Sunday, February 22, 2009

कुछ नयी महक

कुछ नया करने की कोसिस ......

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Monday, February 9, 2009

क्या लिखूं


क्या लिखूं प्रिये मैं तुमको
खुशियों का हास लिखूं
यां कलियों का भाष लिखूं
लिखूं की बिन तुम्हारे दिन नहीं सुहाते
न जाने बार -बार तुम याद क्यों आते हो
अपने स्वप्न का संसार लिखूं
या जीवन का श्रंगार लिखूं
लिखूं की भाग्यशाली हूँ जो मुझे तुम मिले
जीवन की बगिया मैं फूल हैं खिले
अपने ह्रदय के उदगार लिखूं
या तुमको अपना आभार लिखूं
लिखूं तुम्हारी आंखों में छलकता प्यार
देता है मुझको हर्ष अपार
अपने प्यार की शहनाई लिखूं
या शाम की तन्हाई लिखूं
तुम्हारे इन्तिज़ार का तनाव लिखूं
या तुमसे अपना लगाव लिखूं
प्रिये क्या लिखूं मैं तुमको

मैं चाहता हूँ


मैं चाहता हूँ सजाना
सपने सुनहरे भविष्य के
चाहता हूँ मैं विचरना
एकांत में तुम्हारे साथ
जब गिरी हो नर्म ओस धरती पर
मैं महसूस करना चाहता हूँ
तुम्हारी सांसों की गरमी को
हाथों में लेकर तुम्हारे हाथ को
मैं देखना चाहता हूँ सुबह की लाली
जो छाई हो तुम्हारे चेहरे पर
जब मिलूं मैं तुमसे
मैं लेना चाहता हूँ तुमको
अपने आगोश में जब देखो तुम मुझको
मैं चाहता हूँ दुनिया नई बसाना
जिसमे रहें हम दोनों
और बरसे खुशियों का खजाना
मैं भागना चाहता हूँ उन पलों से
जो कर देंगे मुझसे तुमको दूर
मैं नहीं खोना चाहता तुमको
लेकिन मेरे दोस्त चाहने से क्या होता है
कभी अनगढ़ सपने भी सच हुए हैं
फ़िर भी मैं बांधना चाहता हूँ
तुमको अपनी जीवन की डोर से

कोई


एक दिन तुम मुझसे दूर चली जाओगी
दूर देश जाकर अपनी दुनिया नयी बसाओगी
नए नए लोगों में नया नया घर आँगन होगा
चाँद के मुखड़े जैसा प्यारा एक साजन होगा
क्या सुख के उन मधुर पलों में
तुमको कुछ रीता सा लगेगा
युग जो बीत गया उसमे
कुछ खोया सा लगेगा
सांझ के धुंधलके में तब भी
क्या तुमको कोई गीत सुनाएगा
सावन की भीगी रातों में क्या
चुपके से कोई सपनों में आएगा
गरमी की प्यासी शामों में क्या
कोई हौले से मुस्काएगा
बसंत की मदमाती बहारों में

क्या कोई जीवन राग सुनाएगा
जाडे की नरम दोपहरी में
जब धुप मुंडेरों से ढल जायेगी
ऐसे में तब तुमको क्या
याद किसी की सतायेगी
प्रिये क्या मैं तब भी
तुमको याद आऊंगा

मृत्यु


मृत्यु मैंने तुमेह देखा तो


नहीं किंतु समझने की कोशिश की है


फ़िर भी तुम मुझे अपनी सी लगती हो


जाने क्यों तुम दुश्मन नहीं मित्र सी लगती हो


घोर निराशा के पलों में


जब जीवन से जी थक जाता है


ह्रदय तुम्हें निकट पाता है


शायद तुम हो ही


ऐसी पास तुम्हारे आने की आस में


कोई अपनों से दूर चला जाता है


मृत्यु बड़ी निष्ठुर हो


तुम अपना भय दिखलाकर


जीवन से प्यार सिखाती हो


जब दुनिया से दिल लग जाता


दूर देश ले जाती हो

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