Tuesday, May 31, 2011

अभी रुकने का वक्त नहीं

अभी पिछले दिनों चार राज्यों के स्टेट इलेक्शन में दो महिलाओं ने मुख्यमंत्री  के पद पर कब्ज़ा जमाया इसी के साथ शुरू हो गया एस एम् एस और ई मेल का सिलसिला जिसमे उनकी इस जीत को वूमेन ऍम पावर मेंट से जोड़ा गया एक एस एम् एस कुछ यूँ था है India now ruled by Amma in South; Didi in East; Bahenji in North; Aunty in Capital; Madam in Centre and Tai In Rashtarpati Bhawan यह सही भी है की देश में रायसीना हिल्स से लेकर रायटर्स बिल्डिंग तक महिलाओं को पहुँचने में बहुत समय लगा है. अब तक देश के २० प्रधान  मंत्रियों में मात्र एक महिला रही है .पहली बार लोकसभा के अध्यक्ष की कुर्सी के साथ की देश के सबसे महत्वपूर्ण राजनैतिक शख्शियत  भी एक महिला ही है. ऐसा भी नहीं कि इन तीन महिला मुख्यमंत्रियों से पहले महिला मुख्यमंत्रियों का अकाल रहा हो. दिल्ली में शीला,राजस्थान में वशुन्धरा और मध्यप्रदेश में उमा पहले भी थी. सुषमा  के दिल्ली के शासनकाल को भी भुलाया नहीं जा सकता और अम्मा भी पहली बार सीएम् नहीं बनी हैं. हाँ इस बार कि ख़ास बात यह रही है कि इन तीनो को ही राजनीति  कोई विरासत में नहीं मिली है. इन  तीनो ने ही राजनीति में सक्सेज पाने से पहले एक लम्बी लड़ाई लड़ी है. पुरुषवादी समाज के दंश को झेला है.
 ताने सुने हैंलेकिन फिर भी आगे बढ़ी और आज सफलता की नयी  इबारत लिखने को तैयार हैं. इस जीत के साथ ही एक सुखद संयोग रहा भारतीय प्रशाशनिक सेवा के रिजल्ट का. इसमें दोनों शीर्ष स्थानों पर लड़कियों ने बाजी मारी  प्रथम स्थान चेन्नई की लॉ की छात्रा एस .दिव्यदर्शिनी को मिला और दूसरे स्थान पर कंप्यूटर इंजिनियर श्वेता मोहंती रही |  आई ए एस जैसी परीक्षा में प्रथम दो स्थान लड़कियों को मिलना वो भी भारत जैसे देश में आसान  नहीं है. इसी बीच में सीबीएसई और आईएसएसई के रिजल्ट भी आये. इनमे भी लड़कियों ने अपना परचम लहराए रखा है. यानि मात्र एक माह में महिला उपलब्धियों का अम्बार लग  गया है अब वक़्त आ गया है जब हमें इंदिरा नूईकिरण बेदी जैसे कुछ गिने चुने नामों से आगे बढ़कर बात करनी चाहिए जरा याद कीजिये १९९१ में भारतीय सुन्दरी सुष्मिता सेन और ऐश्वर्या राय ने विश्व सुन्दरी और ब्रह्माण्ड सुन्दरी का खिताब जीतकर  कितनी भारतीय सुंदरियों को ग्लैमर वर्ल्ड में आने के लिए प्रेरित किया यानि किसी भी क्षेत्र में जब किसी महिला को सफलता मिलती है तो उसका असर सभी पर पड़ता है जीवन के किसी फील्ड में महिलाएं पुरुषों से पीछे नहीं है ये जुमला अब किताबी नहीं लगता हम अपने आस पास इस बदलाव को देख सकते हैं महसूस कर सकते हैं जरा दिमाग चलाइए और सोचिये क्या कोई ऐसा क्षेत्र बचा है जहाँ आप ने महिलाओं की सफलता के किस्से न सुने हों जहाँ उन्हें मौका मिला है उन्होंने बार बार अपने आप को साबित किया और हाँ जब आप उनके सफलता के किस्से पढ़ या सुन रहे हों तो ये न भूलें it’s man’s world ये बात आज भी सच है उन्हें अपने आपको साबित करने के लिए हर जगह पुरुषवादी समाज और सोच से लड़ना पड़ा है आज भी पुरुष और महिलाओं को परखने का हमारा नजरिया अलग अलग है राजनीति इसलिए महतवपूर्ण है क्योंकि ये एक ऐसा क्षेत्र रहा है जहाँ महिलाओं को आगे बढ़ने में पुरुषों से ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है इसलिए ममता दीदी और जया अम्मा के जज्बे को सलाम पर चलते चलते जरा देश की जनगडना के इस तथ्य पर भी गौर कीजियेगा जो ये बता रही है कि इस विकसित प्रगतिशील भारतीय समाज में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या लगातार कम हो रही है  प्रति हजार पुरुषों के अनुपात में महिलाओं की संख्या 927 से घटकर 914 हो गई है। यही नहींगर्भ में लड़कियों की हत्या मामले में बढ़ोतरी हुई है। फिर भी महिलाएं आगे बढ़ रही हैं .
आई नेक्स्ट में ३१ मई को प्रकाशित 

पसंद आया हो तो