चाहे कितने डी वी डी / वी सी आर / टी वी के युग आते जाते रहें फिल्मों के प्रति जो दीवानगी भरिया जनता में है वो मंद जरूर हो सकती है ख़तम नहीं हो सकती है .मैं आज गज़नी फ़िल्म देखने गया बहुत अरसे बाद ब्लैक में टिकेट खरीदे हर जगह हाउस फुल .में बात हॉस्टल के दिनों की कर रहा था वो अज़ब ही दिन थे .उदैपुर की हसीं वादिया सिर्फ़ मस्ती भरे दिन हर शुक्रवार को पहला दिन पहला शो देखना और दोस्तों पर रौब ग़ालिब कर देना की गुरु निपटा दी .हालाँकि हॉस्टल छोड़ने से पहने जो मैंने आखिरी फ़िल्म देखी थी वो पहला शो न होकर आखिरी शो था दिन का मतलब निघत शो ९ से १२ . फ़िल्म थी तिरंगा शायद आपको याद हो जॉनी अपने राज कुमार साहब और नाना पाटेकर की जुगलबंदी .हॉस्टल से भाग कर उदैपुर के पारस सिनेमा हाल देखी क्या माहौल था हॉल में हर संवाद पर रेज्गारियों की बरसात , सीटियाँ , तालियाँ और बहार हाउस फुल का बोर्ड चलते चलते ये भी बता दूँ रात में फ़िल्म देखकर लौट ते वक्त पुलिस ने रोका इतनी रात कहाँ बताया पिक्चर देखकर बस फ़िर क्या था पकड़ लो वार्डेन को ख़बर करो .ऊपर की साँस ऊपर और नीचे की नीचे , अगले दिन मुझे ११ क्लास में टॉप करने का पदक मिलना था ये सोच कर सिहर गए की कल बड़ी बदनामी होगी लेकिन पुलिस वालों को भी रहम आ गया और समझा कर छोड़ दिया की नैएट शो मत देखा करो ऐसा था हम लोगों का फ़िल्म देखने का शौक मतलब फ़िल्म के लिए कुछ भी करेगा काफी कुछ किया भी लेकिन वो कहानी फ़िर सही .खैर थोड़ा इमोशनल हो गया था असल में सीन ईस्ताब्लिशेद करना था की गज़नी देखकर मुझे आज से करीब १५ साल पहले का हॉल का माहौल याद आ गया .कमोबेस लखनऊ के सारे हाल हाउस फुल और आमिर खान की इंट्री पर जोरदार स्वागत मैंने भी फ़िल्म का लुत्फ़ लिया खासकर इंटरवल से पहले का बाद में तो वही पुरानी कहानी बदला लेकिन नायक के कुछ न कर पाने का एहसास आमिर ने बखूबी किया बहुत दर्द का एहसास कराया बाकी सब तो ठीक था लेकिन एक जगह अगर मैंने सही सुना तो स्क्रिप्ट पर इतना गौर करने की बाद भी एक गलती हो ही गयी है वोह है मुंबई से गोवा जाते वक्त आसिन जिस लडकी को ट्रेन में बचाती है वो अपने आप को लातूर का निवासी बताती है जबकि ख़बर जब आई बी एन ७ से प्रसारित होती है तो लड़कियों को उत्तर भारत के गाँव का बताया जाता है .ये उत्तर भारतियों के प्रति कोई पूर्वाग्रह है या कोई त्रुटी कह पाना मुश्किल है . कैमरा संगीत बहुत उत्तम है .गज़नी का किरदार बहुत भौंडा है एक मेडिकल कॉलेज के समारोह में मुख्या आतिथि बनकर जाने वाला व्यक्ति कैसा बेवकूफ हो सकता है या एक बेवकूफ कैसे एक बड़ी दवा कंपनी का मालिक हो सकता है जो लोगों की ह्तायेन करता रहता है वगैरह वगैरह .तो ये थी गज़नी की कहानी हमारी जुबानी जिन्दगी के किसी मोड़ पर फ़िर मुलाकात होगी

Thursday, December 11, 2008

मैं लखनऊ हूँ

मत पूछिये अहले दिल क्या हाल है लखनऊ
हर शहर हर दयार से बढ़कर है लखनऊ

में ऐसा ही हूँ जी हाँ में लखनऊ हूँ मुझे बसाया भले ही भगवान राम के भाई लछमन ने लेकिन मुझे सजाने सवारने का काम किया नवाबों ने इस तरह मैं गंगा जमुनी तहजीब की जीती जागती मिसाल हूँ, लखनऊ हर वक्त में कुछ खास रहा है ज्यादा पीछे न जाते हुए मैं अपनी बात नवाबों से शुरू करूँगा नवाबी दौर में , मैं अपने अदब ,तहजीब , और तमीज के लिए जाना जाता था बाद में मेरी पहचान बने दशहरी आम ,चिकनकारी और मीठी खुशबू दार रेवडियाँ ,वक्त बदलता रहा और मैं भी ,मेरे सीने पर गुजरने वाले इक्के तांगों की आवाज़ मेरे कानों में मीठा रस घोलती थी लेकिन कब इसकी जगह सरपट फर्राटा भरते दोपहिये और चोपहिये वाहनों ने ले ली इसका मुझे पता भी न चला , बारह महीने चलने वाला पतंगबाजी का दौर कब साल के कुछ दिनों में सिमट गया , अपने घरों में खुशबूदार जायेकेदार खाना पकाने वाले लोगों ने जगह जगह खुले फ़ूड कार्नर के पकवानों का लुत्फ़ लेना शुरू कर दिया इसका भी एहसास मुझे न हुआ , हुक्के चिलम का दौर कब ख़तम हुआ और उनकी जगह मॉडल शॉप ने ले ली ये मंज़र भी मैंने देखा , मैंने ये भी देखा की पुराने लखनऊ की याद को ताज़ा करने और पुराने दौर को जीने के लिए लखनऊ के लोगों ने लखनऊ महोत्सव मनाना शुरू कर दिया .
समय वाकई बहुत तेज़ी से बदलजाता है मुझे इन सारे बदलावों से कोई शिकायत नहीं है क्योंकि अगर बदलाव न हो रहे होते तो मैं कब का मिट गया होता , परिवर्तन तो आगे बढ़ते रहने की निशानी है ये बदलाव होते रहेंगे तो मैं भी आगे बढ़ता रहूँगा . मैंने देखा अक्सर लोग शिकायत करते हैं कि मैं अब पहले जैसा नहीं रहा ? क्या कोई इंसान हमेशा एक जैसा रहता है बच्चा कभी तो बड़ा होगा ही . मैं यही कहूँगा कि लोग भी अब पहले जैसे नहीं रहे .पुराने ज़माने में आबादी कम थी सिर्फ़ खेती से लोगों का काम चल जाता था और समय भी खूब रहा करता था और समय के सदुपयोग के लिए लोग पतंगबाजी किया करते थे शादियाँ तीन दिन में हुआ करती थीं पढ़ाई का महत्व लोग ज्यादा नहीं समझते थे . हर काम खरामा -खरामा (धीमे -धीमे ) हुआ करता था .
अब समय बदल चुका है मैं नहीं चाहता कि लोग २१वीन शताब्दी में भी मुझे सिर्फ़ नवाबों के कारण जाने , मैं नहीं चाहता कि लोग मुझे पिछडे शहर के नाम से जाने .बदलती दुनिया की रफ़्तार से कदम मिलाये रखने के लिए मुझे भी दौड़ना होगा .हम सिर्फ़ पुराने चित्रों के एल्बम देखते हुए और अतीत के गौरव को याद करके जिन्दगी न तो बिता सकते हैं और न ही उसे बेहतर बना सकते हैं नए एल्बम बनाने के लिए कुछ नया करना पड़ेगा , नहीं तो फर्क क्या रहेगा नए और पुराने लखनऊ में और तभी एल्बम भी नया बन पायेगा .
मेरे ऊपर जनसँख्या का दबाव बढ़ रहा है लेकिन उसी लिहाज़ से रोज़गार के अवसर भी बढे हैं .लखनऊ के लोग अब जिंदगी बिता नहीं रहे हैं बल्कि जी रहे हैं . लखनऊ महोत्सव जिन्दगी के महोत्सव हो जाने का उल्लास है .हर्ष है कि हम आज भी अपने अतीत और उससे जुडी हुई चीज़ों पर गर्व करते हैं लेकिन उन्हें ढोते नहीं हम आगे बढ़ना जानते हैं . हवाई जहाज़ के इस दौर मैं हम इक्के से कितनी दूर दौड़ पायेंगे इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है . आज लखनऊ शिक्षा और वज्ञानिक अनुसंधान केन्द्रों के मामले में भारत के नक्शे पर बहुत तेज़ी से उभरा है और इसका श्रेय यहाँ के बाशिंदों को जाता है जो पुरानी चीज़ों से चिपके नहीं रहे . ठहरा पानी गन्दा होता है बहता पानी साफ़ मैं बहता रहा हूँ और बहता भी रहूँगा. लखनऊ फ़ैल रहा है और विकसित भी हो रहा है
लखनऊ महज़ गुम्बद -ओ- मीनार नहीं
कूचा -ऐ -बाज़ार नहीं
इसके दामन में मुहबत के फूल खिलते हैं
इसकी गलियों में फरिश्तों के पते मिलते हैं


दैनिक जागरण लखनऊ में ११ दिसम्बर को प्रकाशित

Tuesday, December 9, 2008

मुस्कराहटों का मौसम

सर्दियों का मौसम आ गया आप भी सोच रहे होंगे की मै कौन सी नयी बात बता रहा हूँ. गर्मियों के बाद जाडा ही आता है और ये तो हमेशा से होता आया है इस जाडे के मौसम में रजाई लपेटे हुए मैंने फिल्मी गानों से मौसम के फलसफे को समझने की कोशिश की अब इस सर्दी के मौसम को ही लीजिये न ये मौसम बहुत ही अच्छा माना जाता है सेहत , खान -पान और काम काज के लिहाज़ से तो यूँ कहें कि मौसम गुनगुना रहा है गीत खुशी के गा रहा है (फ़िल्म :सातवां आसमान ) भले ही ये सर्दी का मौसम हो लेकिन इसके आने से चारों तरफ़ गर्माहट आ जाती है खाने में , कपडों में , और रिश्तों में भी , ज्यादातर शादी फंक्शन्स जाडे में ही तो होते हैं . .मौसम मस्ताना रस्ता अनजाना (फ़िल्म:सत्ते पे सत्ता) लेकिन एक बात ज्यादा महत्वपूर्ण  है कि इसी मौसम में हमें गर्मी की कमी एहसास होता है. ये मौसम का जादू है मितवा (हम आपके हैं कौन )कुदरत ने हमें हर चीज जोड़े में दी है सुख -दुख ,धरती- आकाश , सर्दी-गर्मी , काला -सफ़ेद और न जाने क्या क्या और सही भी है अगर दुःख न होता तो हम सुख को समझ ही न पाते और देखिये न हम इंसान धरती के मौसम के बदलने का इंतज़ार कितनी बेसब्री से करते हैं और हर मौसम का स्वागत करते हैं .अलबेला मौसम कहता है स्वागतम (फ़िल्म :तोहफा ) लेकिन जब जिन्दगी का मौसम बदलता है तो हमें काफी परेशानी होती है .आप सोच रहे होंगे की जिन्दगी का मौसम कैसे बदलता है ?जवाब सीधा है सुख दुःख , पीड़ा निराशा , जैसे इमोशंस जिन्दगी के मौसम तो ही हैं . दुनिया के मौसम का टाइम साइकिल फिक्सड रहता है यानि चेंज तो होगा लेकिन एक सर्टेन टाइम पीरियड  के बाद लेकिन इससे एक बात तो साबित होती है बदलाव का दूसरा नाम मौसम है . मौसम आएगा जाएगा प्यार सदा मुस्कयेगा (फ़िल्म :शायद )जिन्दगी का मौसम थोड़ा सा अलग है इसके बदलने का टाइम फिक्सड नहीं है और प्रॉब्लम यहीं से शुरू होती है जब हम किसी चीज के लिए मेंटली प्रीपैरे न हों और वो हो जाए जिन्दगी का मौसम कब बदल जाए कोई नहीं जनता ये पोस्सितिव भी हो सकता है और निगेटिव  भी .पतझड़ सावन बसंत बहार एक बरस के मौसम चार (फ़िल्म :सिन्दूर ) बारिश के मौसम में हम बरसात को नहीं रोक सकते लेकिन छाता लेकर हम अपने आप को भीगने से बचा सकते हैं और यही बात जिन्दगी के मौसम पर भी लागू होती है यानि सुख हो या दुख कोई भी परमानेंट नहीं होता है यानि जिन्दगी हमेशा एक सी नहीं रहती है इसमे उतार चढाव आते रहते हैं मुद्दा ये है कि जिन्दगी के मौसम को लेकर हमारी तैयारी कैसी है.
कोई भी इंडीविजुअल   हमेशा ये दावा नहीं कर सकता है कि वो अपनी जिन्दगी में हमेशा सुखी या दुखी रहा है या रहेगा चेंज को कोई रोक नहीं सकता सुख के पल बीत गए तो दुःख के पल भी बीत जायेंगे .अमेरिका के प्रेसीडेंट ओबामा जिस दिन चुनाव जीते उसके एक दिन पहले उनकी नानी का निधन हो गया जिसे वो बहुत चाहते थे . दुख के साथ सुख भी आता है. अगर आपके साथ बहुत बुरा हो रहा है तो अच्छा भी होगा भरोसा रखिये.ऐसा हमारी आपकी सबकी जिन्दगी में होता है लेकिन हम सत्य को एक्सेप्ट करने की बजाय भगवान् और किस्मत न जाने किस किस को दोष देते रहते हैं अगर हम इसको मौसम के बदलाव की तरह एक्सेप्ट कर लें तो न कोई स्ट्रेस रहेगा और न ही कोई टेंशन लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है जब हमारे साथ सब अच्छा हो रहा होता है तो हम भूल जाते हैं कि जिन्दगी संतुलन का नाम है और संतुलन तभी होता है जब दोनों पलडे बराबर हों लेकिन हम हमेशा सिर्फ़ सुख की आशा करते है लेकिन बगैर दुख को समझे सुख का क्या मतलब जिन्दगी के दौड़ में पास होने के एहसास को समझने के लिए फ़ेल होने के दर्द को समझना भी जरूरी है . जहाज़ सबसे सुरक्षित पानी के किनारे होता है लेकिन उसे तो समुन्द्र के लिए तैयार किया गया होता है बिना लड़े अगर आप जीतना चाह रहे हैं तो आज की दुनिया में आप के लिए कोई जगह नहीं है क्योंकि जिन्दगी का मौसम बहुत तेजी से बदल रहा है जैसे हम हर मौसम के हिसाब से अपना रहन सहन बदल लेते हैं वैसे हमें जीवन में आने वाले हर बदलाव का स्वागत करना चाहिए .
क्योंकि मौसम आएगा जाएगा प्यार सदा मुस्कयेगा (फ़िल्म :शायद)
तो इस बदलते मौसम का स्वागत मुस्कराते हुए करिए फ़िर मुलाकात होगी
आई नेक्स्ट में ९ दिसम्बर २००८ को प्रकाशित

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