Sunday, October 31, 2010

मीडिया को पढ़ने वाले ,मीडिया को पढाने वाले(हिन्दुस्तान सम्पादकीय )

                                                                      सीबीएसई ने अपने पाठ्यक्रम में ११ वीं और १२ वीं के छात्रों के लिए मीडिया का पाठ्यक्रम देने की बात कही. यह पाठ्यक्रम अगले सत्र से शुरू हो जायेगा. आम तौर देखा जाये तो इसमें कोई नई बात नहीं है. अन्य पाठ्यक्रमों  की तरह यह भी पढाया जायेगा पर जरा गौर करने पर इसके बड़े निहितार्थ निकलते हैं भारत में मीडिया शिक्षण का विकास ऊपर से नीचे की ओर हुआ यानि यह पाठ्यक्रम विश्वविद्यालयों , महाविद्यालयों से होते हुए स्कूल  तक पहुंचा है एक विषय के रूप में इतने वक्त में समय का पूरा पहिया घूम गया इसे समय की मांग कहा जाए या शिक्षा को बाजारोन्मुखी बनाना इसका आंकलन किया जाना अभी बाकी है  आजादी के बाद देश में तकनीकी दक्षता के लोगों की ज़रुरत को पूरा करने के लिए आई आई टी  जैसे संस्थान  खोले गए. इन संस्थानों से निकले लोगों की बदौलत हमने देश की बुनियादी संरचना सुधारी साथ ही विश्व में अपने आइटी पेशेवरों के माध्यम से अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया . इसी तरह बेहतर प्रबंधन कर्मियों के लिए स्थापित किये गए आई आई एम् संस्थानों ने भी देश और दुनिया  को बेहतरीन पेशेवर प्रबंधक दिए , पर तस्वीर का दूसरा रुख भी है देश में रोजगार परक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए आई टी आई और पोलीटेक्निक जैसे संस्थान खोले गए जहाँ कई रोजगार परक पाठ्यक्रम चलाये गए पर वे संतोषजनक परिणाम न दे सके . वर्तमान में मीडिया पाठ्यक्रम भारत के लगभग हर विश्व विद्यालय में चलाये जा रहे हैं इसके अतिरिक्त सैकड़ों की तादाद में निजी संस्थान भी देश के भावी पत्रकारों की पौध को तैयार करने में लगे हैं फिर भी आमतौर पर ये माना जाता है आज के जनमाध्यमों ने अपनी विश्वसनीयता खोयी जबकि आज प्रशिक्षित पत्रकारों का युग है और जनसंचार एक विषय के रूप में स्थापित हो चुका है फिर भी विश्वसनीयता का संकट है .विभिन्न संस्थानों से डिग्री धारी पत्रकार तो निकल रहे हैं पर जब वे नौकरी की तलाश में मीडिया संस्थानों में पहुँचते हैं तो अपने आपको एक अलग ही दुनिया में पाते हैं जहाँ उस   ज्ञान का कोई महत्व नहीं है जो उन्होंने अपने संस्थानों में सीखा है .सी बी एस ई द्वारा शुरू किये गए इस पाठ्यक्रम के बहाने ही सही पर अब वक्त आ चुका है कि हम अपनी मीडिया शिक्षा प्रणाली  पर एक बार फिर गौर करें .इंटर स्तर पर मीडिया शिक्षण की शुरुवात के पीछे तर्क यह दिया जा रहा है की इस से छात्रों में संचार कौशल तथा जनमाध्यमों के प्रति उनकी समझ बढ़ेगी इसमें कोई शक नहीं है स्कूल स्तर पर मीडिया शिक्षण का फैलाव होने से लोगों में मीडिया के प्रति फैले हुए कई दुराग्रहों को दूर करने में मदद मिलेगी आजकल ये फैशन सा चल पड़ा है हर समस्या के लिए मीडिया को दोषी ठहरा देना .हमारी  शिक्षा प्रणाली में संचार कौशल सिखाने  के लिए कहीं कोई जगह ही नहीं थी यह प्रयास शायद इस खालीपन को भर पाने  में सहायक होगा अक्सर विद्यार्थी अपने आपको ठीक तरह से व्यक्त न कर पाने के कारण रोजगार की दौड में पिछड़ जाते हैं.इसके अतिरिक्त यह पाठ्यक्रम उनके व्यक्तित्व निर्माण में भी सहायक होगा .

 पत्रकारिताफिल्मरेडियो,मल्टीमीडिया ,विज्ञापन और जनसंपर्क जैसे विषयों के रूप में उन्हें नए क्षेत्रों का ज्ञान होने से वे अपने भविष्य की रूप रेखा बेहतर तरीके से बना पायेंगे पर  मीडिया शिक्षा में कुछ और भी चुनौतियाँ हैं सिद्धांत और व्यवहार में अक्सर अंतर आ जाता है स्नातक और स्नाकोत्तर स्तर पर मीडिया शिक्षा योग्य शिक्षकों के अभाव से जूझ रही है .विश्वविद्यालय अनुदान आयोग मीडिया शिक्षा को अन्य पारम्परिक पाठ्यक्रमों की तरह ही देखता है, कोई भी छात्र जब मीडिया  विषय का चुनाव करता है तो उसके दिमाग में एक मात्र लक्ष्य पत्रकारिता  या इस से जुड़े अन्य क्षेत्रों में रोजगार पाना होता है पर विश्व विद्यालय अनुदान आयोग (यू जी सी ) की गाईड लाइन मीडिया  शिक्षकों से  ये अपेक्षा करती है कि वे शोधपत्र लिखेंगे तथा मीडिया शोध को बढ़ावा देंगे जैसा कि अन्य विषयों में होता है यह बाध्यता शिक्षकों की व्यक्तिगत पदोनात्ति में भी लागू होती है अधिकारिक तौर पर किसी भी विश्वविद्यलय में मीडिया शिक्षक बनने की योग्यता का आधार यू जी सी की राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट ) है इस परीक्षा में चयन का आधार किताबी ज्ञान और विश्लेषण शक्ति होती है इस स्थिति में ज्यादातर शिक्षक व्यावहारिक ज्ञान में दक्ष नहीं होते हैं और उनके द्वारा दी गयी शिक्षा में सिद्धांत और प्रयोग का सही मिश्रण नहीं होता और इसीलिये हमारे मीडिया संस्थान मीडिया बाजार की मांग के अनुरूप प्रोफेसनल तैयार नहीं कर पा रहे हैं .
और वहीं भारत के भावी पत्रकारों की पौध तैयार करने वाले संस्थानों के ज्यादातर शिक्षक मीडिया को अपना सक्रिय योगदान नहीं दे पाते हैं सिद्धांत और व्यवहार का यह अंतर छात्रों की गुणवत्ता पर असर डालता है  मीडिया के उच्च मानदंडों की प्राप्ति के लिए यह जरूरी है कि ऐसी पहल का स्वागत किया जाए पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मीडिया अपने आप में एक व्यापक शब्द और विषय है इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों से सिर्फ तकनीकी ज्ञान की अपेक्षा नहीं की जाती उनसे यह उम्मीद भी की जाती है कि उनमे देश दुनिया की बेहतर समझ भी हो जिसके लिए अन्य विषयों का भी ज्ञान आवश्यक है समाज , राजनीति , अर्थशास्त्र ,संस्कृति को समझे बगैर कोई भी अच्छा जन संचारक नहीं हो सकता  भारत में इलेक्ट्रोनिक मीडिया के फैलाव ने इसमें बहुत सारा ग्लैमर दे दिया है और छात्र सिर्फ तकनीक को समझ कर तुरंत  पत्रकार होना चाहता है यह एक बड़ा कारण है कि नयी पीढ़ी की जो पौध आज इस क्षेत्र में आ रही है उसमे गंभीरता का अभाव दिखता है इसलिए यह आवश्यक है की  पत्रकरिता  के पाठ्यक्रमों में बौद्धिक विषयों और अन्य सामयिक मुद्दों को ज्यादा जगह दी जानी चाहिए.भारत में मीडिया शिक्षण अभी भी दोराहे पर है जिसमे शोध और व्यवसायिकता का संतुलन नहीं कायम हो पाया है दूसरी ओर लगातार बदलती तकनीक ने इस विषय में बदलाव की गति को बहुत तेज कर दिया है . स्कूल स्तर पर इस  पाठ्यक्रम की शुरुवात ने एक अच्छा संकेत तो दिया है पर यह बदलाव मीडिया की उच्चशिक्षा को कितना बदल पाता है इसका फैसला समय को करना है .
*हिन्दुस्तान में दिनांक ३१ अक्टूबर २०१०  को प्रकशित 


       

Wednesday, October 20, 2010

जो महका दे जीवन



पिछले दिनों मैंने जिंदगी का एक नया रंग देखा और हमेशा की तरह उसे फिल्मों की तरह जोड़ दिया हुआ यूँ कि करीब १९ साल के बाद अपने पुराने स्कूल जाना हुआ बगैर किसी कारण बस दिल ने कहा चलो और मैं चला गया वहाँ मुझे अपना एक सबसे प्यारा मित्र मिला जिसे मैंने पिछले १९ साल से नहीं देखा था और न बात की थी  ये अलग बात है कि वो स्कूल के दिनों का मेरा सबसे अच्छा दोस्त था अजय मोगरा  फेस बुक पर जाने से कुछ ही दिन पहले उसने मुझे खोज लिया और जब मैं वहां पहुंचा तो इंसाने रिश्ते का एक नया रंग देखा वो था दोस्ती मुझे लगा ही नहीं कि हम कभी बिछड़े भी थे  और ये फासला १९ साल का हो चुका था उसका प्यार और अपनत्व के आगे मुझे अपने का रिश्ते फीके से लगे . जिंदगी में हमारे पैदा होते ही ज्यादातर रिश्ते हमें बने बनाये मिलते हैं और उसमे अपनी चोइस का कोई मतलब ही  नहीं रहता लेकिन दोस्ती ही एक ऐसा रिश्ता होता है जिसे हम अपनी लाइफ में खुद बनाते हैं  फिर दोस्ती की नहीं हो जाती है दोस्ती तो हो जाती है तो आज बात फिल्म और दोस्ती की फिल्मों ने इश्क ,प्यार और मोहब्बत के बाद किसी मुद्दे पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया है वो दोस्ती है “जाने तू या जाने न”  “रॉक ऑन , 'दिल चाहता है' और 'रंग दे बसंती' जैसी फिल्मों में दोस्ती को ही मुख्य आधार बनाया गया है पर दोस्तों को दुवा देता  ये गाना जब आप सुनेंगे तो निश्चित ही आपको अपने सबसे अच्छे दोस्त की याद आ ही जायेगी  एहसान मेरे दिल पर तुम्हारा है दोस्तों ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों (फिल्म :गबन ) इस दुनिया में शायद ही ऐसा कोई इंसान होगा जो अपने दोस्तों का एहसान न मानता हो क्या कहेंगे आप दोस्ती यानी एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें प्यार, तकरार, इजहार, इंकार, स्वीकार जैसे सभी भावों का मिक्सचर है जब दोस्ती पर गानों की बात चली है तो सबसे ज्यादा चर्चित गाना शोले का ही हुआ “ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे ,छोड़ेंगे दम मगर तेरा साथ न छोड़ेंगे” दोस्ती है ही रिश्ता ऐसा न इसके लिए न समाज की स्वीकृति चाहिए और न ही मान्यताओं और परम्पराओं का सहारा तभी तो कहा गया है बने चाहे दुश्मन जमाना हमारा सलामत रहे दोस्ताना हमारा (दोस्ताना )  जरा सोचिये बगैर दोस्ती के हमारा जीवन कैसा होता आफिस ,स्कूल , सिनेमा हाल , रेस्टोरेंट बगैर दोस्तों के कैसे लगते अगर नहीं समझ पा रहे हों तो अपने स्कूल का पहला दिन याद कीजिये जब आपका कोई दोस्त नहीं था या किसी दिन अकेले कोई फिल्म देखने चले जाइए और उसके बाद कहीं बाहर अकेले खाना कहिये फिल्म खुदगर्ज़ का ये गाना शायद इसी विचार को आगे बढ़ा रहा है “दोस्ती का नाम जिंदगी”, पर कभी ऐसा भी हो सकता है कि आपको दोस्ती करनी पड़ती है तो उस मौके के लिए भी गाना है “हम से तुम दोस्ती कर लो ये हसीं गलती कर लो “ (नरसिम्हा )
पर जिंदगी में रिश्ते हमेशा एक जैसे नहीं होते और ये बात दोस्ती पर भी लागू होती है कभी दोस्तों के चुनाव में भी गलती हो जाती है या गलतफहमियों से दोस्तों से दूरी हो जाती है और तब जो होता उसको बयां करता है ये गाना “दुश्मन न करे दोस्त ने वो काम किया है उम्र भर का गम हमें इनाम दिया है” (आखिर क्यों ) खैर हर रिश्ता कभी भी एक जैसा नहीं होता और वो बात दोस्ती पर भी लागू होती है  फिर आजकल की भागती दौडती दुनिया में अक्सर इस बात को दोष दिया जाता है कि इस से रिश्तों की संवेदनाएं खतम हो रही हैं पर एक रिश्ता तेज रफ़्तार  दुनिया में आज भी बचा हुआ है वो है दोस्ती क्योंकि ये कुछ मांग नहीं करता दोस्त , दोस्त होते हैं ये शिकायत हो सकती है कि समय की कमी है पर जब दोस्त मिलते हैं तो दोस्ती फिर से जवान हो जाती है तो चलिए किसी दोस्त को याद करते हैं एक एस ऍम एस करके या किसी सोसल नेट वोर्किंग साईट पर जाकर उसे हेल्लो बोलते हैं .
आई नेक्स्ट में २० अक्टूबर को प्रकाशित 

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