Tuesday, February 23, 2016

मौजूदा विकास मॉडल में गाँव की जगह

खुली अर्थव्यवस्था,विशाल जनसँख्या जो खर्च करने के लिए तैयार है  और तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था ये सारी चीजें एक ऐसे भारत का निर्माण कर रही हैं जहाँ व्यापार करने की अपार संभावनाएं हैं भारत तेजी से बदल रहा है पर आंकड़ों के आईने में अभी भारत बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के व्यापार के लिए एक आदर्श देश नहीं बन पाया है |मॉर्गन स्टेनली की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया कि भारत के शहर  अभी भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे हैं |इस रिपोर्ट में भारत के दौ सौ शहरों का अध्ययन किया गया है रिपोर्ट में शामिल शहरों में छाछ्ट प्रतिशत के पास अभी भी कोई सुपर मार्केट नहीं है |कोल स्टोरेज की  पर्याप्त संख्या में न होने के कारण अधिकतर भारतीय अपने दैनिक जीवन से जुडी हुई चीजों की खरीद फरोख्त आस पास की दुकानों से खरीदते हैं |पचहतर प्रतिशत भारतीय शहरों (रिपोर्ट में शामिल शहर )में कोई बेहतरीन पांच सितारा सुविधाओं से युक्त होटल नहीं है|
देश की अर्थव्यवस्था तभी तेज गति से दौड़ेगी जब निवेश तेजी से होगा जिससे उत्पादन बढेगा और विदेशी निवेश तभी तेजी से बढेगा जब पर्याप्त आधारभूत सुविधाओं की उपलब्धता होगी पर हमारे शहर आवश्यक आधारभूत सुविधाओं के अभाव का सामना कर रहे हैं|अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सरकार ने मेक इन इण्डिया और स्मार्ट सिटी परियोजना पर काम शुरू किया|मेक इन इण्डिया कार्यक्रम का उद्देश्य देश में सौ मिलीयन रोजगार का स्रजन करना और देश की जी डी पी में उत्पादन योगदान को सत्रह प्रतिशत से बढ़ाकर पच्चीस प्रतिशत करना है |कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब पर पर इस कार्यक्रम की सफलता निर्भर करती है|सबसे पहला है आधारभूत ढांचे का विकास एक ऐसी जगह जहाँ से व्यवसाय का विकास किया जा सके जिसमें शामिल है सडक, बिजली और रेल व्यवस्था का नेटवर्क,बहुत प्रयास के बावजूद भारत अभी भी पर्याप्त सड़कें नहीं बना पाया है| बंदरगाहों की संख्या और रेल नेटवर्क का विस्तार भी उस गति से नहीं हुआ है जिसकी उद्योग जगत को दरकार है |दो साल पहले उत्तर पूर्व राज्य के किसानों को अपनी शानदार फसल को औने पौने दाम पर इसलिए बेच देना पड़ा था क्योंकि पर्याप्त परिवहन सुविधा न होने के कारण उस फसल को भारत के दुसरे राज्यों में भेजा जाना संभव नहीं था|चीन से समुद्र के रास्ते मुंबई  माल आने में बाढ़ दिन लगते हैं वहीं उसी सामान को सडक से उत्तरांचल पहुँचने में बीस दिन लग जाते हैं |तथ्य यह भी है कि आधारभूत सुविधाएँ एक दिन में विकसित नहीं हो सकती इसके लिए सरकार को प्रयास करना होगा और निवेश के लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप को बढ़ावा देना चाहिए और यह निवेश महज आर्थिक न होकर सामाजिक और ग्रामीण भी होना चाहिए|आर्थिक जगत टैक्स सुधारों का लम्बे समय से इन्तजार कर रहा है जिसमें समान वस्तु एवं सेवा कर, इंटेलेक्चुअल प्रोपर्टी राईट्स पालिसी और बैंकरप्सी कोड जैसे अहम् नियम शामिल हैं जिन पर लम्बे समय से फैसला लंबित है |पिछले साल विश्व बैंक की इज ऑफ़ डूईंग बिजनेस इंडेक्स में भारत बारह  स्थान चढ़कर एक सौ तीसवें नंबर पहुंचा पर यह स्थान मैक्सिको और रूस जैसे देशों से काफी पीछे है जो क्रमश: अड़तीस और इक्यावन स्थान पर हैं और जहाँ व्यसाय शुरू करने का अवसर भारत के मुकाबले कहीं ज्यादा सरल है इस इंडेक्स में हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान हमसे बस थोड़ा ही पीछे है जो एक सौ अड़तीसवें स्थान पर है |‌‍‍‌‍ एक और चुनौती जिससे भारत जूझ रहा है विकास की इस दौड़ में गाँवों के पीछे छूट  जाने का भय, मेक इन इण्डिया में होने वाला अधिकाँश निवेश शहर केन्द्रित है या उन जगहों पर होगा जहाँ आधारभूत ढांचा पहले से उपलब्ध है| निवेश की पहली शर्त आधारभूत ढांचा होने से भारत के गाँव एक बार गिर आगे बढ़ने से वंचित रह जायेंगे जिस तेजी से शहर विकसित हो रहे हैं क्योंकि उनकी क्रय शक्ति कम है जिससे निजी निवेशक गाँव में निवेश करने से हिचकते हैं और आधारभूत ढांचे का सबसे बुरा हाल गाँवों में ही है| ऐसे में उनके विकास की जिम्मेदारी एक बार फिर सरकार भरोसे रह जायेगी| इस कार्यक्रम में गाँवों की अनदेखी की जा रही है सारा जोर शहरों पर है|शहर केन्द्रित विकास का यह मोडल भारत की परिस्थितियों में कितना सफल होगा  इसका फैसला होना अभी बाकी है क्योंकि विकास का तात्पर्य समेकित विकास से है न कि सिर्फ शहरों के विकास से है| मेक इन इंडिया कार्यक्रम की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि सरकार व्यवस्था गत खामियों को कितनी जल्दी दूर करती है और आधारभूत सुविधाओं को कितनी जल्दी उपलब्ध कराती है | 
अमर उजाला में 23/02/16 को प्रकाशित 

Friday, February 19, 2016

शिक्षा बिना उद्धार नहीं

मेक इन इण्डिया के प्रति सरकार बहुत गंभीर है सरकार का मानना है कि साल 2022  तक इससे दस करोड़ नयी नौकरियां सृजित होंगी और इस आशा के मूल में  यह विश्वास है कि भारत उत्पादन के क्षेत्र में चीन की तर्ज पर विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन का हब बनेगा |मेक इन इण्डिया के विचार के पीछे यह विचार है कि दुनिया के अन्य उद्यमियों  के साथ भारतीय भी तकनीक के क्षेत्र में  कुछ नया इनोवेशन करेंगे जिससे देश तेजी से आगे से बढ़ सकेगा |मेक इन इण्डिया की यह पहल स्वागत योग्य है पर डर इस बात का है कि यह कार्यक्रम महज दूसरे देशों की तकनीक का डंपिंग ग्राउंड बन कर न रह जाए क्योंकि आंकड़े कुछ और ही तस्वीर पेश कर रहे हैं संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआईपीओ) ने साल 2015 में जो ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स जारी किया उसमें भारत 81वें स्थान पर है| इस सूची में पहले स्थान पर स्विट्जरलैंड है वहीं चीन रूस और ब्राजील जैसे देश क्रमश: उन्तीसवें ,अड़तालीसवें और सत्तरवें स्थान पर हैं |यह सूची स्पष्ट ईशारा करती है भारत में बहुत ज़्यादा खोज नहीं हो रही, जो थोड़ा बहुत खोज हो रही है, उसमें सबसे आगे केंद्र सरकार की संस्था काउंसिल फ़ॉर साइंटिफ़िक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) है| इसने 10 साल में कुल  भारतीय 10,564 पेटेंट में से 2,060 पेटेंट हासिल किए हैं| इसके बाद सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कुछ बड़ी कंपनियां हैं|गौरतलब है कि भारत में बीते दस साल में सबसे ज़्यादा पेटेंट रसायन के क्षेत्र में शोध के लिए मिले हैं|लेकिन महत्वपूर्ण सवाल ये है कि हर क्षेत्र में इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कौन से ऐसे कदम उठाये | राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति की अभी तक घोषणा नहीं हो पायी है हालांकि साल 2009 के यूटिलाइज़ेशन ऑफ़ पब्लिक फ़ंडेड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी बिल का भी यही मक़सद था पर इसका विरोध हुआ था कि किस तरह इन संस्थानों को पेटेंट लेने को मजबूर किया जा सकता है और कैसे इन पेटेंट पर किसी ख़ास कंपनी को ही लाइसेंस दिया जाएगा |एक और बड़ा मुद्दा यह भी था कि इन संस्थाओं को सरकारी पैसा मिलता है तो कोई निजी कंपनी कैसे इस शोध से फ़ायदा उठा सकती है|यह विधेयक 2014 में वापस ले लिया गया था| तथ्य यह भी है कि पांच प्रतिशत  से ज़्यादा पेटेंट व्यावसायिक रूप से सफल  नहीं होते |सरकारी संस्थानों के अधिकतर शोध उद्योगों के काम के नहीं होते  हैं, उनका ध्यान अकादमिक शोध पत्र प्रकाशित करने में ज्यादा होता है |आलोचकों का मानना है पेटेंट प्रणाली नई खोजों को नुक्सान ही पहुंचाती है, ख़ास कर सूचना प्रौद्योगिकी और सोफ्टवेयर  के क्षेत्र में|दूसरी बात भी है, सॉफ़्टवेयर क्षेत्र इतनी तेज़ी से बदलता है कि बीस  साल के पेटेंट का कोई मतलब नहीं है. भारतीय पेटेंट कार्यालय ने इन गाइडलाइंस को फ़िलहाल हटा दिया है |इनोवेशन के लिए शिक्षा पर ध्यान देने की जरुरत है आर्थिक विकास के लिए शिक्षित और कौशलयुक्त कामगारों का होना बहुत आवश्यक है, लेकिन देश में शिक्षा पर खर्च किए जाने वाले धन में कटौती की जा रही है| आज भारत का एक भी विश्वविद्यालय ऐसा नहीं जिसकी गिनती दुनिया के दो सौ  सबसे अच्छे विश्वविद्यालयों में होती हो | सरकार ने शिक्षा के लिए बजट 2015 में करीब 25 प्रतिशत की कटौती की है और उसके लिए आवंटित धनराशि को 82771 करोड़ रुपये से घटाकर 69074 करोड़ रुपये कर दी गयी थी |इस परिस्थिति में यदि देश के सत्तावन  फीसदी छात्रों के पास रोजगार प्राप्त करने की क्षमता प्रदान करने वाला कौशल नहीं है, तो इसमें बहुत अधिक आश्चर्य नहीं होना चाहिए | आर्थिक विकास का आधार मानवीय क्षमता का विकास है | यदि मानवीय क्षमता में वृद्धि नहीं होगी और कौशलयुक्त श्रमशक्ति उपलब्ध नहीं होगी, तो आर्थिक विकास स्थायी रूप नहीं ले सकता | मेक इन इण्डिया कार्यक्रम का उद्देश्य दुनिया भर के उद्यमियों के लिए इस मकसद से शुरू किया गया है कि वे  भारत में अपने संयंत्र लगाकर देश में  अपने उत्पादों का निर्माण करें| ऐसा तभी हो सकता है जब विदेशी निवेशकों और उद्योगपतियों को भारत में कुशल श्रमशक्ति उपलब्ध हो |  इसके लिए जरूरी है कि शिक्षा और रोजगार को आपस में जोड़ा जाये और छात्रों के भीतर नए-नए कौशल और क्षमताएं पैदा की जाएं. यह तभी संभव हो सकता है जब शिक्षा नीति में आवश्यक बदलाव किया जाए और उस पर अपेक्षित मात्रा में खर्च किया जाए नहीं तो भारत के शिक्षित बेरोजगारों की संख्या बढ़ती ही जाएगी | व्यापारिक संगठन एसोचैम के ताजा अध्ययन में कहा गया है कि बीते दस वर्षों के दौरान निजी स्कूलों की फीस में लगभग 150 फीसदी बढ़ोतरी हुई है. सरकारी स्कूलों के लगातार गिरते स्तर ने इस समस्या को और जटिल बना दिया है |पिछले 2011 के जनगणना के आंकड़ों के मुकाबले भारतीय ग्रामीण निरक्षरों की संख्या में 8.6 करोड़ की और बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है|ये आंकड़े सामाजिक आर्थिक और जातीय जनगणना (सोशियो इकोनॉमिक एंड कास्ट सेंसस- एसईसीसी) ने जुटाए हैं|महत्वपूर्ण  है कि एसईसीसी ने 2011 में 31.57 करोड़ ग्रामीण भारतीयों की निरक्षर के रूप में गिनती की थीउस समय यह संख्या दुनिया के किसी भी देश के मुक़ाबले सबसे ज़्यादा थी|ताज़ा सर्वेक्षण के मुताबिक़, 2011 में निरक्षर भारतीयों की संख्या 32.23 प्रतिशत थी जबकि अब उनकी संख्या बढ़कर 35.73 प्रतिशत हो गई है|साक्षरों के मामले में राजस्थान की स्थिति सबसे बुरी है यहां 47.58 (2.58 करोड़) लोग निरक्षर हैं|इसके बाद नंबर आता है मध्यप्रदेश का जहां निरक्षर आबादी की संख्या 44.19 या 2.28 करोड़ है.बिहार में निरक्षरों की संख्या कुल आबादी का 43.85 प्रतिशत (4.29 करोड़) और तेलंगाना में 40.42 प्रतिशत (95 लाख) है|शिक्षा एक ऐसा पैमाना है जिससे कहीं हुए विकास को समझा जा सकता है ,शिक्षा जहाँ जागरूकता लाती है वहीं मानव संसाधन को भी विकसित करती है |इस मायने में शिक्षा की हालत गाँवों में ज्यादा खराब है |सरकार ने शिक्षा का अधिकार कानून तो लागू कर दिया हैलेकिन इसके लिए सबसे जरूरी बात यानि ग्रामीण सरकारी स्कूलों का स्तर सुधारने पर अब तक न तो केंद्र ने ध्यान दिया है और न ही राज्य सरकारों नेग्रामीण इलाकों में स्थित ऐसे स्कूलों की हालत किसी से छिपी नहीं हैजो मौलिक सुविधाओं और आधारभूत ढांचे की कमी से जूझ रहे हैंइन स्कूलों में शिक्षकों की तादाद एक तो जरूरत के मुकाबले बहुत कम है और जो हैं भी वो पूर्णता प्रशिक्षित  नहीं हैज्यादातर सरकारी स्कूलों में शिक्षकों और छात्रों का अनुपात बहुत ऊंचा है. कई स्कूलों में 50 छात्रों पर एक शिक्षक है|यही नहींसरकारी स्कूलों में एक ही शिक्षक विज्ञान और गणित से लेकर इतिहास और भूगोल तक पढ़ाता है| ध्यान रखा जाना चाहिए जब तक देश में शिक्षा की हालत ठीक नहीं होगी इनोवेशन को बढ़ावा नहीं मिलेगा |
राष्ट्रीय सहारा में 19/02/16 को प्रकाशित 

Monday, February 1, 2016

नेट पर चमकने लगी हिन्दी की बिंदी

पिछले तकरीबन एक दशक से भारत को किसी और चीज ने उतना नहीं बदलाजितना इंटरनेट ने बदल दिया है। रही-सही कसर इंटरनेट आधारित फोन यानी स्मार्टफोन ने पूरी कर दी। स्मार्टफोन उपभोक्ताओं के लिहाज से भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा बाजार है। आईटी क्षेत्र की एक अग्रणी कंपनी सिस्को ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2019 तक भारत में स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वालों की संख्या लगभग 65 करोड़ हो जाएगी।
इसमें कोई शक नहीं है कि इंटरनेट ने  हमारी जिंदगी को सरल बनाया  है आज एक किसान भी सभी नवीनतम तकनीकों को अपना रहे हैंऔर उन्हें सीख भी  रहे हैंइंटरनेट सूचनाओं का एक ऐसा अंतर्जाल जिस पर जाकर आप अपने काम की सामग्री पा सकते हैं पर जब इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री की भाषा की बात आती है तो अंगरेजी हमेशा भारतीय भाषाओं  से बहुत आगे रही है और ऐसे में यह प्रश्न बार –बार उठता है कि भारत इन नवीन सूचना तकनीक का लाभ तभी उठा सकता है जब ये तकनीक भारतीयों के लिए अनुकूलित हों और जाहिर इस अनुकूलन से तात्पर्य भाषा और कंटेंट का मुद्दा अहम है।इसलिए भारत में हिन्दी और भारतीय भाषाओं  में इंटरनेट के विस्तार पर बल दिया जा रहा है .भारत दुनिया के सबसे बड़े इंटरनेट बाजारों में से एक है और बहुसंख्यक आबादी अभी भी इंटरनेट से दूर है इसलिए गूगल और फेसबुक जैसी कम्पनियों की भारत पर विशेष नजर है कि कैसे इंटरनेट के इस विशाल बाजार के बड़े हिस्से हथियाया जाए .
गूगल के आंकड़ों के मुताबिकअभी देश में अंग्रेजी भाषा समझने वालों की संख्या 19.8 करोड़ हैऔर इसमें से ज्यादातर लोग इंटरनेट से जुड़े हुए हैं. तथ्य यह भी है कि भारत में इंटरनेट बाजार का विस्तार इसलिए ठहर-सा गया हैक्योंकि सामग्रियां अंग्रेजी में हैं। आंकड़े बताते हैं कि इंटरनेट पर 55.8 प्रतिशत सामग्री अंग्रेजी में हैजबकि दुनिया की पांच प्रतिशत से कम आबादी अंग्रेजी का इस्तेमाल अपनी प्रथम भाषा के रूप में करती हैऔर दुनिया के मात्र 21 प्रतिशत लोग ही अंग्रेजी की समझ रखते हैं. इसके बरक्स अरबी या हिंदी जैसी भाषाओं मेंजो दुनिया में बड़े पैमाने पर बोली जाती हैंइंटरनेट सामग्री क्रमशः 0.8 और 0.1 प्रतिशत ही उपलब्ध है. बीते कुछ वर्षों में इंटरनेट और विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साइट्स जिस तरह लोगों की अभिव्यक्तिआशाओं और अपेक्षाओं का माध्यम बनकर उभरी हैंवह उल्लेखनीय जरूर हैमगर भारत की भाषाओं में जैसी विविधता हैवह इंटरनेट में नहीं दिखती।आज 400 मिलियन भारतीय अंग्रेजी भाषा की बजाय हिंदी भाषा की ज्यादा समझ रखते हैं लिहाजा भारत में इंटरनेट को तभी गति दी जा सकती हैजब इसकी अधिकतर सामग्री हिंदी समेत अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में हो.आज जानकारी का उत्तम स्रोत कहे जाने वाले प्रोजेक्ट विकीपिडिया पर तकरीबन पेज 22000 हिंदी भाषा में हैं ताकि भारतीय यूजर्स इसका उपयोग कर सकें। भारत में लोगों को इंटरनेट पर लाने का सबसे अच्छा तरीका है उनकी पसंद का कंटेंट बनाना यानि कि भारतीय भाषाओं को इंटरनेट के मानचित्र पर  लाना.  इंटरनेट उपभोक्ताओं की यह रफ्तार तभी बरकरार रहेगीजब इंटरनेट सर्च और सुगम बनेगा। यानी हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं को इंटरनेट पर बढ़ावा देना होगातभी गैर अंग्रेजी भाषी लोग इंटरनेट से ज्यादा जुड़ेंगे।भारत सही मायने में कन्वर्जेंस की अवधारणा को साकार होते हुए देख रहा हैजिसका असर तकनीक के हर क्षेत्र में दिख रहा है। इंटरनेट मुख्यता कंप्यूटर आधारित तकनीक रही है पर स्मार्ट फोन के आगमन के साथ ही यह धारणा तेजी से ख़त्म होने लग गयी और जिस तेजी से मोबाईल पर इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ रहा है वह साफ़ इशारा कर रहा है की भविष्य में इंटरनेट आधारित सेवाएँ कंप्यूटर नहीं बल्कि मोबाईल को ध्यान में रखकर उपलब्ध कराई जायेंगी.हिंदी को शामिल करते हुए इस समय इंटरनेट की दुनिया बंगाली ,तमिलकन्नड़ ,मराठी ,ड़िया , गुजराती ,मलयालम ,पंजाबीसंस्कृत,  उर्दू  और तेलुगु जैसी भारतीय भाषाओं में काम करने की सुविधा देती है आज से दस वर्ष पूर्व ऐसा सोचना भी गलत माना जा सकता था पर इस अन्वेषण के पीछे भारतीय इंटरनेट उपभोक्ताओं के बड़े आकार का दबाव काम कर रहा था.हिन्दी और भारतीय भाषाओँ में इंटरनेट पर  अब ज्यादा सामग्री सुलभ है और इंटरनेट पर इनका प्रभुत्व बढ़ा है.
गूगल पिछले 14 सालों सेसर्च(खोज ) पर काम कर रहा है। यह सर्च भविष्य में सबसे ज्यादा मोबाइल के माध्यम से किया जाएगा। विश्व भर में लोग अब ज्यादातर मोबाइल के माध्यम से इंटरनेट चला रहे हैं। बढते स्मार्ट फोन के प्रयोग ने सर्च को और ज्यादा स्थानीयकृत किया है वास्तव में खोज ग्लोबल से लोकल हो रही है जिसका आधार भारत में तेजी से बढते मोबाईल इंटरनेट प्रयोगकर्ता हैं जो अपनी खोज में स्थानीय चीजों को ज्यादा महत्त्व दे रहे हैं.
ये रुझान दर्शाते हैं कि भारत नेट युग की अगली पीढ़ी में प्रवेश करने वाला है जहाँ सर्च इंजन भारत की स्थानीयता को ध्यान में रखकर खोज प्रोग्राम विकसित करेंगे और गूगल ने स्पीच रेकग्नीशन टेक्नीक पर आधारित वायस सर्च की शुरुवात की है जो भारत में सर्च के पूरे परिद्रश्य को बदल देगी.स्पीच रेकग्नीशन तकनीक  लोगों को इंटरनेट के इस्तेमाल के लिए किसी भाषा को जानने की अनिवार्यता खत्म कर देगी वहीं बढते स्मार्ट फोन हर हाथ में इंटरनेट पहले ही पहुंचा रहे हैं . पर तस्वीर के एक पक्ष यह भी है कि भारत जैसे देश में जहां मोबाइल इंटरनेट का इस्तेमाल बेतहाशा बढ़ा हैवहां ऐसी सुविधा लोगों को मोबाइल इंटरनेट से जुड़ने के लिए और ज्यादा प्रेरित करेगी।सूचना क्रांति का शहर-केंद्रित विकास देश के सामाजिक आर्थिक ढांचे में डिजीटल डिवाइड को बढ़ावा दे रहा है. भारत की अमीर जनसंख्या का बड़ा तबका शहरों में रहता है जो सूचना प्रौद्योगिकी का ज्यादा इस्तेमाल करता है। उदारीकरण के पश्चात देश में एक नए मध्यम वर्ग का विकास हुआ जिसने उपभोक्ता वस्तुओं की मांग को प्रेरित किया। इसका परिणाम सूचना प्रौद्योगिकी में इस वर्ग के हावी हो जाने के रूप में भी सामने आया. देश की शेष सत्तर प्रतिशत जनसंख्या न तो इस प्रक्रिया का लाभ उठा पा रही है और न ही सहभागिता कर पा रही है। पर हमें इस तथ्य  को भी नहीं भूलना चाहिए कि यहां इंटरनेट की आधारभूत संरचना विकसित देशों के मुकाबले काफी पिछड़ी है और इंटरनेट के बाजारीकरण की कोशिशें जारी हैं. ऐसे में सरकार का डिजिटल इंडिया बनाने का यह प्रयास आम उपभोक्ताओं के इंटरनेट सर्फिंग समय को कितना सुहाना बनाएगाइसका फैसला अभी होना है.
आई नेक्स्ट में 01/02/16 को प्रकाशित 

पसंद आया हो तो