Friday, April 18, 2014

नए मीडिया पर चुनाव खर्च की पुरानी समस्या

इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक, देश के 24 राज्यों में इंटरनेट उपयोगकर्ता मतदान में तीन से चार प्रतिशत तक का बदलाव लाएंगे। इस बार के लोकसभा चुनाव इस मायने में अनूठे हैं कि वर्चुअल वर्ल्ड प्रचार का नया सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। गूगल ने चुनाव समर्पित एक इलेक्शन हब विकसित किया है। प्रचार के पारंपरिक तरीकों के साथ तकनीक जुड़ रही है। सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के एक शोध के मुताबिक, इस बार चुनाव में पांच अरब रुपये खर्च किए जाएंगे, जो पिछले चुनाव के खर्च का तीन गुना है। राजनीतिक दल अपनी ऑनलाइन उपस्थिति के ऊपर अपने बजट का दो से पांच प्रतिशत खर्च कर रहे हैं।पहली बार हो रहा यह प्रयोग चुनौतियां व समस्याएं भी ला रहा है। माना जाता है कि सोशल मीडिया टीवी व अखबार से ज्यादा लोकतांत्रिक और निरपेक्ष हैं, पर इस नवजात मीडिया के रेवेन्यू मॉडल का आधार भी विज्ञापनों से होने वाली आय है। इस मुद्दे को ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग ने चुनाव प्रचार और उस पर होने वाले व्यय के लिए कुछ दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इंटरनेट की व्यापकता और पहुंच देखते हुए इन दिशा-निर्देशों से बचकर प्रचार किया जा सकता है, जिससे आयोग को खर्च का वास्तविक आंकड़े मिलना मुश्किल है। हैश टैग और फीड को प्रमोट करने के लिए फर्जी अकाउंट का इस्तेमाल खूब किया जा रहा है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स के ग्लोबल प्लेटफॉर्म को आधार बनाकर छोटी कंपनियां कमेंट और लाइक का कारोबार कर रही हैं, जिसमें काले धन को खपाया जा रहा है। एक रिपोर्ट में फेसबुक ने खुद माना है कि उसके कुल एकाउंट में से 5.5 प्रतिशत से लेकर 11.2 प्रतिशत तक फर्जी एकाउंट हैं।फेसबुक के कुल प्रयोगकर्ताओं में भारत का स्थान दूसरा है। चुनाव के बाद ऑनलाइन विज्ञापन पर किए गए सारे खर्च का ब्यौरा राजनीतिक दलों को देना होगा। लेकिन इंटरनेट पर बहुत से राजनीतिक दलों के समर्थक अपने-अपने तरीके से अभियान चला रहे हैं, अगर इस अभियान के लिए कोई राजनीतिक दल उन्हें अनाधिकारिक रूप से पैसा दे रहा है, तो फिर उसका हिसाब कैसे लिया जाएगा? फर्जी एकाउंट जहां राजनीतिक दलों के लिए अंडरकवर एजेंट की तरह कार्य कर रहे हैं, वहीं नफरत व सामाजिक वैमनस्य बढ़ने वाले वक्तव्य का इस्तेमाल वोटों के ध्रुवीकरण और गलत जनमत निर्माण में किया जा रहा है। चुनाव के वक्त जहां बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ हो, वहां ऑनलाइन समर्थन से किसी भी प्रत्याशी की स्थिति को बेहतर बताकर उसके पक्ष में वोट जुटाए जा सकते हैं।
आदर्श आचार संहिता के निर्देश राजनीतिक दलों या प्रत्याशियों के लिए है। ऐसे में, वे अपने समर्थकों का इस्तेमाल करके इस आचार संहिता से बच सकते हैं। बेहतर निगरानी तंत्र से ही इससे निपटा जा सकता है। यह काम चुनाव आयोग को करना ही होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
हिन्दुस्तान में 18/04/14 को प्रकाशित 

Tuesday, April 8, 2014

स्मार्टनेस का नया निशान

आपके शरीर पर कहीं कोई तिल है क्या?अरे तिल बोले तो वो ब्लैक मार्क जो आपकी ब्यूटी को बढा देता है.यानि हर ब्लैक चीज ख़राब नहीं होती.अब इलेक्शन और पौलीटिक्स जैसे सीरियस इश्यू को छोड़कर मैं कहाँ ब्यूटी मार्क जैसी चीजों में पड़ा हूँ.आपकी सोच सही है तो चलिए इलेक्शन की बात करते हैं.आप सबने कभी न कभी वोट जरुर दिया होगा और अगर न दिया हो तो इस बार वोट देने जरुर जाइएगा.हाँ हाँ मुझे पता है कि मैं न तो कोई सेलीब्रिटी हूँ न कोई बड़ा प्लेयर जिसकी बात आप मानें,मैं तो ये रिक्वेस्ट महज इसलिए कर रहा हूँ जिससे आगे जो मैं कहना चाह रहा हूँ वो आप समझ सकें.वैसे आपके चेहरे होंट या चेहरे पर कहीं ऐसी जगह वो प्यारा सा काला तिल है तो आप बड़ा प्राउड फील करते हैं और उस ऊपर वाले को शुक्रिया कहना नहीं भूलते जिसने आपको जीवन दिया,पर वो देश जिसने आपको उस जीवन के अलावा बहुत सी चीजें दी हैं कभी उसको थैंक यू कहने का मन नहीं करता उफ़ मैं फिर भटक गया हाँ तो मैं वोट की बात कर रहा था तो वोट देते वक्त हम सबकी उंगली पर एक निशान लगाया जाता है जो इस बात की तस्दीक करता है कि हमने अपना वोट दे दिया है मतलब स्याही की तरह का एक केमिकल,याद आया आपको हाँ वही,जब आप वोट देते हैं तब उसका रंग नीला होता है और फिर जैसे जैसे दिन बीतते जाते हैं वो काला हो जाता है.अब ये कौन सी बड़ी बात है होता होगा वैसे इससे आपको फर्क क्यूँ पड़े.फर्क तो पड़ना चाहिए क्यूंकि इस दुनिया में कुछ भी यूँ ही नहीं होता अच्छा छोडिये इस बात को ये बताइए कि आप अपना घर और अपने शरीर को साफ़ रखते हैं फिर रोज रोज क्यूँ नहाते हैं या घर में झाड़ू पोंछा क्यूँ करते हैं,इसलिए न कि गंदगी जमें नहीं रोज जब हम नहाते हैं या घर साफ़ करते हैं तो न तो कपडे काले होते हैं न शरीर पर लगने वाले साबुन का झाग.घर और शरीर का तो आपने सोच लिया पर देश के बारे में कब सोचेंगे. क्यूंकि कोई भी चीज हमेशा के लिए साफ़ नहीं रह सकती है गंदगी जीवन का हिस्सा है पर उसे साफ़ किया जा सकता है .इससे ये  प्रूव हुआ कि अगर सफाई नहीं होगी तो गंदगी खेल कर जायेगी अब जब आप सफाई करते हैं तो क्या होता भाई थोड़े बहुत तो हम भी गंदे होते हैं,कपडे गंदे होते हैं और शरीर भी.गंदे शरीर पर जब हम साबुन लगाते हैं तो पहले उसका झाग भी काला होता जैसे जैसे शरीर साफ़ होता जाता है.झाग भी सफ़ेद होता जाता है.कन्फ्यूज मत होइए वोट देते वक्त आपकी उंगली पर लगने वाला वो छोटा सा काला निशान बहुत कुछ कहता है पर हम समझ नहीं पाते.पहली बात गंदगी की सफाई,गंदगी में उतर कर ही की जा सकती है यनि अगर आपको लगता है कि देश की पौलीटिक्स गंदी हो रही है.गलत लोग चुनाव जीत कर आ रहे हैं तो इसमें आपको उतरना ही पड़ेगा.इसका सिर्फ ये मतलब नहीं कि आप सबकुछ छोड़कर राजनीति में कूद पड़ें.आप अपना करियर बनायें पर देश की  गंदगी को लगातार साफ़ करते रहने के लिए  जब भी वोट देने का मौका मिले अपने वोट का इस्तेमाल जरुर करें अगर आप वोट नहीं देंगे तो गंदगी जमा होती रहेगी.मैं आपसे क्रांति करने को नहीं कह रहा आपको बस अपनी उस छोटी सी जिम्मेदारी को निभाना है जिसकी देश हर पांच साल में आपसे उम्मीद करता है .वोट देना है तो देना है जरा सोचिये वो चुनाव कैसा होगा जब शत प्रतिशत वोटिंग होगी.अब एक्सक्यूज मत दीजिये जब आप पासपोर्ट से लेकर पिक्चर के टिकट तक हर जगह लाइन लग सकते हैं तो वोट देने के लिए क्यूँ नहीं.जब वोट देंगे तो आपकी उंगली पर लगा वो ब्लैक मार्क आपको इस बात का एहसास कराएगा कि देश को बेहतर बनाने और देश की सफाई करने में आपने अपना कंट्रीब्यूशन दिया है.अब आप समझ रहे होंगे मैंने शुरुवात में अपनी बात एक छोटे से काले तिल से अपनी बात क्यूँ शुरू की थी.जी वो छोटा सा काला तिल आपको स्मार्ट बना देता है पर स्मार्टनेस फिजीकल एपीरियंस के अलावा एक्शन पर भी डीपेंड करती है तो एक ब्यूटी मार्क ऊपर वाला देता है वो किसे मिलेगा किसे नहीं कोई नहीं जानता पर ये ब्यूटी मार्क हमें देश देता है पर हम उस पर हमें फख्र नहीं होता तो इस बार के इलेक्शन इस वोटिंग इंक के इस ब्यूटी मार्क को फैशन स्टेटमेंट बनाइये खुद भी वोट दीजिये और दूसरों को भी दिलवाइये .
आई नेक्स्ट में 08/04/14 को प्रकाशित 

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